Saturday 19 September 2015

पैथोलॉजी में साइकिल, बरामदे में गर्भवती


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-सेहत का सच-
-सरकारी अस्पतालों में पहुंच ही नहीं रहे डॉक्टर
-जांचें तो दूर, मरीजों की चिंता भी भगवान भरोसे
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डॉ. संजीव, फैजाबाद
हर मरीज को तुरंत इलाज व मुफ्त दवा का सरकारी दावा आज भी ग्र्रामीण अंचल में महज सपना ही है। वहां सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर ही नहीं पहुंच रहे हैैं। जांचें व दवाएं मिलना तो दूर, मरीजों की चिंता भी भगवान भरोसे ही है।
बाराबंकी व फैजाबाद प्रदेश सरकार के उच्च प्राथमिकता वाले जिलों की सूची में शामिल हैं। सरकार आए दिन यहां जच्चा-बच्चा की सुरक्षा से लेकर उनके भरपूर इलाज तक का दावा करती है, किन्तु जमीनी हकीकत कुछ और ही है। लखनऊ से गोरखपुर के बीच चमचमाते हाइवे के किनारे बन रही ऊंची इमारतों से नीचे उतरकर कुछ किलोमीटर भीतर जाइए तो सेहत के साथ हो रहा मजाक साफ दिख जाएगा।
शुरुआत बाराबंकी के बड़ागांव स्थित जच्चा-बच्चा अस्पताल यानी सब सेंटर से करते हैं। अस्पतालों में शत प्रतिशत प्रसव की तैयारियों का दावा यहां खोखला नजर आता है। यहां अस्पताल में ताला पड़ा है। पास के जकारिया गांव की अशरफुन्निशां गर्भवती हैं। आशा कार्यकर्ता उन्हें अस्पताल लेकर आयीं तो उन्हें बरामदे में पड़े बेड पर लिटा दिया गया। अब उनकी परवाह करने वाला वहां कोई नहीं है। पूछने पर बताया गया कि डॉक्टर तो यहां आती ही नहीं हैैं। दो एएनएम सावित्री व आमिनी हैं, जो हफ्ते में तीन-तीन दिन आकर ड्यूटी कर लेती हैं। सबसेंटर के बाहर मिली प्रीति का कहना था कि यहां तो आने वाले हर मरीज भगवान भरोसे ही रहते हैैं। गंभीर अवस्था में आएं तो इलाज मिलना असंभव ही होता है।
बाराबंकी से आगे बढ़कर फैजाबाद पहुंचे तो वहां का हाल भी ऐसा ही है। हर मरीज की मुफ्त जांच का दावा यहां दम तोड़ रहा है। रानी बाजार के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में पैथोलॉजी में साइकिल खड़ी थी। पैथोलॉजी में कोई जांच नहीं होती। जांच की आवश्यकता पडऩे पर मरीजों को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भेजा जाता है। फैजाबाद के मसौधा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर भी कमोवेश यही स्थिति दिखी। सरकार सभी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर एक्सरे सहित अन्य जांचें मुफ्त करने का दावा करती है किन्तु यहां एक्सरे कक्ष में ताला पड़ा था। अस्पताल के चिकित्सक डॉ. दिनेश यादव बताते हैं कि अभी एक्सरे जैसी सुविधाएं नहीं शुरू हो सकी हैं, शुरुआती जांचें जरूर होती हैं। वहां आए मरीज मो.इमरान का कहना था पहले तो डॉक्टर ही नहीं मिलते, यदि मिल भी जाएं तो जांच के नाम पर जिला अस्पताल या नए खुले दर्शन नगर अस्पताल में भेज दिया जाता है।
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हम तो पिराइवेट हन
बाराबंकी के बड़ागांव सबसेंटर पर मिली आया की फोटो खींचने की कोशिश हुई तो उन्होंने साफ मना कर दिया। बोलीं, हम तो पिराइवेट हन, मरीज अउर उनके घर वाले जौन दई देत हैं, वहै लइ लेती हन। यानी वे सरकारी अस्पताल में नौकरी नहीं करतीं। बिना सरकारी अनुमति के एएनएम ने उनकी आउटसोर्सिंग की है और वे वहां मरीजों से मिलने वाले कुछ रुपयों के लिए उनका प्रसव कराने आ जाती हैं।
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पूरा समय अस्पताल को
इस पड़ताल में कुछ उम्मीद की किरणें भी नजर आयीं। फैजाबाद के रानी बाजार स्वास्थ्य केंद्र में डॉ.प्रशांत शुक्ला मरीज देख रहे थे। वे बोले, इलाहाबाद मेडिकल कालेज से एमबीबीएस करने के बाद यहां आ गया हूं। अब अस्पताल परिसर में ही रहता हूं। अभी शादी नहीं हुई तो पूरा समय मरीजों के लिए ही समर्पित है। यहां अस्पताल में प्रसव भी होते हैं और रात में कोई मरीज आ जाए तो निराश नहीं लौटना पड़ता।

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