Thursday 29 October 2015

पुराने मेडिकल कालेजों का बदलेगा चेहरा

-पांच कालेजों के जीर्णोद्धार पर खर्च होंगे 105 करोड़ रुपये
-पहले चरण के 25 करोड़ मंजूर, शेष का समयबद्ध भुगतान
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : नए मेडिकल कालेज खोलने के साथ ही राज्य सरकार पुराने मेडिकल कालेजों का चेहरा बदलने की तैयारी कर रही है। इसके अंतर्गत पांच पुराने मेडिकल कालेजों के जीर्णोद्धार पर 105 करोड़ रुपये से अधिक खर्च होंगे।
प्रदेश सरकार चिकित्सा शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए पूरे प्रदेश में मेडिकल कालेजों का जाल बिछा रही है। इसके अंतर्गत इस वर्ष जहां सहारनपुर में नया मेडिकल कालेज शुरू हुआ, वहीं अगले शैक्षिक सत्र में बांदा व बदायूं मेडिकल कालेज शुरू किए जाने का प्रस्ताव है। सरकार पुराने मेडिकल कालेजों का भी चेहरा बदलने की तैयारी में भी है। चिकित्सा शिक्षा विभाग ने कानपुर, आगरा, मेरठ, झांसी व इलाहाबाद मेडिकल कालेजों में 105 करोड़ रुपये से अधिक खर्च कर इनके जीर्णोद्धार व पुनरुद्धार की योजना बनाई है। इसके तहत इन पांच कालेजों के लिए 25 करोड़ रुपये जारी भी कर दिए गए हैं। शेष 80 करोड़ रुपये समयबद्ध ढंग से जारी कर पुनरुद्धार कार्य पूर्ण करने की बात कही गयी है।
जीर्णोद्धार कार्य के पहले चरण में हर मेडिकल कालेज के लंबित कार्यों को पूरा किया जाएगा। इसके तहत कानपुर मेडिकल कालेज में मुरारीलाल चेस्ट हॉस्पिटल पर नौ करोड़ 59 लाख खर्च करने के साथ हैलट व संबद्ध अस्पतालों पर कुल 16,71,89,000 रुपये खर्च होंगे। इसी तरह आगरा मेडिकल कालेज में कुल 56,44,20,000 रुपये खर्च करने का प्रस्ताव है। इसमें सात मंजिले भवन के जीर्णोद्धार पर 4.46 करोड़, ओल्ड सर्जरी भवन पर 43.3 करोड़ और पुस्तकालय को एमसीआइ के मानकों के अनुरूप बनाने पर 8.69 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। इलाहाबाद मेडिकल कालेज में प्रस्तावित 20,93,04,000 रुपये में से 9.55 करोड़ परिसर में आवासीय व्यवस्था पर खर्च होंगे। इसके अलावा 33.55 लाख से स्त्री एवं प्रसूति गृह का जीर्णोद्धार करने के बाद शेष राशि से पांच छात्रावासों की जीर्णोद्धार होगा। 4.98 लाख रुपये मेरठ मेडिकल के अस्पताल व 11.24 करोड़ रुपये झांसी मेडिकल कालेज पर खर्च होंगे। 

Wednesday 28 October 2015

कम होने लगीं बीएएमएस की सीटें


-सिर्फ लखनऊ व वाराणसी को मिली सीसीआइएम की मान्यता
-मुजफ्फरनगर अमान्य, पांच कालेजों को फैसला का इंतजार
राज्य ब्यूरो, लखनऊ : प्रदेश में एलोपैथिक मेडिकल कालेज खोलने की होड़ के बीच आयुर्वेद चिकित्सा शिक्षा खासी पिछड़ रही है। इस ओर ध्यान न दिये जाने के कारण सूबे में बीएएमएस की सीटें कम होने का सिलसिला शुरू हो गया है। बुधवार से काउंसिलिंग है और अब तक राज्य के सिर्फ दो आयुर्वेदिक कालेजों को प्रवेश की मंजूरी मिली है। मुजफ्फरनगर आयुर्वेदिक कालेज को तो अमान्य घोषित कर दिया गया है।
लखनऊ, वाराणसी,ं मुजफ्फरनगर, बरेली, पीलीभीत, बांदा, इलाहाबाद व झांसी आयुर्वेदिक कालेजों में बीएएमएस की 320 सीटें हैं। इन कालेजों में शिक्षकों के अभाव, इलाज की पुख्ता व्यवस्था न होने और मरीजों के न पहुंचने के कारण इनकी मान्यता लंबे समय से खतरे में थी। इन कालेजों को मान्यता का जिम्मा संभाले सेंट्रल काउंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन (सीसीआइएम) से मान्यता न मिलने के कारण सीपीएमटी की पहली तीन काउंसिलिंग में बीएएमएस को शामिल ही नहीं किया जा सका। इन कालेजों में हर हाल में 31 अक्टूबर तक प्रवेश पूरे कर लेने का लक्ष्य है किन्तु इस वर्ष यह असंभव दिख रहा है।
हालात ये हैं कि इन कालेजों में प्रवेश के लिए सीपीएमटी की काउंसिलिंग 28 व 29 अक्टूबर को होनी है किन्तु अब तक सिर्फ लखनऊ व वाराणसी आयुर्वेदिक कालेजों के लिए ही सीसीआइएम की मंजूरी मिली है। इस तरह अब तक 320 में से सिर्फ 90 बीएएमएस सीटों को मंजूरी मिली है। इन कालेजों के निरीक्षण में सीसीआइएम की टीम ने सख्ती बरतते हुए मुजफ्फरनगर के आयुर्वेदिक कालेज को अमान्य समाप्त कर दिया है। वहां की 30 सीटों के साथ राज्य बीएएमएस की सीटें कम होने का सिलसिला शुरू हो गया है। शेष 200 सीटों का मामला भी अधर में है। सीसीआइएम की टीम बरेली, पीलीभीत, बांदा, इलाहाबाद व झांसी आयुर्वेदिक कालेजों का निरीक्षण तो कर चुकी है किन्तु अब तक वहां के बारे में फैसला नहीं लिया है।
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सत्र में होगा विलंब
प्रदेश के आयुर्वेद कालेजों का सत्र बमुश्किल समयबद्ध हो पाया था, किन्तु इस बार मान्यता न मिल पाने के कारण इसके लेट होने का खतरा है। इस संबंध में आयुर्वेद निदेशक डॉ.सुरेश चंद्रा का कहना है कि सीपीएमटी काउंसिलिंग में हम वाराणसी की शेष पांच सीटों के साथ लखनऊ की 49 सीटें भर लेंगे। अगले दो दिन में यदि सीसीआइएम ने किसी कालेज को मान्यता दी तो उसे भी काउंसिलिंग में शामिल करा लिया जाएगा। सत्र में विलंब होने पर सीसीआइएम के फैसले के बाद ही कोई रणनीति बनाई जाएगी।

Tuesday 27 October 2015

सौ में तीन बालिका वधू, 16 फीसद गर्भपात को मजबूर


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-उच्च प्राथमिकता वाले 25 जिलों के सर्वे में सामने आया तथ्य
-नौ फीसद को पता परिवार कल्याण, आठ फीसद नहीं चाहतीं बच्चा
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डॉ.संजीव, लखनऊ : तमाम दावों व कानूनों के बावजूद प्रदेश में तीन फीसद से अधिक बच्चियां ब्याह कर बालिका वधू बना दी जाती हैं। यह उनके स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है और 16 फीसद तो गर्भपात की शिकार होकर जिंदगी से जूझती हैं। ये तथ्य स्वास्थ्य विभाग की तकनीकी सहयोग इकाई द्वारा 25 जिलों के सर्वे में सामने आया।
उत्तर प्रदेश में महिलाओं की सेहत की स्थिति का आकलन करने के लिए स्वास्थ्य विभाग से जुड़ी तकनीकी सहयोग इकाई ने 25 जिलों में सर्वेक्षण कराया। पता चला कि प्रदेश की गर्भवती महिलाओं में से तीन प्रतिशत से अधिक 18 वर्ष से कम आयु की होती हैं। इससे स्पष्ट है कि सौ विवाहिताओं में से कम से कम तीन बालिका वधू होती हैं और उनकी उम्र भी 14 से 17 वर्ष के बीच होती है। इनमें से 16 फीसद तो गर्भाधान करने की स्थिति में ही नहीं थीं, जिस कारण उन्हें गर्भपात के लिए विवश होना पड़ा। इन बच्चियों में से सिर्फ नौ प्रतिशत को परिवार कल्याण के साधनों के बारे में पता था और आठ प्रतिशत तो गर्भवती होने की प्रक्रिया से इस कदर परेशान थीं कि वे बच्चा पैदा ही नहीं करना चाहती थीं। 39 प्रतिशत अगले तीन साल तक दूसरा बच्चा पैदा नहीं करना चाहतीं और 43 फीसद इस मसले पर अनिर्णय की स्थिति में दिखीं।
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18 प्रतिशत स्कूल नहीं गईं
13 से 19 वर्ष आयु वर्ग की किशोरियों के सर्वे में पता चला कि इनमें से 18 प्रतिशत तो कभी स्कूल ही नहीं गयीं। 17 फीसद को पढऩा-लिखना नहीं आता। इस आयु वर्ग में भी मौजूदा समय में महज 55 फीसद ही स्कूल जा रही हैं और शेष 27 फीसद ने लिखना-पढऩा सीखकर स्कूल जाना छोड़ दिया है। यह स्थिति तब है, जबकि सर्वे में शामिल किशोरियों में से 74 फीसद के परिवार गरीबी रेखा के ऊपर जीवन-यापन वाले थे।
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नहीं खरीदतीं सेनेटरी नैपकिन
राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत आशा कार्यकर्ताओं के माध्यम से मात्र छह रुपये में छह सेनेटरी नैपकिन का एक पैक किशोरियों के लिए उपलब्ध कराया जाता है। सर्वे में पता चला कि किशोरियां इस ओर भी जागरूक नहीं हैं। सिर्फ तीन प्रतिशत ने पिछले छह माह में ये नैपकिन खरीदे।
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ये हैं 25 जिले
इलाहाबाद, कौशांबी, मीरजापुर, सोनभद्र, बहराइच, बाराबंकी, फैजाबाद, खीरी, सीतापुर, बदायूं, बरेली, पीलीभीत, रामपुर, शाहजहांपुर, एटा, फर्रुखाबाद, हरदोई, कन्नौज, कासगंज, बलरामपुर, गोंडा, महाराजगंज, संतकबीर नगर, श्रावस्ती, सिद्धार्थ नगर

Monday 26 October 2015

बदलेगा नर्सिंग कैडर का चेहरा

-स्वास्थ्य महानिदेशालय में अलग नर्सिंग प्रकोष्ठ की स्थापना
-छह सहायक व संयुक्त निदेशकों में होगा काम का बंटवारा
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : नर्सों की कमी से निपटने के लिए स्वास्थ्य विभाग अब नर्सिंग कैडर को मजबूत करने की कवायद कर रहा है। स्वास्थ्य महानिदेशालय में अलग प्रकोष्ठ की स्थापना कर निदेशक की अगुवाई में नर्सिंग कैडर का चेहरा बदला जाएगा। प्रदेश स्तर पर छह सहायक व संयुक्त निदेशकों में काम का बंटवारा किया जाएगा।
प्रदेश में इस समय सरकारी अस्पतालों में 2300 नर्सों की कमी है। नए अस्पताल खुलने और पुराने के विस्तार की प्रक्रिया चल रही है। चालू वित्तीय वर्ष के अंत तक प्रदेश में कम से कम तीन हजार नर्सों की जरूरत का आकलन किया गया है। मंगलवार को मंत्रिमंडल ने 1500 सेवानिवृत्त नर्सों की पुनर्नियुक्ति का प्रस्ताव वापस कर समयबद्ध ढंग से नई भर्तियां करने को कहा है। अब समग्र्र रूप से नर्सिंग कैडर के पुनरुद्धार की रणनीति पर काम कर रहा है। यही कारण है कि प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) अरविंद कुमार की अध्यक्षता में बुलाई गई बैठक में स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के साथ राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधिकारियों को भी बुलाया गया था। इसमें तय हुआ कि नर्सिंग संस्थानों में भर्ती की रुकी प्रक्रिया जल्दी चालू की जाएगी। इस बाबत नियमावली बदलने का भी प्रस्ताव है। नर्सिंग कैडर को मजबूत करने के लिए स्वास्थ्य महानिदेशालय में एक अलग प्रकोष्ठ गठित किया जाएगा, जिसके नेतृत्व के लिए निदेशक (नर्सिंग) का पद सृजित किया जाएगा। पूरे प्रदेश में कामकाज के लिए तीन सहायक निदेशकों व तीन संयुक्त निदेशकों की भी नियुक्ति की जाएगी। इस प्रकोष्ठ के जिम्मे भर्ती व तबादले के साथ प्रशिक्षण का काम भी होगा।
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मजबूत होगी उपचार व्यवस्था
अलग नर्सिंग प्रकोष्ठ के साथ सीधी जिम्मेदारी सौंप कर नर्सिंग कैडर को मजबूती प्रदान की जाएगी। इसके लिए समयबद्ध ढंग से पदों के सृजन सहित पूरी कार्ययोजना लागू की जाएगी। इससे समग्र्र उपचार व्यवस्था भी मजबूत होगी।
-अरविंद कुमार, प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य)
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जल्दी भरे जाएंगे खाली पद
मंत्रिमंडल की मंशा के अनुरूप सभी सरकारी अस्पतालों में नर्सों के खाली पद जल्दी ही भरे जाएंगे। इसके लिए अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं। जल्द ही मैं स्वयं बैठक कर इस बाबत रणनीति को अंतिम रूप दूंगा और क्रियान्वयन पर सीधी नजर रखूंगा। -अहमद हसन, स्वास्थ्य मंत्री

Wednesday 21 October 2015

पढ़ाने वाले हैं नहीं, खोल दिये इंजीनियरिंग कालेज


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-अंशकालिक व संविदा शिक्षकों से चलाया जा रहा काम
-पुराने संस्थानों के परिसर में चार नए कालेजों का संचालन
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डॉ.संजीव, लखनऊ : मेडिकल कालेजों की तरह ही राज्य के सरकारी इंजीनियरिंग कालेजों का हाल भी बुरा है। यहां पढ़ाने वालों का इंतजाम किये बिना ही पढ़ाई शुरू करा दी गयी। चार कालेजों का काम अंशकालिक व संविदा शिक्षकों से चलाया जा रहा है। हालत ये है कि चार नए कालेज तो अभी भी पुराने संस्थानों के परिसर में संचालित हो रहे हैं।
सरकारी इंजीनियरिंग कालेजों की संख्या बढ़ाने के लिए कुछ वर्षों में ताबड़तोड़ सात नए इंजीनियरिंग कालेज खोले गए हैं। इनमें से बांदा, बिजनौर व अम्बेडकर में खोले गए इंजीनियरिंग कालेज तो अपने परिसरों में शिफ्ट हो गए किन्तु आजमगढ़ का कालेज गोरखपुर, मैनपुरी व कन्नौज का कानपुर और सोनभद्र कालेज आज भी सुलतानपुर में संचालित हो रहा है। बांदा में इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रानिक्स इंजीनियरिंग, इन्फार्मेशन टेक्नोलॉजी व मैकेनिकल इंजीनियरिंग की 60-60, बिजनौर व अम्बेडकर नगर में केमिकल इंजीनियरिंग, इन्फार्मेशन टेक्नोलॉजी व इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रानिक्स इंजीनियरिंग की 60-60 और आजमगढ़ में केमिकल इंजीनियरिंग, इन्फार्मेशन टेक्नोलॉजी व मैकेनिकल इंजीनियरिंग की 60-60 सीटें हैं। मैनपुरी में सिविल इंजीनियरिंग, कन्नौज में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग व सोनभद्र में कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग की 60-60 सीटें हैं।
सरकारी कालेज होने के कारण काउंसिलिंग में भी ये सीटें सबसे पहले भरती हैं। औसतन 80 फीसद सीटें भर चुकी हैं किन्तु सभी में अध्यापकों की कमी हैं। आजमगढ़, बांदा, बिजनौर व अम्बेडकर नगर इंजीनियरिंग कालेजों के लिए 48-48 शिक्षकों के पद भी सृजित किये जा चुके हैं किन्तु अब तक भर्तियां नहीं हुई हैं जिससे विद्यार्थियों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। फिलहाल अंशकालिक शिक्षकों या दूसरे कालेजों से बुलाकर गेस्ट लेक्चर के सहारे पढ़ाई हो रही है। दिसंबर में सेमेस्टर परीक्षाएं होनी हैं। मैनपुरी, कन्नौज व सोनभद्र कालेजों में अभी एक-एक शाखा ही खोली गयी है किन्तु उनके लिए शिक्षकों के पद तक सृजित नहीं हुए हैं। मैनपुर व कन्नौज के कालेज एचबीटीआइ कानपुर व सोनभद्र कालेज केएनआइटी सुलतानपुर के सहारे संचालित हो रहा है। वहां के शिक्षकों को अतिरिक्त कक्षाएं लेनी पड़ रही हैं।
रजिस्ट्रार व कर्मचारी भी नहीं
शिक्षक ही नहीं, इन कालेजों का प्रशासनिक पक्ष भी खासा कमजोर है। 14 सरकारी कालेजों में से सिर्फ दो कालेजों एचबीटीआइ कानपुर व केएनआइटी सुलतानपुर में ही रजिस्ट्रार हैं। हर कालेज के लिए 63 प्रशासनिक पद सृजित किये गए हैं लेकिन भर्ती प्रक्रिया नहीं शुरू हुई है।
अगले माह तक कर लेंगे भर्तियां
शिक्षकों व कर्मचारियों की कमी का मसला हमारे संज्ञान में है। आजमगढ़, बांदा, बिजनौर व अम्बेडकर नगर के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स से नियुक्ति प्रक्रिया की मंजूरी मिल चुकी है। चयन समिति भी बन गयी है। आरक्षण के कुछ मसले सामने आने पर पत्रावली कार्मिक विभाग को भेजी गयी है। पांच-छह दिनों में वहां से पत्रावली वापस आने के बाद अगले महीने तक नियुक्ति प्रक्रिया पूरी कर ली जाए।
-शिवाकांत ओझा, प्राविधिक शिक्षा मंत्री

Tuesday 20 October 2015

न उम्र का बंधन, न योग्यता की दरकार


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-झोलाछाप फार्मासिस्ट-
-दोबारा होगी विजिलेंस जांच व कार्रवाई
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डॉ.संजीव, लखनऊ
फार्मासिस्टों की कमी और बेरोजगारी के आरोपों के बीच वर्षों से प्रदेश में नकली फार्मासिस्टों पर नकेल का इंतजार हो रहा है। इन झोलाछाप फार्मासिस्टों के लिए न तो उम्र का बंधन प्रभावी हुआ और न ही योग्यता की सीमाओं का ध्यान रखा गया। जांच शुरू हुई उसमें भी कोई नतीजा नहीं निकला।
फार्मासिस्ट पंजीकरण का जिम्मा फार्मेसी काउंसिल के पास है पर बीते कुछ वर्षों से वही कठघरे में है। काउंसिल पर मनमाने ढंग से झोलाछाप फार्मेसिस्ट पैदा करने के आरोप लगे तो प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति केएल शर्मा की अध्यक्षता में फार्मेसी एक्ट की धारा 45 के अंतर्गत जांच के लिए आयोग गठित कर दिया। इस आयोग ने अपनी पहली रिपोर्ट में जो तथ्य सौंपे, वे चौंकाने वाले थे। पता चला कि फार्मेसी काउंसिल अनियमितताओं के ढेर पर बैठी थी। पंजीकरण के लिए प्रदेश के किसी कालेज से फार्मेसी में डिग्र्री या डिप्लोमा होना जरूरी है किन्तु यहां तो इस ओर ध्यान ही नहीं दिया गया।
आयोग अपनी अंतिम रिपोर्ट देता, उससे पहले ही सरकार ने उसे भंग कर दिया। मामला हाईकोर्ट पहुंचा तो सरकार ने अनियमितताओं की जांच भ्रष्टाचार निवारक संगठन को सौंपने की बात कही। यह फार्मासिस्टों की धमक ही थी कि बाद में गृह विभाग ने उक्त जांच वापस लेने की घोषणा कर दी। मामला अदालत तक पहुंचने और सवाल उठने पर 29 जनवरी 2014 को प्रदेश सरकार ने राज्य फार्मेसी काउंसिल के अध्यक्ष को ही जांच सौंप दी। हालांकि सवाल इस पर भी उठे कि दोषी अपनी ही जांच कैसे कर लेगा किन्तु जांच पूरी होती, इससे पहले ही इस वर्ष अगस्त, 2015 में फार्मेसी काउंसिल के अध्यक्ष को हटा दिया गया। अब जांच फिर रुक गई है और झोलाछाप फार्मासिस्ट पूरी मनमानी से काम कर रहे हैं।
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यह मामला संज्ञान में है। दोबारा विजिलेंस जांच कराई जाएगी। फार्मेसी काउंसिल के अध्यक्ष को न्यायालय के आदेश पर हटाया गया था।
-अरविंद कुमार, प्रमुख सचिव स्वास्थ्य
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हजारों फर्जी फार्मासिस्ट
आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में हजारों फर्जी फार्मासिस्ट सक्रिय हैं। जांच में पता चला कि 77 लोगों को तो 18 साल का होने से पहले ही फार्मासिस्ट पंजीकृत कर लिया गया। 66 ऐसे लोग फार्मासिस्ट पंजीकृत हो गए जिनके पास हाईस्कूल व इंटर में विज्ञान विषय ही नहीं था। 2176 का बिना उपयुक्त प्रमाणपत्रों के पंजीकरण हुआ था तो 459 के पास फार्मेसी की कोई डिग्र्री या डिप्लोमा नहीं मिला। 755 मामलों में एक ही पंजीकरण क्रमांक पर एक से अधिक को फार्मासिस्ट बना दिया गया था। 119 लोग प्रदेश के बाहर के फर्जी प्रमाणपत्रों के आधार पर पंजीकरण करा चुके थे।
  

तीन सौ दवा उद्यमियों का पलायन, अब बनेगा फार्मा हब


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-15 साल में 750 से 450 रह गई दवा उत्पादक इकाइयां
-उत्पादन लागत 35 फीसद तक अधिक होने से बढ़ा संकट
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : उत्तर प्रदेश में बीते डेढ़ दशक में तीन सौ दवा उद्यमी पलायन कर गए हैं। इससे चिंतित प्रदेश सरकार ने राज्य में फार्मा हब बनाने का फैसला किया है।
देश के कुल 90 हजार करोड़ रुपये के दवा व्यापार में उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी 17 फीसद है। इसके विपरीत दवा निर्माण के मामले में यह बहुत कम है। हालात ये हैं कि प्रदेश से दवा विक्रेता लगातार पलायन कर रहे हैं। वर्ष 2000 में जहां उत्तर प्रदेश में 750 दवा उत्पादन इकाइयां थीं, जो अब घटकर 450 रह गई हैं। साथ ही नयी दवा उत्पादन इकाइयां भी स्थापित नहीं हो रही हैं। मुख्यमंत्री के समक्ष बीते दिनों यह मुद्दा उठने पर उन्होंने प्रदेश में दवा निर्माण उद्योग की संभावनाएं तलाशने के निर्देश अधिकारियों को दिए थे। उन्होंने एक फार्मा हब विकसित करने के साथ नयी फार्मा नीति बनाने व तदनुरूप प्रोत्साहन व सुविधा पैकेज तैयार करने को कहा था। इसका जिम्मा अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास विभाग के प्रमुख सचिव महेश कुमार गुप्ता को सौंपा गया। उन्होंने उद्योग बंधु, खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन तथा चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक में कहा कि राज्य सरकार फार्मा उद्योग के लिए विशेष प्रावधान पर विचार कर रही है। उद्योग बंधु की संयुक्त अधिशासी निदेशक कंचन वर्मा ने बताया कि इन प्रावधानों में उत्पादन प्रणाली, तकनीकी उन्नयन व परीक्षण प्रयोगशालाओं की स्थापना पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। औषधि प्रशासन विभाग के सहायक आयुक्त एके मल्होत्रा ने बताया कि प्रदेश में गाजियाबाद एवं गौतमबुद्ध नगर में सर्वाधिक दवा उत्पादन इकाइयों के साथ कुछ इकाइयां लखनऊ, कानपुर, वाराणसी, अलीगढ़ व गोरखपुर में भी हैं। बैठक में कहा गया कि उत्तराखंड बनने के बाद वहां मिली छूट के बाद स्थितियां बदलीं। वहां दवा निर्माण औसतन 35 फीसद महंगा होने के कारण लोग चले गए। इसके अलावा विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुरूप उच्च उत्पादन मानदंडों के पालन की शर्त लगा दी गई, जिसके तहत इकाई का उन्नयन जरूरी हो गया और बैंकों ने ऋण देने से इन्कार कर दिया। इस कारण भी कई इकाइयां बंद हो गईं। कई विभागों की मंजूरी की अनिवार्यता में होने वाले झंझट भी दवा उद्योग की बर्बादी का बड़ा कारण माने गए। इस पर तय हुआ कि नीति बनाते समय इन सभी बिंदुओं को ध्यान में रखा जाएगा।
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इसलिए यूपी छोड़ गए उद्यमी
-उत्तराखंड में टैक्स हॉलीडे, सस्ती बिजली व जमीन, उत्पाद शुल्क मुक्ति
-बिना तैयारी विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों पर निर्माण की अनिवार्यता
-उन्नयन में लाभ न बढऩे के कारण बैंकों का ऋण देने से साफ इन्कार
-नयी इकाई स्थापना के लिए प्रदूषण व उद्योग सहित 14 विभागों के चक्कर
-कच्चे माल की उपलब्धता का संकट, महाराष्ट्र में तुलनात्मक आसान

अस्पतालों में दवाएं न मिलीं तो निपटेंगे अफसर


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-स्वास्थ्य व चिकित्सा शिक्षा विभागों की बैठकों में कसे पेंच
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : जिला अस्पताल हों या मेडिकल कालेज से जुड़े अस्पताल, मरीजों के इलाज में हीला-हवाली बर्दाश्त नहीं की जाएगी। सोमवार को स्वास्थ्य व चिकित्सा शिक्षा विभागों की बैठकों में अफसरों के पेंच कसने के साथ सभी जांचें समयबद्ध ढंग से कराने के निर्देश दिए गए। कहा गया कि जो उपकरण सरकार खरीद कर देती है, उनका इस्तेमाल भी सुनिश्चित किया जाए।
स्वास्थ्य विभाग की बैठकें स्वास्थ्य मंत्री अहमद हसन व प्रमुख सचिव अरविंद कुमार की अगुआई में हुईं। इन बैठकों में साफ कहा गया कि अस्पतालों में दवाओं की कमी न पडऩे दी जाए। इसके अलावा डिजिटल एक्सरे, अल्ट्रासाउंड सहित जो उपकरण अस्पतालों में लगाए गए हैं, उनका पूरा प्रयोग सुनिश्चित किया जाए। कोई भी मरीज अस्पताल से बिना इलाज न लौटे और न ही अनावश्यक रूप से मरीजों को रेफर किया जाए। स्वास्थ्य विभाग की हाई पावर कमेटी में दस अति उपयोगी दवाओं की खरीद को भी मंजूरी दी गई।
चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव डॉ.अनूप चंद्र पाण्डेय की अध्यक्षता में हुई बैठक में चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधिकारियों के साथ प्रदेश के सभी मेडिकल कालेजों के प्राचार्य भी बुलाए गए थे। प्रमुख सचिव ने भी किसी भी अस्पताल में दवाएं कम न पडऩे देने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि अनुपूरक बजट में जारी हुए 25 करोड़ रुपये से अस्पतालों के उन्नयन का काम समयबद्ध ढंग से करा लिया जाए। इसके अलावा मेडिकल कालेजों में भी जो उपकरण खरीद कर दिए गए हैं, उनका शत प्रतिशत प्रयोग सुनिश्चित किया जाए। अस्पतालों में बिजली संकट से निपटने के लिए न सिर्फ समय पर बिजली के बिल जमा किए जाएं बल्कि स्वतंत्र फीडर से आपूर्ति की पहल की जाए।
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23 से बांदा में भर्ती शुरू
चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव डॉ.अनूप चंद्र पाण्डेय ने बताया कि 23 अक्टूबर से बांदा मेडिकल कालेज में मरीजों को भर्ती कर इलाज शुरू हो जाएगा। वहां वाह्यï रोगी विभाग (ओपीडी) पहले से संचालित हो रहा है। मंगलवार को बदायूं मेडिकल कालेज में ओपीडी शुरू हो जाएगी। इन दोनों कालेजों को अगले शैक्षिक सत्र से शुरू करने की तैयारी है। 

Monday 19 October 2015

निजी अस्पतालों में गरीबों के लिए आरक्षित हों बेड


वर्ष 1988 में दुनिया का पहला सुपरस्पेशलिटी अस्पताल भारत में बनाने वाले डॉ.नरेश त्रेहन देश-दुनिया में तमाम सम्मान व पुरस्कार जीत चुके हैं। वे विदेश जाकर सीखने के दौर से आगे निकलकर विदेशियों को सिखाने की इच्छाशक्ति के साथ चिकित्सा क्षेत्र में नवसृजन के हिमायती हैं। उनका मानना है कि भारत जैसे बड़े देश में सरकार व निजी क्षेत्र मिलकर ही सबको सेहत की सुरक्षा मुहैया करा सकते हैं। दैनिक जागरण के विशेष संवाददाता डॉ.संजीव से बातचीत में उन्होंने कहा कि हर निजी अस्पताल में गरीबों के लिए बेड आरक्षित होने चाहिए और उनका नियंत्रण भी सरकार के हाथ में होना चाहिए।
-चिकित्सा क्षेत्र में उत्तर प्रदेश की क्या स्थिति है?
--हर जगह व विधा की अपनी एक यात्रा होती है। चिकित्सा क्षेत्र की भी अपनी यात्रा है। पहले चिकित्सक व मरीज के बीच अलग तरह का रिश्ता था। तकनीक बढ़ी तो 70 के दशक में नर्सिंग होम बढऩे शुरू हुए। तब सरकारी अस्पताल होने के बावजूद 80 प्रतिशत लोग नर्सिंग होम में जाते थे। 80 के दशक में चेन्नई से अपोलो अस्पतालों के रूप में निजी क्षेत्र की एक अलग पहल हुई। उसके बाद 1988 में हमने दुनिया का पहला सुपरस्पेशलिटी अस्पताल बनाया। दिल्ली में बने उस अस्पताल में सिर्फ हृदय रोगियों का इलाज होता था। उस समय दिल्ली में कोई काम का अस्पताल ही नहीं था। देखा जाए तो आज उत्तर प्रदेश की स्थिति 1988 वाली ही है।
-यह स्थितियां क्यों पैदा हुईं?
--उत्तर प्रदेश में मरीज और चिकित्सक के बीच भरोसे की कमी पैदा हो गयी है। यह भरोसा पैदा किये जाने की जरूरत है। जिस दिन आपस में भरोसा पैदा हो गया, मरीजों को लगने लगा कि हम सही हाथों में हैं, हमारा इलाज ठीक से हो रहा है, सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी। जो सरकारी अस्पताल अच्छा काम कर रहे हैं, वे ओवर-लोडेड हैं। इस ओर ध्यान दिया जाना चाहिए। सरकार चाह ले और तय कर ले कि जनता को बचाना हो तो तुरंत कर सकती है, किन्तु अभी तक इस ओर प्रभावी ढंग से सोचा ही नहीं गया।
-सरकारी अस्पताल कारगर क्यों नहीं साबित हो रहे?
 --तकनीक में पिछडऩे, मरीजों की संख्या कुछ अस्पतालों मं ही ज्यादा बढऩे और उपचार का वातावरण न बनने के कारण ऐसा हो रहा है। लखनऊ का एसजीपीजीआइ हो या केजीएमयू और कानपुर का जीएसवीएम मेडिकल कालेज, इन सभी स्थानों पर अच्छा इलाज होता है किन्तु अत्यधिक मरीजों के कारण समस्या हो रही है। वहां तकनीक का प्रयोग नहीं हो रहा है और सरकारें भी इस ओर ध्यान नहीं देतीं। यही कारण है कि इन अस्पतालों से बाहर निजी क्षेत्र में आकर वही डॉक्टर बहुत अच्छा काम करते हैं। बीस करोड़ आबादी के लिए एसजीपीजीआइ या केजीएमयू व जीएसवीएम जैसे मिड-लेवल अस्पताल प्रभावी नहीं हो सकते। यहां भी अमेरिका जैसा इलाज होना चाहिए।
-इन परिस्थितियों में आम आदमी का इलाज कैसे हो?
--पहला चरण तो बचाव का होता है। अपने आसपास सफाई के साथ बचाव के पुख्ता प्रबंध होने चाहिए। इसके बाद सरकारी अस्पतालों के साथ ही हर निजी अस्पताल में गरीबों के लिए बेड आरक्षित किये जाएं। हम अपने अस्पताल में इस नियम का पालन करते हैं। सभी अस्पतालों में बेड आरक्षित करने के बाद उनका नियंत्रण सरकार अपने हाथ में रखे। कम्प्यूटर से साफ पता चले कि कहां बेड भरा है, कहां खाली। एक फोन नंबर हो, जहां जनता फोन करे तो तुरंत पता चल जाए और सीधे उसी अस्पताल के खाली बेड पर मरीज भेज दिया जाए। फिर अस्पताल के अंदर कोई भेदभाव न हो, तो गंभीर मरीजों के मामले में समस्या का बड़े स्तर तक समाधान हो जाएगा।
-सरकार के स्तर पर प्रयासों को आप पर्याप्त मानते हैं?
--देखिये, सरकारी प्रयास पर्याप्त होते तो ये स्थितियां ही क्यों पैदा होतीं। हमें राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना का प्लेटफार्म और मजबूत करना चाहिए। अभी तक इस बीमा योजना में खर्च की सीमा 30 हजार रुपये थी। सरकार से इस पर चर्चा कर इसे बढ़ाकर 50 हजार करने पर सहमति बनी है। इसे राज्यों के स्तर पर लागू किया जाना चाहिए। इसके अलावा बड़े ऑपरेशनों के लिए दो लाख रुपये तक के खर्च को इस बीमा योजना का हिस्सा बनाया जाए। मेरी केंद्र सरकार से बात हुई है और उम्मीद है कि अगले बजट में इस बाबत केंद्र सरकार घोषणा कर देगी।
-देश में डॉक्टरों की भी तो बहुत कमी है?
-यह सही है कि देश में डॉक्टरों की संख्या अपेक्षा से बहुत कम है। हमें पांच लाख डॉक्टरों की तुरंत जरूरत है किन्तु हर साल पढ़कर सिर्फ 40 हजार ही निकलते हैं। जो निकलते हैं, उनकी गुणवत्ता भी स्तरीय नहीं है। चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता कुछ कालेजों में सिमट कर रह गयी है। निजी कालेज तेजी से खोल दिये गए और वहां ठीक से पढ़ाया तक नहीं जाता। नियम भी ऐसे हैं कि गुणवत्तापूर्ण इलाज करने वाले चिकित्सा संस्थान चाहें तो मेडिकल कालेज खोल ही नहीं सकते। नियमों को बदलें तो मैं स्वयं भी देश में कुछ बड़े मेडिकल कालेज खोलने की दिशा में पहल कर सकता हूं। ये दावा है कि उनसे गुणवत्तापूर्ण डॉक्टर पढ़कर निकलेंगे।
-भारतीय चिकित्सा पद्धतियों के प्रयोग पर आपकी क्या राय है?
--देखिये, विदेशी इलाज बहुत महंगा है। कई वर्षों तक हम पश्चिम की नकल ही करते रहे हैं। हमने नयी दवाएं तो नहीं ही बनायीं, अपनी चिकित्सा पद्धतियों की भी रक्षा नहीं की। समय आ गया है कि हम आधुनिक व प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों को मिलाकर काम करें। आयुर्वेद इस दिशा में बेहद प्रभावी साबित हो सकता है। इस दिशा में शोध होने चाहिए। ऐसी स्थितियां पैदा हों कि लोग भारत सीखने आएं, हमें उनसे सीखने न जाना पड़े।

खुली सात नए मेडिकल कालेजों की राह


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बढ़ेंगी एमबीबीएस की 1050 सीटें
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-फैजाबाद, बहराइच, फीरोजाबाद, शाहजहांपुर व बस्ती की डीपीआर भेजी
-जौनपुर में निर्माण कार्य तो चंदौली में चिन्हित जमीन का अधिग्रहण शुरू
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : प्रदेश में एमबीबीएस की 1050 सीटें बढऩे की राह खुल रही है। सात नए मेडिकल कालेजों की स्थापना के रास्ते की एक और बाधा पार हो गयी है। फैजाबाद, बहराइच, फीरोजाबाद, शाहजहांपुर व बस्ती के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) केंद्र सरकार को भेजी गयी है। जौनपुर मेडिकल कालेज का निर्माण कार्य शुरू हो गया है, वहीं चंदौली के लिए भूमि अधिग्र्रहण का काम शुरू हो गया।
प्रदेश में इस समय 16 सरकारी मेडिकल कालेज चल रहे हैं। इनमें से दो केंद्र सरकार व 14 उत्तर प्रदेश सरकार की देखरेख में संचालित हैं। प्रदेश सरकार अगले शैक्षिक सत्र में बांदा व बदायूं में भी मेडिकल कालेज शुरू करने जा रही है। इनके लिए एमसीआइ में आवेदन कर दिया गया है। बांदा में ओपीडी शुरू हो गयी है और बदायूं में 20 अक्टूबर को शुरू हो जाएगी। अब कई वर्षों से लंबित सात और नए मेडिकल कालेजों की राह भी खुल गयी है। केंद्र सरकार ने जिला अस्पतालों को संबद्ध कर मेडिकल कालेज खोलने का प्रस्ताव दिया था। पहले चरण में पांच जिलों फैजाबाद, बहराइच, फीरोजाबाद, शाहजहांपुर व बस्ती में जिला अस्पतालों के साथ मेडिकल कालेज खोलने पर सहमति बनी थी। इनके लिए बीस एकड़ जमीन की जरूरत थी किन्तु फैजाबाद व बहराइच में जमीन उपलब्ध न हो पाने के कारण इस पर अमल नहीं हो पा रहा था।
चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक डॉ.वीएन त्रिपाठी ने बताया कि अब इन सभी स्थानों के लिए जमीन की बाधा पार हो गयी है। राजकीय निर्माण निगम से विस्तृत परियोजना रिपोर्ट बनवाकर केंद्र को भेज दी गयी है। वहां से मंजूरी मिलते ही इन मेडिकल कालेजों पर काम तेज हो जाएगा। जमीन न मिल पाने के कारण रुका पड़ा चंदौली मेडिकल कालेज का काम भी आगे बढ़ा है। वहां जमीन चिन्हित कर ली गयी है और अधिग्र्रहण का काम शुरू हो गया है। जौनपुर मेडिकल कालेज के लिए तो निर्माण कार्य शुरू हो चुका है। इनमें 150 एमबीबीएस सीटों के लिए आवेदन किया जाएगा। इस तरह एमबीबीएस सीटों की संख्या भी 1050 और बढ़ जाएगी।
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केंद्र देगा 75 फीसद
जिला अस्पताल से संबद्धता होने के कारण औसतन दो सौ करोड़ रुपये खर्च बचेगा। लगभग ढाई सौ करोड़ रुपये के बीच ही खर्च कर मेडिकल कालेज बनकर तैयार हो जाएगा। केंद्र सरकार इस राशि में से 75 फीसद अंशदान देगी और 25 फीसद प्रदेश सरकार को खर्च करना होगा।
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परीक्षा की जगह सीधी भर्ती चाहते सरकारी डॉक्टर

-परास्नातक डिप्लोमा के लिए 620 ने किया आवेदन
-एमडी-एमएस के लिए प्रवेश परीक्षा करनी पड़ती पास
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : एमबीबीएस के बाद सरकारी सेवा में आ गए डॉक्टर आगे की पढ़ाई के लिए भी शार्टकट पर ही जोर दे रहे हैं। मेडिकल कालेजों में परास्नातक डिप्लोमा के लिए होने वाली सीधी भर्ती में प्रवेश के लिए मारा-मारी मची है। राज्य के 620 डॉक्टरों ने इसके लिए आवेदन किया है। स्वास्थ्य विभाग ने भी इनकी मेरिट बनाने के लिए स्टेटस रिपोर्ट जारी कर दी है।
पुराने मेडिकल कालेजों में संचालित होने वाले परास्नातक पाठ्यक्रमों में प्रांतीय चिकित्सा सेवा (पीएमएस) के चिकित्सकों की भर्ती सुगम करने के लिए कुछ वर्ष पूर्व नियम बदले गए थे। इसमें एमडी, एमएस जैसे डिग्र्री पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए इन्हें मेडिकल परास्नातक प्रवेश परीक्षा (पीजीएमई) उत्तीर्ण करनी होती है। हां, इनका प्रवेश आसान करने के लिए पीजीएमई में पीएमएस के लिए तीस फीसद सीटें आरक्षित कर दी गयी हैं। इसका लाभ लेने के लिए चिकित्सक का पांच साल तक सरकारी सेवा में होना जरूरी है। इसकी मेरिट व चयन का जिम्मा चिकित्सा शिक्षा विभाग के पास होता है। इसके विपरीत डीसीएच, डीएनबी जैसे लोकप्रिय परास्नातक डिप्लोमा पाठ्यक्रमों के लिए तो प्रवेश परीक्षा अनिवार्य नहीं है। इसकी तीस फीसद सीटों पर प्रवेश के लिए स्वास्थ्य विभाग की ओर से सूची चिकित्सा शिक्षा विभाग को सौंप दी जाती है। इसमें अनुभव व सेवा काल की चरित्र पंजिका आदि को आधार बनाकर मेरिट बनती है।
 प्रदेश के पीएमएस चिकित्सक भी सीधी भर्ती वाले डिप्लोमा पाठ्यक्रमों में प्रवेश को लेकर ही अधिक उत्साहित हैं। इसी साल को लिया जाए तो 620 चिकित्सकों ने डिप्लोमा पाठ्यक्रमों के लिए आवेदन किया है। इस पर स्वास्थ्य विभाग ने इन सभी आवेदनों की स्टेटस रिपोर्ट जारी कर दी है, ताकि मेरिट से पहले इन पर आपत्तियां आदि सामने आ सकें। स्टेटस रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी सेवा में जाने के बाद अधिकांश चिकित्सक बीच-बीच में गैरहाजिर भी हो जाते हैं। तमाम चिकित्सकों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई भी चल रही है। सर्वाधिक मारामारी कानपुर व लखनऊ मेडिकल कालेजों में प्रवेश को लेकर है। चिकित्सकों के मुताबिक डिप्लोमा में सीधी भर्ती तो होती ही है, पूरा वेतन भी मिलता रहता है, इसलिए इस ओर ज्यादा मारामारी रहती है।
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इंसेफ्लाइटिस के लिए दस को मंजूरी
प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) अरविंद कुमार ने गोरखपुर मेडिकल कालेज में डिप्लोमा इन चाइल्ड हेल्थ पाठ्यक्रम में पढ़ाई के लिए दस चिकित्सकों को मंजूरी दी है। आदेश में कहा गया है कि पूर्वांचल में इंसेफ्लाइटिस को नियंत्रित करने के लिए विशेष चिकित्सक उपलब्ध कराने की दृष्टि से इन्हें डीसीएच पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने की अनुमति दी गयी है।
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Saturday 17 October 2015

गोरखपुर ने मारी दूसरे एम्स की बाजी


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-870 करोड़ की लागत से बनेगा, महराजगंज रोड पर 237 एकड़ जमीन चिह्नित
-वन विभाग से हस्तांतरण की पहल, बनेगी चार लेन सड़क
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : प्रदेश में दूसरे एम्स की लड़ाई में गोरखपुर ने बाजी मारी है। 870 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले इस अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के निर्माण से पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई जिलों सहित बिहार और नेपाल तक के मरीजों को लाभ मिलेगा। शासन स्तर पर इस बाबत तैयारियां तेज हो गई हैं और समयबद्ध ढंग से एम्स स्थापना की कार्ययोजना बनाने पर जोर दिया जा रहा है।
रायबरेली में एम्स खुलने की घोषणा के बाद से ही पूर्वी उत्तर प्रदेश में एक और एम्स खोलने की मांग लगातार उठाई जा रही थी। बीच में वाराणसी में एम्स खोलने की बात उठी, लेकिन इंसेफ्लाइटिस की मार के शिकार गोरखपुर व आसपास के जिलों में एम्स खोलने की लड़ाई भी शुरू हो गई। अब बाजी गोरखपुर के हाथ लगी है। वहां जिस जमीन पर एम्स खोलने का प्रस्ताव किया गया था, उस पर बीते दिनों अदालती स्थगनादेश खत्म होने से जमीन से जुड़ी बाधा पार हो गई। अब 870 करोड़ रुपये खर्च कर गोरखपुर में महाराजगंज रोड पर एम्स की स्थापना की जाएगी। इसमें संस्थान की स्थापना पर खर्च होने वाले 750 करोड़ रुपये केंद्र सरकार वहन करेगी जबकि राज्य सरकार 120 करोड़ रुपये खर्च कर आसपास के आधारभूत ढांचे का विकास करेगी।
प्रमुख सचिव (चिकित्सा शिक्षा) डॉ.अनूप चंद्र पाण्डेय ने अधिकारियों की बैठक बुलाकर एम्स के रास्ते की सभी बाधाएं दूर करने को कहा है। गोरखपुर से भी अधिकारी इस बैठक में आए। प्रमुख सचिव ने बताया कि एम्स के लिए 237 एकड़ जमीन चिह्नित कर ली गई है और वन विभाग से इसे स्थानांतरित कराने की प्रक्रिया तत्काल शुरू कराने के निर्देश गोरखपुर प्रशासन को दिए गए हैं। महाराजगंज रोड पर बनने वाले एम्स के लिए अभी दो लेन सड़क है जिसे चार लेन में बदला जाएगा। इसके लिए नौ किलोमीटर सड़क बनानी होगी। समयबद्ध ढंग से पूरा आधारभूत ढांचा विकसित करने के निर्देश दिए गए हैं। इस पूरी प्रक्रिया पर प्रमुख सचिव स्वयं नजर रख रहे हैं।
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Friday 16 October 2015

अगले माह से सरकारी स्कूलों में मुफ्त सेनेटरी नैपकिन

-बीस करोड़ रुपये जारी कर बीएसए व डीआइओएस को सौंपा जिम्मा
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : सरकारी स्कूलों में अगले माह से मुफ्त सेनेटरी नैपकिन बांटने की प्रक्रिया शुरू होगी। इसके लिए शासन ने बीस करोड़ रुपये जारी कर बीएसए व डीआइओएस को इसका जिम्मा सौंपा है।
मुख्य सचिव आलोक रंजन ने सभी जिलाधिकारियों, मुख्य चिकित्सा अधिकारियों, बेसिक शिक्षा अधिकारियों व जिला विद्यालय निरीक्षकों को निर्देश दिण् हैं कि किशोरी सुरक्षा योजना के तहत सरकारी विद्यालयों में पढऩे वाली किशोरियों को मुफ्त सेनेटरी नैपकिन बांटना सुनिश्चित किया जाए। उन्होंने कहा कि किशोरियों में माहवारी से जुड़ी गलत धारणाओं एवं मिथकों को दूर करने के लिए व्यक्तिगत स्वच्छता के बारे में जानकारी प्रदान की जाए। किशोरावस्था में शरीर में हो रहे हार्मोन संबंधी बदलाव के कारण शारीरिक एवं मानसिक स्तर पर पडऩे वाले प्रभाव एवं विभिन्न जिज्ञासाओं के बारे में सही जानकारी न प्राप्त कर पाने के कारण 40 प्रतिशत किशोरियां स्कूल जाना छोड़ देती हैं। इस स्थिति को हर हाल में रोका जाना चाहिए। उन्होंने कहा है कि कि बेसिक शिक्षा एवं माध्यमिक शिक्षा विभाग द्वारा सरकारी विद्यालयों में पंजीकृृत छात्राओं की संख्या के आधार पर सेनेटरी नैपकिन खरीद कर उनका वितरण सुनिश्चित किया जाए। इसकी जिम्मेदारी बीएसए व डीआइओएस की होगी। वितरण के विद्यालयों में आशा कार्यकर्ता भी उपस्थित रहें। विद्यालयों में नैपकिन निस्तारण के लिए साफ व सूखे स्थान के साथ ढके हुए कूड़ेदान की व्यवस्था सुनिश्चित कराई जाए। उल्लेखनीय है कि प्रदेश में कक्षा छह से बारहवीं तक की छात्राओं को मुफ्त सेनेटरी नैपकिन बांटने का फैसला लंबे समय से लंबित था। प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) अरविंद कुमार के मुताबिक अब अगले माह से सभी विद्यालयों में हर हाल में सेनेटरी नैपकिन बांटने का काम शुरू हो जाएगा। इसके लिए शासन ने बीस करोड़ रुपये जारी कर दिए हैं। 

Thursday 15 October 2015

गोरखपुर से बेड तो पीएमएस से डॉक्टर

-मान्यता की मशक्कत-
-बांदा-बदायूं में एमसीआइ निरीक्षण के लिए जुगाड़ पर जोर
-अभी पूरी तरह शुरू नहीं हुआ ओपीडी-आइपीडी का संचालन
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : 'गोरखपुर मेडिकल कालेज से ट्रक चला कि नहीं। ...अरे देख लेना उसमें पचास बेड पूरे रखे हों। ...ऐसा करो, इलाहाबाद पास में पड़ेगा, वहां से कुछ कुर्सी-मेजें भिजवा दो। ...हां, डॉक्टरों के लिए प्रमुख सचिव से मंजूरी मिल गई है, पीएमएस से ट्रांसफर हो जाएंगे।Ó
यह उन संवादों की बानगी भर है, जो नए मेडिकल कालेजों की मान्यता को लेकर चिकित्सा शिक्षा विभाग में बार-बार दोहराए जा रहे हैं। प्रदेश सरकार ने बांदा व बदायूं में नए शैक्षिक सत्र यानी जुलाई 2016 से हर हाल में एमबीबीएस की पढ़ाई शुरू कराने के निर्देश दिए हैं। इसके लिए भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआइ) की टीम अगले दो माह में कभी भी बांदा मेडिकल कालेज का निरीक्षण करने के लिए आ सकती है। उसके बाद बदायूं की बारी आएगी।
इस बाबत तैयारियों का जिम्मा संभाले चिकित्सा शिक्षा विभाग स्थायी प्रबंध की प्रक्रिया के साथ जुगाड़ से काम चलाने की कोशिशों में जुटा है। अभी तक बांदा में मरीजों की भर्ती कर इलाज के लिए आइपीडी व बदायूं में ओपीडी शुरू नहीं हो सकी है। तीन बार साक्षात्कार और पुराने मेडिकल कालेजों से तबादलों के बावजूद मेडिकल कालेज स्थापना के लिए जरूरी शिक्षक पूरे न हो पाने पर अब प्रांतीय चिकित्सा सेवा से डॉक्टर मांगे गए हैं। प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) अरविंद कुमार ने इस बाबत चिकित्सकों की नियुक्ति को हरी झंडी भी दे दी है। इसके अलावा प्रदेश के अलग-अलग मेडिकल कालेजों से बेड, वेंटिलेटर व अन्य सामान इन दोनों कालेजों में भेजा जा रहा है। बांदा के लिए इलाहाबाद व कानपुर और बदायूं के लिए आगरा मेडिकल कालेज एक प्रकार से नोडल सेंटर के रूप में काम कर रहे हैं। इलाहाबाद, कानपुर व आगरा के शिक्षकों को भी इन कालेजों से संबद्ध किया जा रहा है। इस संबंध में चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक डॉ.वीएन त्रिपाठी ने कहा कि कालेजों की मान्यता सुनिश्चित करने के लिए पुख्ता बंदोबस्त किए जा रहे हैं। जल्द ही बांदा में मरीजों की भर्ती कर इलाज शुरू हो जाएगा। इसके अलावा बदायूं में ओपीडी शुरू करने की तैयारियां भी हो रही हैं।
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दस करोड़ के उपकरणों को हरी झंडी
बुधवार को चिकित्सा शिक्षा महानिदेशालय की परचेज कमेटी की बैठक में बांदा मेडिकल कालेज के लिए दस करोड़ रुपये के उपकरण खरीदने को हरी झंडी दी गई। भारत में बनने वाले उपकरणों की आपूर्ति दो सप्ताह व विदेशों से आने वाले उपकरणों की आपूर्ति अधिकतम छह सप्ताह में सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए हैं। 

खाते खुलवाने की मुहिम को राज्य सरकार का साथ

-बचत विभाग को बैंकों से तालमेल का भी काम सौंपने की तैयारी
-सरकारी योजनाओं का लाभ सीधे पहुंचाने की मशक्कत
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हर व्यक्ति का खाता खुलवाने की मुहिम को राज्य सरकार का साथ मिल गया है। अब बचत विभाग को बैंकों से तालमेल का काम सौंपने की तैयारी है, जिससे वे अधिक से अधिक खाते खुलवाकर राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ भी उन तक सुगमता से पहुंचा सकें।
लोगों को बचत के लिए प्रोत्साहित करने के लिए राज्य सरकार का बचत विभाग अलग काम करता है। इसके तहत हर जिले में एक जिला बचत अधिकारी होता है, जो तमाम बचत योजनाओं में धन जमा करवाने के साथ उनके नियोजन की कार्ययोजना भी बनाते हैं। अभी तक सूबे में बचत की राशि प्रदेश सरकार को विकास कार्यों के लिए मिलती थी। इसके बदले राज्य सरकार को बैंकों की तुलना में कम ब्याज देना पड़ता था। बीते कुछ वर्षों में स्थितियां बदलीं हैं। अब सरकार को बैंकों व अन्य वित्तीय संस्थानों से छह से साढ़े छह प्रतिशत की दर पर ऋण मिल जाता है, वहीं बचत राशि के बदले 8.5 फीसद के आसपास ब्याज देना पड़ता है। इससे काम कम होने के साथ ही बचत राशि भी घटी।
इस पर वित्त विभाग ने बचत विभाग को बैंकों से जुड़े काम देने का फैसला किया है। प्रमुख सचिव (वित्त) राहुल भटनागर की अध्यक्षता में हुई बैठक में तय हुआ कि जिला बचत अधिकारियों सहित विभाग के कर्मचारियों की उपयोगिता बनाए रखने के लिए इनका काम बढ़ाया जाए। इसके लिए इन्हें बैंकों में नए खाते खुलवाने सहित बैंकों से जुड़े अन्य मसलों पर सक्रिय करने का फैसला हुआ। कहा गया कि केंद्र सरकार हर व्यक्ति का खाता खुलवाने की मुहिम चला रही है। इस मुहिम को राज्य सरकार का साथ मिलने से इसका लाभ प्रदेश सरकार की योजनाओं से अंतिम आदमी तक को जोडऩे के रूप में भी मिलेगा। इसके अलावा तमाम बचत योजनाएं दुबारा शुरू हुई हैं, जिन पर सक्रियता लाने के निर्देश दिये गए।
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समायोजन से कोषागार विभाग ने किया इन्कार
प्रमुख सचिव के साथ अधिकारियों की बैठक में एक प्रस्ताव बचत विभाग का समायोजन कोषागार विभाग में करने का भी था। इससे कोषागार विभाग ने साफ इन्कार कर दिया। कोषागार विभाग के अधिकारियों का कहना था कि उन्हें कम से कम बीकॉम उत्तीर्ण कर्मचारी-अधिकारी चाहिए, जो बचत विभाग में नहीं हैं। इसके अलावा समायोजन से वरिष्ठता जैसे तमाम संकट पैदा होंगे। 

Wednesday 14 October 2015

शुल्क प्रतिपूर्ति के लिए अब उम्र का भी बंधन


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-बदलेंगे छात्रवृत्ति के नियम-
-14 से कम में हाईस्कूल व 16 से कम में इंटरमीडिएट पर संदेह
-जाति व आय प्रमाणपत्र में पता तो निवास प्रमाण पत्र जरूरी नहीं
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डॉ.संजीव, लखनऊ : दशमोत्तर छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति में गड़बड़-घोटालों से निपटने के लिए अब और सख्ती की तैयारी है। इसके लिए संदेह का दायरा बढ़ाकर उम्र का बंधन लागू किया जा रहा है। पिछड़ा वर्ग विभाग में इस बाबत सहमति बनने के बाद अब संस्तुतियां शासन को संदर्भित की जा रही हैं।
कक्षा दस के बाद धनाभाव में छात्र-छात्राओं की पढ़ाई न रुकने देने के लिए दो लाख रुपये वार्षिक आय वर्ग तक के परिवारों के विद्यार्थियों को दशमोत्तर छात्रवृत्ति देने का प्रावधान है। अल्पसंख्यकों के लिए अल्पसंख्यक कल्याण विभाग, सामान्य व अनुसूचित जाति जनजाति के लिए समाज कल्याण विभाग और पिछड़े वर्ग के विद्यार्थियों के लिए पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग नोडल विभाग की भूमिका में होता है। कुछ वर्षों में छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति में लगातार गड़बडिय़ां सामने आने के बाद इस वर्ष कुछ और नियम बनाए जा रहे हैं, ताकि अधिकाधिक पात्र अभ्यर्थियों को लाभ मिल सके।
पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के सचिव डॉ.हरिओम व निदेशक पुष्पा सिंह के साथ अधिकारियों की बैठक में तय हुआ कि शुल्क प्रतिपूर्ति के मामले में उम्र का बंधन भी जोड़ा जाना चाहिए। अब 14 वर्ष से कम उम्र में हाई स्कूल व 16 से कम उम्र में इंटरमीडिएट उत्तीर्ण करने वाले छात्र-छात्राओं को संदिग्ध सूची में डालकर उनका पुन: परीक्षण कराया जाएगा। हाई स्कूल के रोल नंबर के साथ इंटरमीडिएट के रोल नंबर का भी मिलान होगा। समानांतर पाठ्यक्रमों में दुबारा आवेदन करने पर छात्रवृत्ति नहीं मिलेगी। उदाहरण के लिए यदि किसी ने पहले बीटेक में प्रवेश लेकर शुल्क प्रतिपूर्ति का लाभ उठाया, तो वह दुबारा किसी स्नातक पाठ्यक्रम में यह लाभ नहीं उठा सकेगा। यदि कोई विद्यार्थी पहले वर्ष किसी पाठ्यक्रम में और दूसरे वर्ष किसी अन्य पाठ्यक्रम में प्रवेश लेता है तो वह संदिग्ध सूची में शामिल हो जाएगा। स्नातक व परास्नातक स्तर पर द्वितीय वर्ष या तृतीय वर्ष में आवेदन करने वालों के प्रथम या द्वितीय वर्ष के अंक पत्रों का मिलान विश्वविद्यालय से कराया जाएगा। तय हुआ है कि जाति व आय प्रमाण पत्रों में निवास का पता दर्ज होने के कारण अलग से निवास प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं होगी। अभी आवेदन के समय हाई स्कूल का प्रमाण पत्र जमा किया जाता था, अब अंक पत्र भी जमा करना होगा।

Tuesday 13 October 2015

एक करोड़ लोगों को जोड़ेगी एम-सेहत


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-आज मुख्यमंत्री करेंगे मोबाइल आधारित परियोजना की शुरुआत
-बरेली, कन्नौज, मीरजापुर, सीतापुर व फैजाबाद के लोगों को लाभ
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : प्रदेश में मोबाइल को जरिया बनाकर सेहत की चिंता करने वाले प्रोजेक्ट एम-सेहत को मंगलवार को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव लांच करेंगे। बरेली, कन्नौज, मीरजापुर, सीतापुर व फैजाबाद में शुरू हो रही इस परियोजना से एक करोड़ लोग लाभान्वित होंगे।
स्वास्थ्य विभाग के आधारभूत कार्यकर्ताओं के लिए मोबाइल के माध्यम से कामकाज की परियोजना एम-सेहत पर लंबे समय से काम चल रहा था। इसमें साढ़े बारह हजार मोबाइल व टैबलेट का नेटवर्क थ्री जी सेवाओं के साथ जुड़ेगा। 18 करोड़ रुपये खर्च की संकल्पना के साथ प्रस्तावित योजना पर 27.55 करोड़ रुपये खर्च आएगा। इसमें मोबाइल ऐप के माध्यम से लाभार्थियों का पंजीकरण, ट्रैकिंग, काउंसिलिंग, रिपोर्टिंग, स्क्रीनिंग आदि के साथ जच्चा-बच्चा की सुरक्षा व मृत्यु दर घटाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। परियोजना में राज्य सरकार शुरुआती तौर में धन खर्च न कर बाद में आंकड़ों के आधार पर नियमित रूप से भुगतान करेगी। मंगलवार, 13 अक्टूबर को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने आवास पर इस योजना की औपचारिक शुरुआत करेंगे। इसके बाद नवंबर से इन पांच जिलों के सभी डेटा व अन्य जानकारियां मोबाइल के माध्यम से ऑनलाइन अपडेट होने लगेंगी।
विश्व का सबसे बड़ा पायलट प्रोजेक्ट
दुनिया के सबसे बड़े पायलट प्रोजेक्ट में एक साथ दस हजार आशा कार्यकर्ताओं, दो हजार एएनएम व तीन सौ प्रभारी अधिकारियों के साथ राज्य स्तरीय अधिकारियों को मोबाइल व टैबलेट से जोड़ा जाएगा। इसके बाद आशा कार्यकर्ता मोबाइल के जरिये पूरी प्लानिंग करने के साथ लाभांवितों को वीडियो द्वारा समझाने जैसी प्रक्रिया से जुड़ेंगी। पूरा कामकाज ऑनलाइन होने से उन्हें भुगतान में भी आसानी होगी।
तीन साल बाद अन्य जिलों में विस्तार
यह परियोजना पहले चरण में तीन साल के लिए पांच जिलों में लागू की जाएगी। इस दौरान हर माह योजना की राज्य स्तर पर समीक्षा होगी। सैद्धांतिक रूप से तय हुआ है कि पिछले तीन साल के कामकाज व अगले तीन साल के कामकाज की समीक्षा के बाद इस परियोजना के अन्य जिलों में विस्तार पर फैसला होगा।

दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर रोक

- बिना डॉक्टर का पर्चा लिखे दवाओं की मनमानी बिक्री का तर्क
- औषधि निरीक्षकों व सहायक आयुक्तों को अनुपालन का जिम्मा
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : प्रदेश में दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर रोक लगा दी गयी है। राज्य के खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन आयुक्त की ओर से जारी इस प्रतिबंध आदेश के अनुपालन का जिम्मा औषधि निरीक्षकों व सहायक आयुक्तों को सौंपा गया है।
इस समय पूरे देश में ऑनलाइन दवाओं की बिक्री धड़ल्ले से हो रही है। तमाम पोर्टल ऐसे हैं, जहां दवाओं की ऑनलाइन बुकिंग कराने के बाद घर तक दवाएं पहुंचाई जाती हैं। अब तो ऐसे मोबाइल एप्स भी आ गए हैं, जिनके माध्यम से ऑनलाइन दवाएं खरीदी जा सकती हैं। दवा विक्रेताओं का एक खेमा लगातार इस प्रकार ई-फार्मेसी संचालन का विरोध भी कर रहा था। इस पर खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग ने प्रदेश में दवाओं की ऑनलाइन बिक्री व ई-फार्मेसी संचालन पर रोक लगा दी है। अपर आयुक्त (प्रशासन) राम अरज मौर्य द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि कतिपय औषधि विक्रेताओं द्वारा ऑनलाइन माध्यम से औषधियों का विक्रय किया जा रहा है। इससे यह पता करना संभव नहीं है कि औषधियों की आपूर्ति पंजीकृत चिकित्सक के पर्चे पर ही की गयी है अथवा नहीं। औषधि एवं प्रसाधन सामग्र्री अधिनियम के नियम 65 के अंतर्गत शेड्यूल्ड औषधियां केवल पंजीकृत चिकित्सक के पर्चे पर ही बेची जा सकती हैं। इस पूरी प्रक्रिया पर रोक लगाते हुए उन्होंने सभी सहायक आयुक्तों व औषधि निरीक्षकों को निर्देश दिये हैं कि वे अपने क्षेत्र में कहीं भी ऑनलाइन औषधियां न बिकने दें। वे सुनिश्चित करें कि पंजीकृत चिकित्सक के पर्चे के बिना कहीं भी औषधियां ऑनलाइन न बेची जाएं न ही ऑनलाइन आर्डर के आधार पर उनकी आपूर्ति हो। इसके लिए नियमित रूप से ऑनलाइन प्लेटफाम्र्स पर नजर भी रखी जाए।
14 को हड़ताल पर दोफाड़
देश में ई-फार्मेसी पर रोक लगाने के लिए 14 अक्टूबर को प्रस्तावित हड़ताल पर भी दवा विक्रेताओं में दोफाड़ हो गया है। भारत सरकार के खाद एवं रसायन मंत्रालय का फार्मास्युटिकल्स विभाग पहले ही इस हड़ताल को अवैध करार दे चुका है। अब ऑनलाइन बिक्री पर प्रदेश सरकार द्वारा रोक लगाए जाने के बाद राज्य के दवा विक्रेता इस हड़ताल को बेमतलब करार दे रहे हैं। एक खेमा जहां हड़ताल की तैयारियों में जुटा है, वहीं दूसरा खेमा दवा की दुकानें खोलने का एलान कर रहा है।
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Monday 12 October 2015

मेडिकल कालेजों को चाहिए 31 कैजुअल्टी मेडिकल अफसर

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-प्रभावित हो रहे भर्ती व मेडिको लीगल जैसे काम
-चिकित्सा शिक्षा ने स्वास्थ्य विभाग से मांगे डॉक्टर
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ
आकस्मिक स्थितियों में पहुंचने वाले मरीजों को भर्ती करने से लेकर उनके मेडिको लीगल तक का जिम्मा संभालने के लिए मेडिकल कालेजों में कैजुअल्टी मेडिकल अफसरों की कमी है। चिकित्सा शिक्षा महानिदेशालय ने स्वास्थ्य विभाग से 31 कैजुअल्टी मेडिकल अफसर मांगे हैं।
प्रदेश के मेडिकल कालेजों से संबद्ध अस्पतालों में इलाज का जिम्मा तो चिकित्सा शिक्षा विभाग संभालता है किन्तु मरीजों को भर्ती करने से लेकर उनके मेडिको लीगल या पोस्टमार्टम जैसे कामों की जिम्मेदारी स्वास्थ्य विभाग के प्रांतीय चिकित्सा सेवा संवर्ग के जिम्मे है। अस्पतालों में मरीजों के पहुंचते ही उन्हें भर्ती कर उनकी बीमारी को देखते हुए संबंधित विभागों में भेजने की जिम्मेदारी कैजुअल्टी मेडिकल अफसरों की होती है। कई महीनों से मेडिकल कालेज इन चिकित्सकों की कमी से जूझ रहे हैं। अब चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक डॉ.वीएन त्रिपाठी ने स्वास्थ्य महानिदेशक को पत्र लिखकर मेडिकल कालेजों के लिए 31 कैजुअल्टी मेडिकल अफसर तुरंत उपलब्ध कराने को कहा है। इनमें कानपुर, अम्बेडकर नगर, आजमगढ़, जालौन व सहारनपुर के लिए चार-चार और कन्नौज के लिए तीन चिकित्सक मांगे गए हैं। बांदा में ओपीडी शुरू हो गयी और इनडोर के साथ अगले सत्र में मेडिकल कालेज खोलने की तैयारी चल रही है। बदायूं में भी अगले सत्र से मेडिकल कालेज शुरू करने की तैयारी है। इन दोनों कालेजों के लिए भी चार-चार चिकित्सक प्रांतीय चिकित्सा सेवा से मांगे गए हैं। चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक ने कहा है कि इन चिकित्सकों के न होने से कामकाज प्रभावित हो रहा है। भर्ती, मेडिको लीगल, पोस्टमार्टम जैसे कामों में तो दिक्कत आती ही है, अस्पतालों में चौबीस घंटे रहने वाले रेजीडेंट डॉक्टर भी परेशान होते हैं।
आयोग से मांगेंगे अलग डॉक्टर
प्रांतीय चिकित्सा सेवा के चिकित्सकों को लेकर चिकित्सा शिक्षा विभाग से स्वास्थ्य विभाग की खींचतान चलती रहती है। अब विभाग इस समस्या का भी समाधान चाहता है। चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक डॉ.वीएन त्रिपाठी का कहना है कि प्रांतीय चिकित्सा सेवा से तत्काल चिकित्सक तो मांगे जा रहे हैं किन्तु भविष्य में इस समस्या के स्थायी समाधान की कोशिश भी हो रही है। अब चिकित्सा शिक्षा विभाग लोक सेवा आयोग से अपने लिये अलग कैजुअल्टी मेडिकल अफसर मांगेगा। इसके लिए पद पहले ही सृजित हैं, बस विभाग बदलने की जरूरत है। 

Saturday 10 October 2015

अब मेडिकल कालेजों में सीटें बचाने की मशक्कत


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-तीन बार वॉक इन के बाद भी शिक्षकों के 25 फीसद पद खाली
-210 पदों के लिए लोक सेवा आयोग से भर्ती का हो रहा इंतजार
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ
प्रदेश के मेडिकल कालेजों को अच्छे शिक्षक नहीं मिल रहे हैं। सीधी भर्ती के लिए ढाई माह में तीन बार वॉक इन साक्षात्कार के बाद भी 25 फीसद पद खाली हैं। अब चिकित्सा शिक्षा विभाग भारतीय चिकित्सा परिषद के निरीक्षण में सीटें बचाने के लिए आंतरिक तबादलों की मशक्कत करने में जुटा है।
प्रदेश के 11 सरकारी मेडिकल कालेजों में 584 असिस्टेंट प्रोफेसर, 238 एसोसिएट प्रोफेसर व 222 प्रोफेसरों को मिलाकर 1089 पद सृजित हैं। सरकार अगले सत्र में बांदा व बदायूं मेडिकल कालेज खोलने का एलान कर चुकी है। तीन माह पूर्व प्रदेश के मेडिकल कालेजों में 517 पद रिक्त थे। पिछले वर्ष शिक्षकों की कमी के कारण मान्यता लेने में खासी दिक्कत हुई थी। कानपुर जैसे पुराने मेडिकल कालेज को तो एमसीआइ से नोटिस तक मिल गया था।
इस बार एमसीआइ के निरीक्षण से पहले ही वॉक इन साक्षात्कार के माध्यम से संविदा पर शिक्षकों की नियुक्ति का फैसला लिया गया। सबसे पहले 31 जुलाई को 237 पदों के लिए साक्षात्कार हुए। फिर सात अगस्त को 105 और 11 सितंबर को 175 पदों के लिए साक्षात्कार हुआ। ढाई माह में तीन बार साक्षात्कार के बाद भी विभाग शिक्षकों के पद पूरी तरह भरने में सफल नहीं हुआ। आज भी 25 फीसद शिक्षकों के पद खाली हैं। मान्यता व सीटें बचाने के लिए पुराने कालेजों से शिक्षकों को उन कालेजों में स्थानांतरित किया जा रहा है, जहां एमसीआइ का निरीक्षण होना होता है। हालात इतने खराब हैं कि कई बार तो अधिकारी भी जानते हैं कि शिक्षक ज्वाइन करने के बाद कालेजों में नहीं रुकते किन्तु वे एमसीआइ की मान्यता छिनने के डर से उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं करते। इस मसले को शासन स्तर पर गंभीरता से लिया गया है। प्रमुख सचिव (चिकित्सा शिक्षा) डॉ.अनूप चंद्र पांडेय ने प्राचार्यों की बैठक में सभी पद भरने व शिक्षकों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के स्पष्ट निर्देश दिये हैं। उन्होंने कहा कि लोक सेवा आयोग से 210 शिक्षकों की भर्ती की प्रक्रिया शुरू हो गयी है। इसका लाभ भी कालेजों को मिलेगा।
चिकित्सालय भी हों चुस्त-दुरुस्त
प्रमुख सचिव (चिकित्सा शिक्षा) ने एमसीआइ निरीक्षण के मद्देनजर मेडिकल कालेजों से संबद्ध चिकित्सालयों को भी चुस्त दुरुस्त करने के निर्देश दिये हैं। शासनादेश में कहा गया है कि चिकित्सालयों की गड़बड़ी के कारण भी एमसीआइ की आपत्तियों संबंधी शिकायत प्राचार्यों ने बताई है। ऐसे में सभी चिकित्सा अधीक्षक न्यूनतम संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करें और इसके लिए एमसीआइ मानकों को भी ध्यान में रखा जाए।
कन्नौज-जालौन पहुंची एमसीआइ
भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआइ) ने प्रदेश के मेडिकल कालेजों में निरीक्षण की प्रक्रिया शुरू कर दी है। शुक्रवार को एमसीआइ टीम कन्नौज व जालौन पहुंची। टीम ने भर्ती मरीजों की संख्या से लेकर उपकरण चलने व चिकित्सकों की उपस्थिति आदि का जायजा लिया। कन्नौज में तो चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक डॉ.वीएन त्रिपाठी स्वयं भी डटे रहे। 

शुल्क प्रतिपूर्ति में बढ़ेंगे प्रोफेशनल कोर्स

-पिछड़ा वर्ग निदेशक को सौंपा गया निर्धारण का जिम्मा
-पहली बैठक में उच्च शिक्षा विभाग से नहीं पहुंचा कोई
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : दसवीं के बाद धनाभाव में पढ़ाई न रुकने देने की दशमोत्तर छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति योजना में अब और अधिक प्रोफेशनल कोर्स शामिल किये जाएंगे। इसके निर्धारण का जिम्मा पिछड़ा वर्ग निदेशक को सौंपा गया है। शुक्रवार को इस बाबत हुई पहली बैठक में चिकित्सा शिक्षा विभाग से आधी-अधूरी तैयारी के साथ प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया, वहीं उच्च शिक्षा विभाग से तो कोई पहुंचा ही नहीं।
दशमोत्तर छात्रवृत्ति के नोडल विभाग के रूप में काम कर रहे समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों को इस वर्ष अंतिम तारीख से एक दिन पहले तक मान्य पाठ्यक्रमों को जोडऩा पड़ा था। आगे ऐसी स्थिति से बचने के लिए अभी से पूरी तैयारी करने और प्रोफेशनल कोर्स बढ़ाने का प्रस्ताव किया गया है। इसके निर्धारण की जिम्मेदारी संभाल रहीं पिछड़ा वर्ग कल्याण निदेशक पुष्पा सिंह ने शुक्रवार को चिकित्सा शिक्षा, प्राविधिक शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, औद्योगिक शिक्षा व उच्च शिक्षा विभागों की बैठक बुलाई थी। इस बैठक में उच्च शिक्षा विभाग से कोई प्रतिनिधि आया ही नहीं। चिकित्सा शिक्षा विभाग ने भी सिर्फ 23 पैरामेडिकल व पांच स्टेट मेडिकल फैकल्टी पाठ्यक्रमों की सूची सौंपी। इस पर उपनिदेशक शैलेश श्रीवास्तव को इन दोनों विभागों से समन्वय कर प्रोफेशनल पाठ्यक्रमों की सूची तैयार करने को कहा गया। औद्योगिक शिक्षा विभाग ने 25 दोवर्षीय, 19 एकवर्षीय व अल्पकालिक पाठ्यक्रमों की सूची सौंपी। तकनीकी शिक्षा विभाग ने 12 एकवर्षीय, छह दोवर्षीय, 38 तीनवर्षीय व एक चारवर्षीय पाठ्यक्रम की सूची सौंपी। अब 15 अक्टूबर तक इन सभी पाठ्यक्रमों का संयोजन कर छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति के लिए प्रोफेशनल कोर्स की सूची को अंतिम रूप दे दिया जाएगा।
साफ्टवेयर में खराबी से अल्पसंख्यक परेशान
दशमोत्तर छात्रवृत्ति भुगतान के लिए बने पीएफएमएस साफ्टवेयर में तकनीकी खराबी से भारी संख्या में अल्पसंख्यक विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति नहीं मिल सकी। उनकी परेशानी दूर करने के लिए शासन ने तीस करोड़ रुपये अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के निदेशक को उपलब्ध कराए हैं। वर्ष 2015-16 के लिए 133.89 करोड़ रुपये उपलब्ध कराये गए हैं। छात्रवृत्ति की राशि विद्यार्थियों के बैंक खातों में सीधे भेजी जाएगी। कई विद्यालयों व मदरसों में गड़बड़ी की शिकायतें भी आयी हैं, इसलिए सत्यापन कराने के निर्देश दिये गए हैं।

Friday 9 October 2015

मरीजों इंतजार करो, डॉक्टर साहब नहीं आएंगे


आयुर्वेद को चाहिए संजीवनी
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-न पढ़ाई के पुख्ता इंतजाम, न हो पा रहा इलाज

डॉ.संजीव, लखनऊ
यह राजधानी का आयुर्वेदिक मेडिकल कालेज का बाह्यï रोगी विभाग है। यहां ओपीडी का समय सुबह आठ बजे से दोपहर दो बजे तक है। गुरुवार की सुबह नौ बजे तक मरीजों की भीड़ जमा हो चुकी थी किंतु एक भी डॉक्टर यहां मौजूद नहीं था।
यह स्थिति केवल मेडिकल कालेज की ही नहीं है। आयुर्वेद विभाग के अस्पतालों का भी यही हाल है। राजाजीपुरम में चार बेड का आयुर्वेद चिकित्सालय भगवान भरोसे हैं। वहां डॉक्टर 15 दिन से छुट्टी पर हैं किंतु किसी दूसरे की नियुक्ति नहीं की गयी है। मरीज भी लौट जाते हैं। यह स्थिति तब है जबकि पारंपरिक भारतीय चिकित्सा पद्धतियों को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने अलग से आयुष मंत्रालय तक स्थापित किया है। प्रदेश में भी आयुष मिशन के नाम पर कई प्रयासों का दावा किया जा रहा है किंतु ये सारी कोशिशें आयुर्वेद के मामले में विफल साबित हो रही हैं। अधिकारियों को आयुष मिशन से मिलने वाली धनराशि का इंतजार है तो डॉक्टर भी गंभीर नहीं हैं। पहले ही आयुर्वेद चिकित्सकों की कमी है, और जो हैं भी, वे प्राइवेट प्रैक्टिस पर फोकस कर रहे हैं।
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500 डिस्पेंसरी फार्मासिस्ट भरोसे
प्रदेश में आयुर्वेद विभाग की दो हजार डिस्पेंसरी हैं। इसके विपरीत चिकित्सकों की कुल संख्या ही 1600 है। डिस्पेंसरी पर प्रभावी चिकित्सक संख्या 1500 होने के कारण शेष 500 डिस्पेंसरी फार्मासिस्ट के भरोसे चल रही हैं। यहां फार्मासिस्ट ही सप्ताह में कुछ दिन पहुंचते हैं और मरीजों को दवा देकर विदा कर देते हैं। जिन डिस्पेंसरी में डॉक्टर तैनात हैं, वहां भी वे नियमित नहीं जाते हैं। कुछ जगह फार्मासिस्ट व डॉक्टर ने आपस में समझौता कर लिया है और वे सप्ताह में तीन-तीन दिन जाकर काम चला रहे हैं।
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कालेजों में पढ़ाई का संकट
मुजफ्फर नगर, बरेली, पीलीभीत, लखनऊ, बांदा, इलाहाबाद, बनारस व झांसी में सरकारी आयुर्वेदिक कालेज हैं। इनमें चिकित्सकों को कमी के चलते पढ़ाई का संकट पैदा हो गया है। हालात ये हैं कि एक भी कालेज को मान्यता न मिलने के कारण सीपीएमटी की शुरुआती दो काउंसिलिंग में वे बीएएमएस को शामिल ही नहीं किया जा सका। बमुश्किल बनारस की मान्यता मिल सकी है। इसके पीछे शिक्षकों की कमी मूल समस्या मानी जा रही है। अधिकारियों के मुताबिक लोक सेवा आयोग में प्रोफेसर के 33, रीडर के नौ व लेक्चरर के 34 पदों के लिए अधियाचन भेजा गया है जो कि लंबित है। परास्नातकों की संख्या कम होने के कारण संविदा पर भी शिक्षक नहीं मिल पा रहे हैं।
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फिर भी निजी कालेज हैं आगे
सरकारी क्षेत्र के आठ मेडिकल कालेजों से निजी क्षेत्र के 14 मेडिकल कालेज न सिर्फ जोरदार मुकाबला कर रहे हैं, बल्कि कई मोर्चों पर तो आगे भी हैं। आयुर्वेद में परास्नातक उपाधि (एमडी) की पढ़ाई की सुविधा सिर्फ दो सरकारी आयुर्वेदिक कालेजों में हैं। इनमें छह सीटें पीलीभीत व 14 लखनऊ में हैं। इसके विपरीत तीन प्राइवेट कालेजों में परास्नातक की 55 सीटें हैं। यही कारण है कि जहां सरकारी क्षेत्र में कालेजों की संख्या आठ पर सिमट गयी है, वहीं निजी क्षेत्र में आठ नए कालेजों को मंजूरी मिल चुकी है और 13 कालेजों के लिए शासन स्तर पर अनापत्ति प्रमाणपत्र जारी हो चुका है।
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प्रबंधन करने में सफल
आयुर्वेद निदेशक डॉ.सुरेश चन्द्रा का कहना है कि यह सच है कि विभाग चिकित्सकों की कमी से जूझ रहा है, किंतु हम प्रबंधन करने में सफल हैं। कुछ डिस्पेंसरी आपस में जोड़ दी गयी हैं, तो कुछ में सप्ताह में तीन-तीन दिन डॉक्टर भेजने की व्यवस्था की गयी है ताकि मरीजों को असुविधा न हो। कालेजों को भी एक-एक कर मान्यता मिलनी शुरू हुई है। लोकसेवा आयोग से नियुक्तियां होते ही शिक्षकों का संकट भी समाप्त हो जाएगा।

डेंगू व स्वाइन फ्लू के लिए हर मेडिकल कालेज में अलग वार्ड


-प्रमुख सचिव के निर्देश-
-जरूरत के अनुरूप बढ़ाएं वेंटीलेटर, मजबूत हों आइसीयू
-मेरठ, कानपुर, गोरखपुर और इलाहाबाद में वीडीआर लैब
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ
चिकित्सा शिक्षा महकमे ने डेंगू के साथ स्वाइन फ्लू से निपटने की तैयारी भी शुरू कर दी है। प्रमुख सचिव डॉ.अनूप चंद्र पांडेय ने गुरुवार को मेडिकल कालेजों के प्राचार्यों के साथ बैठक में डेंगू व स्वाइन फ्लू के लिए हर मेडिकल कालेज में अलग वार्ड बनाने के निर्देश दिए।
प्रमुख सचिव ने कहा कि डेंगू व स्वाइन फ्लू का कोई भी मरीज मेडिकल कालेजों के संबद्ध अस्पतालों से निराश नहीं जाना चाहिए। इसके लिए एलीजा टेस्ट की व्यवस्था हर कालेज में सुचारू ढंग से सुनिश्चित की जाए। बीमारी की पड़ताल के लिए वाइरल डिटेक्शन एंड रिसर्च लैबोरेटरी (वीडीआरएल) अभी सिर्फ केजीएमयू व एसजीपीजीआइ में हैं। अब मेरठ, कानपुर, गोरखपुर और इलाहाबाद मेडिकल कालेजों में भी इनकी स्थापना की जाएगी। उन्होंने स्पष्ट निर्देश दिए कि हर मेडिकल कालेज में आइसीयू मजबूत किए जाएं। जरूरत के अनुरूप वेंटिलेटर बढ़ाए जाएं। इसके लिए धन की कमी नहीं पडऩे दी जाएगी किन्तु किसी तरह की लापरवाही बर्दाश्त नहीं होगी।
प्रमुख सचिव ने कहा कि उपकरणों की खरीद में पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए। अभी खरीद के दौरान शर्तें इतनी जटिल कर दी जाती हैं कि प्रतिस्पद्र्धा ही कम हो जाती है। अब इस पूरी प्रक्रिया का सरलीकरण किया जाए, ताकि अधिक से अधिक लोग टेंडर प्रक्रिया में हिस्सा ले सकें। इससे उपकरणों की दरें भी कम होंगी और पारदर्शिता भी आएगी। उन्होंने बताया कि अस्पतालों में लगाए जाने वाले उपकरणों की देखरेख के पुख्ता बंदोबस्त के लिए केंद्रीकृत मेंटीनेंस सुनिश्चित की जाएगी। इससे पूरी प्रक्रिया पर नजर रखना भी आसान हो जाएगा। उन्होंने प्राचार्यों से भारतीय चिकित्सा परिषद की आवश्यकताओं के अनुरूप तैयारी सुनिश्चित करने को कहा, ताकि मान्यता में कोई दिक्कत न आए। 

पिछड़ों के आरक्षण को चाहिए तमिलनाडु मॉडल


-आज राष्ट्रीय आयोग के अध्यक्ष से राज्य की ओर से होगी मांग
-20 साल में 24 जातियां बढऩे के बाद भी आरक्षण जस का तस
राज्य ब्यूरो, लखनऊ : देश में आरक्षण की समीक्षा को लेकर शुरू हुई बहस के बीच राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने पिछड़ी जाति के लोगों को आरक्षण देने के लिए तमिलनाडु मॉडल की वकालत की है। इसके लिए राज्य आयोग के अध्यक्ष राम आसरे विश्वकर्मा दिल्ली में राष्ट्रीय आयोग के अध्यक्ष व चेन्नई जाकर तमिलनाडु राज्य आयोग से मुलाकात करेंगे।
उत्तर प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए 27 फीसद आरक्षण का प्रावधान है। राज्य आयोग इसे बढ़ाने की पैरवी कर रहा है। आयोग का तर्क है कि देश के कई राज्यों में पिछड़ों के लिए आरक्षण का प्रतिशत अधिक है। इनमें कर्नाटक में 32 प्रतिशत, पांडिचेरी में 33 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल व केरल में 35 प्रतिशत और तमिलनाडु में 50 फीसद आरक्षण का प्रावधान है। हाल ही में उत्तर प्रदेश पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष को पक्ष लिखकर पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण की सीमा बढ़ाने की वकालत की है। उन्होंने कहा कि बीस साल पहले पिछड़े वर्ग में 55 जातियां थीं, तब 27 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया था। अब इन जातियों की संख्या बढ़कर 79 हो गयी है किन्तु आरक्षण की स्थिति जस की तस है।
अब राज्य आयोग के अध्यक्ष इस मसले पर सीधे राष्ट्रीय आयोग के अध्यक्ष से मुलाकात कर अपनी बात रखेंगे। वह शुक्रवार को दिल्ली में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष से मिल कर तमिलनाडु की तरह पचास प्रतिशत तक आरक्षण के प्रावधान की बात रखेंगे। उनका तर्क है कि जिस तरह तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, केरल, पांडिचेरी व कर्नाटक में पिछड़ों को अधिक आरक्षण दिया जा रहा है, उसी तरह उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों में भी आरक्षण मिलना चाहिए। साथ ही आरक्षण के वर्गीकरण पर विस्तृत चर्चा के लिए देश भर के आयोगों के अध्यक्षों की बैठक बुलाने को कहेंगे। इस बैठक में पिछड़े वर्ग के आरक्षण, पिछड़े वर्ग की सूची को श्रेणीवार विभाजित करने और अब तक पिछड़े वर्ग के आरक्षण की स्थितियों का आकलन करने पर भी चर्चा होगी। वह दिल्ली से चेन्नई जाकर वहां आरक्षण की व्यवस्था का अध्ययन करेंगे। इसके लिए जनप्रतिनिधियों व पिछड़े वर्गों की संस्थाओं के साथ विचार विमर्श करने के बाद वे तमिलनाडु पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष के साथ भी बैठक करेंगे। इसके बाद दोनों राज्यों के आयोग केंद्रीय आयोग को संयुक्त प्रतिवेदन भी भेजेंगे।

Thursday 8 October 2015

उपकरण न डॉक्टर, खुल गए मेडिकल कालेज


-प्रमुख सचिव व अन्य अधिकारियों के निरीक्षण में खुली पोल
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डॉ.संजीव, लखनऊ
काम संभालने के बाद प्रमुख सचिव (चिकित्सा शिक्षा) डॉ.अनूप चंद्र पाण्डेय बीते माह कन्नौज मेडिकल कालेज का निरीक्षण करने पहुंचे तो चौंक गए। वहां वेंटिलेटर कमरे में बंद रखे थे, डायलिसिस यूनिट महज दिखावे के लिए थी और टीएमटी मशीन धूल खा रही थी।
यह स्थिति महज कभी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का संसदीय क्षेत्र रहे और इस समय मुख्यमंत्री की पत्नी डिंपल यादव के संसदीय क्षेत्र कन्नौज मेडिकल कालेज की ही नहीं है। बीते पांच वर्षों में खुले सभी नए मेडिकल कालेजों का यही हाल है। इनमें न उपकरण हैं, न डॉक्टर, बस नाम के लिए कालेज खोल दिये गए हैं। भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआइ) की मान्यता लेने के लिए करोड़ों के उपकरण खरीद लिये गए, पुराने कालेजों से अस्थायी रूप से तबादला कर शिक्षक दिखा दिये गए किंतु वास्तव में न तो ये उपकरण चल रहे हैं, न ही डॉक्टर वहां ड्यूटी करते हैं। स्वयं निरीक्षण के अलावा प्रमुख सचिव ने विशेष सचिव व अन्य अधिकारियों को भेजकर सभी मेडिकल कालेजों का निरीक्षण कराया तो यही तथ्य सामने आया।
राज्य में नए मेडिकल कालेज खुलने का सिलसिला 2011 में अंबेडकर नगर से शुरू हुआ था। उसके बाद 2012 में कन्नौज, 2013 में जालौन व आजमगढ़ और इसी वर्ष 2015 में सहारनपुर में मेडिकल कालेज की शुरुआत हुई। अब अगले वर्ष 2016 में बांदा व बदायूं में मेडिकल कालेज खोलने की तैयारी चल रही है। हालात ये हैं कि इन कालेजों से संबद्ध अस्पतालों में मरीजों को विशेषज्ञ चिकित्सा सुविधाएं मिलना तो दूर, थोड़ा सा गंभीर होने पर भी उनका इलाज नहीं हो पाता है। दरअसल इन कालेजों में ज्यादातर डॉक्टर आते ही नहीं और जो आते हैं, उनमें भी अधिसंख्य रुकते नहीं है। ऐसे में गंभीर मरीज आने पर उन्हें आसपास के बड़े व पुराने मेडिकल कालेज रेफर कर दिये जाते हैं। अंबेडकर नगर से लखनऊ, कन्नौज से कानपुर, जालौन से झांसी या कानपुर, आजमगढ़ से बनारस व सहारनपुर से मरीज मेरठ रेफर किये जाते हैं।
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पीजी कोर्स न होने से दिक्कत
नए कालेजों में 25 प्रतिशत डॉक्टर तो हैं ही नहीं। जो हैं, वे भी नियमित नहीं आते। चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक डॉ.वीएन त्रिपाठी के मुताबिक अभी इन कालेजों में एमडी, एमएस जैसे परास्नातक पाठ्यक्रम (पीजी कोर्स) नहीं शुरू हुए हैं, इसलिए दिक्कत हो रही है। पांच साल का कालेज हो जाने पर स्थायी मान्यता के साथ ही एमसीआइ से पीजी कोर्स की मान्यता भी मिलेगी। इसके बाद जूनियर डॉक्टरों की उपलब्धता से इलाज सुगम हो जाएगा।
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रखरखाव व भर्तियों पर जोर
प्रमुख सचिव (चिकित्सा शिक्षा) अनूप चंद्र पाण्डेय नए कालेजों की इन स्थितियों को स्वीकार करते हैं। उन्होंने कहा कि अब उपकरणों के संचालन व समग्र रखरखाव, 24 घंटे संबद्ध अस्पतालों में इलाज व हर पद भरने पर जोर है। लोक सेवा आयोग को 210 पदों का अधियाचन भेजा गया है। प्राचार्यों से संविदा पर सीधी भर्ती को कहा गया है। हाल ही 600 नर्सेज भर्ती कर उनकी कमी दूर की गयी है। 

Wednesday 7 October 2015

निजी क्षेत्र में दिये जाएंगे सरकारी अस्पताल


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जागरण विशेष
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-अस्पताल निर्माणाधीन, जून 2016 तक सौंपे जाएंगे
-100 बेड के 49 अस्पतालों के निजीकरण की तैयारी
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डॉ. संजीव, लखनऊ
प्रदेश सरकार सेहत सुधार में मील का पत्थर रखने जा रही है। सरकार सौ बेड वाले 49 अस्पताल बनाकर निजी हाथों में सौंप देगी। वहां मरीजों को बिल्कुल सरकारी अस्पतालों की तरह नि:शुल्क इलाज मिलेगा जबकि सरकार अस्पताल संचालक को सीधे भुगतान करेगी।
सरकारी चिकित्सा सेवाओं की बेहतरी में सर्वाधिक दिक्कतें डाक्टरों को ढूंढऩे में आ रही हैं। इससे निपटने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण की पहल की जा रही है। शुरुआत 49 जिलों में प्रस्तावित सौ बेड वाले जच्चा-बच्चा अस्पतालों से हो रही है। प्रदेश सरकार एक हजार करोड़ रुपये खर्च कर अस्पताल बनवाने के बाद इन्हें निजी क्षेत्र को सौंप देगी। निजी क्षेत्र इन अस्पतालों में उपकरणों से लेकर डॉक्टर, नर्स व कर्मचारियों की व्यवस्था करेंगे। हां, इन पर सरकारी नजर रखने के लिए जिला महिला अस्पताल की मुख्य चिकित्सा अधीक्षक इसकी प्रभारी होंगी।
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एनएचएम की हरी झंडी
प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) अरविंद कुमार ने बताया कि परियोजना को मुख्य सचिव के साथ राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) की अधिशासी समिति की हरी झंडी मिल गयी है। अब औद्योगिक विकास आयुक्त के पास निविदा के लिए प्रस्ताव जाएगा। अस्पतालों का निर्माण कार्य चल रहा है। कोशिश है कि जून, 2016 तक आवंटन पूरा कर अस्पतालों का संचालन शुरू कर दिया जाए। भारत सरकार की मदद लेने के लिए प्रस्तावों का ब्योरा केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को भी भेजा जा रहा है। निजी संचालकों को एक से लेकर दस अस्पतालों के समूह की जिम्मेदारी दी जाएगी जिससे विविधता के साथ प्रतियोगिता भी बनी रहे।
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जांच व इलाज मुफ्त
प्रमुख सचिव ने बताया कि निजीकरण का असर मरीजों के इलाज पर नहीं पड़ेगा। उन्हें अन्य सरकारी अस्पतालों की तरह मुफ्त इलाज व जांच की सुविधा मिलेगी। जच्चा-बच्चा के इलाज की सुविधाएं होंगी। सरकार पाक्षिक या मासिक आधार पर अस्पतालों को भुगतान करेगी। इसमें बेड भरने से लेकर मरीजों की संतुष्टि तक के मानक बनाए जायेंगे। सरकारी अस्पतालों की तरह यहां मरीजों को एक पर्चा बनाना होगा।
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एक अच्छी पहल है 
चिकित्सकों की कमी नहीं पूरा हो पा रही, इसलिए हम निजी हाथों में इलाज सौंपने की पहल करने जा रहे हैं। मॉडल सफल हुआ तो इसे अन्य अस्पतालों पर भी अमल किया जा सकेगा।
-अहमद हसन, स्वास्थ्य मंत्री
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49 जिलों से शुरुआत
आगरा, अलीगढ़, इलाहाबाद, बहराइच, बलिया, बाराबंकी, बरेली, बिजनौर, बदायूं, बुलंदशहर, देवरिया, इटावा, फैजाबाद, फीरोजाबाद, गाजियाबाद, गाजीपुर, गोंडा, गोरखपुर, जौनपुर, कानपुर देहात, मैनपुरी, मऊ, मेरठ, मीरजापुर, मुरादाबाद, मुजफ्फरनगर, पीलीभीत, प्रतापगढ़, रायबरेली, सहारनपुर, शाहजहांपुर, सुलतानपुर, वाराणसी, अंबेडकर नगर, बागपत, चंदौली, हरदोई, ज्योतिबाफुले नगर, कन्नौज, कौशांबी, महाराजगंज, संत कबीर नगर, सिद्धार्थ नगर, सोनभद्र, संत रविदास नगर, कुशीनगर, एटा, औरैया और आजमगढ़।
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ये दो अस्पताल भी दौड़ में
इन अस्पतालों के अलावा राजधानी में प्रस्तावित एक हजार बेड का एक अस्पताल व गोमती नगर में प्रस्तावित दो सौ बेड का अस्पताल भी निजीकरण की दौड़ में शामिल हैं। एक हजार बेड के अस्पताल में पांच सौ बेड हृदय रोगियों के लिए और 500 अन्य अतिविशिष्टताओं के लिए आरक्षित होंगे। इसके निजीकरण का प्रस्ताव निविदा प्रक्रिया के लिए पहुंच चुका है। गोमती नगर के दो सौ बेड वाले अस्पताल को भी इसी तर्ज पर चलाया जाएगा।
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Tuesday 6 October 2015

कैंसर संस्थान को पेड़ कटने का इंतजार


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-मिट्टी खनन के लिए जिलाधिकारी से मांगी अनुमति
-एइआरबी मुंबई को भी भेजी गयी सहमति की चिट्ठी
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की महत्वाकांक्षी सीजी सिटी कैंसर संस्थान परियोजना की शुरुआत को अब वन विभाग से पेड़ काटने की मंजूरी मिलने का इंतजार है। मिïट्टी खनन के लिए जिलाधिकारी से अनुमति मांगी गई है, वहीं एटॉमिक इनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड (एइआरबी) मुंबई को भी सहमति के लिए पत्र भेजा गया है।
सीजी सिटी कैंसर संस्थान का निर्माण कार्य शुरू होने के लिए चिह्नित भूमि पर मशीनें पहुंच गयी हैं। उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम के अधिकारियों को स्वयं नजर रखने के निर्देश दिए गए हैं। प्रमुख सचिव (चिकित्सा शिक्षा) डॉ.अनूप चंद्र पाण्डेय के मुताबिक हर सप्ताह निर्माण कार्यों की समीक्षा होगी। इसी के तहत सोमवार को हुई समीक्षा बैठक में जानकारी दी गयी कि चहारदीवारी की खुदाई से काम तो शुरू हो गया है किन्तु फिलहाल पेड़ काटने के लिए वन विभाग की मंजूरी का इंतजार है। तमाम पेड़ चहारदीवारी व ड्राइंग के मुताबिक काम के शुरुआती स्थान पर ही हैं, इसलिए तत्काल मंजूरी जरूरी है। कैंसर संस्थान में लगने वाली मशीनों के लिए मुंबई स्थित एटॉमिक इनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड (एइआरबी) की सहमति की आवश्यकता होती है। इसके लिए पूरी परियोजना रिपोर्ट के साथ एइआरबी को आवेदन कर दिया गया है। प्रमुख सचिव ने अधिकारियों को निर्देश दिये कि समयबद्ध ढंग से लक्ष्य निर्धारित किये जाएं, ताकि अगले वर्ष बाह्यï रोगी विभाग चालू कर मरीज देखने की प्रक्रिया शुरू हो सके।
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पद सृजन प्रक्रिया शुरू
सीजी सिटी कैंसर संस्थान के संस्थापक निदेशक व तीनों विभागाध्यक्षों के पद सृजन की प्रक्रिया भी शुरू हो गयी है। इस माह के अंत तक पद सृजन व जरूरी नियुक्तियां पूरी करने का फैसला हुआ है। सबसे पहले निदेशक की नियुक्ति होगी, ताकि कामकाज के निस्तारण में आने वाली दिक्कतें दूर हो सकें।

होम्योपैथी कालेजों की मान्यता भी खतरे में!


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शिक्षकों का अभाव
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-लोक सेवा आयोग से भर्ती न होने से बढ़ी समस्या
-साक्षात्कार से संविदा पर भर्ती की प्रक्रिया भी लटकी
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : होम्योपैथी मेडिकल कालेजों में खाली पद भरने के लिए राज्य लोक सेवा आयोग में अधियाचन से लेकर संविदा पर भर्ती तक की प्रक्रिया शुरू की गयी। इसके बावजूद अब तक खाली पद भरने का इंतजार किया जा रहा है। यही स्थिति रही तो बीएचएमएस की मान्यता पर भी संकट पैदा हो सकता है।
सात राजकीय होम्योपैथिक मेडिकल कालेजों को इस साल भले ही केंद्रीय होम्योपैथी परिषद की मान्यता मिल गयी है किन्तु जिस तरह इन कालेजों के पद खाली हैं, उससे भविष्य में इनकी मान्यता खतरे में पड़ सकती है। इसकी मूल वजह इन कालेजों में शिक्षकों की कमी होना है। इस समय इन कालेजों में शिक्षकों के 104 पद रिक्त हैं, जिनमें रीडर के 39 व प्रवक्ता के 65 पद हैं। इन पदों को भरने के लिए चिकित्सा शिक्षा विभाग ने राज्य लोक सेवा आयोग में अधियाचन भी भेजा, किन्तु अब तक भर्ती नहीं की जा सकी है। इसके पीछे आयोग की ढिलाई के साथ योग्य अभ्यर्थियों का न मिलना भी बड़ा कारण बताया जा रहा है। प्रवक्ता के रूप में भर्ती के लिए परास्नातक होना जरूरी है, किन्तु होम्योपैथी में पर्याप्त परास्नातक न मिलने से दिक्कत आ रही है।
इस समस्या से निपटने के लिए एलोपैथी मेडिकल कालेजों की तर्ज पर इन कालेजों में भी संविदा पर सेवानिवृत्त शिक्षकों को भर्ती करने की रणनीति बनाई गयी। इसके लिए इसी वर्ष 28 जून को विज्ञापन निकाल कर प्रदेश व प्रदेश के बाहर के 65 वर्ष आयु तक के होम्योपैथी शिक्षकों के आवेदन मांगे गए। जानकारी के मुताबिक भारी संख्या में सेवानिवृत्त शिक्षकों ने आवेदन भी किया, किन्तु अब तक भर्ती प्रक्रिया को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका है। इसके लिए जुलाई के दूसरे पखवाड़े में सभी होम्योपैथी कालेजों में साक्षात्कार भी रखे गए किन्तु वे समय पर नहीं हो सके। इस संबंध में प्रमुख सचिव (चिकित्सा शिक्षा) डॉ.अनूप चंद्र पाण्डेय का कहना है कि साक्षात्कार की प्रक्रिया हाल ही में पूरी कर ली गयी है। अब जल्द ही नियुक्तियां कर चिकित्सा शिक्षकों का संकट दूर किया जाएगा।
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खाली हैं 104 पद
लखनऊ : दो रीडर, नौ प्रवक्ता
कानपुर : पांच रीडर, आठ प्रवक्ता
इलाहाबाद : चार रीडर, आठ प्रवक्ता
गाजीपुर : आठ रीडर, दस प्रवक्ता
मुरादाबाद : सात रीडर, नौ प्रवक्ता
फैजाबाद : छह रीडर, 11 प्रवक्ता
आजमगढ़ : सात रीडर, दस प्रवक्ता
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Monday 5 October 2015

फार्मासिस्टों का पूल बना दवा दुकानों में नौकरी


-नियमों की लाचारी-
-फर्जीवाड़े से हजारों दुकानें बंद होने की नौबत
-फार्मासिस्ट भी नौकरी के लिए कर रहे आंदोलन
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डॉ.संजीव, लखनऊ
फार्मासिस्ट संकट अब आमने-सामने की लड़ाई में बदल गया है। एक ओर दवा दुकानदार प्रदेश में पर्याप्त फार्मासिस्ट न होने की बात कहकर फार्मासिस्ट अनिवार्यता समाप्त करने की मांग कर रहे हैं, वहीं फार्मासिस्ट इस बात को गलत करार देते हुए नौकरी के लिए आंदोलन कर रहे हैं। जागरण द्वारा बीते दिनों समाचारीय अभियान नियमों की लाचारी में यह मुद्दा उठाए जाने के बाद औषधि प्रशासन विभाग फार्मासिस्टों का पूल बनाकर उन्हें दवा दुकानों में नौकरी दिलाने की तैयारी कर रहा है।
प्रदेश में इसी वर्ष जून में हर दवा दुकान का नवीनीकरण ऑनलाइन कराने का फैसला हुआ है। इससे फर्जीवाड़ा कर एक से अधिक दवा दुकानों में फार्मासिस्ट प्रमाणपत्र लगाने की बात जगजाहिर हो गयी है। माना जा रहा है कि इस समय प्रदेश में ऐसी एक लाख दवा की दुकानें अवैध ढंग से चल रही हैं। फार्मासिस्ट की मौजूदा उपलब्धता के आधार पर इंतजाम सुनिश्चित भी किये जाएं तो हजारों दुकानें तो तत्काल बंद होने की नौबत आ रही है। इस फर्जीवाड़े के खुलासे के बाद दवा दुकानदार परेशान हैं और वे फार्मासिस्टों की नियुक्ति की शर्त हटाने का दबाव शासन पर बना रहे हैं।
दवा दुकानदारों का कहना है कि न्यायमूर्ति केएल शर्मा आयोग की संस्तुतियों के अनुरूप उन्हें तीन माह का प्रशिक्षण देकर योग्य मान लिया जाना चाहिए, किन्तु फार्मासिस्ट इसका विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि प्रदेश में भारी संख्या में बेरोजगार फार्मासिस्ट हैं। उनकी नौकरी का संकट दूर किया जाना चाहिए। इसके लिए वे आंदोलित भी हैं। इस पर खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव हेमंत राव का कहना है कि फार्मासिस्ट बेरोजगार होने की बात कर रहे हैं और दवा दुकानदार फार्मासिस्ट न मिलने की दुहाई दे रहे हैं। ऐसे में फार्मासिस्टों का पूल बनाकर दवा दुकानदारों को उपलब्ध कराया जाएगा, इससे बेरोजगारी भी दूर होगी और फर्जीवाड़े के कारण दवा दुकानों के बंद होने के संकट का भी समाधान हो जाएगा।
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बिना फार्मासिस्ट दुकानें बंद होंगी
प्रमुख सचिव का कहना है कि ऑनलाइन नवीनीकरण प्रक्रिया में जो दुकानें फर्जी प्रमाणपत्र के आधार पर चलती पाई जाएंगी, उन्हें निलंबित कर दिया जाएगा। नियमानुसार हर दवा दुकान पर फार्मासिस्ट होना जरूरी है, इसलिए बिना फार्मासिस्ट के चलने वाली दुकानें बंद कराई जाएंगी। अभी ऑनलाइन नवीनीकरण प्रक्रिया शुरू हुए महज तीन माह हुए हैं, अगले कुछ महीनों में स्थिति और स्पष्ट हो जाएगी। व्यवस्था नियमों से चलती है और नियमानुसार ऑनलाइन नवीनीकरण के बाद गड़बड़ मिली कोई दुकान नहीं चल सकेगी।
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...तो झोलाछाप कहेंगे बनाओ डॉक्टर
दवा विक्रेताओं द्वारा खुद को योग्य मानकर छोटे से प्रशिक्षण के बाद फार्मासिस्ट बनाए जाने के प्रस्ताव का फार्मासिस्ट संगठन विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह पहल खतरनाक साबित हो सकती है। इस तरह तो झोलाछाप डॉक्टर जनता के बीच वर्षों से प्रैक्टिस करने का दावा कर खुद को डॉक्टर के रूप में मान्यता देने की बात कहने लगेंगे। यही नहीं, डॉक्टरों के यहां कुछ लोग वर्षों से कम्पाउंडर के रूप में काम कर दवा दे रहे हैं, वे भी कुछ प्रशिक्षण देकर फार्मासिस्ट या डॉक्टर बनने का दावा करने लगेंगे।
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अब पैकिंग में आती हैं सब दवाएं
दवा विक्रेताओं का तर्क है कि औषधि एवं सौन्दर्य प्रसाधन अधिनियम 1940 व नियमावली 1945 के अनुसार फार्मेसी चलाने वाले के लिए फार्मासिस्ट रखना अनिवार्य है। पहले डॉक्टर के नुस्खे पर फार्मासिस्ट विभिन्न दवाओं को अलग-अलग मात्रा में पीसकर व फिरक मिलाकर मरीज को खुराक देते थे। अब सभी दवाएं पैकिंग में आती हैं और ब्राण्डेड होती हैं। डॉक्टर के पर्चे पर लिखे टेबलेट, कैप्सूल, सिरप, मलहम या इंजेक्शन आदि कोई भी सामान्य अंग्र्रेजी का जानकार व्यक्ति भी दवा देने में सक्षम है। ऐसे में अब फार्मासिस्ट अनिवार्यता बेमतलब है।

सख्ती से घटे छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति के आवेदक

-बीते वर्ष की तुलना में घट गए बीस लाख अभ्यर्थी
-अभी दस दिन त्रुटियों को ठीक करेंगे छात्र-छात्राएं
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : कई घोटालों व अनियमितताओं के बाद इस बार हुई सख्ती से छात्रवृत्ति और शुल्क प्रतिपूर्ति के लिए आवेदन करने वाले विद्यार्थियों की संख्या काफी घट गयी है। इस बार दशमोत्तर छात्रवृत्ति के लिए पिछले वर्ष की तुलना में लगभग बीस लाख कम अभ्यर्थियों ने आवेदन किया है।
दसवीं के बाद प्रोफेशनल पाठ्यक्रमों तक पढ़ाई न रुकने देने के लिए शासन स्तर पर चलाई जाने वाली छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति योजना के लिए आवेदन की अंतिम तारीख तीस सितंबर थी। इस योजना के तहत दो लाख से कम वार्षिक आय वर्ग के विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति के साथ शुल्क प्रतिपूर्ति का प्रावधान है। बीते वर्षों में इस योजना में जबर्दस्त फर्जीवाड़ा सामने आया और कालेजों ने मनमानी करते हुए फर्जी छात्रों का पंजीकरण दिखाकर करोड़ों रुपये हड़प लिये। इस पर जांच हुई तो कई अधिकारी निलंबित हुए और दर्जनों संस्थाएं काली सूची में डाली गयीं।
इसके बाद पूरी व्यवस्था ऑनलाइन करने के साथ स्क्रूटनी और संपूर्ण जांच-पड़ताल को बढ़ावा दिया गया। इस बार आवेदनों में इस सख्ती का असर साफ दिख रहा है। वर्ष 2014-15 में जहां इस योजना के लिए 54 लाख अभ्यर्थियों ने फार्म जमा किये थे, इस बार यह संख्या अब तक बस 34 लाख ही पार कर सकी है। अधिकारियों के मुताबिक इस वर्ष दशमोत्तर छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति के लिए 74 लाख विद्यार्थियों ने पंजीकरण कराया है, इनमें से अभी 34 लाख ने फार्म जमा किए हैं। 11वीं व 12वीं के आवेदन पहले ही जमा किए जा चुके हैं। अब सिर्फ स्नातक व प्रोफेशनल पाठ्यक्रमों के आवेदनों पर त्रुटियों को ठीक करने के लिए दस दिन समय मिलेगा। इसके बाद छात्र-छात्राएं अंतिम आवेदन पत्र को प्रिंट कर 17 अक्टूबर तक संबंधित संस्थान में जमा कर सकेंगे।
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कहां गायब हो गए 14 लाख विद्यार्थी
छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति के लिए विभिन्न संस्थानों से स्नातक या कोई अन्य प्रोफेशनल पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने वाले विद्यार्थी दूसरे व अन्य वर्षों में नवीनीकरण के लिए आवेदन करते हैं। आंकड़ों के मुताबिक ऐसे लगभग 14 लाख विद्यार्थी तो गायब ही हो गए हैं। पिछले वर्ष इन श्रेणी में 26,52,360 विद्यार्थियों ने छात्रवृत्ति पायी थी और उन्हें इस वर्ष नवीनीकरण के लिए आवेदन करना था। इसके विपरीत महज 12,86,750 ने ही पंजीकरण कराया और आवेदन तो केवल 11,74,780 विद्यार्थियों ने किया।
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आवेदनों की जांच को स्क्रूटनी कमेटी
पिछले वर्षों में हुए फर्जीवाड़े से सबक लेते हुए समाज कल्याण विभाग अब सभी आवेदनों की जांच के लिए स्क्रूटनी कमेटी बनाएगा। इसमें समाज कल्याण उपनिदेशक पीके त्रिपाठी, पिछड़ा वर्ग कल्याण उपनिदेशक शैलेश श्रीवास्तव, अल्पसंख्यक कल्याण उपनिदेशक तारिक अहमद, छात्रवृत्ति प्रभारी सिद्धार्थ मिश्र के साथ कुछ जिला समाज कल्याण अधिकारी भी शामिल हैं। यह कमेटी हर आवेदन की समीक्षा कर शासन को छात्रवृत्ति के लिए संदर्भित करेगी। 

Thursday 1 October 2015

नवजात शिशुओं के इलाज पर डॉक्टरों को प्रोत्साहन भत्ता


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-दिसंबर तक प्रदेश में खुल जाएंगी 50 नवजात शिशु रक्षा इकाइयां
-टीकाकरण बढ़ा, अब बच्चों की मौत रोकने को किए जा रहे प्रयास
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : प्रदेश में टीकाकरण की स्थितियां सुधरी हैं और अब बच्चों की मौत रोकने के प्रयास किए जा रहे हैं। बुधवार को राजधानी में स्वास्थ्य से जुड़े विभिन्न पहलुओं की राज्यस्तरीय समीक्षा बैठक में नवजात शिशुओं का इलाज करने वाले डॉक्टरों को प्रोत्साहन भत्ता देने का एलान किया गया। साथ ही दिसंबर तक प्रदेश में 50 नवजात शिशु रक्षा इकाइयां खोलने की बात भी कही गयी।
मातृ-शिशु कल्याण कार्यक्रमों की समीक्षा के दौरान बताया गया कि प्रदेश के 67 प्रतिशत बच्चे टीकाकरण के दायरे में आ गए हैं, जो पिछले वर्ष के 61 प्रतिशत से अधिक है। अब नवजात शिशुओं की जान बचाने पर अधिक जोर दिया जा रहा है। इसके लिए इस वर्ष दिसंबर तक हर हाल में राज्य में 50 सिक न्यू बॉर्न केयर यूनिट (नवजात शिशु रक्षा इकाइयां) स्थापित हो जाएंगी। वर्ष 2013 में इनकी संख्या सात थी, जो अब बढ़कर 27 हो चुकी हैं। इनसे चिकित्सकों को जोडऩे के लिए प्रोत्साहन भत्ता भी दिया जाएगा। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के निदेशक अमित घोष ने बताया कि प्रदेश में इस समय मरीजों के उत्कृष्ट इलाज के लिए 192 फस्र्ट रेफरल यूनिट (एफआरयू) हैं, जिनकी संख्या बढ़ाकर 300 की जानी है। राज्य सरकार के बजट से 102 डॉयल सेवा की 500 अतिरिक्त एंबुलेंस चलाने की भी योजना है। भारत सरकार के संयुक्त सचिव राकेश कुमार ने कहा कि प्रदेश में नवजात शिशु व मातृ मृत्युदर, सकल प्रजनन दर एवं टीकाकरण से छूटे बच्चों का प्रतिशत अत्याधिकहै। साथ ही डायरिया एवं निमोनिया के कारण बच्चों में हो रहे मृत्युदर भी अत्याधिक है। गर्भावस्था के दौरान महिलाओं की मृत्यु दर कम करने के लिए गंभीर (हाई रिस्क) गर्भावस्था की पहचान, उनका समय पर अस्पताल पहुंचाना व समय पर इलाज सुनिश्चित करना जरूरी है। प्रमुख सचिव अरविंद कुमार ने कहा कि प्रदेश सरकार जच्चा-बच्चा की सुरक्षा को लेकर संकल्पबद्ध है और इसके लिए सकारात्मक कोशिशें हो रही हैं।
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मिलेंगे 25 हजार तक ज्यादा
नवजात शिशुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रोत्साहन भत्ते का भी निर्धारण कर दिया गया है। इसके अंतर्गत नवजात शिशु रक्षा इकाइयों में तैनात होने वाले सरकारी सेवारत बाल रोग विशेषज्ञों को 25 हजार व एमबीबीएस चिकित्सकों को 15 हजार रुपये अतिरिक्त दिए जाएंगे। इसी तरह संविदा पर नियुक्त होने वाले बाल रोग विशेषज्ञों को 25 हजार व एमबीबीएस चिकित्सकों को 20 हजार रुपये अतिरिक्त दिये जाएंगे।