Thursday 30 April 2020

...हर मुसलमान तबलीगी तो नहीं

डॉ.संजीव मिश्र
पूरा देश इस समय कोरोना के साथ मुसलमानों की चर्चा में भी जुटा है। तबलीगी जमात की गल्तियों की सजा देश तो भुगत ही रहा है, मुसलमानों को भी समग्र रूप से एक अलग ही विषादपूर्ण वातावरण का सामना करना पड़ रहा है। इऩ स्थितियों में देश के सामने यह समझने की चुनौती तो है ही कि हर मुसलमान तबलीगी नहीं है, इसलिए कुछ लोगों की गलती के लिए पूरे समाज को जिम्मेदार ठहराना उचित नहीं कहा जा सकता। वहीं मुस्लिम नेतृत्व को भी समझना होगा कि तब्लीगी जमात का नेतृत्व एक मुसलमान के हाथ में ही है, जो खुद कानून से भागा फिर रहा है।
कोरोना संकट गहराने के लिए जिस तरह देश में मुस्लिमों को जिम्मेदार ठहराने की होड़ सी लगी हुई है, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। खुद को हिन्दू समाज का ठेकेदार बताने वाले लोग भी इस मुहिम को हवा देने में पीछे नहीं हैं। दरअसल कई बार तो लगता है कि हिन्दू-मुस्लिम विभाजन के पैरोकारों के लिए मानो यह मुद्दा सौगात सा बनकर आ गया है। पूरी दुनिया में कोरोना से निपटने और उस कारण उत्पन्न संकट के समाधान पर चर्चा हो रही है, वहीं भारत के तमाम टीवी चैनलों के प्राइम टाइम मुसलमानों और कोरोना के संबंधों की चर्चा में डूब रहे हैं। ऐसे में यह समय मुस्लिमों के लिए भी चिंतन का समय है। देश में स्वतंत्रता के बाद से मुस्लिम नेतृत्व ने उन्हें जाहिलियत में डुबाकर अपना उल्लू सीधा करने का काम किया है। यह तो निश्चित ही है कि भारतीय सर्वधर्म संद्भाव का भाव अल्पसंख्यकों के रूप में जिस तरह से मुस्लिमों की चिंता कर लेता है, वैसी चिंता आसपास के किसी भी देश के अल्पसंख्यकों की नहीं की जाती। ऐसे में मुस्लिमों को भड़काकर सत्ता में हिस्सेदारी बनाए रखने का स्वप्न पालने वाले नेता भी इस मसले पर हिन्दू-मुस्लिम खींचतान को और बढ़ा देना चाहते हैं। यही कारण है कि मुसलमानों के बीच तब्लीगी जमात की गल्तियों से सीखकर सुधार की मुहिम के स्थान पर इस दौरान हिन्दुओं द्वारा की जा रही गल्तियों की पड़ताल पर शोध ज्यादा हो रहा है। कोई कह रहा है कि कोटा से बच्चों को लाना गलत है, तो कोई मुंबई में लोगों के एकत्र होने को मुद्दा बना रहा है। ये सब तो गलत है ही, किन्तु इससे तब्लीगी जमात की अराजकता कहां से सही साबित हो जाती है। यह मुस्लिम समाज के लिए भी नेतृत्व का संक्रमण काल है, इस दौरान सकारात्मक मुस्लिम नेतृत्व सामने आ कर धार्मिक सद्भाव की बड़ी लकीर खींचने की पहल कर सकता है।
इस पूरे घमासान के बीच मुस्लिमों के विरोधी या कहा जाए तो दुश्मन के रूप में परिभाषित किये जाने वाले संगठन, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से मुसलमानों के संदर्भ में बेहद सकारात्मक प्रतिक्रिया आई है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघ चालक मोहन भागवत ने कहा है कि भयवश या क्रोधवश यदि कोई कुछ उल्टा सीधा कर देता है, तो उसके लिए पूरे समाज को जिम्मेदार मानकर उससे दूरी बनाना ठीक नहीं है। देश में भड़काने वाले लोगों की संख्या कम नहीं है और इसका लाभ लेने की कोशिश करने वाली ताकतें भी सक्रिय हैं। संघ के कार्यकर्ताओं से उन्होंने प्रतिक्रियावश खुन्नस से बचने व सभी 130 करोड़ भारतवासियों को अपना बंधु मानने का आह्वान किया है। संघ प्रमुख का यह बयान उन लोगों के मुंह पर भी तमाचा है, जो हमेशा मौका देखकर संघ को मुसलमानों का दुश्मन घोषित करने की कोशिश में जुटे रहते हैं।
यह समय दूरियां घटाने का है। इसके लिए देश के सभी नागरिकों को ऐसे लोगों और विचारों से दूरी बनानी होगी, जो सिर्फ विभाजन पर केंद्रित रहते हैं। उनकी राजनीति व नेतृत्व की रणनीति भी विभाजन आधारित ही होती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हाल ही में देशवासियों से अपने आचरण में एकता व भाईचारे को बढ़ावा देने की बात कही है। कोरोना के लिए मुस्लिमों को जिम्मेदार ठहराए जाने की तमाम चर्चाओं और इस कारण हो रही मुस्लिम विरोधी घटनाओं के बाद प्रधानमंत्री को स्वयं ट्वीट कर कहना पड़ा कि कोविड-19 जाति, धर्म, रंग, पंथ या भाषाओं की सीमा को नहीं देखता। इस मुश्किल वक्त में हमें साथ मिलकर चुनौती का सामना करने की जरूरत है। प्रधानमंत्री ने रमजान के महीने भी सेवाभाव की मिसाल देने का आह्वान किया है। रमजान का महीना इबादत का महीना होता है। हर मुसलमान इस समय अल्लाह की इबादत के साथ देश को कोरोना से मुक्ति की दिलाने की दुआ भी मांग रहा है। इसी के साथ देश में व्यापक सद्बुद्धि की दुआ मांगे जाने की जरूरत भी है। देश के सामने इस समय कोरोना संकट के बाद की सामाजिक, आर्थिक चुनौतियों का पहाड़ मुंह बाए खड़ा है। हमें मिलकर इससे निपटना होगा और इसके लिए हिन्दू-मुसलमान की खींचतान से बचना होगा। ऐसा न हुआ तो हम बहुत पीछे हो जाएंगे... और पीछे होना तो कोई नहीं चाहता, न हिन्दू, न मुसलमान।

Wednesday 22 April 2020

कोरोना के दौर में करुणा की जरूरत


डॉ. संजीव मिश्र
न्यूयार्क की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में जन नीति (पब्लिक पॉलिसी) की पढ़ाई कर रहे प्रखर जब कोरोना संकट से जूझते अमेरिका को छोड़कर वतन लौटे, तो यहां के हालात और चौंकाने वाले मिले। यहां कोरोना से जूझ रही सरकार के सामने वेंटिलेटर व परीक्षण की चुनौती तो थी ही, कोरोना संकट के कारण भूख से तड़प रही जनता तक भोजन व अन्य सामग्री पहुंचाने का कठिन मार्ग भी मुंह बाए खड़ा था। इस चुनौती का सामना करने के लिए सरकार के साथ तमाम छोटी-बड़ी स्वयंसेवी व समाजसेवी संस्थाएं भी सामने आ रही थीं, किन्तु आम जनमानस को कोरोना के दौर में करुणा से जोड़ने की जरूरत साफ दिख रही थी। प्रखर ने कुछ साथियों के साथ पहल की और कोरोना के दौर में करुणा यानी करुणा ड्यूरिंग कोरोना मुहिम शुरू की। इस मुहिम में लोग अपनी संपूर्ण संपत्ति या लाभ के एक हिस्से से लेकर कुछ माह का वेतन तक दान करने की शपथ ले रहे हैं। प्रखर की टीम उन्हें उपयुक्त संस्थाओं की जानकारी देती है, ताकि वे अपने धन का सही उपयोग सुनिश्चित करा सकें।
भारत ने कोरोना पर नियंत्रण पाने के लिए प्रभावी कार्रवाई की है और दुनिया के अन्य देशों की तुलना में बहुत अच्छे तरीके से इस समस्या का सामना भी किया जा रहा है। देश में कोरोना की रफ्तार नियंत्रित करने में भी मदद मिली है किन्तु असली चुनौती तो कोरोना के बाद के दौर में सामने आने वाली है। पूरे देश में लॉक़डाउन के कारण करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी के द्वार बंद हो चुके हैं। रोज कमाने-खाने वाले तो परेशान हैं ही, ठेले वालों सहित तमाम छोटे दुकानदारों का रोजगार छिन चुका है। उनकी जमा पूंजी भी इस लॉक़डाउन के दौर में खत्म हुई जा रही है। ऐसे में जब लॉकडाउन खत्म होगा, तो इन छोटे दुकानदारों को अपनी रोजी-रोटी के लिए अतिरिक्त संघर्ष करना होगा। दूसरे पूरे देश में मजदूर इधर से उधर विस्थापित जैसी स्थितियों में पहुंच चुके हैं। अर्थव्यवस्था में आए बदलाव के बाद लॉक़डाउन समाप्ति के पश्चात उनके रोजगार की चिंता भी स्पष्ट रूप से दिख रही है। सरकारों के साथ समृद्ध जनमानस को भी इस ओर ध्यान देना होगा।
कोरोना के दौर में करुणा की तमाम कहानियां सामने आ रही हैं। कहीं लोगों ने भूखे लोगों की मदद के लिए भंडारे खोल दिये हैं तो कहीं अपने घर के दरवाजे तक परेशान लोगों के लिए खोल दिये गए हैं। करुणा का यह भाव कोरोना के साथ भी और कोरोना के बाद भी बनाए रखने की जरूरत होगी। दशांश दान की भारतीय पंरपरा को एक बार फिर सही अर्थों में पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। इसकी शुरुआत अपने आसपास से की जा सकती है। हमारी गली, हमारे गांव व हमारे मोहल्ले में कोई बेरोजगार न रहे, कोई भूखा न सोए जैसे भाव के साथ सभी को पहल करनी होगी। करुणा का यह भाव चिरस्थायी रूप में स्वीकार कर उस पर काम करना होगा। जो संस्थाएं पूरे मन से कोरोना संकट के शिकार लोगों की मदद में जुट गयी हैं, उनकी हर संभव मदद की जिम्मेदारी भी हम सभी की है।
इन सारी तैयारियों के लिए करुणाभाव सर्वाधिक जरूरी है। इस समय भी जब देश कोरोना की चुनौती से जूझ रहा है, हमें आपसी करुणाभाव बनाए रखना होगा। जिस तरह नवरात्र में लोगों ने घरों में रहकर कोरोना से बचाव के सुरक्षा चक्र को मजबूत किया था, रमजान के दौरान भी उस सुरक्षा चक्र को मजबूती से स्थापित करने की जरूरत होगी। हमें इस दौरान आरोप प्रत्यारोप से भी बचना होगा। पिछले कुछ दिनों से जिस तरह देश में धर्म आधारित विभाजन ने विस्तार लिया है, यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है। तब्लीगी जमात की लापरवाही के कारण कोरोना के विस्तार को नकारा नहीं जा सकता, किन्तु इसके लिए पूरे धर्म को निशाने पर ले लेना किसी भी तरह से भारतीय संस्कृति की मर्यादा व मान्यताओं के अनुरूप नहीं माना जा सकता। देश के लिए खतरनाक पहलू यह है कि एक हिस्सा कोरोना संकट के विस्तार के लिए पूरे तौर पर मुस्लिमों को जिम्मेदार ठहराने में जुट गया है, वहीं मुस्लिमों का एक हिस्सा उनके समर्थन में तर्क ढूंढ़ रहा है। ये दोनों ही स्थितियां खतरनाक हैं।
कोरोना से जूझते देश को अर्थव्यवस्था, रोजगार, रुकी विकास यात्रा को पुनः चालू करने जैसी चुनौतियों का सामना करना है। इसके लिए देश को एकजुट होना होगा। समृद्ध भारतीय सांस्कृतिक विरासत को अंगीकर करते हुए करुणा का भाव जागृत किये रहना होगा। जिस तरह से भारत में मंदी का माहौल बना है, उससे समग्र अर्थव्यवस्था के लिए बेहद संकट वाला भविष्य स्पष्ट दिख रहा है। कोरोना से जूझते हुए हमें उसकी तैयारी भी कर लेनी होगी। कोरोना से निपटने के अभियान के दौरान हमने मिलकर ताली-थाली बजाई, हमने एक साथ दीये जलाए और अब हमें करुणा का भाव भी एक साथ जागृत करना है। भारत ने पहले भी ऐसी चुनौतियों का मिलकर सामना किया है और इस बार भी हम मिलकर कोरोनाजनित संकट से निपटेंगे और महाशक्ति बनकर उभरेंगे, इस विश्वास के साथ देश को काम पर लौटना होगा।

Wednesday 15 April 2020

धैर्य के संधान का संक्रमण काल


डॉ. संजीव मिश्र
देश इस समय अलग-अलग मोर्चों पर चुनौतियों का सामना कर रहा है। ये मोर्चे भारतीय जनमानस को हर स्तर पर सीधे प्रभावित कर रहे हैं। इन सबकी जड़ में भले ही कोरोना नजर आ रहा हो, किन्तु इसके परिणाम सेहत के साथ रोटी, कपड़ा और मकान जैसी चुनौतियों के रूप में परिलक्षित हो रहे हैं। भारत के लिए यह इन चुनौतियों का सामना करने का समय तो है ही, धैर्य के साथ बड़ी परीक्षा की घड़ी भी है। वास्तविक अर्थों में अगले कुछ वर्ष हमारे धैर्य की परीक्षा वाले होंगे, मौजूदा समय इसी धैर्य के संधान का संक्रमण काल है। इसे सभी मोर्चों पर सावधानी से पार करना होगा।
कोरोना के वैश्विक हमले में भारत एक बड़े शिकार के रूप में सामने आया है। 21 दिन का पहला देशव्यापी लॉकडाउन खत्म होते-होते देश में कोरोना के संक्रमित मरीजों की संख्या दस हजार के आसपास पहुंच चुकी है। हालांकि यह संख्या अमेरिका, स्पेन व चीन जैसे देशों की तुलना में काफी कम नजर आती है, फिर भी संकट तो बना ही हुआ है। वैसे तब्लीगी जमात जैसी अराजक गतिविधियों से बचा जाता तो यह संख्या और कम होती। कोरोना पर प्रभावी नियंत्रण कर पाने के लिए दुनिया भर में भारत की प्रशंसा भी हो रही है किन्तु इस कारण उत्पन्न समस्याओं की चुनौती मुंह बाए खड़ी है। लॉकडाउन के कारण रोज लाखों लोग भूखे सोने को विवश हैं। भूख की इस चुनौती को सेहत की चुनौती से जूझना पड़ रहा है। स्वास्थ्य बचाने के लिए भूख खत्म करने की चुनौती पीछे सी छूट रही है। सरकारी दावों के बावजूद हर व्यक्ति को अन्न पहुंचाने में सफलता नहीं मिल पा रही है। यहां संतोष की बात ये है कि देश खुलकर सामने आ रहा है। सरकारों से ज्यादा स्वयंसेवी संगठन लोगों की मदद कर रहे हैं। यहां समस्या ये है कि स्वयंसेवी संगठन व उनसे जुड़े लोग आज तो खाना खिला देंगे, पर उस डर से कैसे मुक्ति दिलाएंगे, जो बेरोजगारी व भुखमरी की चिंता में लोगों को तड़पने के लिए विवश कर रही है।
देश के सामने कोरोनाजनित एक बड़ी समस्या रोजगार संकट के रूप में भी सामने आ रही है। देश में करोड़ों लोग ऐसे हैं, जो एक महीने से बिना काम के घर में बैठे होने के कारण अपनी जमा पूंजी खत्म कर चुके हैं। बीमारी से लड़ाई जीतने व लॉकडाउन से मुक्ति के बाद बेरोजगारों व भूखों की इस बड़ी भीड़ से निपटने की चुनौती सरकारों के साथ समग्र समाज की होगी। पहले से ही घटते रोजगारों से परेशान देश के सामने यह नया बेरोजगारी संकट विशद समस्याएं लेकर आएगा। कोरोना संकट से पहले आई सेंटर फ़ॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकॉनमी की एक रिपोर्ट में भारत में बेरोजगारी दर बढ़कर 7.5 प्रतिशत बताई गयी थी। कोरोना के बाद इसकी रफ्तार और तेजी से बढ़ी है। जब ये आंकड़े सामने आएंगे, तो निश्चित रूप से पूरे देश के लिए डराने वाले होंगे। भारत को मिलकर इस चुनौती का सामना करना ही होगी।
कोरोना का यह संकट पहले से ही संकटग्रस्त भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अतिरिक्त संकट की सौगात लेकर आया है। भारतीय अर्थव्यवस्था के मूल अवयवों की बात करें, तो पिछले कुछ वर्ष खासे चुनौतियों भरे हैं। बीता वर्ष ऑटोमोबाइल सेक्टर, रियल स्टेट सहित लघु उद्योगों व असंगठित क्षेत्रों के लिए खासा परेशानी भरा रहा है। कोरोना संकट के बाद हुई देशव्यापी बंदी ने इस परेशानी को और बढ़ा दिया है। पिछले 21 दिनों से लोग घरों में कैद हैं और दुकानों में ताले लगे हैं। उत्पादन भी ठप है और आपूर्ति की राह बंद है। ऐसे में उद्यमिता व अर्थव्यवस्था के रथ का पहिया थम सा गया है। उद्योग जगत इसे समझ भी रहा है, जिसके परिणाम स्वरूप देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कमजोरी आने के एलान भी शुरू हो गए हैं। आर्थिक क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रमुख एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर्स ने मौजूदा वित्तीय वर्ष के लिए संभावित जीडीपी वृद्धि दर के अनुमान घटा दिए हैं। इस एजेंसी ने पहले 6.5 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान लगाया था, जो अब घटाकर 5.2 प्रतिशत कर दिया गया है। अर्थव्यवस्था के सामने आई इस चुनौती से भी पूरे देश को मिलकर निपटना होगा। सरकारों को जनाकांक्षाओं के अनुरूप निर्णय लेने होंगे और देश को भी धैर्य के साथ कुछ कठोर आर्थिक फैसलों के लिए तैयार रहना होगा।
कोरोना संकट ने देश के सामने तमाम दिक्कतों की सौगात भले ही दी हों, किन्तु एकजुटता का संदेश भी दिया है। जिस तरह देश एक साथ मिलकर इस चुनौती का सामना कर रहा है, उसके बाद इसमें कोई संशय नहीं कि हम सब मिलकर कोरोना के बाद की अन्य चुनौतियों का सामना भी मजबूती से करेंगे। यह हमारे धैर्य व संयम की परीक्षा का समय भी है और पूरे देश को इस समय मिलकर यह संक्रमण काल पार करना है। उम्मीद है हम करेंगे और जरूर करेंगे। भारत जीतेगा और सारी चुनौतियों को परास्त कर एक बार फिर विजेता बनकर सामने आएगा।

Wednesday 8 April 2020

टीबी की तैयारी होती, कोरोना आसान हो जाता


डॉ. संजीव मिश्र
सात अप्रैल को हर साल विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। कोरोना के प्रसार के कारण इस साल पूरी दुनिया के लिए स्वास्थ्य एक चुनौती बन गया है। भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखें तो इस समय पूरा देश घरों में कैद है। देश में लाखों लोग भूखे सो रहे हैं और करोड़ों डरे हुए हैं। इस डर के पीछे कोरोना नाम का एक ऐसा वैश्विक संकट है, जिसने बाकी सब कुछ भुला दिया है। तमाम रोक के बावजूद शहरों से हुजूम की शक्ल में पलायन हो चुका है और तब्लीगी जमात जैसे संगठनों ने भी अराजक कदाचार से कोरोना के प्रसार में महती भूमिका का निर्वहन किया है। भारतीय परिप्रेक्ष्य में कोरोना के इलाज से ज्यादा इसका विस्तार रोकने पर चर्चा हो रही है। विस्तार रुकना भी चाहिए, क्योंकि हम न्यूनतम स्तर के इलाज के लिए भी तैयार नहीं हैं। कोरोना के तमाम लक्षण ऐसे हैं जो टीबी या श्वांस संबंधी कई बीमारियों में भी आम माने जाते हैं। हम टीबी या अन्य श्वसन संबंधी बीमारियों के गंभीर मरीजों के लिए ही पूरी तरह तैयार नहीं हैं, फिर कोरोना तो महामारी जैसी आपदा के शक्ल में हमारे बीच आया है। इतना तय है कि यदि हमने गंभीर टीबी या अन्य श्वास संबंधी रोगियों के लिए पर्याप्त तैयारी कर ली होती, तो कोरोना से ल़ड़ाई थोड़ी आसान हो जाती।
यह संयोग ही है कि सात अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस पर इस बार पूरी दुनिया औपचारिक आयोजनों के स्थान पर कोरोना से जूझ रही थी। भारत में भी हर साल 24 से 31 मार्च के सप्ताह को राष्ट्रीय स्तर पर टीबी सप्ताह के रूप में मनाया जाता है। टीबी दुनिया भर में हौ रही मौतों के शीर्ष दस कारणों में शामिल है। हर साल दुनिया में एक करोड़ से अधिक टीबी के मरीज सामने आते हैं और लगभग इतने ही टीबी के मरीज अपनी जान गंवा देते हैं। टीबी वैसे तो शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकती है किन्तु श्वसन तंत्र की टीबी फेफड़े छलनी कर देती है। इस कारण श्वसन तंत्र से जुड़ी अन्य बीमारियां भी सिर चढ़कर बोलने लगती हैं। टीबी के साथ भारत पिछले कुछ वर्षों में क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मनरी डिसीज (सीओपीडी) का अंतर्राष्ट्रीय केंद्र बनता जा रहा है। सीओपीडी व दमा जैसी बीमारियों के मामले में भारत दुनिया में सबसे आगे हैं। दुनिया में दमा से होने वाली कुल मौतों में से 40 प्रतिशत भारतीय होती हैं। दुनिया भर से 25 करोड़ सीओपीडी मरीजों में साढ़े पांच करोड़ से अधिक भारतवासी हैं।
कोरोना के प्रमुख लक्षणों में तेज सांस फूलती है, खांसी आती है, बुखार आता है और थकान लगती है। टीबी व श्वसनतंत्र से जुड़ी अन्य बीमारियों के लक्षण भी कमोवेश ऐसे ही होते हैं। टीबी के गंभीर मरीजों को इलाज के लिए सघन चिकित्सा कक्ष (आईसीयू) और कई बार वेंटिलेटर की जरूरत होती है। कोरोना के गंभीर मरीजों के लिए भी आईसीयू व वेंटिलेटर की जरूरत बताई जा रही है। यहां दुर्भाग्यपूर्ण पहलू ये है कि आईसीयू व वेंटिलेटर सहित सघन चिकित्सा के मामले में भारत की तैयारियां बिल्कुल फिसड्डी जैसी ही हैं। फोर्ब्स की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक भारत में दस लाख की आबादी पर महज 23 बेड ही सघन चिकित्सा के लिए उपलब्ध हैं। इनमें सरकारी व निजी क्षेत्र, दोनों शामिल हैं। इस मामले में अमेरिका प्रति दस लाख आबादी पर 347 आईसीयू बेड्स के साथ सबसे आगे है। कोरोना की शुरुआत वाले चीन से लेकर भयावहता का दंश झेल रही इटली और जर्मनी, फ्रांस, दक्षिण कोरिया, स्पेन, जापान व इंग्लैंड जैसे देश तो भारत से आगे हैं ही। जब ये सारे देश श्रेष्ठ स्वास्थ्य सुविधाएं होने के बावजूद कोरोना से नहीं निपट पाए तो हमारे लिए स्थितियां चिंताजनक तो बनी ही हुई हैं।
ये आंकड़े गवाही देते हैं कि एक लाख की आबादी पर आईसीयू के तीन बेड भी उपलब्ध न करा पाने वाला भारत कोरोना से निपटने के लिए लोगों को घरों में कैद न करता, तो क्या करता? इस समय हमारे लिए घरों में रुक कर कोरोना वाइरस का प्रसार चक्र तोड़ना ही सर्वाधिक उपयुक्त महामंत्र जैसा है। हमें बहुत जरूरी काम के समय भी घर से निकलते हुए यह ध्यान रखना होगा कि यदि हम कोरोना की चपेट में आए और स्थिति गंभीर हो गयी तो हमारे पास पर्याप्त आईसीयू बेड्स तक नहीं हैं। कोरोना हमें यह सीख भी दे रहा है कि जनता को मुद्दों पर आधारित आवाजें भी उठानी होंगी। सराकर को ध्वनि व प्रकाश जनित सकारात्मक ऊर्जा के साथ स्वास्थ्य क्षेत्र में ढांचागत उन्नयन पर गंभीर प्रयास करने होंगे। ऐसा न हुआ तो स्थितियां भयावह होती रहेंगी और हर बीमारी हमारे लिए चुनौती बन जाएगी। भारत के लिए इस वर्ष विश्व स्वास्थ्य दिवस पर उपचार की श्रेष्ठ सुविधाएं मुहैया कराने का संकल्प ही श्रेयस्कर होगा।

Wednesday 1 April 2020

कोरोना फैलाने वालों को देनी होगी बड़ी सजा


डॉ.संजीव मिश्र
एक गायिका हैं कनिका कपूर। जब पूरे देश में कोरोना का हल्ला मचा था, वे लंदन से लखनऊ आईं और पार्टियां करने लगीं। जब पता चला कि वे कोरोना पॉजिटिव हैं तो हल्ला मचा। पूर्व मुख्यमंत्री से लेकर सूबे के स्वास्थ्य मंत्री तक इन पार्टियों का हिस्सा थे और जब स्वास्थ्य मंत्री को सूबे में कोरोना नियंत्रण पर फोकस करना चाहिए था, वे खुद एक कमरे में बंद होने को विवश हो गए। बात कनिका की नहीं, उससे सीखने की है। इस हंगामे के बाद उम्मीद थी कि लोग सुधरेंगे, पर ऐसा नहीं हुआ। दिल्ली में बड़े-बड़े दावों के बीच एक धार्मिक संगठन तब्लीगी जमात ने हजारों लोगों को दिल्ली में इकट्ठा कर लिया। इनमें तमाम लोग भारत के बाहर से भी आए थे और कोरोना लेकर आए थे। परिणाम ये हुआ कि धर्म की रक्षा करने के लिए जुटे लोग एक ही दिन में छह लोगों की जान ले चुके हैं। अभी कितनी जानें और जाएंगी, यह काल के गर्भ में है। जब पूरा देश स्वयं को घरों में कैद किये हुए है, ऐसे में कोरोना फैलाने वालों को कड़ी सजा देने की पहल तो करनी ही होगी। इसके लिए हमें धर्म आधारित चश्मे से बाहर भी निकलना होगा।
पिछला एक पखवाड़ा भारत में कोरोना की गंभीरता को सहेजे रहा है। इस बीच कनिका कपूर का मसला उछला, वहीं मध्य प्रदेश में सरकार बचाने-बनाने की होड़ में कोरोना से बचाव के न्यूनतम नियमों की धज्जियां उड़ाने का मसला भी खूब उठा। तमाम मसले उठते रहने के बावजूद देश की राजधानी दिल्ली में सरकार की नाक के नीचे जिस तरह से तब्लीगी जमात ने हजारों लोगों को एकत्र कर लिया, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। जमात के नुमाइंदों ने एक अतंर्राष्ट्रीय संकट को नहीं समझा और पूरी दुनिया से लोगों को एकत्र कर कोरोना के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। शुरुआती दौर में कुछ ऐसी ही जिद शाहीन बाग के प्रदर्शनकारी भी कर रहे थे। यदि शाहीनबाग सहित ऐसे तमाम धरना स्थलों को खाली कराने के लिए सरकारों ने समयबद्ध सख्ती दिखाई होती, तो तब्लीगी जमात जैसे आयोजनों से बचा जा सकता था। अब यहां से कोरोना वायरस लेकर निकले धर्म प्रचारक देश के विभिन्न हिस्सों में ही नहीं दुनिया में जगह-जगह गए होंगे और लोगों में मौत का डर बांट रहे होंगे, यह स्थितियां ज्यादा खतरनाक हो गयी हैं।
भारत में कानून का पालन न करना एक फैशन सा बन गया है। कनिका कपूर के खिलाफ लखनऊ में आधा दर्जन मुकदमे तो लिखा दिये गए किन्तु लोग खुलकर कह रहे हैं कि जिसकी पार्टी में एक पूर्व मुख्यमंत्री, एक मौजूदा स्वास्थ्य मंत्री सहित सत्ता शीर्ष के तमाम भागीदार आए हों, ठीक होने के बाद भी उसे जेल भेजा जाएगा, यह मुश्किल है। इसी तरह तब्लीगी जमात के आयोजकों के खिलाफ मुकदमा लिखाने के आदेश तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दे दिये हैं किन्तु मुकदमे के बाद उन्हें सजा तक ले जाने की पहल किस शिद्दत से होगी यह तो वक्त ही बताएगा। दरअसल कोरोना जैसी महामारी के प्रति सजगता न बरतने वाले लोग या संगठन एक तरह से हत्यारे जैसी भूमिका में हैं। इनके खिलाफ मुकदमे भी उसी तरह से कराए जाने चाहिए और सजा दिलाने तक की कोशिशएं भी उसी गंभीरता से होनी चाहिए। ऐसा न होने पर लोग सरकारों के आदेशों को ठेंगा दिखाकर मनमानी करते रहेंगे।
सरकार के अलावा आम जनमानस को भी ऐसे लोगों व संगठनों के प्रति सतर्क रहना होगा। इसमें वास्तविक निरपेक्षता भी जरूरी है। आज तब्लीगी जमात द्वारा लोगों को एकत्र किए जाने की आलोचना कर रहे लोगों को उनकी आलोचना भी करनी चाहिए थी, जिन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जनता कर्फ्यू की घोषणा का मखौल उड़ाते हुए जुलूस निकाले थे। साथ ही उन लोगों को भी मुखर होकर तब्लीगी जमात की आलोचना की पहल करनी होगी, जिन पर कथित रूप से सेक्युलर होने के आरोप लगते हैं। इतना तो तय है कि तब्लीगी जमात ने भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों में कोरोना के प्रसार में महती भूमिका का निर्वाह किया है। ऐसे में इस संगठन के खिलाफ कठोर कार्रवाई की पहल की जानी चाहिए। जिस तरह से पूरी दुनिया में कोरोना का प्रसार विस्तार ले रहा है, ऐसे में हर कदम सावधानी से उठाया जाना चाहिए। पूरे देश में लॉक डाउन के बावजूद सड़कों पर उतरे हजारों लोगों की चिंता भी की जानी चाहिए। अभी शहरों तक सीमित कोरोना यदि गांवों में फैल गया तो स्थिति दुरूह हो जाएगी। इसके लिए सामूहिक व निरपेक्ष पहल करनी होगी। कोरोना के अपराधियों को सजा सुनिश्चित कराने के लिए कोरोना के योद्धाओं का मनोबल बढ़ाने की पहल भी जरूरी है। ऐसा न हुआ तो एक बड़ी जानलेवा चुनौती मुंह बाए खड़ी हो, जिससे निपटना कठिन हो जाएगा। सबको मिलकर पहल करनी होगी और कोरोना को हराना होगा।