Tuesday 25 October 2016

खनन माफिया की मदद से राहुल ने जीती अमेठी


--राहुल गांधी पर तीन मंत्रियों का हमला--
-स्मृति का कांग्र्रेस उपाध्यक्ष पर गायत्री से मिलीभगत का आरोप
-अमेठी में खाट सभा की चुनौती दे कहा, यहां खड़ी हो जाएगी खाट
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डॉ.संजीव, अमेठी
रानी पद्मावती के प्रेम में राजाओं के युद्ध की कथा पद्मावत लिखने वाले महाकवि मलिक मोहम्मद जायसी की जन्मभूमि जायस शनिवार को केंद्र सरकार के तीन मंत्रियों के आक्रामक हमले की गवाह बनी। निशाने पर रहे क्षेत्रीय सांसद व कांग्र्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी। कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी ने तो यहां तक कह दिया कि खनन माफिया व प्रदेश सरकार में मंत्री गायत्री प्रजापति की मदद से राहुल ने अमेठी सीट जीती।
पिछले लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी को चुनौती देने वाली स्मृति ईरानी शनिवार को केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर व केंद्रीय पेट्रोलियम राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) धर्मेन्द्र प्रदान के साथ अमेठी के जायस में राजीव गांधी पेट्रोलियम प्रौद्योगिकी संस्थान के उद्घाटन व गौरीगंज में उज्ज्वला योजना के तहत गैस कनेक्शन वितरण समारोह में भाग लेने पहुंची थीं। जायस का संस्थान पूर्व प्रधानमंत्री के नाम पर होने के बावजूद वहां राहुल गांधी के न आने पर सवाल उठे, तो गौरीगंज के कार्यक्रम में स्मृति ईरानी ने उन पर सीधे हमला बोल दिया। उन्होंने कहा कि वर्षों से सत्ता पर कब्जा किये लोगों ने जानबूझकर घर में अंधेरा किया। जायस की बेटियों ने स्कूल मांगा तो उन्हें जेल भेज दिया गया। कहा कि राहुल गांधी किसानों के समर्थन में प्रधानमंत्री मोदी पर हमला करते हैं, जबकि अमेठी में ही उन्होंने राजीव गांधी फाउंडेशन व सम्राट साइकिल के नाम पर किसानों की जमीन हथिया रखी है। किसानों को उनकी जमीन वापस करने चुनौती देने के साथ कहा कि वे अमेठी में खाट सभा करें, फिर खुद ही कहा, वे यहां नहीं आएंगे क्योंकि ऐसा करने पर यहां उनकी खटिया खड़ी हो जाएगी। वे यहां आकर प्रदेश सरकार का भी विरोध नहीं कर सकते, क्योंकि अमेठी जीतने के लिए उन्होंने प्रदेश सरकार के मंत्री व खनन माफिया गायत्री प्रसाद प्रजापति की मदद ली थी। वे बताएं कि उन्होंने खनन घोटाले में लिप्त गायत्री प्रजापति की मदद क्यों ली? जिस साइकिल पर वे अभी तक सवार थे, अब उसे पंचर करना चाहते हैं। इसी तरह जिस हाथी को वे दिल्ली ले गए, आज उसी से जूझ रहे हैं।
...तो पप्पू फेल हो गया
जायस में राजीव गांधी पेट्रोलियम प्रौद्योगिकी संस्थान के नए परिसर का उद्घाटन करते हुए पेट्रोलियम राज्यमंत्री धर्मेन्द्र प्रधान के निशाने पर भी राहुल गांधी रहे। उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नाम पर स्थापित इस संस्थान के उद्घाटन समारोह में उन्होंने राहुल को बुलाया था किन्तु वे नहीं आये। ऊपर से चिट्ठी लिखी कि समय नहीं था, पहले समय लेना चाहिए था। कहा कि अब संस्थान में जल्द ही स्वामी विवेकानंद की आदमकद प्रतिमा लगाई जाएगी। उसके लिए अभी से राहुल गांधी से समय मांगेंगे, वे आएं और हम सब रात भी यहीं बिताएंगे। राहुल गांधी द्वारा चिट्ठी में संस्थान को मंजूरी व अनुदान की बात पर कहा कि छह साल में कांग्र्रेस सरकार ने 129 करोड़ रुपये दिये थे, जबकि दो साल में भाजपा सरकार ने इस संस्थान के लिए 302 करोड़ रुपये दिये। ऑयल कंपनियों ने 200 करोड़ रुपये का कॉरपस फंड अलग से बनाया। ऐसे में गणित के हिसाब से स्पष्ट हो जाएगा कि पप्पू फेल हुआ या पास। इस पर जवाब आया, पप्पू फेल हो गया। गौरीगंज में गरीब महिलाओं को गैस कनेक्शन वितरण कार्यक्रम में भी उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम के लिए पेट्रोलियम विभाग के अधिकारी शामिल हसन राहुल गांधी को तीन बार न्यौता देने गए किन्तु उनके कार्यालय ने न्यौता लेने तक से मना कर दिया। 28 साल गांधी परिवार व 12 साल राहुल गांधी के प्रतिनिधित्व के बावजूद अमेठी की हालत इतनी खराब है कि लोगों को शुद्ध पानी तक नहीं मिलता। राहुल मोदी से दो साल का हिसाब मांग रहे हैं, वे पहले सिर्फ अमेठी का ही हिसाब दे दें। कटाक्ष किया कि खाट सभा कर रहे राहुल को कभी खटमल ने नहीं काटा, इसीलिए वे आलू का कारखाना लगवा रहे हैं।
अन्याय का बदला लेती अमेठी
मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि 70 साल से अमेठी-रायबरेली में एक ही घराने की सत्ता रही है। इसके बावजूद बदहाली के लिए उन्हें जवाब देने हेंगे। पूरे देश में लोग समझते हैं कि अमेठी-रायबरेली की धरती पर स्वर्ग होगा, पर यहां समस्याओं का अंबार है। वैसे अमेठी अन्याय का बदला लेती है। 1977 में इमरजेंसी के बाद अन्याय करने वालों को निकाल बाहर किया था, वह फिर ऐसा ही करेगी। उन्होंने कहा कि भाजपा सबको शिक्षा-अच्छी शिक्षा पर जोर दे रही है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर बहस शुरू हो रही है। पेट्रोलियम संस्थान से उन्होंने दुनिया भर के लिए प्रतिष्ठित शोध करने का आह्वान किया।

पुलिस ने मांगा ड्यूटी डॉक्टरों का ब्यौरा

-दीपावली में सुरक्षा अलर्ट के साथ अस्पतालों पर भी नजर
-बर्न यूनिट व इमरजेंसी के नंबर भी रहेंगे थानाध्यक्षों के पास
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: दीपावली के मद्देनजर सुरक्षा अलर्ट के साथ पहली दफा पुलिस ने अस्पतालों पर भी नजर रखने का फैसला किया है। गृह विभाग ने इसके लिए स्वास्थ्य विभाग से अस्पतालों के ड्यूटी डॉक्टरों के साथ इमरजेंसी व बर्न यूनिट आदि का भी ब्यौरा मांगा है।
त्योहारों पर गृह विभाग की ओर से पुलिस-प्रशासन के लिए हर बार सामान्य अलर्ट जारी किया जाता है। अभी तक इस अलर्ट में पुलिस सक्रियता के साथ अपराधियों की धरपकड़, गुंडा एक्ट जैसी कार्रवाई आदि का जिक्र होता था। इस बार दीपावली से पूर्व गृह विभाग द्वारा सभी जिलों के पुलिस प्रमुखों के लिए जारी अलर्ट में किसी आपात स्थिति में उपचार को महत्व देते हुए बदलाव किया गया है। सभी पुलिस प्रमुखों से अपने जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारियों व मेडिकल कालेज होने की स्थिति में, वहां के प्राचार्यों से समन्वय स्थापित करने को कहा गया है। गृह विभाग का तर्क है कि दीपावली में पटाखे जलने या अन्य किसी आपात स्थिति में अस्पतालों में सावधानी की जरूरत होती किन्तु कई बार उसमें लापरवाही की बात सामने आ जाती है। इसीलिए इस बार रूटीन अलर्ट में यह बदलाव किया गया है।
दीवाली 30 अक्टूबर को है, इसलिए 29 अक्टूबर से ही सक्रियता बरतने के निर्देश दिये गए हैं। सभी जिला पुलिस प्रमुखों से जिला पुरुष व महिला चिकत्सालयों के अलावा मंडल स्तरीय व अन्य बड़े संयुक्त चिकित्सालयों में ड्यूटी डॉक्टरों की तैनाती का पूरा ब्यौरा देने को कहा गया है। सामान्य ड्यूटी के अलावा इमरजेंसी व ट्रामा में तैनात चिकित्सकों की पूरी जानकारी और उनके फोन नंबर जुटाने को भी कहा गया है। दीपावली में आगजनी जैसी घटना होने पर लोगों के जलने की स्थिति में उन्हें पहले इमरजेंसी भेजने के बाद बर्न यूनिट स्थानांतरित होने तक का समय बचाने के लिए सीधे बर्न यूनिट भेजने का निर्देश भी दिया गया है। इसके लिए इमरजेंसी व बर्न यूनिट के नंबर भी जुटाने के निर्देश दिये गए हैं। ये सभी नंबर थानाध्यक्षों के पास तक भेज दिये जाएंगे। इसके अलावा एंबुलेंस सेवा मुस्तैद रखने को भी कहा गया है। ग्र्रामीण इलाकों में कोई घटना होने पर पुलिस वहां से घायलों व बीमारों को लेकर सीधे जिला अस्पताल या मेडिकल कालेज पहुंचेगी। इस दौरान थानाध्यक्षों के पास उपलब्ध फोन नंबरों से चिकित्सकों की सूचित कर दिया जाएगा, ताकि मरीज के अस्पताल पहुंचते ही इलाज शुरू हो सके और उसमें विलंब न हो।
(21/10/16)

सत्ता-कालेज गठजोड़ ने महंगा किया डॉक्टर बनना


-आसपास के राज्यों की तुलना में दोगुना से अधिक एमबीबीएस फीस
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डॉ.संजीव, लखनऊ
भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआइ) की तमाम कोशिशों के बावजूद उत्तर प्रदेश में निजी मेडिकल व डेंटल कालेजों की मनमानी पर अंकुश नहीं लग सका है। सत्ता व निजी कालेजों के गठजोड़ से यहां डॉक्टर बनना खासा महंगा हो गया है। प्रदेश में निजी कालेजों से एमबीबीएस करने की फीस आसपास के राज्यों से दोगुना से भी अधिक है।
उत्तर प्रदेश में निजी क्षेत्र के 28 मेडिकल कालेज संचालित हैं। पिछले वर्ष तक इन कालेजों में मनमाने ढंग से शुल्क वसूली की जाती थी। निजी कालेज संचालक प्रवेश भी सीधे ले लेते थे। भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआइ) की पहल और सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के बाद इस वर्ष इन कालेजों में प्रवेश के लिए राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंटरेंस टेस्ट (नीट) की अनिवार्यता के बाद सरकार ने आम मेधावी विद्यार्थी को भी निजी कालेजों में अवसर देने के लिए आधी सीटें 36 हजार रुपये में भरने और शेष सीटों के लिए कालेजवार 17.64 लाख से 21.32 लाख रुपये के बीच शुल्क निर्धारित कर दिया। इस फैसले को निजी कालेजों ने अदालत में चुनौती दी, तो अदालत के निर्देश पर चिकित्सा शिक्षा विभाग ने आंकलन के बाद नौ लाख रुपये के आसपास औसत शुल्क प्रस्तावित किया। सत्ता से निजी कालेजों का गठजोड़ काम आया और ये लोग एमबीबीएस के लिए शुल्क 11.30 लाख रुपये वार्षिक कराने में सफल हो गए। यह शुल्क आसपास के राज्यों की तुलना में दो से तीन गुना तक है। मध्यप्रदेश और उत्तराखंड के निजी कालेजों में औसत शुल्क साढ़े पांच लाख रुपये है तो छत्तीसगढ़ में यह सिर्फ 3.8 लाख रुपये वार्षिक है। राजस्थान में आधी सीटें तो मात्र 16 हजार रुपये वार्षिक शुल्क पर भरी जाती हैं। शेष सीटों के लिए भी शुल्क पांच लाख रुपये वार्षिक ही है। केरल, कर्नाटक व आंध्रप्रदेश के निजी कालेजों में भी शुल्क उत्तर प्रदेश से कम है। इस संबंध में चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक डॉ.वीएन त्रिपाठी का कहना है कि यह अंतरिम शुल्क है। तीन माह भीतर अंतिम शुल्क निर्धारित किया जाना है, उसमें सभी बिन्दुओं पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
खाली रह गयीं 1145 सीटें
प्रदेश के 28 निजी कालेजों की 3800 एमबीबीएस सीटों में से 1145 सीटें खाली रह गयी हैं। सभी मेडिकल कालेजों में हर हाल में 30 सितंबर तक सभी प्रवेश हो जाने चाहिए थे। नीट की काउंसिलिंग में ज्यादातर सीटें खाली रह जाने पर सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से समय मांगा तो सात अक्टूबर तक समय मिल गया। इसमें भी सीटें नहीं भरने पर सरकार व निजी कालेज फिर सर्वोच्च न्यायालय की शरण में गए, किन्तु न्यायालय ने अतिरिक्त समय देने से इनकार कर दिया।
एमबीबीएस पर खर्च 70 लाख
उत्तर प्रदेश के निजी कालेजों से एमबीबीएस करने के लिए औसत खर्च 70 लाख रुपये आ रहा है। प्रारंभिक शुल्क के रूप में 11.30 लाख रुपये प्रति वर्ष की दर से साढ़े चार साल के लिए 50.85 लाख रुपये शुल्क बनता है। निजी कालेज पांच साल छात्रावास सहित अन्य खर्चों के रूप में औसतन चार लाख रुपये ले रहे हैं। कुछ पुराने व प्रतिष्ठित कालेजों में यह खर्च इससे अधिक तो नए में कुछ कम है। कुल मिलाकर एमबीबीएस पास कर निकलने तक औसत खर्च 70 लाख रुपये आ रहा है।
(18/10/16|)

सरकारी विभागों में इंटर्नशिप, एकेटीयू की फेलोशिप


-बीटेक व एमबीए के विद्यार्थियों को मिलेंगे अतिरिक्त अवसर
-जिलाधिकारी से होंगे संबद्ध, अनुभव व अन्वेषण से नए प्रयोग
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: प्रदेश के इंजीनियरिंग व प्रबंधन संस्थानों से बीटेक व एमबीए करने वाले विद्यार्थियों को सरकारी विभागों में इंटर्नशिप के मौके दिये जाएंगे। प्राविधिक शिक्षा विभाग ने इन विद्यार्थियों को एकेटीयू से फैलोशिप दिलाने का फैसला भी किया है।
प्रदेश के इंजीनियरिंग कालेजों से बीटेक या एमबीए कर रहे विद्यार्थियों को इंटर्नशिप के लिए अभी निजी कंपनियों के सहारे रहना पड़ता है। अब तक देखा गया है कि यह इंटर्नशिप बहुत प्रभावी भी नहीं होती है। अब सरकार ने इन विद्यार्थियों को सरकारी विभागों व जिला प्रशासन के साथ इंटर्नशिप करने के मौके देने का फैसला किया है। इंटर्नशिप करने वाले विद्यार्थियों को डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय (एकेटीयू) द्वारा फेलोशिप भी दी जाएगी। इंटर्नशिप के लिए चयनित विद्यार्थियों को जिलाधिकारी के साथ संबद्ध किया जाएगा। उनके विषय व रुचि के अनुरूप कार्य आवंटन कर उनके सुझाव सहेजे जाएंगे। शोधार्थियों के अनुभवों व अन्वेषणों के आधार पर क्षेत्र के नवीन प्रयोग किये जाएंगे।
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हर जिले में इनोवेशन हब
प्रदेश में प्राविधिक शिक्षा विभाग नवीन प्रयोगों व शोधों को प्रोत्साहित करने के लिए इनोवेशन एवं इन्क्यूबेशन कार्यक्रम संचालित कर रहा है। गांव के किसान से लेकर युवाओं तक तमाम चौंकाने वाले प्रयोग करते हैं किन्तु वे प्रयोग अनछुए रह जाते हैं। प्रदेश सरकार ने ऐसे जमीनी शोध से जुडऩे को हर जिले में कलाम इनोवेशन हब की स्थापना का फैसला लिया है। जिलाधिकारियों की अध्यक्षता में गठित समिति इसका संचालन सुनिश्चित करेगी और इसकी कमान जिले में संचालित सरकारी इंजीनियरिंग कालेज या राजकीय पॉलीटेक्निक के प्राचार्य को सौंपी जाएगी। मुख्य सचिव राहुल भटनागर ने इस पर अमल के लिए सभी जिलाधिकारियों को आदेश जारी किये हैं। उनसे हर माह बैठक कर प्रभावी कार्रवाई सुनिश्चित करने को कहा गया है।
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इनोवेशन कोष से मदद
प्रमुख सचिव (प्राविधिक शिक्षा) मोनिका एस गर्ग ने बताया कि लघु एवं मध्यम श्रेणी के उद्योगों में उत्पादकता बढ़ाने के उद्देश्य से जिला स्तर पर स्थापित कलाम इनोवेशन हब क्षेत्र में चल रही अनूठी शोधपरक गतिविधियों को चिह्नित करेंगे, ताकि उन्हें राज्य स्तर पर उपलब्ध इनोवेशन कोष से वित्तीय सहायता दी जा सके। नियोजन विभाग ने इसके लिए अलग से राज्य इनोवेशन कोष की स्थापना की है। तकनीकी मार्गदर्शन, टेस्टिंग सुविधाओं तथा प्रयोगशालाओं के उपयोग के लिए उन्हें एचबीटीयू कानपुर, एमएमएमयूटी गोरखपुर व यूपीटीटीआइ कानपुर इनोवेशन एण्ड इन्क्यूबेशन सेंटर्स से जोड़ा जाएगा।
(17/10/16)

आंकड़े छिपाकर भी सूबे में पड़ोसियों से ज्यादा डेंगू

-सिर्फ 5653 मरीजों के साथ 19वें स्थान पर होने का दावा
-हरियाणा, मध्यप्रदेश, राजस्थान व बिहार से फिर भी आगे
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: डेंगू के मामले में जमकर आंकड़े छिपाने के बावजूद उत्तर प्रदेश में पड़ोसी राज्यों से ज्यादा डेंगू का प्रकोप पाया गया है। राष्ट्रीय स्तर पर आबादी को आधार बनाकर डेंगू के मरीजों की संख्या पर जारी सूची में प्रदेश 19वें स्थान पर हैं। इसके लिए अफसरों ने सिर्फ 5653 मरीजों का दावा किया था, इसके बावजूद हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान व बिहार की तुलना में यहां डेंगू का प्रकोप तेज रहा है।
हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने पूरे देश में डेंगू प्रभावित 34 राज्यों की स्थितियों के आंकड़े जारी किये हैं। इसमें प्रति दस लाख आबादी पर डेंगू के प्रकोप को आधार बनाया गया है। स्वास्थ्य विभाग के अफसर इन आंकड़ों को लेकर खासे प्रसन्न हैं। उनका कहना है कि डेंगू के प्रकोप के मामले में प्रदेश 19वें स्थान पर है। इन आंकड़ों का अध्ययन करने के बाद स्थितियां स्पष्ट नजर आती हैं। स्वास्थ्य विभाग ने केंद्र को भेजी जानकारी में प्रदेश में सिर्फ 5653 मरीज होने का दावा किया है। इस तरह यहां प्रति दस लाख आबादी में 28.37 लोग डेंगू से पीडि़त हैं। इन आंकड़ों में डेंगू से सिर्फ छह लोगों की मौत मानी गयी है, इस तरह मृत्यु का प्रतिशत भी 0.11 फीसद पर सिमट गया है। इतना झूठ बोलने के बाद भी उत्तर प्रदेश 15 राज्यों से पीछे हैं। इनमें भी अधिकांश सूबे के पड़ोसी राज्य है। तुलनात्मक अध्ययन के अनुसार हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार में डेंगू का प्रकोप उत्तर प्रदेश से काफी कम है। यही नहीं, झारखंड व छत्तीसगढ़ जैसे राज्य भी डेंगू पर नियंत्रण रखने में सफल हुए हैं।
नहीं सुधर रहे सीएमओ
शासन के बड़े-बड़े दावों, स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रियों की तमाम चेतावनियों के बावजूद मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) नहीं सुधर रहे हैं। कई बार कहने के बाद भी जिलों से सही आंकड़े नहीं आ पा रहे हैं। शनिवार तक के समग्र्र आंकड़ों का विश्लेषण किया जाए तो प्रदेश में डेंगू के संदेह में 28,499 मरीजों के रक्त के नमूने लिये गए, इनमें से 8,479 मरीजों को डेंगू की पुष्टि हुई। इसके विपरीत मुख्य चिकित्सा अधिकारियों द्वारा भेजी गयी रिपोर्ट में डेंगू के सिर्फ 2947 मरीज होने की बात कही गयी है। सरकारी अधिष्ठानों की ही रिपोर्ट में यह विरोधाभास सीएमओ की लापरवाही उजागर करने वाला है।
जिलों से मांगा 17 तक ब्यौरा
शासन भी सीएमओ की लापरवाही को लेकर गंभीर है। सीएमओ की सूची में सर्वाधिक 580 मरीज लखनऊ के हैं। लखनऊ की यह संख्या हाईकोर्ट की सख्ती के बाद बढ़ी, जब दिन-रात एक कर निजी प्रतिष्ठानों में छापे मारे गए थे। प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) अरुण सिन्हा ने बताया कि लखनऊ की तरह ही सभी जिलों में निजी प्रतिष्ठानों से आंकड़े जुटाकर 17 अक्टूबर तक पूरा ब्यौरा भेजने के निर्देश मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को दिये गए हैं। इनमें लापरवाही पाए जाने पर संबंधित सीएमओ के खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी।
(15/10/16)

छह होम्योपैथी व आयुर्वेदिक कालेजों को मान्यता नहीं

-तीन आयुर्वेद कालेज मान्यता बहाली में सफल, बढ़ीं 120 सीटें
-कानपुर, मुरादाबाद व गाजीपुर की 140 बीएचएमएस सीटें संकट में
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: तमाम कोशिशों के बावजूद प्रदेश के छह होम्योपैथी व आयुर्वेदिक कालेजों को मान्यता नहीं मिल सकी है। इस वर्ष तीन आयुर्वेद कालेजों के मान्यता बहाली में सफल हो जाने से बीएएमएस की 120 सीटें बढ़ गयी हैं, वहीं तीन कालेजों की 140 बीएचएमएस सीटें संकट में हैं।
प्रदेश के आठ आयुर्वेदिक कालेजों में बीएएमएस की 320 सीटें हैं। पिछले वर्ष सेंट्रल काउंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन (सीसीआइएम) ने इनमें से छह कालेजों को मान्यता देने से इनकार कर दिया था। तब लखनऊ की 50 व वाराणसी की 40 सीटों को मान्यता मिली थी। इसके बाद साल भर इन छह कालेजों की मान्यता बहाली की कोशिशें चलीं किन्तु विभाग को अधिक सफलता नहीं मिल सकी है। वाराणसी व लखनऊ की मान्यता बहाल रखने के साथ सीसीआइएम ने इस बार बरेली, झांसी व इलाहाबाद के आयुर्वेदिक कालेजों की मान्यता भी बहाल कर दी है। इस तरह बीएएमएस की 120 सीटें बढ़ गयी हैं। सीसीआइएम ने दोनों सरकारी यूनानी कालेजों को मंजूरी दे दी है। सीसीआइएम से कुछ राहत मिलने के बाद चिकित्सा शिक्षा महकमे को सेंट्रल काउंसिल ऑफ होम्योपैथी (सीसीएच) से झटका मिला है। प्रदेश के सात होम्योपैथी कालेजों में बीएचएमएस की 300 सीटें हैं। इनमें से सीसीएच ने आजमगढ़, लखनऊ, फैजाबाद व इलाहाबाद होम्योपैथी कालेजों की 160 सीटों को मान्यता दे दी है। शेष तीन कानपुर, मुरादाबाद व गाजीपुर के होम्योपैथी कालेजों को इस बार अब तक मान्यता नहीं मिली है। इन कालेजों में बीएचएमएस की 140 सीटें संकट में हैं। अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी है। अगले कुछ दिनों में कुछ और कालेजों को मान्यता मिल सकती है। आयुष काउंसिलिंग तक जिन कालेजों को मान्यता मिल जाएगी, उन सभी को काउंसिलिंग में शामिल कर लिया जाएगा।
आयुष काउंसिलिंग 18 से
प्रदेश के आयुर्वेदिक, होम्योपैथी व यूनानी कालेजों में प्रवेश के लिए आयोजित आयुष प्रवेश परीक्षा की काउंसिलिंग 18 अक्टूबर से होगी। चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक डॉ.वीएन त्रिपाठी ने बताया कि राजधानी के संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में प्रदेश के सरकारी व निजी कालेजों में बीएएमएस, बीएचएमएस व बीयूएमएस कक्षाओं में प्रवेश के लिए काउंसिलिंग होगी। संयुक्त प्री-आयुष परीक्षा (सीपैट) में सफलता पाने वाले 300 रैंक तक के विद्यार्थी 18 अक्टूबर को सुबह 9:30 बजे से एक बजे तक पंजीकरण कराएंगे और दो बजे से उनकी काउंसिलिंग होगी। 301 से 1000 रैंक तक के विद्यार्थी 18 अक्टूबर को दोपहर एक बजे से सायं पांच बजे तक पंजीकरण कराएंगे और 19 अक्टूबर को सुबह 10 बजे से उनकी काउंसिलिंग होगी। 1001 रैंक से ऊपर की रैंक वाले सभी विद्यार्थी 19 अक्टूबर को पंजीकरण कराएंगे और 20 अक्टूबर को उनकी काउंसिलिंग होगी।
(14/10/16)

सरकारी नौकरी, 18 दुकानों में बांट रहे दवाएं


-औषधि विभाग की ढिलाई से अराजक हुए फार्मासिस्ट
-ऑनलाइन सिस्टम को भी धता बताने में हो रहे सफल
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डॉ.संजीव, लखनऊ:
प्रदेश में फार्मासिस्ट दैवीय शक्तियां सहेजे हैं। वे सरकारी नौकरी करने के साथ डेढ़ दर्जन तक दुकानों में दवाएं बांट रहे हैं। दरअसल औषधि विभाग की ढिलाई से अराजक हुए फार्मासिस्ट ऑनलाइन सिस्टम को भी धता बताने में सफल हैं।
प्रदेश में दवा की दुकानों पर फार्मासिस्ट की अनिवार्यता के चलते एक-एक फार्मासिस्ट द्वारा कई दुकानों पर अपना प्रमाण पत्र लगाने और दुकानों पर न जाने का मामला पहले भी उठता रहा है। पिछले साल औषधि विभाग ने सभी दवा दुकानों का ऑनलाइन सत्यापन अनिवार्य किये जाने के बाद इस पर अंकुश लगना शुरू हुआ किन्तु तमाम चौंकाने वाले तथ्य भी सामने आए। मामला उ'च न्यायालय तक पहुंचा तो सरकारी नौकरी कर रहे फार्मासिस्टों द्वारा अपने प्रमाणपत्र दवा दुकानों पर लगाकर वसूली करने का तथ्य सामने आया। याचिका दाखिल करने वाले पंकज मिश्र ने न्यायालय के समक्ष शपथपत्र दाखिल कर दावा किया है कि 66 फार्मासिस्ट ऐसे हैं, जो सरकारी नौकरी करते हुए निजी दवा दुकानों में भी काम कर रहे हैं। फार्मासिस्ट ए.कुमार सरकारी नौकरी के साथ 18 दुकानों में अपना प्रमाणपत्र लगाए हुए हैं। ये प्रमाण पत्र बलिया, खुर्जा, कांशीराम नगर, गाजियाबाद सहित दर्जन भर जिलों की अलग-अलग दुकानों में लगे हैं। इसी तरह पीके शर्मा कांशीराम नगर, नोएडा, बस्ती, सुल्तानपुर, लखनऊ सहित कई जिलों की 16 दुकानों पर फार्मासिस्ट होने के साथ सरकारी अस्पताल में भी नौकरी कर रहे हैं। सरकारी नौकरी कर रहे डी.प्रसाद ने फीरोजाबाद, कानपुर, इलाहाबाद और एम.जावेद ने बदायूं, मेरठ, मुरादाबाद सहित कई जिलों की नौ-नौ दुकानों पर अपने प्रमाण पत्र लगा रखे हैं। आगरा, अमरोहा, लखनऊ, बिजनौर सहित आधा दर्जन जिलों 12 दुकानों पर प्रमाण पत्र लगाए एन.हुसैन भी सरकारी अस्पताल में फार्मासिस्ट हैं। कहा गया है कि यह 66 नाम तो बानगी है, ढंग से जांच करा ली जाए तो संख्या बहुत अधिक निकलेगी।
स्वास्थ्य महकमा बेपरवाह
औषधि विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस संबंध में विस्तृत जांच पड़ताल के लिए स्वास्थ्य विभाग की मदद की जरूरत है किन्तु पूरा महकमा बेपरवाह है। स्वास्थ्य महानिदेशक से कई बार सरकारी नौकरी कर रहे फार्मासिस्टों का पूरा ब्यौरा मांगा गया किन्तु नहीं मिला। उनसे पूछा गया था कि कौन सा फार्मासिस्ट कब से सरकारी सेवा में है, इसका विवरण दे दिया जाए, तो औषधि महकमा ऑनलाइन प्रणाली में परीक्षण करा ले, किन्तु कोई जवाब नहीं मिला।
होगा मुकदमा, जाएंगे जेल
अपर आयुक्त (खाद्य एवं औषधि प्रशासन) राम अरज मौर्य ने कहा कि ये सभी पकड़े जाएंगे। ऑनलाइन व्यवस्था में तभी कोई मामला पकड़ा जाता है, जब वह नवीनीकरण कराता है। यह प्रक्रिया चल रही है किन्तु इसके पूरा होने में पांच साल लगेंगे। तब तक जिला स्तर पर जांच पड़ताल चल रही है। जो लोग पकड़े जाएंगे, उनके खिलाफ मुकदमा कायम कराकर उन्हें जेल भेजा जाएगा।

Friday 14 October 2016

मान्यता के इंतजार में अटकी आयुष काउंसिलिंग

-होम्योपैथी कालेजों में प्रवेश की अंतिम तिथि बढ़ाने का प्रस्ताव
-आयुर्वेदिक-यूनानी में 31 अक्टूबर तक पूरी होनी है प्रवेश प्रक्रिया
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: प्रदेश के आयुष पाठ्यक्रमों, बीएचएमएस, बीएएमएस व बीयूएमएस में प्रवेश कालेजों की मान्यता के इंतजार में अटके हैं। होम्योपैथी कालेजों में तो 15 अक्टूबर तक प्रवेश भी हो जाने थे किन्तु अब यह तिथि बढ़वाने का प्रस्ताव भी किया गया है। आयुर्वेदिक व यूनानी कालेजों में प्रवेश प्रक्रिया 31 अक्टूबर तक पूरी होनी है।
प्रदेश में सरकारी क्षेत्र में आठ आयुर्वेदिक, सात होम्योपैथी व दो यूनानी मेडिकल कालेज संचालित हैं। पिछले वर्ष तक इन सभी में प्रवेश उत्तर प्रदेश संयुक्त प्री-मेडिकल परीक्षा (सीपीएमटी) के माध्यम से होता था। एमबीबीएस व बीडीएस के बाद इन कालेजों में संचालित बीएएमएस, बीएचएमएस व बीयूएमएस के लिए अलग से काउंसिलिंग होती थी। इस वर्ष एमबीबीएस व बीडीएस के लिए राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित प्रवेश परीक्षा, नीट को माध्यम बनाए जाने के कारण आयुष विधाओं के कालेजों के लिए अलग से प्रवेश परीक्षा का आयोजन किया गया था। 15162 परीक्षार्थियों ने यह परीक्षा दी थी। बीती दो अक्टूबर को इस परीक्षा का परिणाम भी घोषित कर दिया गया, किन्तु अब तक काउंसिलिंग की तिथियां घोषित नहीं की गयी हैं। इसके बाद से परीक्षा में सफल विद्यार्थी परेशान हैं और उनके प्रवेश की राह नहीं खुल पा रही है।
दरअसल चिकित्सा शिक्षा महकमा मान्यता संकट के कारण अब तक आयुष काउंसिलिंग की तिथि नहीं घोषित कर सका है। बीएचएमएस के लिए सेंट्रल काउंसिल ऑफ होम्योपैथी की मान्यता होनी जरूरी है। इस वर्ष प्रदेश के सात में से चार होम्योपैथी कालेजों को अब तक यह मान्यता मिल सकी है। शेष कालेज अभी प्रतीक्षा में हैं। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बनाई गयी समय सारिणी के अनुसार बीएचएमएस कक्षाओं में 15 अक्टूबर तक प्रवेश पूरे हो जाने चाहिए। इस बार नीट को लेकर देश में अधिकांश प्रदेशों में आयुष पाठ्यक्रमों में प्रवेश प्रक्रिया देर से शुरू हो सकी है। इसलिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इनकी भी प्रवेश तिथि बढ़ाकर 31 अक्टूबर करने का प्रस्ताव किया है। अब अधिकारी इसे लेकर आशान्वित हैं। बीएएमएस व बीयूएमएस में तो प्रवेश के लिए 31 अक्टूबर तक का समय है किन्तु मान्यता की फाइलें अटकी होने के कारण वहां भी समस्या आ रही है। इन दोनों पाठ्यक्रमों के लिए सेंट्रल काउंसिल फॉर इंडियन मेडिसिन से मान्यता मिलती है। बीयूएमएस के दोनों सरकारी कालेजों को यह मान्यता मिल चुकी है किन्तु बीएएमएस के आठ में से सिर्फ दो कालेज यह मान्यता पाने में सफल हुए हैं। निजी आयुर्वेदिक कालेजों में भी 17 में से सिर्फ आठ को मान्यता मिली है। आयुर्वेद निदेशक कुमुदलता श्रीवास्तव ने कहा कि मान्यता की प्रक्रिया चल रही है। काउंसिल ने जो सवाल पूछे थे, जवाब दे दिये गए हैं। जल्द ही काउंसिलिंग की तिथि घोषित हो जाएगी।
(10/10/16)

विद्यालयों की ढिलाई से हजारों छात्रों की छात्रवृत्ति पर संकट

-नौवीं से 12वीं तक के फार्म 15 तक अपलोड करने का अवसर
-अन्य संस्थान 19 अक्टूबर तक अपलोड कर सकेंगे आवेदन
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति सभी विद्यार्थियों को न मिल पाने के लिए शैक्षिक संस्थान भी जिम्मेदार साबित हो रहे हैं। कक्षा नौ से बारह के हजारों विद्यार्थियों के फार्म विद्यालयों के स्तर पर अब तक अपलोड नहीं हो सकने से उनकी छात्रवृत्ति मिलने पर संकट उत्पन्न हो गया है। अब शासन ने इन विद्यालयों को 15 अक्टूबर तक का समय फार्म अपलोड करने क लिए दिया है।
पूर्वदशम छात्रवृत्ति के लिए कक्षा नौ व दस और दशमोत्तर छात्रवृत्ति के लिए कक्षा 11 व 12 के विद्यार्थियों को 30 सितंबर तक आवेदन करना था। इनके आवेदन के बाद संबंधित विद्यालयों को ये फार्म सात अक्टूबर तक अपलोड कर देने थे। शुक्रवार को शासन स्तर पर समीक्षा हुई तो पता चला कि भारी संख्या में विद्यालय अब तक फार्म अपलोड ही नहीं कर सके हैं। इस कारण हजारों विद्यार्थियों की छात्रवृत्ति फंसने का संकट उत्पन्न हो गया। इस पर शासन ने नौवीं से बारहवीं तक के विद्यार्थियों के 30 सितंबर तक ऑनलाइन जमा हो चुके आवेदन फार्म विद्यालियों की संस्तुति के साथ अपलोड करने के लिए 15 अक्टूबर तक का समय देने का फैसला किया है। विद्यालयों से साफ कहा गया है कि छुट्टियों की परवाह किये बिना फार्म अपलोड करने की प्रक्रिया पूरी की जाए। 15 अक्टूबर के बाद उनके आवेदन स्वीकार नहीं किये जाएंगे और इस कारण विद्यार्थियों को होने वाले नुकसान के जिम्मेदार विद्यालय ही होंगे। उधर 11वीं व 12वीं कक्षा से इतर दशमोत्तर पाठ्यक्रमों छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति के लिए आवेदन की अंतिम तिथि पहले ही सात अक्टूबर तक बढ़ाई जा चुकी है। इन संस्थानों को संस्तुति के साथ फार्म अपलोड करने के लिए 19 अक्टूबर तक का समय दिया गया है।
1.14 करोड़ पंजीकरण, 80 लाख आवेदन
छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति के लिए इस बार 1.14 करोड़ विद्यार्थियों ने पंजीकरण कराया है। इनमें से 80 लाख ने आवेदन किया और अब तक 67 लाख पूरी तरह फार्म जमा करने की औपचारिकता पूरी कर चुके हैं। यह विद्यालयों व संस्थानों की लापरवाही ही है कि इनमें से सिर्फ 30 लाख फार्म ही संस्थानों की ओर से फारवर्ड कर अपलोड किये गए हैं। ऑनलाइन जमा हुए 80 लाख आवेदनों में से नौवीं-दसवीं के 16.6 लाख, 11वीं-12वीं के 17.9 लाख व अन्य दशमोत्तर संस्थानों के 45.5 लाख विद्यार्थी शामिल हैं।
(7/10/16)

रोडवेज में छुट्टियां निरस्त, तीन हजार अतिरिक्त बसें

-दीवाली में लोगों को घर पहुंचाने को शुरू हुई मशक्कत
-एनसीआर, पूर्वांचल व बुंदेलखंड में विशेष बंदोबस्त
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: दीवाली में ट्रेन हाउसफुल हो गयी हैं तो चिंता न करें। रोडवेज आपको त्योहार में घर पहुंचाने में कोई कसर बाकी नहीं रखेगी। दीवाली के आसपास तीन हजार अतिरिक्त बसें चलाने के साथ इस दौरान सभी छुट्टियां भी निरस्त कर दी गयी हैं।
दीवाली पर यात्रियों को बिना किसी सुविधा के उनके घर तक पहुंचाने में रोडवेज कोई कसर नहीं छोडऩा चाहती। 30 अक्टूबर, रविवार को दीवाली होने के कारण 28 अक्टूबर को सप्ताहांत (वीकेंड) से ट्रैफिक लोड बढ़ जाएगा। इस दौरान प्रदेश में कहीं भी ट्रेन के टिकट मिल ही नहीं रहे हैं, ऐसे में रोडवेज के सामने दोहरी चुनौती है। रोडवेज ने इसके लिए तीन हजार अतिरिक्त बसें चलाने का फैसला किया है। ये बसे यूं तो पूरे उत्तर प्रदेश में चलेंगी, किन्तु सर्वाधिक फोकस राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) से जुड़े शहरों, पूर्वांचल व बुंदेलखंड पर रहेगा। गाजियाबाद, नोएडा व दिल्ली से पूरे प्रदेश के लिए विशेष बसें संचालित की जाएंगी। बनारस, गोरखपुर, आजमगढ़ सहित पूर्वांचल के जिलों के लिए भी विशेष बसों का संचालन किया जाएगा। इस बार बुंदेलखंड पर भी रोडवेज विशेष फोकस कर रहा है। बांदा, चित्रकूट से झांसी तक के लिए बसों का संचालन चाक-चौबंद करने के निर्देश दिये गए हैं। इसके अलावा दीवाली के आसपास छुट्टियां निरस्त करने का फैसला भी हो गया है। 26 अक्टूबर से चार नवंबर तक यात्रियों की भीड़ अधिक रहने की उम्मीद के चलते इस दौरान किसी भी चालक, परिचालक या बस संचालन से जुड़े अधिकारी-कर्मचारी को छुट्टी नहीं मिलेगी।
कार्यशालाओं में काम बढ़ा
दीवाली से पहले बसों को चाक चौबंद करने पर भी जोर दिया जा रहा है। सभी कार्यशालाओं में काम बढ़ गया है। अतिरिक्त बसों के संचालन के साथ 200 किलोमीटर रूट वाली बसों के रूट बढ़ाने का फैसला किया गया है। ये बसें अब 400 किलोमीटर तक जाएंगी। कार्यशालाओं को उसी के अनुरूप तैयारी करने को कहा गया है। तमाम बसें महीनों से मरम्मत या रूटीन मेंटीनेंस के लिए कार्यशालाओं में खड़ी हैं, उन्हें ठीक कर सड़क पर उतारने के निर्देश दिये गए हैं।
बनेंगे अस्थायी बस अड्डे
रोडवेज प्रबंधन ने दीवाली के आसपास यात्रियों को अधिकाधिक सुविधा देने के लिए अस्थायी बस अड्डे बनाने के निर्देश भी दिये हैं। इसकी शुरुआत बुंदेलखंड से करने को कहा गया है। बुंदेलखंड में चित्रकूट, बांदा, झांसी आदि में तो बस अड्डे हैं, किन्तु रास्ते के तमाम ऐसे कस्बे हैं, जहां यात्री तो होते हैं, किन्तु बस अड्डे नहीं हैं। इसी तरह की स्थिति अन्य रूट्स पर भी है। प्रबंधन ने ऐसे स्थान चिह्नित कर दीवाली के दौरान वहां बस अड्डे बनाने के निर्देश दिये हैं।
(7/10/16)

प्राविधिक विश्वविद्यालय बना दिये, कुलसचिव भी दे दो

-एमएमएमयूटी गोरखपुर व एचबीटीयू कानपुर का कामकाज प्रभावित
-पीसीएस अफसर की अनिवार्यता, कोई काम संभालने को तैयार नहीं
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: प्रदेश सरकार ने गोरखपुर व कानपुर में इंजीनियरिंग कालेजों को प्राविधिक विश्वविद्यालय में तब्दील तो कर दिया, किन्तु कुलसचिव की नियुक्ति अब तक नहीं हुई है। इस कारण दोनों विश्वविद्यालयों का कामकाज प्रभावित हो रहा है। दरअसल यहां कुलसचिव बनने के लिए पीसीएस अफसर होना अनिवार्य है और कोई अफसर काम संभालने को तैयार ही नहीं होता है।
प्रदेश में प्राविधिक शिक्षा को मजबूती प्रदान करने के लिए तीन साल पहले गोरखपुर के राजकीय इंजीनयरिंग कालेज को विश्वविद्यालय में परिवर्तित कर मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (एमएमएमयूटी) की स्थापना की गयी थी। विश्वविद्यालय बनने के बाद जनवरी 2014 में संस्थान के शिक्षक डॉ.यूसी जायसवाल को कुलसचिव की जिम्मेदारी सौंप दी गयी थी। इस दौरान शासन स्तर पर कुलसचिव की तलाश की जाती रही, किन्तु किसी की नियुक्ति नहीं हो सकी। 16 जुलाई 2014 को एक अन्य शिक्षक केपी सिंह को कुलसचिव का दायित्व सौंपा गया। तब से आजतक वे ही कुलसचिव की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। गोरखपुर के लिए तीन साल से कुलसचिव की तलाश हो ही रही थी, इस वर्ष कानपुर के हरकोर्ट बटलर टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट को भी हरकोर्ट बटलर प्राविधिक विश्वविद्यालय (एचबीटीयू) में परिवर्तित कर दिया गया। यहां कुलपति की नियुक्ति के बाद कामकाज तो शुरू हो गया किन्तु अब तक कुलसचिव की नियुक्ति नहीं हो सकी है।
प्राविधिक शिक्षा विभाग के अधिकारी मानते हैं कि कुलसचिव न होने से कामकाज प्रभावित हो रहा है। विभाग की ओर से कई बार शासन को कुलसचिव की नियुक्ति के लिए पत्र लिखे गए, अधिकारियों ने नियुक्ति विभाग से व्यक्तिगत आग्र्रह भी किये, किन्तु सफलता नहीं मिली। दरअसल इन दोनों विश्वविद्यालयों में कुलसचिव का पद शासन में विशेष सचिव स्तर के अधिकारी का पद है। इसके लिए पीसीएस अधिकारी होना जरूरी है और कोई पीसीएस अधिकारी इन विश्वविद्यालयों में जाना ही नहीं चाहते हैं। उनका कहना है कि ये विश्वविद्यालय एक कॉलेज को अपग्र्रेड कर बनाए गए हैं। उनकी भूमिका अन्य विश्वविद्यालयों की तरह विस्तृत नहीं है। इसीलिए पीसीएस अधिकारी इनमें नहीं जाना चाहते हैं। प्रमुख सचिव (प्राविधिक शिक्षा) मोनिका एस गर्ग ने बताया कि कुलसचिव की तैनाती के लिए शासन से आग्र्रह किया गया है। उम्मीद जताई कि जल्द ही दोनों प्राविधिक विश्वविद्यालयों में कुलसचिवों की नियुक्ति हो जाएगी। (6/10/16)

सातवेंं वेतन आयोग की सिफारिशें रोकेंगी विकास की राह!


विकास के मद में 38 हजार करोड़ रुपये की होगी कमी
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-कर्मचारियों पर खर्च बजट के 58 फीसद से बढ़कर होगा 72 फीसद
-खर्चे घटाए व कठोर आर्थिक उपाय किये बिना वित्तीय संकट का खतरा
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डॉ.संजीव, लखनऊ:
सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें सूबे में विकास की राह रोक सकती हैं। इनके क्रियान्वयन से कर्मचारियों पर खर्च बजट के 58 फीसद से बढ़कर 72 फीसद होने और विकास कार्यों के मद में 38 हजार करोड़ रुपये की कमी पडऩे की उम्मीद है। वित्त विभाग ने कठोर आर्थिक उपाय न करने की स्थिति में गंभीर वित्तीय संकट की आशंका जताई है।
केंद्र सरकार द्वारा सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें स्वीकार किये जाने के बाद प्रदेश सरकार ने भी इन्हें स्वीकार करने के साथ सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी गोपबंधु पटनायक की अध्यक्षता में समीक्षा समिति गठित की है। हाल ही में वित्त विभाग ने समीक्षा समिति के समक्ष सूबे की वित्तीय स्थिति का खाका पेश किया है। इसके अनुसार वित्तीय वर्ष 2016-17 में प्रदेश की कुल राजस्व प्राप्तियां 3.09 लाख करोड़ रुपये रही हैं। इसमें से कर्मचारियों पर 1.8 लाख करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। इसमें से सिर्फ वेतन के मद में 80 हजार करोड़ रुपये खर्च किये गए। पेंशन, स्वास्थ्य, महंगाई व यात्रा भत्ता सहित अन्य मदों में खर्च एक लाख करोड़ रुपये के आसपास है। सातवें वेतन आयोग की संभावित सिफारिशों का आंकलन कर इस खर्च में 54 हजार करोड़ रुपये खर्च बढऩे की उम्मीद जताई गयी है। वित्तीय वर्ष 2017-18 में कुल राजस्व प्राप्तियां 3.25 लाख करोड़ रुपये पहुंचने की उम्मीद है। इसमें से 72 फीसद राशि यानि 2.34 लाख करोड़ रुपये कर्मचारियों पर खर्च हो जाएंगे।
वित्त विभाग ने स्पष्ट कहा है कि सिफारिशों को मानने की स्थिति में विकास कार्यों के लिए उपलब्ध संसाधनों में कमी आएगी। राज्य के सुनिश्चित खर्चे कुल राजस्व संकलन के 59 फीसद से बढ़कर 72 फीसद हो जाने के कारण विकास कार्यों के लिए राज्य का अंशदान अत्यधिक सिकुड़ जाएगा। वित्तीय वर्ष 2016-17 में विकास कार्यों के लिए 1.29 लाख करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गयी थी। 2017-18 में विकास के लिए उपलब्ध राशि घटकर 91 हजार करोड़ रुपये रह जाएगी। संसाधनों में वृद्धि को जरूरी करार देकर अतिरिक्त नियोजन की प्रक्रिया शुरू करने का सुझाव दिया गया है। तमाम अनुत्पादक खर्चों को कम करने के लिए कठोर आर्थिक फैसले लेने की जरूरत भी बताई गयी है। समीक्षा समिति के अध्यक्ष गोपबंधु पटनायक ने कहा कि समिति वित्त विभाग द्वारा प्रस्तुत तथ्यों पर विचार कर रही है। अपनी संस्तुतियों के साथ इन बिन्दुओं पर भी सिफारिशें सौंपी जाएंगी।

Thursday 6 October 2016

अस्पताल पहुंचो, वहां पुराना पर्चा मिल जाएगा


- सूबे में ई-हॉस्पिटल योजना पर अमल को केंद्र सरकार की मंजूरी
- राजधानी के तीन चिकित्सालयों में पॉयलट प्रोजेक्ट, 25 में विस्तार
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डॉ.संजीव, लखनऊ
आप को पांच साल पहले ब्लड प्रेशर की शिकायत हुई थी। कुछ इलाज हुआ और सब ठीक। आज जब दोबारा वही दिक्कत हुई तो अस्पताल पहुंचने पर डॉक्टर ने पुराने पर्चे मांगे। पर यह क्या, इन पांच सालों में पुराने पर्चे तो खो चुके हैं? ऐसी किसी स्थिति में अब आपको चिंता नहीं करनी होगी। आप अस्पताल पहुंचिये, वहां कंप्यूटर पर आपके पुराने पर्चे सहित पूरी जांच रिपोर्ट मिल जाएगी। जी हां, सूबे में जल्द शुरू हो रही ई-हॉस्पिटल योजना से यह संभव होगा।
अस्पतालों में इलाज व जांच के आधुनिकीकरण के बीच स्वास्थ्य मंत्रालय ई-हॉस्पिटल से इलाज की राह आसान करने की पहल कर रहा है। प्रदेश सरकार ने केंद्र सरकार को इस योजना के लिए 50 अस्पतालों का प्रस्ताव भेजा था। केंद्र ने इनमें से 25 को मंजूरी दे दी है। पहले चरण में 30 करोड़ रुपये भी मंजूर कर दिये गए हैं। केंद्र ने दो से चार अस्पतालों में पायलट प्रोजेक्ट संचालित कर योजना की शुरुआत को कहा था। इस पर अमल करते हुए राजधानी लखनऊ के सिविल अस्पताल, बलरामपुर अस्पताल व डॉ.राम मनोहर लोहिया अस्पताल को पायलट प्रोजेक्ट के लिए चुना गया है। शेष 22 अस्पतालों का चयन भी इसी सप्ताह कर लिया जाएगा। अगले छह माह में इन सभी अस्पतालों में इसे लागू करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसके बाद प्रदेश के सभी जिला अस्पतालों व अन्य बड़े अस्पतालों में भी परियोजना को विस्तार दिया जाएगा।
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पर्चा बनवाइये, भूल जाइये
यह पूरी व्यवस्था दरअसल मरीजों को कागजों के बोझ से बचाएगी। मरीज बाह्यï रोगी विभाग में पर्चा बनवाते समय ही पूरा ब्यौरा ले लिया जाएगा। इसके लिए 37 बिन्दु निर्धारित किये गए हैं। मरीज को एक यूनीक आइडेंटिफिकेशन नंबर (यूआइएन) मिल जाएगा। इसके बाद डॉक्टर जो जांच लिखेंगे, उन जांचों की रिपोट्र्स सीधे मरीज के यूआइएन पर दर्ज होंगी। जांच रिपोर्ट के बाद डॉक्टर द्वारा लिखी गयी दवा भी इसमें दर्ज होगी। मरीज को गंभीर अवस्था में भर्ती होना पड़ा, किसी उच्च चिकित्सा केंद्र में स्थानांतरित होना पड़े या फिर अस्पताल से छुïट्टी हो, पूरी जानकारी उसी यूआइएन पर होगी। किसी दूसरे शहर के अस्पताल में जाने पर यदि वह अस्पताल इस नेटवर्क से जुड़ा है तो यूआइएन डालते ही पूरी जानकारी डॉक्टर को मिलेगी और उन्हें इलाज में आसानी होगी।
ई-ब्लडबैंक की बारी
ई-हॉस्पिटल के बाद प्रदेश के सभी सरकारी ब्लडबैंक भी पूरी तरह कम्प्यूटरीकृत किये जाएंगे। इन्हें ई-ब्लडबैंक नाम दिया जाएगा। इसमें रक्तदाता का पंजीकरण व प्रारंभिक जांचें ऑनलाइन सहेजी जाएंगी। इसके बाद जरूरत के अनुरूप उन्हें कहीं भी बुलाया जा सकेगा। इसके अलावा ब्लड बैग व ब्लड कम्पोनेंट से जुड़ी प्रक्रिया भी कम्प्यूटरीकृत होगी। इससे प्रदेश के किसी भी ब्लड बैंक में उपलब्ध रक्त का ब्यौरा एक जगह होगा और उसका उपयोग किया जा सकेगा। खून या बैग की बर्बादी रोकने के लिए उन्हें नष्ट करने के लिए कम्प्यूटरीकृत चेतावनी प्रणाली भी होगी।
इलाज में आएगी पारदर्शिता
इस पूरी परियोजना के लिए केंद्र सरकार ने एजेंसी नामित कर दी है। हम इसे इसी साल हर हाल में लागू करना चाहते हैं। इससे इलाज में पारदर्शिता आएगी। कई अस्पतालों में लंबी कतारें लगती हैं। कम्प्यूटरीकरण के बाद उसमें कोई मनमानी नहीं होगी। मरीजों की सही संख्या व बीमारियों का पता होने से आंकलन करने व उपचार की रणनीति बनाने में भी मदद मिलेगी। -आलोक कुमार, निदेशक, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, उत्तर प्रदेश

डॉक्टर रोज बताएं, कितने देखे मरीज


-हर माह पांच तारीख को भेजनी होगी डायरी, तभी मिलेगा वेतन
-सीएमएस व सीएमओ हर सप्ताह महानिदेशक को भेजेंगे रिपोर्ट
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: अस्पतालों से गैरहाजिर डॉक्टरों पर लगाम कसने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने एक और प्रयास की पहल की है। अब डॉक्टरों को रोज बताना होगा कि उन्हें कितने मरीज देखे। हर माह पांच तारीख को उनकी डायरी आने के बाद ही अगले माह वेतन मिलेगा। इसके अलावा मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) व अस्पतालों के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक (सीएमएस) हर सप्ताह स्वास्थ्य महानिदेशक को अपनी रिपोर्ट भेजेंगे।
डॉक्टरों के समय पर अस्पताल न पहुंचने से परेशान सरकार ने उनकी दैनिक मॉनीटरिंग का फैसला लिया है। मुख्य सचिव ने इस बाबत जारी आदेश में कहा है कि सभी चिकित्सक बाह्यï रोगी विभाग (ओपीडी) में देखे गए मरीजों का पूरा ब्यौरा ओपीडी रजिस्टर के माध्यम से अनुरक्षित करेंगे। साथ ही उन्हें रोज अपनी डायरी भरनी होगी, जिसमें बताना होगा कि कितने मरीज देखे और अस्पताल में भर्ती मरीजों को देखने के लिए कितने राउंड किये। सर्जन को रोज होने वाली सर्जरी की जानकारी देनी होगी, वहीं स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञों को सामान्य व सीजेरियन प्रसव की अलग-अलग जानकारी देनी होगी। हर हाल में पिछले माह की दैनिक डायरी अगले माह की पांच तारीख को अपने अधिकारी के पास जमा करनी होगी। ऐसा न करना उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक नियमावली, 1999 के अंतर्गत कदाचार माना जाएगा और तदनुरूप कठोर कार्रवाई की जाएगी।
मुख्य सचिव के मुताबिक उक्त डायरी को उपस्थिति रजिस्टर के साथ डॉक्टरों की कार्यदायी उपस्थिति के प्रमाण के रूप में मान्यता दी जाएगी। स्पष्ट कहा गया है कि पांच तारीख को डायरी न जमा करने वाले चिकित्सकों का उस माह का वेतन नहीं निकाला जाएगा। संबंधित नियंत्रक अधिकारी व आहरण-वितरण अधिकारी का दायित्व होगा कि दैनिक डायरी के निर्धारित प्रारूप में सूचना न उपलब्ध कराने वाले चिकित्सक का वेतन न आहरित किया जाए। पिछले माह का मासिक विवरण प्रस्तुत न करने वाले चिकित्सक का वेतन आहरित करने को वित्तीय अनियमितता माना जाएगा। सभी मुख्य चिकित्सा अधिकारियों व मुख्य चिकित्सा अधीक्षकों को अपनी अधीन चिकित्सकों से दैनिक रिपोर्ट लेकर हर सप्ताह स्वास्थ्य महानिदेशक को भेजनी होगी। स्वास्थ्य महानिदेशक हर दो सप्ताह (15 दिन) में अपनी आख्या शासन को भेजेंगे।

जल्द मिलेंगे 2099 डॉक्टर, 3286 और की भर्ती शुरू

-दूर होगी सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी
-नयी नियुक्तियों के बाद खुलेगी प्रोन्नति की राह
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी दूर करने की प्रक्रिया शुरू हुई है। स्वास्थ्य विभाग को जल्द ही 2099 डॉक्टर मिलने की उम्मीद है। इनके अलावा 3286 और डॉक्टरों की भर्ती शुरू हो गयी है।
स्वास्थ्य विभाग द्वारा संचालित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से लेकर जिला व मंडल स्तरीय अस्पतालों तक डॉक्टरों की कमी बड़ी समस्या रही है। इस समय प्रांतीय चिकित्सा सेवा (पीएमएस) संवर्ग में 16,250 पद सृजित हैं। इसके विपरीत 13,500 डॉक्टर पीएमएस संवर्ग में तैनात हैं। इस बीच प्रदेश में दस हजार बेड क्षमता वाले सौ छोटे-बड़े अस्पताल खोलने प्रस्तावित हैं। इनमें से तमाम तो बन कर तैयार हो चुके हैं। इनमें चिकित्सकों के पद सृजन की प्रक्रिया भी शुरू हो गयी है। पहले से चिकित्सकों की कमी तो है ही, ऊपर से हर साल औसतन 350 डॉक्टर सेवानिवृत्त हो जाते हैं। नयी नियुक्तियां न होने से यह स्थिति सुधरने के स्थान पर बिगड़ती जा रही है।
स्वास्थ्य विभाग ने पहले 2099 पदों का अधियाचन राज्य लोक सेवा आयोग के पास भेजा था। लोक सेवा आयोग ने इन सभी पदों पर साक्षात्कार आदि की प्रक्रिया पूरी कर ली है। आयोग ने 30 सितंबर तक चयनित चिकित्सकों की सूची स्वास्थ्य विभाग को सौंपने की बात कही थी, ताकि इनकी नियुक्ति प्रक्रिया पूरी की जा सके। प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) अरुण सिन्हा ने बताया कि 30 सितंबर तक तो वह सूची नहीं मिल सकी है, किन्तु जल्द ही ये 2099 डॉक्टर मिल जाने की उम्मीद है। बड़ी संख्या में चिकित्सक आ जाने के बाद हम प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र स्तर तक इलाज की स्थितियां मजबूत कर सकेंगे। उन्होंने बताया कि इन चिकित्सकों के आने के बावजूद स्वास्थ्य विभाग की जरूरतें बनी रहेंगी। उन जरूरतों का आंकलन कर 3286 और डॉक्टरों के लिए अधियाचन राज्य लोक सेवा आयोग को भेजा गया था। आयोग ने उसके लिए भी विज्ञापन जारी कर नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इन चिकित्सकों की तैनाती के बाद मरीजों के लिए डॉक्टरों की उपलब्धता और सुलभ हो जाएगी। उधर चिकित्सकों की नियुक्ति प्रक्रिया तेज होने से पीएमएस संवर्ग में पहले से तैनात चिकित्सक भी खासे उत्साहित हैं। उनका कहना है कि 2014 के बाद से संवर्ग में प्रोन्नतियां ही नहीं हुई हैं। नए चिकित्सक आने से प्रोन्नति की प्रक्रिया तेज होगी। इससे चिकित्सकों का मनोबल भी बढ़ेगा।
(3/10/2016)

Saturday 1 October 2016

डॉक्टरों को समय पर अस्पताल पहुंचाएगी बायोमीट्रिक हाजिरी

-जिलों से ब्लॉक तक सुबह आठ बजे पहुंचना होगा जरूरी
-सभी प्राथमिक व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में लगेंगी मशीनें
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: प्राथमिक व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों से लेकर जिला अस्पतालों तक समय से डॉक्टरों के न पहुंचने की समस्या स्वास्थ्य विभाग के लिए चुनौती बन गयी है। कुछ जिलों में बायोमीट्रिक हाजिरी का प्रयास सफल होने के बाद प्रदेश में अमल होगा।
स्वास्थ्य विभाग द्वारा संचालित जिला अस्पताल हों या सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सबसे बड़ी समस्या वहां डॉक्टरों के पहुंचने की है। सभी अस्पतालों में बाह्यï रोगी विभाग (ओपीडी) का समय सुबह आठ बजे से है किन्तु कहीं भी डॉक्टर सुबह आठ बजे नहीं पहुंचते हैं। कई जगह तो ये डॉक्टर दस बजे तक नहीं पहुंचते और कई बार तो जाते ही नहीं और अगले दिन उपस्थिति रजिस्टर पर दस्तखत कर देते हैं। इसमें अस्पतालों के मुख्य चिकित्सा अधीक्षकों की मिलीभगत भी रहती है। पिछले दिनों प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) ने सभी अस्पतालों के मुख्य चिकित्सा अधीक्षकों व जिलों के मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को इस बाबत चेतावनी भी दी थी किन्तु उन पर कोई असर नहीं हुआ। स्वयं प्रमुख सचिव पिछले दिनों स्वास्थ्य केंद्रों का निरीक्षण करने गए तो उन्हें चिकित्सकों की मनमानी की शिकायत मिली। मरीजों का कहना था कि वे लोग सुबह आठ बजे से अस्पताल पहुंच जाते हैं किन्तु डॉक्टरों के न आने से दिक्कत होती है।
प्रमुख सचिव अरुण सिन्हा ने बताया कि डॉक्टरों के समय पर अस्पताल न पहुंचने से सर्वाधिक समस्या हो रही है। कई बार तो वे पूरी तरह अनुपस्थित ही हो जाते हैं। इस कारण शासन की मंशा के अनुरूप अधिक से अधिक मरीजों को स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ भी नहीं मिल पा रहा है। अब इस समस्या के समाधान के लिए सभी प्राथमिक व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों, जिला व मंडलीय चिकित्सालयों में चिकित्सकों की उपस्थिति बायोमीट्रिक मशीन से लगवाने का फैसला किया गया है। इलाहाबाद से इसकी शुरुआत हुई है और जल्द ही पूरे प्रदेश में इसका विस्तार किया जाएगा। सभी अस्पतालों में बायोमीट्रिक मशीनें लगाने के साथ उन्हें ऑनलाइन प्रणाली से स्वास्थ्य महानिदेशालय से जोड़ा जाएगा। उसके बाद लखनऊ से ही यह पता करना संभव होगा कि कौन डॉक्टर समय पर अस्पताल पहुंचा है, कौन नहीं। इससे लापरवाह डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई भी आसानी से संभव होगी। इस बाबत आदेश जारी कर दिये गए हैं। जल्द ही मशीनों के टेंडर आदि की प्रक्रिया पूरी कर इसी साल के अंत तक इस पर अमल सुनिश्चित कराया जाएगा। 

यूपी की राय, जनवरी से शुरू हो वित्तीय वर्ष

-2018 से कैलेंडर वर्ष को ही वित्तीय वर्ष मान लेने का प्रस्ताव
-विकास की रफ्तार बढऩे और काम न रुकने का दिया गया तर्क
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: प्रदेश सरकार की राय है कि वित्तीय वर्ष अप्रैल के स्थान पर जनवरी में शुरू होना चाहिए। केंद्र सरकार द्वारा इस बाबत पूछे जाने पर राज्य सरकार ने 2018 से कैलेंडर वर्ष को ही वित्तीय वर्ष मान लेने का प्रस्ताव किया है।
रेल बजट व आम बजट को एक करने के बाद केंद्र सरकार वित्तीय वर्ष में संशोधन को लेकर भी रायशुमारी कर रही है। इसके लिए देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे शंकर आचार्य की अध्यक्षता में समिति बनाई गयी है। इस समिति के समक्ष उत्तर प्रदेश ने मंगलवार को अपनी राय जाहिर की। इसमें प्रदेश सरकार ने वित्तीय वर्ष एक अप्रैल से शुरू करने के स्थान पर एक जनवरी से शुरू करने का सुझाव दिया है। प्रदेश सरकार की राय है कि कैलेंडर वर्ष को वित्तीय वर्ष मान लेने से नियोजन में बेहद आसानी होगी। साथ ही विकास की रफ्तार बढ़ेगी और काम नहीं रुकेगा। तर्क दिया गया है कि अप्रैल में वित्तीय वर्ष शुरू होने की स्थिति में कई बार जून-जुलाई तक धन जारी हो पाता है। इस बीच बारिश शुरू हो जाती है और फिर तमाम विकास कार्य अक्टूबर तक रुक जाते हैं। इससे छह से सात माह तक बर्बाद हो जाते हैं। इसके विपरीत जनवरी में वित्तीय वर्ष की शुरुआत पर हर हाल में मार्च तक धन जारी हो जाएगा और विकास कार्य समय रहते रफ्तार पकड़ सकेंगे। राज्य सरकार ने 2018 से ही कैलेंडर वर्ष को वित्तीय वर्ष के रूप में स्वीकार करने का प्रस्ताव किया है, ताकि एक जनवरी 2018 से इस पर अमल हो सके।
नौ माह का वित्तीय वर्ष
केंद्र सरकार ने सभी राज्यों से इस बाबत प्रस्ताव मांगा है। बताया गया कि कई राज्य जनवरी से दिसंबर को वित्तीय वर्ष के रूप में परिभाषित करने पर सहमत हैं। यदि इसे जनवरी 2018 से लागू किया गया तो 2017-18 का एक वित्तीय वर्ष नौ माह का माना जाएगा। उस वर्ष के लिए बजटीय नियोजन भी तदनुरूप करने होंगे।
दीवाली के आसपास बजट
कैलेंडर वर्ष को वित्तीय वर्ष मान लेने का प्रस्ताव स्वीकार होने की स्थिति में बजट अक्टूबर के अंत या नवंबर माह में आएगा। इस तरह हर साल बजट दीवाली के आसपास आयेगा। पारंपरिक भारतीय पद्धति में भी दीवाली में लेखा-जोखा की शुरुआत करने व बहीखातों की पूजा की जाती है। यह बदलाव भी भारतीय जरूरतों के अनुरूप समावेशी होगा। 

विदाई से पहले हाइएंड लैपटॉप देगी सरकार

--दीपावली तोहफा--
-2012 की तुलना में कीमत होगी कम, गुणवत्ता ज्यादा
-200 करोड़ रुपये खर्च कर 1.45 लाख में वितरण
राज्य ब्यूरो, लखनऊ: प्रदेश सरकार मौजूदा कार्यकाल की विदाई से पहले युवाओं को हाइएंड लैपटॉप देने की तैयारी है। 200 करोड़ रुपये खर्च कर डेढ़ लाख विद्यार्थियों को दीपावली के तोहफे के रूप में लैपटॉप दिये जाएंगे।
प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार लैपटॉप वितरण को अपनी उपलब्धियों में गिनाती रही है। 2012 के चुनावी घोषणापत्र में मेधावियों को लैपटॉप वितरण का वादा करने के बाद सत्ता में आई सपा सरकार ने पहले साल ही लैपटॉप वितरण शुरू किया और मुख्यमंत्री आज तक इसे अपनी विशेष योजना के रूप में बताते हैं। अगले चुनाव में जीत कर आने की स्थिति में मोबाइल फोन देने का वायदा करने वाली राज्य सरकार मौजूदा कार्यकाल खत्म होने से पहले एक बार फिर मेधावियों के हाथों में लैपटॉप थमाना चाहती है। तय हुआ है कि दीपावली के आसपास विद्यार्थियों को तोहफे के रूप में लैपटॉप बांट दिये जाए। इस बार लैपटॉप वितरण में उनकी गुणवत्ता पर अतिरिक्त फोकस किया जा रहा है। इसके लिए प्राविधिक शिक्षा विभाग के विशेषज्ञों की मदद से लैपटॉप के स्पेसिफिकेशन निर्धारित किये गए हैं। नवीनतम स्पेसिफिकेशन व उच्च गुणवत्ता वाले इन हाइएंड लैपटॉप की कीमत 2012 में सरकार द्वारा खरीदे गए लैपटॉप से कम है। 2012 में एक लैपटॉप की कीमत 19,058 रुपये थी, जो 2016 में 13,490 रुपये रह गयी है। इस वर्ष 1,45,292 मेधावियों को ये लैपटॉप बांटे जाएंगे। इनमें 2015 व 2016 के बराबर-बराबर (72,646) मेधावी शामिल हैं। दोनों वर्षों के मेधावी जिला स्तर पर चिह्नित कर लिये गए हैं।
दोगुनी रफ्तार व स्टोरेज
नए स्पेसिफिकेशन वाले लैपटॉप 2012 में बांटे गए लैपटॉप से दोगुनी रफ्तार व स्टोरेज सहेजे होंगे। इनमें लैटेस्ट जेनरेशन प्रोसेसर एक साथ कई एप्लीकेशंस का संचालन कर सकेगा। पिछले लैपटॉप में 2-कोर प्रोसेसर था, जबकि इस बार 4-कोर प्रोसेसर वाले लैपटॉप होंगे। पिछली बार जहां एचडी ग्र्रैफिक्स की सुविधा थी, इस बार रेडियन आर-फोर ग्र्रैफिक्स के साथ विद्यार्थी आसानी से ग्र्रैफिकल एप्लीकेशन चला सकेंगे। इस बार रैम भी 2 जीबी से बढ़ाकर 4 जीबी कर दी गयी है। इसी तरह यूएसबी वर्जन 2.0 को अपग्र्रेड कर 3.0 कर दिया गया है, जो दोगुना तेज है। ऑपरेटिंग सिस्टम भी विंडोज-7 की जगह विंडोज-10 कर दिया गया है। पिछली बार लैपटॉप में एजूकेशन कंटेंट से जुड़े सॉफ्टवेयर डाल कर दिये गए थे, इस बार उनके साथ क्लाउड बेस मैनेजमेंट सॉफ्टवेयर भी मिलेंगे, ताकि विद्यार्थी अधिकाधिक लाभान्वित हो सकें।

और कसेगा निजी मेडिकल कालेजों पर शिकंजा

-अभी ब्रांच के आधार पर तीन करोड़ रुपये तक होती वसूली
-पीजी-नीट से होंगे एमडी-एमएस में प्रवेश तो रुकेगी अराजकता
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: मेडिकल कालेजों में परास्नातक पाठ्यक्रमों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर प्रवेश परीक्षा (पीजी-नीट) अनिवार्य होने के बाद निजी कालेजों पर शिकंजा और कसेगा। अभी अलग-अलग ब्रांच के आधार पर विद्यार्थियों से तीन करोड़ रुपये तक 'डोनेशनÓ के रूप में वसूले जाते हैं। एमडी-एमएस के लिए राष्ट्रीय प्रवेश परीक्षा पर अमल होने से यह अराजकता रुकेगी।
निजी मेडिकल व डेंटल कालेजों में स्नातक पाठ्यक्रमों एमबीबीएस व बीडीएस में नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंटरेंस टेस्ट (नीट) के माध्यम से ही प्रवेश लेना इसी वर्ष अनिवार्य किया गया है। निजी कालेजों की तमाम कोशिशों के बावजूद उच्च न्यायालय ने उन्हें सीधे प्रवेश की अनुमति नहीं दी और सरकारी काउंसिलिंग के माध्यम से ही प्रवेश के निर्देश दिये हैं। इस बीच निजी कालेजों की परास्नातक कक्षाओं के प्रवेश भी राष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तावित पीजी-नीट के माध्यम से कराने का फैसला हुआ है। बुधवार को यह फैसला होते ही गुरुवार को चिकित्सा शिक्षा महकमे में हर कोई स्पष्ट रूप से यह कह रहा था कि इससे निजी मेडिकल कालेजों पर शिकंजा कसेगा। अभी वो जिस तरह परास्नातक कक्षाओं में प्रवेश के लिए मनमाने ढंग से प्रवेश लेते हैं, अब वह मनमानी भी रुकेगी।
दरअसल प्रदेश के सरकारी मेडिकल कालेजों में एमडी, एमएस व परास्नातक डिप्लोमा पाठ्यक्रमों की 751 व एमडीएस की 27 सीटें हैं। इसके अलावा 11 निजी मेडिकल कालेजों व 21 निजी डेंटल कालेजों में परास्नातक सीटें हैं। अभी निजी मेडिकल व डेंटल कालेज औपचारिकता के लिए अपनी प्रवेश परीक्षा कराते हैं, किन्तु वास्तविकता में यहां सीटों की बाकायदा बुकिंग होती है। सबसे महंगी सीट एमडी (रेडियोलॉजी) की है, जो तीन करोड़ रुपये तक बिकती है। दूसरे नंबर एमडी (स्किन) की सीट औसतन दो करोड़ रुपये के आसपास बेची जाती है। इसके बाद सर्जरी में एमएस (गायनोकोलॉजी) और एमएस (जनरल सर्जरी) की सीटों के लिए डेढ़ से दो करोड़ रुपये के बीच वसूली की जाती है। एमडी (मेडिसिन) व एमडी (पीडियाट्रिक्स) के लिए औसतन सवा से डेढ़ करोड़ रुपये के बीच लिये जाते हैं। पीजी-नीट लागू होने से इस वसूली पर अंकुश लग सकेगा। चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक डॉ.वीएन त्रिपाठी भी मानते हैं कि पीजी-नीट लागू होने से निश्चित रूप से स्थितियों में सुधार आएगा। इससे विद्यार्थियों के पैसे बचेंगे, वहीं मेधा का भी सम्मान बढ़ेगा। अभी जो विद्यार्थी चाहकर भी निजी कालेजों में प्रवेश के बारे में नहीं सोचते, उन्हें भी अवसर मिलेंगे।