डॉ.संजीव मिश्र
इसे दुर्योग ही कहेंगे कि जिस समय दुनिया के सबसे शक्तिशाली माने
जाने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत की
राजधानी दिल्ली में शांति के पुजारी महात्मा गांधी की समाधि पर पुष्पांजलि अर्पित
कर रहे थे, उस समय तक दिल्ली के ही सात घरों के चिराग हिंसा की भेंट चढ़ चुके थे। गांधी
के भारत में बीते दो दिन ट्रंप की यात्रा के साथ आंदोलन जनित हिंसा के लिए भी याद
किये जाएंगे। ट्रंप ने जिस तरह साबरमती तट पर गांधी आश्रम से अपनी यात्रा की शुरुआत
की और प्रधानमंत्री मोदी के साथ जोरदार केमिस्ट्री सामने आयी, उससे गांधी के भारत
में मोदी के ट्रंप की इस यात्रा ने अलग तरह की चर्चाओं को तो जन्म दिया किन्तु
दिल्ली की हिंसा ने स्थितियां चिंताजनक बना दी हैं। ट्रंप की भारत यात्रा कितनी
देशहित में साबित होगी, यह तो समय के गर्भ में है किन्तु जलती दिल्ली पूरी दुनिया
में हमारा चेहरा खराब कर रही है।
अमेरिकी राष्ट्रपति की भारत यात्रा की शुरुआत गांधी के चरणों से हुई
है। अहमदाबाद के साबरमती आश्रम की विजिटर बुक में जिस तरह ट्रंप ने जिस तरह
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना महान दोस्त करार देते हुए वक्तव्य लिखा, किन्तु
महात्मा गांधी के बारे में एक शब्द नहीं लिखा, उससे स्पष्ट है कि ट्रंप इस यात्रा
में मोदीमय होकर आए हैं। बाद में सवा लाख से अधिक भारतीयों को संबोधित करते हुए
जिस तरह ट्रंप ने स्वामी विवेकानंद व सरदार पटेल का जिक्र किया, ये दोनों नाम भी
प्रधानमंत्री के वैचारिक अधिष्ठान के ज्यादा समीप नजर आते हैं। प्रधानमंत्री के
नेतृत्व में भारत ने भी उनके स्वागत में कोई कसर नहीं उठा रखी है। यूं मोदी और
ट्रंप की यह जुगलबंदी कुछ माह पूर्व अमेरिका में आयोजित हाउडी मोदी कार्यक्रम में
भी नजर आई थी, किन्तु इसके असली परिणाम अगले कुछ माह में सामने आएंगे। दोनों देशों
के बीच रक्षा व ऊर्जा क्षेत्र में व्यापार व खरीद-फरोख्त के समझौते के अलावा लोगों
के बीच सीधे रिश्तों पर जिस तरह जोर दिया जा रहा है, उससे उम्मीदें तो बंध ही रही
हैं।
ट्रंप ने इस यात्रा में खुलकर इस्लामिक आतंकवाद पर निशाना साधा है,
इसे भी भारत की कूटनीतिक जीत माना जा सकता है। भारत से जाने के बाद भी ट्रंप अपने
रुख पर कायम रहें, यह भी जरूरी है। ट्रंप की इस यात्रा और तमाम उम्मीदों-संभावनाओं
के बीच दिल्ली हिंसा भी खतरनाक स्थितियों में पहुंच चुकी है। जिस तरह एक नेता ने ट्रंप के जाने के बाद कुछ भी कर गुजरने की
चेतावनी दी थी, उसके बाद ट्रंप के सामने ही हिंसा हो जाना दोनों पक्षों के अराजक
रवैये का परिणाम है। दिल्ली में हुई हिंसा के पीछे जिम्मेदारी तय करने से पहले उन
स्थितियों को लेकर जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए, जिन्होंने वातावरण खराब किया है।
संसद में बने एक कानून के खिलाफ और समर्थन में जिद की पराकाष्ठा ने दिल्ली में
हिंसा को जन्म दिया है। शाहीनबाग सहित दिल्ली ही नहीं देश के कई हिस्सों में चल
रहे प्रदर्शनों में जिस तरह के भाषण दिये गए हैं, उसके बाद तनावपूर्ण स्थितियां तो
पहले ही बनी हुई थीं। समय पर इस ओर ध्यान न दिये जाने के कारण स्थितियां हिंसक
आंदोलन में तब्दील हो गयीं।
दरअसल नागरिकता संशोधन कानून संसद से पास होने के बाद इसके विरोधी
जिस तरह जिद पर अड़े हैं, वे देश-दुनिया व समाज की परवाह तक नहीं कर रहे हैं। ठीक
उसी तरह इस कानून के समर्थक भी जिद्दी नजर आ रहे हैं। सरकार व सरकार से जुड़े लोग
साफ कह चुके हैं कि वे कानून वापसी पर विचार तक नहीं करेंगे, वहीं आंदोलनकारी
कानूनवापसी तक आंदोलन चलाए रखने की जिद पर अड़े हैं। दोनों तरफ से यह जिद खत्म
होनी चाहिए, किन्तु ऐसा होने के स्थान पर अब यह जिद जनता के बीच तक पहुंच गयी है।
इस जिद में सर्वोच्च न्यायालय तक मामला तो पहुंचा किन्तु कोई सीधा फैसला सामने
नहीं आया। आतंकवाद व अराजकता का एक अलग नमूना दिल्ली में साफ नजर आ रहा है। जिस
तरह एक पुलिसकर्मी की हत्या की गयी और बवाल करने वालों के हाथों में हथियार दिखे
हैं, उससे यह पूरा बवाल नियोजित प्रतीत होता है। शांतिपूर्ण आंदोलन का दावा करने
वालों के हाथ से यह आंदोलन हथियार रखने वालों के हाथ में पहुंच जाना भी
दुर्भाग्यपूर्ण है। अगले कुछ दिनों में हम ट्रंप के दौरे को तो भूल जाएंगे किन्तु
गांधी के देश में हिंसक आंदोलनों की स्थितियां हमेशा के लिए घाव दे जाएंगी। इस पर
तुरंत नियंत्रण की जरूरत है, ट्रंप के मन में जगह बनाने से ज्यादा जरूरी जनता के
बीच आपसी भरोसा बढ़ाना है। इस पर काम किया जाना चाहिए।