डॉ. संजीव मिश्र
दीवाली के साथ ही देश-दुनिया
में दो खबरें एक साथ आयीं। दुनिया में आतंक का पर्याय बना आईएसआईएस सरगना अबू बक्र
अल बगदादी को अमेरिकी फौज ने मार गिराया और यूरोपीय़ यूनियन के सांसदों का एक दल
कश्मीर जाकर वहां के हालातों का जायजा लेगा। सामान्य रूप से ये दोनों खबरें अलग-अलग
लगती हैं, किन्तु इन दोनों की जड़ में आतंकवाद है। जिस तरह
बगदादी आतंकी सरगना के रूप में दुनिया की मुसीबत बना था, उसी
तरह कश्मीर को आतंक की सैरगाह बनने से बचाना इस समय भारत की चुनौती है। ऐसे में जब
बगदादी की मौत से आतंक के खिलाफ वैश्विक दबाव बना है, वहीं
ऐसे ही किसी वैश्विक दबाव से बचने की एक रणनीतिक कोशिश के रूप में यूरोपीय यूनियन
के सांसद कश्मीर जा रहे है। बगदादी के बाद भारत की चुनौती अमेरिकी तर्ज पर देश के
दुश्मन आतंकियों को उनकी पनाहगाहों से खोज कर निकालना बन गया है, वहीं
कश्मीर में अमनचैन सुनिश्चित करने की चुनौती भी सरकार के सामने है।
बगदादी की मौत के बाद भारत में सीधे तौर पर इसे
लेकर तमाम चर्चाएं हो रही हैं। इसके दो कारण स्पष्ट हैं। पहला यह कि भारत भी
बगदादी या आईएसआईएस मॉड्यूल के आतंकवाद से पीड़ित देश है और यहां से तमाम युवाओं
के आईएसआईएस से जुड़ने की जानकारियां लगातार आ रही थीं। दूसरा यह कि सरकार पर अब
बगदादी की तरह ही पाकिस्तान में छिपे हाफिज सईद व मौलाना मसूद अजहर जैसे देश के
दुश्मनों पर अमेरिकी फौज जैसा अभियान चलाकर उनके खात्मे का दबाव बन रहा है। भारत
में महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडु, जम्मू-कश्मीर
जैसे कई राज्यों के युवाओं के आईएसआईएस से जुड़ने की जानकारियां लगातार सामने आ
रही थीं। आईएसआईएस को भारत के कट्टरपंथी लोगों को आतंक से जोड़ना भी आसान लग रहा
था। ऐसे में बगदादी की मौत के बाद इस सिलसिले में कमी आएगी, यह
माना जा रहा है। आईएसआईएस जिस तेजी से भारत में पांव पसारना चाह रहा था, उस
पर अब निश्चित रूप से अंकुश लगेगा, क्योंकि आईएसआईएस नेतृत्व की
प्राथमिकताएं अब बदलेगीं। जिस तरह अमेरिका ने बगदादी को सुरंग में दौड़ा-दौड़ा
कर मौत चुनने के लिए मजबूर कर दिया, उसके बाद भारतीय नेतृत्व व भारतीय
सेना पर भी अलग सा दबाव बना है। पहले दाउद इब्राहिम वर्षों से भारत को चुनौती देकर
पाकिस्तान में जमा बैठा था, अब हाफिज सईद व मौलाना मसूद अजहर
भी पाकिस्तान में डेरा डालकर खुलेआम भारत के खिलाफ अभियान चला रहे हैं। पाकपरस्त
आतंकियों के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक जैसे मजबूत कदम उठा चुकी भारतीय सेना से अब
पाकिस्तान में घुसकर हाफिज व मसूद जैसों को उड़ाने की उम्मीद की जा रही है। हर कोई
भारतीय सेना की शौर्य गाथा से जुड़ा हुआ है, ऐसे में अब पाकिस्तान में छिपे इन
आतंकियों के खिलाफ वैसी ही कार्रवाई की जरूरत महसूस हो रही है, जिस
तरह पहले लादेन, फिर बगदादी के मामले में अमेरिकी सेना द्वारा की
गयी है।
दरअसल ये आतंकी भारत के
लिए लगातार मुसीबत बने हुए हैं। कश्मीर को आतंकवाद की पनाहगाह बनाने में ये आतंकी
पाकिस्तान का मुखौटा बनकर सामने आ रहे हैं। यही कारण है कि कश्मीर से धारा 370 हटाने
जैसे बेहद आंतरिक मसले को भी पाकिस्तान ने अंतर्राष्ट्रीय मसला बनाने में कोई कसर
नहीं छोड़ी। संयुक्त राष्ट्र में तो पाकिस्तान ने यह मामाला उठाया ही, यूरोपीय
यूनियन की संसद में भी कश्मीर पर चर्चा हुई। अब बगदादी की मौत की खबर के साथ ही
यूरोपीय यूनियन के सांसदों का भारत आना भी महज एक संयोग ही है। यूरोपीय यूनियन के
सांसदों की टीम कश्मीर जाकर वहां के हालात जानेगी। इसके बाद वैश्विक स्तर पर भारत
के प्रति निश्चित रूप से स्थितियों में सकारात्मक सुधार होगा। इसके साथ ही इस दौरे
पर भारत में भी थोड़े-बहुत सवाल उठ रहे हैं, जिनका
जवाब सरकार को देना होगा। दरअसल कश्मीर पर कठोर फैसलों के बाद जिस तरह भारतीय
विपक्षी दलों ने कश्मीर जाने की कोशिश की और जम्मू-कश्मीर
प्रशासन ने विपक्ष को कश्मीर का दौरा करने की अनुमति नहीं दी, उससे
तो सवाल उठ ही रहे थे, अब विदेशी टीम को कश्मीर जाने की अनुमति ने ये सवाल
दोबारा खड़े कर दिये हैं। विपक्षी दलों को कश्मीर दौरे पर जाने की अनुमति के लिए
सुप्रीम कोर्ट तक से गुहार करनी पड़ी थी। ऐसे में अब विपक्ष द्वारा यूरोपीय यूनियन के सांसदों को कश्मीर दौरे की
अनुमति पर सवाल उठाया जाना अवश्यंभावी है। ऐसी स्थितियां सरकारों की जवाबदेही बढ़ा
देती हैं। 31 अक्टूबर से कश्मीर का पूरा स्वरूप बदलने वाला है। 31 अक्टूबर
से जम्मू-कश्मीर व लद्दाख अलग-अलग
केंद्र शासित राज्य बन जाएंगे। ऐसे में केंद्र की जिम्मेदारी और बढ़ने वाली है।
आतंक से लड़ाई के इस दौर में कश्मीर का इकबाल तभी बुलंद होगा, जब
हम कश्मीर के दुश्मन आतंकी सरगनाओं को उनके आकाओं के घर में घुस कर मारेंगे।
उम्मीद है हम ऐसा कर पाएंगे।