Monday 21 September 2015

न डॉक्टर न कम्पाउंडर, आया चलावें अस्पताल


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सेहत का सच
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-सड़क से दूर अस्पताल पूरी तरह चल रहे भगवान भरोसे
-कुछ जगह एडजस्टमेंट कर एक डॉक्टर के सहारे संचालन
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डॉ.संजीव, बाराबंकी
यदि आप सड़क किनारे के किसी गांव में रहते हैं तो इलाज की उम्मीद कर सकते हैं। सड़क से थोड़ा दूर जाते ही इलाज की संभावनाएं दूरी बढऩे के साथ कम होने लगती हैं। अधिकांश अस्पतालों में न तो डॉक्टर पहुंचते हैं, न ही कम्पाउंडर। कई जगह तो आया ही पूरा अस्पताल चलाती मिलीं।
प्रदेश सरकार प्राथमिक व नए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को मजबूत करने के तमाम दावे करती है लेकिन वास्तविकता के धरातल पर ये दावे खरे नहीं उतर रहे। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पहल पर मौजूदा वर्ष को मातृ-शिशु रक्षा को समर्पित किया गया है मगर सच्चाई इससे बहुत दूर है। कुछ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों को छोड़ दिया जाए तो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों तक डॉक्टर पहुंच ही नहीं रहे हैैं। बाराबंकी के मसौली में महिला चिकित्सालय खुला तो लोग खुश हुए थे, किन्तु अब वे निराश ही रहते हैं। शुक्रवार सुबह आठ बजे से वहां गांव की एक महिला अपने दो बच्चों को लेकर आई थी। नाम पूछने पर उन्होंने साफ मना कर दिया कि वह नाम व फोटो नहीं छापने देंगी। खैर, तीन घंटे से अधिक समय हो गया किन्तु अस्पताल में आने वाली महिला डॉक्टर नहीं पहुंचीं। एक एएनएम आई तो वह भी क्षेत्र में निकल गई। आखिर में 12 बजे तक इंतजार करने के बाद उक्त महिला को लौट जाना पड़ा। तब तक अस्पताल को आया खेमावती ही संभाल रही थी। गांव वालों के मुताबिक पहले कम्पाउंडर आ जाता था, किन्तु अब डॉक्टर के न आने के कारण वह भी नहीं आता है। इसकी शिकायत भी कई बार मुख्य चिकित्सा अधिकारी तक की गयी किन्तु कोई असर नहीं होता है। क्षेत्र के अन्य प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में भी यही स्थिति मिली।
बाराबंकी व फैजाबाद के ग्र्रामीण अंचलों में एक और बात देखने को मिली। महिला चिकित्सालयों या उन प्राथमिक चिकित्सालयों में जहां सिर्फ महिलाएं ही तैनात हैं, वहां डॉक्टरों की कमी ज्यादा है। पुरुष चिकित्सकों ने एडजस्टमेंट का फार्मूला निकाला है। वे सप्ताह में तीन-तीन दिन आते हैं और बाकी तीन दिन लखनऊ में प्राइवेट प्रैक्टिस करते हैं। यह स्थिति सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में भी है। फैजाबाद के मसौधा का सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में सभी सुविधाएं हैं। वार्ड से लेकर ऑपरेशन थियेटर तक सब बने हैं किन्तु डॉक्टर नहीं आते। हम दोपहर एक बजे के आसपास वहां पहुंचे तो डॉ.बीएन यादव व डॉ.दिनेश वर्मा की ड्यूटी थी, किन्तु मौजूद मिले सिर्फ डॉ.दिनेश वर्मा। वहां संविदा पर कुछ डॉक्टर नियुक्त किये गए हैं किन्तु वे आते ही नहीं। इस कारण एक गर्भवती महिला सहित दो दर्जन मरीज डॉक्टर के इंतजार में बैठे थे। कम्पाउंडर न होने के कारण दवा वितरण कक्ष में भी सन्नाटा था।
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दवा कंपनी के खर्चे पर आतीं डॉक्टर
बाराबंकी के कुछ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों की आवाजाही दवा कंपनियों के भरोसे है। ये डॉक्टर लखनऊ में प्राइवेट प्रैक्टिस करते हैं। दवा कंपनियां उनसे अपनी दवा लिखवाने के बदले उन्हें टैक्सी से सप्ताह में एक-दो दिन अस्पताल भिजवाने का इंतजाम करती हैं। इनमें महिला चिकित्सक ज्यादा हैं। एक महिला चिकित्सक के पति तो स्वास्थ्य विभाग में अधिकारी हैं और वह अपनी इच्छानुसार सप्ताह में एक दिन जाकर पूरे हस्ताक्षर कर आती हैं।
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जब गांव वालों ने कर लिया कैद
बाराबंकी के मसौली महिला चिकित्सालय में डॉक्टर सप्ताह में एक या अधिकतम दो दिन आती थीं। गांव वाले अस्पताल जाते तो उन्हें निराश ही लौटना पड़ता था। अस्पताल के बाहर मिली ग्र्रामीण रंजना के मुताबिक रोज-रोज की इन स्थितियों से परेशान होकर कुछ माह पूर्व गांव वाले इकट्ठे हुए और उन्होंने गेट बंद कर डॉक्टर को कैद कर लिया। बाद में पुलिस आयी तो वह छूटीं। फिर कुछ दिन स्थितियां ठीक रहीं किन्तु फिर वही हाल है।
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