Friday 11 September 2015

ऐसे तो उप्र को चाहिए ढाई लाख फार्मासिस्ट


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-नियमों की लाचारी-
-न्यायमूर्ति केएल शर्मा आयोग की रिपोर्ट पर अमल नहीं
-बिजनेस फार्मासिस्ट के प्रशिक्षण से सुधर सकती स्थिति
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डॉ.संजीव, लखनऊ
दवा दुकानों में फार्मासिस्ट की अनिवार्यता का पालन करने के लिए उत्तर प्रदेश को कम से कम ढाई लाख फार्मासिस्ट चाहिए। इस समस्या के समाधान के लिए न्यायमूर्ति केएल शर्मा आयोग की रिपोर्ट बीते 11 साल से दबी पड़ी है। उस रिपोर्ट पर अमल कर बिजनेस फार्मासिस्ट का प्रशिक्षण शुरू किया जाता तो स्थिति सुधर सकती थी।
उत्तर प्रदेश में दवा की सवा लाख से अधिक दुकानें हैं। इनमें भी साठ प्रतिशत दवाएं ग्र्रामीण क्षेत्रों में हैं। दवा दुकानें औसतन सुबह सात बजे से रात 11 बजे तक खुलती हैं। दवा दुकानदार यदि श्रम विभाग के मानकों का पालन करें और आठ घंटे की शिफ्ट भी मान ली जाए, तो एक दुकान पर कम से कम दो फार्मासिस्ट की जरूरत होती है। इस तरह प्रदेश को ढाई लाख फार्मासिस्टों की जरूरत है इसके विपरीत उपलब्धता महज तीस हजार है। ऐसे में शेष फार्मासिस्टों का कोटा पूरा करने के लिए फर्जीवाड़ा होता है। यह पूरा मामला विभागीय अधिकारियों के संज्ञान में भी रहता है। ऐसी शिकायतें भी आती हैं कि जिलों में औषधि निरीक्षक फार्मासिस्ट की कमी की आड़ में दुकानदारों से वसूली तक करते हैं।
प्रदेश सरकार ने वर्ष 1999 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति केएल शर्मा की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय आयोग गठित किया था। वर्ष 2004 में प्रदेश सरकार को सौंपी रिपोर्ट में आयोग ने फुटकर दुकानों के लिए बिजनेस फार्मासिस्ट या योग्य दवा फार्मासिस्ट नियम लागू करने का सुझाव दिया था। कहा गया था कि तीन माह का प्रशिक्षण देकर दवा दुकानदारों को ही फार्मासिस्ट का दर्जा दे दिया जाए। वे सरकारी नौकरी के लिए तो योग्य नहीं होंगे, किन्तु दुकान चला सकेंगे। तर्क ये था कि फार्मासिस्ट की अनिवार्यता उस समय थी, जब दुकानों पर कम्पाउंड मिलाकर दवा बनाई जाती थी। अब दवा की दुकानों पर बनी-बनाई दवाएं आती हैं और उन पर नाम छपे होते हैं। दुकानदार बस नाम देखकर दवाएं दे देते हैं। ग्यारह साल बीत जाने के बाद भी न्यायमूर्ति केएल शर्मा आयोग की रिपोर्ट पर अमल नहीं हुआ है। दवा विक्रेताओं का मानना है कि इस रिपोर्ट को लागू कर बिजनेस फार्मासिस्ट को मान्यता दी जानी चाहिए।
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चार साल लागू हो चुकी व्यवस्था
फार्मासिस्ट संकट से निपटने के लिए बिजनेस फार्मासिस्ट नियुक्त करने की व्यवस्था चार साल के लिए लागू भी की जा चुकी है। वर्ष 1960 से 1962 और 1976 से 1978 तक फार्मासिस्ट की कमी से निपटने के लिए चिकित्सकों के यहां कम्पाउंडर का काम कर दवा बनाने वालों को बिजनेस फार्मासिस्ट का दर्जा दिया गया था। तब तीन साल का अनुभव रखने वाले कम्पाउंडर को चिकित्सक के प्रमाण पत्र पर बिजनेस फार्मासिस्ट बना दिया गया था। इसके बाद इनका उपयोग दवा की दुकानों पर करने की भी छूट दे दी गयी थी।
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दवा बना सकते हैं, बेच नहीं सकते
यह विडम्बना ही है कि बिना फार्मेसी की पढ़ाई के दवा बनाने की अनुमति तो मिल जाती है, पर दवा बेचने की नहीं। ड्रग एंड कास्मेटिक्स रूल्स, 1945 के नियम-71 के अंतर्गत बीएससी उत्तीर्ण कोई व्यक्ति तीन वर्ष का अनुभव प्राप्त कर दवाओं के निर्माण के लिए अधिकृत कर दिया जाता है। इसके विपरीत कई वर्षों तक मेडिकल स्टोर चलाने वाले केमिस्टों को यह मौका नहीं मिलता। यही नहीं, थोक दवा विक्रेता के लिए फार्मासिस्ट की अनिवार्यता नहीं है जबकि उसी थोक दवा दुकान से दवा लाकर फुटकर बेचने के लिए फार्मासिस्ट होना जरूरी कर दिया गया है।

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