Monday 29 August 2016

रखियो रे शपथ की लाज

'मैं जहां भी प्रवेश करूंगा, सिर्फ बीमारों की मदद के लिए प्रवेश करूंगा। मैं
ऐसे किसी काम से खुद को दूर रखूंगा, जो गलत हो।'

ये दृढ़ पंक्तियां उस शपथ का हिस्सा हैं, जो डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी करके निकले
युवा अपने दीक्षांत समारोह में लेते हैं। इस शपथ में डॉक्टर बनने के बाद उनके
कर्तव्यों व दायित्वों का व्यापक संकल्प निहित होता है, किन्तु कुछ डॉक्टर तो
मानो सब कुछ भूल चुके हैं। सरकारी नौकरी मिल गयी है तो अब काहे का डर। वे गांव
जाएं न जाएं, सरकार तो केवल नोटिस देती रहेगी। इस समय भी जब पूरा प्रदेश
जानलेवा बुखार के ताप से झुलस रहा है, डॉक्टरों की मनमानी रुकने का नाम नहीं ले
रही। 
वे सरकारी डॉक्टर हैं तो नर्सिंग होम उनका इंतजार कर रहे हैं और नर्सिंग होम
वाले डॉक्टर हैं तो पैथोलॉजी का कमीशन प्रतीक्षा में है। कमीशन तो खैर
सर्वव्यापी ठहरा। जैसे पुलिस अपने थाना क्षेत्र के अपराध को बगल के थाने में
ढकेलने की कोशिश करती है, वैसे ही स्वास्थ्य केंद्रों व जिला अस्पतालों के
डॉक्टर थोड़ा भी गंभीर मरीज आते ही उसे मेडिकल कालेज ढकेलने की जुगत में लग
जाते हैं। जैसे पुलिस गंभीर वारदात छिपाने की कोशिश करती है, वैसे ही आजकल
डॉक्टर साहब बुखार की गंभीरता छिपाने में लगे हैं। एक डॉक्टर जब मरीज का डेंगू
बताकर इलाज कर रहे होते हैं, तो सरकारी अस्पताल पहुंच कर वह डेंगू सामान्य
बुखार में कैसे बदल जाता है। मेडिकल कालेज जिसे डेंगू बताता है, सीएमओ साहब उसे
खारिज कर देते हैं। पीएचसी, सीएचसी में डॉक्टरों की फौज तैनात है किन्तु नोएडा
के एक ही गांव में दो हफ्ते में दर्जन भर मौतें डॉक्टर साहब को पता नहीं चलतीं।
इसकी जिम्मेदारी जिन सीएमओ साहब पर है, वे तो और मौज में हैं। वे शासन तक सही
जानकारी भेजें न भेजें, इलाज करें या न करें, उन पर कार्रवाई नहीं हो सकती,
इसका भरोसा है उन्हें। कुछ डॉक्टरों के इस 'चरित्रÓ से सिर्फ पीडि़त ही नहीं,
वे डॉक्टर भी दुखी हैं जो मां-बाप के सपनों को पूरा करने के लिए डॉक्टर बने थे।
जनता भी निराश है।  हालांकि यह पब्लिक है... ये सब जानती है। अभी तो पब्लिक
दोहरा रही है दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां...
पक गयी हैं आदतें बातों से सर होंगी नहीं
कोई हंगामा करो ऐसे गुजर होगी नहीं।।

Wednesday 24 August 2016

अफसर चलवाते अवैध अल्ट्रासाउंड, घट रहीं बेटियां


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-14 साल में 1000 बेटों की तुलना में बेटियां 916 से घटकर 883 हुईं
-निरीक्षण, छापे व कानून के पालन में स्वास्थ्य विभाग फिसड्डी साबित
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : एक ओर ओलंपिक में बेटियां देश का नाम रोशन कर रही हैं, वहीं उत्तर प्रदेश में उन्हें अजन्मी ही मार डाला जा रहा है। मंगलवार को विधान मंडल में पेश भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में इसके लिए अफसरों की ढिलाई से अवैध अल्ट्रासाउंड संचालन को जिम्मेदार करार दिया गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक 2001 में उत्तर प्रदेश में 1000 बेटों के मुकाबले 916 बेटियां थीं। 2011 में यह संख्या घटकर 902 हुई किंतु महज चार साल बाद 2014-15 में इनकी संख्या तेजी से गिरकर 883 हो गयी। रिपोर्ट इन स्थितियों के पीछे स्वास्थ्य विभाग के अफसरों की लापरवाही को जिम्मेदार बता रही है। इसके मुताबिक विभाग द्वारा अल्ट्रासोनोग्र्राफी केंद्रों के पंजीकरण के नवीनीकरण के आवेदन को समय से प्रस्तुत करना सुनिश्चित नहीं किया गया। तमाम केंद्र बिना पंजीकरण के काम करते रहे। प्रभावी अनुश्रवण व निरीक्षण न होने से अवैध ढंग से अल्ट्रासाउंड किये जाते रहे। 68 फीसद अल्ट्रासाउंड तो बिना किसी डॉक्टर की सलाह के ही कर दिये गए। विभाग ने अल्ट्रासोनोग्र्राफी उपकरणों की बिक्री का पता लगाने के लिए कोई कार्यवाही नहीं की। अधिकारियों को प्रदेश में लगी अल्ट्रासाउंड मशीनों की स्थापना व संख्या के बारे में जानकारी नहीं थी। अल्ट्रासाउंड केंद्रों से मासिक रिपोर्ट भी नहीं प्राप्त हो रही थी।
बेच दी सील मशीन 
राज्य में वर्ष 2014-15 में 18,488 निरीक्षणों के लक्ष्य के सापेक्ष मात्र 4,681 (25 फीसद) निरीक्षण ही किये गए। जो अल्ट्रासाउंड मशीनें सील की गयी थीं, उनके बारे में भी जानकारी नहीं थी। एक मशीन तो सील बंद होते हुए बेच दी गयी और दो अन्य मशीनें दूसरी जगह भेज दी गयीं। 58 फीसद अल्ट्रासाउंड केंद्र गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम 1994 का उल्लंघन कर रहे थे, इसके बावजूद इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। राज्य पर्यवेक्षक बोर्ड और राज्य व जिला सलाहकार समितियों की बैठकें ही नियमित रूप से नहीं हुईं।
अवैध गर्भपात को बढ़ावा
773 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में से मात्र छह फीसद में ही चिकित्सकीय गर्भपात की सुविधा उपलब्ध है। इन 46 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों के अलावा प्रदेश के ग्र्रामीण क्षेत्रों व आसपास के कस्बों में अवैध गर्भपात की संभावना से इंकार नहीं किया जा सका। यही नहीं 2083 नर्सिंग होम्स में से मात्र 548 (26.3 प्रतिशत) गर्भपात के लिए पंजीकृत थे, शेष नर्सिंग होम्स में अवैध ढंग से यह गतिविधि हो रही है। हरदोई के एक अस्पताल में डॉक्टर ने तीन से छह तक की गर्भावस्था में गर्भपात कर दिया। सूचना देने पर भी विभाग ने जांच नहीं की। ऐसी घटनाएं अवैध गर्भपात को बढ़ावा देने वाली हैं।

...तो यूपी में जन्म के बाद भी मारी जा रहीं बेटियां

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-1000 जन्मी बच्चियों में से 55 की साल भीतर होती मौत
-कन्या शिशु मृत्यु दर में देश के शीर्ष राज्यों में शामिल प्रदेश
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : उत्तर प्रदेश में बेटियों को सिर्फ गर्भावस्था में ही नहीं, जन्म लेने के बाद भी मारा जा रहा है। यहां जन्म लेने वाली 1000 बच्चियों में से 55 की साल भीतर मौत हो जाती है। इस मामले में प्रदेश देश के शीर्ष राज्यों में शामिल है।
विधान मंडल में मंगलवार को पेश भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट के मुताबिक कन्या शिशु मृत्यु दर के मामले में उत्तर प्रदेश पूरे देश का नेतृत्व कर रहे राज्यों में शामिल है। देश में औसतन 1000 कन्याओं के जन्म लेने पर साल भीतर 42 की मौत होती है, वहीं उत्तर प्रदेश में उनकी संख्या 53 है। उत्तर प्रदेश केवल मध्य प्रदेश (59), असम (57), उड़ीसा (54) से पीछे है। यह स्थिति तब है, जबकि जननी सुरक्षा योजना पांच साल में 2380.11 करोड़ रुपये आवंटित किये गए, जिसमें से 2196.56 करोड़ रुपये खर्च भी किये गए। वित्तीय वर्ष 2014-15 में 14 फीसद धनराशि का प्रयोग नहीं किया गया और आवंटित 513.03 करोड़ रुपये में से 71.31 करोड़ रुपये बच गए। संस्थागत प्रसव के लिए लक्ष्य मात्र 1.24 करोड़ था। यह पंजीकृत गर्भवती महिलाओं के सापेक्ष 46 प्रतिशत था। अपर्याप्त सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं, सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर पहुंच की कमी और प्राइवेट नर्सिंग होम व चिकित्सालय के व्यय को वहन न कर पाने के कारण गरीब व ग्र्रामीण घरेलू प्रसव पर निर्भर रहने को विवश थे। औसतन 42 फीसद प्रसव असुरक्षित स्थितियों में होने की बात सामने आयी। परिवार नियोजन कार्यक्रम के लिए जारी 380.57 करोड़ रुपये में से 49 फीसद धनराशि का तो प्रयोग ही नहीं किया गया। इसके पीछे पारदर्शी प्रणाली का अभाव मूल कारण माना गया है।
सीएमओ की लापरवाही
रिपोर्ट के मुताबिक संस्थागत प्रसव में वृद्धि के लिए सरकारी भवनों में संचालित होने वाले उपकेंद्रों में कम से कम 50 फीसद उपकेंद्रों को मान्यता प्रदान की जानी थी। लेखा परीक्षा में पाया गया कि मार्च 2015 तक राज्य में सरकारी भवनों में चलने वाले कुल 17,219 उपकेंद्रों के सापेक्ष मात्र 7,226 उपकेंद्रों (42 फीसद) को ही मान्यता दी गयी। जनपद में अधिक से अधिक उपकेंद्रों को मान्यता प्रदान करने की जिम्मेदारी मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) की थी। उनकी लापरवाही से पूरे कार्यक्रम के उद्देश्य की पूर्ति प्रभावित हुई। जांच के दौरान विभाग ने इस लापरवाही का कारण भी नहीं बताया।

वित्तीय वर्ष में बदलाव पर केंद्र ने मांगी राय

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- प्रदेश में भी बजट की प्रक्रिया बदलने की तैयारी
- प्लॉन व नॉनप्लॉन का भेद भी हो जाएगा खत्म
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : फरवरी में ही आम बजट पेश करने की परंपरा में बदलाव की चर्चा के बीच केंद्र ने राज्य सरकारों से रायशुमारी शुरू की है। इस बाबत केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने प्रदेश सरकार को पत्र भेजकर वित्तीय वर्ष में बदलाव पर राय मांगी है।
अभी आम बजट फरवरी में पेश होता है और अप्रैल से नया वित्तीय वर्ष शुरू कर उस पर अमल शुरू हो जाता है। अब केंद्र सरकार इसमें बदलाव का प्रस्ताव कर रही है। इस बाबत राज्य सरकार को पत्र भेजकर पूछा गया है कि नया वित्तीय वर्ष कब शुरू किया जाना चाहिए। इसमें एक प्रस्ताव कैलेंडर वर्ष को ही वित्तीय वर्ष में बदलने यानी एक जनवरी से वित्तीय वर्ष शुरू करने का भी है। इसके अलावा जुलाई व अक्टूबर से वित्तीय वर्ष शुरुआत को आधार बनाने की बात भी प्रस्ताव का हिस्सा है। प्रदेश सरकार का वित्त महकमा इस प्रस्ताव पर विचार कर रहा है और जल्द ही इस बाबत राय भेज दी जाएगी।
इसके अलावा राज्य सरकार भी बजट की मौजूदा प्रक्रिया में कुछ बदलाव करने की तैयारी में है। केंद्र सरकार के बजट में प्लान व नॉनप्लान का भेद समाप्त कर दिया गया है। उत्तर प्रदेश सरकार के बजट में भी इस भेद को समाप्त करने की तैयारी चल रही है। इसके अलावा अभी बजट पेश करते समय धनराशि हजार के गुणक में प्रस्तुत की जाती है। अब इसे लाख के गुणक में प्रस्तुत करने का प्रस्ताव किया गया है। अगले बजट से इस पर अमल की उम्मीद है।
आ सकता एक और अनुपूरक बजट
उत्तर प्रदेश सरकार चुनावी वर्ष में एक और अनुपूरक बजट ला सकती है। मंगलवार को विधान मंडल में अब तक का सबसे बड़ा अनुपूरक बजट पेश करने के बाद सरकार कुछ माह बाद दूसरा अनुपूरक बजट भी पेश कर सकती है। वित्तीय वर्ष 2016-17 के आम बजट से पहले भी वित्तीय वर्ष 2015-16 के लिए दूसरा अनुपूरक बजट पेश किया गया था। अधिकारियों के मुताबिक चुनावी वर्ष में सरकार के सामने चुनौतियां भी बदली होंगी, इसलिए दूसरा अनुपूरक बजट दिसंबर या जनवरी में भी पेश किया जा सकता है।

राज्य से बाहर पढऩे वाले पिछड़ों को छात्रवृत्ति नहीं

-पिछड़ा वर्ग दशमोत्तर छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति नियमावली बदली
-वरीयता तय करने में अंक बनेंगे आधार, पाठ्यक्रम नहीं बदल सकेंगे
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : राज्य से बाहर पढऩे वाले पिछड़े वर्ग के विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति का लाभ नहीं मिलेगा। पिछड़े वर्ग विभाग की दशमोत्तर छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति नियमावली में बदलाव कर यह फैसला लिया गया है।
विभाग की पुरानी नियमावली जुलाई 2014 से लागू की गयी। नयी नियमावली में अप्रैल से सत्र की शुरुआत मानकर इसे शिक्षण सत्र 2016-17 से लागू करने की बात कही गयी है। अभी तक देश भर में कहीं भी पढऩे वाले प्रदेश के मूल निवासी पिछड़े वर्ग के विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति मिलती थी। अब सिर्फ उत्तर प्रदेश में पढऩे वाले छात्र-छात्राओं को योजना का लाभ मिलेगा। साथ उनके अभिभावकों की आय सीमा दो लाख रुपये वार्षिक से अधिक नहीं होनी चाहिए। अल्पसंख्यक श्रेणी के पिछड़े वर्ग के अभ्यर्थियों को अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के माध्यम से आवेदन करना होगा।
नयी नियमावली में वरीयता क्रम तय करने के लिए विद्यार्थी को पिछली कक्षा में मिले अंक आधार बनेंगे। निजी क्षेत्रों के प्रोफेशनल पाठ्यक्रमों में प्रवेश लेने वाले उन्हीं विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति मिलेगी, जिन्होंने 12वीं की परीक्षा में 60 फीसद अंक प्राप्त किये हों। गैरप्रोफेशनल पाठ्यक्रमों में यह बाध्यता नहीं होगी। उत्तर प्रदेश प्राविधिक विश्वविद्यालय से संबद्ध संस्थानों में उन्हीं विद्यार्थियों को योजना का लाभ मिलेगा, जिन्होंने विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा के माध्यम से प्रवेश लिया हो। मैनेजमेंट कोटे में प्रवेश पाने वाले उन्हीं विद्यार्थियों को इसमें शामिल किया जाएगा, जिन्होंने विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर ऑनलाइन आवेदन के बाद प्रवेश पाया हो। ऐसे विद्यार्थी इस योजना के पात्र नहीं होंगे, जो किसी एक व्यवसायिक पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने के बाद उसी स्तर के किसी दूसरे पाठ्यक्रम में प्रवेश लें। यदि कोई विद्यार्थी किसी एक पाठ्यक्रम को अधूरा छोड़कर दूसरे पाठ्यक्रम में प्रवेश लेता है, तो उसे छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति नहीं मिलेगी।
कम्प्यूटर प्रशिक्षण में बढ़ी प्रतिपूर्ति राशि
राब्यू, लखनऊ: पिछड़ा वर्ग विभाग के अभ्यर्थियों को ओ लेवल कम्प्यूटर प्रशिक्षण दिलाने के लिए प्रतिपूर्ति धनराशि दस हजार रुपये से बढ़ाकर पंद्रह हजार रुपये करने का फैसला हुआ है। प्रमुख सचिव (पिछड़ा वर्ग कल्याण) मनोज सिंह ने इस आशय के आदेश जारी किये हैं। जिनमें कहा गया है कि अभी तक वर्ष में एक बार ही प्रवेश को मान्यता मिलती थी, अब वर्ष में दो बार जुलाई व जनवरी में प्रवेश हो सकेंगे। अभी तक गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वालों को इस सुविधा का लाभ मिलता था। अब आय सीमा बढ़ाकर एक लाख रुपये वार्षिक कर दी गयी है। 

कोषागारों में दूसरे व चौथे शनिवार को छुट्टी का प्रस्ताव

-बैंकों में छुट्टी होने से ट्रेजरी में कामकाज न होने का तर्क
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : बैंकों में महीने में दो शनिवारों को छुट्टी के बाद कोषागारों में भी दूसरे व चौथे शनिवार को छुट्टी का प्रस्ताव किया गया है। शासन स्तर पर जल्द ही इस प्रस्ताव पर फैसला होने की उम्मीद है।
प्रदेश सरकार का आर्थिक कामकाज 78 कोषागारों से संचालित होता है। इन कोषागारों में अभी सोमवार से शनिवार तक सप्ताह में छह दिन काम होता है। हाल ही में कोषागार निदेशालय ने वित्त विभाग को पत्र भेजकर महीने के दूसरे व चौथे शनिवार को कोषागारों में भी छुट्टी रखने का प्रस्ताव किया है। प्रस्ताव में कहा गया है कि कोषागारों का काम सीधे बैंकिंग से जुड़ा होता है। पहले सभी बैंकों में शनिवार को दोपहर तक काम होता था, ऐसे में कोषागारों को खोलने की उपयोगिता भी थी। अब सभी बैंक माह के दूसरे व चौथे शनिवार को बंद रहते हैं। इसलिए कोषागारों में इन दो दिनों में कोई काम नहीं होता है। इसी के मद्देनजर कोषागारों में दूसरे व चौथे शनिवार को छुïट्टी की जानी चाहिए। सचिवालय सहित राज्य स्तर के कई कार्यालयों में पहले से शनिवार को अवकाश रहता है। कोषागार कर्मचारियों द्वारा लंबे समय से शनिवार को अवकाश की मांग भी की जा रही है। प्रस्ताव में कहा गया है कि इससे उनकी आधी मांग भी पूरी हो जाएगी। प्रमुख सचिव (वित्त) राहुल भटनागर भी इस प्रस्ताव से सहमत हैं। उनकी सहमति के बाद कोषागारों में छुट्टी का प्रस्ताव मुख्यमंत्री के पास भेजा गया है। जल्द ही इस पर अंतिम फैसला होने की उम्मीद है। इस संबंध में कोषागार निदेशक लोरिक यादव ने बताया कि दूसरे व चौथे शनिवारों को कोषागारों में कोई काम नहीं होता है। इन दोनों दिन कोषागार खुलने की कोई उपयोगिता न होने के कारण कोषागार से जुड़े अधिकारी व कर्मचारी भी छुट्टी की मांग कर रहे थे। इस प्रस्ताव पर अमल के बाद कर्मचारी उत्साहित होंगे और जिसका परिणाम निश्चित रूप से सकारात्मक कार्यशैली के रूप में सामने आएगा।

Monday 22 August 2016

छिपाई जा रहीं डेंगू मरीजों की सूचनाएं


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-निजी पैथोलॉजी व नर्सिंग होम संचालक बढ़ा रहे मुसीबत
-कार्रवाई भी नहीं कर रहे स्वास्थ्य विभाग के अफसर
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : डेंगू तेजी से पांव पसार रहा है और निजी पैथोलॉजी व नर्सिंग होम संचालक इसमें मुसीबत बढ़ा रहे हैं। वे सूचनाएं छिपा रहे हैं और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी उन पर कार्रवाई भी नहीं कर रहे।
प्रदेश भर में डेंगू के मरीज सामने आ रहे हैं। निजी अस्पतालों में लोगों का इलाज भी हो रहा है। प्लेटलेट चढ़ाने के नाम पर मरीजों से वसूली भी की जा रही है। इसके बावजूद सरकारी दावे महज 20 मरीजों तक सिमटे हैं।  कानपुर के गणेश शंकर विद्यार्थी स्मारक चिकित्सा महाविद्यालय ने 12 व लखनऊ के संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान ने छह डेंगू मरीज भर्ती होने की सूचना दी है। नियमानुसार निजी पैथोलॉजी संचालकों व नर्सिंग होम प्रबंधकों को डेंगू का मरीज होने की पुष्टि होते ही तुरंत मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) को सूचना देनी चाहिए, किंतु ऐसा नहीं हो रहा है। सीएमओ भी इस पूरी प्रक्रिया को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं, इसलिए अराजकता बढ़ती जा रही है। स्वास्थ्य महानिदेशालय स्तर पर भी सीएमओ या अन्य लापरवाह अफसरों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।
सीएमओ हुए निरंकुश
डेंगू व अन्य संक्रामक बीमारियों पर नियंत्रण के लिए अपर निदेशक डॉ.गीता यादव की ओर से सीएमओ को कई पत्र लिखे जा चुके हैं। उनसे स्वयं जाकर नर्सिंग होम्स की पड़ताल करने को कहा गया किंतु सीएमओ सक्रिय ही नहीं होते। एक वरिष्ठ अधिकारी ने तो यहां तक कहा कि सीएमओ निरंकुश हो गए हैं। उनका स्वास्थ्य महानिदेशक तक कुछ नहीं बिगाड़ सकते। अधिकांश सीएमओ शासन-सत्ता से अपनी निकटता का हवाला देकर मनमानी करते हैं, किंतु उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती है। यही हाल बड़े अस्पतालों के निदेशकों व मुख्य चिकित्सा अधीक्षकों का भी है।
न बताने पर हो कार्रवाई
डेंगू व अन्य संक्रामक रोगों पर नियंत्रण के प्रभारी संयुक्त निदेशक डॉ.एके शर्मा स्वीकार करते हैं कि निजी पैथोलॉजी व नर्सिंग होम संचालक सही जानकारी नहीं दे रहे हैं। इससे निपटने के लिए जानकारी न देने पर जुर्माना व मुकदमा दर्ज कराने सहित कठोर कार्रवाई की संस्तुति शासन को की गयी है। नगर विकास विभाग के साथ मिलकर डेंगू से निपटने के लिए नियम बनाने की सिफारिश भी की गयी है। इसमें जानकारी छिपाने वाले चिकित्सकीय संस्थाओं के खिलाफ कार्रवाई के अलावा जलभराव के जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई का प्रस्ताव भी शामिल किया गया है।
असाध्य रोगों में शामिल
मेडिकल कालेजों में भी डेंगू के इलाज को लेकर गंभीरता नहीं बरती जा रही है। यह स्थिति तब है जबकि प्रदेश सरकार डेंगू को असाध्य रोगों में शामिल कर मुफ्त इलाज के निर्देश दे चुकी है। चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक डॉ.वीएन त्रिपाठी ने बताया कि मेडिकल कालेजों के प्राचार्यों को स्पष्ट निर्देश दे दिये गए हैं कि डेंगू के मरीजों का पूरा इलाज असाध्य रोगों के लिए आवंटित बजट से करें। इसमें कोई ढिलाई बर्दाश्त नहीं की जाएगी। डेंगू के मरीज का इलाज से इनकार करने वालों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश भी दे दिये गए हैं।

डॉक्टर बनने को एक ही काउंसिलिंग से होंगे प्रवेश

- संयुक्त काउंसिलिंग से भरेंगी बीडीएस व एमबीबीएस की सात हजार सीटें
- सभी सरकारी व निजी चिकित्सा शिक्षा संस्थानों के लिए भाग लेना अनिवार्य
राज्य ब्यूरो, लखनऊ : नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंटरेंस टेस्ट (नीट) की संयुक्त काउंसिलिंग से प्रदेश में एमबीबीएस व बीडीएस की सात हजार सीटें भरेंगी। शनिवार को शासन ने निजी मेडिकल व डेंटल कालेजों और विश्वविद्यालयों के लिए भी इसी काउंसिलिंग के माध्यम से प्रवेश लेने का आदेश जारी कर दिया।
सर्वोच्च न्यायालय ने निजी मेडिकल व डेंटल कालेजों के लिए नीट के माध्यम से प्रवेश अनिवार्य करने का आदेश दिया था। प्रदेश सरकार ने राजकीय मेडिकल व डेंटल कालेजों के लिए भी नीट को अंगीकार किया था। चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक ने 16 जुलाई को सभी कालेजों में नीट की प्रादेशिक मेरिट सूची के माध्यम से संयुक्त काउंसिलिंग का हिस्सा बनाकर प्रवेश लेने का प्रस्ताव किया था। इसके बाद बीते नौ अगस्त को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी इसी आशय के निर्देश दिये हैं। इस पर चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव डॉ.अनूप चंद्र पाण्डेय ने आदेश जारी कर सभी राजकीय मेडिकल कालेजों, राजधानी लखनऊ के किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, सैफई (इटावा) के उत्तर प्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय, निजी क्षेत्र के मेडिकल व डेंटल कालेजों, निजी व डीम्ड विश्वविद्यालयों और अल्पसंख्यक संस्थानों में नीट की संयुक्त काउंसिलिंग से ही प्रवेश लेना अनिवार्य कर दिया है। नीट की प्रादेशिक मेरिट लिस्ट से इन कालेजों व विश्वविद्यालयों के एमबीबीएस व बीडीएस पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए कंबाइंड काउंसिलिंग बोर्ड भी चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक की अध्यक्षता में गठित कर दिया गया है। काउंसिलिंग बोर्ड में प्रमुख सचिव (चिकित्सा शिक्षा) व महानिदेशक द्वारा नामित एक-एक सदस्य के साथ राजकीय मेडिकल कालेजों के तीन प्राचार्य सदस्य होंगे। इनमें अनुसूचित जाति, अन्य पिछड़ा वर्ग व अनारक्षित वर्ग के एक-एक प्राचार्य शामिल होंगे। काउंसिलिंग में सरकारी कालेजों की 1544 सीटों सहित एमबीबीएस व बीडीएस की कुल सात हजार सीटें भरी जाएंगी। काउंसिलिंग से पहले यदि किसी कालेज को भारतीय चिकित्सा परिषद की मान्यता मिल जाती है, तो उन सीटों को भी काउंसिलिंग में शामिल कर लिया जाएगा। 

दोगुने से ज्यादा फीस कराने में सफल हुए निजी कालेज!


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-शासन पर दबाव बनाकर मेडिकल व डेंटल कालेजों ने बढ़वाई फीस
-अगले सप्ताह हो सकती घोषणा, भरी जानी हैं साढ़े पांच हजार सीटें
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : प्रदेश के निजी मेडिकल व डेंटल कालेज शासन स्तर पर दबाव बनाकर अपनी फीस दोगुने से अधिक कराने में सफल हो गए हैं। अगले सप्ताह इस बाबत घोषणा होने की उम्मीद है। निजी कालेजों में एमबीबीएस व बीडीएस की साढ़े पांच हजार सीटें भरी जानी हैं।
उत्तर प्रदेश में चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र में कुल 65 निजी कॉलेज हैं। इनमें सर्वाधिक 23 डेंटल कॉलेज हैं। इनके अलावा 21 मेडिकल, 11 यूनानी, आठ आयुर्वेदिक व दो होम्योपैथी कॉलेज भी निजी क्षेत्र द्वारा संचालित हैं। अभी तक निजी कॉलेज अपनी-अपनी एसोसिएशन के माध्यम से अलग प्रवेश परीक्षा कराकर भर्ती कर लेते थे। इस कारण इनकी मनमानी भी चलती थी और फीस वसूली में तो कोई अंकुश ही नहीं था। नीट लागू होने के बाद इन कॉलेजों को अपनी प्रवेश परीक्षा के माध्यम से प्रवेश लेने का मौका नहीं मिला, तो शासन स्तर पर दबाव बनाकर फीस बढ़वाने की मुहिम शुरू कर दी।
उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार निजी मेडिकल व डेंटल कालेज इसमें सफल भी हो गए हैं। पूर्व निर्धारित फीस में दोगुने से अधिक तक की वृद्धि प्रस्तावित की गयी है। अगले सप्ताह इस बाबत आदेश जारी होने की उम्मीद है। वर्ष 2005 में निजी मेडिकल कालेजों कालेजों के एमबीबीएस पाठयक्रम में प्रवेश लेने वाले छात्र-छात्राओं के लिए 4.10 लाख रुपये प्रति वर्ष शुल्क निर्धारित किया गया था। इस वर्ष नौ से दस लाख रुपये के बीच विभिन्न कालेजों की फीस निर्धारित की गयी है। इसी अनुपात में बीडीएस पाठ्यक्रमों की फीस भी बढ़ाई गयी है। प्रदेश के 23 डेंटल व 21 मेडिकल कालेजों में साढ़े पांच हजार सीटें हैं। इनमें से चार मेडिकल कालेजों को तो इसी साल मान्यता मिली है। इन सभी सीटों पर प्रवेश नीट की काउंसिलिंग के माध्यम से होंगे। काउंसिलिंग के लिए पंजीकरण प्रक्रिया भी शुरू हो गयी है।

सीएमओ की ढिलाई से टूट रहा साझेदारी का हौसला

-परिवार नियोजन में निजी क्षेत्र की सहभागिता में आ रही बाधाएं
-दो सप्ताह में दस फीसद लाभार्थियों का सत्यापन कराने के निर्देश
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : परिवार नियोजन में निजी क्षेत्र को जोड़कर परिवार कल्याण कार्यक्रम को दिशा देने की स्वास्थ्य विभाग की हौसला साझेदारी योजना प्रभावी साबित नहीं हो रही है। अधिकांश जिलों में सीएमओ की ढिलाई से साझेदारी का हौसला टूट रहा है।
स्वास्थ्य विभाग की हौसला साझेदारी योजना में निजी क्षेत्र के चिकित्सकों व अस्पतालों को जोड़ा जाता है। इसमें प्रसव कराने वाले चिकित्सकों व अस्पतालों को मानदेय का भुगतान किया जाता है। तमाम कोशिशों के बावजूद यह योजना प्रभावी नहीं साबित हो पा रही है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के निदेशक आलोक कुमार व स्वास्थ्य विभाग की तकनीकी सहयोग इकाई के अधिशासी निदेशक विकास गोथलवाल ने निजी क्षेत्र के साथ योजना की समीक्षा की तो पता चला कि सीएमओ के स्तर पर बेहद लापरवाही हो रही है। सीएमओ की ढिलाई के कारण समय पर भुगतान नहीं हो पाते हैं और परिणामस्वरूप निजी क्षेत्र इस अभियान में अधिक रुचि नहीं ले रहा है। महिलाओं के गंभीर हो जाने की स्थिति में अधिक खर्च के भुगतान की बाधाओं का मसला भी उठा। तय हुआ कि शासन स्तर पर दिशा-निर्देश जारी किये जाएंगे। जिला अस्पतालों के मुख्य चिकित्सा अधीक्षकों को इसके लिए जिम्मेदार बनाने का फैसला हुआ।  मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को निर्देश दिये दिये गए कि वे परिवार नियोजन के लिए नियत सेवा दिवसों पर निजी चिकित्सालयों का भ्रमण कर सेवा की गुणवत्ता का आकलन करें। दो सप्ताह के भीतर दस फीसद लाभार्थियों का सत्यापन करना भी सुनिश्चित करें। निजी चिकित्सकों की समस्याओं का समाधान राज्य स्तरीय टास्क फोर्स की मदद से कराने का आश्वासन दिया गया।

संयुक्त वामपंथी मुहिम की शुरुआत भी काशी से

-छह वामपंथी दलों ने किया मिल कर चुनाव लडऩे का फैसला
-28 अगस्त को वाराणसी में होगा पूर्वांचल का संयुक्त सम्मेलन
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : प्रदेश में सक्रिय छह वामपंथी दलों ने मिल कर विधानसभा चुनाव मैदान में उतरने का फैसला किया है। इनकी संयुक्त मुहिम की शुरुआत भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस से होगी।
जनता दल (यू) के नेता नीतीश कुमार हों या कांग्र्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, प्रदेश में विधानसभा चुनाव अभियान की शुरुआत के लिए वाराणसी का चयन किया गया। अब वामपंथी दलों भी अपने अभियान की शुरुआत वाराणसी से करने जा रहे हैं। शुक्रवार को राजधानी स्थित माकपा के प्रदेश मुख्यालय में हुई छह राजनीतिक दलों की संयुक्त समिति की बैठक में तय हुआ कि 28 अगस्त को वाराणसी में पूर्वांचल का संयुक्त सम्मेलन किया जाएगा। इसमें वाराणसी, गोरखपुर, मिर्जापुर व आजमगढ़ मंडल के कार्यकर्ताओं का सम्मेलन होगा। चार सितंबर को मुरादाबाद में तराई क्षेत्र और दस सितंबर को मथुरा में पश्चिमी उत्तर का संयुक्त सम्मेलन होगा। इन सम्मेलनों में विधानसभा चुनाव की रणनीति के साथ जन संघर्ष की कार्ययोजना भी बनेगी। तय हुआ कि छह वामपंथी दल सीपीआइ, सीपीएम, सीपीआइ (एमएल), एसयूसीआइसी, फॉरवर्ड ब्लॉक व आरएसपी प्रदेश में मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ेंगे।  अगस्त के अंत में संयुक्त बैठक कर रणनीति व सीटों आदि का ऐलान किया जाएगा। समान विचारधारा के छोटे दलों के साथ तालमेल का प्रस्ताव भी पार्टियों के केंद्रीय नेतृत्व को भेजा जाएगा। बैठक में डॉ.गिरीश, डॉ.हीरालाल यादव, रामजी राय, जगन्नाथ वर्मा, डॉ.विश्वास, अरविंद राज स्वरूप, इम्तियाज अहमद, प्रेमनाथ राय, बालेंदु कटियार आदि उपस्थित थे।

लोग डेंगू से मर रहे, सीएमओ आकड़े छिपा रहे

-स्वास्थ्य विभाग के अनुसार प्रदेश में सिर्फ बीस को डेंगू, मरे केवल दो
-सरकारी दावे धड़ाम, डेंगू वार्ड बनाने की औपचारिकता तक सिमटी रोकथाम
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : डेंगू को लेकर प्रदेश का स्वास्थ्य विभाग गंभीर नहीं है। लोग डेंगू से मर रहे हैं किंतु मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) आकड़े छिपाने में जुटे हैं। हालात ये हैं कि स्वास्थ्य विभाग के अनुसार प्रदेश में सिर्फ बीस लोगों को डेंगू हुआ है और जानें तो केवल दो गयी हैं।
लगभग हर जिले से डेंगू के मरीज सामने आ रहे हैं। इसके विपरीत स्वास्थ्य विभाग हर जिला अस्पताल व मेडिकल कालेजों से संबंद्ध अस्पतालों में अलग डेंगू वार्ड बनाने की औपचारिकता कर शांत हो गया है। सर्वाधिक लापरवाही मुख्य चिकित्सा अधिकारियों के स्तर पर हो रही है। डेंगू की सही जानकारी ही नहीं भेजी जा रही है। शुक्रवार तक महज बीस डेंगू के मरीज सामने आने की बात कही जा रही है। इनमें भी सिर्फ दो लोगों की मौत आकड़ों में दर्ज है। ये दो भी वे लोग हैं, जिनकी मृत्यु चर्चा में आ गयी थी। राष्ट्रीय लोकदल के प्रदेश अध्यक्ष रहे मुन्ना सिंह की डेंगू के कारण संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में मृत्यु हुई थी। इससे पहले सिविल अस्पताल में उनके इलाज में लापरवाही का आरोप लगने पर सरकार ने जांच के आदेश दिये थे। दारोगा केजी शुक्ला की डेंगू से मौत पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने परिवारीजन को बीस लाख रुपये सहायता देने का ऐलान किया था। अधिकारी हर जिला अस्पताल में दस बेड का डेंगू वार्ड बनाने का दावा कर रहे हैं किंतु वहां डॉक्टरों की उपलब्धता ही नहीं है। अस्पतालों में दवाएं न मिलने की शिकायतें भी आ रही हैं।
खोखला एलर्ट मोड
गंभीर परिस्थितियों में मरीज मेडिकल कालेज जाते हैं किंतु वहां क्लीनिशियन मरीजों को देखते तक नहीं हैं और वे जूनियर डॉक्टरों की दया के मोहताज रहते हैं। यह स्थिति तब है, जबकि चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक डॉ.वीएन त्रिपाठी का दावा है कि मेडिकल कालेजों को डेंगू के लिए 'एलर्ट मोडÓ में रखा गया है। ब्लड बैंकों में प्लेटलेट संरक्षित करने के निर्देश दिये गए हैं और किसी भी मरीज को बिना इलाज न लौटने देने को कहा गया है।
विधानसभा में उठेगा मुद्दा
भारतीय जनता पार्टी डेंगू की रोकथाम व इलाज में विफलता का मुद्दा विधानसभा में उठाएगी। पार्टी के मुख्य सचेतक डॉ.राधा मोहन दास अग्र्रवाल ने कहा कि बीमारी की अनदेखी किये जाने के कारण सबसे अधिक समस्या हो रही है। अधिकारियों के स्तर पर सही जानकारी न देकर 'अंडर रिपोर्टिंगÓ की जा रही है। विधानसभा की आश्वासन समिति के अध्यक्ष सतीश महाना का कहना है कि हर साल हर साल डेंगू फैलता है किंतु सरकार चिंता ही नहीं करती। सही रणनीति बने और उस पर प्रभावी अमल हो तो डेंगू के कारण होने वाली मौतों को रोका जा सकता है। भाजपा इस मुद्दे को जोर-शोर से अगले सप्ताह शुरू हो रहे विधानसभा सत्र में उठाएगी।
दिन में पहनें पूरे कपड़े
डेंगू की रोकथाम के प्रभारी संयुक्त निदेशक (मलेरिया) डॉ.एके शर्मा का दावा है कि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों के स्तर तक बुखार के हर मरीज की स्लाइड बनाकर डेंगू की जांच कराने के निर्देश दिये गए हैं। 37 जगहों पर डेंगू की मुफ्त जांच की सुविधा है। उन्होंने कहा कि डेंगू का मच्छर साफ पानी में पनपता है और दिन के समय काटता है। इसलिए दिन में पूरी बांह के कपड़े पहनें और घर के भीतर या बाहर कहीं पानी इकट्ठा न होने दें। यदि रक्तस्राव नहीं हो रहा है और प्लेटलेट काउंट दस हजार से कम नहीं है तो निश्चिंत रहें और अनावश्यक प्लेटलेट न चढ़वाएं। 

अल्पसंख्यक संस्थानों को आयुष प्रवेश परीक्षा से मुक्ति

-महात्मा गांधी काशी विद्या पीठ 25 सितंबर को कराएगा परीक्षा
-भरी जाएंगी बीएएमएस, बीयूएमएस व बीएचएमएस की 2800 सीटें
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: प्रदेश के अल्पसंख्यक आयुष संस्थानों को इस बार सरकारी प्रवेश परीक्षा से मुक्ति मिल गयी है। महात्मा गांधी काशी विद्या पीठ 25 सितंबर को बीएएमएस, बीयूएमएस व बीएचएमएस की 2800 सीटें भरने के लिए प्रवेश परीक्षा कराएगा।
प्रदेश के मेडिकल व डेंटल कालेजों में एमबीबीएस व बीडीएस में प्रवेश नीट के माध्यम से होने के बाद सीपीएमटी न कराने का फैसला हुआ था। इसके बाद आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक व यूनानी मेडिकल कालेजों में प्रवेश के लिए अलग से आयुष प्रवेश परीक्षा कराने का निर्णय लिया गया था। इस बीच सेंट्रल काउंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन ने निजी आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक व यूनानी मेडिकल कालेजों में भी प्रवेश सरकारी कालेजों में प्रवेश के लिए होने वाली परीक्षा से कराने के आदेश दिये थे। इसके बाद सरकारी कालेजों की बीएएमएस, बीएचएमएस व बीयूएमएस की आठ सौ सीटों के साथ निजी कालेजों की दो हजार सीटों के लिए चार सितंबर को आयुष प्रवेश परीक्षा कराने का फैसला हुआ था। परीक्षा का जिम्मा वाराणसी के महात्मा गांधी काशी विद्या पीठ को सौंपा गया था।
इस फैसले के बाद प्रदेश के अल्पसंख्यक संस्थानों ने शासन के समक्ष प्रतिवेदन दाखिल कर उन्हें अपनी परीक्षा कराने व सीधे प्रवेश देने की मांग की थी। इस पर चिकित्सा शिक्षा विभाग ने केंद्रीय आयुष मंत्रालय से इस मामले में सलाह मांगी तो वहां से अल्पसंख्यक संस्थानों को अपनी परीक्षा कराकर प्रवेश लेने की छूट देने की बात कही गयी। प्रमुख सचिव (चिकित्सा शिक्षा) डॉ.अनूप चंद्र पाण्डेय के मुताबिक अब अल्पसंख्यक आयुष संस्थानों को प्रवेश परीक्षा से मुक्ति दे दी गयी है। शेष सरकारी व निजी आयुष चिकित्सा शिक्षा संस्थानों के लिए प्रवेश परीक्षा अब चार सितंबर के स्थान पर 25 सितंबर को होगी। परीक्षा परिणाम चार अक्टूबर को घोषित किया जाएगा, ताकि अक्टूबर के अंत तक प्रवेश प्रक्रिया पूरी की जा सके।
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अगले साल से नीट
सेंट्रल काउंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन (सीसीआइएम) ने स्पष्ट किया है कि राज्य स्तर पर संयुक्त प्रवेश परीक्षा की व्यवस्था सिर्फ शैक्षिक सत्र 2016-17 के लिए ही है। अगले साल से आयुष विधा के कालेजों में भी प्रवेश नेशनल एलिजिबिलिटी कम इंटरेंस टेस्ट (नीट) के माध्यम से होंगे। कहा गया है कि भारतीय चिकित्सा पद्धतियों में अध्ययन के लिए पूरे देश से मेधावी छात्र-छात्राओं को आकर्षित करने के लिए नीट प्लेटफार्म का प्रयोग जरूरी हैं। अगले साल से नीट की रैंकिंग के आधार पर ही इन कालेजों में प्रवेश हुआ करेंगे।

Wednesday 17 August 2016

स्मृति की पहल 'वियर हैंडलूम' को यूपी में विस्तार


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-मानकीकरण व उन्नत उत्पादों पर शोध, बनी नौ माह की कार्ययोजना
-डिजायनर खादी वस्त्रों के निर्माण से सीधे कामगारों को जोडऩे की मुहिम
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : केंद्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी की पहल 'वियर हैंडलूम' इस समय खासी चर्चा में है। इस पहल को उत्तर प्रदेश में विस्तार देने के लिए अगले नौ माह की कार्ययोजना बनाई गयी है। इस दौरान उन्नत खादी के विकास पर शोध के साथ डिजायनर खादी वस्त्रों के निर्माण से कामगारों को सीधे जोडऩे की मुहिम भी चलाई जाएगी।
प्रदेश सरकार ने खादी को प्रीमियम ब्रांड की तरह विकसित करने के लिए राष्ट्रीय फैशन तकनीकी संस्थान (एनआइएफटी) से हाथ मिलाए हैं। इसके अंतर्गत शोध, डिजाइनिंग, मानकीकरण व मार्केटिंग के साथ व्यापक प्रचार प्रसार पर फोकस किया जा रहा है। प्रमुख सचिव (खादी एवं ग्र्रामोद्योग) मोनिका एस.गर्ग ने बताया कि इस अभियान में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जुड़ाव स्थापित करने के लिए डिजायनर खादी वस्त्रों पर जोर है, वहीं शुरुआती स्तर पर कामगारों को चर्खा संचालन का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। इसके अंतर्गत झांसी के चार व बांदा के दो गांवों की 75 महिलाओं को 15-15 दिन का चर्खा चलाने का प्रशिक्षण दिया जा चुका है। अब प्रदेश भर में खादी की विभिन्न संस्थाओं में काम कर रहे डिजाइनर, पैटर्न मेकर व कटिंग करने वाले कामगारों को एनआइएफटी, रायबरेली में प्रशिक्षित किया जाएगा। यह प्रशिक्षण सितंबर से शुरू होंगे। खादी संस्थाओं में काम करने वाले सिलाई कारीगरों को भी दुनियावी जरूरतों के अनुरूप तैयार करने के लिए एनआइएफटी में नवंबर से प्रशिक्षित किया जाएगा। इसके बाद दिसंबर से खादी वस्त्रों पर जरी व चिकनकारी जैसी विशिष्ट कढ़ाई कर पैच बनाए जाने का भी प्रशिक्षण दिया जाएगा। गोरखपुर, लखनऊ या रायबरेली में खादी पोलिस्टर व सिल्क के कलात्मक पैच बनाने के लिए कारीगरों को प्रशिक्षित करने का फैसला हुआ है।
एनआइएफटी के विद्यार्थी उत्तर प्रदेश में खादी की उन्नति की संभावनाओं पर शोध भी कर रहे हैं। जनवरी तक शोध पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है, ताकि फरवरी में उन्नत व मानकीकृत खादी के विकास के लिए शोध रिपोर्ट प्रस्तुत की जा सके। इसके साथ ही खादी संस्थाओं की उन्नति के लिए सितंबर से तीन माह का अभियान चलाकर उनका सूक्ष्म निरीक्षण व अध्ययन किया जाएगा।
फैशन प्लेटफार्म पर दस्तक
उत्तर प्रदेश की खादी राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फैशन प्लेटफार्म पर भी दस्तक देगी। इसके लिए एनआइएफटी के विद्यार्थी खादी के डिजायनर वस्त्र तैयार करने की प्रक्रिया जारी रखेंगे। जनवरी से इन वस्त्रों का संग्र्रह सामने आने लगेगा और बीच-बीच में राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर के फैशन शो के माध्यम से उनका प्रदर्शन किया जाएगा। 

Thursday 11 August 2016

इलाज तुम करो, गुणवत्ता हम संभालेंगे

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-मंडल व जिला स्तर पर जन स्वास्थ्य सलाहकारों की नियुक्ति
-414 अस्पतालों में गुणवत्ता सुधार और 715 का कायाकल्प
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : स्वास्थ्य विभाग इलाज व गुणवत्ता के साथ अस्पताल प्रबंधन को समानांतर दायित्व के रूप में विकसित करने की पहल कर रहा है। पहले चरण में प्रदेश के 414 अस्पतालों को चिह्नित कर उनकी गुणवत्ता पर फोकस किया जाएगा। साथ ही 717 अस्पतालों के कायाकल्प की तैयारी है।
अस्पतालों में मरीजों का इलाज न हो रहा हो, या वार्डों में गंदगी फैली हो, परेशान होकर लोग स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के पास ही जाते हैं। वे भी इलाज के अलावा सब कुछ करते नजर आते हैं। स्वास्थ्य विभाग ने अब इलाज और प्रबंधन को अलग-अलग करने की रणनीति बनाई है। 414 जिला अस्पतालों, सामुदायिक व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को चिह्नित किया गया है। कायाकल्प योजना के लिए 157 जिला स्तरीय चिकित्सालयों, 189 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों व 369 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को चिह्नित किया गया है। मंडल व जिला स्तर पर जन स्वास्थ्य सलाहकारों व जिला अस्पतालों में गुणवत्ता प्रबंधक तैनात किये गए हैं। मंडल व जिला स्तर पर क्वालिटी एश्योरेंस समितियों का गठन किया जा रहा है। जिला समितियां हर माह व मंडल समितियां तीन माह में बैठक कर रिपोर्ट नियमित रूप से शासन को भेजेंगी। पूरी प्रक्रिया पर मुख्य चिकित्सा अधिकारी व मंडलीय अपर निदेशक नजर रखेंगे।
दवा से खून तक चिंता
सलाहकारों को दवा से लेकर खून उपलब्धता के साथ प्रदूषण, अग्निशमन व रक्तकोषों के मानक बरकरार रखने तक की चिंता करनी होगी। अस्पताल में मरीजों को भटकना न पड़े, इसलिए दिशा निर्देश लगाने होंगे। वेटिंग एरिया साफ सुथरे व सुविधायुक्त बनाने के साथ पार्किंग, सुरक्षा, भोजन व लांड्री आदि के संचालन की जिम्मेदारी इन्हें दी जाएगी।
संक्रमण नियंत्रण पर जोर
योजना में संक्रमण नियंत्रण पर सर्वाधिक जोर है। अस्पताल स्तर पर इंफेक्शन कंट्रोल कमेटी बनेंगी। नियमित सफाई व संक्रमण रोकने के साथ स्टाफ का मेडिकल परीक्षण व टीकाकरण भी होगा। जैवचिकित्सकीय कचरे पर रोक के साथ वार्डों व ऑपरेशन थियेटर ही नहीं, पैथोलॉजी परीक्षणों के समय भी संक्रमण निषेध सुनिश्चित किया जाएगा।
डॉक्टर इलाज पर करें फोकस
गुणवत्ता व प्रबंधन की जिम्मेदारी अलग हाथों में देने के पीछे मुख्य वजह डॉक्टरों पर लोड कम करना है। वे इलाज पर फोकस करें और अन्य चिंताएं ये क्वालिटी मैनेजर कर लेंगे। साल भीतर इसके परिणाम दिखने लगेंगे। -आलोक कुमार, निदेशक, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन

Wednesday 10 August 2016

पॉलीटेक्निक में तैयार होंगे सुपर स्पेशलिस्ट


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-मंडलायुक्तों की अध्यक्षता में हुआ क्षेत्रीय जरूरतों का आकलन
-क्षेत्रवार क्लस्टक बनाकर संचालित होंगे कौशल विकास कार्यक्रम
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : पॉलीटेक्निक संस्थानों को कौशल विकास का बड़ा केंद्र बनाने की तैयारी है। क्षेत्रवार क्लस्टर बनाकर कौशल विकास कार्यक्रम शुरू किये जाएंगे, ताकि वहां 'सुपर स्पेशलिस्ट' तैयार हो सकें।
हाल ही में पॉलीटेक्निक के पाठ्यक्रम में बदलाव व सेमेस्टर प्रणाली लागू करने जैसे फैसले हुए हैं। अब क्षेत्रीय आवश्यकताओं का अध्ययन कर पॉलीटेक्निक को विशिष्ट कौशल विकास केंद्र के रूप में विकसित करने का फैसला हुआ है। प्राविधिक शिक्षा विभाग की प्रमुख सचिव मोनिका एस गर्ग ने बताया कि मंडलायुक्तों की अध्यक्षता में उद्योगों, उच्च शिक्षण संस्थानों व जनता के प्रतिनिधियों के साथ क्षेत्रीय आवश्यकताओं का आकलन कराया गया। हर जिले में एक या दो विशिष्ट (यूनीक) ट्रेड चिह्नित किये गए। प्रदेश में टेक्सटाइल, कम्प्यूटर, आइटी, इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्रानिक्स, ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग, एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग, लेदर व फुटवियर, एसी मैकेनिक, फूड प्रोसेसिंग एंड प्रिजर्वेशन, केमिकल एवं कांच उद्योगों को कौशल प्रशिक्षण के लिए चिह्नित किया गया है।
गाजीपुर में कृषि पर जोर
कृषि क्षेत्र में पैदावार बढ़ाने के लिए कल्टीवेटर, ट्रैक्टर, ड्रिलर आदि के रख-रखाव की बहुत मांग है। इसको ध्यान में रखते हुए गाजीपुर में प्रशिक्षण दिया जाएगा। इन्हें कृषि अभियंत्रण क्षेत्र में काम करके उपकरणों का रखरखाव करने का प्रशिक्षण दिया जाएगा। इससे उनकी आय के रास्ते खुलेंगे।
कांच तकनीक फीरोजाबाद में
फीरोजाबाद कांच के सामान के लिए प्रसिद्ध है किन्तु विदेश से आयात किये जाने वाले कांच के आकर्षक उत्पादों से हार जाता है। इसे देखते हुए फीरोजाबाद की पॉलीटेक्निक में कांच उद्योगों की नई तकनीक के पाठ्यक्रम चलेंगे। उन्हें आधुनिक परिवेश में ढालने के साथ निर्यात संभावनाओं से भी जोड़ा जाएगा।
कानपुर-आगरा में चर्म प्रशिक्षण
चमड़े के क्षेत्र में कानपुर व आगरा दुनिया भर में प्रदेश का प्रतिनिधित्व करते हैं। यहां के पॉलीटेक्निक चर्म उद्योग में आधुनिक तकनीक व डिजाइन संबंधी प्रशिक्षण का केंद्र बनेंगे। वहां जूते, पर्स, बेल्ट, जैकेट आदि के निर्माण में प्रयोग हो रही नकी तकनीक से प्रशिक्षण देकर कुशल कामगार तैयार किये जाएंगे।
वाराणसी-फर्रुखाबाद में वस्त्रोद्योग
बनारसी साडिय़ां दुनिया भर में सूबे का गौरव बढ़ाती हैं। इस योजना में वस्त्र उद्योग में कढ़ाई, बुनाई के साथ डिजाइनर्स का सहयोग लेते हुए वाराणसी व गोरखपुर को विशिष्ट प्रशिक्षण केंद्र के रूप में विकसित किया जाएगा। इसमें डिजिटल प्रिंटिंग के साथ कपड़ों की प्रोसेसिंग का प्रशिक्षण भी शामिल होगा।
खाद्य पदार्थों पर भी जोर
खाद्य पदार्थों से जुड़े उद्योगों मुरब्बा, अचार, जैम, जेली और चीनी, राइस, दाल व आयल मिलों को कुश कार्यबल के संकट से जूझना पड़ रहा है। इसके लिए लखनऊ, मैनपुरी, लखीमपुर खीरी व बदायूं के पॉलीटेक्निक विशेष प्रशिक्षण केंद्र बनेंगे। यहां उन्हें उत्पादन के साथ गुणवत्ता नियंत्रण व मार्केटिंग का प्रशिक्षण भी दिया जाएगा।
फोकस सूचना प्रौद्योगिकी पर
इस पूरे अभियान में सूचना प्रौद्योगिकी, कंप्यूटर, इलेक्ट्रानिक्स व विद्युत उपकरणों में नवीन तकनीक के प्रशिक्षण पर फोकस रहेगा। इसके लिए उन्नाव, औरैया, लखनऊ, आजमगढ़, गाजियाबाद, बस्ती, बहराइच, रायबरेली व जौनपुर के पॉलीटेक्निक चुने गए हैं। कानपुर, गोरखपुर, इटावा एवं महोबा में ऑटोमोबाइल व रेफ्रिजरेटर से जुड़े विशेषज्ञ तैयार किये जाएंगे।

Tuesday 9 August 2016

डॉक्टरों ने किया बच्चों की सेहत से धोखा

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एनएचएम वाहन घोटाला
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-बिना देखे बच्चे फिट घोषित, एक हजार चिकित्सकों के फर्जी दौरे
-सीएमओ से रिपोर्ट तलब, 52 एसीएमओ जांच घेरे में
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डॉ.संजीव, लखनऊ : राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के वाहन घोटाले के साथ चिकित्सकीय अराजकता भी सामने आयी है। पता चला है बच्चे बिना देखे ही फिट घोषित कर दिये गए और डॉक्टरों के फर्जी दौरे भी हो गए। एक हजार से अधिक डॉक्टरों ने बच्चों की सेहत से धोखा किया है और अब स्वास्थ्य विभाग ने 52 जिलों के मुख्य चिकित्सा अधिकारियों से रिपोर्ट मांगी है।
केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना, राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) का जिम्मा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) को सौंपा गया था। हाल ही में इस योजना में जबर्दस्त गड़बड़ी के साथ बड़ा घोटाला सामने आया है। एनएचएम के स्तर पर हुई पड़ताल में 52 जिलों में वाहन घोटाले के तो सुबूत मिले ही हैं, डॉक्टरों द्वारा फर्जीवाड़ा करने के भी तथ्य सामने आये हैं। पता चला है सिर्फ फर्जी वाहन ही नहीं चलाए गए, डॉक्टर भी मनमानी करते रहे हैं। इन लोगों ने बिना देखे स्कूली बच्चों को फिट घोषित कर दिया। 'कागजों परÓ आरबीएसके टीम का हिस्सा बने डॉक्टर दरअसल प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक पर नहीं जाते। वे शहरों में रहकर प्रैक्टिस करते हैं। जिलों में एक अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी (एसीएमओ) के जिम्मे इस योजना का संचालन होता है। बिलों के भुगतान से लेकर अन्य जिम्मेदारियां भी एसीएमओ की ही होती हैं। इसीलिए अब 52 एसीएमओ की भूमिका भी जांच कराई जा रही है। अब तक के आकलन के अनुसार एक हजार से अधिक डॉक्टर किसी न किसी तरह बच्चों के साथ हुई इस धोखाधड़ी में शामिल हैं।
जेल भी भेजेंगे
स्वास्थ्य मिशन के निदेशक आलोक कुमार ने बताया कि जिलावार दोषी चिह्नित किये जाएंगे और उनसे वसूली से लेकर जेल तक भेजा जाएगा।
स्वास्थ्य परीक्षण 'कागजों पर'
इस योजना में प्रदेश के हर ब्लॉक में दो-दो टीमें बनाकर माह में 25 दिन स्कूलों में जाकर बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण किया जाता है। हर टीम में दो डॉक्टर, एक स्टाफ नर्स या एएनएम और एक फार्मासिस्ट सहित कुल चार लोग होते हैं। हर टीम के लिए अलग-अलग गाड़ी आरक्षित होती है। इसके बावजूद ये डॉक्टर ज्यादातर स्कूलों में गए ही नहीं और 'कागजों पर' ही स्वास्थ्य परीक्षण की रिपोर्ट लगा दी गयी।
बहाने भी अजब-गजब
वाहन घोटाला सामने आने के बाद जब डॉक्टरों से स्वास्थ्य परीक्षण न करने व फर्जी टीमें बनाने के संबंध में पूछा गया तो अजब-गजब बहाने सामने आए। किसी ने कहा बाढ़ में ड्यूटी लगा दी गयी थी, इसलिए नहीं जा सके, तो किसी ने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में अचानक ड्यूटी की बात कही। इसी तरह कुछ चिकित्सकों ने बैठकों का बहाना बनाया। हालांकि परीक्षण करने न जाने के बाद भी वाहनों के जाने व फर्जी रिपोर्ट बनाने का जवाब किसी के पास नहीं था।

Thursday 4 August 2016

एनएचएम में अब वाहन घोटाला


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-फर्जी गाडिय़ां दिखाकर हुए भुगतान, 52 जिलों में मिलीं गड़बडिय़ां
-कई ब्लॉकों व जिलों में कागजों पर दौड़ती मिलीं एक ही नंबर की कारें
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डॉ.संजीव, लखनऊ : राष्ट्रीय ग्र्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) में घोटाले के कारण मंत्री तक के जेल जाने और कई मौतें होने के बाद भी सुधार नहीं हो रहा है। अब राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) में वाहन घोटाला पकड़ा गया है। 52 जिलों में गड़बडिय़ां सामने आने ने के बाद अब घोटाले की राशि का आंकलन कराया जा रहा है।
सूबे में पिछली सरकार में हुआ एनआरएचएम घोटाला राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बना था। इसमें मंत्री व आइएएस सहित तमाम लोग जेल गए थे और कई जानें भी गयी थीं। मामला अभी तक चल रहा था किंतु घोटालेबाजों पर कोई असर नहीं हुआ है। एनआरएचएम का नाम बदलकर एनएचएम कर दिया गया, तो घोटालेबाज यहां भी सक्रिय हो गए हैं। हाल ही में करोड़ों रुपये का वाहन घोटाला सामने आया है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की ओर से शासन को भेजी गयी रिपोर्ट में प्रदेश के 52 जिलों में फर्जी गाडिय़ां दिखाकर करोड़ों रुपये के भुगतान की बात कही गयी है। कई ब्लाकों व जिलों में एनएचएम के पैसे पर फर्जी गाडिय़ां दौड़ाई जा रही थीं। उनके फर्जी बिल बनाकर लगातार भुगतान भी हो रहे थे। एनएचएम के स्तर पर तो जांच करा ही ली गयी है, शासन स्तर पर सक्षम एजेंसी से इस पूरे प्रकरण की जांच कराने को कहा गया है।
बच्चों की सेहत से धोखा
यह पूरा घोटाला राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत किया गया है। प्रदेश के 820 ब्लाकों में दो-दो गाडिय़ां इस कार्यक्रम के तहत लगाई गयी थीं, ताकि पंचायत स्तर तक जाकर बच्चों की सेहत जांची जा सके। पता चला कि 52 जिलों के 500 से अधिक ब्लाकों में गाडिय़ां ही नहीं थीं और फर्जी नंबर दिखाकर भुगतान लिये जा रहे थे। इस कारण न तो डॉक्टर वहां जा रहे थे, न ही बच्चों का इलाज हो रहा था।
मोटरसाइकिल के नंबर पर कार
परिवहन विभाग की वेबसाइट से गाड़ी के नंबर चेक कराए गए तो हर स्तर पर चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। घोटालेबाजों ने एक ही वाहन कई ब्लाकों व जिलों में तो लगा ही रखे थे, कुछ जगह दुपहिया वाहन का नंबर कार में दर्ज था। भदोही में यूपी70एबी9704 नंबर मोटरसाइकिल को कार बताकर भुगतान हो रहा था। चंदौली में नंबर यूपी 65सीटी0453 दो ब्लाकों नौगढ़ व चकिया में दर्ज था। इसी तरह सहारनपुर के दो ब्लाकों रामपुर मनिहारन व सुनहटी में एक ही गाड़ी यूपी11टी5857 दर्ज थी। एक गाड़ी यूपी17टी1465 अलीगढ़ व कन्नौज तो यूपी40टी2362 गोंडा व बहराइच जिलों में दर्ज कराकर भुगतान लिया जा रहा था।
चिह्नित होंगे अपराधी
पहले चरण में गाडिय़ों के नाम पर हुआ फर्जीवाड़ा पकड़ा गया है। शासन को पूरी जानकारी दे दी गयी है। अब इस फर्जीवाड़े में शामिल सभी अपराधियों को चिह्नित किया जाएगा। साथ ही इस पूरे घोटाले में कितनी राशि का भुगतान अवैध ढंग से कराया गया है, उसका आंकलन भी कराया जा रहा है, ताकि दोषियों से उसकी वसूली की जा सके। -आलोक कुमार, मिशन निदेशक, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, उत्तर प्रदेश

Monday 1 August 2016

मैं नीर भरी दुख की बदली...


अरे जल्दी चलो, बस छूट जाएगी। रुको... पानी की बोतल तो भर लूं। छोड़ो, पानी की टेंशन मत लो, अब रोडवेज बस में भी परिवहन नीर मिलने लगा है। घर से यात्रा के लिए निकलते समय यदि ऐसा कोई संवाद आपके साथ हुआ है तो आप फिर गलत साबित हो गए हैं। बड़ी उम्मीदों व घोषणाओं के साथ रोडवेज की बसों में शुरू हुआ परिवहन नीर एक साल भी न चल सका और बंद हो गया। यह सिर्फ परिवहन नीर के साथ ही हुआ हो, ऐसा नहीं है। हम तो हैं ही योजनाओं के शैशवकालीन मृत्यु के विशेषज्ञ। योजनाओं का क्या, हमारे यहां तो जन्म लेने वाले 1000 बच्चों से 35 जन्म लेने के एक माह के भीतर दुनिया छोड़ जाते हैं। यह आंकड़ा राष्ट्रीय आंकड़े से काफी अधिक है। देश भर में औसतन 1000 में 28 बच्चों की जन्म के एक माह के भीतर मौत होती है, हम सात ज्यादा बच्चों को दुनिया छोडऩे पर मजबूर कर देते हैं। पर आप चिंता नहीं करिये, जिस तरह परिवहन नीर के लिए सरकार ने खूब तैयारी की थी, बच्चों को बचाने की तैयारी भी कुछ कम नहीं है। अरे, अभी जुलाई में ही तो हमने पूरा पखवाड़ा मनाया है... मुख्यमंत्री जी ने खुद हरी झंडी भी दिखाई थी। जब हम बच्चों को बचाने में सीरियस नहीं हैं, तो योजनाओं की टेंशन क्यों लें। योजनाएं भी हम समय के साथ बनाते हैं। ऐसा नहीं कि सबके साथ यह होता हो। बीस साल पहले हमने न्यू कानपुर सिटी का सपना दिखाया था... नहीं पूरा किया और जब मूड हो गया तो ट्रांसगंगा बना दी। मेट्रो के डीपीआर बहुत बने, पर चाहा तो लखनऊ मेट्रो को सामने लाकर खड़ा कर दिया। कानपुर-लखनऊ हाईवे चलने लायक बनाने में भले ही बीस साल से संघर्षरत हों, किन्तु लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस-वे हम बनाकर दिखा देंगे। तो समझ में आया, हम जब चाहें, जिस योजना को चाहें... रोक सकते हैं। हम इतनी कमजोर योजना बनाएंगे, कि पैदा होते ही उसकी जान निकल जाए। केजीएमयू में हमने अलग ट्रांसप्लांट विभाग बना दिया... पैसे खर्च कर लिये... पर ट्रांसप्लांट नहीं शुरू किया। अच्छा, अगर हम यहीं ट्रांसप्लांट कर लेते तो साढ़े बाइस मिनट में हवाई अड्डे तक अंगदान के लिए अंग पहुंचाने का कीर्तिमान कैसे बनता। दरअसल हम काम न करके कीर्तिमान बनाना चाहते हैं। हम बिना तैयारी के घोषणा करते हैं। अब देखो न, मंत्री जी ने कहा सभी अस्पतालों में पार्किंग मुफ्त होगी, दो चिट्ठी भी लिखीं... पर पार्किंग मुफ्त हुई... नहीं न। ऐसा ही हमने परिवहन नीर के साथ किया था... बस अपनी चिंता की.. जो कंपनी आई, उसका इतिहास-भूगोल देखे बिना ठेका दे दिया... कुछ लोग खुश हो गए। अब वे लोग नहीं रहे तो नए लोगों को नई कंपनी खुश करेगी... और हां, उनकी खुशी में ही अपनी खुशी समझो तो खुश रहोगे... वरना प्यासे रहो। हम तो बस ऐसे ही हैं... और वर्षों से ऐसे ही हैं... कोई बात नहीं, दुखी मत हो, महादेवी वर्मा की लिखी ये दो पंक्तियां पढ़ो, अपनी सी लगेंगी...
सुख की सिहरन हो अंत खिली
मैं नीर भरी दुख की बदली