Friday 11 November 2016

बेटियां मरें तो मरें, नहीं ले जाएंगे अस्पताल


- गंभीर अवस्था में अस्पताल पहुंचे नवजात बच्चों में बेटियां आधी
- इटावा व ललितपुर में तो भर्ती बच्चियां तीस फीसद से भी कम
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डॉ.संजीव, लखनऊ:
बेटी बचाने को लेकर हो रही बड़ी-बड़ी बातों के बावजूद अभिभावक बेटियों की जिंदगी बचाने को लेकर गंभीर नहीं हैं। हालत ये है कि गंभीर अवस्था में अस्पताल पहुंचने वाली बेटियों की संख्या बेटों की तुलना में लगभग आधी है।
देश में इस समय बेटी बचाओ नारे के साथ बड़ा अभियान चल रहा है। इसके बावजूद बेटियों के साथ अन्याय थमने का नाम नहीं ले रहा है। हाल ही में इस बाबत जारी स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े इस तथ्य की पुष्टि कर रहे हैं। प्रदेश में गंभीर अवस्था में पैदा होने वाले नवजात शिशुओं में यदि बेटी बीमार होती है तो घर वाले उसे अस्पताल ले जाने में भी कोताही करते हैं। प्रदेश के सभी जिलों में स्थापित नवजात शिशु रक्षा इकाई में भर्ती होने वाले कुल बच्चों में से बेटों की संख्या हर माह औसतन 63 फीसद रहती है, वहीं बेटियों की संख्या 37 फीसद पर सिमटी है। कुछ जिलों में तो यह स्थिति बहुत खराब है। इटावा में भर्ती होने वाले गंभीर नवजात शिशुओं में महज 25 फीसद बेटियां होती हैं और ललितपुर में यह आंकड़ा 29 फीसद है। अधिकारी भी इस स्थिति को स्वीकार करते हैं। उनका कहना है कि इनमें 37 फीसद बेटियां इसलिए अस्पताल में इलाज पा जाती हैं, क्योंकि अस्पताल पहुंचने वाले कुल बच्चों में से वहीं पैदा हुए बच्चों की संख्या 53 फीसद होती है। प्रदेश स्तर पर नवजात शिशु इकाइयों में कुल भर्ती हुए बच्चों में से बाहर पैदा हुए बच्चों की संख्या भले ही 47 फीसद हो, किन्तु कई जिलों की स्थिति बहुत खराब है। मीरजापुर में सिर्फ 6 फीसद बच्चे ही अस्पताल पहुंचते हैं, वहीं मुरादाबाद में सात फीसद व बुलंदशहर में 15 फीसद बच्चे अस्पताल तक पहुंच पाते हैं।
उपकरण खराब, फोन बंद
वैसे प्रदेश के नवजात शिशुओं के इलाज में लापरवाही भी जबर्दस्त हो रही है। अधिकांश इकाइयों में बच्चों के इलाज के लिए जरूरी उपकरण ही काम नहीं करते हैं। आगरा मेडिकल कालेज की नवजात शिशु इकाई में 58 फीसद व मेरठ मेडिकल कालेज में 39 फीसद बार बच्चों के लिए जरूरी रेडियेंट वार्मर काम करता नहीं मिला। शाहजहांपुर जिला महिला अस्पताल में बच्चों का पल्स ऑक्सीमीटर लंबे समय से खराब पड़ा है तो राजधानी लखनऊ के वीरांगना अवंतीबाई अस्पताल, प्रतापगढ़ व अलीगढ़ के जिला महिला अस्पतालों का पल्स ऑक्सीमीटर 60 फीसद बार जरूरत के समय काम ही नहीं कर सका। राजधानी के वीरांगना अवंती बाई अस्पताल और प्रतापगढ़, शाहजहांपुर, मेरठ व अलीगढ़ के जिला महिला अस्पतालों में शिशु उपचार इकाई का एयरकंडीशनर भी अक्सर खराब रहता है। मेरठ, प्रतापगढ़, फैजाबाद, शाहजहांपुर, ललितपुर, बांदा, इटावा व बुलंदशहर के जिला महिला अस्पतालों और गोरखपुर व आगरा मेडिकल कालेजों की नवजात शिशु उपचार इकाइयों में टेलीफोन भी बंद पड़े हैं।

Thursday 10 November 2016

सरकारी दफ्तरों में चलता रहा नोट मैनेजमेंट

-कहीं अपनों को सूचना देने की खीज, तो कहीं पैसे जाने का दर्द
-आइएएस अफसरों को याद आया महाभ्रष्ट चुनने का अभियान
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : फलां अफसर के पास तो बड़े नोटों की कई गड्डियां होंगी, अब वह क्या करेंगे? अरे नहीं, उनसे ज्यादा गड्डियां तो अमुक अफसर के पास होंगी, जरा सोचो उनका क्या हाल होगा। सचिवालय के एक कमरे में बुधवार को दो वरिष्ठ आइएएस अफसरों का नाम लेकर यह चर्चा हो रही थी। बुधवार सुबह से सचिवालय ही नहीं, सभी सरकारी दफ्तरों में कमोवेश इसी तरह के नोट मैनेजमेंट पर फोकस रहा।
मंगलवार रात अचानक पांच सौ व एक हजार के नोटों का चलन बंद करने की घोषणा के बाद बुधवार सुबह सरकारी दफ्तर खुले तो चर्चाएं भी इसी फैसले पर सिमटी थीं। एक बार फिर आइएएस अफसरों को कुछ वर्ष पहले चला महाभ्रष्ट चुनने का अभियान याद आ गया। एक वरिष्ठ अफसर का कहना था कि उस समय कई ईमानदार अफसर भी महाभ्रष्ट चुनने की मुहिम का विरोध इसलिए नहीं कर रहे थे, क्योंकि इससे उन पर भ्रष्ट होने का ठप्पा लग सकता था। इसी तरह कई भ्रष्ट माने जाने वाले अफसर भी मुहिम के समर्थन में खड़े होकर स्वयं को ईमानदार साबित कर रहे थे। ठीक उसी तरह इस समय यदि कोई नोट बंद किये जाने का विरोध करे, तो उसे बेईमान मान लिया जाएगा। एक अफसर ने तो देश के दो बड़े उद्यमियों का नाम लेकर कहा, उन्हें सब कुछ पता होगा। उनके सहित सरकार के निकटस्थ लोग अपना पूरा नोट मैनेजमेंट कर चुके होंगे, तब जाकर पाबंदी लगी होगी। एक अफसर ने कहा, अपनों को बताने के बाद हमारे पास जो थोड़ा-बहुत है, उस पर नजर गड़ाई गयी है। मातहत कर्मचारी भी तरह-तरह की बातें कर रहे थे। एक कर्मचारी ने दूसरे के बॉस के  बारे में कहा, तुम्हारे साहब कैसे करेंगे नोट मैनेजमेंट, तो दूसरा बोला, अपने साहब की चिंता करो, जो पूरी पूरी गड्डियां मैनेज होती हैं।
जब बख्शीश से किया इन्कार
सचिवालय व एनेक्सी आदि में लिफ्ट से लेकर अफसरों के कमरों के बाहर तक बख्शीश का दौर चलता है। महंगाई के दौर में बख्शीश भी पांच सौ व हजार के नोट तक पहुंच चुकी थी, किंतु बुधवार को एक कर्मचारी ने पांच सौ का नोट लेने से यह कहकर इन्कार कर दिया कि साहब यह नोट तो चलेगा ही नहीं, हम इसका क्या करेंगे। कुछ कर्मचारियों ने काम के लिए जो एडवांस ले रखा था, उस धनराशि के प्रबंधन की चर्चाएं भी होती रहीं। 

मच्छर काटने से होने वाली हर बीमारी, अब महामारी


-कैबिनेट बाय सर्कुलेशन हुआ फैसला, निजी क्षेत्र पर भी सख्ती
-डेंगू, चिकुनगुनिया, फाइलेरिया व मलेरिया जैसी बीमारियां शामिल
-संक्रमित क्षेत्र हो सकेंगे अधिसूचित, सूचना देना होगा जरूरी
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: डेंगू के प्रसार पर लगातार उच्च न्यायालय की डांट खा रही प्रदेश सरकार ने मच्छर काटने से होने वाली हर बीमारी को महामारी के रूप में अधिसूचित किया है।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की अध्यक्षता में फिलहाल कैबिनेट की बैठक प्रस्तावित न होने के चलते कैबिनेट बाय सर्कुलेशन हुए इस फैसले में डेंगू, चिकुनगुनिया, फाइलेरिया व मलेरिया जैसी बीमारियों को महामारी घोषित करने और निजी क्षेत्र पर भी सख्ती करने की बात कही गयी है। डेंगू की भयावहता पर गंभीर उच्च न्यायालय ने पिछले माह मुख्य सचिव तक को तलब कर लिया गया था। मुख्य सचिव राहुल भटनागर ने न्यायालय के समक्ष सरकार की गलती मानने के साथ डेंगू से निपटने के लिए पूरा एक्शन प्लान पेश किया था। इस एक्शन प्लान में डेंगू सहित संक्रामक बीमारियों को महामारी की श्रेणी में लाने की बात शामिल थी। सरकार को 16 नवंबर को इस मामले में पूरी कार्रवाई की जानकारी उच्च न्यायालय को देनी है। इससे पहले ही मंगलवार को सरकार ने कैबिनेट बाय सर्कुलेशन इन बीमारियों को महामारी घोषित करने के लिए एपेडमिक डिजीज एक्ट 1897 के अंतर्गत रेग्युलेशन 2016 को मंजूरी दे दी। इसके बाद बुधवार को डेंगू, चिकुनगुनिया, मलेरिया, फाइलेरिया व अन्य मच्छरजनित बीमारियों को एपिडिमिक डिजीज एक्ट, 1897 की परिधि में लाने की अधिसूचना जारी कर दी गयी।
केंद्र सरकार इसी वर्ष जून में इन बीमारियों महामारी की श्रेणी में घोषित कर चुकी है। केंद्र की अधिसूचना को उत्तर प्रदेश को अंगीकार करना था, किन्तु ऐसा नहीं हुआ। अधिसूचना जारी होने के बाद सरकार इनमें से किसी भी बीमारी के मरीज बढऩे पर संबंधित क्षेत्र को संक्रमित क्षेत्र घोषित कर सकेगी। इसके बाद उस बीमारी की तुरंत सूचना देना जरूरी हो जाएगा। ऐसा न करने वाले निजी अस्पतालों व अन्य निजी संस्थानों पर भी कार्रवाई हो सकेगी। बीमारियां फैलाने के कारक बनने वालों, जैसे जलभराव करने वालों, गंदगी फैलाने वालों आदि तत्वों को चिह्नित कर उनके खिलाफ दंडनीय कार्रवाई भी संभव होगी। इसके लिए हर जिले में एक नियंत्रण अधिकारी की तैनाती भी की जाएगी।

दस मेडिकल कालेजों में कौशल विकास केंद्र

-केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने मुख्य सचिव से मांगे प्रस्ताव
-आपातकालीन चिकित्सा सहायता पर रहेगा पूरा फोकस
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: प्रदेश के दस सरकारी मेडिकल कालेजों में कौशल विकास केंद्र खोले जाएंगे। केंद्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसके लिए प्रदेश के मुख्य सचिव से प्रस्ताव मांगे हैं। इन केंद्रों में पूरा फोकस आपातकालीन चिकित्सा सहायता से जुड़े कौशल विकास पर रहेगा।
केंद्र सरकार ने देश भर के सरकारी चिकित्सा शिक्षा संस्थानों में कौशल विकास केंद्र खोलने का फैसला लिया है। उत्तर प्रदेश के हिस्से में ऐसे दस कौशल विकास केंद्र आए हैं। इन केंद्रों में प्रदेश के चिकित्सकों, नर्सों व पैरामेडिकल कर्मियों को आपातकालीन चिकित्सा सहायता से जुड़े प्रशिक्षण दिये जाएंगे। इस पूरी परियोजना पर होने वाला खर्च केंद्र सरकार उठाएगी। दरअसल समय पर इलाज न पहुंच पाने जैसी आपातकालीन चिकित्सा सुविधाओं की राह में आ रही बाधाओं और कई बार चिकित्सकों को भी आपातकालीन चिकित्सा के मूल तत्वों की जानकारी न होने जैसी समस्याओं का समाधान करने के लिए केंद्र सरकार ने यह योजना प्रस्तावित की है। केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव ने इस बाबत मुख्य सचिव को पत्र लिखकर कौशल विकास केंद्र के लिए दस कालेज चिह्नित कर तत्काल सूची भेजने को कहा है। इन केंद्रों की स्थापना में विलंब न हो, इसके लिए स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ क्षेत्रीय निदेशक को इसके लिए नोडल अफसर के रूप में जिम्मेदारी सौंपी गयी है। उन्होंने प्रमुख सचिव (चिकित्सा शिक्षा) को पत्र लिखकर तुरंत नाम भेजने को कहा है।
सुधरेगी ट्रामा की हालत
प्रदेश सरकार दस पुराने मेडिकल कालेजों में ही ये स्किल डेवलपमेंट सेंटर बनाने की पहल कर रही है। दरअसल ये सेंटर वहीं खुलने हैं, जहां एमबीबीएस स्तर की पढ़ाई हो रही हो। ऐसे में प्रदेश के 11 मेडिकल कालेज इसके दायरे में आते हैं। अधिकारियों का मानना है कि इससे ट्रामा की हालत सुधरेगी। नर्स व पैरामेडिकल स्टाफ को प्रशिक्षण देने से उपचार की राह भी आसान होगी।
14 महीने से नाम मांग रहा केंद्र
केंद्र की चिट्ठियों पर राज्य के स्तर पर ढिलाई का नमूना भी इन कौशल विकास केंद्रों की पहल से सामने आया है। पिछले वर्ष 10 सितंबर को केंद्रीय स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक डॉ.जगदीश प्रसाद ने प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) को पत्र लिखकर कालेजों के नाम मांगे थे। यहां कालेजों का जिम्मा चिकित्सा शिक्षा विभाग के पास होने के कारण वे नाम गए ही नहीं। इसके बाद इस वर्ष 24 जून के केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव बीपी शर्मा ने मुख्य सचिव को पत्र लिखकर नाम मांगने के साथ प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) द्वारा नाम न भेजने की बात बताई। चार माह से अधिक बीत जाने पर भी मेडिकल कालेज न चिह्नित किये जाने पर वरिष्ठ क्षेत्रीय निदेशक ने सीधे प्रमुख सचिव (चिकित्सा शिक्षा) को चिट्ठी लिखी। अब शासन स्तर पर कालेजों के नाम चिह्नित करने की प्रक्रिया शुरू हुई है।

54 साल बाद पॉलीटेक्निक के पर्चों का प्रारूप बदला


-पूरे पाठ्यक्रम को हिस्सा बनाने पर फोकस
-सभी संस्थाओं को भेजे जाएंगे मॉडल पेपर
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: प्रदेश की पॉलीटेक्निक संस्थाओं में पर्चों का प्रारूप 54 साल बाद बदला जा रहा है। इस बार पूरे पाठ्यक्रम को हिस्सा बनाने पर पूरा जोर दिया गया है। अब सभी निजी व सरकारी संस्थाओं को मॉडल पेपर भेजे जाएंगे, ताकि विद्यार्थी तदनुरूप तैयारी कर सकें।
उत्तर प्रदेश में प्राविधिक शिक्षा विभाग पॉलीटेक्निक संस्थाओं में एक, दो व तीन वर्षीय डिप्लोमा पाठ्यक्रमों का संचालन करता है।  इन पाठ्यक्रमों के लिए 1962 में पर्चों का प्रारूप बनाया गया था। तब से उसी पैटर्न पर परीक्षा हो रही थी। प्रमुख सचिव (प्राविधिक शिक्षा) मोनिका एस गर्ग के मुताबिक इस बार सेमेस्टर प्रणाली लागू करने के साथ पर्चों का प्रारूप बदलने की जरूरत भी सामने आयी थी। आंकलन में पता चला था कि बीते वर्षों में कई पाठ्यक्रमों में परिवर्तन व सुधार किया गया, उन्हें बदले परिवेश के हिसाब से उच्चीकृत किया गया, किन्तु पर्चों का प्रारूप न बदलने से उनमें पूरा पाठ्यक्रम समाहित ही नहीं होता था।
अब मौजूदा शैक्षिक सत्र से ही पर्चों का प्रारूप बदलने के साथ पूरा फोकस इस बात पर होगा कि विद्यार्थियों का परीक्षण उनके पूरे पाठ्यक्रम को आधार बनाकर किया जा सके। साथ ही तात्कालिक जरूरतों के अनुसार उनका मूल्यांकन करने पर भी जोर दिया गया है। बदले प्रारूप के हिसाब से मॉडल पेपर सभी राजकीय व निजी पॉलीटेक्निक संस्थाओं को भेजे जा रहे हैं। इनके साथ मॉडल उत्तर भी भेजे जाएंगे, ताकि शिक्षक उसी हिसाब से तैयारी करा सकें और विद्यार्थी तैयारी कर सकें। मॉडल पेपर प्राविधिक शिक्षा परिषद की वेबसाइट पर भी अपलोड कर दिये गए हैं। प्रदेश के 126 सरकारी, 18 अनुदानित व 362 निजी पॉलीटेक्निक संस्थाओं में दो लाख पांच हजार विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। इनमें से पहले सेमेस्टर के एक लाख पांच हजार विद्यार्थियों को नए प्रारूप से परीक्षा देनी होगी।
50 नंबर का पर्चा
अगले माह, दिसंबर में होने वाली सेमेस्टर परीक्षा नए प्रारूप से ही होगी। पर्चा 50 नंबर का होगा। इसमें एप्लाइड मैथ, एप्लाइड केमिस्ट्री, एप्लाइड फिजिक्स, प्रोफेशनल कम्युनिकेशन व फाउंडेशन कम्युनिकेशन विषयों के प्रश्नपत्रों को तीन हिस्सों में बांटा गया है। पहले हिस्से में बारह अतिलघु उत्तरीय प्रश्न होंगे, जिसमें से दस हल करने होंगे। हर प्रश्न एक नंबर का होगा। दूसरे हिस्से में लघु उत्तरीय प्रश्न होंगे। इसमें सात में से पांच सवाल हल करने होंगे और हर सवाल दो नंबर का होगा। तीसरा हिस्सा दीर्घ उत्तरीय प्रश्नों का होगा। इसमें तीन-तीन सवालों के तीन समूह होंगे और हर समूह से दो-दो सवाल हल करने होंगे। हर सवाल पांच नंबर का होगा। 

संस्थानों की ढिलाई से लटकी दस लाख की छात्रवृत्ति

-छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति योजना में सख्ती का परिणाम
-64 लाख विद्यार्थियों के आवेदनों की जांच का काम शुरू
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति योजना में सख्ती क्या हुई, शिक्षण संस्थानों ने इस ओर ढिलाई शुरू कर दी है। इस वर्ष विद्यार्थियों द्वारा पूरी तरह भरे जाने के बाद भी शिक्षण संस्थानों द्वारा शासन को आवेदन न अग्र्रसारित किये जाने से दस लाख विद्यार्थियों की छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति लटक गयी है। अब शासन स्तर पर 64 लाख आवेदनों की जांच शुरू की गयी है, ताकि समय पर भुगतान सुनिश्चित किया जा सके।
प्रदेश में आठवीं के बाद स्कूल छोड़ जाने की समस्या से निपटने के लिए पूर्वदशम् छात्रवृत्ति का प्रावधान है। नौवीं व दसवीं में पूर्वदशम् छात्रवृत्ति के बाद 11वीं, 12वीं में दशमोत्तर छात्रवृत्ति और 12वीं के बाद प्रोफेशनल पाठ्यक्रमों के लिए शुल्क प्रतिपूर्ति का प्रावधान है। पिछले तीन वर्षों में छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति में गड़बडिय़ों के तमाम मामले सामने आने के बाद सख्ती के साथ कई प्रक्रियागत बदलाव भी किये गए। संस्थानों की जिम्मेदारी निर्धारित की गयी, ताकि वे आवेदन अग्र्रसारित करने से पहले पर्याप्त जांच पड़ताल कर लें। ऐसा न करने वाले तमाम संस्थानों को काली सूची में भी डाला गया और मुकदमे तक कायम हुए।
सख्ती का परिणाम यह हुआ कि विद्यार्थियों के आवेदन के बाद भी इन संस्थानों ने फार्म अग्र्रसारित कर शासन स्तर तक भेजे ही नहीं। इस कारण दो बार आवेदन की अंतिम तिथि भी बढ़ाई गयी किन्तु स्थितियों में बहुत परिवर्तन नहीं आया। इस बार नौवीं-दसवीं के 30,403 स्कूलों में 27.2 लाख विद्यार्थियों ने पंजीकरण कराया, जिसमें से 16.6 लाख ने फार्म भरे और 14.6 लाख ने अंतिम आवेदन किया। स्कूलों ने इनमें से 12.6 लाख आवेदन ही अग्र्रसारित किये। इसी तरह 11वीं-12वीं के 16,510 विद्यालयों में 24.8 लाख विद्यार्थियों ने पंजीकरण कराया, जिसमें से 18 लाख ने फार्म भरे और 15.9 लाख ने अंतिम आवेदन किया। विद्यालयों ने इनमें से 13.8 लाख आवेदन ही अग्र्रसारित किये। दशमोत्तर शुल्क प्रतिपूर्ति के लिए 11,263 संस्थानों में 64.4 लाख विद्यार्थियों ने पंजीकरण कराया। पंजीकरण के बाद 47.8 लाख ने फार्म भरे और सभी जरूरी संलग्नकों के साथ 43.6 लाख ने अंतिम रूप से आवेदन किया। इनमें भी संस्थानों ने सिर्फ 38 लाख विद्यार्थियों के आवेदन ही शासन को अग्र्रसारित किये। इस तरह प्रदेश में छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति के लिए कुल 58,176 संस्थानों के 1.16 करोड़ विद्यार्थियों ने पंजीकरण कराया। पंजीकरण के बाद इनमें से 34 लाख विद्यार्थी फार्म भरने के पहले ही गायब हो गए और सिर्फ 82.4 लाख विद्यार्थियों ने ही फार्म भरे। इनमें से 74 लाख ने अंतिम रूप से आवेदन किया, किन्तु संस्थानों ने दस लाख आवेदन शासन को भेजे ही नहीं। अब शासन स्तर पर 64 लाख आवेदनों की जांच शुरू की गयी है, ताकि उन्हें समय पर छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति का भुगतान किया जा सके। इस संबंध में समाज कल्याण विभाग के उपनिदेशक पीके त्रिपाठी ने बताया कि सोमवार से ऐसे मामलों की जांच शुरू कराई जाएगी। दोषी पाए जाने वाले संस्थानों पर कठोर कार्रवाई होगी।

Friday 4 November 2016

...तो नए साल में मिल पाएगा सातवां वेतनमान


-दीवाली के आसपास कर्मचारियों को लाभ देने की रणनीति सफल नहीं
-अभी प्रारंभिक रिपोर्ट ही तैयार नहीं, ऐसे में विलंब होना लगभग निश्चित
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: कर्मचारियों को सातवें वेतन आयोग की संस्तुतियों का लाभ दीवाली के आसपास तक देने के लिए राज्य सरकार ने तेजी तो की थी किन्तु वह दीवाली के बाद भी प्रभावी साबित होती नहीं दिख रही है। माना जा रहा है कि कर्मचारियों को नए साल में ही सातवें वेतनमान का लाभ मिल पाएगा।
केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों के लिए सातवें वेतन आयोग की संस्तुतियों को लागू कर दिया था। इसके बाद सितंबर में प्रदेश सरकार ने भी इन्हें स्वीकार करने के साथ सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी गोपबंधु पटनायक की अध्यक्षता में समीक्षा समिति भी गठित कर दी थी। पटनायक ने 11 अगस्त को काम भी संभाल लिया था। सरकार ने समीक्षा समिति के गठन का आदेश जारी करने के साथ तीन माह के भीतर प्रारंभिक रिपोर्ट भी मांगी थी। इसके आधार पर अनुमान लगाया जा रहा था कि दीवाली के आसपास राज्य कर्मचारियों को सातवें वेतनमान का लाभ मिल जाएगा। समिति ने राज्य कर्मचारियों के विभिन्न संगठनों के साथ आम जनता का पक्ष सुनने की भी पहल की। तीन सौ से अधिक कर्मचारी संगठनों की बात सुनने के बाद समीक्षा समिति ने विभिन्न सरकारी विभागों का पक्ष सुनना शुरू किया है। वित्त विभाग से वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता व संभावित खर्चे पर एक चक्र विचार विमर्श भी हो चुका है।
अब तक प्रारंभिक संस्तुतियां भी न तैयार हो पाने के कारण दीपावली के आसपास ही नहीं, पूरे नवंबर में भी कर्मचारियों को इसका लाभ मिल पाने की उम्मीद नहीं लग रही है। स्वयं समीक्षा समिति के अध्यक्ष ने 15 नवंबर तक प्रारंभिक रिपोर्ट देने का लक्ष्य निर्धारित किया था। उनका कहना है कि जल्द से जल्द रिपोर्ट देने की कोशिश हो रही है। अधिकारियों के मुताबिक प्रारंभिक रिपोर्ट मिलने के बाद भी इसे लागू करने की प्रक्रिया खासी लंबी है। नवंबर के अंत तक यदि प्रारंभिक रिपोर्ट मिल भी गयी तो उस पर अमल का फार्मूला तैयार कर कैबिनेट में लाया जाएगा। कैबिनेट से पास होने के बाद दिसंबर में यदि अमल की घोषणा भी हुई तो जनवरी से पहले कर्मचारियों को सातवें वेतनमान के अनुरूप वेतन नहीं मिल पाएगा। इस बीच चुनाव की घोषणा होने की स्थिति में भत्तों आदि से जुड़ी विस्तृत रिपोर्ट बाद में आएगी, जिस पर नयी सरकार ही फैसला लेगी।
वेतनमान में फंसा डीए
केंद्र सरकार के कर्मचारियों को पिछले दिनों दो फीसद महंगाई भत्ता (डीए) मिल चुका है। राज्य कर्मचारियों को वह भत्ता भी नहीं मिल पा रहा है। दरअसल केंद्रीय कर्मचारियों के लिए सातवें वेतन आयोग की संस्तुतियां लागू होने के साथ ही उन्हें मिल रहा 125 फीसद महंगाई भत्ता उनके मूल वेतन में जोड़ दिया गया था। ऐसे में उन्हें मिला दो फीसद महंगाई भत्ता छठे वेतनमान के फार्मूले के हिसाब से पांच फीसद से ऊपर बैठता है। उत्तर प्रदेश के मामले में अधिकारी अभी इस पर फैसला नहीं कर पा रहे हैं। 

Thursday 3 November 2016

डेंगू के तीस गुनहगार तो रिटायर हो चुके!


-हाईकोर्ट की सख्ती के बाद भी धीरे-धीरे हो रही कार्रवाई
-18 अफसरों को दिया गया नोटिस, 15 दिन में मांगा जवाब
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: सूबे में जानलेवा साबित हो रहे डेंगू के लिए जिम्मेदार अफसरों के खिलाफ हाईकोर्ट की सख्ती के बाद भी धीरे-धीरे कार्रवाई हो रही है। डेंगू के तीस गुनहगार तो रिटायर भी हो चुके हैं। अब उनके खिलाफ कार्रवाई से हाथ खड़े करने के साथ स्वास्थ्य विभाग ने 18 अफसरों को नोटिस देकर उनसे 15 दिन में जवाब मांगा है।
उत्तर प्रदेश में लगातार भयावह हुए डेंगू पर सरकारी उदासीनता के बाद हाई कोर्ट ने बेहद सख्त रुख अख्तियार किया है। लगातार सख्ती के बावजूद कार्रवाई न होने से निराश हाईकोर्ट ने पिछले दिनों प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने तक की चेतावनी देने के साथ मुख्य सचिव को तलब भी कर लिया था। इस पर सरकार एक दिन के लिए सक्रिय हुई और मुख्यमंत्री तक ने बैठक कर डाली। मुख्य सचिव अदालत में पेश हुए और एक्शन प्लान सौंपा। उसमें बताया गया था कि डेंगू के लिए जिम्मेदारी तय करते हुए प्रदेश के 48 अफसर चिह्नित हुए हैं। उनके खिलाफ 15 दिन के भीतर निलंबन की कार्रवाई की जाएगी।
हाईकोर्ट में पेशी के एक सप्ताह के बाद भी इनमें से एक भी अफसर के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गयी है। इस बीच पड़ताल कराई गयी तो पता चला कि जिन 48 अफसरों को चिह्नित किया गया है, उनमें से तीस तो रिटायर हो चुके हैं। सरकार ने अदालत में निलंबन की बात कही है और रिटायर हो चुके व्यक्ति का निलंबन नहीं हो सकता, इसलिए ये सारे लोग किसी भी तरह की कार्रवाई से बच गए हैं। जो बचे 18 लोग हैं, उनमें से कई अब निदेशालय में तैनात हैं। प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) अरुण सिन्हा ने बताया कि शेष 18 लोगों को कारण बताओ नोटिस दिया गया है। उनका जवाब मिलने के बाद उनके खिलाफ निलंबन की कार्रवाई होगी। हाईकोर्ट की अगली सुनवाई में इस बाबत पूरी रिपोर्ट दी जाएगी।
तकनीकी समिति की बैठक कल
हाई कोर्ट में मुख्य सचिव द्वारा एक्शन प्लान पर अमल करते हुए शासन ने प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) अरुण सिन्हा की अध्यक्षता तकनीकी समिति गठित कर दी है। इस समिति में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च, संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान, लोहिया संस्थान व किंग जार्जेज मेडिकल यूनिवर्सिटी के प्रतिनिधि भी शामिल किये गए हैं। समिति की पहली बैठक चार नवंबर को होगी। इसमें डेंगू से निपटने का एजेंडा भी तय किया जाएगा, ताकि हाई कोर्ट की अगली सुनवाई में उसे पेश किया जा सके।

मान्यता पाकर भी मेडिकल व डेंटल कालेजों में सन्नाटा


-प्रदेश में एमबीबीएस व बीडीएस की 2553 सीटें खाली
-एक बार तिथि बढ़ाने के बाद भी नहीं मिले विद्यार्थी
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डॉ.संजीव, लखनऊ:
पिछले वर्ष तक मान्यता के अभाव में प्रदेश में एमबीबीएस व बीडीएस में प्रवेश का हजारों विद्यार्थियों का सपना टूटता था। इस वर्ष मान्यता पाकर भी मेडिकल व डेंटल कालेज विद्यार्थियों का सन्नाटा झेल रहे हैं। यहां एमबीबीएस व बीडीएस की 2553 सीटें खाली रह गयी हैं और सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक बार तिथि बढ़ाने के बाद भी उन्हें विद्यार्थी नहीं मिले हैं।
प्रदेश में 28 निजी मेडिकल कालेजों में 3900 एमबीबीएस व 23 डेंटल कालेजों में 2300 बीडीएस सीटों को इस वर्ष मान्यता मिली है। इनमें से तमाम मेडिकल कालेजों को तो ऐन मौके पर मान्यता मिली थी। मान्यता के बाद ये मेडिकल कालेज खासे प्रफुल्लित थे किन्तु काउंसिलिंग खत्म होने के बाद उनमें खासी निराशा व्याप्त है। दरअसल पिछले वर्ष तक निजी कालेज मनमाने ढंग से प्रवेश लेते थे। इस वर्ष राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंटरेंस टेस्ट (नीट) से ही प्रवेश की अनिवार्यता के बाद स्थितियां बदल गयीं। पहली काउंसिलिंग में तो ज्यादातर सीटें खाली थीं और सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रवेश के लिए निर्धारित अंतिम तिथि 30 सितंबर तक अधिकांश सीटें खाली रह जाने पर प्रदेश सरकार ने प्रवेश तिथि बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में गुहार की। सुप्रीम कोर्ट ने एक मौका देते हुए सात अक्टूबर तक प्रवेश की छूट दे दी, किन्तु इसके बाद भी एमबीबीएस की 1145 व बीडीएस की 1408 सीटें खाली रह गयी हैं। सुप्रीम कोर्ट में देश भर के कालेजों में खाली सीटें भरने के लिए याचिका दायर होने के बाद इन कालेजों को उम्मीद जगी थी किन्तु वहां से तिथि बढ़ाने की अनुमति न मिलने से ये निराश हैं। अब इन कालेजों में सन्नाटा रहना तय माना जा रहा है।
98 फीसद तक सीटें खाली
निजी मेडिकल कालेजों की हालत इस कदर खराब है कि फर्रूखाबाद के एक कालेज की 98 फीसद सीटें खाली रह गयी हैं। 28 मेडिकल कालेजों में से नौ कालेजों की ही सभी सीटें भर सकी हैं, वहीं नौ कालेजों की आधे से अधिक सीटें खाली हैं। सहारनपुर के एक कालेज की 82 फीसद और अमरोहा के कालेज की 76 फीसद सीटें खाली हैं।
सिर्फ एक डेंटल कालेज भरा
हालत ये है कि सिर्फ गाजियाबाद का एक कालेज ही पूरा भर सका है। मेरठ व गाजियाबाद के एक-एक कालेज में तो सिर्फ सात-सात विद्यार्थियों ने ही प्रवेश लिया और 93 फीसद सीटें खाली हैं। गाजियाबाद के एक अल्पसंख्यक कालेज में बीडीएस की 85 फीसद सीटें नहीं भर सकीं। कुल मिलाकर 23 में से 21 कालेजों की आधे से अधिक सीटें खाली हैं।
फीस बढ़वाकर फंस गए
निजी मेडिकल व डेंटल कालेज फीस बढ़वाकर फंस गए। प्रदेश सरकार ने पहले आधी सीटों के लिए 36 हजार रुपये और शेष आधी सीटों के लिए एमबीबीएस में औसतन साढ़े नौ लाख रुपये के आसपास शुल्क निर्धारित किया था। बाद में मेडिकल कालेज संचालकों ने सत्ता से मिलीभगत कर फीस साढ़े ग्यारह लाख रुपये वार्षिक करा ली। सामान्य स्थिति में निजी कालेज इससे अधिक फीस लेते थे, किन्तु इस बार नीट की अनिवार्यता, ऊपर से लिखा-पढ़ी में इतनी फीस, अधिकांश अभिभावक आगे ही नहीं आए और कालेज खाली रह गए।

चार बीमारियां बनेंगी महामारी, जवाबदेही संग होगी कार्रवाई

-डेंगू, चिकुनगुनिया, फाइलेरिया व मलेरिया के लिए भेजा प्रस्ताव
-निजी संस्थानों व बीमारी फैलाने वालों पर अंकुश को बढ़ेंगे अधिकार
-संक्रमित क्षेत्र हो सकेंगे अधिसूचित, सूचना देना होगा जरूरी
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: डेंगू के प्रसार पर लगातार उच्च न्यायालय की डांट खा रही प्रदेश सरकार अब चार संक्रामक बीमारियों डेंगू, चिकुनगुनिया, फाइलेरिया व मलेरिया को महामारी घोषित करेगी। इस बाबत प्रस्ताव तैयार कर मुख्यमंत्री के पास भेजा गया है। अब निजी संस्थानों व बीमारी फैलाने वालों पर अंकुश के लिए अधिकार बढ़ाने के साथ जवाबदेही निर्धारित कर कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी।
डेंगू की भयावहता पर उच्च न्यायालय का रुख इस कदर गंभीर है कि गुरुवार को मुख्य सचिव तक को तलब कर लिया गया था। मुख्य सचिव ने न्यायालय के समक्ष सरकार की गलती मानने के साथ डेंगू से निपटने के लिए पूरा एक्शन प्लान पेश किया था। इस एक्शन प्लान में डेंगू सहित संक्रामक बीमारियों को महामारी की श्रेणी में लाने की बात शामिल थी। शुक्रवार को प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) अरुण सिन्हा ने इस बाबत विभिन्न विभागों के अधिकारियों के साथ बैठक कर चार बीमारियों डेंगू, चिकुनगुनिया, फाइलेरिया व मलेरिया को महामारी की श्रेणी में शामिल करने के लिए प्रस्ताव मुख्यमंत्री कार्यालय भेज दिया है। यह प्रस्ताव कैबिनेट में लाया जाएगा, जिसके बाद इस बाबत अधिसूचना जारी की जाएगी।
अधिसूचना जारी होने के बाद ये बीमारियां उत्तर प्रदेश में भी इंडिया एपिडिमिक एक्ट, 1897 की परिधि में आ जाएंगी। केंद्र सरकार इसी वर्ष जून में इन बीमारियों महामारी की श्रेणी में घोषित कर चुकी है। केंद्र की अधिसूचना को उत्तर प्रदेश को अंगीकार करना था, किन्तु ऐसा नहीं हुआ। अधिसूचना जारी होने के बाद सरकार इनमें से किसी भी बीमारी के मरीज बढऩे पर संबंधित क्षेत्र को संक्रमित क्षेत्र घोषित कर सकेगी। इसके बाद उस बीमारी की तुरंत सूचना देना जरूरी हो जाएगा। ऐसा न करने वाले निजी अस्पतालों व अन्य निजी संस्थानों पर भी कार्रवाई हो सकेगी। बीमारियां फैलाने के कारक बनने वालों, जैसे जलभराव करने वालों, गंदगी फैलाने वालों आदि तत्वों को चिह्नित कर उनके खिलाफ दंडनीय कार्रवाई भी संभव होगी। इसके लिए हर जिले में एक नियंत्रण अधिकारी की तैनाती भी की जाएगी।

राज्य कर्मियों को करना होगा डीए का इंतजार

-हर साल दीवाली से पहले हो जाती थी घोषणा
-अब अगले माह प्रक्रिया शुरू होने की उम्मीद
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: राज्य कर्मचारियों को जुलाई से लंबित महंगाई भत्ते (डीए) के लिए अभी इंतजार करना होगा। हर साल दीवाली से पहले इसकी घोषणा हो जाती थी, किन्तु इस बार केंद्र सरकार द्वारा ही विलंब होने के कारण राज्य में अमल की प्रक्रिया अगले माह शुरू होने की उम्मीद है। इससे प्रदेश के तीस लाख से अधिक कर्मचारी, शिक्षक व पेंशनर प्रभावित होंगे।
कर्मचारियों को साल में दो बार जनवरी व जुलाई में महंगाई भत्ता मिलता है। पिछले वर्ष के अंत तक कर्मचारियों की 119 फीसद महंगाई भत्ता देय था। इस वर्ष जनवरी से महंगाई भत्ते में छह फीसद की वृद्धि कर दिये जाने के बाद से उन्हें 125 फीसद महंगाई भत्ता मिल रहा है। राज्य कर्मचारी संगठनों व सरकार के बीच समझौते के अनुसार प्रदेश सरकार केंद्र सरकार के बराबर वेतन-भत्ते व अन्य सुविधाएं देती है। सामान्यत: जुलाई से मिलने वाला महंगाई भत्ते की घोषणा हर हाल में दीवाली से पहले हो जाती रही है। इस बार केंद्र सरकार ने ही महंगाई भत्ते की घोषणा बहुत विलंब से (27 अक्टूबर को) की है। ऐसे में राज्य कर्मचारियों के लिए डीए घोषणा में और विलंब होगा। माना जा रहा है कि नवंबर में इस पर फैसला हो सकेगा और अमल होते-होते दिसंबर तो हो ही जाएगा। इस संबंध में प्रमुख सचिव (वित्त) डॉ.अनूप चंद्र पाण्डेय का कहना है कि केंद्र सरकार का आदेश आने के बाद प्रक्रियानुरूप काम किया जाएगा। कोशिश होगी कि जल्दी से जल्दी कर्मचारियों को उनके निर्धारित देयों का लाभ मिल सके।
कितना डीए मिलेगा?
केंद्र सरकार द्वारा अपने कर्मचारियों को दो फीसदी डीए की घोषणा के बाद प्रदेश में डीए को लेकर सवाल उठने लगे हैं। कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार ने सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें स्वीकार कर मूल वेतन में 125 फीसद डीए जोड़ दिया है। ऐसे में दो फीसद डीए पुराने मूल वेतन के हिसाब से पांच फीसद के आसपास पहुंचता है। मांग हो रही है कि राज्य कर्मचारियों के लिए अभी सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू नहीं होने के कारण उन्हें कम से कम पांच फीसद डीए दिया जाना चाहिए।

हैंडहेल्ड मशीनें खराब, कंडक्टरों की चांदी

-पूरे किराए के टिकट न देकर रोडवेज को लगा रहे चूना
-30 नवंबर तक सारी मशीनों की मरम्मत कराने के निर्देश
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: दक्षिण अफ्रीकी कंपनी में काम करने वाले विनय व लखनऊ के निशातगंज में रहने वाले आशीष मंगलवार को एसी बस से इलाहाबाद से लखनऊ के लिए रवाना हुए। कंडक्टर से टिकट मांगा तो 313 रुपये देने पर दस रुपये तक कीमत वाला एक टिकट पकड़ा दिया गया। सवाल पूछा तो जवाब मिला, यही टिकट मिलेगा, समझे। स्पष्ट था कि कंडक्टर रोडवेज के 303 रुपये को चूना लगा रहा था। हैंडहेल्ड मशीनें खराब कर यह गोरखधंधा चल रहा है और कंडक्टरों की चांदी हो गयी है।
रोडवेज में कंडक्टरों की अराजकता रोकने के लिए हैंडहेल्ड मशीनें दी गयी थीं। इनमें दूरी के साथ किराया भी तय होता है और उतने किराए की ही छपी हुई टिकट निकलती है। विनय व आशीष से हुई घटना सामने आने पर पता चला कि कंडक्टरों ने ज्यादातर हैंडहेल्ड मशीनें खराब कर दी हैं। इसके बदले उन्हें अलग-अलग सीमा की छपी-छपाई टिकटें दी गयी हैं। इन्हीं टिकटों में वे गोलमाल करते हैं। इलाहाबाद से लखनऊ की उक्त सेवा के कंडक्टर ने तो हद कर दी और सिर्फ दस रुपये की अधिकतम सीमा वाली टिकट दे दी। अन्य रूट्स पर किराये से नीचे वाली सीमा का टिकट देकर कंडक्टर भारी धनराशि बचाते हैं।
कंडक्टरों की इस हरकत से हर माह रोडवेज को लाखों रुपये का चूना लग रहा है किन्तु अधिकारी इस ओर ध्यान ही नहीं दे रहे हैं। इलाहाबाद से लखनऊ की उक्त बस यात्रा के दौरान विनय व आशीष ने इलाहाबाद की क्षेत्रीय प्रबंधक से फोन पर शिकायत की तो उन्होंने कह दिया कि आप कंडक्टर को अपना नाम पता लिखा दीजिये, 313 रुपये का बिल लेटर हेड पर लिखकर आपको कूरियर कर देंगे। इस संबंध में रोडवेज महाप्रबंधक एचएस गाबा ने स्वीकार किया कि कुछ हैंडहेल्ड मशीनें खराब होने से ये दिक्कत आ रही है। इस संबंध में कंपनी से बात कर ली गयी है। 30 नवंबर तक सारी मशीनों की मरम्मत सुनिश्चित कराई जाएगी। उन्होंने कंडक्टरों द्वारा अराजकता व भ्रष्टाचार की जांच कराने की बात भी कही।

तीन सरकारी होम्योपैथी कालेजों को मान्यता छिनी

-कानपुर, गाजीपुर व मुरादाबाद की बीएचएमएस डिग्री पर संकट
-आयुष पाठ्यक्रमों की काउंसिलिंग आज से एसजीपीजीआइ में
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद कानपुर, गाजीपुर व मुरादाबाद स्थित सरकारी होम्योपैथी कालेजों की मान्यता छीन ली गयी है। पिछले वर्ष मान्यता गंवाने वाले छह आयुर्वेदिक कालेज इस बार मान्यता पाने में सफल हो गये हैं। अब राजधानी लखनऊ स्थित संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआइ) में बुधवार से काउंसिलिंग शुरू होगी।
प्रदेश में सरकारी क्षेत्र में सात होम्योपैथी कालेज हैं। इनमें से चार कालेजों इलाहाबाद, फैजाबाद, लखनऊ एवं आजमगढ़ को मान्यता मिल गयी है। कानपुर, गाजीपुर व मुरादाबाद के कालेजों की मान्यता छिन गयी है। इससे प्रदेश में सरकारी कालेजों की बीएचएमएस सीटें घटकर 160 रह गयी हैं। मान्यता छिनने से कानपुर व गाजीपुर की 50-50 व मुरादाबाद की 40 सीटें तो घटी ही हैं, उनकी बीएचएमएस डिग्री भी संकट में पड़ गयी है। पिछले वर्ष राजकीय आयुर्वेदिक कालेजों में भी इसी तरह का संकट आया था, जब सिर्फ दो कालेज ही मान्यता पा सके थे। इस बार सभी आठ कालेज मान्यता पाने में सफल हो गए हैं। अब लखनऊ, वाराणसी, मुजफ्फरनगर, झांसी, बरेली, पीलीभीत, इलाहाबाद एवं बांदा स्थित राजकीय आयुर्वेदिक कालेजों की &20 बीएएमएस सीटें बहाल हो गयी हैं। इसी तरह लखनऊ व इलाहाबाद स्थित यूनानी कालेजों को मान्यता मिलने से उनकी 80 बीयूएमएस सीटें बहाल हो गयी हैं।
प्रमुख सचिव (चिकित्सा शिक्षा) डॉ.अनिता भटनागर जैन ने बताया कि प्रदेश के राजकीय एवं निजी क्षेत्र के आयुर्वेदिक, यूनानी व होम्योपैथी कालेजों में बीएएमएस, बीयूएमएस व बीएचएमएस पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी द्वारा आयोजित आयुष प्रवेश परीक्षा का परिणाम एक अक्टूबर को घोषित किया गया था। अब राजकीय कालेजों के साथ निजी क्षेत्र के दस आयुर्वेदिक कालेजों सहित कुल 1&90 सीटों के लिए प्रथम चक्र की काउंसिलिंग बुधवार, 26 अक्टूबर से 29 अक्टूबर तक एसजीपीजीआइ के टेलीमेडिसिन सेंटर में होगी।

Tuesday 25 October 2016

खनन माफिया की मदद से राहुल ने जीती अमेठी


--राहुल गांधी पर तीन मंत्रियों का हमला--
-स्मृति का कांग्र्रेस उपाध्यक्ष पर गायत्री से मिलीभगत का आरोप
-अमेठी में खाट सभा की चुनौती दे कहा, यहां खड़ी हो जाएगी खाट
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डॉ.संजीव, अमेठी
रानी पद्मावती के प्रेम में राजाओं के युद्ध की कथा पद्मावत लिखने वाले महाकवि मलिक मोहम्मद जायसी की जन्मभूमि जायस शनिवार को केंद्र सरकार के तीन मंत्रियों के आक्रामक हमले की गवाह बनी। निशाने पर रहे क्षेत्रीय सांसद व कांग्र्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी। कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी ने तो यहां तक कह दिया कि खनन माफिया व प्रदेश सरकार में मंत्री गायत्री प्रजापति की मदद से राहुल ने अमेठी सीट जीती।
पिछले लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी को चुनौती देने वाली स्मृति ईरानी शनिवार को केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर व केंद्रीय पेट्रोलियम राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) धर्मेन्द्र प्रदान के साथ अमेठी के जायस में राजीव गांधी पेट्रोलियम प्रौद्योगिकी संस्थान के उद्घाटन व गौरीगंज में उज्ज्वला योजना के तहत गैस कनेक्शन वितरण समारोह में भाग लेने पहुंची थीं। जायस का संस्थान पूर्व प्रधानमंत्री के नाम पर होने के बावजूद वहां राहुल गांधी के न आने पर सवाल उठे, तो गौरीगंज के कार्यक्रम में स्मृति ईरानी ने उन पर सीधे हमला बोल दिया। उन्होंने कहा कि वर्षों से सत्ता पर कब्जा किये लोगों ने जानबूझकर घर में अंधेरा किया। जायस की बेटियों ने स्कूल मांगा तो उन्हें जेल भेज दिया गया। कहा कि राहुल गांधी किसानों के समर्थन में प्रधानमंत्री मोदी पर हमला करते हैं, जबकि अमेठी में ही उन्होंने राजीव गांधी फाउंडेशन व सम्राट साइकिल के नाम पर किसानों की जमीन हथिया रखी है। किसानों को उनकी जमीन वापस करने चुनौती देने के साथ कहा कि वे अमेठी में खाट सभा करें, फिर खुद ही कहा, वे यहां नहीं आएंगे क्योंकि ऐसा करने पर यहां उनकी खटिया खड़ी हो जाएगी। वे यहां आकर प्रदेश सरकार का भी विरोध नहीं कर सकते, क्योंकि अमेठी जीतने के लिए उन्होंने प्रदेश सरकार के मंत्री व खनन माफिया गायत्री प्रसाद प्रजापति की मदद ली थी। वे बताएं कि उन्होंने खनन घोटाले में लिप्त गायत्री प्रजापति की मदद क्यों ली? जिस साइकिल पर वे अभी तक सवार थे, अब उसे पंचर करना चाहते हैं। इसी तरह जिस हाथी को वे दिल्ली ले गए, आज उसी से जूझ रहे हैं।
...तो पप्पू फेल हो गया
जायस में राजीव गांधी पेट्रोलियम प्रौद्योगिकी संस्थान के नए परिसर का उद्घाटन करते हुए पेट्रोलियम राज्यमंत्री धर्मेन्द्र प्रधान के निशाने पर भी राहुल गांधी रहे। उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नाम पर स्थापित इस संस्थान के उद्घाटन समारोह में उन्होंने राहुल को बुलाया था किन्तु वे नहीं आये। ऊपर से चिट्ठी लिखी कि समय नहीं था, पहले समय लेना चाहिए था। कहा कि अब संस्थान में जल्द ही स्वामी विवेकानंद की आदमकद प्रतिमा लगाई जाएगी। उसके लिए अभी से राहुल गांधी से समय मांगेंगे, वे आएं और हम सब रात भी यहीं बिताएंगे। राहुल गांधी द्वारा चिट्ठी में संस्थान को मंजूरी व अनुदान की बात पर कहा कि छह साल में कांग्र्रेस सरकार ने 129 करोड़ रुपये दिये थे, जबकि दो साल में भाजपा सरकार ने इस संस्थान के लिए 302 करोड़ रुपये दिये। ऑयल कंपनियों ने 200 करोड़ रुपये का कॉरपस फंड अलग से बनाया। ऐसे में गणित के हिसाब से स्पष्ट हो जाएगा कि पप्पू फेल हुआ या पास। इस पर जवाब आया, पप्पू फेल हो गया। गौरीगंज में गरीब महिलाओं को गैस कनेक्शन वितरण कार्यक्रम में भी उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम के लिए पेट्रोलियम विभाग के अधिकारी शामिल हसन राहुल गांधी को तीन बार न्यौता देने गए किन्तु उनके कार्यालय ने न्यौता लेने तक से मना कर दिया। 28 साल गांधी परिवार व 12 साल राहुल गांधी के प्रतिनिधित्व के बावजूद अमेठी की हालत इतनी खराब है कि लोगों को शुद्ध पानी तक नहीं मिलता। राहुल मोदी से दो साल का हिसाब मांग रहे हैं, वे पहले सिर्फ अमेठी का ही हिसाब दे दें। कटाक्ष किया कि खाट सभा कर रहे राहुल को कभी खटमल ने नहीं काटा, इसीलिए वे आलू का कारखाना लगवा रहे हैं।
अन्याय का बदला लेती अमेठी
मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि 70 साल से अमेठी-रायबरेली में एक ही घराने की सत्ता रही है। इसके बावजूद बदहाली के लिए उन्हें जवाब देने हेंगे। पूरे देश में लोग समझते हैं कि अमेठी-रायबरेली की धरती पर स्वर्ग होगा, पर यहां समस्याओं का अंबार है। वैसे अमेठी अन्याय का बदला लेती है। 1977 में इमरजेंसी के बाद अन्याय करने वालों को निकाल बाहर किया था, वह फिर ऐसा ही करेगी। उन्होंने कहा कि भाजपा सबको शिक्षा-अच्छी शिक्षा पर जोर दे रही है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर बहस शुरू हो रही है। पेट्रोलियम संस्थान से उन्होंने दुनिया भर के लिए प्रतिष्ठित शोध करने का आह्वान किया।

पुलिस ने मांगा ड्यूटी डॉक्टरों का ब्यौरा

-दीपावली में सुरक्षा अलर्ट के साथ अस्पतालों पर भी नजर
-बर्न यूनिट व इमरजेंसी के नंबर भी रहेंगे थानाध्यक्षों के पास
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: दीपावली के मद्देनजर सुरक्षा अलर्ट के साथ पहली दफा पुलिस ने अस्पतालों पर भी नजर रखने का फैसला किया है। गृह विभाग ने इसके लिए स्वास्थ्य विभाग से अस्पतालों के ड्यूटी डॉक्टरों के साथ इमरजेंसी व बर्न यूनिट आदि का भी ब्यौरा मांगा है।
त्योहारों पर गृह विभाग की ओर से पुलिस-प्रशासन के लिए हर बार सामान्य अलर्ट जारी किया जाता है। अभी तक इस अलर्ट में पुलिस सक्रियता के साथ अपराधियों की धरपकड़, गुंडा एक्ट जैसी कार्रवाई आदि का जिक्र होता था। इस बार दीपावली से पूर्व गृह विभाग द्वारा सभी जिलों के पुलिस प्रमुखों के लिए जारी अलर्ट में किसी आपात स्थिति में उपचार को महत्व देते हुए बदलाव किया गया है। सभी पुलिस प्रमुखों से अपने जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारियों व मेडिकल कालेज होने की स्थिति में, वहां के प्राचार्यों से समन्वय स्थापित करने को कहा गया है। गृह विभाग का तर्क है कि दीपावली में पटाखे जलने या अन्य किसी आपात स्थिति में अस्पतालों में सावधानी की जरूरत होती किन्तु कई बार उसमें लापरवाही की बात सामने आ जाती है। इसीलिए इस बार रूटीन अलर्ट में यह बदलाव किया गया है।
दीवाली 30 अक्टूबर को है, इसलिए 29 अक्टूबर से ही सक्रियता बरतने के निर्देश दिये गए हैं। सभी जिला पुलिस प्रमुखों से जिला पुरुष व महिला चिकत्सालयों के अलावा मंडल स्तरीय व अन्य बड़े संयुक्त चिकित्सालयों में ड्यूटी डॉक्टरों की तैनाती का पूरा ब्यौरा देने को कहा गया है। सामान्य ड्यूटी के अलावा इमरजेंसी व ट्रामा में तैनात चिकित्सकों की पूरी जानकारी और उनके फोन नंबर जुटाने को भी कहा गया है। दीपावली में आगजनी जैसी घटना होने पर लोगों के जलने की स्थिति में उन्हें पहले इमरजेंसी भेजने के बाद बर्न यूनिट स्थानांतरित होने तक का समय बचाने के लिए सीधे बर्न यूनिट भेजने का निर्देश भी दिया गया है। इसके लिए इमरजेंसी व बर्न यूनिट के नंबर भी जुटाने के निर्देश दिये गए हैं। ये सभी नंबर थानाध्यक्षों के पास तक भेज दिये जाएंगे। इसके अलावा एंबुलेंस सेवा मुस्तैद रखने को भी कहा गया है। ग्र्रामीण इलाकों में कोई घटना होने पर पुलिस वहां से घायलों व बीमारों को लेकर सीधे जिला अस्पताल या मेडिकल कालेज पहुंचेगी। इस दौरान थानाध्यक्षों के पास उपलब्ध फोन नंबरों से चिकित्सकों की सूचित कर दिया जाएगा, ताकि मरीज के अस्पताल पहुंचते ही इलाज शुरू हो सके और उसमें विलंब न हो।
(21/10/16)

सत्ता-कालेज गठजोड़ ने महंगा किया डॉक्टर बनना


-आसपास के राज्यों की तुलना में दोगुना से अधिक एमबीबीएस फीस
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डॉ.संजीव, लखनऊ
भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआइ) की तमाम कोशिशों के बावजूद उत्तर प्रदेश में निजी मेडिकल व डेंटल कालेजों की मनमानी पर अंकुश नहीं लग सका है। सत्ता व निजी कालेजों के गठजोड़ से यहां डॉक्टर बनना खासा महंगा हो गया है। प्रदेश में निजी कालेजों से एमबीबीएस करने की फीस आसपास के राज्यों से दोगुना से भी अधिक है।
उत्तर प्रदेश में निजी क्षेत्र के 28 मेडिकल कालेज संचालित हैं। पिछले वर्ष तक इन कालेजों में मनमाने ढंग से शुल्क वसूली की जाती थी। निजी कालेज संचालक प्रवेश भी सीधे ले लेते थे। भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआइ) की पहल और सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के बाद इस वर्ष इन कालेजों में प्रवेश के लिए राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंटरेंस टेस्ट (नीट) की अनिवार्यता के बाद सरकार ने आम मेधावी विद्यार्थी को भी निजी कालेजों में अवसर देने के लिए आधी सीटें 36 हजार रुपये में भरने और शेष सीटों के लिए कालेजवार 17.64 लाख से 21.32 लाख रुपये के बीच शुल्क निर्धारित कर दिया। इस फैसले को निजी कालेजों ने अदालत में चुनौती दी, तो अदालत के निर्देश पर चिकित्सा शिक्षा विभाग ने आंकलन के बाद नौ लाख रुपये के आसपास औसत शुल्क प्रस्तावित किया। सत्ता से निजी कालेजों का गठजोड़ काम आया और ये लोग एमबीबीएस के लिए शुल्क 11.30 लाख रुपये वार्षिक कराने में सफल हो गए। यह शुल्क आसपास के राज्यों की तुलना में दो से तीन गुना तक है। मध्यप्रदेश और उत्तराखंड के निजी कालेजों में औसत शुल्क साढ़े पांच लाख रुपये है तो छत्तीसगढ़ में यह सिर्फ 3.8 लाख रुपये वार्षिक है। राजस्थान में आधी सीटें तो मात्र 16 हजार रुपये वार्षिक शुल्क पर भरी जाती हैं। शेष सीटों के लिए भी शुल्क पांच लाख रुपये वार्षिक ही है। केरल, कर्नाटक व आंध्रप्रदेश के निजी कालेजों में भी शुल्क उत्तर प्रदेश से कम है। इस संबंध में चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक डॉ.वीएन त्रिपाठी का कहना है कि यह अंतरिम शुल्क है। तीन माह भीतर अंतिम शुल्क निर्धारित किया जाना है, उसमें सभी बिन्दुओं पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
खाली रह गयीं 1145 सीटें
प्रदेश के 28 निजी कालेजों की 3800 एमबीबीएस सीटों में से 1145 सीटें खाली रह गयी हैं। सभी मेडिकल कालेजों में हर हाल में 30 सितंबर तक सभी प्रवेश हो जाने चाहिए थे। नीट की काउंसिलिंग में ज्यादातर सीटें खाली रह जाने पर सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से समय मांगा तो सात अक्टूबर तक समय मिल गया। इसमें भी सीटें नहीं भरने पर सरकार व निजी कालेज फिर सर्वोच्च न्यायालय की शरण में गए, किन्तु न्यायालय ने अतिरिक्त समय देने से इनकार कर दिया।
एमबीबीएस पर खर्च 70 लाख
उत्तर प्रदेश के निजी कालेजों से एमबीबीएस करने के लिए औसत खर्च 70 लाख रुपये आ रहा है। प्रारंभिक शुल्क के रूप में 11.30 लाख रुपये प्रति वर्ष की दर से साढ़े चार साल के लिए 50.85 लाख रुपये शुल्क बनता है। निजी कालेज पांच साल छात्रावास सहित अन्य खर्चों के रूप में औसतन चार लाख रुपये ले रहे हैं। कुछ पुराने व प्रतिष्ठित कालेजों में यह खर्च इससे अधिक तो नए में कुछ कम है। कुल मिलाकर एमबीबीएस पास कर निकलने तक औसत खर्च 70 लाख रुपये आ रहा है।
(18/10/16|)

सरकारी विभागों में इंटर्नशिप, एकेटीयू की फेलोशिप


-बीटेक व एमबीए के विद्यार्थियों को मिलेंगे अतिरिक्त अवसर
-जिलाधिकारी से होंगे संबद्ध, अनुभव व अन्वेषण से नए प्रयोग
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: प्रदेश के इंजीनियरिंग व प्रबंधन संस्थानों से बीटेक व एमबीए करने वाले विद्यार्थियों को सरकारी विभागों में इंटर्नशिप के मौके दिये जाएंगे। प्राविधिक शिक्षा विभाग ने इन विद्यार्थियों को एकेटीयू से फैलोशिप दिलाने का फैसला भी किया है।
प्रदेश के इंजीनियरिंग कालेजों से बीटेक या एमबीए कर रहे विद्यार्थियों को इंटर्नशिप के लिए अभी निजी कंपनियों के सहारे रहना पड़ता है। अब तक देखा गया है कि यह इंटर्नशिप बहुत प्रभावी भी नहीं होती है। अब सरकार ने इन विद्यार्थियों को सरकारी विभागों व जिला प्रशासन के साथ इंटर्नशिप करने के मौके देने का फैसला किया है। इंटर्नशिप करने वाले विद्यार्थियों को डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय (एकेटीयू) द्वारा फेलोशिप भी दी जाएगी। इंटर्नशिप के लिए चयनित विद्यार्थियों को जिलाधिकारी के साथ संबद्ध किया जाएगा। उनके विषय व रुचि के अनुरूप कार्य आवंटन कर उनके सुझाव सहेजे जाएंगे। शोधार्थियों के अनुभवों व अन्वेषणों के आधार पर क्षेत्र के नवीन प्रयोग किये जाएंगे।
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हर जिले में इनोवेशन हब
प्रदेश में प्राविधिक शिक्षा विभाग नवीन प्रयोगों व शोधों को प्रोत्साहित करने के लिए इनोवेशन एवं इन्क्यूबेशन कार्यक्रम संचालित कर रहा है। गांव के किसान से लेकर युवाओं तक तमाम चौंकाने वाले प्रयोग करते हैं किन्तु वे प्रयोग अनछुए रह जाते हैं। प्रदेश सरकार ने ऐसे जमीनी शोध से जुडऩे को हर जिले में कलाम इनोवेशन हब की स्थापना का फैसला लिया है। जिलाधिकारियों की अध्यक्षता में गठित समिति इसका संचालन सुनिश्चित करेगी और इसकी कमान जिले में संचालित सरकारी इंजीनियरिंग कालेज या राजकीय पॉलीटेक्निक के प्राचार्य को सौंपी जाएगी। मुख्य सचिव राहुल भटनागर ने इस पर अमल के लिए सभी जिलाधिकारियों को आदेश जारी किये हैं। उनसे हर माह बैठक कर प्रभावी कार्रवाई सुनिश्चित करने को कहा गया है।
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इनोवेशन कोष से मदद
प्रमुख सचिव (प्राविधिक शिक्षा) मोनिका एस गर्ग ने बताया कि लघु एवं मध्यम श्रेणी के उद्योगों में उत्पादकता बढ़ाने के उद्देश्य से जिला स्तर पर स्थापित कलाम इनोवेशन हब क्षेत्र में चल रही अनूठी शोधपरक गतिविधियों को चिह्नित करेंगे, ताकि उन्हें राज्य स्तर पर उपलब्ध इनोवेशन कोष से वित्तीय सहायता दी जा सके। नियोजन विभाग ने इसके लिए अलग से राज्य इनोवेशन कोष की स्थापना की है। तकनीकी मार्गदर्शन, टेस्टिंग सुविधाओं तथा प्रयोगशालाओं के उपयोग के लिए उन्हें एचबीटीयू कानपुर, एमएमएमयूटी गोरखपुर व यूपीटीटीआइ कानपुर इनोवेशन एण्ड इन्क्यूबेशन सेंटर्स से जोड़ा जाएगा।
(17/10/16)

आंकड़े छिपाकर भी सूबे में पड़ोसियों से ज्यादा डेंगू

-सिर्फ 5653 मरीजों के साथ 19वें स्थान पर होने का दावा
-हरियाणा, मध्यप्रदेश, राजस्थान व बिहार से फिर भी आगे
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: डेंगू के मामले में जमकर आंकड़े छिपाने के बावजूद उत्तर प्रदेश में पड़ोसी राज्यों से ज्यादा डेंगू का प्रकोप पाया गया है। राष्ट्रीय स्तर पर आबादी को आधार बनाकर डेंगू के मरीजों की संख्या पर जारी सूची में प्रदेश 19वें स्थान पर हैं। इसके लिए अफसरों ने सिर्फ 5653 मरीजों का दावा किया था, इसके बावजूद हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान व बिहार की तुलना में यहां डेंगू का प्रकोप तेज रहा है।
हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने पूरे देश में डेंगू प्रभावित 34 राज्यों की स्थितियों के आंकड़े जारी किये हैं। इसमें प्रति दस लाख आबादी पर डेंगू के प्रकोप को आधार बनाया गया है। स्वास्थ्य विभाग के अफसर इन आंकड़ों को लेकर खासे प्रसन्न हैं। उनका कहना है कि डेंगू के प्रकोप के मामले में प्रदेश 19वें स्थान पर है। इन आंकड़ों का अध्ययन करने के बाद स्थितियां स्पष्ट नजर आती हैं। स्वास्थ्य विभाग ने केंद्र को भेजी जानकारी में प्रदेश में सिर्फ 5653 मरीज होने का दावा किया है। इस तरह यहां प्रति दस लाख आबादी में 28.37 लोग डेंगू से पीडि़त हैं। इन आंकड़ों में डेंगू से सिर्फ छह लोगों की मौत मानी गयी है, इस तरह मृत्यु का प्रतिशत भी 0.11 फीसद पर सिमट गया है। इतना झूठ बोलने के बाद भी उत्तर प्रदेश 15 राज्यों से पीछे हैं। इनमें भी अधिकांश सूबे के पड़ोसी राज्य है। तुलनात्मक अध्ययन के अनुसार हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार में डेंगू का प्रकोप उत्तर प्रदेश से काफी कम है। यही नहीं, झारखंड व छत्तीसगढ़ जैसे राज्य भी डेंगू पर नियंत्रण रखने में सफल हुए हैं।
नहीं सुधर रहे सीएमओ
शासन के बड़े-बड़े दावों, स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रियों की तमाम चेतावनियों के बावजूद मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) नहीं सुधर रहे हैं। कई बार कहने के बाद भी जिलों से सही आंकड़े नहीं आ पा रहे हैं। शनिवार तक के समग्र्र आंकड़ों का विश्लेषण किया जाए तो प्रदेश में डेंगू के संदेह में 28,499 मरीजों के रक्त के नमूने लिये गए, इनमें से 8,479 मरीजों को डेंगू की पुष्टि हुई। इसके विपरीत मुख्य चिकित्सा अधिकारियों द्वारा भेजी गयी रिपोर्ट में डेंगू के सिर्फ 2947 मरीज होने की बात कही गयी है। सरकारी अधिष्ठानों की ही रिपोर्ट में यह विरोधाभास सीएमओ की लापरवाही उजागर करने वाला है।
जिलों से मांगा 17 तक ब्यौरा
शासन भी सीएमओ की लापरवाही को लेकर गंभीर है। सीएमओ की सूची में सर्वाधिक 580 मरीज लखनऊ के हैं। लखनऊ की यह संख्या हाईकोर्ट की सख्ती के बाद बढ़ी, जब दिन-रात एक कर निजी प्रतिष्ठानों में छापे मारे गए थे। प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) अरुण सिन्हा ने बताया कि लखनऊ की तरह ही सभी जिलों में निजी प्रतिष्ठानों से आंकड़े जुटाकर 17 अक्टूबर तक पूरा ब्यौरा भेजने के निर्देश मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को दिये गए हैं। इनमें लापरवाही पाए जाने पर संबंधित सीएमओ के खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी।
(15/10/16)

छह होम्योपैथी व आयुर्वेदिक कालेजों को मान्यता नहीं

-तीन आयुर्वेद कालेज मान्यता बहाली में सफल, बढ़ीं 120 सीटें
-कानपुर, मुरादाबाद व गाजीपुर की 140 बीएचएमएस सीटें संकट में
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: तमाम कोशिशों के बावजूद प्रदेश के छह होम्योपैथी व आयुर्वेदिक कालेजों को मान्यता नहीं मिल सकी है। इस वर्ष तीन आयुर्वेद कालेजों के मान्यता बहाली में सफल हो जाने से बीएएमएस की 120 सीटें बढ़ गयी हैं, वहीं तीन कालेजों की 140 बीएचएमएस सीटें संकट में हैं।
प्रदेश के आठ आयुर्वेदिक कालेजों में बीएएमएस की 320 सीटें हैं। पिछले वर्ष सेंट्रल काउंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन (सीसीआइएम) ने इनमें से छह कालेजों को मान्यता देने से इनकार कर दिया था। तब लखनऊ की 50 व वाराणसी की 40 सीटों को मान्यता मिली थी। इसके बाद साल भर इन छह कालेजों की मान्यता बहाली की कोशिशें चलीं किन्तु विभाग को अधिक सफलता नहीं मिल सकी है। वाराणसी व लखनऊ की मान्यता बहाल रखने के साथ सीसीआइएम ने इस बार बरेली, झांसी व इलाहाबाद के आयुर्वेदिक कालेजों की मान्यता भी बहाल कर दी है। इस तरह बीएएमएस की 120 सीटें बढ़ गयी हैं। सीसीआइएम ने दोनों सरकारी यूनानी कालेजों को मंजूरी दे दी है। सीसीआइएम से कुछ राहत मिलने के बाद चिकित्सा शिक्षा महकमे को सेंट्रल काउंसिल ऑफ होम्योपैथी (सीसीएच) से झटका मिला है। प्रदेश के सात होम्योपैथी कालेजों में बीएचएमएस की 300 सीटें हैं। इनमें से सीसीएच ने आजमगढ़, लखनऊ, फैजाबाद व इलाहाबाद होम्योपैथी कालेजों की 160 सीटों को मान्यता दे दी है। शेष तीन कानपुर, मुरादाबाद व गाजीपुर के होम्योपैथी कालेजों को इस बार अब तक मान्यता नहीं मिली है। इन कालेजों में बीएचएमएस की 140 सीटें संकट में हैं। अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी है। अगले कुछ दिनों में कुछ और कालेजों को मान्यता मिल सकती है। आयुष काउंसिलिंग तक जिन कालेजों को मान्यता मिल जाएगी, उन सभी को काउंसिलिंग में शामिल कर लिया जाएगा।
आयुष काउंसिलिंग 18 से
प्रदेश के आयुर्वेदिक, होम्योपैथी व यूनानी कालेजों में प्रवेश के लिए आयोजित आयुष प्रवेश परीक्षा की काउंसिलिंग 18 अक्टूबर से होगी। चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक डॉ.वीएन त्रिपाठी ने बताया कि राजधानी के संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में प्रदेश के सरकारी व निजी कालेजों में बीएएमएस, बीएचएमएस व बीयूएमएस कक्षाओं में प्रवेश के लिए काउंसिलिंग होगी। संयुक्त प्री-आयुष परीक्षा (सीपैट) में सफलता पाने वाले 300 रैंक तक के विद्यार्थी 18 अक्टूबर को सुबह 9:30 बजे से एक बजे तक पंजीकरण कराएंगे और दो बजे से उनकी काउंसिलिंग होगी। 301 से 1000 रैंक तक के विद्यार्थी 18 अक्टूबर को दोपहर एक बजे से सायं पांच बजे तक पंजीकरण कराएंगे और 19 अक्टूबर को सुबह 10 बजे से उनकी काउंसिलिंग होगी। 1001 रैंक से ऊपर की रैंक वाले सभी विद्यार्थी 19 अक्टूबर को पंजीकरण कराएंगे और 20 अक्टूबर को उनकी काउंसिलिंग होगी।
(14/10/16)

सरकारी नौकरी, 18 दुकानों में बांट रहे दवाएं


-औषधि विभाग की ढिलाई से अराजक हुए फार्मासिस्ट
-ऑनलाइन सिस्टम को भी धता बताने में हो रहे सफल
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डॉ.संजीव, लखनऊ:
प्रदेश में फार्मासिस्ट दैवीय शक्तियां सहेजे हैं। वे सरकारी नौकरी करने के साथ डेढ़ दर्जन तक दुकानों में दवाएं बांट रहे हैं। दरअसल औषधि विभाग की ढिलाई से अराजक हुए फार्मासिस्ट ऑनलाइन सिस्टम को भी धता बताने में सफल हैं।
प्रदेश में दवा की दुकानों पर फार्मासिस्ट की अनिवार्यता के चलते एक-एक फार्मासिस्ट द्वारा कई दुकानों पर अपना प्रमाण पत्र लगाने और दुकानों पर न जाने का मामला पहले भी उठता रहा है। पिछले साल औषधि विभाग ने सभी दवा दुकानों का ऑनलाइन सत्यापन अनिवार्य किये जाने के बाद इस पर अंकुश लगना शुरू हुआ किन्तु तमाम चौंकाने वाले तथ्य भी सामने आए। मामला उ'च न्यायालय तक पहुंचा तो सरकारी नौकरी कर रहे फार्मासिस्टों द्वारा अपने प्रमाणपत्र दवा दुकानों पर लगाकर वसूली करने का तथ्य सामने आया। याचिका दाखिल करने वाले पंकज मिश्र ने न्यायालय के समक्ष शपथपत्र दाखिल कर दावा किया है कि 66 फार्मासिस्ट ऐसे हैं, जो सरकारी नौकरी करते हुए निजी दवा दुकानों में भी काम कर रहे हैं। फार्मासिस्ट ए.कुमार सरकारी नौकरी के साथ 18 दुकानों में अपना प्रमाणपत्र लगाए हुए हैं। ये प्रमाण पत्र बलिया, खुर्जा, कांशीराम नगर, गाजियाबाद सहित दर्जन भर जिलों की अलग-अलग दुकानों में लगे हैं। इसी तरह पीके शर्मा कांशीराम नगर, नोएडा, बस्ती, सुल्तानपुर, लखनऊ सहित कई जिलों की 16 दुकानों पर फार्मासिस्ट होने के साथ सरकारी अस्पताल में भी नौकरी कर रहे हैं। सरकारी नौकरी कर रहे डी.प्रसाद ने फीरोजाबाद, कानपुर, इलाहाबाद और एम.जावेद ने बदायूं, मेरठ, मुरादाबाद सहित कई जिलों की नौ-नौ दुकानों पर अपने प्रमाण पत्र लगा रखे हैं। आगरा, अमरोहा, लखनऊ, बिजनौर सहित आधा दर्जन जिलों 12 दुकानों पर प्रमाण पत्र लगाए एन.हुसैन भी सरकारी अस्पताल में फार्मासिस्ट हैं। कहा गया है कि यह 66 नाम तो बानगी है, ढंग से जांच करा ली जाए तो संख्या बहुत अधिक निकलेगी।
स्वास्थ्य महकमा बेपरवाह
औषधि विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस संबंध में विस्तृत जांच पड़ताल के लिए स्वास्थ्य विभाग की मदद की जरूरत है किन्तु पूरा महकमा बेपरवाह है। स्वास्थ्य महानिदेशक से कई बार सरकारी नौकरी कर रहे फार्मासिस्टों का पूरा ब्यौरा मांगा गया किन्तु नहीं मिला। उनसे पूछा गया था कि कौन सा फार्मासिस्ट कब से सरकारी सेवा में है, इसका विवरण दे दिया जाए, तो औषधि महकमा ऑनलाइन प्रणाली में परीक्षण करा ले, किन्तु कोई जवाब नहीं मिला।
होगा मुकदमा, जाएंगे जेल
अपर आयुक्त (खाद्य एवं औषधि प्रशासन) राम अरज मौर्य ने कहा कि ये सभी पकड़े जाएंगे। ऑनलाइन व्यवस्था में तभी कोई मामला पकड़ा जाता है, जब वह नवीनीकरण कराता है। यह प्रक्रिया चल रही है किन्तु इसके पूरा होने में पांच साल लगेंगे। तब तक जिला स्तर पर जांच पड़ताल चल रही है। जो लोग पकड़े जाएंगे, उनके खिलाफ मुकदमा कायम कराकर उन्हें जेल भेजा जाएगा।

Friday 14 October 2016

मान्यता के इंतजार में अटकी आयुष काउंसिलिंग

-होम्योपैथी कालेजों में प्रवेश की अंतिम तिथि बढ़ाने का प्रस्ताव
-आयुर्वेदिक-यूनानी में 31 अक्टूबर तक पूरी होनी है प्रवेश प्रक्रिया
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: प्रदेश के आयुष पाठ्यक्रमों, बीएचएमएस, बीएएमएस व बीयूएमएस में प्रवेश कालेजों की मान्यता के इंतजार में अटके हैं। होम्योपैथी कालेजों में तो 15 अक्टूबर तक प्रवेश भी हो जाने थे किन्तु अब यह तिथि बढ़वाने का प्रस्ताव भी किया गया है। आयुर्वेदिक व यूनानी कालेजों में प्रवेश प्रक्रिया 31 अक्टूबर तक पूरी होनी है।
प्रदेश में सरकारी क्षेत्र में आठ आयुर्वेदिक, सात होम्योपैथी व दो यूनानी मेडिकल कालेज संचालित हैं। पिछले वर्ष तक इन सभी में प्रवेश उत्तर प्रदेश संयुक्त प्री-मेडिकल परीक्षा (सीपीएमटी) के माध्यम से होता था। एमबीबीएस व बीडीएस के बाद इन कालेजों में संचालित बीएएमएस, बीएचएमएस व बीयूएमएस के लिए अलग से काउंसिलिंग होती थी। इस वर्ष एमबीबीएस व बीडीएस के लिए राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित प्रवेश परीक्षा, नीट को माध्यम बनाए जाने के कारण आयुष विधाओं के कालेजों के लिए अलग से प्रवेश परीक्षा का आयोजन किया गया था। 15162 परीक्षार्थियों ने यह परीक्षा दी थी। बीती दो अक्टूबर को इस परीक्षा का परिणाम भी घोषित कर दिया गया, किन्तु अब तक काउंसिलिंग की तिथियां घोषित नहीं की गयी हैं। इसके बाद से परीक्षा में सफल विद्यार्थी परेशान हैं और उनके प्रवेश की राह नहीं खुल पा रही है।
दरअसल चिकित्सा शिक्षा महकमा मान्यता संकट के कारण अब तक आयुष काउंसिलिंग की तिथि नहीं घोषित कर सका है। बीएचएमएस के लिए सेंट्रल काउंसिल ऑफ होम्योपैथी की मान्यता होनी जरूरी है। इस वर्ष प्रदेश के सात में से चार होम्योपैथी कालेजों को अब तक यह मान्यता मिल सकी है। शेष कालेज अभी प्रतीक्षा में हैं। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बनाई गयी समय सारिणी के अनुसार बीएचएमएस कक्षाओं में 15 अक्टूबर तक प्रवेश पूरे हो जाने चाहिए। इस बार नीट को लेकर देश में अधिकांश प्रदेशों में आयुष पाठ्यक्रमों में प्रवेश प्रक्रिया देर से शुरू हो सकी है। इसलिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इनकी भी प्रवेश तिथि बढ़ाकर 31 अक्टूबर करने का प्रस्ताव किया है। अब अधिकारी इसे लेकर आशान्वित हैं। बीएएमएस व बीयूएमएस में तो प्रवेश के लिए 31 अक्टूबर तक का समय है किन्तु मान्यता की फाइलें अटकी होने के कारण वहां भी समस्या आ रही है। इन दोनों पाठ्यक्रमों के लिए सेंट्रल काउंसिल फॉर इंडियन मेडिसिन से मान्यता मिलती है। बीयूएमएस के दोनों सरकारी कालेजों को यह मान्यता मिल चुकी है किन्तु बीएएमएस के आठ में से सिर्फ दो कालेज यह मान्यता पाने में सफल हुए हैं। निजी आयुर्वेदिक कालेजों में भी 17 में से सिर्फ आठ को मान्यता मिली है। आयुर्वेद निदेशक कुमुदलता श्रीवास्तव ने कहा कि मान्यता की प्रक्रिया चल रही है। काउंसिल ने जो सवाल पूछे थे, जवाब दे दिये गए हैं। जल्द ही काउंसिलिंग की तिथि घोषित हो जाएगी।
(10/10/16)

विद्यालयों की ढिलाई से हजारों छात्रों की छात्रवृत्ति पर संकट

-नौवीं से 12वीं तक के फार्म 15 तक अपलोड करने का अवसर
-अन्य संस्थान 19 अक्टूबर तक अपलोड कर सकेंगे आवेदन
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति सभी विद्यार्थियों को न मिल पाने के लिए शैक्षिक संस्थान भी जिम्मेदार साबित हो रहे हैं। कक्षा नौ से बारह के हजारों विद्यार्थियों के फार्म विद्यालयों के स्तर पर अब तक अपलोड नहीं हो सकने से उनकी छात्रवृत्ति मिलने पर संकट उत्पन्न हो गया है। अब शासन ने इन विद्यालयों को 15 अक्टूबर तक का समय फार्म अपलोड करने क लिए दिया है।
पूर्वदशम छात्रवृत्ति के लिए कक्षा नौ व दस और दशमोत्तर छात्रवृत्ति के लिए कक्षा 11 व 12 के विद्यार्थियों को 30 सितंबर तक आवेदन करना था। इनके आवेदन के बाद संबंधित विद्यालयों को ये फार्म सात अक्टूबर तक अपलोड कर देने थे। शुक्रवार को शासन स्तर पर समीक्षा हुई तो पता चला कि भारी संख्या में विद्यालय अब तक फार्म अपलोड ही नहीं कर सके हैं। इस कारण हजारों विद्यार्थियों की छात्रवृत्ति फंसने का संकट उत्पन्न हो गया। इस पर शासन ने नौवीं से बारहवीं तक के विद्यार्थियों के 30 सितंबर तक ऑनलाइन जमा हो चुके आवेदन फार्म विद्यालियों की संस्तुति के साथ अपलोड करने के लिए 15 अक्टूबर तक का समय देने का फैसला किया है। विद्यालयों से साफ कहा गया है कि छुट्टियों की परवाह किये बिना फार्म अपलोड करने की प्रक्रिया पूरी की जाए। 15 अक्टूबर के बाद उनके आवेदन स्वीकार नहीं किये जाएंगे और इस कारण विद्यार्थियों को होने वाले नुकसान के जिम्मेदार विद्यालय ही होंगे। उधर 11वीं व 12वीं कक्षा से इतर दशमोत्तर पाठ्यक्रमों छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति के लिए आवेदन की अंतिम तिथि पहले ही सात अक्टूबर तक बढ़ाई जा चुकी है। इन संस्थानों को संस्तुति के साथ फार्म अपलोड करने के लिए 19 अक्टूबर तक का समय दिया गया है।
1.14 करोड़ पंजीकरण, 80 लाख आवेदन
छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति के लिए इस बार 1.14 करोड़ विद्यार्थियों ने पंजीकरण कराया है। इनमें से 80 लाख ने आवेदन किया और अब तक 67 लाख पूरी तरह फार्म जमा करने की औपचारिकता पूरी कर चुके हैं। यह विद्यालयों व संस्थानों की लापरवाही ही है कि इनमें से सिर्फ 30 लाख फार्म ही संस्थानों की ओर से फारवर्ड कर अपलोड किये गए हैं। ऑनलाइन जमा हुए 80 लाख आवेदनों में से नौवीं-दसवीं के 16.6 लाख, 11वीं-12वीं के 17.9 लाख व अन्य दशमोत्तर संस्थानों के 45.5 लाख विद्यार्थी शामिल हैं।
(7/10/16)

रोडवेज में छुट्टियां निरस्त, तीन हजार अतिरिक्त बसें

-दीवाली में लोगों को घर पहुंचाने को शुरू हुई मशक्कत
-एनसीआर, पूर्वांचल व बुंदेलखंड में विशेष बंदोबस्त
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: दीवाली में ट्रेन हाउसफुल हो गयी हैं तो चिंता न करें। रोडवेज आपको त्योहार में घर पहुंचाने में कोई कसर बाकी नहीं रखेगी। दीवाली के आसपास तीन हजार अतिरिक्त बसें चलाने के साथ इस दौरान सभी छुट्टियां भी निरस्त कर दी गयी हैं।
दीवाली पर यात्रियों को बिना किसी सुविधा के उनके घर तक पहुंचाने में रोडवेज कोई कसर नहीं छोडऩा चाहती। 30 अक्टूबर, रविवार को दीवाली होने के कारण 28 अक्टूबर को सप्ताहांत (वीकेंड) से ट्रैफिक लोड बढ़ जाएगा। इस दौरान प्रदेश में कहीं भी ट्रेन के टिकट मिल ही नहीं रहे हैं, ऐसे में रोडवेज के सामने दोहरी चुनौती है। रोडवेज ने इसके लिए तीन हजार अतिरिक्त बसें चलाने का फैसला किया है। ये बसे यूं तो पूरे उत्तर प्रदेश में चलेंगी, किन्तु सर्वाधिक फोकस राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) से जुड़े शहरों, पूर्वांचल व बुंदेलखंड पर रहेगा। गाजियाबाद, नोएडा व दिल्ली से पूरे प्रदेश के लिए विशेष बसें संचालित की जाएंगी। बनारस, गोरखपुर, आजमगढ़ सहित पूर्वांचल के जिलों के लिए भी विशेष बसों का संचालन किया जाएगा। इस बार बुंदेलखंड पर भी रोडवेज विशेष फोकस कर रहा है। बांदा, चित्रकूट से झांसी तक के लिए बसों का संचालन चाक-चौबंद करने के निर्देश दिये गए हैं। इसके अलावा दीवाली के आसपास छुट्टियां निरस्त करने का फैसला भी हो गया है। 26 अक्टूबर से चार नवंबर तक यात्रियों की भीड़ अधिक रहने की उम्मीद के चलते इस दौरान किसी भी चालक, परिचालक या बस संचालन से जुड़े अधिकारी-कर्मचारी को छुट्टी नहीं मिलेगी।
कार्यशालाओं में काम बढ़ा
दीवाली से पहले बसों को चाक चौबंद करने पर भी जोर दिया जा रहा है। सभी कार्यशालाओं में काम बढ़ गया है। अतिरिक्त बसों के संचालन के साथ 200 किलोमीटर रूट वाली बसों के रूट बढ़ाने का फैसला किया गया है। ये बसें अब 400 किलोमीटर तक जाएंगी। कार्यशालाओं को उसी के अनुरूप तैयारी करने को कहा गया है। तमाम बसें महीनों से मरम्मत या रूटीन मेंटीनेंस के लिए कार्यशालाओं में खड़ी हैं, उन्हें ठीक कर सड़क पर उतारने के निर्देश दिये गए हैं।
बनेंगे अस्थायी बस अड्डे
रोडवेज प्रबंधन ने दीवाली के आसपास यात्रियों को अधिकाधिक सुविधा देने के लिए अस्थायी बस अड्डे बनाने के निर्देश भी दिये हैं। इसकी शुरुआत बुंदेलखंड से करने को कहा गया है। बुंदेलखंड में चित्रकूट, बांदा, झांसी आदि में तो बस अड्डे हैं, किन्तु रास्ते के तमाम ऐसे कस्बे हैं, जहां यात्री तो होते हैं, किन्तु बस अड्डे नहीं हैं। इसी तरह की स्थिति अन्य रूट्स पर भी है। प्रबंधन ने ऐसे स्थान चिह्नित कर दीवाली के दौरान वहां बस अड्डे बनाने के निर्देश दिये हैं।
(7/10/16)

प्राविधिक विश्वविद्यालय बना दिये, कुलसचिव भी दे दो

-एमएमएमयूटी गोरखपुर व एचबीटीयू कानपुर का कामकाज प्रभावित
-पीसीएस अफसर की अनिवार्यता, कोई काम संभालने को तैयार नहीं
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: प्रदेश सरकार ने गोरखपुर व कानपुर में इंजीनियरिंग कालेजों को प्राविधिक विश्वविद्यालय में तब्दील तो कर दिया, किन्तु कुलसचिव की नियुक्ति अब तक नहीं हुई है। इस कारण दोनों विश्वविद्यालयों का कामकाज प्रभावित हो रहा है। दरअसल यहां कुलसचिव बनने के लिए पीसीएस अफसर होना अनिवार्य है और कोई अफसर काम संभालने को तैयार ही नहीं होता है।
प्रदेश में प्राविधिक शिक्षा को मजबूती प्रदान करने के लिए तीन साल पहले गोरखपुर के राजकीय इंजीनयरिंग कालेज को विश्वविद्यालय में परिवर्तित कर मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (एमएमएमयूटी) की स्थापना की गयी थी। विश्वविद्यालय बनने के बाद जनवरी 2014 में संस्थान के शिक्षक डॉ.यूसी जायसवाल को कुलसचिव की जिम्मेदारी सौंप दी गयी थी। इस दौरान शासन स्तर पर कुलसचिव की तलाश की जाती रही, किन्तु किसी की नियुक्ति नहीं हो सकी। 16 जुलाई 2014 को एक अन्य शिक्षक केपी सिंह को कुलसचिव का दायित्व सौंपा गया। तब से आजतक वे ही कुलसचिव की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। गोरखपुर के लिए तीन साल से कुलसचिव की तलाश हो ही रही थी, इस वर्ष कानपुर के हरकोर्ट बटलर टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट को भी हरकोर्ट बटलर प्राविधिक विश्वविद्यालय (एचबीटीयू) में परिवर्तित कर दिया गया। यहां कुलपति की नियुक्ति के बाद कामकाज तो शुरू हो गया किन्तु अब तक कुलसचिव की नियुक्ति नहीं हो सकी है।
प्राविधिक शिक्षा विभाग के अधिकारी मानते हैं कि कुलसचिव न होने से कामकाज प्रभावित हो रहा है। विभाग की ओर से कई बार शासन को कुलसचिव की नियुक्ति के लिए पत्र लिखे गए, अधिकारियों ने नियुक्ति विभाग से व्यक्तिगत आग्र्रह भी किये, किन्तु सफलता नहीं मिली। दरअसल इन दोनों विश्वविद्यालयों में कुलसचिव का पद शासन में विशेष सचिव स्तर के अधिकारी का पद है। इसके लिए पीसीएस अधिकारी होना जरूरी है और कोई पीसीएस अधिकारी इन विश्वविद्यालयों में जाना ही नहीं चाहते हैं। उनका कहना है कि ये विश्वविद्यालय एक कॉलेज को अपग्र्रेड कर बनाए गए हैं। उनकी भूमिका अन्य विश्वविद्यालयों की तरह विस्तृत नहीं है। इसीलिए पीसीएस अधिकारी इनमें नहीं जाना चाहते हैं। प्रमुख सचिव (प्राविधिक शिक्षा) मोनिका एस गर्ग ने बताया कि कुलसचिव की तैनाती के लिए शासन से आग्र्रह किया गया है। उम्मीद जताई कि जल्द ही दोनों प्राविधिक विश्वविद्यालयों में कुलसचिवों की नियुक्ति हो जाएगी। (6/10/16)

सातवेंं वेतन आयोग की सिफारिशें रोकेंगी विकास की राह!


विकास के मद में 38 हजार करोड़ रुपये की होगी कमी
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-कर्मचारियों पर खर्च बजट के 58 फीसद से बढ़कर होगा 72 फीसद
-खर्चे घटाए व कठोर आर्थिक उपाय किये बिना वित्तीय संकट का खतरा
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डॉ.संजीव, लखनऊ:
सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें सूबे में विकास की राह रोक सकती हैं। इनके क्रियान्वयन से कर्मचारियों पर खर्च बजट के 58 फीसद से बढ़कर 72 फीसद होने और विकास कार्यों के मद में 38 हजार करोड़ रुपये की कमी पडऩे की उम्मीद है। वित्त विभाग ने कठोर आर्थिक उपाय न करने की स्थिति में गंभीर वित्तीय संकट की आशंका जताई है।
केंद्र सरकार द्वारा सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें स्वीकार किये जाने के बाद प्रदेश सरकार ने भी इन्हें स्वीकार करने के साथ सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी गोपबंधु पटनायक की अध्यक्षता में समीक्षा समिति गठित की है। हाल ही में वित्त विभाग ने समीक्षा समिति के समक्ष सूबे की वित्तीय स्थिति का खाका पेश किया है। इसके अनुसार वित्तीय वर्ष 2016-17 में प्रदेश की कुल राजस्व प्राप्तियां 3.09 लाख करोड़ रुपये रही हैं। इसमें से कर्मचारियों पर 1.8 लाख करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। इसमें से सिर्फ वेतन के मद में 80 हजार करोड़ रुपये खर्च किये गए। पेंशन, स्वास्थ्य, महंगाई व यात्रा भत्ता सहित अन्य मदों में खर्च एक लाख करोड़ रुपये के आसपास है। सातवें वेतन आयोग की संभावित सिफारिशों का आंकलन कर इस खर्च में 54 हजार करोड़ रुपये खर्च बढऩे की उम्मीद जताई गयी है। वित्तीय वर्ष 2017-18 में कुल राजस्व प्राप्तियां 3.25 लाख करोड़ रुपये पहुंचने की उम्मीद है। इसमें से 72 फीसद राशि यानि 2.34 लाख करोड़ रुपये कर्मचारियों पर खर्च हो जाएंगे।
वित्त विभाग ने स्पष्ट कहा है कि सिफारिशों को मानने की स्थिति में विकास कार्यों के लिए उपलब्ध संसाधनों में कमी आएगी। राज्य के सुनिश्चित खर्चे कुल राजस्व संकलन के 59 फीसद से बढ़कर 72 फीसद हो जाने के कारण विकास कार्यों के लिए राज्य का अंशदान अत्यधिक सिकुड़ जाएगा। वित्तीय वर्ष 2016-17 में विकास कार्यों के लिए 1.29 लाख करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गयी थी। 2017-18 में विकास के लिए उपलब्ध राशि घटकर 91 हजार करोड़ रुपये रह जाएगी। संसाधनों में वृद्धि को जरूरी करार देकर अतिरिक्त नियोजन की प्रक्रिया शुरू करने का सुझाव दिया गया है। तमाम अनुत्पादक खर्चों को कम करने के लिए कठोर आर्थिक फैसले लेने की जरूरत भी बताई गयी है। समीक्षा समिति के अध्यक्ष गोपबंधु पटनायक ने कहा कि समिति वित्त विभाग द्वारा प्रस्तुत तथ्यों पर विचार कर रही है। अपनी संस्तुतियों के साथ इन बिन्दुओं पर भी सिफारिशें सौंपी जाएंगी।

Thursday 6 October 2016

अस्पताल पहुंचो, वहां पुराना पर्चा मिल जाएगा


- सूबे में ई-हॉस्पिटल योजना पर अमल को केंद्र सरकार की मंजूरी
- राजधानी के तीन चिकित्सालयों में पॉयलट प्रोजेक्ट, 25 में विस्तार
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डॉ.संजीव, लखनऊ
आप को पांच साल पहले ब्लड प्रेशर की शिकायत हुई थी। कुछ इलाज हुआ और सब ठीक। आज जब दोबारा वही दिक्कत हुई तो अस्पताल पहुंचने पर डॉक्टर ने पुराने पर्चे मांगे। पर यह क्या, इन पांच सालों में पुराने पर्चे तो खो चुके हैं? ऐसी किसी स्थिति में अब आपको चिंता नहीं करनी होगी। आप अस्पताल पहुंचिये, वहां कंप्यूटर पर आपके पुराने पर्चे सहित पूरी जांच रिपोर्ट मिल जाएगी। जी हां, सूबे में जल्द शुरू हो रही ई-हॉस्पिटल योजना से यह संभव होगा।
अस्पतालों में इलाज व जांच के आधुनिकीकरण के बीच स्वास्थ्य मंत्रालय ई-हॉस्पिटल से इलाज की राह आसान करने की पहल कर रहा है। प्रदेश सरकार ने केंद्र सरकार को इस योजना के लिए 50 अस्पतालों का प्रस्ताव भेजा था। केंद्र ने इनमें से 25 को मंजूरी दे दी है। पहले चरण में 30 करोड़ रुपये भी मंजूर कर दिये गए हैं। केंद्र ने दो से चार अस्पतालों में पायलट प्रोजेक्ट संचालित कर योजना की शुरुआत को कहा था। इस पर अमल करते हुए राजधानी लखनऊ के सिविल अस्पताल, बलरामपुर अस्पताल व डॉ.राम मनोहर लोहिया अस्पताल को पायलट प्रोजेक्ट के लिए चुना गया है। शेष 22 अस्पतालों का चयन भी इसी सप्ताह कर लिया जाएगा। अगले छह माह में इन सभी अस्पतालों में इसे लागू करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसके बाद प्रदेश के सभी जिला अस्पतालों व अन्य बड़े अस्पतालों में भी परियोजना को विस्तार दिया जाएगा।
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पर्चा बनवाइये, भूल जाइये
यह पूरी व्यवस्था दरअसल मरीजों को कागजों के बोझ से बचाएगी। मरीज बाह्यï रोगी विभाग में पर्चा बनवाते समय ही पूरा ब्यौरा ले लिया जाएगा। इसके लिए 37 बिन्दु निर्धारित किये गए हैं। मरीज को एक यूनीक आइडेंटिफिकेशन नंबर (यूआइएन) मिल जाएगा। इसके बाद डॉक्टर जो जांच लिखेंगे, उन जांचों की रिपोट्र्स सीधे मरीज के यूआइएन पर दर्ज होंगी। जांच रिपोर्ट के बाद डॉक्टर द्वारा लिखी गयी दवा भी इसमें दर्ज होगी। मरीज को गंभीर अवस्था में भर्ती होना पड़ा, किसी उच्च चिकित्सा केंद्र में स्थानांतरित होना पड़े या फिर अस्पताल से छुïट्टी हो, पूरी जानकारी उसी यूआइएन पर होगी। किसी दूसरे शहर के अस्पताल में जाने पर यदि वह अस्पताल इस नेटवर्क से जुड़ा है तो यूआइएन डालते ही पूरी जानकारी डॉक्टर को मिलेगी और उन्हें इलाज में आसानी होगी।
ई-ब्लडबैंक की बारी
ई-हॉस्पिटल के बाद प्रदेश के सभी सरकारी ब्लडबैंक भी पूरी तरह कम्प्यूटरीकृत किये जाएंगे। इन्हें ई-ब्लडबैंक नाम दिया जाएगा। इसमें रक्तदाता का पंजीकरण व प्रारंभिक जांचें ऑनलाइन सहेजी जाएंगी। इसके बाद जरूरत के अनुरूप उन्हें कहीं भी बुलाया जा सकेगा। इसके अलावा ब्लड बैग व ब्लड कम्पोनेंट से जुड़ी प्रक्रिया भी कम्प्यूटरीकृत होगी। इससे प्रदेश के किसी भी ब्लड बैंक में उपलब्ध रक्त का ब्यौरा एक जगह होगा और उसका उपयोग किया जा सकेगा। खून या बैग की बर्बादी रोकने के लिए उन्हें नष्ट करने के लिए कम्प्यूटरीकृत चेतावनी प्रणाली भी होगी।
इलाज में आएगी पारदर्शिता
इस पूरी परियोजना के लिए केंद्र सरकार ने एजेंसी नामित कर दी है। हम इसे इसी साल हर हाल में लागू करना चाहते हैं। इससे इलाज में पारदर्शिता आएगी। कई अस्पतालों में लंबी कतारें लगती हैं। कम्प्यूटरीकरण के बाद उसमें कोई मनमानी नहीं होगी। मरीजों की सही संख्या व बीमारियों का पता होने से आंकलन करने व उपचार की रणनीति बनाने में भी मदद मिलेगी। -आलोक कुमार, निदेशक, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, उत्तर प्रदेश

डॉक्टर रोज बताएं, कितने देखे मरीज


-हर माह पांच तारीख को भेजनी होगी डायरी, तभी मिलेगा वेतन
-सीएमएस व सीएमओ हर सप्ताह महानिदेशक को भेजेंगे रिपोर्ट
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: अस्पतालों से गैरहाजिर डॉक्टरों पर लगाम कसने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने एक और प्रयास की पहल की है। अब डॉक्टरों को रोज बताना होगा कि उन्हें कितने मरीज देखे। हर माह पांच तारीख को उनकी डायरी आने के बाद ही अगले माह वेतन मिलेगा। इसके अलावा मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) व अस्पतालों के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक (सीएमएस) हर सप्ताह स्वास्थ्य महानिदेशक को अपनी रिपोर्ट भेजेंगे।
डॉक्टरों के समय पर अस्पताल न पहुंचने से परेशान सरकार ने उनकी दैनिक मॉनीटरिंग का फैसला लिया है। मुख्य सचिव ने इस बाबत जारी आदेश में कहा है कि सभी चिकित्सक बाह्यï रोगी विभाग (ओपीडी) में देखे गए मरीजों का पूरा ब्यौरा ओपीडी रजिस्टर के माध्यम से अनुरक्षित करेंगे। साथ ही उन्हें रोज अपनी डायरी भरनी होगी, जिसमें बताना होगा कि कितने मरीज देखे और अस्पताल में भर्ती मरीजों को देखने के लिए कितने राउंड किये। सर्जन को रोज होने वाली सर्जरी की जानकारी देनी होगी, वहीं स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञों को सामान्य व सीजेरियन प्रसव की अलग-अलग जानकारी देनी होगी। हर हाल में पिछले माह की दैनिक डायरी अगले माह की पांच तारीख को अपने अधिकारी के पास जमा करनी होगी। ऐसा न करना उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक नियमावली, 1999 के अंतर्गत कदाचार माना जाएगा और तदनुरूप कठोर कार्रवाई की जाएगी।
मुख्य सचिव के मुताबिक उक्त डायरी को उपस्थिति रजिस्टर के साथ डॉक्टरों की कार्यदायी उपस्थिति के प्रमाण के रूप में मान्यता दी जाएगी। स्पष्ट कहा गया है कि पांच तारीख को डायरी न जमा करने वाले चिकित्सकों का उस माह का वेतन नहीं निकाला जाएगा। संबंधित नियंत्रक अधिकारी व आहरण-वितरण अधिकारी का दायित्व होगा कि दैनिक डायरी के निर्धारित प्रारूप में सूचना न उपलब्ध कराने वाले चिकित्सक का वेतन न आहरित किया जाए। पिछले माह का मासिक विवरण प्रस्तुत न करने वाले चिकित्सक का वेतन आहरित करने को वित्तीय अनियमितता माना जाएगा। सभी मुख्य चिकित्सा अधिकारियों व मुख्य चिकित्सा अधीक्षकों को अपनी अधीन चिकित्सकों से दैनिक रिपोर्ट लेकर हर सप्ताह स्वास्थ्य महानिदेशक को भेजनी होगी। स्वास्थ्य महानिदेशक हर दो सप्ताह (15 दिन) में अपनी आख्या शासन को भेजेंगे।

जल्द मिलेंगे 2099 डॉक्टर, 3286 और की भर्ती शुरू

-दूर होगी सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी
-नयी नियुक्तियों के बाद खुलेगी प्रोन्नति की राह
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी दूर करने की प्रक्रिया शुरू हुई है। स्वास्थ्य विभाग को जल्द ही 2099 डॉक्टर मिलने की उम्मीद है। इनके अलावा 3286 और डॉक्टरों की भर्ती शुरू हो गयी है।
स्वास्थ्य विभाग द्वारा संचालित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से लेकर जिला व मंडल स्तरीय अस्पतालों तक डॉक्टरों की कमी बड़ी समस्या रही है। इस समय प्रांतीय चिकित्सा सेवा (पीएमएस) संवर्ग में 16,250 पद सृजित हैं। इसके विपरीत 13,500 डॉक्टर पीएमएस संवर्ग में तैनात हैं। इस बीच प्रदेश में दस हजार बेड क्षमता वाले सौ छोटे-बड़े अस्पताल खोलने प्रस्तावित हैं। इनमें से तमाम तो बन कर तैयार हो चुके हैं। इनमें चिकित्सकों के पद सृजन की प्रक्रिया भी शुरू हो गयी है। पहले से चिकित्सकों की कमी तो है ही, ऊपर से हर साल औसतन 350 डॉक्टर सेवानिवृत्त हो जाते हैं। नयी नियुक्तियां न होने से यह स्थिति सुधरने के स्थान पर बिगड़ती जा रही है।
स्वास्थ्य विभाग ने पहले 2099 पदों का अधियाचन राज्य लोक सेवा आयोग के पास भेजा था। लोक सेवा आयोग ने इन सभी पदों पर साक्षात्कार आदि की प्रक्रिया पूरी कर ली है। आयोग ने 30 सितंबर तक चयनित चिकित्सकों की सूची स्वास्थ्य विभाग को सौंपने की बात कही थी, ताकि इनकी नियुक्ति प्रक्रिया पूरी की जा सके। प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) अरुण सिन्हा ने बताया कि 30 सितंबर तक तो वह सूची नहीं मिल सकी है, किन्तु जल्द ही ये 2099 डॉक्टर मिल जाने की उम्मीद है। बड़ी संख्या में चिकित्सक आ जाने के बाद हम प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र स्तर तक इलाज की स्थितियां मजबूत कर सकेंगे। उन्होंने बताया कि इन चिकित्सकों के आने के बावजूद स्वास्थ्य विभाग की जरूरतें बनी रहेंगी। उन जरूरतों का आंकलन कर 3286 और डॉक्टरों के लिए अधियाचन राज्य लोक सेवा आयोग को भेजा गया था। आयोग ने उसके लिए भी विज्ञापन जारी कर नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इन चिकित्सकों की तैनाती के बाद मरीजों के लिए डॉक्टरों की उपलब्धता और सुलभ हो जाएगी। उधर चिकित्सकों की नियुक्ति प्रक्रिया तेज होने से पीएमएस संवर्ग में पहले से तैनात चिकित्सक भी खासे उत्साहित हैं। उनका कहना है कि 2014 के बाद से संवर्ग में प्रोन्नतियां ही नहीं हुई हैं। नए चिकित्सक आने से प्रोन्नति की प्रक्रिया तेज होगी। इससे चिकित्सकों का मनोबल भी बढ़ेगा।
(3/10/2016)

Saturday 1 October 2016

डॉक्टरों को समय पर अस्पताल पहुंचाएगी बायोमीट्रिक हाजिरी

-जिलों से ब्लॉक तक सुबह आठ बजे पहुंचना होगा जरूरी
-सभी प्राथमिक व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में लगेंगी मशीनें
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: प्राथमिक व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों से लेकर जिला अस्पतालों तक समय से डॉक्टरों के न पहुंचने की समस्या स्वास्थ्य विभाग के लिए चुनौती बन गयी है। कुछ जिलों में बायोमीट्रिक हाजिरी का प्रयास सफल होने के बाद प्रदेश में अमल होगा।
स्वास्थ्य विभाग द्वारा संचालित जिला अस्पताल हों या सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सबसे बड़ी समस्या वहां डॉक्टरों के पहुंचने की है। सभी अस्पतालों में बाह्यï रोगी विभाग (ओपीडी) का समय सुबह आठ बजे से है किन्तु कहीं भी डॉक्टर सुबह आठ बजे नहीं पहुंचते हैं। कई जगह तो ये डॉक्टर दस बजे तक नहीं पहुंचते और कई बार तो जाते ही नहीं और अगले दिन उपस्थिति रजिस्टर पर दस्तखत कर देते हैं। इसमें अस्पतालों के मुख्य चिकित्सा अधीक्षकों की मिलीभगत भी रहती है। पिछले दिनों प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) ने सभी अस्पतालों के मुख्य चिकित्सा अधीक्षकों व जिलों के मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को इस बाबत चेतावनी भी दी थी किन्तु उन पर कोई असर नहीं हुआ। स्वयं प्रमुख सचिव पिछले दिनों स्वास्थ्य केंद्रों का निरीक्षण करने गए तो उन्हें चिकित्सकों की मनमानी की शिकायत मिली। मरीजों का कहना था कि वे लोग सुबह आठ बजे से अस्पताल पहुंच जाते हैं किन्तु डॉक्टरों के न आने से दिक्कत होती है।
प्रमुख सचिव अरुण सिन्हा ने बताया कि डॉक्टरों के समय पर अस्पताल न पहुंचने से सर्वाधिक समस्या हो रही है। कई बार तो वे पूरी तरह अनुपस्थित ही हो जाते हैं। इस कारण शासन की मंशा के अनुरूप अधिक से अधिक मरीजों को स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ भी नहीं मिल पा रहा है। अब इस समस्या के समाधान के लिए सभी प्राथमिक व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों, जिला व मंडलीय चिकित्सालयों में चिकित्सकों की उपस्थिति बायोमीट्रिक मशीन से लगवाने का फैसला किया गया है। इलाहाबाद से इसकी शुरुआत हुई है और जल्द ही पूरे प्रदेश में इसका विस्तार किया जाएगा। सभी अस्पतालों में बायोमीट्रिक मशीनें लगाने के साथ उन्हें ऑनलाइन प्रणाली से स्वास्थ्य महानिदेशालय से जोड़ा जाएगा। उसके बाद लखनऊ से ही यह पता करना संभव होगा कि कौन डॉक्टर समय पर अस्पताल पहुंचा है, कौन नहीं। इससे लापरवाह डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई भी आसानी से संभव होगी। इस बाबत आदेश जारी कर दिये गए हैं। जल्द ही मशीनों के टेंडर आदि की प्रक्रिया पूरी कर इसी साल के अंत तक इस पर अमल सुनिश्चित कराया जाएगा। 

यूपी की राय, जनवरी से शुरू हो वित्तीय वर्ष

-2018 से कैलेंडर वर्ष को ही वित्तीय वर्ष मान लेने का प्रस्ताव
-विकास की रफ्तार बढऩे और काम न रुकने का दिया गया तर्क
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: प्रदेश सरकार की राय है कि वित्तीय वर्ष अप्रैल के स्थान पर जनवरी में शुरू होना चाहिए। केंद्र सरकार द्वारा इस बाबत पूछे जाने पर राज्य सरकार ने 2018 से कैलेंडर वर्ष को ही वित्तीय वर्ष मान लेने का प्रस्ताव किया है।
रेल बजट व आम बजट को एक करने के बाद केंद्र सरकार वित्तीय वर्ष में संशोधन को लेकर भी रायशुमारी कर रही है। इसके लिए देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे शंकर आचार्य की अध्यक्षता में समिति बनाई गयी है। इस समिति के समक्ष उत्तर प्रदेश ने मंगलवार को अपनी राय जाहिर की। इसमें प्रदेश सरकार ने वित्तीय वर्ष एक अप्रैल से शुरू करने के स्थान पर एक जनवरी से शुरू करने का सुझाव दिया है। प्रदेश सरकार की राय है कि कैलेंडर वर्ष को वित्तीय वर्ष मान लेने से नियोजन में बेहद आसानी होगी। साथ ही विकास की रफ्तार बढ़ेगी और काम नहीं रुकेगा। तर्क दिया गया है कि अप्रैल में वित्तीय वर्ष शुरू होने की स्थिति में कई बार जून-जुलाई तक धन जारी हो पाता है। इस बीच बारिश शुरू हो जाती है और फिर तमाम विकास कार्य अक्टूबर तक रुक जाते हैं। इससे छह से सात माह तक बर्बाद हो जाते हैं। इसके विपरीत जनवरी में वित्तीय वर्ष की शुरुआत पर हर हाल में मार्च तक धन जारी हो जाएगा और विकास कार्य समय रहते रफ्तार पकड़ सकेंगे। राज्य सरकार ने 2018 से ही कैलेंडर वर्ष को वित्तीय वर्ष के रूप में स्वीकार करने का प्रस्ताव किया है, ताकि एक जनवरी 2018 से इस पर अमल हो सके।
नौ माह का वित्तीय वर्ष
केंद्र सरकार ने सभी राज्यों से इस बाबत प्रस्ताव मांगा है। बताया गया कि कई राज्य जनवरी से दिसंबर को वित्तीय वर्ष के रूप में परिभाषित करने पर सहमत हैं। यदि इसे जनवरी 2018 से लागू किया गया तो 2017-18 का एक वित्तीय वर्ष नौ माह का माना जाएगा। उस वर्ष के लिए बजटीय नियोजन भी तदनुरूप करने होंगे।
दीवाली के आसपास बजट
कैलेंडर वर्ष को वित्तीय वर्ष मान लेने का प्रस्ताव स्वीकार होने की स्थिति में बजट अक्टूबर के अंत या नवंबर माह में आएगा। इस तरह हर साल बजट दीवाली के आसपास आयेगा। पारंपरिक भारतीय पद्धति में भी दीवाली में लेखा-जोखा की शुरुआत करने व बहीखातों की पूजा की जाती है। यह बदलाव भी भारतीय जरूरतों के अनुरूप समावेशी होगा। 

विदाई से पहले हाइएंड लैपटॉप देगी सरकार

--दीपावली तोहफा--
-2012 की तुलना में कीमत होगी कम, गुणवत्ता ज्यादा
-200 करोड़ रुपये खर्च कर 1.45 लाख में वितरण
राज्य ब्यूरो, लखनऊ: प्रदेश सरकार मौजूदा कार्यकाल की विदाई से पहले युवाओं को हाइएंड लैपटॉप देने की तैयारी है। 200 करोड़ रुपये खर्च कर डेढ़ लाख विद्यार्थियों को दीपावली के तोहफे के रूप में लैपटॉप दिये जाएंगे।
प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार लैपटॉप वितरण को अपनी उपलब्धियों में गिनाती रही है। 2012 के चुनावी घोषणापत्र में मेधावियों को लैपटॉप वितरण का वादा करने के बाद सत्ता में आई सपा सरकार ने पहले साल ही लैपटॉप वितरण शुरू किया और मुख्यमंत्री आज तक इसे अपनी विशेष योजना के रूप में बताते हैं। अगले चुनाव में जीत कर आने की स्थिति में मोबाइल फोन देने का वायदा करने वाली राज्य सरकार मौजूदा कार्यकाल खत्म होने से पहले एक बार फिर मेधावियों के हाथों में लैपटॉप थमाना चाहती है। तय हुआ है कि दीपावली के आसपास विद्यार्थियों को तोहफे के रूप में लैपटॉप बांट दिये जाए। इस बार लैपटॉप वितरण में उनकी गुणवत्ता पर अतिरिक्त फोकस किया जा रहा है। इसके लिए प्राविधिक शिक्षा विभाग के विशेषज्ञों की मदद से लैपटॉप के स्पेसिफिकेशन निर्धारित किये गए हैं। नवीनतम स्पेसिफिकेशन व उच्च गुणवत्ता वाले इन हाइएंड लैपटॉप की कीमत 2012 में सरकार द्वारा खरीदे गए लैपटॉप से कम है। 2012 में एक लैपटॉप की कीमत 19,058 रुपये थी, जो 2016 में 13,490 रुपये रह गयी है। इस वर्ष 1,45,292 मेधावियों को ये लैपटॉप बांटे जाएंगे। इनमें 2015 व 2016 के बराबर-बराबर (72,646) मेधावी शामिल हैं। दोनों वर्षों के मेधावी जिला स्तर पर चिह्नित कर लिये गए हैं।
दोगुनी रफ्तार व स्टोरेज
नए स्पेसिफिकेशन वाले लैपटॉप 2012 में बांटे गए लैपटॉप से दोगुनी रफ्तार व स्टोरेज सहेजे होंगे। इनमें लैटेस्ट जेनरेशन प्रोसेसर एक साथ कई एप्लीकेशंस का संचालन कर सकेगा। पिछले लैपटॉप में 2-कोर प्रोसेसर था, जबकि इस बार 4-कोर प्रोसेसर वाले लैपटॉप होंगे। पिछली बार जहां एचडी ग्र्रैफिक्स की सुविधा थी, इस बार रेडियन आर-फोर ग्र्रैफिक्स के साथ विद्यार्थी आसानी से ग्र्रैफिकल एप्लीकेशन चला सकेंगे। इस बार रैम भी 2 जीबी से बढ़ाकर 4 जीबी कर दी गयी है। इसी तरह यूएसबी वर्जन 2.0 को अपग्र्रेड कर 3.0 कर दिया गया है, जो दोगुना तेज है। ऑपरेटिंग सिस्टम भी विंडोज-7 की जगह विंडोज-10 कर दिया गया है। पिछली बार लैपटॉप में एजूकेशन कंटेंट से जुड़े सॉफ्टवेयर डाल कर दिये गए थे, इस बार उनके साथ क्लाउड बेस मैनेजमेंट सॉफ्टवेयर भी मिलेंगे, ताकि विद्यार्थी अधिकाधिक लाभान्वित हो सकें।

और कसेगा निजी मेडिकल कालेजों पर शिकंजा

-अभी ब्रांच के आधार पर तीन करोड़ रुपये तक होती वसूली
-पीजी-नीट से होंगे एमडी-एमएस में प्रवेश तो रुकेगी अराजकता
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: मेडिकल कालेजों में परास्नातक पाठ्यक्रमों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर प्रवेश परीक्षा (पीजी-नीट) अनिवार्य होने के बाद निजी कालेजों पर शिकंजा और कसेगा। अभी अलग-अलग ब्रांच के आधार पर विद्यार्थियों से तीन करोड़ रुपये तक 'डोनेशनÓ के रूप में वसूले जाते हैं। एमडी-एमएस के लिए राष्ट्रीय प्रवेश परीक्षा पर अमल होने से यह अराजकता रुकेगी।
निजी मेडिकल व डेंटल कालेजों में स्नातक पाठ्यक्रमों एमबीबीएस व बीडीएस में नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंटरेंस टेस्ट (नीट) के माध्यम से ही प्रवेश लेना इसी वर्ष अनिवार्य किया गया है। निजी कालेजों की तमाम कोशिशों के बावजूद उच्च न्यायालय ने उन्हें सीधे प्रवेश की अनुमति नहीं दी और सरकारी काउंसिलिंग के माध्यम से ही प्रवेश के निर्देश दिये हैं। इस बीच निजी कालेजों की परास्नातक कक्षाओं के प्रवेश भी राष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तावित पीजी-नीट के माध्यम से कराने का फैसला हुआ है। बुधवार को यह फैसला होते ही गुरुवार को चिकित्सा शिक्षा महकमे में हर कोई स्पष्ट रूप से यह कह रहा था कि इससे निजी मेडिकल कालेजों पर शिकंजा कसेगा। अभी वो जिस तरह परास्नातक कक्षाओं में प्रवेश के लिए मनमाने ढंग से प्रवेश लेते हैं, अब वह मनमानी भी रुकेगी।
दरअसल प्रदेश के सरकारी मेडिकल कालेजों में एमडी, एमएस व परास्नातक डिप्लोमा पाठ्यक्रमों की 751 व एमडीएस की 27 सीटें हैं। इसके अलावा 11 निजी मेडिकल कालेजों व 21 निजी डेंटल कालेजों में परास्नातक सीटें हैं। अभी निजी मेडिकल व डेंटल कालेज औपचारिकता के लिए अपनी प्रवेश परीक्षा कराते हैं, किन्तु वास्तविकता में यहां सीटों की बाकायदा बुकिंग होती है। सबसे महंगी सीट एमडी (रेडियोलॉजी) की है, जो तीन करोड़ रुपये तक बिकती है। दूसरे नंबर एमडी (स्किन) की सीट औसतन दो करोड़ रुपये के आसपास बेची जाती है। इसके बाद सर्जरी में एमएस (गायनोकोलॉजी) और एमएस (जनरल सर्जरी) की सीटों के लिए डेढ़ से दो करोड़ रुपये के बीच वसूली की जाती है। एमडी (मेडिसिन) व एमडी (पीडियाट्रिक्स) के लिए औसतन सवा से डेढ़ करोड़ रुपये के बीच लिये जाते हैं। पीजी-नीट लागू होने से इस वसूली पर अंकुश लग सकेगा। चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक डॉ.वीएन त्रिपाठी भी मानते हैं कि पीजी-नीट लागू होने से निश्चित रूप से स्थितियों में सुधार आएगा। इससे विद्यार्थियों के पैसे बचेंगे, वहीं मेधा का भी सम्मान बढ़ेगा। अभी जो विद्यार्थी चाहकर भी निजी कालेजों में प्रवेश के बारे में नहीं सोचते, उन्हें भी अवसर मिलेंगे।

Wednesday 21 September 2016

न चादर न डॉक्टर, मरीजों को बस इंतजार


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- आठ बजे से अस्पताल पहुंचकर इंतजार की मजबूरी
- सात दिन में सात चादर बदलने की घोषणा बेमानी
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डॉ. संजीव, लखनऊ : सुबह के पौने दस बजे हैं। उन्नाव के पीतांबर नगर में रहने वाली ङ्क्षरकी शुक्ला बेहद परेशान हैं। जिला महिला अस्पताल में मुख्य चिकित्सा अधीक्षक के कमरे के बाहर बेंच पर बैठी ङ्क्षरकी कराह रही हैं। वे सुबह आठ बजे आ गई थीं किंतु डॉक्टर अब तक नहीं आई हैं। यही हालत वहां मौजूद अन्य मरीजों की भी है।
स्वास्थ्य विभाग मुख्यमंत्री अखिलेश यादव स्वयं संभालते हैं और परिवार कल्याण विभाग के लिए कुछ माह पूर्व स्वतंत्र प्रभार के राज्य मंत्री रविदास मेहरोत्रा नियुक्त किए गए हैं। मेहरोत्रा लगातार बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हैं पर उनकी बातों पर अमल होता महिला अस्पतालों में नहीं दिख रहा है। मंत्री ने सबसे पहले सात दिनों में सात रंग की चादर बिछाने के निर्देश दिए थे। उनका तर्क था कि इससे गंदी चादरें नहीं बिछेंगी। हमने तीन जिला महिला अस्पतालों में जाकर देखा और कहीं भी इस पर अमल नहीं हो रहा था। सुबह आठ बजे से बाह्यï रोगी विभाग (ओपीडी) में मरीज आने शुरू हो जाते हैं। महिलाओं का कहना है कि सुबह आठ बजे अस्पताल पहुंचने के लिए वे जल्दी-जल्दी घर का काम निपटाती हैं पर यहां आओ तो डॉक्टर ही नहीं मिलतीं। कर्मचारी आ भी जाते हैं तो उनके पास काम नहीं होता है। यही कारण है पर्चा बनवाने वाले काउंटर पर भी कोई बैठा नहीं मिलता। एक्सरे कक्ष सहित तमाम कमरों में ताला लटका रहता है। डॉक्टर तो दूर अस्पताल की कमान संभालने वाली सीएमएस तक समय पर अस्पताल नहीं पहुंचतीं, जबकि उन्हें अस्पताल परिसर में ही रहना चाहिए। प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) ने सभी अधिकारियों को नियमित निरीक्षण का आदेश दिया था, पर कोई कहीं निरीक्षण करने नहीं जाता।
नर्सिंग होम में सक्रिय रहती हैं डॉक्टर
आवास विकास कॉलोनी, उन्नाव निवासी साधना कहती हैं कि पिछले तीन दिनों से जिला महिला अस्पताल के चक्कर लगा रही हूं पर डॉक्टर नहीं मिलीं। पता चला है कुछ डॉक्टर लखनऊ तो कुछ कानपुर से आती हैं। वे सब वहां नर्सिंग होम्स में भी सक्रिय रहती हैं। वहां से फुर्सत मिलती है तो आ जाती हैं। अन्य मरीजों का दर्द भी यही है, पर कोई सुनने वाला नहीं है। सीएमएस भी समय पर नहीं आतीं कि उनसे शिकायत की जा सके।
जबरन भेजते नर्सिंग होम
महिला अस्पतालों में डॉक्टरों के न पहुंचने से परेशान महिलाएं जबरन नर्सिंग होम भेज दी जाती हैं। उन्नाव के आदर्श नगर निवासी रामरोशनी कहती हैं कि उनके घर के आसपास की महिलाएं अस्पताल आती हैं, डॉक्टर नहीं मिलतीं तो वे नर्सिंग होम चली जाती हैं। वे बोलीं, नर्सिंग होम बहुत महंगा है, इसलिए हम जैसों के पास कोई और सहारा नहीं है। ये डॉक्टर इसी का फायदा उठाती हैं।
तय करेंगे जवाबदेही
प्रदेश के परिवार कल्याण महानिदेशक डॉ. सत्यमित्र का कहना है कि तमाम महिला चिकित्सालयों में डॉक्टरों के समय पर न पहुंचने का मामला उनके संज्ञान में आया है। इस पर जवाबदेही तय करने के साथ कार्रवाई की जाएगी। इसके लिए जल्द ही प्रदेश के सभी महिला अस्पतालों की मुख्य चिकित्सा अधीक्षकों की बैठक बुलाई जाएगी। वे समय पर पहुंचेंगी तो अन्य डॉक्टर भी पहुंचने लगेंगी।

गलत दिशा में मुड़े ऑटो, तुरंत दबाएं इमरजेंसी बटन


- प्रदेश के सभी ऑटोरिक्शा में जरूरी होंगे जीपीएसयुक्त फेयर मीटर
- सात महानगरों की बसों में भी सीसीटीवी कैमरे लगाने का फैसला
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: आप देर शाम स्टेशन से उतरी हैं। घर के लिए ऑटो किया पर यह क्या? ऑटो तो जानबूझ कर गलत व सुनसान दिशा की ओर मुड़ गया। देखें, आपकी सीट के ऊपर एक इमरजेंसी बटन लगा होगा। उसे तुरंत दबाएं। कुछ ही देर में पुलिस आपके पास होगी। जी हां, परिवहन विभाग यात्रियों की सुरक्षा के लिए कुछ ऐसी ही पहल करने जा रहा है। प्रदेश के सभी ऑटोरिक्शा में इमरजेंसी बटन लगाना अनिवार्य करने की तैयारी है।
परिवहन विभाग ने सभी ऑटोरिक्शा में जीपीएस व जीपीआरएस सिस्टम लगाया जाना अनिवार्य करने का फैसला किया है। इसके अंतर्गत हर ऑटो में जीपीएस व जीपीआरएस सिस्टम लगाकर उसकी सतत मॉनीटरिंग की जाएगी। ऑटो चालक मनमानी वसूली न कर सकें, इसके लिए फेयर मीटर को जीपीएस व जीपीआरएस प्रणाली से जोड़ दिया जाएगा। हर ऑटो में एक इमरजेंसी बटन लगा होगा, जो जीपीएस प्रणाली के साथ केंद्रीय नियंत्रण कक्ष से जुड़ा होगा। जैसे ही इमरजेंसी बटन दबाया जाएगा, नियंत्रण कक्ष को पता चल जाएगा कि दिक्कत कहां पर है। तुरंत पुलिस को सूचना देकर जीपीएस के माध्यम से ऑटो की लोकेशन का पता कर वहां यात्री को सुरक्षा प्रदान की जाएगी। इससे महिलाएं सर्वाधिक सुरक्षा के साथ निश्चिंत होकर यात्रा कर सकेंगी।
इसके अलावा केंद्र सरकार ने प्रदेश के सात महानगरों में बसों को जीपीएस के साथ इमरजेंसी बटन और सीसीटीवी कैमरों से लैस करने की परियोजना को भी मंजूरी दे दी है। इसके अंतर्गत कानपुर, लखनऊ, गाजियाबाद, आगरा, वाराणसी, मेरठ व इलाहाबाद की बसों सहित सभी सार्वजनिक परिवहन वाहनों में जीपीएस व जीपीआरएस सिस्टम लगाया जाएगा। इस ट्रैकिंग सिस्टम के साथ वाहनों में इमरजेंसी बटन तो होगा ही, सीसीटीवी कैमरे भी लगेंगे। इन सब पर भी केंद्रीय नियंत्रण कक्ष के माध्यम से नजर रखी जाएगी। परिवहन आयुक्त के. रविंद्र नायक ने बताया कि इन दोनों परियोजनाओं पर अमल को प्रक्रियागत कार्रवाई शुरू हो गई है। इनके लिए कंसल्टेंट की नियुक्ति कर दी गयी है। कोशिश है कि मौजूदा वित्तीय वर्ष के अंत तक इस पर अमल कर दिया जाए।

Tuesday 20 September 2016

सीएमओ आना नहीं चाहते, डॉक्टर आते नहीं


-सरकारी आदेशों की खिल्ली उड़ा रहे चिकित्सा विभाग के अफसर
-सरकारी अस्पतालों में इलाज का इंतजार करने को मजबूर मरीज
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डॉ.संजीव, लखनऊ
सुबह के दस बजे हैं। उन्नाव के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) कार्यालय में सन्नाटा है। कुछ मरीज वहां सीएमओ साहब को दिखाने के लिए आए हैं किन्तु सीएमओ साहब ही नहीं आए। यह पूछने पर कि अब तो सीएमओ को भी मरीज देखने हैं, बताया गया कि सीएमओ साहब तो मरीज नहीं देखते आप जिला अस्पताल जाइये। जिला अस्पताल पहुंचे तो वहां भी सीएमओ या कोई अन्य अफसर नहीं दिखा।
यह हाल सिर्फ उन्नाव के सीएमओ का नहीं है। किसी भी जिले में सीएमओ मरीज नहीं देख रहे हैं। सीएमओ के जिम्मे न सिर्फ जिले की सेहत का जिम्मा है, बल्कि सभी सरकारी अस्पतालों में मरीज ठीक से देखे जाएं, उन्हें दवाएं मिलें, यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी है। पिछले दिनों स्वयं मुख्य सचिव ने निर्देश दिये थे कि सभी जिलों के सीएमओ स्वयं भी रोज मरीज देखेंगे, किन्तु ऐसा हो नहीं रहा है। सीएमओ की ढिलाई के कारण जिला अस्पतालों, सामुदायिक या प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में अधिकांश डॉक्टर समय पर नहीं पहुंचते। बाह्यï रोगी विभाग में मरीज देखने के लिए डॉक्टर को सुबह आठ बजे पहुंच जाना चाहिए। दूरस्थ इलाकों में तो कई बार सप्ताह में एक या दो दिन डॉक्टर जाते हैं, जिला अस्पतालों तक में डॉक्टर नहीं पहुंचते। एक जिला अस्पताल में हमने सुबह नौ बजकर दस मिनट पर हाजिरी रजिस्टर की फोटो खींची तो 33 में से 18 डॉक्टर गायब थे। जिला अस्पताल तो दूर राजधानी लखनऊ के सरोजनी नगर स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में सुबह सवा नौ बजे तक सभी डॉक्टर नहीं पहुंचे थे। इस दौरान मरीजों को सभी जगह इंतजार करना पड़ता है, किन्तु डॉक्टरों पर इसका कोई असर नहीं पड़ता। पूरे प्रदेश में डेंगू भयावह स्थिति में है किन्तु अस्पतालों में उसे लेकर चौकसी नहीं दिखती।
हमारे लिए नहीं आदेश
सीएमओ या डिप्टी सीएमओ इस आदेश का पालन तो कर ही नहीं रहे, बहाने भी गजब बनाते हैं। इस संबंध में उन्नाव के सीएमओ डॉ.बीएन श्रीवास्तव से पूछने पर उन्होंने कहा कि उनके लिए नहीं डिप्टी सीएमओ व एसीएमओ के लिए मरीज देखने का आदेश हुआ था। उनसे कहा गया है कि वे जिला अस्पताल में जाकर मरीज देखें। वैसे जिला अस्पताल में 11 बजे तक एक भी डिप्टी सीएमओ या एसीएमओ भी मरीज देखने नहीं पहुंचे थे।
वे आएं तो हो सुधार
जिला अस्पतालों में लगातार मरीजों की भीड़ बढ़ रही है। वहां के अधीक्षक चाहते हैं कि सीएमओ या अन्य अफसर यदि मरीज देखें तो स्थितियां सुधर सकती हैं। उन्नाव के जिला अस्पताल में एक ही नेत्र रोग विशेषज्ञ है, जबकि दो डिप्टी सीएमओ नेत्र विशेषज्ञ हैं। मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ.एसपी चौधरी कहते हैं कि यदि ये दोनों डिप्टी सीएमओ दो-दो दिन भी ओपीडी में बैठने लगें, तो स्थितियां सुधर जाएंगी।
सिफारिश से संबद्धता, फिर भी गायब
उन्नाव के सफीपुर स्थित स्वास्थ्य केंद्र में तैनात नाक, कान, गला रोग विशेषज्ञ ने एक विधायक से सिफारिश लगवाकर खुद को जिला अस्पताल से संबद्ध करवा लिया। इस कारण सफीपुर में डॉक्टर कम हो गए और वे स्वयं जिला अस्पताल समय पर नहीं पहुंचतीं। दरअसल महानगरों के आसपास जिलों में तैनात डॉक्टरों में से अधिकांश सपरिवार महानगरों में रहते हैं और इसका खामियाजा संबंधित जिलों के मरीजों को भुगतना पड़ता है।
बनाएंगे प्लान, होगी कार्रवाई
सभी सीएमओ, डिप्टी सीएमओ व अन्य अधिकारियों से नियमित रूप से मरीज देखने को कहा गया है। कुछ जिलों ने इसके प्लान भी भेजे हैं। इसके बावजूद जहां अधिकारी मरीज नहीं देख रहे हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इस पर सुनिश्चित अमल के लिए सभी जिलों से प्लान मांगा गया है, ताकि ओपीडी में उनकी ड्यूटी के बारे में शासन को भी पता रहे। -अरुण सिन्हा, प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य)

वाह सरकार! इलाज कर नहीं पा रहे, तोहमत विदेशियों पर

-स्वास्थ्य राज्य मंत्री ने कहा, बहुराष्ट्रीय कंपनियां फैला रहीं डेंगू की अफवाह
-सिर्फ तीन लोगों की मौत पर अटकी सरकार, निजी अस्पतालों पर आरोप
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: प्रदेश में डेंगू के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। लोग मर रहे हैं और सरकारी अस्पताल पूरा इलाज भी नहीं कर पा रहे हैं। इसके बावजूद स्वास्थ्य राज्यमंत्री ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर डेंगू की अफवाह फैलाने का आरोप लगाकर विदेशियों पर पूरी तोहमत लगा दी है।
सरकारी आंकड़ों में ही प्रदेश में डेंगू के तीन हजार के आसपास मरीज सामने आ चुके हैं। वास्तविक स्थिति इससे कहीं अधिक भयावह है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी ही नाम न छापने की शर्त पर स्वीकार करते हैं कि प्रदेश में दस हजार से अधिक लोगों को डेंगू हो चुका है। इससे दर्जनों लोगों की मौत हो चुकी है किन्तु स्वास्थ्य विभाग प्रदेश में सिर्फ तीन लोगों की मौत ही स्वीकार कर रहा है। शनिवार को स्वास्थ्य राज्य मंत्री शंख लाल मांझी ने तो हद ही कर दी। उन्होंने कहा कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने मार्केटिंग प्लान के तहत प्रदेश में डेंगू की अफवाहें फैला रही हैं। आरोप लगाया कि इन विदेशी कंपनियों को प्रदेश की जनता से कोई सरोकार नहीं है। वे केवल डेंगू किट की मांग बढ़ाने और धन उगाही के चक्कर में डेंगू फैलने की गलत सूचनाओं का प्रसार कर रही हैं। उन्होंने दावा किया कि इन कंपनियों व निजी अस्पतालों की मिलीभगत से डेंगू का भ्रमजाल फैलाया जा रहा है। सामान्य बुखार के मरीजों पर भी डेंगू की जांच का दबाव बनाकर मोटी रकम वसूली जा रही है। ये लोग लोगों को डरा रहे हैं, ताकि निजी अस्पताल इसका फायदा उठा सकें। उन्होंने जिला व मंडल स्तरीय अस्पतालों में इलाज के पूरे बंदोबस्त के निर्देश दिये गए हैं। जिला स्तर पर रैपिड रिस्पांस टीम भी बनाई गयी हैं।
(17/9/16)

बढ़ा घमासान तो सोशल मीडिया से दूर हुए सीएम

--छह दिन, तीन ट्वीट--
-सत्ता संग्र्राम ने घटाई ट्विटर व फेसबुक पर सक्रियता
-11 सितंबर से पहले औसतन रोज होते थे ट्वीट व अपडेट
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तकनीकी सक्रियता में खासे अव्वल रहते हैं। कई बार तो स्वयं फोटो खींच कर सोशल मीडिया पर अपडेट भी कर देते हैं। पिछले छह दिनों से चल रहे सत्ता संग्र्राम ने ट्विटर व फेसबुक पर उनकी सक्रियता घटा दी है। इस दौरान उन्होंने बस तीन ट्वीट किये। इससे साफ है कि घर में घमासान बढ़ा तो सीएम सोशल मीडिया से दूर हो गए।
हाइटेक सीएम के रूप में माने जाने वाले अखिलेश फेसबुक व ट्विटर पर खासे सक्रिय रहते हैं। ट्विटर पर वे स्वयं भले ही सिर्फ 14 लोगों को फॉलो करते हैं किन्तु उन्हें फॉलो करने वालों की संख्या 15 लाख के आसपास है। इसी तरह उनके फेसबुक पेज को 38 लाख से अधिक लोग लाइक्स मिल चुके हैं। अखिलेश स्वयं भी तमाम कार्यक्रमों में ट्विटर या फेसबुक के माध्यम से जुड़ाव की बात करते हैं। बीते सोमवार को उनके घर में घमासान बढ़ा तो वे ट्विटर व फेसबुक से भी दूर हो गए हैं। सोमवार, 12 सितंबर से इस सत्ता संग्र्राम की शुरुआत हुई थी। उस दिन से शनिवार, 17 सितंबर तक अखिलेश ने मात्र तीन ट्वीट किये हैं। इससे पहले मुख्यमंत्री औसतन रोज एक ट्वीट तो करते ही थे। सितंबर को ही आधार मानें तो एक व दो सितंबर को एक-एक, तीन सितंबर को तीन, चार सितंबर को एक, पांच व छह सितंबर को दो-दो, सात, आठ व नौ सितंबर को एक-एक ट्वीट किये। इसके बाद 11 सितंबर को मुख्यमंत्री ने दो ट्वीट किये और 12 को घमासान शुरू हो गया। इसके बाद उन्होंने 14 सितंबर को दो ट्वीट किये। इसमें से एक समाजवादी विकास रथ यात्रा की घोषणा संबंधी ट्वीट चर्चित भी हुआ। दरअसल एक दिन पहले उन्होंने अपने चाचा शिवपाल से पीडब्ल्यूडी सहित कई महत्वपूर्ण विभाग छीने थे और उसके बाद रथ यात्रा की घोषणा को उनकी संकल्प शक्ति से जोड़ा गया था। माना गया था कि वे विकास से विजय की ओर ट्वीट कर अपनी इच्छाशक्ति दर्शा रहे हैं। उसी दिन दूसरा ट्वीट उन्होंने आइएएस व आइएफएस के नए अफसरों के साथ बैठक से जुड़ा हुआ किया था। इसके बाद अखिलेश शुक्रवार को एक कार्यक्रम में खुल कर बोले थे और उस कार्यक्रम का चित्र ट्वीट किया था। ट्विटर के अलावा इस दौरान उनके फेसबुक अपडेट भी घटे हैं। पिछले छह दिनों में उनके फेसबुक पेज पर भी महज तीन अपडेट ही हुए हैं।
(17/9/16)

आयुर्वेद का विशेषज्ञ बनने को नहीं मिल रहे डॉक्टर

- निजी आयुर्वेदिक कालेजों में परास्नातक पढ़ाई को उत्साह नहीं
- 222 सीटों के लिए आए सिर्फ 198 आवेदन तो बढ़ाई परीक्षा तिथि
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: केंद्र से लेकर राज्य सरकारें भले ही आयुर्वेद को बढ़ावा देने की मशक्कत में जुटी हैं किन्तु प्रदेश में एक चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है। यहां निजी कालेजों में परास्नातक करने के लिए बीएएमएस किये हुए डॉक्टर ही नहीं मिल रहे हैं।
आयुर्वेद में एमडी उपाधि के लिए प्रदेश के लखनऊ व पीलीभीत स्थित सरकारी आयुर्वेदिक कालेजों में तीस सीटें हैं। इनके अलावा निजी कालेजों में एमडी की 222 सीटें हैं। इनमें प्रवेश के लिए परीक्षा कराने की जिम्मेदारी चिकित्सा शिक्षा विभाग के पास है। शासन आयुर्वेद निदेशालय के माध्यम से सरकारी व निजी कालेजों के लिए अलग-अलग परीक्षाएं कराकर काउंसिलिंग के माध्यम से आयुर्वेदिक कालेजों को सीटें आवंटित करता है। सरकारी कालेजों में प्रवेश के लिए तो बीएएमएस उत्तीर्ण विद्यार्थियों में उत्साह देखा जाता है, किन्तु निजी कालेजों में तो सीटों के बराबर आवेदन ढूंढऩा भी मुश्किल हो रहा है।
इस वर्ष भी सरकारी कालेजों की 30 सीटों के लिए 500 से अधिक आवेदन आए थे। ये सीटें भर भी गयीं। इस बीच निजी कालेजों के लिए चार सितंबर को प्रवेश परीक्षा कराने का फैसला हुआ था। इसके लिए आवेदन मांगे गए तो बीएएमएस विद्यार्थी पर्याप्त संख्या में सामने ही नहीं आए। 31 अगस्त तक महज 198 आवेदन आए तो अधिकारी परेशान हुआ। सीटों की संख्या के बराबर भी आवेदन न आने से परीक्षा तिथि आगे बढ़ानी पड़ी। अब परीक्षा 18 सितंबर को है और आवेदनों की संख्या बढ़कर 301 पहुंच गयी है। वैसे अधिकारी इसे भी पर्याप्त नहीं मान रहे हैं। पिछले साल भी 222 सीटों के लिए दो बार परीक्षा रद करने के बाद 274 आवेदन आए थे, जिनमें से महज 178 ने परीक्षा दी थी। इस बार भी सभी 298 आवेदक परीक्षा देंगे, इसमें संशय है। इसके बाद पचास फीसद अंक लाने की अनिवार्यता के कारण इसमें कितने सफल होंगे, इस पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। पिछले साल कुल 15 विद्यार्थी ही सफल हो सके थे। इस संबंध में आयुर्वेद निदेशक कुमुदलता श्रीवास्तव का कहना है कि कम अभ्यर्थियों के कारण परीक्षा तिथि बढ़ाई गयी थी। रविवार को राजधानी लखनऊ स्थित राजकीय आयुर्वेदिक कालेज में परीक्षा होगी। उसकी तैयारियां पूरी कर ली गयी हैं।
(17/9/16)