Wednesday 26 June 2019

बुखार का इंतजार, कुपोषण की भरमार


डॉ.संजीव मिश्र
बिहार में बुखार से हो रही मौतें सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुकी हैं, तो पड़ोसी उत्तर प्रदेश में खतरनाक संकेत सामने आने लगे हैं। हर साल इन मौतों से मुक्ति के बड़े-बड़े वादे होते हैं किन्तु लोकतंत्र मानो बुखार का इंतजार करता है। इस इंतजार के बीच ही भारतीय बच्चों में कुपोषण की भरमार का मामला भी मुखर रूप से सामने आ रहा है। कुपोषित बच्चों के मामले में हम दुनिया में अव्वल हैं और कुपोषित बच्चों की घटती प्रतिरोधक क्षमता उनके अंदर बुखार से जूझने की शक्ति कम कर उसे जानलेवा बना देती है।
पिछले कई दिनों से लोकतंत्र के सभी खंभे बुखार की तपिश में डूबे से नजर आ रहे हैं। राजनीति अचानक सक्रिय हो गई है, नौकरशाही रिपोर्ट-दर-रिपोर्ट बनाने में व्यस्त है, मीडिया आईसीयू तक बिना ग्लब्स-मास्क के घुस चुका है और अब मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच गया है। यह सब पहली बार हो रहा हो, ऐसा नहीं है। हर साल ऐसे ही लोकतंत्र के चारो स्तंभ सक्रिय नजर आते हैं। बच्चों को बुखार आता है, वे मरते हैं और उनके परिजनों के साथ लोकतंत्र चीखता नजर आता है। यह चीख-पुकार मृत्यु के उस क्रंदन की तरह कुछ दिनों में बंद हो जाती है, जिस तरह चिता को मुखाग्नि देने के बाद लोग अपने घरों को लौट जाते हैं और रोने वाले रह जाते हैं बस मृतक के कुछ परिजन। बिहार में चमकी बुखार से हुई मौतों पर संग्राम चल ही रहा था, कि पूर्वी उत्तर प्रदेश से इंसेफेलाइटिस के मामले सामने आने लगे हैं। यहां 1978 से हर साल जापानी इंसेफेलाइटिस जानलेवा रूप में सामने आता है। हर साल बड़ी-बड़ी बातें होती हैं, सैकड़ों की संख्या में बच्चे मरते हैं और फिर अगले साल मौतों का इंतजार शुरू हो जाता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के 38 जिले इंसेफेलाइटिस से पीड़ित हैं और ज्यादातर मरीज गोरखपुर पहुंचते हैं, वहीं बिहार का मुजफ्फरपुर चमकी बुखार का केंद्र बनता है। इन दोनों जिलों में एम्स की स्थापना से लेकर तमाम घोषणाएं हो चुकी हैं और जनता इलाज के साथ घोषणाओं पर अमल का भी इंतजार कर रही है।
बुखार के कारण हो रही इन मौतों को लेकर तमाम शोध भी हो रहे हैं। इन शोधों में एक बात मुखर रूप में सामने आ रही है कि बच्चों में कुपोषण इस समस्या की जड़ में है। कुपोषण को लेकर भारत के लिए बेहद चिंताजनक खबर भी सामने आ रही है। हाल ही में आई ग्लोबल न्यूट्रीशन रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया के कुल कुपोषित बच्चों में लगभग एक तिहाई भारत में ही हैं। राष्ट्रीय पोषण मिशन के रूप में इस समस्या के समाधान के लिए की जा रही सरकारी कोशिशें प्रभावी साबित नहीं हो रही हैं, यह बात भी इस रिपोर्ट से पुष्ट हो रही है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत के साढ़े चार करोड़ से अधिक बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। यह संख्या पूरी दुनिया के कुल कुपोषित बच्चों में तीस प्रतिशत के आसपास है। दुनिया भर से कुपोषण की तमाम तस्वीरें सामने आती हैं, जिनमें अक्सर नाइजीरिया के बच्चों की तस्वीरों पर फोकस किया जाता है। इस रिपोर्ट कुछ और ही सच्चाई बयां कर रही है। इस रिपोर्ट के मुताबिक कुपोषण के मामले में हम नाइजीरिया से भी आगे हैं। नाइजीरिया के लगभग डेढ़ करोड़ बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। पाकिस्तान के आर्थिक संकट से जूझने की खबरें हमें अक्सर पढ़ने-सुनने को मिलती हैं, किन्तु इस सूची में पाकिस्तान तीसरे स्थान पर है, जहां के लगभग एक करोड़ बच्चे कुपोषण से जूझ रहे हैं।
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च भी कुपोषण को लेकर चिंतित है और बुखार के कारण बिहार व पूर्वी उत्तर प्रदेश में हो रही मौतों के पीछे कुपोषण को भी एक कारण मानकर शोध कर रही है। वैसे ग्लोबल न्यूट्रीशन रिपोर्ट हमें कठोर चेतावनी भी दे रही है। रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि भारत एक गंभीर कुपोषण संकट से जूझ रहा है। कुपोषण बच्चों के विकास में सबसे बड़ा बाधक साबित हो रहा है। बच्चों का विकास अपनी आयु के हिसाब से नहीं हो रहा है। न तो वे उम्र के अनुपात में लंबे हो रहे हैं, न ही उनका मानसिक विकास ठीक से हो पा रहा है। कुपोषण के चलते उनकी प्रतिरोधक क्षमता विकसित नहीं हो पाती और वे बार-बार संक्रमण का शिकार बन जाते हैं। भारत में पांच साल से कम आयु के 40 प्रतिशत से अधिक बच्चे कुपोषण के शिकार हैं और इसके पीछे गरीबी व अज्ञानता तो बड़ा कारण है ही, इन तथ्यों को नजर-अंदाज किये जाने से भी संकट बढ़ रहा है। इससे देश की उत्पादकता व बौद्धिक क्षमता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की बात कही गयी है। ऐसे में अब जब बुखार देश की चर्चा के केंद्र मैं है, लोकतंत्र के सभी स्तंभों की सक्रियता से उम्मीदों की लौ टिमटिमा रही है। सरकारें तत्पर हैं और हर साल की तरह इस साल भी कुछ ठोस होने की उम्मीद जगी है। इस दिशा में कितना ठोस काम हो सका है, यह तो अगले साल ही पता चलेगा। इतना जरूर है कि बच्चों की चिंता पर शोर से ज्यादा ठोस काम की जरूरत है। बच्चे स्वस्थ रहेंगे, तो देश का भविष्य स्वस्थ होगा, वरना..... महज चिंता हमें चिता की ओर ही ले जाएगी।

Monday 24 June 2019

आरएसएस की वैश्विक दस्तक भी है योग दिवस



डॉ.संजीव मिश्र
योग भारतीय वांग्मय का विशिष्ट हिस्सा रहा है। यूं तो योग पूरी दुनिया में अपने वैशिष्ट्य के लिए चर्चित व स्वीकार्य पद्धति के रूप में सामने आया है किन्तु संयुक्त राष्ट्र संघ की स्वीकार्यता के बाद 2015 में पहली बार पूरी दुनिया में 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया गया। इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर हुआ फैसला तो स्वीकार किया गया किन्तु इसके पीछे 21 जून की तिथि होना भी खासा महत्वपूर्ण है। दरअसल 21 जून राष्ट्र्यी स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संस्थापक डॉ. केशवराव बलिमाम हेडगेवार की पुण्य तिथि है और एक स्वयंसेवक प्रधानमंत्री ने इस दिन योग दिवस घोषित कराकर आरएसएस की वैश्विक दस्तक का पथ भी प्रशस्त किया है। यही कारण है कि पहले साल से ही आरएसएस भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हर देश में योग दिवस को विशेष रूप से मना रहा है।
योग दिवस व आरएसएस के जुड़ाव को समझने के लिए हमें तमाम संयोगों व संभावनाओं को जोड़ना होगा। नरेंद्र मोदी के रूप में आरएसएस के स्वयंसेवक ने देश में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई तो आरएसएस व अन्य आनुषांगिक संगठनों का प्रसन्न होना तो अवश्यंभावी था, स्वयंसेवक प्रधानमंत्री के लिए भी अपने मातृ संगठन को गुरु दक्षिणा के रूप में कुछ बड़ा उपहार देना था। ऐसे में प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी 27 सितंबर 2014 को जब संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करने गए तो उन्होंने योग को भारतीय थाती के रूप में दुनिया के सामने प्रस्तुत किया। उन्होंने पूरी दुनिया में एक दिन अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव किया और इसे संयुक्त राष्ट्र के 177 सदस्य देशों ने मिलकर मंजूरी दी। इसमें भी 21 जून का ही चयन होना दरअसल देश के प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे एक स्वयंसेवक की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक को श्रद्धांजलि व संगठन को गुरु दक्षिणा मानी गयी। वैसे भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आरएसएस के स्वयंसेवक ही नहीं, प्रचारक भी रहे हैं। उन्हें प्रधानमंत्री बनवाने में आरएसएस की भूमिका से कोई इनकार भी नहीं करता। ऐसे में जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर योग को लेकर प्रधानमंत्री ने मुहिम चलाई और सैद्धांतिक स्तर पर संयुक्त राष्ट्र ने भी वर्ष का एक दिन दुनिया भर में योग दिवस के रूप में मनाए जाने का फैसला लिया, तो उसकी तारीख पर मंथन हुआ। स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के लिए पहल की थी, तो निश्चित रूप से तिथि तय करने में भी भारत की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता है।

संयुक्त राष्ट्र संघ ने 11 दिसंबर 2014 को जब 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की तो आरएसएस के स्वयंसेवक खासे प्रसन्न हुए। यह दिन संघ के स्वयंसेवकों के लिए पहले ही खासे महत्व का रहा है। 21 जून 1940 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक व पहले सर संघ चालक डॉ.केशवराव बलिराम हेडगेवार का निधन हुआ था। 2015 में जब पहली बार अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया, उस वर्ष 21 जून को डॉ.हेडगेवार की 75वीं पुण्यतिथि थी। दरअसल आरएसएस की शाखाओं में योग का महत्वपूर्ण योगदान है। शाखाओं में आज भी सूर्य नमस्कार अवश्य होता है और योग पर पूरा जोर दिया जाता है। डॉ.हेडगेवार ने देश की रक्षा के लिए शरीर की मजबूती को माध्यम बनाया। इसलिए शाखाओं में योग-व्यायाम को महत्व दिया जाता है। वे इसे चरित्र निर्माण व राष्ट्रनिर्माण का माध्यम मानते थे। प्रधानमंत्री मोदी ने भी संयुक्त राष्ट्र में योग से संबंधित अपनी बातों में योग को समग्रता के साथ प्रस्तुत किया था।
इस साल एक बार फिर योग दिवस को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जोर-शोर से मनाया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पुनः भाजपा की सरकार बनने के बाद एक तरह से यह पहला बड़ा व वैश्विक आयोजन है। आरएसएस के लिए भी यह आयोजन वैश्विक दस्तक का माध्यम बन गया है। आरएसएस के अंतर्राष्ट्रीय कामकाज का जिम्मा संभालने वाली संस्था हिन्दू स्वयंसेवक संघ ने पहले साल ही अमेरिका, इंग्लैंड, नेपाल, ऑस्ट्रेलिया, डेनमार्क, फिनलैंड, इटली, फ्रांस, नीदरलैंड व नार्वे में योग दिवस पर विशेष आयोजन किये थे। अब हर वर्ष इसमें वृद्धि हो रही है। संयुक्त राष्ट्र संघ की पहलके बाद योग दिवस पूरी दुनिया में स्वीकार्य आयोजन के रूप में सामने आया है। ऐसे में आरएसएस के आयोजनों में योग के साथ डॉ.हेडगेवार की पुण्य तिथि भी मनाई जाती है। साथ ही योग व भारतीय वांग्मय पर आरएसएस की वैचारिक प्रतिबद्धताएं भी चर्चा का केंद्र होती हैं। माना जा रहा है कि इस माध्यम से न सिर्फ लोग आरएसएस को जानेंगे, बल्कि संगठन के बारे में होने वाले तमाम विमर्श भी सकारात्मक रूप से सामने लाने में सफलता मिलेगी।

Wednesday 12 June 2019

इकबाल कायम कीजिए हुजूर!


डॉ. संजीव मिश्र
वह बच्ची बस ढाई साल की थी। तोतली बोली में वह ‘ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार’ गाती तो घर वाले ही नहीं, आसपास के लोग भी उसकी तारीफ किये बिना नहीं रहते थे। उसका नाम भी ट्विंकल ही था, ट्विंकल यानी टिमटिमाहट। इस छोटे से तारे की टिमटिमाहट अभी परवान चढ़ती कि कुछ दरिंदों की नजर उस पर पड़ गयी और उन्होंने ट्विंकल की सारी चमक छीन ली। अलीगढ़ की ट्विंकल ही नहीं, जिस तरह पूरे देश में बच्चियों के साथ अपहरण व बलात्कार की घटनाएं हो रही हैं, उससे साफ है कि देश में बच्चियां सुरक्षित नहीं हैं। लोग बच्चियों पर मनमाने ढंग से हमले कर रहे हैं और पुलिस या सरकार का डर खत्म हो गया है। वही डर, जिसे लोग पुलिस या सत्ता के इकबाल के नाम से जानते हैं। देश में लगातार बढ़ रही ऐसी घटनाएं, सत्ता के पहरेदारों से बस यही विनती कर रही हैं कि अब तो जागिये और अपना इकबाल कायम कीजिए हुजूर।
भारत वह देश है, जहां हम ‘यत्र नार्यस्यु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’ की पंक्तियों के साथ महिलाओं के पूजनीय होने का दावा करते हैं। नवरात्र के दिनों में कन्यापूजन की होड़ सी लगती ही। इसी देश में बच्चियों के साथ हो रहे अपराध कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार बच्चों के खिलाफ अपराध में हर वर्ष औसतन दस प्रतिशत की वृद्धि हो रही है। आंकड़ों के मुताबिक 2014 की तुलना में 2016 में बच्चों के साथ अपराध में 20 फीसद की वृद्धि हुई है। सिर्फ 2016 में ही बच्चों के खिलाफ यौन उत्पीड़न के 36022 मामले दर्ज हुए, जिनमें से 19765 बच्चियों के साथ बलात्कार की घटनाएं हुई थीं। इसी वर्ष देश में 54 हजार से अधिक बच्चों का अपहरण हुआ, जिनमें से 222 की हत्या भी कर दी गयी। यहां दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि बच्चों के खिलाफ अपराध के मामले में समग्र रूप से अपराध दर के हिसाब से देश की राजधानी दिल्ली अव्वल नंबर पर है। वह राजधानी जहां चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा बंदोबस्त के दावे होते हैं, वह दिल्ली जहां की पुलिस खुद को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ पुलिस होने का दावा करती है, वहां बच्चे सर्वाधिक असुरक्षित हैं और साहब लोगों का इस ओर ध्यान ही नहीं जाता है।
राजधानी दिल्ली की असुरक्षा को लेकर तो आए दिन सवाल उठते ही रहते हैं किन्तु बच्चों के साथ अपराध के मामले में अन्य राज्य पीछे नहीं हैं। यदि बच्चों के साथ होने वाली आपराधिक घटनाओं में हिस्सेदारी को आधार बनाया जाए तो उत्तर प्रदेश व महाराष्ट्र अव्वल नजर आते हैं। यौन उत्पीड़न व ऐसी ही अन्य समस्याओं से पीड़ित बच्चों में से 15 प्रतिशत उत्तर प्रदेश के, तो 13.6 प्रतिशत महाराष्ट्र के हैं। उत्तर प्रदेश का ही उदाहरण लें तो अलीगढ़ में ट्विंकल के साथ हुई घटना ने जहां पूरे देश को झकझोर दिया, वहीं इस घटना के 72 घंटे के भीतर बाराबंकी में आठ साल, बरेली में सात साल, हमीरपुर में दस साल, अमरोहा में पांच साल, वाराणसी में नौ साल व मेरठ में 11 साल की बच्ची के साथ यौन उत्पीड़न के मामले सामने आए हैं। इसके अलावा लगभग रोज कहीं न कहीं बच्चियों के साथ यौन उत्पीड़न, बलात्कार व हत्या की घटनाएं हो रही हैं। हाल ही में चुनाव के दौरान बच्चियों की सुरक्षा के बड़े-बड़े दावे व वादे तो किये गए किन्तु चुनाव के बाद इस दिशा में कोई सकारात्मक पहल होती दिखाई नहीं दे रही है। पुलिस व सरकार का डर ही मानो खत्म हो गया है। लोग बेखौफ होकर अपराध करते हैं और ऐसी घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं।
पुलिस व सरकार का खौफ कम होने के पीछे मामलों के निस्तारण में होने वाला विलंब बड़ा कारण माना जाता है। यौन उत्पीड़न के 60 हजार से अधिक मामले पुलिस की फाइलों में दबे हैं। सिर्फ बच्चियों से बलात्कार के ही 35 हजार से अधिक मामले अभी तक जांच के स्तर पर लंबित हैं। इन सबको न्याय तभी मिलेगा, जब समयबद्ध जांच होगी। बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों पर त्वरित कार्रवाई उन्हीं मामलों में होती है, जो मामले किसी न किसी तरह सामाजिक चर्चा में आ जाते हैं। दिल्ली का निर्भया कांड इसका बड़ा उदाहरण है, जिसके बाद कानून बदलने तक की नौबत आ गयी थी। अब ट्विंकल हत्याकांड के बाद एक बार फिर देश में चर्चाएं तेज हैं किन्तु जब तक पुलिस सख्त नहीं होगी, सरकारें गंभीर नहीं होंगी, उनका इकबाल कायम नहीं हो सकेगा। अपराधी बेखौफ घूमेंगे और बच्चे डरे-सहमे रहेंगे।

Friday 7 June 2019

पर्यावरण सुधार से रामराज्य की राह


डॉ.संजीव मिश्र
सफल रसाल पूगफल केरा।
रोपहु वीथिन्ह पुर चहुँ फेरा।।
रामचरित मानस की यह चौपाई, श्रीराम राज्याभिषेक की तैयारियों के बीच गुरु वशिष्ठ के निर्देशों का हिस्सा है। वे सभी मार्गों के किनारे पौधरोपण का निर्देश दे रहे हैं। पांच जून को हम भी बड़े-बड़े वादों-दावों के साथ विश्व पर्यावरण दिवस के हिस्सेदार बनेंगे, किन्तु यह भूल जाएंगे कि सही अर्थों में पर्यावरण संरक्षण के लिए हमें ईमानदार प्रयास करने होंगे। देश का मौजूदा राजनीतिक नेतृत्व रामराज्य को अपना आधार स्तंभ मानता है, उसे भी याद रखना होगा कि रामराज्य की कसौटी के तमाम बिंदुओं में से पर्यावरण संरक्षण भी बेहद महत्वपूर्ण बिंदु है।
इस समय पूरी दुनिया में जलवायु संरक्षण को लेकर चल रही मुहिम में भी अधिकाधिक भागीदारी पर जोर दिया जा रहा है। दुनिया बार-बार चिल्ला रही है कि हम खतरे के मुहाने पर हैं। भारत के मौसम चक्र में बदलाव स्पष्ट दिखने भी लगा है। अखबारों में आए दिन अत्यधिक तापमान की खबरें आम हो गयी हैं। नागपुर से कानपुर तक तापमान कब पचास डिग्री सेल्सियस पहुंच जाए, कहा नहीं जा सकता। बिगड़ा जलवायु चक्र हमारी व सरकारों की ढिलाई का नतीजा है। इसका प्रभाव खेती पर भी प्रतिकूल पड़ने लगा है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान का मानना है कि तापमान में औसतन तीन डिग्री सेल्सियस की वृद्धि गेहूं के उत्पादन में 15 से 20 प्रतिशत तक की कमी कर देगी। भारत 2050 तक दुनिया में सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश हो जाएगा। उसके विपरीत प्राकृतिक संसाधनों की कमी निश्चित रूप से समस्या बनेगी। पर्यावरण व जलवायु संरक्षण पर पर्याप्त ध्यान न दिये जाने के कारण देश में पानी की कमी भी होती जा रही है। वर्ष 2001 में भारत में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 1820 घन मीटर थी, जो 2011 में घटकर 1545 घन मीटर प्रति व्यक्ति रह गयी। भारत सरकार के जल संसाधन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 2025 में 1341 घन मीटर रह जाएगी। यह स्थिति भीषण जल संकट का कारण बनेगी। जल प्रदूषण की भयावहता के कारण उपलब्ध जल भी पूरी तरह उपयोग की स्थिति में नहीं है। वायु प्रदूषण के मामले में तो हम दुनिया का नेतृत्व कर ही रहे हैं, देश का वन क्षेत्र भी लगातार कम हो रहा है।

पिछले कुछ वर्षों से देश में पर्यावरण को लेकर जागरूकता तो दिख रही है, किन्तु प्रभावी क्रियान्वयन का संकट भी साफ दिख रहा है। यह संयोग ही है कि केंद्र की मौजूदा सरकार रामराज्य की परिकल्पना जनता के बीच लेकर जाती है। रामराज्य का जो विवरण गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में दिया है, उसमें पर्यावरण संरक्षण बेहद महत्वपूर्ण भूमिका में है। रामराज्य का वर्णन करते हुए वे लिखते हैं, ‘सुमन वाटिका सबहिं लगाईं। विविध भाँति करि जतन बनाई।। लता ललित बहु जाति सुहाईं। फूलहिं सदा बसन्त की नाईं।।’ तुलसी ने रामराज्य में पौधरोपण व पर्यावरण संरक्षण के लिए सभी की भागीदारी को महत्वपूर्ण करार दिया है। मौजूदा सरकार का नेतृत्व कर रही भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव के लिए जारी अपने संकल्प पत्र में पर्यावरण को लेकर थोड़ी-बहुत चिंता जताई है। सरकार ने अलग जलशक्ति मंत्रालय बनाया है। इससे उम्मीदें बढ़ी हैं। वैसे भी गंगा प्रदूषण को लेकर प्रधानमंत्री से लेकर सरकार के अन्य मंत्री तक वादे व दावे करते रहे हैं। भाजपा के संकल्प पत्र के अनुसार पिछले पांच वर्षों में देश में नौ करोड़ शौचालयों का निर्माण हो चुका है। सरकार ने अब हर गांव में सतत ठोस कचरा प्रबंधन लागू करने का वादा किया है। ऐसा हुआ तो तात्कालिक प्रदूषण पर अंकुश लगेगा। भाजपा ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु मिशन की स्थापना का वादा भी किया है। इसके अंतर्गत देश के 102 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर मौजूदा खतरनाक स्तर से 35 प्रतिशत नीचे लाने का संकल्प व्यक्त किया गया है। भाजपा का वादा है कि हर गांव, उपनगर व बिना नालियों वाले इलाकों में तरल अपशिष्ट के पूर्ण निस्तारण को मल प्रबंधन व गंदे पानी के पुनः इस्तेमाल के माध्यम से सुनिश्चित किया जाएगा। दावा है कि पिछले पांच वर्षों में देश में नौ हजार किलोमीटर वनाच्छादन बढ़ाया गया है। इसे और गति देने का वादा भी किया गया है।
सरकारों के वादे व दावे तो होते रहते हैं किन्तु उन पर अमल का मजबूत ढांचा सुनिश्चित करना जरूरी है। पिछले कुछ वर्षों में सरकारों द्वारा अभियान चलाकर पौधरोपण की पहल भी हुई है। उत्तर प्रदेश का ही उदाहरण लें तो यहां 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पांच करोड़ से अधिक पौधे एक दिन में ही लगाकर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रेकार्ड्स में नाम दर्ज कराया था। 2017 में योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में बनी भाजपा सरकार भी इसमें पीछे नहीं रहना चाहती थी और 2018 में नौ करोड़ पौधे लगाकर कीर्तिमान अपने नाम किया गया। अब दो साल के भीतरह लगे 14 करोड़ से अधिक पौधों में से कितने बचे हैं, इसकी चिंता किसी ने नहीं की। इसके अलावा हर साल कागजों पर करोड़ों पौधे लगते हैं। सरकार को इन पौधों की रक्षा भी सुनिश्चित करनी होगी। जल, वायु व धरती का संरक्षण ही सृष्टि की समग्र रक्षा कर सकता है। हम अभी नहीं चेते, तो संकट तय है।