Wednesday 21 September 2016

न चादर न डॉक्टर, मरीजों को बस इंतजार


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- आठ बजे से अस्पताल पहुंचकर इंतजार की मजबूरी
- सात दिन में सात चादर बदलने की घोषणा बेमानी
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डॉ. संजीव, लखनऊ : सुबह के पौने दस बजे हैं। उन्नाव के पीतांबर नगर में रहने वाली ङ्क्षरकी शुक्ला बेहद परेशान हैं। जिला महिला अस्पताल में मुख्य चिकित्सा अधीक्षक के कमरे के बाहर बेंच पर बैठी ङ्क्षरकी कराह रही हैं। वे सुबह आठ बजे आ गई थीं किंतु डॉक्टर अब तक नहीं आई हैं। यही हालत वहां मौजूद अन्य मरीजों की भी है।
स्वास्थ्य विभाग मुख्यमंत्री अखिलेश यादव स्वयं संभालते हैं और परिवार कल्याण विभाग के लिए कुछ माह पूर्व स्वतंत्र प्रभार के राज्य मंत्री रविदास मेहरोत्रा नियुक्त किए गए हैं। मेहरोत्रा लगातार बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हैं पर उनकी बातों पर अमल होता महिला अस्पतालों में नहीं दिख रहा है। मंत्री ने सबसे पहले सात दिनों में सात रंग की चादर बिछाने के निर्देश दिए थे। उनका तर्क था कि इससे गंदी चादरें नहीं बिछेंगी। हमने तीन जिला महिला अस्पतालों में जाकर देखा और कहीं भी इस पर अमल नहीं हो रहा था। सुबह आठ बजे से बाह्यï रोगी विभाग (ओपीडी) में मरीज आने शुरू हो जाते हैं। महिलाओं का कहना है कि सुबह आठ बजे अस्पताल पहुंचने के लिए वे जल्दी-जल्दी घर का काम निपटाती हैं पर यहां आओ तो डॉक्टर ही नहीं मिलतीं। कर्मचारी आ भी जाते हैं तो उनके पास काम नहीं होता है। यही कारण है पर्चा बनवाने वाले काउंटर पर भी कोई बैठा नहीं मिलता। एक्सरे कक्ष सहित तमाम कमरों में ताला लटका रहता है। डॉक्टर तो दूर अस्पताल की कमान संभालने वाली सीएमएस तक समय पर अस्पताल नहीं पहुंचतीं, जबकि उन्हें अस्पताल परिसर में ही रहना चाहिए। प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) ने सभी अधिकारियों को नियमित निरीक्षण का आदेश दिया था, पर कोई कहीं निरीक्षण करने नहीं जाता।
नर्सिंग होम में सक्रिय रहती हैं डॉक्टर
आवास विकास कॉलोनी, उन्नाव निवासी साधना कहती हैं कि पिछले तीन दिनों से जिला महिला अस्पताल के चक्कर लगा रही हूं पर डॉक्टर नहीं मिलीं। पता चला है कुछ डॉक्टर लखनऊ तो कुछ कानपुर से आती हैं। वे सब वहां नर्सिंग होम्स में भी सक्रिय रहती हैं। वहां से फुर्सत मिलती है तो आ जाती हैं। अन्य मरीजों का दर्द भी यही है, पर कोई सुनने वाला नहीं है। सीएमएस भी समय पर नहीं आतीं कि उनसे शिकायत की जा सके।
जबरन भेजते नर्सिंग होम
महिला अस्पतालों में डॉक्टरों के न पहुंचने से परेशान महिलाएं जबरन नर्सिंग होम भेज दी जाती हैं। उन्नाव के आदर्श नगर निवासी रामरोशनी कहती हैं कि उनके घर के आसपास की महिलाएं अस्पताल आती हैं, डॉक्टर नहीं मिलतीं तो वे नर्सिंग होम चली जाती हैं। वे बोलीं, नर्सिंग होम बहुत महंगा है, इसलिए हम जैसों के पास कोई और सहारा नहीं है। ये डॉक्टर इसी का फायदा उठाती हैं।
तय करेंगे जवाबदेही
प्रदेश के परिवार कल्याण महानिदेशक डॉ. सत्यमित्र का कहना है कि तमाम महिला चिकित्सालयों में डॉक्टरों के समय पर न पहुंचने का मामला उनके संज्ञान में आया है। इस पर जवाबदेही तय करने के साथ कार्रवाई की जाएगी। इसके लिए जल्द ही प्रदेश के सभी महिला अस्पतालों की मुख्य चिकित्सा अधीक्षकों की बैठक बुलाई जाएगी। वे समय पर पहुंचेंगी तो अन्य डॉक्टर भी पहुंचने लगेंगी।

गलत दिशा में मुड़े ऑटो, तुरंत दबाएं इमरजेंसी बटन


- प्रदेश के सभी ऑटोरिक्शा में जरूरी होंगे जीपीएसयुक्त फेयर मीटर
- सात महानगरों की बसों में भी सीसीटीवी कैमरे लगाने का फैसला
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: आप देर शाम स्टेशन से उतरी हैं। घर के लिए ऑटो किया पर यह क्या? ऑटो तो जानबूझ कर गलत व सुनसान दिशा की ओर मुड़ गया। देखें, आपकी सीट के ऊपर एक इमरजेंसी बटन लगा होगा। उसे तुरंत दबाएं। कुछ ही देर में पुलिस आपके पास होगी। जी हां, परिवहन विभाग यात्रियों की सुरक्षा के लिए कुछ ऐसी ही पहल करने जा रहा है। प्रदेश के सभी ऑटोरिक्शा में इमरजेंसी बटन लगाना अनिवार्य करने की तैयारी है।
परिवहन विभाग ने सभी ऑटोरिक्शा में जीपीएस व जीपीआरएस सिस्टम लगाया जाना अनिवार्य करने का फैसला किया है। इसके अंतर्गत हर ऑटो में जीपीएस व जीपीआरएस सिस्टम लगाकर उसकी सतत मॉनीटरिंग की जाएगी। ऑटो चालक मनमानी वसूली न कर सकें, इसके लिए फेयर मीटर को जीपीएस व जीपीआरएस प्रणाली से जोड़ दिया जाएगा। हर ऑटो में एक इमरजेंसी बटन लगा होगा, जो जीपीएस प्रणाली के साथ केंद्रीय नियंत्रण कक्ष से जुड़ा होगा। जैसे ही इमरजेंसी बटन दबाया जाएगा, नियंत्रण कक्ष को पता चल जाएगा कि दिक्कत कहां पर है। तुरंत पुलिस को सूचना देकर जीपीएस के माध्यम से ऑटो की लोकेशन का पता कर वहां यात्री को सुरक्षा प्रदान की जाएगी। इससे महिलाएं सर्वाधिक सुरक्षा के साथ निश्चिंत होकर यात्रा कर सकेंगी।
इसके अलावा केंद्र सरकार ने प्रदेश के सात महानगरों में बसों को जीपीएस के साथ इमरजेंसी बटन और सीसीटीवी कैमरों से लैस करने की परियोजना को भी मंजूरी दे दी है। इसके अंतर्गत कानपुर, लखनऊ, गाजियाबाद, आगरा, वाराणसी, मेरठ व इलाहाबाद की बसों सहित सभी सार्वजनिक परिवहन वाहनों में जीपीएस व जीपीआरएस सिस्टम लगाया जाएगा। इस ट्रैकिंग सिस्टम के साथ वाहनों में इमरजेंसी बटन तो होगा ही, सीसीटीवी कैमरे भी लगेंगे। इन सब पर भी केंद्रीय नियंत्रण कक्ष के माध्यम से नजर रखी जाएगी। परिवहन आयुक्त के. रविंद्र नायक ने बताया कि इन दोनों परियोजनाओं पर अमल को प्रक्रियागत कार्रवाई शुरू हो गई है। इनके लिए कंसल्टेंट की नियुक्ति कर दी गयी है। कोशिश है कि मौजूदा वित्तीय वर्ष के अंत तक इस पर अमल कर दिया जाए।

Tuesday 20 September 2016

सीएमओ आना नहीं चाहते, डॉक्टर आते नहीं


-सरकारी आदेशों की खिल्ली उड़ा रहे चिकित्सा विभाग के अफसर
-सरकारी अस्पतालों में इलाज का इंतजार करने को मजबूर मरीज
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डॉ.संजीव, लखनऊ
सुबह के दस बजे हैं। उन्नाव के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) कार्यालय में सन्नाटा है। कुछ मरीज वहां सीएमओ साहब को दिखाने के लिए आए हैं किन्तु सीएमओ साहब ही नहीं आए। यह पूछने पर कि अब तो सीएमओ को भी मरीज देखने हैं, बताया गया कि सीएमओ साहब तो मरीज नहीं देखते आप जिला अस्पताल जाइये। जिला अस्पताल पहुंचे तो वहां भी सीएमओ या कोई अन्य अफसर नहीं दिखा।
यह हाल सिर्फ उन्नाव के सीएमओ का नहीं है। किसी भी जिले में सीएमओ मरीज नहीं देख रहे हैं। सीएमओ के जिम्मे न सिर्फ जिले की सेहत का जिम्मा है, बल्कि सभी सरकारी अस्पतालों में मरीज ठीक से देखे जाएं, उन्हें दवाएं मिलें, यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी है। पिछले दिनों स्वयं मुख्य सचिव ने निर्देश दिये थे कि सभी जिलों के सीएमओ स्वयं भी रोज मरीज देखेंगे, किन्तु ऐसा हो नहीं रहा है। सीएमओ की ढिलाई के कारण जिला अस्पतालों, सामुदायिक या प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में अधिकांश डॉक्टर समय पर नहीं पहुंचते। बाह्यï रोगी विभाग में मरीज देखने के लिए डॉक्टर को सुबह आठ बजे पहुंच जाना चाहिए। दूरस्थ इलाकों में तो कई बार सप्ताह में एक या दो दिन डॉक्टर जाते हैं, जिला अस्पतालों तक में डॉक्टर नहीं पहुंचते। एक जिला अस्पताल में हमने सुबह नौ बजकर दस मिनट पर हाजिरी रजिस्टर की फोटो खींची तो 33 में से 18 डॉक्टर गायब थे। जिला अस्पताल तो दूर राजधानी लखनऊ के सरोजनी नगर स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में सुबह सवा नौ बजे तक सभी डॉक्टर नहीं पहुंचे थे। इस दौरान मरीजों को सभी जगह इंतजार करना पड़ता है, किन्तु डॉक्टरों पर इसका कोई असर नहीं पड़ता। पूरे प्रदेश में डेंगू भयावह स्थिति में है किन्तु अस्पतालों में उसे लेकर चौकसी नहीं दिखती।
हमारे लिए नहीं आदेश
सीएमओ या डिप्टी सीएमओ इस आदेश का पालन तो कर ही नहीं रहे, बहाने भी गजब बनाते हैं। इस संबंध में उन्नाव के सीएमओ डॉ.बीएन श्रीवास्तव से पूछने पर उन्होंने कहा कि उनके लिए नहीं डिप्टी सीएमओ व एसीएमओ के लिए मरीज देखने का आदेश हुआ था। उनसे कहा गया है कि वे जिला अस्पताल में जाकर मरीज देखें। वैसे जिला अस्पताल में 11 बजे तक एक भी डिप्टी सीएमओ या एसीएमओ भी मरीज देखने नहीं पहुंचे थे।
वे आएं तो हो सुधार
जिला अस्पतालों में लगातार मरीजों की भीड़ बढ़ रही है। वहां के अधीक्षक चाहते हैं कि सीएमओ या अन्य अफसर यदि मरीज देखें तो स्थितियां सुधर सकती हैं। उन्नाव के जिला अस्पताल में एक ही नेत्र रोग विशेषज्ञ है, जबकि दो डिप्टी सीएमओ नेत्र विशेषज्ञ हैं। मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ.एसपी चौधरी कहते हैं कि यदि ये दोनों डिप्टी सीएमओ दो-दो दिन भी ओपीडी में बैठने लगें, तो स्थितियां सुधर जाएंगी।
सिफारिश से संबद्धता, फिर भी गायब
उन्नाव के सफीपुर स्थित स्वास्थ्य केंद्र में तैनात नाक, कान, गला रोग विशेषज्ञ ने एक विधायक से सिफारिश लगवाकर खुद को जिला अस्पताल से संबद्ध करवा लिया। इस कारण सफीपुर में डॉक्टर कम हो गए और वे स्वयं जिला अस्पताल समय पर नहीं पहुंचतीं। दरअसल महानगरों के आसपास जिलों में तैनात डॉक्टरों में से अधिकांश सपरिवार महानगरों में रहते हैं और इसका खामियाजा संबंधित जिलों के मरीजों को भुगतना पड़ता है।
बनाएंगे प्लान, होगी कार्रवाई
सभी सीएमओ, डिप्टी सीएमओ व अन्य अधिकारियों से नियमित रूप से मरीज देखने को कहा गया है। कुछ जिलों ने इसके प्लान भी भेजे हैं। इसके बावजूद जहां अधिकारी मरीज नहीं देख रहे हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इस पर सुनिश्चित अमल के लिए सभी जिलों से प्लान मांगा गया है, ताकि ओपीडी में उनकी ड्यूटी के बारे में शासन को भी पता रहे। -अरुण सिन्हा, प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य)

वाह सरकार! इलाज कर नहीं पा रहे, तोहमत विदेशियों पर

-स्वास्थ्य राज्य मंत्री ने कहा, बहुराष्ट्रीय कंपनियां फैला रहीं डेंगू की अफवाह
-सिर्फ तीन लोगों की मौत पर अटकी सरकार, निजी अस्पतालों पर आरोप
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: प्रदेश में डेंगू के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। लोग मर रहे हैं और सरकारी अस्पताल पूरा इलाज भी नहीं कर पा रहे हैं। इसके बावजूद स्वास्थ्य राज्यमंत्री ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर डेंगू की अफवाह फैलाने का आरोप लगाकर विदेशियों पर पूरी तोहमत लगा दी है।
सरकारी आंकड़ों में ही प्रदेश में डेंगू के तीन हजार के आसपास मरीज सामने आ चुके हैं। वास्तविक स्थिति इससे कहीं अधिक भयावह है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी ही नाम न छापने की शर्त पर स्वीकार करते हैं कि प्रदेश में दस हजार से अधिक लोगों को डेंगू हो चुका है। इससे दर्जनों लोगों की मौत हो चुकी है किन्तु स्वास्थ्य विभाग प्रदेश में सिर्फ तीन लोगों की मौत ही स्वीकार कर रहा है। शनिवार को स्वास्थ्य राज्य मंत्री शंख लाल मांझी ने तो हद ही कर दी। उन्होंने कहा कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने मार्केटिंग प्लान के तहत प्रदेश में डेंगू की अफवाहें फैला रही हैं। आरोप लगाया कि इन विदेशी कंपनियों को प्रदेश की जनता से कोई सरोकार नहीं है। वे केवल डेंगू किट की मांग बढ़ाने और धन उगाही के चक्कर में डेंगू फैलने की गलत सूचनाओं का प्रसार कर रही हैं। उन्होंने दावा किया कि इन कंपनियों व निजी अस्पतालों की मिलीभगत से डेंगू का भ्रमजाल फैलाया जा रहा है। सामान्य बुखार के मरीजों पर भी डेंगू की जांच का दबाव बनाकर मोटी रकम वसूली जा रही है। ये लोग लोगों को डरा रहे हैं, ताकि निजी अस्पताल इसका फायदा उठा सकें। उन्होंने जिला व मंडल स्तरीय अस्पतालों में इलाज के पूरे बंदोबस्त के निर्देश दिये गए हैं। जिला स्तर पर रैपिड रिस्पांस टीम भी बनाई गयी हैं।
(17/9/16)

बढ़ा घमासान तो सोशल मीडिया से दूर हुए सीएम

--छह दिन, तीन ट्वीट--
-सत्ता संग्र्राम ने घटाई ट्विटर व फेसबुक पर सक्रियता
-11 सितंबर से पहले औसतन रोज होते थे ट्वीट व अपडेट
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तकनीकी सक्रियता में खासे अव्वल रहते हैं। कई बार तो स्वयं फोटो खींच कर सोशल मीडिया पर अपडेट भी कर देते हैं। पिछले छह दिनों से चल रहे सत्ता संग्र्राम ने ट्विटर व फेसबुक पर उनकी सक्रियता घटा दी है। इस दौरान उन्होंने बस तीन ट्वीट किये। इससे साफ है कि घर में घमासान बढ़ा तो सीएम सोशल मीडिया से दूर हो गए।
हाइटेक सीएम के रूप में माने जाने वाले अखिलेश फेसबुक व ट्विटर पर खासे सक्रिय रहते हैं। ट्विटर पर वे स्वयं भले ही सिर्फ 14 लोगों को फॉलो करते हैं किन्तु उन्हें फॉलो करने वालों की संख्या 15 लाख के आसपास है। इसी तरह उनके फेसबुक पेज को 38 लाख से अधिक लोग लाइक्स मिल चुके हैं। अखिलेश स्वयं भी तमाम कार्यक्रमों में ट्विटर या फेसबुक के माध्यम से जुड़ाव की बात करते हैं। बीते सोमवार को उनके घर में घमासान बढ़ा तो वे ट्विटर व फेसबुक से भी दूर हो गए हैं। सोमवार, 12 सितंबर से इस सत्ता संग्र्राम की शुरुआत हुई थी। उस दिन से शनिवार, 17 सितंबर तक अखिलेश ने मात्र तीन ट्वीट किये हैं। इससे पहले मुख्यमंत्री औसतन रोज एक ट्वीट तो करते ही थे। सितंबर को ही आधार मानें तो एक व दो सितंबर को एक-एक, तीन सितंबर को तीन, चार सितंबर को एक, पांच व छह सितंबर को दो-दो, सात, आठ व नौ सितंबर को एक-एक ट्वीट किये। इसके बाद 11 सितंबर को मुख्यमंत्री ने दो ट्वीट किये और 12 को घमासान शुरू हो गया। इसके बाद उन्होंने 14 सितंबर को दो ट्वीट किये। इसमें से एक समाजवादी विकास रथ यात्रा की घोषणा संबंधी ट्वीट चर्चित भी हुआ। दरअसल एक दिन पहले उन्होंने अपने चाचा शिवपाल से पीडब्ल्यूडी सहित कई महत्वपूर्ण विभाग छीने थे और उसके बाद रथ यात्रा की घोषणा को उनकी संकल्प शक्ति से जोड़ा गया था। माना गया था कि वे विकास से विजय की ओर ट्वीट कर अपनी इच्छाशक्ति दर्शा रहे हैं। उसी दिन दूसरा ट्वीट उन्होंने आइएएस व आइएफएस के नए अफसरों के साथ बैठक से जुड़ा हुआ किया था। इसके बाद अखिलेश शुक्रवार को एक कार्यक्रम में खुल कर बोले थे और उस कार्यक्रम का चित्र ट्वीट किया था। ट्विटर के अलावा इस दौरान उनके फेसबुक अपडेट भी घटे हैं। पिछले छह दिनों में उनके फेसबुक पेज पर भी महज तीन अपडेट ही हुए हैं।
(17/9/16)

आयुर्वेद का विशेषज्ञ बनने को नहीं मिल रहे डॉक्टर

- निजी आयुर्वेदिक कालेजों में परास्नातक पढ़ाई को उत्साह नहीं
- 222 सीटों के लिए आए सिर्फ 198 आवेदन तो बढ़ाई परीक्षा तिथि
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: केंद्र से लेकर राज्य सरकारें भले ही आयुर्वेद को बढ़ावा देने की मशक्कत में जुटी हैं किन्तु प्रदेश में एक चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है। यहां निजी कालेजों में परास्नातक करने के लिए बीएएमएस किये हुए डॉक्टर ही नहीं मिल रहे हैं।
आयुर्वेद में एमडी उपाधि के लिए प्रदेश के लखनऊ व पीलीभीत स्थित सरकारी आयुर्वेदिक कालेजों में तीस सीटें हैं। इनके अलावा निजी कालेजों में एमडी की 222 सीटें हैं। इनमें प्रवेश के लिए परीक्षा कराने की जिम्मेदारी चिकित्सा शिक्षा विभाग के पास है। शासन आयुर्वेद निदेशालय के माध्यम से सरकारी व निजी कालेजों के लिए अलग-अलग परीक्षाएं कराकर काउंसिलिंग के माध्यम से आयुर्वेदिक कालेजों को सीटें आवंटित करता है। सरकारी कालेजों में प्रवेश के लिए तो बीएएमएस उत्तीर्ण विद्यार्थियों में उत्साह देखा जाता है, किन्तु निजी कालेजों में तो सीटों के बराबर आवेदन ढूंढऩा भी मुश्किल हो रहा है।
इस वर्ष भी सरकारी कालेजों की 30 सीटों के लिए 500 से अधिक आवेदन आए थे। ये सीटें भर भी गयीं। इस बीच निजी कालेजों के लिए चार सितंबर को प्रवेश परीक्षा कराने का फैसला हुआ था। इसके लिए आवेदन मांगे गए तो बीएएमएस विद्यार्थी पर्याप्त संख्या में सामने ही नहीं आए। 31 अगस्त तक महज 198 आवेदन आए तो अधिकारी परेशान हुआ। सीटों की संख्या के बराबर भी आवेदन न आने से परीक्षा तिथि आगे बढ़ानी पड़ी। अब परीक्षा 18 सितंबर को है और आवेदनों की संख्या बढ़कर 301 पहुंच गयी है। वैसे अधिकारी इसे भी पर्याप्त नहीं मान रहे हैं। पिछले साल भी 222 सीटों के लिए दो बार परीक्षा रद करने के बाद 274 आवेदन आए थे, जिनमें से महज 178 ने परीक्षा दी थी। इस बार भी सभी 298 आवेदक परीक्षा देंगे, इसमें संशय है। इसके बाद पचास फीसद अंक लाने की अनिवार्यता के कारण इसमें कितने सफल होंगे, इस पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। पिछले साल कुल 15 विद्यार्थी ही सफल हो सके थे। इस संबंध में आयुर्वेद निदेशक कुमुदलता श्रीवास्तव का कहना है कि कम अभ्यर्थियों के कारण परीक्षा तिथि बढ़ाई गयी थी। रविवार को राजधानी लखनऊ स्थित राजकीय आयुर्वेदिक कालेज में परीक्षा होगी। उसकी तैयारियां पूरी कर ली गयी हैं।
(17/9/16)

पिता के अपमान की टीस या बच्चा समझने का दर्द!

-पहले भी अमर ने सपा छोडऩे के बाद दिये थे गंभीर बयान
-मुलायम सिंह यादव को झूठा, जोकर व धृतराष्ट्र तक कहा था
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : समाजवादी परिवार में चल रहे घमासान के बीच बाहरी करार दिये गए अमर सिंह यूं ही निशाने पर नहीं हैं। दरअसल मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को बच्चा बताने वाले अमर सिंह साढ़े छह साल पहले समाजवादी पार्टी से निकाले जाने के बाद मुख्यमंत्री के पिता व सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव को झूठा, जोकर व धृतराष्ट्र तक कह चुके हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री को बच्चा समझने वाले अमर पर सधे निशाने को पिता के अपमान की टीस भी माना जा रहा है।
दो फरवरी 2010 को समाजवादी पार्टी से निकाले जाने के बाद अमर सिंह ने कई साल तक समूचे सपा नेतृत्व को जमकर कोसा था। इसके बाद भी उन्होंने बार-बार मुलायम को कोसा। कभी सार्वजनिक बयान देकर, कभी ब्लॉग में लिखकर उन्होंने चुभने वाली बातें कहीं। एक बार तो खुद एकलव्य बताकर लिखा, मैं मुलायम के लिए एकलव्य बनकर संतुष्ट हूं, पर एकलव्य की तरह अपना अंगूठा उन्हें नहीं दूंगा। अमर सिंह ने मुलायम सिंह के पुत्रप्रेम पर कटाक्ष करते हुए उन्हें धृतराष्ट्र तक कह डाला था। सवा छह साल बाद वे वापस पार्टी में आए तो बहुत दिन तक मौन नहीं रह सके। उन्होंने अखिलेश पर हमले किये और यहां तक कह दिया कि अखिलेश सरकार और मायावती सरकार में कोई अंतर नहीं है। इसके बाद उन्होंने राज्यसभा में बोलने का मौका न मिलने का विरोध किया, वहीं कई बार मुख्यमंत्री को बच्चा करार दिया। कभी मुलायम की सूरत तक न देखने का एलान करने वाले अमर ने खुद को मुलायमवादी बताया तो सपा महासचिव राम गोपाल यादव ने यह कहकर उन्हें निशाने पर लिया कि जो समाजवादी नहीं हो सकता, वह मुलायमवादी कैसे हो सकता है? उन पर परिवार तोडऩे के आरोप लगे और मुख्यमंत्री ने स्वयं उन्हें बाहरी करार दिया था। पिछले दिनों अमर ने मुख्यमंत्री पर न मिलने का आरोप लगाया तो मुख्यमंत्री ने कटाक्ष भरा जवाब दिया कि मिलते ही रहेंगे तो विकास कब करेंगे।
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विवादों भरे दस बयान
21 मार्च 2010 : मुलायम सिंह या तो लोहियावादी नहीं हैं या फिर अपने स्वार्थी मुलायमवाद का सफेद झूठ लोहिया जी पर मढऩा चाहते हैं। ऐसा लगता है कि सारी नेतृत्व क्षमता, गुणवत्ता सिर्फ एक ही परिवार में है। मेरी गलती थी कि मैंने 14 साल से हो रही इस धांधली को नहीं देखा। (अपने ब्लॉग में)
11 मई 2010: मैं मुलायम सिंह का दर्जी और कूड़ेदान रहा हूं। उनकी गलत-सलत नीतियों को नैतिकता का कपड़ा सिलकर संवारने का मैं 14 साल का अपराधी हूं, लेकिन लेकिन दल की गलतियों का श्रेय लेने वाला कूड़ेदान अब मैं नहीं रहा। (अपने ब्लॉग में)
23 अक्टूबर 2010: मुलायम सिंह यादव ने लोहिया के सिद्धांतों की बलि चढ़ा दी है। लोहिया ने कभी भाई-भतीजावाद को बढ़ावा नहीं दिया। मुलायम इसी को बढ़ावा दे रहे हैं। समाजवादी पार्टी में सिर्फ दो अपवाद थे। एक जनेश्वर मिश्र और दूसरे अमर सिंह। एक को रामजी खा गए तो दूसरे को रामगोपाल। (लखनऊ)
5 दिसंबर 2010: मैं बोल दूंगा तो मुलायम सिंह मुश्किल में पड़ जाएंगे। मेरा मुंह खुला तो सपा के कई नेता जेल पहुंच जाएंगे और मुलायम सिंह को जेल की चक्की पीसनी पड़ेगी। (भदोही)
15 जनवरी 2011: मुलायम सिंह की सूरत देखने से पहले मैं पोटेशियम साइनाइड खाकर जान दे दूंगा। मैंने दलाली करके मुलायम की सरकार बनवाई, फिर भी उन्होंने अपने लोगों से मुझे बेशर्म कहलवाया। (आगरा)
25 जनवरी 2012: मैं अब मुलायम सिंह यादव या समाजवादी पार्टी का नौकर नहीं हूं। मुझे उनके तमाम राज मालूम हैं, जिन्हें न तो मैंने उजागर किया है, न कभी करूंगा। (लखनऊ)
21 फरवरी 2012: यूपी के भ्रष्टाचार में मुख्यमंत्री मायावती और मुलायम सिंह यादव दोनों साझीदार हैं। मुलायम सिंह एक पहिए की साइकिल चलाने वाले जोकर हैं। (लखनऊ)
12 अप्रैल 2012: मुलायम सिंह ने बलात्कार पर बयान दिया है कि लड़के हैं, मन मचल जाता है। ऐसा लगता है कि मुलायम सिंह का वश चले तो रेप को भी जायज कर दें। (आगरा)
5 अगस्त 2013: मुलायम सिंह यादव धृतराष्ट्र हो गए हैं। वे भूल जाते हैं कि वे राजा नहीं, जनता के नौकर हैं। (नई दिल्ली)
22 अगस्त 2016: अखिलेश यादव फोन पर नहीं आते। अखिलेश सरकार में भी वही लोग ऐश कर रहे हैं, जो मायावती के राज में ऐश कर रहे थे। राज्यसभा में हमको मूकबधिर बना दिया गया है। (नई दिल्ली)
(15/9/16)

क्यूं भई चाचा! हां भतीजा!!

-सोशल मीडिया पर छाई, चाचा-भतीजा की लड़ाई
-हैशटैग चाचावर्सेजभतीजा व यादवपरिवार हुए ट्रेंड
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: सूबे का सत्ता संग्र्राम सोशल मीडिया पर चाचा-भतीजे की लड़ाई के रूप में छाया रहा। हैशटैग चाचावर्सेजभतीजा और यादवपरिवार संग कटाक्ष किये गए।
चाचा-भतीजा की लड़ाई को 1977 में आई मनमोहन देसाई की फिल्म चाचा-भतीजा से भी जोड़ा गया। धर्मेन्द्र और रणधीर कपूर अभिनीत इस फिल्म का एक गीत बुरे काम का बुरा नतीजा, क्यूं भई चाचा हां भतीजा खूब चर्चित हुआ था। समाजवादी परिवार में चल रहे घमासान को सोशल मीडिया में सक्रिय लोगों ने चाचा-भतीजा के बीच विवाद का नाम देकर इस फिल्म का उदाहरण भी दिया। रणधीर कपूर व धर्मेन्द्र की फोटो के साथ शिवपाल व अखिलेश की फोटो लगाकर लिखा गया, और एक ये चाचा भतीजा हैं। ट्विटर पर कोई इसे ब्रांड अखिलेश से जोड़ रहा था, तो किसी ने हिस्ट्री इन द मेकिंग बताकर लिखा कि मुलायम अब अपने बेटे को निर्विवाद नेता बना देना चाहते हैं। एक ट्वीट में इस पूरे घटनाक्रम को बुरे काम का बुरा नतीजा करार दिया गया, वहीं अखिलेश समर्थक उन्हें क्लीन इमेज वाला बताते भी दिखे। फेसबुक व ट्विटर पर तमाम लोग इस लड़ाई को कांग्र्रेस व भाजपा के लिए फायदेमंद बताते हुए दिखे। किसी ने कहा कि चाचा-भतीजा मंत्रालय व विभागों के लिए लड़ रहे हैं, साम्प्रदायिक भाजपा से लडऩे की फुर्सत किसी को नहीं है, ऐसे में कांग्र्रेस का ही फायदा होगी। एक अन्य अपडेट में यूपी मांगे भाजपा सरकार के साथ लिखा गया कि चाचा-भतीजा आपस में लड़कर यूपी को पीछे ढकेल रहे हैं। ट्विटर पर कुछ देर के लिए हैशटैग अमर सिंह भी ट्रेंड किया। लोगों ने अमर सिंह को ब्रोकर व फैमिली ब्रेकर तक बता दिया। एक अन्य हैशटैग यादवपरिवार भी खूब ट्रेंड किया। किसी ने ओमशांतिओम लिखकर शांति की अपील की, तो किसी ने लिखा, पूरा कुनबा चिडिय़ा उड़ खेल रहा है।
(14/9/16)

सन्नाटे में गूंजी फरियादें, विपक्ष ले रहा चटखारे

-राजनीतिक दलों के दफ्तरों में रही सूबे के सत्ता संघर्ष की गूंज
-पारिवारिक समाजवाद पर अटकलों संग नए समीकरणों के कयास
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: दोपहर के ढाई बजे हैं। सामान्य दिनों में गुलजार रहने वाला समाजवादी पार्टी कार्यालय आज शांत सा है। कमरों में ताला पड़ा है और फरियादी भटक रहे हैं। जब इन फरियादियों की आवाजें सन्नाटा तोडऩे लगीं तो उन्हें इकट्ठा कर शिकायतें सहेज ली गयीं और फिर सन्नाटा कायम हो गया।
बुधवार को सपा कार्यालयमें सन्नाटे सा आलम था तो अन्य दलों के प्रदेश कार्यालयों में समाजवादी परिवार के संघर्ष की गूंज होती रही। दरअसल सूबे का सत्ता संघर्ष सभी राजनीतिक दिलों के विमर्श का बड़ा बिन्दु बना हुआ है। कांग्र्रेस, भाजपा व बसपा के प्रदेश मुख्यालयों में चटखारे लेकर चर्चा करते हुए इस पूरे विवाद को पारिवारिक समाजवाद का नाम दिया गया। ये लोग इस संघर्ष के परिणाम को लेकर अटकलें लगाने के साथ समीकरणों में बदलाव पर भी चर्चा करते रहे।
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...नेताजी सब ठीक कर देंगे
समाजवादी पार्टी के प्रदेश कार्यालय में सुबह से सन्नाटे का आलम था। यहां सामान्य रूप से पहुंचने वाले फरियादी तो थे ही, मुख्यमंत्री निवास से निराश फरियादी भी वहां पहुंच गये थे। कार्यालय में अगल-बगल के कमरों में राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के साथ प्रदेश अध्यक्ष के रूप में अखिलेश यादव और लोकनिर्माण मंत्री के रूप में शिवपाल सिंह यादव की नाम पट्टिकाएं लगी थीं। लोग इन कमरों के पास आते, झांकते और फिर बारामदे में ही इंतजार करने लगते। जब बहुत देर हो गयी और कोई नहीं आया, तो फरियादी कुछ शोर करने लगे। दफ्तर के बाहर मीडिया की ओवी वैन लाइन प्रसारण में लगी थीं, इसलिए वहां मौजूद कर्मचारी भी सक्रिय हो गए। आनन फानन में विधायक एसआरएस यादव को बुलाया गया। वे सभी फरियादियों को कांफ्रेंस हॉल में ले गए, वहां उनकी शिकायतों के आवेदन लिये और बिना बोले ही चले आए। इस बीच कुछ कार्यकर्ता आए, तो वे उनसे भी मुखातिब नहीं हुए। किसी ने पूछा, यह सब क्या हो रहा है.... तो आवाज आयी, 'चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा। नेताजी सब ठीक कर देंगेÓ।
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...बेअसर होगा यह नाटक
बहुजन समाज पार्टी कार्यालय के गेट में प्रवेश करते ही नीला कुर्ता पहने अकबरपुर के रामप्रवेश मिलते हैं। उनके साथ कुछ और कार्यकर्ता आए हैं। यहां बहुत भीड़ तो नहीं है किन्तु जो कार्यकर्ता हैं वे उत्साहित हैं। यहां भी चर्चा सूबे के सत्ता संघर्ष को लेकर ही हो रही है। कार्यकर्ता कहते हैं कि बहनजी के बढ़ते प्रभाव को देखते हुई समाजवादी पार्टी ने यह नाटक किया है। एक कार्यकर्ता बोला, इससे कोई फायदा नहीं होना है। यह नाटक बेअसर होगा और अबकी सरकार तो बहनजी ही बनाएंगी।
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...पुत्रमोह सबसे खतरनाक
कांग्र्रेस कार्यालय में अल्पसंख्यक विभाग के संयोजक सिराज मेंहदी व मीडिया विभाग के संयोजक सत्यदेव त्रिपाठी के कमरों में पंचायत चल रही है। एक नेता बोले, अरे सब मुलायम का प्लान्ड प्रोग्र्राम है। वे अखिलेश को साफ-सुथरा और बहुत बड़ा कर देना चाहते हैं। इस बीच दूसरे नेता बोले, जनता सब समझ रही है, इसका कोई असर नहीं होगा। चर्चा क्षेत्रीय व राष्ट्रीय दलों तक पहुंच जाती है। एक आवाज आयी, राष्ट्रीय दलों में ऐसी कोई गड़बड़ी नहीं होती, अब जनता को क्षेत्रीय दलों का दुष्परिणाम समझ में आ रहा होगा। इसका फायदा कांग्र्रेस को होगा और लोग हमसे जुड़ेंगे। अचानक एक नेता उठे और बोले, देखो, सब इतना आसान नहीं है। पुत्रमोह सबसे खतरनाक होता है और यहां भी यही दिख रहा है।
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...विषय से न भटकेगी जनता
भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश मुख्यालय में मुख्यालय प्रभारी भारत दीक्षित के कमरे में कुछ नेता बैठे हैं। यहां भी चर्चा में सूबे का सत्ता संग्र्राम ही है। एक संगठन मंत्री कहते हैं, सब तरफ से निराश होकर सपा ने नयी चाल चली है। यहां तो कोई इसे स्वाभाविक संघर्ष ही नहीं मान रहा। एक नेता बोले, सब स्क्रिप्टेड (पहले से तैयार पटकथा का हिस्सा) है। एक आवाज आयी, भाजपा की मेहनत व बदलते माहौल से जनता का ध्यान बांटने की कोशिश हो रही है। चर्चा चलती रही और बार-बार निष्कर्ष निकलता रहा, अखिलेश की इमेज ब्रांडिंग के लिए हो रहा है यह सब, पर इस बार जनता विषय से न भटकेगी। 

कहते रहें मुख्यमंत्री, मानेंगे नहीं डॉक्टर

-मुख्यमंत्री की सख्ती के बाद भी अफसर सिर्फ तीन मौतों पर अड़े
-सरकारी आंकड़ों में 1999 पहुंची डेंगू के शिकार लोगों की संख्या
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: मुख्यमंत्री अखिलेश यादव डेंगू को लेकर सख्त हैं। प्रमुख सचिव अरुण सिन्हा बार-बार मुख्य चिकित्सा अधिकारियों (सीएमओ) को चेतावनी दे रहे हैं। मुख्यमंत्री की सख्ती और प्रमुख सचिव की चेतावनी अफसरों पर कोई असर नहीं कर रही है। वे चाहे जितना कहते रहें, डॉक्टर मानने को तैयार नहीं हैं। हालात ये हैं कि डेंगू से दर्जनों लोगों की मौत हो चुकी है किन्तु अफसर सिर्फ तीन लोगों की ही डेंगू से मृत्यु होने पर अड़े हैं।
पूरे प्रदेश में डेंगू भयावह रूप से फैल रहा है। विधानसभा में इस मसले पर खासा हंगामा हो चुका है। शुक्रवार को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने स्वयं सभी जिलाधिकारियों को डेंगू से निपटने के निर्देश दिये थे। प्रमुख सचिव ने दस लापरवाह सीएमओ चिह्नित कर उनके खिलाफ कार्रवाई तक की बात कही। इसके बावजूद सीएमओ अपनी मनमानी अड़े हुए हैं। मोहल्ले-मोहल्ले लोग डेंगू से मर रहे हैं। एसजीपीजीआइ, केजीएमयू सहित राजकीय मेडिकल कालेजों से लोगों को डेंगू से हुई मौत के 'डेथ सर्टिफिकेटÓ मिल रहे हैं। इसके बावजूद स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े सिर्फ तीन मौतों की बात कह रहे हैं। शनिवार को स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी आंकड़ों में डेंगू से प्रदेश में 1999 लोगों के प्रभावित होने की बात तो कही गयी किन्तु इस घातक ज्वर से अब तक केवल तीन लोगों की मृत्यु होने का दावा भी किया गया।
डेंगू को लेकर अफसरों की संवेदनहीनता का आलम यह है कि स्वास्थ्य महानिदेशक इस मसले पर कुछ भी बोलते ही नहीं हैं। स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी का कहना था कि सीएमओ पूरी मनमानी कर रहे हैं। प्रमुख सचिव सहित अन्य अफसर उनकी गल्तियां पकड़ भी रहे हैं किन्तु अब तक एक भी सीएमओ के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है। इस कारण वे अराजक होते जा रहे हैं और उनकी अराजकता का खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है। इस संबंध में प्रमुख सचिव सीएमओ को निर्देश जारी करने की बात जरूरत कहते हैं। उनका कहना है कि सभी सरकारी अस्पतालों में मरीजों का इलाज हो रहा है। इलाज में किसी भी प्रकार की कमी न हो, इसके लिए अस्पतालों में पूरी व्यवस्था चाक चौबंद रखने के निर्देश सभी मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को दिये गए हैं।
इंसेफेलाइटिस से 287 की मौत
सूबे में डेंगू का कहर तो है ही, तमाम दावों के बावजूद इंसेफेलाइटिस भी मुसीबत बना हुआ है। अब तक इंसेफेलाइटिस 287 लोगों की मौत हो चुकी है। इसमें जापानी इंसेफेलाइटिस के 160 मरीज सामने आए, जिनमें से 25 की जान चली गयी। एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से 1723 लोग प्रभावित हुए, जिनमें से 262 की जान गयी। इनके अलावा कालाजेर के 72 व चिकुनगुनिया के 107 मरीज सामने आ चुके हैं।
(10/9/16)

हर जिले में इनोवेशन सेंटर खोलेंगे रोजगार की राह

-प्राविधिक शिक्षा विभाग ने बनाई विस्तृत कार्ययोजना
-कैबिनेट की मंजूरी लेकर इसी साल अमल की तैयारी
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: प्राविधिक शिक्षा विभाग सूबे के हर जिले में इनोवेशन सेंटर खोलने की पहल कर रहा है। इसके लिए कार्ययोजना बन गयी है और जल्द ही कैबिनेट के समक्ष लाकर इस पर इसी साल अमल सुनिश्चित किया जाएगा।
प्राविधिक शिक्षा परिषद ने हाल ही में प्रदेश स्तर पर इनोवेशन एवं इन्क्यूबेशन कार्यक्रम की शुरुआत की है। इसके लिए कानपुर, लखनऊ व गोरखपुर में चार इनोवेशन व इन्क्यूबेशन सेंटर बनाए गए हैं। गोरखपुर के मदन मोहन मालवीय प्राविधिक विश्वविद्यालय व कानपुर के हरकोर्ट बटलर प्राविधिक विश्वविद्यालय के साथ कानपुर के ही उत्तर प्रदेश टेक्सटाइल टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट और लखनऊ के इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी में स्थापित इन इनोवेशन एवं इन्क्यूबेशन सेंटर्स से सूबे के सभी प्राइवेट व निजी इंजीनियरिंग कालेजों के साथ पॉलीटेक्निक संस्थानों को भी जोड़ा गया है। अभी इन संस्थानों के छात्र-छात्राओं को किसी एक केंद्र पर जाकर वहां शोध व विकास की गतिविधियों से जुडऩे की रणनीति अपनाई जाती है। प्राविधिक शिक्षा विभाग ने अब जिला स्तर पर इनोवेशन सेंटर खोलकर रचनाधर्मिता को अधिक अवसर देने का प्रस्ताव किया है। इसके लिए व्यापक प्रस्ताव बना लिया गया है। प्रस्ताव के मुताबिक जिन जिलों में राजकीय इंजीनियरिंग कालेज हैं, वहां तो इंजीनियरिंग कालेज में ही इनोवेशन सेंटर की स्थापना की जाएगी। शेष जिलों में राजकीय पॉलीटेक्निक में इनोवेशन सेंटर स्थापित किये जाएंगे। अधिकारियों के मुताबिक प्रस्ताव को शासन स्तर पर मंजूरी मिल चुकी है। जल्द ही कैबिनेट से मंजूरी लेकर इसी साल इस प्रस्ताव पर अमल भी किया जाएगा। इन केंद्रों से न सिर्फ विकास की दिशा बदलेगी, बल्कि रोजगार की राह भी खुलेगी।
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चार सूत्रों में बंधा लक्ष्य
-लघ  एवं मध्यम श्रेणी के उद्योगों में उत्पादकता बढ़ाने के साथ उद्योगों व अन्य संस्थाओं को परीक्षण सुविधा उपलब्ध कराना
-नवीनतम तकनीक व व्यवसायिक विचारों का वास्तविक उत्पाद व सेवाओं में परिवर्तन और नव उत्पाद का पूरा परीक्षण
-कृषि विज्ञान, सेवाओं, तकनीकी आदि में नवीनतम अन्वेषण को बढ़ावा देने के साथ उस पर अमल सुनिश्चित करना
-शिल्पकारों, बुनकरों, काश्तकारों, बढ़ाई, कुम्हार आदि के लिए वाणिज्यिक रूप से व्यावहारिक उत्पादों का विकास करना
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होंगे  ऐसे काम
-स्मार्ट मैट्रेस, पीजोइलेक्ट्रिक सॉक्स, टिटिवेटिंग टेक्सटाइल्स उत्पादन
-ग्र्रामीण व शहरी इलाकों के लिए कम लागात वाले आवास निर्माण
-खेती के लिए कम कीमत वाली कटाई व जुताई मशीन का विकास
-ऊर्जा उत्पादन के गैरपरंपरागत स्रोतों का विकास कर अमल में लाना
-अस्पताली कचरा निस्तारण के लिए पर्यावरण मित्र मशीनों का निर्माण
(10/9/16)

बाढ़ व लेखपालों की हड़ताल ने बढ़वाई छात्रवृत्ति आवेदन तिथि

--शुल्क प्रतिपूर्ति--
-11वीं व 12वीं के विद्यार्थी 15 सितंबर तक कर सकेंगे आवेदन
-अन्य छात्र-छात्राओं के लिए 30 सितंबर की गयी अंतिम तिथि
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: प्रदेश के कई इलाकों में आयी बाढ़ व लेखपालों की हड़ताल ने छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति योजना की आवेदन तिथि बढ़वा दी है। अब 11वीं व 12वीं के विद्यार्थियों के लिए 15 सितंबर और अन्य के लिए 30 सितंबर अंतिम तिथि कर दी गयी है।
मेधावी छात्र-छात्राओं को धनाभाव में पढ़ाई से वंचित न होने देने के लिए छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति योजना का संचालन होता है। इस बाबत घोषित समय सारिणी में छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति के लिए 31 अगस्त तक आवेदन करना था। इस बीच प्रदेश में कई जिलों में बाढ़ आने से लोग फार्म नहीं भर पाए। विद्यार्थियों का कहना था कि बाढ़ के कारण इंटरनेट कनेक्टिविटी नहीं मिल रही थी। इसी तरह पिछले कई दिनों से लेखपालों की हड़ताल के कारण जाति व आय प्रमाणपत्र बनने में बाधा आ रही थी। पिछले दिनों विधानसभा में भी यह मुद्दा उठा था। इसके बाद शासन ने आवेदन तिथि बढ़ाने का फैसला किया।
इस बाबत जारी शासनादेश में कक्षा 11 व 12 में पढ़ रहे छात्र-छात्राओं के लिए ऑनलाइन आवेदन तिथि बढ़ाकर 15 सितंबर कर दी गयी है। अन्य सभी पाठ्यक्रमों के विद्यार्थी 30 सितंबर तक आवेदन कर सकेंगे। इसके अलावा छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति योजना का लाभ उठाने के लिए संस्थानों को मास्टर डेटा में नाम दर्ज कराने की तिथि भी बढ़ा दी गयी है। पहले मास्टर डेटा में नाम दर्ज करने की अंतिम तिथि 15 जुलाई थी। संस्था स्तर पर डिजिटल सिग्नेचर करने में विलंब सहित कई समस्याएं बताने पर पहले 31 जुलाई, फिर 31 अगस्त तक का समय दिया गया था। अब मास्टर डेटा में शामिल होने के लिए आवेदन सभी प्रविष्टियां पूर्ण करने की तिथि 15 सितंबर करने के साथ ही अंतिम बार बदलाव की बात कही गयी है। पूरी प्रक्रिया के बाद छात्र-छात्राओं के खाते में छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति की राशि हर हाल में 31 दिसंबर तक पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। (9/9/2016)

Saturday 10 September 2016

बाढ़ व लेखपालों की हड़ताल ने बढ़वाई छात्रवृत्ति आवेदन तिथि

--शुल्क प्रतिपूर्ति--
-11वीं व 12वीं के विद्यार्थी 15 सितंबर तक कर सकेंगे आवेदन
-अन्य छात्र-छात्राओं के लिए 30 सितंबर की गयी अंतिम तिथि
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: प्रदेश के कई इलाकों में आयी बाढ़ व लेखपालों की हड़ताल ने छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति योजना की आवेदन तिथि बढ़वा दी है। अब 11वीं व 12वीं के विद्यार्थियों के लिए 15 सितंबर और अन्य के लिए 30 सितंबर अंतिम तिथि कर दी गयी है।
मेधावी छात्र-छात्राओं को धनाभाव में पढ़ाई से वंचित न होने देने के लिए छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति योजना का संचालन होता है। इस बाबत घोषित समय सारिणी में छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति के लिए 31 अगस्त तक आवेदन करना था। इस बीच प्रदेश में कई जिलों में बाढ़ आने से लोग फार्म नहीं भर पाए। विद्यार्थियों का कहना था कि बाढ़ के कारण इंटरनेट कनेक्टिविटी नहीं मिल रही थी। इसी तरह पिछले कई दिनों से लेखपालों की हड़ताल के कारण जाति व आय प्रमाणपत्र बनने में बाधा आ रही थी। पिछले दिनों विधानसभा में भी यह मुद्दा उठा था। इसके बाद शासन ने आवेदन तिथि बढ़ाने का फैसला किया।
इस बाबत जारी शासनादेश में कक्षा 11 व 12 में पढ़ रहे छात्र-छात्राओं के लिए ऑनलाइन आवेदन तिथि बढ़ाकर 15 सितंबर कर दी गयी है। अन्य सभी पाठ्यक्रमों के विद्यार्थी 30 सितंबर तक आवेदन कर सकेंगे। इसके अलावा छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति योजना का लाभ उठाने के लिए संस्थानों को मास्टर डेटा में नाम दर्ज कराने की तिथि भी बढ़ा दी गयी है। पहले मास्टर डेटा में नाम दर्ज करने की अंतिम तिथि 15 जुलाई थी। संस्था स्तर पर डिजिटल सिग्नेचर करने में विलंब सहित कई समस्याएं बताने पर पहले 31 जुलाई, फिर 31 अगस्त तक का समय दिया गया था। अब मास्टर डेटा में शामिल होने के लिए आवेदन सभी प्रविष्टियां पूर्ण करने की तिथि 15 सितंबर करने के साथ ही अंतिम बार बदलाव की बात कही गयी है। पूरी प्रक्रिया के बाद छात्र-छात्राओं के खाते में छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति की राशि हर हाल में 31 दिसंबर तक पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। 

पॉलीटेक्निक के अनुत्तीर्ण विद्यार्थियों को कम फीस

-फेल होने पर दोबारा नियमित प्रवेश, 10,700 रुपये होगी फीस
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: प्रदेश की पॉलीटेक्निक संस्थाओं में अनुत्तीर्ण हो जाने वाले विद्यार्थियों को शुल्क में छूट देने का फैसला हुआ है। अनुत्तीर्ण होने की स्थिति में दोबारा प्रवेश लेने वालों को अब कम फीस देनी होगी।
पॉलीटेक्निक में किसी भी डिप्लोमा पाठ्यक्रम में पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों को फेल हो जाने पर अभी पूरी फीस भरनी पड़ती है। प्राविधिक शिक्षा विभाग ने अब इसमें बदलाव का फैसला किया है। प्रमुख सचिव (प्राविधिक शिक्षा) मोनिका एस गर्ग ने बताया कि अनुत्तीर्ण विद्यार्थियों से अनुदानित संस्थानों में 17,500 रुपये वार्षिक शुल्क के स्थान पर 10,170 रुपये ही लिये जाएंगे। इसी प्रकार निजी क्षेत्र की पॉलीटेक्निक संस्थाओं में अभी तीन वर्षीय पाठ्यक्रमों में 28 हजार, दो व एक वर्षीय पाठ्यक्रमों में 20 हजार और स्ववित्तपोषित पाठ्यक्रमों में 21 हजार रुपये शुल्क लिया जाता है। अनुत्तीर्ण होने की स्थिति में दोबारा प्रवेश लेने पर यह शुल्क 10,700 रुपये हो जाएगा। यह रियायत केवल अनुत्तीर्ण छात्र-छात्राओं के पुन: नियमित प्रवेश के मामले में ही प्रभावी होगी।
सेमेस्टर प्रणाली लागू
प्रमुख सचिव ने बताया कि सभी पॉलीटेक्निक संस्थानों में शैक्षिक सत्र 2016-17 से सेमेस्टर प्रणाली लागू करने का फैसला हो चुका है। ऐसे में पिछले वर्ष वार्षिक परीक्षा प्रणाली में प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों को अनुत्तीर्ण होने की स्थिति में इस बार सेमेस्टर प्रणाली में ही पुन: नियमित प्रवेश दिया जाएगा। पहले फेल छात्र सीधे वार्षिक परीक्षा में शामिल हो जाते थे, इस बार ऐसे नहीं हो सकेगा।

मानक बदले तो नहीं मिल रहे फार्मासिस्ट

-कमी से खाली पड़ीं पांच सौ से अधिक होम्योपैथी डिस्पेंसरी
-लोकसेवा आयोग से मांगे छह सौ, मिले 342, नियुक्त हुए 110
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: होम्योपैथी विभाग की डिस्पेंसरी में फार्मासिस्ट तैनाती के मानक बदले तो अब प्रशिक्षित फार्मासिस्ट ही नहीं मिल रहे हैं। उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग से विभाग ने छह सौ फार्मासिस्ट मांगे थे, जिनकी जगह बमुश्किल तीन सौ ही मिल सके हैं।
प्रदेश में की हर होम्योपैथी डिस्पेंसरी में तैनाती के लिए 1575 फार्मासिस्ट के पद सृजित हैं। इसके विपरीत महज नौ सौ फार्मासिस्ट ही डिस्पेंसरी में तैनात हैं। कुछ फार्मासिस्टों की ड्यूटी दो-दो डिस्पेंसरी में लगाई गयी है। इसके बावजूद पांच सौ से अधिक डिस्पेंसरी ऐसी हैं, जिनमें फार्मासिस्ट हैं ही नहीं। होम्योपैथी विभाग ने दो साल पहले उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग को पिछले साल 650 फार्मासिस्ट के लिए अधियाचन भेजा था। आयोग ने 342 फार्मासिस्टों का चयन कर होम्योपैथी निदेशालय को सौंप दिये हैं, जिनमें से 110 की नियुक्ति भी हो चुकी है। शेष 232 फार्मासिस्ट की नियुक्ति की प्रक्रिया चल रही है। ऐसे में नियुक्ति के बावजूद होम्योपैथी डिस्पेंसरी खाली ही रहेंगी।
विभाग द्वारा 650 फार्मासिस्ट का अधियाचन भेजने के बाद सिर्फ 342 फार्मासिस्टों के चयन के पीछे दरअसल योग्य अभ्यर्थियों का न मिलना बड़ा कारण है। इससे पहले 2009 में भी अधियाचन भेजा गया था। तब आयोग ने आवेदन मांगे तो 39 हजार से अधिक लोगों ने आवेदन किया था। उन पर विचार होता, इस बीच राज्य सरकार ने होम्योपैथी फार्मासिस्ट के लिए न्यूनतम योग्यता बदल दी। पहले जीव विज्ञान संवर्ग में बारहवीं करने वालों को सीधे होम्योपैथी फार्मासिस्ट के रूप में नियुक्ति मिल जाती थी। उन्हें विभागीय स्तर पर दवाओं आदि की जानकारी देते हुए प्रशिक्षण दिया जाता था। इस बीच शासन स्तर पर होम्योपैथी फार्मासिस्ट की नियुक्ति के लिए न्यूनतम योग्यता होम्योपैथी फार्मेसी में डिप्लोमा होना कर दी गयी। प्रदेश के एक भी सरकारी होम्योपैथी कालेज में यह पाठ्यक्रम चल नहीं रहा है। कुछ निजी होम्योपैथी कालेजों में यह पाठ्यक्रम चल रहा है किन्तु उनसे पर्याप्त संख्या में विद्यार्थी निकल ही नहीं पा रहे हैं। इस संबंध में होम्योपैथी निदेशक डॉ.विक्रमा प्रसाद ने बताया कि फार्मासिस्ट में डिप्लोमा अनिवार्य कर उनका स्तर सुधारा गया है। इससे प्रदेश की पूरी होम्योपैथी चिकित्सा पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। जल्द ही सभी पदों पर नियुक्ति भी हो जाएगी।

Saturday 3 September 2016

डॉक्टर को बेटी पैदा हुई तो पति ने मांगा तलाक


-ससुर ने किया अल्ट्रासाउंड, पति व सास ने कहा एबॉर्शन कराओ
-डॉक्टर सास-ससुर को मेडिकल काउंसिल ने किया निलंबित
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: बेटी बचाने को लेकर चल रहे देशव्यापी अभियान के बीच एक डॉक्टर को बेटी पैदा हुई तो पति ने तलाक मांग लिया। यह स्थिति तब, जबकि उक्त डॉक्टर के सास-ससुर भी डॉक्टर हैं। पीडि़त डॉक्टर ने उत्तर प्रदेश मेडिकल काउंसिल में शिकायत की तो काउंसिल ने सास-ससुर को निलंबित कर दिया है।
राजधानी लखनऊ के इंदिरा नगर में रहने वाली डॉ.प्रकृति शुक्ला ने उत्तर प्रदेश मेडिकल काउंसिल में नौ जून 2016 को शिकायत कर न्याय की गुहार लगाई थी। एमबीबीएस के बाद एमडी (पैथोलॉजी) करने वाली डॉ.प्रकृति ने अपनी शिकायत और फिर काउंसिल की एथिकल कमेटी की 30 जून को हुई सुनवाई में बताया कि उनकी गर्भावस्था के दौरान 11 नवंबर 2015 को उन्हें तेज बुखार आया तो उन्होंने पति तुषार ओझा को इसकी जानकारी दी। पति उन्हें ससुर डॉ.एसवी ओझा के सुभाष मार्ग स्थित ओझा डायग्नोस्टिक सेंटर ले गए। डॉ.प्रकृति के अनुसार वे नहीं चाहती थीं कि उनके ससुर अल्ट्रासाउंड करें, इसके बावजूद डॉ.एसवी ओझा ने खुद अल्ट्रासाउंड किया। इसके बाद उन्हें सास डॉ.शालिनी चंद्रा के रकाबगंज स्थित अस्पताल में ले जाया गया। डॉ.प्रकृति का कहना है कि अल्ट्रासाउंड होने के बाद पूरे परिवार का व्यवहार बदल गया। पति व सास ने गर्भपात कराने को कहा किन्तु वह नहीं मानीं। इस पर अपने अजन्मे बच्चे को बचाने के लिए अलीगंज स्थित अपनी ससुराल से इंदिरा नगर स्थित अपने मायके चली गयीं। 28 मार्च को उन्होंने एक निजी नर्सिंग होम में बेटी को जन्म दिया। पूरा ओझा परिवार उनसे मिलने सिर्फ एक बार आया और बाद में एक बार ही पति उनके घर गए। बेटी के जन्म के एक माह के बाद पति ने तलाक का नोटिस जरूर भेज दिया।
डॉ.प्रकृति ने शिकायत की कि उनकी मर्जी के बिना अल्ट्रासाउंड, फिर गर्भ में बेटी होने की बात पता करना कानून का उल्लंघन है। काउंसिल के रजिस्ट्रार डॉ.राजेश जैन के मुताबिक सुनवाई के दौरान ससुर ने लिखित जवाब दिया, जिसमें अल्ट्रासाउंड करने की अनुमति देने वाले फॉर्म एफ पर डॉ.प्रकृति के हस्ताक्षर दिखाए गए हैं। काउंसिल ने हस्ताक्षर मिलाने के लिए हैंडराइटिंग एक्सपर्ट व फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट की सुविधाएं लीं, तो पता चला कि वे हस्ताक्षर डॉ.प्रकृति के थे ही नहीं। इसी तरह सास डॉ.शालिनी चंद्रा द्वारा प्रस्तुत इलाज के पर्चे भी फर्जी पाए गए। एथिकल कमेटी ने पाया कि डॉ.शालिनी चंद्रा ने एक ही मरीज को एक ही दिन में पांच से दस मिनट के बीच दो अलग-अलग दवाइयों के पर्चे दिये। यह पेशेगत कदाचार (प्रोफेशनल मिसकंडक्ट) की श्रेणी में आता है। इस मामले में शुक्रवार को हुई काउंसिल के शासी निकाय (गवर्निंग बॉडी) की बैठक में डॉ.एसवी ओझा व उनकी पत्नी डॉ.शालिनी चंद्रा को लिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम का दोषी पाया गया। डॉ.एसवी ओझा को एक साल और डॉ.शालिनी चंद्रा को छह माह के लिए निलंबित कर दिया गया है।
धोखाधड़ी का मुकदमा चलेगा
उत्तर प्रदेश मेडिकल काउंसिल ने अपने फैसले की प्रति लखनऊ के जिलाधिकारी, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक और मुख्य चिकित्सा अधिकारी को पत्र लिखकर डॉ.एसवी ओझा के खिलाफ धोखाखड़ी का मुकदमा कायम करने को कहा गया है। उन पर फर्जी कागजात बनाने और काउंसिल को भ्रमित करने के आरोप लगे हैं।

कन्हैया के कंधे पर चलेगी वामपंथी बंदूक

-18 को लखनऊ से शुरुआत, 19 को फैजाबाद में कार्यक्रम
-एआइएसएफ के बैनर तले जुटेंगे प्रदेश के छह वामपंथी दल
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: प्रदेश की राजनीति में सांसें बचाने के लिए संघर्ष कर रहे वामपंथी दल चर्चित छात्र नेता व जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया को सहारा बना रहे हैं। 18 सितंबर को लखनऊ से कन्हैया का यह अभियान शुरू होगा, जिसमें दूसरा पड़ाव फैजाबाद होगा।
उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव नजदीक आते ही वामपंथी दलों को भी अपने भविष्य की चिंता सताने लगी है। प्रदेश के छह वापमपंथी दलों सीपीआइ, सीपीएम, सीपीआइ (एमएल), एसयूसीआइसी, फॉरवर्ड ब्लॉक व आरएसपी ने मिल कर चुनाव लडऩे का फैसला किया है। वाराणसी में संयुक्त सम्मेलन के साथ ही इन दलों का अभियान शुरू भी हो चुका है। अब इन दलों ने प्रदेश में युवाओं के बीच लोकप्रिय चेहरे के रूप में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार को उतारने का फैसला किया है। इसकी शुरुआत 18 सितंबर को राजधानी लखनऊ से होगी। 18 को लखनऊ में कन्हैया के कार्यक्रम के बाद 19 सितंबर को फैजाबाद में भी कन्हैया के साथ युवाओं का संवाद आयोजित किया जा रहा है। फैजाबाद लंबे समय तक वामपंथी आंदोलन का केंद्र रहा है और वहां से विधानसभा में भी वामपंथ का प्रतिनिधित्व रहा है।
कन्हैया कुमार भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआइ) की छात्र इकाई अखिल भारतीय छात्र परिषद (एआइएसएफ) से जुड़े हैं। इसलिए राजधानी व फैजाबाद के आयोजनों की कमान औपचारिक रूप से एआइएसएफ के हाथ में ही रहेगी। इसके साथ सीपीआइ के नेतृत्व में सभी छह वामपंथी दलों का मोर्चा भी सक्रिय रहे है। इस मोर्चे के संयोजक मंडल के सदस्य व सीपीआइ की प्रदेश इकाई के सहायक सचिव अरविंद राज स्वरूप का कहना है कि कन्हैया कुमार युवाओं के बीच एक आइकन के रूप में उभरे हैं। वे भविष्य के वामपंथी नेतृत्व का हिस्सा हो सकते हैं। इसलिए सभी वामपंथी दलों ने विधानसभा चुनाव की अपनी मुहिम में कन्हैया कुमार को जोडऩे पर सहमति जताई है। कन्हैया के दोनों कार्यक्रमों में सभी छह दलों के लोग सक्रिय रहेंगे। इसके बाद विधानसभा चुनाव तक लगातार प्रदेश भर में कन्हैया के कार्यक्रम कराए जाएंगे।

राहुल का आरोप, बदले की राजनीति कर रहे मोदी


-अमेठी दौरे में उठाए केंद्र की योजनाओं पर सवाल
-सड़क से संसद तक किसानों की लड़ाई लड़ेगी कांग्र्रेस
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डॉ.संजीव, जगदीशपुर (अमेठी)
कांग्र्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने आरोप लगाया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बदले की राजनीति कर रहे हैं। अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी के तीन दिवसीय प्रवास के दूसरे दिन जगदीशपुर के जाफरगंज मंडी स्थल पर संसदीय निधि से हुए विकास कार्यों का लोकार्पण करने के बाद जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने केंद्र की योजनाओं पर सवाल उठाते हुए उन्हें विफल करार दिया। एलान किया कि कांग्र्रेस सड़क से संसद तक किसानों की लड़ाई लड़ेगी।
राहुल ने अपने पिता राजीव गांधी को याद करते हुए अपने भाषण की शुरुआत की। कहा कि जगदीशपुर में राजीवजी ने विकास की जो गंगा बहाई थी, मौजूदा केंद्र सरकार ने उसे बाधित कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि वे बदले की राजनीति नहीं करेंगे। इसके बावजूद वे अमेठी की जनता के खिलाफ बदले की राजनीति कर रहे हैं। यूपीए सरकार ने जगदीशपुर में 3500 करोड़ से पेपर मिल का प्रोजेक्ट लगाने का फैसला किया था। उससे दस हजार लोगों को रोजगार मिलता। मोदी सरकार ने उस प्रोजेक्ट को ही रद कर दिया। मेगा फूड पार्क में 40 कारखाने लगने थे, जिससे पूरे प्रदेश के किसान लाभान्वित होते, पर केंद्र सरकार ने उसे भी नहीं बनने दिया। हमने यहां आइआइआइटी की कक्षाएं शुरू कराईं, वे वापस ले गए। सेंट्रल स्कूल की घोषणा के बावजूद उसे रोक कर रखा है। आरोप लगाया कि एनडीए सरकार ने यूपीए सरकार के सभी जनोपयोगी कार्यक्रम बंद कर दिये।
राहुल ने कहा कि पिछले लोकसभा चुनाव के समय भाजपा ने बड़े बड़े वादे किये थे। कहा था, 'मोदी आएगा, महंगाई कम करेगाÓ। सवाल उठाए, क्या महंगाई कम हुई? सभी के खाते में 15 लाख रुपये आए? स्मार्ट सिटी कहीं दिखा? स्वच्छ भारत का असर कहीं दिखा? कांग्र्रेस उपाध्यक्ष ने कहा कि मेक इन इंडिया के बब्बर शेर के मुंह से चूहे की आवाज भी नहीं निकलती। मोदी सरकार ने उद्यमियों के तो हजारों करोड़ रुपये के कर्ज माफ कर दिये, वहीं किसान मर रहे हैं, उनकी चिंता नहीं है। कांग्र्रेस किसानों की लड़ाई सड़क से संसद तक लड़ेगी। प्रधानमंत्री दुनिया घूमते हैं, बड़ी-बड़ी बातें बनाते हैं पर भारत की चिंता नहीं करते। ऐसे में आम आदमी की लड़ाई लडऩा कांग्र्रेस की जिम्मेदारी है और कांग्र्रेस इसमें पीछे नहीं रहेगी।
यूपी में बनाएंगे सरकार
राहुल गांधी ने भरोसा जताया कि अगले विधानसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में कांग्र्रेस की सरकार बनेगी। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में विकास रुक गया है। आह्वïान किया कि यूपी में विकास शुरू कराना है तो कांग्र्रेस की सरकार बनवाइये। कांग्र्रेस कार्यकर्ताओं से कहा कि उनका उत्साह जोरदार है। इसे बनाए रखें और जनता के साथ लगातार जुड़ाव स्थापित कर कांग्र्रेस को वोट दिलवाएं।

जिम्मेदारी मेडिकल कालेज की, गाज सीएमएस पर गिरी

-हैलट अस्पताल में लापरवाही से बच्चे की मौत का मामला
-पीएमएस एसोसिएशन ने उठाए सवाल, सीएम से होगी शिकायत
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: गणेश शंकर विद्यार्थी स्मारक चिकित्सा महाविद्यालय से संबद्ध कानपुर के लाला लाजपत राय चिकित्सालय (हैलट) में डॉक्टरों की लापरवाही से बच्चे की मौत के मामले में मुख्य चिकित्सा अधीक्षक (सीएमएस) के निलंबन से प्रांतीय चिकित्सा सेवा (पीएमएस) संवर्ग में आक्रोश व्याप्त है। पीएमएस एसोसिएशन ने सवाल उठाते हुए कहा है कि इलाज की जिम्मेदारी मेडिकल कालेज शिक्षकों की होती है, फिर लापरवाही की गाज सीएमएस पर क्यों गिराई गयी।
कानपुर मेडिकल कालेज से संबद्ध हैलट अस्पताल के बाल रोग चिकित्सालय की चौखट तक पहुंच जाने के बाद भी पिछले सप्ताह एक बच्चे की मौत हो गयी थी। यह मामला उछलने पर मंगलवार को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के निर्देश पर अस्पताल के सीएमएस डॉ.सीएस सिंह को निलंबित कर दिया गया था। आज इस आशय की जानकारी मिलने पर पीएमएस एसोसिएशन ने गंभीर सवाल खड़े किये। एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ.अशोक यादव ने कहा कि मेडिकल कालेजों में इलाज की जिम्मेदारी चिकित्सा शिक्षकों की होती है। मरीज भर्ती भी उनके अधीन ही होते हैं। पीएमएस संवर्ग के विशेषज्ञ चिकित्सकों तक को मेडिकल कालेज के शिक्षक मरीज की नाड़ी तक नहीं देखने देते हैं। इलाज के लिए हाथ तक न रखने देने के बावजूद लापरवाही के लिए पीएमएस संवर्ग के चिकित्सक को कैसे निलंबित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि मेडिकल कालेजों में चिकित्सा छात्र-छात्राओं के सहारे इलाज होता है और शिक्षक वार्डों में जाते तक नहीं हैं। ऐसे में पीएमएस संवर्ग के चिकित्सक पर कार्रवाई होना दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा कि एसोसिएशन इस मामले को मुख्यमंत्री के सामने उठाएगी। पीएमएस एसोसिएशन के सचिव डॉ.सचिन वैश्य ने बताया कि पूरे प्रदेश के पीएमएस संवर्ग के चिकित्सक इस अन्याय से आहत हैं। तुरंत एसोसिएशन की आमसभा की बैठक बुलाने की मांग हो रही है। उन्होंने लापरवाही के जिम्मेदार चिकित्सा शिक्षक व मेडिकल कालेज प्रशासन पर कार्रवाई की मांग करते हुए कहा कि ऐसा न होने पर राज्यव्यापी आंदोलन शुरू होगा।
मानवाधिकार आयोग ने दिये जांच के आदेश
हैलट अस्पताल में पिता के कंधे पर पुत्र के दम तोडऩे के मामले को मानवाधिकार आयोग ने संज्ञान में लिया है। आयोग की सदस्य आशा तिवारी ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव, कानपुर के जिलाधिकारी व मुख्य चिकित्सा अधिकारी से निष्पक्ष जांच कर 15 दिन में रिपोर्ट देने को कहा गया है।

सातवें वेतन आयोग से बढ़ेगा 30 हजार करोड़ खर्च

-पटनायक समिति ने किया प्रदेश की वित्तीय स्थिति का आंकलन
-इस साल बढ़ा वेतन, अगले साल एरियर देने का हुआ प्रस्ताव
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने की स्थिति में प्रदेश सरकार का तीस हजार करोड़ रुपये वार्षिक के आसपास खर्च बढऩे की उम्मीद है। इसके लिए गठित पटनायक समिति ने बुधवार को प्रदेश की वित्तीय स्थिति का आंकलन किया तो इस साल कर्मचारियों को बढ़ा वेतन और अगले साल एरियर देने का प्रस्ताव किया गया।
प्रदेश सरकार द्वारा सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें स्वीकार किये जाने के बाद सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी गोपबंधु पटनायक की अध्यक्षता में गठित समीक्षा समिति ने बुधवार को वित्त विभाग के अधिकारियों के साथ प्रदेश की आर्थिक स्थितियों का विशद आंकलन किया। इस दौरान वित्त विभाग के अधिकारियों ने बताया कि कर्मचारियों के वेतन व पेंशन आदि मदों में लगातार खर्च बढ़ रहा है। सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करने की स्थिति के मद्देनजर जो औसत आंकलन किया गया था, उसके अनुसार पहले साल 26,573 करोड़ और फिर हर साल 22,778 करोड़ रुपये वार्षिक खर्च का आंकलन किया गया था। इस बीच केंद्र सरकार द्वारा स्वीकार की गयी सिफारिशों का दोबारा अध्ययन करने पर यह खर्च बढऩे की उम्मीद जताई गयी है। कहा गया कि सिफारिशों को अमल में लाने पर औसतन तीस हजार करोड़ रुपये वार्षिक खर्च बढ़ेगा।
वेतन समिति ने सभी कर्मचारियों की श्रेणीवार व वेतनमान के आधार पर अलग-अलग संख्या और सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें स्वीकार करने की स्थिति में पडऩे वाले असर के साथ विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। कहा गया है कि हर स्तर पर औसत वेतन वृद्धि का आंकलन किया जाए। बैठक में प्रदेश सरकार की मंशा के अनुरूप तीन माह के भीतर अंतरिम रिपोर्ट देने की चर्चा हुई तो कहा गया कि यदि दीवाली या उसके आसपास अंतरिम सिफारिशें स्वीकार की जाती हैं तो मौजूदा वित्तीय वर्ष में अधिकतम चार माह का वेतन देना पड़ेगा। इस परिप्रेक्ष्य में प्रस्ताव किया गया कि इस साल बढ़ा हुआ वेतन दे दिया जाए और अगले वित्तीय वर्ष में एरियर देने का प्रावधान किया जाए।
आ सकता एक और अनुपूरक बजट
बैठक में शामिल अधिकारियों के मुताबिक प्रदेश सरकार ने मूल बजट में सातवें वेतन आयोग के लिए धन आवंटित कर दिया था। इसके बावजूद यदि समीक्षा समिति की सिफारिशों के मद्देनजर अधिक धन के आवंटन की जरूरत पड़ती है तो एक और अनुपूरक बजट लाया जा सकता है। चुनावी साल होने के कारण अन्य खर्चों के लिए भी सरकार एक और अनुपूरक बजट ला सकती है और उसमें सातवें वेतन आयोग के लिए जरूरी धन का इंतजाम भी जोड़ा जा सकता है।

एचबीटीयू कुलपति की तैनाती में न्यूनतम योग्यता का पेंच

-नया प्राविधिक विश्वविद्यालय आज से, नेतृत्व पर फैसला अटका
-ख्यातिप्राप्त विद्वान व दस साल से प्रोफेसर होने की है अनिवार्यता
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: आइआइटी कानपुर सहित कई प्राविधिक शिक्षा संस्थानों के उद्गम का साक्षी प्रदेश का सबसे पुराना इंजीनियरिंग कालेज हरकोर्ट बटलर टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट (एचबीटीआइ) गुरुवार से विश्वविद्यालय में तब्दील होकर एचबीटीयू हो जाएगा। यह नया प्राविधिक विश्वविद्यालय तो मूर्त रूप ले लेगा किन्तु इसके नेतृत्व पर अब तक फैसला नहीं हो सका है। दरअसल, एचबीटीयू के पहले कुलपति की तैनाती में न्यूनतम योग्यता का पेंच फंस गया है।
नए विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद पहला कुलपति नियुक्त करने का अधिकार मुख्यमंत्री को होता है। प्राविधिक शिक्षा विभाग ने इसी के मद्देनजर आवेदन करने वाले सभी लोगों के ब्यौरे के साथ फाइल मुख्यमंत्री के पास भेज दी थी। उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार दो दिन पहले मुख्यमंत्री कार्यालय के स्तर पर मदन मोहन मालवीय तकनीकी विश्वविद्यालय गोरखपुर के मौजूदा कुलपति ओंकार सिंह के नाम पर सहमति भी बन गयी थी, इस बीच न्यूनतम योग्यता का पेंच फंस गया। दरअसल विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए बने अधिनियम की धारा 12(1) में कुलपति के रूप में नियुक्ति के लिए किसी इंजीनियरिंग कालेज या तकनीकी डिग्र्री देने वाले विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में कम से कम दस साल काम करने का अनुभव होना चाहिए। साथ ही संबंधित व्यक्ति को इंजीनियरिंग, टेक्नोलॉजी या एप्लाइड साइंसेज के क्षेत्र में ख्यातिप्राप्त विद्वान (स्कॉलर ऑफ एमीनेंस) होना चाहिए। ओंकार सिंह इन मापदंडों पर खरे नहीं उतरते हैं। प्रोफेसर के रूप में उन्हें दस साल का अनुभव नहीं है। सूत्रों के मुताबिक प्राविधिक शिक्षा विभाग की ओर से उनकी फाइल पर यही आपत्ति लगायी गयी थी, जिसके बाद मामला फंस गया। अब एक सितंबर को एचबीटीयू के रूप में प्रदेश का तीसरा प्राविधिक विश्वविद्यालय पहले कुलपति के बिना ही स्थापित होगा। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। गोरखपुर स्थिति मदन मोहन मालवीय तकनीकी विश्वविद्यालय में भी कुलपति की नियुक्ति स्थापना के 17 दिन बाद हुई थी।
तीन इंजीनियरिंग कालेजों को जल्द मिलेंगे निदेशक
प्रदेश के तीन सरकारी इंजीनियरिंग कालेजों में निदेशकों की नियुक्ति भी जल्द हो जाएगी। बुधवार को मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कन्नौज, सोनभद्र व मैनपुरी के राजकीय इंजीनियरिंग कालेजों के निदेशकों के लिए आए आवेदनों पर विचार हुआ। तीनों कालेजों के लिए डेढ़ से दो दर्जन के बीच आवेदन आए थे। चयन समिति ने तीन-तीन नामों के पैनल मुख्यमंत्री के पास भेजे हैं। जल्द ही इन कालेजों में निदेशकों की नियुक्ति होने की उम्मीद है।

नीट के पंजीकरण कम होने से बढ़ाया दायरा

-सिर्फ 26 हजार ने किया काउंसिलिंग के लिए आवेदन
-पिछले साल 39 हजार रैंक तक दिया गया था मौका
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: उत्तर प्रदेश में नीट काउंसिलिंग के लिए अपेक्षा के अनुरूप विद्यार्थियों के पंजीकरण न होने से इसके लिए विद्यार्थियों का दायरा बढ़ा दिया गया है। अब प्रदेश से बाहर के विद्यार्थियों को भी पंजीकरण की अनुमति दे दी गयी है। काउंसिलिंग तीन सितंबर से प्रस्तावित है।
प्रदेश के मेडिकल कालेजों में प्रवेश के लिए इस बार नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंटरेंस टेस्ट (नीट) में सफल विद्यार्थियों के बीच से ही राज्य स्तरीय मेरिट बनाकर काउंसिलिंग कराई जानी है। चिकित्सा शिक्षा महानिदेशालय ने तीन सितंबर से काउंसिलिंग प्रस्तावित की है। मेरिट के लिए पंजीकरण प्रक्रिया के संचालन का जिम्मा किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) को सौंपा गया है। केजीएमयू ने 20 अगस्त से नीट में सफल अभ्यर्थियों का पंजीकरण शुरू किया था। मंगलवार को पंजीकरण के अंतिम दिन शाम पांच बजे तक 26 हजार अभ्यर्थियों ने ही पंजीकरण कराया था। आधी रात तक कुछ और अभ्यर्थी बढऩे की उम्मीद जताई गयी। यह स्थिति पिछले वर्षों की तुलना में ठीक नहीं है। पिछले वर्ष (2015 में) सीपीएमटी के माध्यम से एमबीबीएस व बीडीएस में प्रवेश के लिए 39 हजार विद्यार्थी सफल हुए थे और उन्हें काउंसिलिंग के लिए आमंत्रित किया गया था। वैसे पंजीकरण की धीमी रफ्तार को अधिकारियों ने चार दिन पहले ही भांप लिया था, इसीलिए विद्यार्थियों का दायरा बढ़ाने का फैसला किया गया। पहले सिर्फ उत्तर प्रदेश के अभ्यर्थियों को पंजीकरण का मौका दिया गया था, अब प्रदेश के बाहर के अभ्यर्थियों को भी पंजीकरण कराने की अनुमति दे दी गयी है। यह कह दिया गया है कि सरकारी मेडिकल कालेजों में प्रदेश के अभ्यर्थी ही काउंसिलिंग का मौका पाएंगे। निजी मेडिकल कालेजों में प्रवेश के लिए यदि राज्य कोटे से इतर कोई कोटा निर्धारित होता है, तो राज्य के बाहर के अभ्यर्थियों पर विचार होगा।
यह नंबर मौजूद नहीं है
पंजीकरण के लिए बनी वेबसाइट पर केजीएमयू ने काउंसिलिंग से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए हेल्पलाइन नंबर 0522-2258727 दिया है। इस बाबत जारी विवरण पुस्तिका (ब्रोशर) में भी यही नंबर दिया है। अभ्यर्थी जब यह नंबर मिला रहे हैं, तो उन्हें यह नंबर मौजूद नहीं है संदेश सुनाई पड़ रहा है। इससे वे परेशान हैं। इस संबंध में काउंसिलिंग व पंजीकरण प्रक्रिया के प्रभारी प्रो.एके सिंह ने कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए। नंबर तुरंत चालू करवाया जाएगा।
आज जारी होगी मेरिट
नीट में सफल अभ्यर्थियों का पंजीकरण मंगलवार रात 12 बजे तक किया जाएगा। इसके बाद बुधवार, 31 अगस्त को राज्य की नीट मेरिट जारी कर दी जाएगी। तीन सितंबर से प्रदेश स्तर की काउंसिलिंग शुरू होगी। नीट की आल इंडिया काउंसिलिंग का दूसरा चक्र 15 सितंबर तक पूरा होने की उम्मीद है। इसके बाद प्रदेश स्तरीय काउंसिलिंग का दूसरा चक्र 21 सितंबर से प्रस्तावित किया गया है।
हाईकोर्ट गए निजी कालेज
प्रदेश सरकार ने निजी मेडिकल व डेंटल कालेजों, विश्वविद्यालयों में एमबीबीएस व बीडीएस में प्रवेश के लिए भी नीट की राज्य स्तरीय मेरिट से काउंसिलिंग कराने का फैसला लिया है। इस पर निजी कालेज हाईकोर्ट की शरण में गए हैं। उनका कहना है कि वे नीट के माध्यम से ही प्रवेश लेंगे, किन्तु उन्हें अपनी काउंसिलिंग स्वयं कराने का मौका दिया जाए। 

स्वास्थ्य विभाग के अफसरों को छोडऩा होगा दफ्तर

-स्वास्थ्य महानिदेशक से डिप्टी सीएमओ तक निरीक्षण के निर्देश
-शासन को भेजना पड़ेगा नियमित ब्योरा, तय की जाएगी जवाबदेही
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: स्वास्थ्य विभाग के अफसरों को अब दफ्तर छोड़कर जाना ही होगा। इसके लिए स्वास्थ्य महानिदेशक से उप मुख्य चिकित्सा अधिकारी (डिप्टी सीएमओ) तक सभी को निरीक्षण करने के निर्देश दिये गए हैं। शासन का मानना है कि इससे डेंगू व अन्य संक्रामक बीमारियों को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के स्तर पर पकडऩे में भी मदद मिलेगी।
स्वास्थ्य विभाग में महानिदेशक से लेकर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी तक डॉक्टरों की तैनाती के बावजूद प्रदेश में चौपट स्वास्थ्य सेवाओं की शिकायतें आम हैं। नियमानुसार राजधानी में महानिदेशालय में तैनात अधिकारियों से लेकर जिलों में उप मुख्य चिकित्सा अधिकारियों तक, सभी को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) तक जाकर नियमित निरीक्षण करने चाहिए, किन्तु ऐसा नहीं हो रहा है। इस पर प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) अरुण सिन्हा ने सख्त रुख अख्तियार किया है। उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य महानिदेशक से डिप्टी सीएमओ तक हर अधिकारी को निश्चित रूप से प्राथमिक व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों के निरीक्षण करने होंगे। वहां चिकित्सकों की उपस्थिति, दवाओं की उपलब्धता, जांच की प्रगति व मरीजों को मिल रही सुविधाओं का पूरा ब्योरा जुटाना होगा। निरीक्षण की पूरी जानकारी नियमित रूप से शासन को भेजनी होगी। प्रमुख सचिव ने कहा कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के स्तर तक पहुंचने वाले मरीजों के इलाज के साथ उन्हें जरूरत पर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र या जिला अस्पताल भेजने की स्थितियों का आंकलन भी हो सकेगा। इससे अस्पतालों में चिकित्सकों की समय पुर उपस्थिति भी सुनिश्चित होगी। इसके साथ ही जवाबदेही भी तय की जाएगी। लापरवाही करने वाले अधिकारियों पर कठोर कार्रवाई भी होगी।
वीकेंड में जाएंगे निदेशक
शुक्रवार होते-होते तमाम डॉक्टर स्वास्थ्य केंद्रों से गायब हो जाते हैं। इसलिए महानिदेशक सहित मुख्यालय में तैनात अपर महानिदेशक, निदेशक जैसे अधिकारियों को सप्ताहांत (वीकेंड) में निरीक्षण के निर्देश दिये गए हैं। कई बार शासन में नियमित बैठकों व प्रशासनिक कार्यों का हवाला दिया जाता है, इसलिए प्रमुख सचिव ने शुक्रवार को कोई बैठक न करने का फैसला किया है। ये लोग शुक्रवार से रविवार तक निरीक्षण करेंगे और उसकी पूरी जानकारी प्रमुख सचिव को सोमवार को देंगे।
अफसरी में भूले इलाज
स्वास्थ्य विभाग में अफसर बने तमाम चिकित्सक तो मानो इलाज करना ही भूल गए हैं। महानिदेशालय में तैनात डॉक्टर हों या सीएमओ, अपर निदेशक और अस्पतालों के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक (सीएमएस), इनमें से तमाम ने वर्षों से मरीज नहीं देखे हैं। कुछ सीएमएस अपनी ड्यूटी ओपीडी में लगवा लेते हैं किन्तु ज्यादातर समय मरीज देखते ही नहीं हैं। शासन स्तर से कई बार सीएमओ, अपर निदेशक व महानिदेशालय में तैनात चिकित्सकों के लिए मरीज देखने के निर्देश भी जारी किये गए किन्तु इस पर अमल नहीं होता है। 

खुलेगी सूबे में पिछड़ों की क्रीमी लेयर बढ़ाने की राह

-उत्तर प्रदेश में पहले ही आठ लाख रुपये है क्रीमी लेयर
-राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने की है दस लाख की संस्तुति
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: केंद्र सरकार द्वारा पिछड़े वर्ग की क्रीमी लेयर सीमा बढ़ाने की तैयारियों के बीच सूबे में भी इसकी राह खुलने की उम्मीद जगी है। राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग पहले ही सूबे में क्रीमी लेयर की आय सीमा आठ लाख रुपये वार्षिक से बढ़ाकर दस लाख रुपये वार्षिक करने की संस्तुति कर चुका है।
अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लोगों के लिए 27 फीसद आरक्षण का लाभ पाने के लिए सकल वार्षिक आय की अधिकतम सीमा को क्रीमी लेयर के रूप में परिभाषित किया गया है। केंद्र सरकार ने आठ सितंबर 1993 को सबसे पहले एक लाख रुपये से अधिक वार्षिक आय वालों को क्रीमी लेयर का हिस्सा माना था। इसके बाद नौ मार्च 2004 को केंद्र सरकार ने ओबीसी के लिए क्रीमी लेयर की परिभाषा बदल कर अधिकतम आय सीमा में वृद्धि कर ढाई लाख रुपये तक वार्षिक आय वालों को इससे मुक्त कर दिया था। इसके बाद 15 अक्टूबर 2008 को क्रीमी लेयर के लिए आय सीमा बढ़ाकर साढ़े चार लाख रुपये कर दी गयी थी। इसके बाद 27 मई 2013 को केंद्र सरकार ने ओबीसी के लिए क्रीमी लेयर की आय सीमा साढ़े चार लाख रुपये वार्षिक से बढ़ाकर छह लाख रुपये करने का आदेश जारी किया था। तीन साल से अधिक समय से केंद्र सरकार की नौकरी व संस्थानों में ओबीसी वर्ग के लिए क्रीमी लेयर की आय सीमा छह लाख रुपये ही है।
हाल ही में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा केंद्रीय स्तर पर ओबीसी के लिए क्रीमी लेयर की सीमा बढ़ाने का प्रस्ताव किया है। इसके बाद उत्तर प्रदेश में भी पिछड़ों की क्रीमी लेयर बढऩे की उम्मीद जगी है। केंद्र द्वारा मई 2013 में क्रीमी लेयर की सीमा छह लाख रुपये वार्षिक करने के बाद प्रदेश सरकार ने 29 जनवरी 2014 को राज्य के लिए ओबीसी वर्ग की क्रीमी लेयर की आय सीमा बढ़ाकर आठ लाख रुपये कर दी थी। पिछले वर्ष राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष राम आसरे विश्वकर्मा ने यह आय सीमा बढ़ाकर दस लाख रुपये करने का प्रस्ताव किया था। इस पर अब तक कोई फैसला नहीं हो सका था। अब केंद्र द्वारा आय सीमा बढ़ाने के प्रस्ताव के बाद नए सिरे से प्रदेश में क्रीमी लेयर बढऩे की उम्मीद भी बंधी है। अधिकारियों का दावा है कि केंद्र सरकार द्वारा फैसले के बाद राज्य सरकार भी इस दिशा में पहल करेगी।

पीजीआइ की रिपोर्ट झूठी, सीएमओ सच्चे!

-डेंगू व बुखार को लेकर मनमानी पर उतारू स्वास्थ्य विभाग
-प्रदेश में अब तक सिर्फ 61 मरीजों व दो मौतें ही स्वीकारी
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: डेंगू व बुखार को लेकर स्वास्थ्य विभाग मनमानी पर उतारू है। मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) को सच्चा मानकर संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (पीजीआइ) की रिपोर्ट तक को झुठलाया जा रहा है। स्वास्थ्य विभाग प्रदेश में डेंगू व बुखार के सिर्फ 61 मरीज और दो मौतें ही स्वीकार कर रहा है।
सभी मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को संक्रामक रोगों के मरीजों की तुरंत जानकारी देने के निर्देश दिये थे। सीएमओ ने इनकी जानकारी छिपाने को ही मूल मंत्र बना लिया है। प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) अरुण सिन्हा द्वारा शुक्रवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक डेंगू से प्रदेश में अब तक सिर्फ दो लोगों की मौत हुई है। प्रदेश में जहां अस्पताल बुखार के मरीजों से भरे हैं, यह रिपोर्ट सिर्फ 61 मरीज होने की बात स्वीकार करती है। स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक सीतापुर की लहरपुर निवासी नसरा प्रवीन व दिबियापुर बिसवां निवासी विनीता की ही मौत डेंगू से हुई है।
यह आंकड़े छिपाने की जद्दोजहद ही है कि स्वास्थ्य विभाग पीजीआइ की रिपोर्ट को भी झुठला रहा है। राष्ट्रीय लोकदल के प्रदेश अध्यक्ष रहे मुन्ना सिंह और लखनऊ में तैनात दरोगा केजी शुक्ला की मौत डेंगू से पीजीआइ में हुई थी। इनके मृत्यु प्रमाण पत्र में पीजीआइ ने स्पष्ट रूप से 'डेंगू शॉक सिंड्रोमÓ से मौत की बात लिखी है किन्तु स्वास्थ्य विभाग उसे नहीं मान रहा है। मुन्ना सिंह के मामले में बाराबंकी और केजी शुक्ला के मामले में लखनऊ के सीएमओ की रिपोर्ट पर भरोसा किया जा रहा है, जिसमें डेंगू से मौत की पुष्टि नहीं की गयी है। यही स्थिति अन्य मौतों के मामले में भी है। लोग डेंगू व बुखार से मर रहे हैं, सीएमओ रिपोर्ट नहीं दे रहे हैं। प्रमुख सचिव ने भी इस स्थिति को गंभीर माना और कहा कि पूरे मामले की जांच कराकर दोषियों पर कार्रवाई होगी।
अधूरी जांच से संकट
यह संकट दरअसल अधूरी जांच के कारण हो रहा है। डेंगू का मरीज अस्पताल में पहुंचने पर रैपिड जांच कराई जाती है। उसमें डेंगू आने पर इलाज शुरू होता है। इस बीच मरीज की मौत हो जाने पर दूसरी जांच हो नहीं पाती और सीएमओ उस मौत को डेंगू मानते ही नहीं हैं। संक्रामक रोग विभाग की प्रभारी अपर निदेशक डॉ.गीता यादव ने कहा कि रैपिड टेस्ट में पॉजिटिव पाए जाने पर दोबारा परीक्षण कराना पड़ता है। उसके बिना डेंगू की पुष्टि स्वीकार नहीं की जाती है। वे इस सवाल का जवाब नहीं दे सकीं कि शुरुआती जांच में डेंगू की पुष्टि के बाद मरीज की मौत होने की स्थिति में दूसरी जांच न हो पाने पर उसे क्या माना जाए?
इंसेफेलाइटस भी बढ़ा, अब तक 201 मौतें
पूरे प्रदेश में बुखार व संक्रमण की दस्तक थमने का नाम नहीं ले रही है। इंसेफेलाइटिस भी तेजी से बढ़ रहा है। अब तक कुल 1296 मरीज सरकारी अस्पतालों में पहुंच चुके हैं और 201 मौतें भी हो चुकी हैं। पिछले वर्ष की तुलना में यह संख्या बहुत अधिक है। पिछले वर्ष अब तक इंसेफेलाइटिस के कुल 941 मरीज ही सामने आए थे और 119 मौतें हुई थीं। इसके अलावा प्रदेश में डायरिया के 1018 मामले सामने आए, जिनमें से 21 की जान चली गयी। खसरा के 1106 मरीज अस्पताल पहुंचे, जिनमें 10 को बचाया नहीं जा सका। चिकनपॉक्स भी तेजी से फैल रहा है। अब तक 2146 मरीज भर्ती हुए, जिनमें से चार की मौत हो गयी। एच1एन1 इन्फ्लुएंजा भी तेजी से फैल रहा है। इसके 122 मरीजों में 16 की मौत हो चुकी है।

नसबंदी से भाग रहे पति, पत्नियां संभाल रही मोर्चा


-पुरुषों की तुलना में 41 गुना महिलाओं ने कराए ऑपरेशन
-पांच साल में सिर्फ 39 हजार पुरुष आए आगे, अब बदलेगी रणनीति
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डॉ.संजीव, लखनऊ
नारी सशक्तीकरण की तमाम कोशिशों के बीच पुरुषों ने जनसंख्या नियंत्रण का काम भी महिलाओं को सौंप दिया है। हालात ये हैं कि पति नसबंदी से भाग रहे हैं और पत्नियों को यह मोर्चा संभालना पड़ रहा है। बीते पांच साल के आंकड़ों की मानें तो पुरुषों की तुलना में 41 गुना महिलाओं ने ऑपरेशन कराए हैं, इस कारण स्वास्थ्य विभाग को भी अब रणनीति बदलनी पड़ रही है।
परिवार कल्याण के एक मजबूत तरीके के रूप में नसबंदी का इस्तेमाल किया जाता है, किन्तु पुरुषों की उदासीनता इस राह में बाधक बन रही है। प्रदेश में तो पुरुष नसबंदी के लिए तैयार ही नहीं होते हैं और महिलाओं को ही इसके लिए आगे आना पड़ता है। हालात ये हैं कि पिछले पांच सालों में प्रदेश में सिर्फ 39 हजार पुरुषों ने नसबंदी कराई है। इसके विपरीत इस दौरान 15.86 लाख महिलाओं ने नसबंदी कराई है। पुरुषों से 41 गुना ज्यादा महिलाओं ने नसबंदी कराने के साथ ही इस बाबत स्वास्थ्य विभाग का लक्ष्य पूरा करने में भी मदद की है। इस दौरान जहां लक्ष्य के विपरीत 57 फीसद महिलाओं ने नसबंदी कराई, वहीं पुरुषों में सिर्फ 27 फीसद लक्ष्य की पूर्ति हो सकी। प्रदेश में परिवार कल्याण के लिए प्रयोग किये जा रहे साधनों में पुरुष नसबंदी यानी नॉन स्कैलपेल वैसेक्टमी (एनएसवी) की हिस्सेदारी महज 0.2 फीसद है।
कैग ने की आपत्ति
भारत के नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (कैग) ने भी पुरुष व महिला नसबंदी के इस विभेद पर आपत्ति जाहिर की है। इस समय चल रहे विधानसभा के मानसून सत्र में पेश कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि महिलाओं के लिए लक्ष्य ही पुरुषों की तुलना में 20 गुना अधिक था। दरअसल पांच साल के लिए पुरुष नसबंदी का लक्ष्य जहां 1.42 लाख था, वहीं महिला नसबंदी का लक्ष्य 28.04 लाख निर्धारित किया गया था। कैग ने इस पर आपत्ति जाहिर करते हुए पुरुष व महिला नसबंदी के लिए न्यायोचित लक्ष्य निर्धारण की संस्तुति की है। पुरुष नसबंदी बढ़ाने के लिए विशेष अभियान चलाने की बात भी कही गयी है।
कारण जानने को पड़ताल
महिलाओं की तुलना में पुरुष नसबंदी कम होने के मसले पर स्वास्थ्य विभाग ने कारण जानने के लिए विशेष पड़ताल कराई। अभी पुरुषों को सरकारी अस्पताल से नसबंदी कराने पर दो हजार रुपये व निजी अस्पताल से कराने पर एक हजार रुपये मिलते हैं। पता चला कि यह राशि मिलने में भी दिक्कत हो रही है। उसके लिखा परिचय पत्र, बैंक खाता संख्या जैसी तमाम कागजी कार्रवाई जरूरी होती है। इस कारण कई बार अनुदान नहीं मिल पाता।
समाधान के छह सूत्र
-परिचय पत्र या बैंक खाता न होने पर नसबंदी कराने वाले को सरकारी अस्पताल ले कर जाएंगे।
-मुख्य चिकित्सा अधिकारी या उनके प्रतिनिधि ऐसे मामलों में प्रमाण पत्र जारी करने के लिए अधिकृत होंगे।
-नसबंदी कराने वाले व्यक्ति फोटो स्मार्ट फोन से खींच कर रेकार्ड में रखी जाएगी।
-नसबंदी के लिए पुरुषों को लाने वालों को अलग से मानदेय देने के साथ प्रमाण पत्र भी दिया जाएगा।
-बैंक खाता न होने पर नसबंदी कराने वाले को अनुदान नकद भी दिया जा सकेगा।
-ऑपरेशन कराने वालों से नसबंदी के बाद भी संवाद कायम रखा जाएगा।