Thursday 16 June 2016

निजी आयुष कालेजों में प्रवेश सरकारी परीक्षा से


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-सेंट्रल काउंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन ने दिये निर्देश
-बीएचएमएस, बीएएमएस व बीयूएमएस पर हुआ फैसला
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : 'नीट' से निजी मेडिकल कालेजों में प्रवेश के बाद अब आयुष विधाओं आयुर्वेदिक, यूनानी व होम्योपैथी के निजी कालेजों पर भी लगाम कसने की तैयारी है। सेंट्रल काउंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन (सीसीआइएम) ने सरकारी कालेजों के लिए प्रस्तावित संयुक्त प्रवेश परीक्षा के माध्यम से ही निजी कालेजों में प्रवेश के निर्देश दिये हैं।
प्रदेश में होम्योपैथी के तीन, आयुर्वेद के बीस व यूनानी के दस कालेज निजी क्षेत्र में संचालित हो रहे हैं। इनमें कुल मिलाकर दो हजार से अधिक सीटें हैं। अभी तक ये कालेज अपनी प्रवेश परीक्षाएं स्वयं कराकर सीधे प्रवेश ले लेते थे। इस वर्ष चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र में शुचिता के लिए राष्ट्रीय स्तर पर शुरू हुई मुहिम का असर आयुष विधा के निजी कालेजों पर भी पड़ा है। सीसीआइएम ने प्रदेश सरकार को पत्र लिखकर इन कालेजों द्वारा मनमाने ढंग से प्रवेश पर रोक लगा दी है। अब इन्हें राज्य स्तर पर प्रस्तावित संयुक्त प्रवेश परीक्षा के माध्यम से ही प्रवेश लेने होंगे।
प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा डॉ.अनूप चंद्र पांडेय ने बताया कि  सरकारी आयुर्वेदिक, होम्योपैथी व यूनानी कालेजों के लिए अलग से संयुक्त प्रवेश परीक्षा कराई जाएगी। परीक्षा कराने वाले विश्वविद्यालय के चयन की प्रक्रिया शुरू कर दी गयी है। सीसीआइएम के सचिव पीआर शर्मा ने अपने पत्र में स्पष्ट लिखा है कि शैक्षिक सत्र 2016-17 में निजी कालेजों में सरकारी कालेजों के लिए प्रस्तावित संयुक्त प्रवेश परीक्षा के अलावा किसी अन्य माध्यम से एक भी प्रवेश अनुमन्य नहीं होंगे। सीसीआइएम के फैसले के अनुरूप निजी कालेजों में बीएचएमएस, बीएएमएस व बीयूएमएस कक्षाओं में प्रवेश इसी परीक्षा से होंगे। परास्नातक कक्षाओं में प्रवेश भी सरकारी कालेजों के लिए होने वाली परास्नातक प्रवेश परीक्षा से ही होंगे।
अगले साल से 'नीट'
सीसीआइएम ने स्पष्ट किया है कि राज्य स्तर पर संयुक्त प्रवेश परीक्षा की व्यवस्था सिर्फ शैक्षिक सत्र 2016-17 के लिए ही है। अगले साल से आयुष विधा के कालेजों में भी प्रवेश नेशनल एलिजिबिलिटी कम इंटरेंस टेस्ट ('नीट') के माध्यम से होंगे। इसके लिए हुई आयुष मंत्रालय की बैठक में  कहा गया है कि भारतीय चिकित्सा पद्धतियों में अध्ययन के लिए पूरे देश से मेधावी छात्र-छात्राओं को आकर्षित करने के लिए 'नीट' प्लेटफार्म का प्रयोग जरूरी हैं। अगले साल से 'नीट' की रैंकिंग के आधार पर ही इन कालेजों में प्रवेश हुआ करेंगे।  

Wednesday 15 June 2016

कोषागार महकमे ने मांगे 398 अफसर


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- पहले से खाली 250 रिक्त पद भरने की भी हुई मांग
- काम बढऩे के बावजूद नए पद सृजित न होने का तर्क
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : कोषागार विभाग ने कामकाज बढऩे का हवाला देकर प्रदेश सरकार से 398 अफसर मांगे हैं। इसके अलावा विभाग के रिक्त पद भरने की मांग भी की गयी है। वित्त विभाग इन पदों के सृजन पर विचार कर रहा है।
कोषागार विभाग से जुड़े 78 कोषागारों के माध्यम से दस लाख पेंशनरों को पेंशन सीधे उनके खातों में भेजी जाती है। विभाग में समयबद्ध पदोन्नति न होने से 250 से अधिक पद खाली हैं। इस बीच बेसिक शिक्षा विभाग व पावर कारपोरेशन व अन्य बिजली कंपनियों से सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों की पेंशन भी कोषागार के माध्यम से जाने लगी है। परिवहन विभाग के कर्मचारी भी कोषागार से पेंशन दिलाने की मांग कर रहे हैं। ऐसे में कोषागार निदेशालय ने काम बढऩे और नए पद न सृजित होने का तर्क देकर 398 अफसर मांगे हैं। इस बाबत वित्त विभाग को भेजे गए प्रस्ताव में 243 नए ट्रेजरी अफसर, 77 वरिष्ठ ट्रेजरी अफसर, 58 चीफ ट्रेजरी अफसर व 20 वित्त नियंत्रक स्तर के अधिकारी भर्ती करने की मांग की गयी है। वित्त विभाग में इस प्रस्ताव का परीक्षण चल रहा है। जल्द ही इस पर फैसला होने की उम्मीद है।
कोषागार विभाग के अपर निदेशक एके मौर्य के मुताबिक कोषागारों के कर्मचारियों व अधिकारियों पर काम लगातार बढ़ता जा रहा है। बेसिक शिक्षा विभाग सहित पूरे शिक्षा विभाग के बाद अब बिजली विभाग की पेंशन बांटने का जिम्मा भी कोषागार ने संभाल लिया है। पावर कारपोरेशन के बाद कई अन्य निगम भी शासन पर कोषागार से पेंशन वितरण का दबाव बना रहे हैं। इसके अलावा समाज कल्याण, पिछड़ा वर्ग कल्याण, अल्पसंख्यक कल्याण विभागों से जुड़ी छात्रवृत्ति, पेंशन व अनुदान योजनाओं में भी पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन कर सीधे खाते में धन भेजने का नियम बन गया है। इन योजनाओं में हर वर्ष औसतन चार करोड़ लाभार्थियों के खाते में सीधे धन भेजा जाता है। यह काम भी कोषागार के जिम्मे आ गया है। इस कारण पुराने खाली पद भरने व नए पद सृजित करना जरूरी हो गया है।
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Friday 10 June 2016

वित्तीय अराजकता रोकने को मेडिकल कालेजों में ई-टेंडरिंग


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-पारदर्शिता और गुणवत्ता के साथ बढ़ेगी प्रतिस्पर्द्धा
-यूपी इलेक्ट्रानिक्स कॉरपोरेशन बनी नोडल एजेंसी
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : प्रदेश के मेडिकल कालेजों में खरीद-फरोख्त में मनमानी रोकने की पहल हुई है। इसके लिए ई-टेंडरिंग व्यवस्था तत्काल लागू करने के आदेश हुए हैं। इसके लिए यूपी इलेक्ट्रानिक्स कॉरपोरेशन को नोडल एजेंसी बनाया गया है।
प्रदेश में इस समय बारह सरकारी मेडिकल कालेज संचालित हैं और तेरहवें की तैयारी शुरू हो गयी है। इन सबमें करोड़ों रुपये खरीद-फरोख्त की जाती है। अभी मेडिकल कालेजों के स्तर पर खरीद-फरोख्त होती है और स्थानीय स्तर पर गोपनीय टेंडर प्रक्रिया अपनाई जाती है। इस प्रक्रिया में मनमानी व वित्तीय अराजकता के आरोप भी लगते रहे हैं। चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक डॉ.वीएन त्रिपाठी ने बताया कि खरीद-फरोख्त में पूरी पारदर्शिता लाने के लिए अब सभी मेडिकल कालेजों में ई-टेंडरिंग प्रणाली लागू की जाएगी। इस व्यवस्था से सभी मेडिकल कालेजों व संबद्ध अस्पतालों में चिकित्सकीय उपकरणों व अन्य सामग्री का क्रय होगा। इस ई-प्रोक्योरमेंट प्रणाली को लागू करने के लिए यूपी इलेक्ट्रानिक्स कॉरपोरेशन लिमिटेड को नोडल एजेंसी बनाया गया है। अब पूरी टेंडर प्रक्रिया ऑनलाइन होगी और महानिदेशालय, कालेज के साथ विभाग की वेबसाइट्स पर पूरा ब्यौरा उपलब्ध रहेगा। उन्होंने दावा किया कि इस प्रक्रिया से न सिर्फ खरीद-फरोख्त में पारदर्शिता आएगी, बल्कि अधिक लोगों की सहभागिता भी हो सकेगी। इससे विभाग को चिकित्सकीय उपकरणों व अन्य सामग्र्री खरीदने में प्रतिस्पर्द्धात्मक दरों के प्रस्ताव मिलेंगे। इस पूरी प्रक्रिया का सबसे बड़ा लाभ गुणवत्ता सुधार के रूप में सामने आएगा। यह प्रक्रिया एक साथ सभी मेडिकल कालेजों में लागू कर दी गयी है। अब कोई भी खरीद-फरोख्त ई-टेंडरिंग के माध्यम से ही की जाएगी।

Thursday 9 June 2016

कैंपस सेलेक्शन से पीएमएस में डॉक्टरों की भर्ती


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-छह हजार से अधिक चिकित्सकों की कमी होगी दूर
-लोक सेवा आयोग से भर्ती में विलंब का रखा तर्क
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डॉ.संजीव, लखनऊ : प्रांतीय चिकित्सा सेवा (पीएमएस) संवर्ग में डॉक्टरों की कमी और लोक सेवा आयोग से भर्ती में होने वाले विलंब के चलते अब सीधे मेडिकल कालेजों में कैंपस सेलेक्शन से डॉक्टरों की भर्ती की तैयारी है। स्वास्थ्य विभाग ने इस आशय के प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी है, ताकि छह हजार से अधिक डॉक्टरों की कमी दूर की जा सके।
उत्तर प्रदेश में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से लेकर जिला व मंडलीय अस्पतालों तक इस समय 10,500 डॉक्टर तैनात हैं। मौजूदा स्थिति में ही कम से 16,500 डॉक्टरों की जरूरत है। इसी तरह प्रदेश में 3500 विशेषज्ञ चिकित्सक तैनात हैं, जबकि जरूरत कम से कम दस हजार की है। अभी पीएमएस संवर्ग में चिकित्सकों की भर्ती लोक सेवा आयोग के माध्यम से होती है। हाल ही में 3200 एमबीबीएस उत्तीर्ण सामान्य चिकित्सकों की भर्ती के लिए लोक सेवा आयोग ने आवेदन मांगे हैं। आयोग से भर्ती की प्रक्रिया में अत्यधिक समय लगने के कारण अब स्वास्थ्य विभाग ने सीधे कैंपस सेलेक्शन से भर्ती करने का प्रस्ताव किया है। प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) अरविंद कुमार ने बताया कि अभी संविदा पर होने वाली भर्तियां तो सीधे इंटरव्यू से हो जाती हैं, किंतु स्थायी भर्तियों के लिए लोक सेवा आयोग का सहारा रहता है। इस कारण विलंब से डॉक्टरों की कमी समाप्त ही नहीं हो रही है। ऐसे में तय हुआ है कि एमबीबीएस या एमडी-एमएस के अंतिम वर्ष में स्वास्थ्य विभाग की टीम संबंधित कालेज में जाकर सीधे कैंपस में ही सेलेक्शन करे और नए डॉक्टरों को ऑफर लेटर देकर आए। बिहार व पंजाब सहित कई राज्य इस पर सफलतापूर्वक अमल कर चुके हैं। इसके लिए स्वास्थ्य महानिदेशालय में अलग प्रकोष्ठ का प्रस्ताव है। वित्त, चिकित्सा शिक्षा व कार्मिक विभागों के अधिकारियों के साथ बैठक कर प्रस्ताव पर सहमति ली गयी है। जल्द ही पूरा प्रस्ताव मंत्रिपरिषद के समक्ष लाया जाएगा।
बदलेगी सेवा नियमावली
लोक सेवा आयोग से भर्ती होने की स्थिति में भी वरिष्ठता पर कई बार विवाद की स्थिति बनती है। इस प्रक्रिया में भी वरिष्ठता व नियुक्ति संबंधी विवाद खड़े होने से इनकार नहीं किया जा रहा है। तय हुआ है कि पीएमएस संवर्ग की सेवा नियमावली में बदलाव कर इस प्रस्ताव को मूर्त रूप दिया जाए। मंत्रिमंडल में इस प्रस्ताव के साथ बदली सेवा नियमावली भी मंजूरी के लिए जाएगी।
कार्मिक विभाग से मांगी राय
इस पूरे मसले पर स्वास्थ्य विभाग ने कार्मिक विभाग से राय मांगी है। इसमें लोक सेवा आयोग के माध्यम से पूरी तरह भर्ती बंद करने या स्थायी रूप से सीधी भर्ती के साथ दोनों विकल्प खुले रखने का विकल्प भी दिया गया है। दोनों विकल्पों की स्थिति में वरिष्ठता क्रम सुनिश्चित करने का सुझाव भी मांगा गया है। इसके लिए उच्च व सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों का अध्ययन करने की बात कही गयी है।

Wednesday 8 June 2016

पीएम के दौरे में नहीं रहती पुख्ता इलाज की व्यवस्था


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-आइबी की रिपोर्ट के बाद केंद्र ने जताई आपत्ति
-राज्य सरकार ने नए सिरे से जारी किये दिशा-निर्देश
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रदेश दौरे में इलाज की पुख्ता व्यवस्था नहीं होती है। खुफिया ब्यूरो (आइबी) की इस रिपोर्ट के बाद केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश सरकार से इस बाबत आपत्ति दर्ज कराई है। इस पर राज्य सरकार ने नए सिरे से दिशा निर्देश जारी किये हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी तो उत्तर प्रदेश में है ही, अन्य जिलों में भी उनके दौरे होते रहते हैं। अगले वर्ष प्रस्तावित विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अब तो जल्दी-जल्दी उनका उत्तर प्रदेश प्रवास होने की उम्मीद है। इसी बीच उनके प्रदेश प्रवास के दौरान इलाज की समुचित व्यवस्था न होने की बात उठी है। भारत सरकार के स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ.जगदीश प्रसाद ने प्रदेश के मुख्य सचिव आलोक रंजन को पत्र लिखकर इस बाबत आपत्ति जताई है। उन्होंने बताया है कि खुफिया ब्यूरो द्वारा प्रधानमंत्री के उत्तर प्रदेश दौरे के दौरान स्वास्थ्य व उपचार संबंधी प्रबंध पर्याप्त न होने की बात उनके संज्ञान में लाई गयी है। उन्होंने इन स्थितियों को देखते हुए प्रदेश सरकार से संबंधित एजेंसियों को प्रधानमंत्री के दौरे के दौरान मानकों के अनुरूप व्यवस्था करने के निर्देश देने को कहा है। साथ ही सुरक्षा एजेंसियों के साथ मिलकर नियमित रूप से अस्पतालों व अस्पतालों के बाहर की आपात स्थितियों का आकलन करने के लिए 'मॉक-ड्रिलÓ (पूर्वाभ्यास) करने का सुझाव भी दिया है।
इस पत्र के बाद मुख्य सचिव ने प्रदेश के सेहत महकमे को सक्रिय किया है। इस पर प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) अरविंद कुमार ने सभी मुख्य चिकित्सा अधिकारियों व अधीक्षकों को मानकों के अनुपालन संबंधी निर्देश जारी किये हैं। किसी तरह की चूक होने पर सीधे इन लोगों की ही सीधी जवाबदेही व कार्रवाई होने की बात भी कही है। इसमें हवाई अड्डे या हेलीपैड, रास्ते, कार्यक्रम स्थल और विश्राम स्थल पर सतत चिकित्सकीय बंदोबस्त सुनश्चित करने को कहा गया है। इसके लिए रक्त सहित अन्य प्रबंधों के साथ वीवीआइपी मेडिकल रेस्पांस टीम की रूपरेखा भी सभी को भेजी गयी है।
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आकस्मिक इलाज मुश्किल
पत्र के अनुसार खुफिया विभाग ही नहीं, प्रधानमंत्री के निजी फिजीशियन ने भी इलाज के बंदोबस्त अपर्याप्त पाए हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को दी गयी रिपोर्ट में कहा गया है कि सूबे में पीएम के दौरे के समय आकस्मिक इलाज की स्थितियां भी मुश्किल होती हैं। राज्य व स्थानीय स्तर पर उपलब्ध कराई जाने वाली एंबुलेंस मानक के अनुरूप उपयुक्त ('अप टू द मार्कÓ) नहीं होती हैं। इसमें भी विशेष रूप से किसी चिकित्सकीय आपात स्थिति से निपटने के लिए उनकी तैयारी ('ऑपरेशनल रेडीनेसÓ) पर्याप्त नहीं होने की बात कही गयी है।

पेंशन के लिए नहीं लगाने होंगे कोषागार के चक्कर

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-इस माह के अंत तक सभी जिलों में ऑनलाइन पेंशन प्रणाली
-सेवानिवृत्ति से पहले ही ई-पेंशन पोर्टल पर अपलोड होगा ब्यौरा
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: प्रदेश के किसी भी कर्मचारी को सेवानिवृत्ति के बाद अब पेंशन के लिए कोषागार के चक्कर नहीं लगाने होंगे। इसी माह सभी जिलों में ऑनलाइन पेंशन स्वीकृति प्रणाली (ई-पेंशन सिस्टम) हर हाल में लागू हो जाएगी।
प्रदेश में दस लाख से अधिक कर्मचारी सरकारी सेवा में हैं। इनके सेवानिवृत्त होने पर पेंशन हर जिले में कोषागार के माध्यम से मिलती है। मौजूदा स्थिति में विभिन्न सरकारी विभागों से सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन शुरू होने तक की प्रक्रिया खासी जटिल होती है। कर्मचारियों को तमाम बार कोषागार के चक्कर लगाने होते हैं। प्रदेश सरकार ने दो साल पहले पेंशन स्वीकृति प्रक्रिया को ऑनलाइन करने का फैसला किया था। जनवरी 2015 से उन्नाव व बाराबंकी में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में यह प्रक्रिया शुरू की गयी थी। वहां सफलता के बाद सितंबर 2015 से 25 और जिलों में इसे लागू किया गया था। अब शेष 48 जिलों में इस प्रक्रिया को लागू करने का फैसला हुआ है। इस बाबत जारी आदेश में वित्तीय वर्ष 2016-17 की पहली तिमाही, अर्थात 30 जून 2016 तक हर हाल में इस प्रणाली को अमल में लाने को कहा गया है। आदेश दिये गए हैं कि कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति से पहले उनका पूरा ब्यौरा प्रदेश के ई-पेंशन पोर्टल पर अपलोड कर दिया जाए। इससे सेवानिवृत्ति के अगले माह से ही सभी कर्मचारियों को पेंशन मिलने लगेगी।
अफसर नहीं लेते रुचि
पेंशन निदेशालय के निदेशक वीकेएल श्रीवास्तव ने सभी विभागाध्यक्षों को पत्र लिखकर अफसरों द्वारा इस काम में रुचि न लेने पर आपत्ति जाहिर की है। मंडलीय अपर निदेशकों (कोषागार एवं पेंशन) तथा जिला कोषागारों से प्राप्त फीडबैक का हवाला देते हुए कहा है कि कार्यालयाध्यक्ष व आहरण-वितरण अधिकारी पेंशन प्रकरणों को अपलोड कराने में अपेक्षित सहयोग नहीं कर रहे हैं। पेंशन प्रकरणों का समय से निस्तारण न हो पाने से ब्याज के रूप में अनावश्यक वित्तीय भार वहन करना पड़ता है।
नामित हों नोडल अधिकारी
पेंशन निदेशालय के संयुक्त निदेशक धीरेंद्र कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि पेंशन प्रकरणों के निस्तारण पर नजर रखने के लिए हर विभाग से राज्य स्तर पर एक नोडल अधिकारी नामित करने को कहा गया है। उनके जिम्मे विभागीय कार्यालयाध्यक्षों व आहरण-वितरण अधिकारियों से समयबद्ध कार्यवाही कराने और ऐसा न होने पर आख्या प्राप्त करने का काम होगा। इसमें विलंब पर दोषी अधिकारियों व कर्मचारियों के खिलाफ दंडात्मक कार्यवाही को भी कहा गया है।

Tuesday 7 June 2016

सामाजिक सुरक्षा सहेजेगा भविष्य निधि निदेशालय


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-जीपीएफ व नई पेंशन योजना की देखरेख व भुगतान पर नजर
-रखना होगा कर्मचारियों व सरकार के अंशदान का लेखा-जोखा
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डॉ.संजीव, लखनऊ
पुरानी पेंशन योजना समाप्त होने और नई पेंशन योजना के अमल में तेजी के साथ ही कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ गयी है। अब अलग से भविष्य निधि निदेशालय की स्थापना का प्रस्ताव किया गया है। इसके प्रारूप को अंतिम रूप दे दिया गया है।
उत्तर प्रदेश में इस समय दस लाख से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं। तीन लाख कर्मचारी एक अप्रैल 2005 के बाद नियुक्त होकर नई पेंशन योजना से आच्छादित हैं। वित्त विभाग के आंकलन में भविष्य निधि (जीपीएफ) व नई पेंशन योजना में जमा धनराशियों का सही लेखांकन न हो पाना कर्मचारियों की बड़ी समस्या के रूप में सामने आया। देय ब्याज का सही निर्धारण व जीपीएफ का समय से भुगतान न होने की बात भी पता चली। वर्तमान प्रक्रिया में वेतन बिलों के भुगतान के बाद कोषागार द्वारा कर्मचारियों के जीपीएफ शेड्यूल को महालेखाकार कार्यालय भेजा जाता है। वहां कर्मचारियों के जीपीएफ खातों में सही धनराशि न दिखने की शिकायत आम हो गयी है। नई पेंशन योजना में कर्मचारियों व सरकार के अंशदान का लेखा-जोखा रखना भी बड़ा काम हो गया है। बीस वर्षों में पुराने कर्मचारी सेवानिवृत्त हो जाएंगे और सभी कर्मचारी नई पेंशन योजना से जुड़ चुके होंगे। ऐसे में उनके व सरकार के अंशदान का पूरा लेखाजोखा भी रखना होगा। कर्मचारियों को समस्याओं से बचाने के लिए भविष्य निधि निदेशालय की स्थापना का प्रस्ताव किया गया है। प्रमुख सचिव (वित्त) राहुल भटनागर ने बताया कि प्रस्ताव का अध्ययन कराया जा रहा है। कोषागार व पेंशन निदेशालय के विस्तार सहित अन्य बिंदुओं पर विचार कर जल्द ही इस पर फैसला होगा।
कुछ ऐसा होगा स्वरूप
प्रस्तावित भविष्य निधि निदेशालय में मुख्यालय स्तर पर एक निदेशक, एक अपर निदेशक, दो संयुक्त निदेशक, पांच उपनिदेशक, 15 सहायक लेखाकार पद सृजित करने का प्रस्ताव है। हर जिले में कोषागार के साथ-साथ एक जिला भविष्य निधि अनुभाग स्थापित होगा। इसके लिए 77 कोषाधिकारी, 93 उपकोषाधिकारी, 154 लेखाकार व 372 सहायक लेखाकार के पद सृजित किये जाएंगे।
करोड़ों के गबन का खतरा
प्रस्ताव में गाजियाबाद के जीपीएफ घोटाले का उदाहरण देते हुए कहा गया है कि नियमित लेखांकन के अभाव में ऐसे तमाम गबन राज्य सरकार की दृष्टि से दूर है। आशंका जतायी कि करोड़ों रुपये की राशि के गबन का खतरा है। कहा गया है कि चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के जीपीएफ खातों का रखरखाव विभागीय स्तर पर होता है, इसलिए बड़ी राशियों के गबन प्रकाश में आए हैं। भविष्य में भी गबन की संभावना बनी हुई है।
ये हैं मुख्य समस्याएं
-वेतन-भत्तों का समय से निर्धारण व ससमय उनका वांछित हाथों में भुगतान
-सेवाकाल के दौरान समय से प्रोन्नतियां व पेंशन की समय से स्वीकृति
-पेंशन का सही निर्धारण एवं समय से वांछित व्यक्तियों को ही भुगतान
-जीपीएफ व नई पेंशन योजना में जमा धनराशियों का सही लेखांकन
-देय ब्याज का सही निर्धारण व जीपीएफ का समय से भुगतान