Thursday 31 March 2016

पिछड़े वर्ग के सभी अनाथ बच्चों को मिलेगी छात्रवृत्ति


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-पूर्वदशम् छात्रवृत्ति नियमावली-
-दो लाख आय सीमा तक के परिवारों के सभी बच्चे दायरे में आएंगे
-छात्रवृत्ति की रकम तीन गुना कर 2250 रुपये करने का फैसला
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : पिछड़े वर्ग के सभी अनाथ बच्चों को नौवीं व दसवीं की पढ़ाई के दौरान छात्रवृत्ति मिलेगी। बुधवार को मंत्रिमंडल द्वारा मंजूर की गयी 'उत्तर प्रदेश अन्य पिछड़ा वर्ग पूर्वदशम् छात्रवृत्ति नियमावली 2016Ó में यह प्रावधान किया गया है।
कक्षा नौ व दस में पढऩे वाले पिछड़े वर्गों के विद्यार्थियों को अभी 750 रुपये वार्षिक छात्रवृत्ति मिलती थी। नियमावली में इन्हें दस माह के लिए 150 रुपये प्रति माह और वार्षिक तदर्थ अनुदान के रूप में 750 रुपये मिलाकर वार्षिक 2250 रुपये छात्रवृत्ति देने का फैसला हुआ है। अभी तक तीस हजार रुपये वार्षिक से अधिक आय वाले परिवारों के बच्चे इस छात्रवृत्ति के लिए आवेदन नहीं कर सकते थे। अब दो लाख रुपये तक आय वाले परिवारों के सभी बच्चे इस योजना का लाभ उठा सकेंगे। नियमावली के मुताबिक ऐसे छात्र-छात्राएं जिनके माता-पिता जीवित नहीं हैं, उन सभी को इस छात्रवृत्ति का लाभ मिलेगा। यदि ऐसे बच्चों को किसी संस्था या संभ्रांत व्यक्ति का संरक्षण मिलता है तो उक्त संस्था या संभ्रांत व्यक्ति की आय पात्रता निर्धारण के लिए आधार नहीं मानी जाएगी।
निवास प्रमाण पत्र जरूरी नहीं
नियमावली में छात्रवृत्ति के लिए उत्तर प्रदेश का मूल निवासी होने की अनिवार्यता तो बताई गयी है किन्तु इसके लिए निवास प्रमाण पत्र की जरूरत से मुक्ति दे दी गयी है। तहसील स्तर से जारी आय व जाति प्रमाण पत्र में अंकित निवास विवरण के आधार पर ही छात्रवृत्ति दे दी जाएगी। अभ्यर्थी के परिवार की समस्त स्रोतों से वार्षिक आय के संबंध में तहसीलदार द्वारा प्रदत्त आय प्रमाण पत्र मान्य होगा किन्तु उसका राजस्व परिषद व ई-डिस्ट्रिक्स की वेबसाइट पर उपलब्ध होना अनिवार्य है।
'ए' से शुरू नाम को फायदा
छात्रवृत्ति वितरण के लिए बनाए गए वरीयता क्रम में बजट की राशि का वितरण ए से जेड तक अल्फाबेटिकल क्रम में किया जाएगा। एक ही अल्फाबेटिकल क्रम होने पर अधिक आयु वाले विद्यार्थी को वरीयता मिलेगी। दोनों चीजें समान होने पर पहले पंजीकरण कराने वाले को ऊपर रखा जाएगा। वरीयता में सबसे ऊपर सरकारी विद्यालयों के विद्यार्थी होंगे। उनके बाद शासकीय सहायता प्राप्त और फिर निजी संस्थानों का नंबर आएगा। पहले दसवीं और फिर नौवीं के विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति मिलेगी।
यह होगी प्रक्रिया
नौवीं व दसवीं के विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति प्रबंधन प्रणाली की वेबसाइट पर ऑनलाइन आवेदन करना होगा। फिर उसका फाइनल प्रिंटआउट निकालकर आवश्यक अभिलेखों के साथ शिक्षण संस्था में जमा करना होगा। संस्था के प्राचार्य की अध्यक्षता में गठित समिति पूरे विवरण को ऑनलाइन सत्यापित करेगी। इसके बाद जिलाधिकारी की अध्यक्षता में गठित जिला स्तरीय समिति छात्रवृत्ति को स्वीकृति प्रदान करेगी। इसके बाद पिछड़ा वर्ग कल्याण निदेशक की अध्यक्षता में गठित समिति छात्रवृत्ति का भुगतान सुनिश्चित कराएगी।
अस्वीकृति की भी सूचना
जिला स्तरीय समिति अस्वीकृत किये गए आवेदनों के मामले में कारण भी वेबसाइट पर अपलोड करेगी। इसकी सूचना विद्यार्थी द्वारा दिये गए मोबाइल नंबर पर एसएमएस द्वारा दी जाएगी। सूचना प्राप्ति के 15 दिन के अंदर जिलाधिकारी के समक्ष अपील की जा सकेगी। सुनवाई के बाद जिलाधिकारी द्वारा पारित आदेश अंतिम होगा। इसके अलावा जिलाधिकारी के स्तर पर कम से कम दस फीसद लाभार्थियों का सत्यापन भी कराया जाएगा। 

दवा संकट से निपटने को एक साथ खरीद की तैयारी

-यूपीडीपीएल के जीर्णोद्धार को मंत्रिमंडल की हरी झंडी
-कॉरपोरेशन बनाकर दवाओं की खरीद-फरोख्त का जिम्मा
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : सरकारी अस्पतालों में दवाओं का संकट होने और समय पर खरीदारी न हो पाने जैसी स्थिति से निपटने के लिए प्रदेश सरकार एक साथ दवा खरीद की तैयारी कर रही है। इसके लिए उत्तर प्रदेश ड्रग एंड फार्मास्युटिकल लिमिटेड (यूपीडीपीएल) को प्रोक्योरमेंट कॉरपोरेशन बनाया जाएगा। बुधवार को मंत्रिमंडल ने यूपीडीपीएल के जीर्णोद्धार को हरी झंडी दे दी।
यूपीडीपीएल की स्थापना लखनऊ में दवा निर्माण के एक सरकारी प्रतिष्ठान के रूप में हुई थी। बीते कुछ वर्षों से यह प्रतिष्ठान मरणासन्न है। बुधवार को जीर्णोद्धार के फैसले के बाद अब यहां दोबारा दवाओं का उत्पादन शुरू किया जाएगा। दवा उत्पादन क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जबर्दस्त प्रतिस्पद्र्धा है, इसलिए यहां प्रारंभिक रूप से जरूरी 12 जीवनरक्षक दवाइयां बनाकर उनकी आपूर्ति प्रदेश के सभी सरकारी अस्पतालों में की जाएगी। दवा बनाने के अलावा यूपीडीपीएल को दवाओं की खरीदफरोख्त के लिए प्रोक्योरमेंट कॉरपोरेशन के रूप में भी विकसित किया जाएगा। तमिलनाडु, राजस्थान व उड़ीसा में दवाओं की खरीद फरोख्त व रखरखाव के लिए अलग निगम बना दिये गए हैं। अभी दवाओं की खरीद का जिम्मा स्वास्थ्य महानिदेशालय के पास है और वहां आए दिन टेंडर से लेकर तमाम गड़बडिय़ों की शिकायतें मिलती रहती हैं। अब खरीद व रखरखाव के लिए अलग से अधिष्ठान हो जाने के बाद ये शिकायतें तो दूर होंगी ही, दवाओं की कमी भी नहीं पड़ेगी। अभी केंद्र सरकार स्वास्थ्य योजना (सीजीएचएस) की दरों को आधार बनाया जाता है किन्तु अलग अधिष्ठान होने पर प्रतियोगी दरें मिलना भी आसान होगा।
40 एकड़ जमीन में आइटी पार्क
यूपीडीपीएल के पुनरुद्धार के लिए 40 एकड़ जमीन बेची जाएगी। यह जमीन यूपी इलेक्ट्रानिक कॉरपोरेशन को दी जाएगी, जहां आइटी पार्क की स्थापना होगी। इस पूरी प्रक्रिया के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में समिति बनाई गयी है। औद्योगिक विकास आयुक्त इस समिति के उपाध्यक्ष व प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) सदस्य सचिव होंगे। इनके अलावा वित्त, कार्मिक, सार्वजनिक उद्यम, संस्थागत वित्त, चिकित्सा शिक्षा और खाद्य एवं औषधि विभागों के प्रमुख सचिव इस समिति के सदस्य होंगे।

फायदे में आने को सेंसर लगा रोकेंगे डीजल चोरी


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-रोडवेज की सभी बसों में हाईटेक बंदोबस्त की तैयारी
-इंडियन ऑयल की पहल पर साल भीतर अमल को मंजूरी
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डॉ.संजीव, लखनऊ
बसों में डीजल चोरी रोककर रोडवेज को फायदे में लाने की तैयारी की जा रही है। इसके लिए उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम ने सभी रोडवेज बसों में सेंसर लगाने जैसे हाईटेक बंदोबस्त की तैयारी की है। इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन के प्रस्ताव पर साल भीतर अमल को मंजूरी मिल गयी है।
रोडवेज इस समय प्रदेश में 9500 बसों का संचालन कर रहा है। अलग-अलग रूट्स के हिसाब से इनमें डीजल की खपत होती है। वर्षों से इनमें डीजल चोरी की शिकायतें मिल रही थीं। इस कारण होने वाले घाटे से उबरने के लिए अब रोडवेज प्रबंधन ने इंडियन ऑयल की मदद से इन सभी बसों में सेंसर लगाने का फैसला किया है। तय हुआ है कि रोडवेज के इंटीग्र्रेटेड ट्रांसपोर्ट मैनेजमेंट सिस्टम (आइटीएमएस) की टीम इस पूरी परियोजना को अमल में लाएगी। इस पर आने वाला खर्च सोशल कॉरपोरेट रिस्पांसिबिलिटी (सीएसआर) मद में इंडियन ऑयल द्वारा उठाया जाएगा। एक साल के भीतर रोडवेज की सभी बसों में यह सेंसर लगाने का लक्ष्य आइटीएमएस टीम पूरा कर लेगी। इसके लिए लखनऊ स्थित परिवहन निगम मुख्यालय में मुख्य नियंत्रण कक्ष और क्षेत्रीय कार्यालयों में उप नियंत्रण कक्ष बनाए जाएंगे। सभी तथ्य ऑनलाइन नियंत्रण कक्षों में पहुंचेंगे, जहां विश्लेषण कर डीजल चोरी का आकलन किया जाएगा। इसमें हर बस के लिए अलग-अलग पता चल सकेगा कि उसमें एवरेज के अनुसार कितना ईंधन खर्च किया और कितनी गड़बड़ी हुई है। इसके बाद जिम्मेदारी निर्धारित कर प्रशासनिक विभाग को सौंप दी जाएगी, ताकि कार्रवाई हो सके।
डीजल टैंक में लगती चिप
डीजल की खपत पर नजर के लिए डीजल टैंक के भीतर एक चिप सहेजे रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन डिवाइस (आरआइएफडी) लगाया जाता है। इसका संबंध बसों में डीजल भरने वाले पंप के नोजल पर लगे सेंसर टैग से होता है। जैसे ही डीजल पड़ता है, पूरी जानकारी कंप्यूटर तक पहुंच जाती है। इसमें कहीं भी हुई छेड़छाड़ या एवरेज का आकलन कर डीजल चोरी का पता लगाया जाता है।
87 बसों में परीक्षण शुरू
सेंसर का परीक्षण अलग-अलग रूट्स की 87 बसों में शुरू कर दिया गया है। एक माह से चल रहे परीक्षण में खासे सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। अगले माह राजधानी के कैसरबाग डिपो से जुड़ी सभी बसों व उपनगरीय बस सेवा की बसों में सेंसर लगा दिये जाएंगे। उसके बाद अन्य डिपों को आधार बनाकर धीरे-धीरे सभी बसों में सेंसर फिट कर दिये जाएंगे।
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रोडवेज की सभी बसों में सेंसर लगाने का फैसला हुआ है। इस बाबत प्रक्रिया शुरू हो गयी है। परीक्षण पूरा होने के बाद पहले वातानुकूलित बसों में और फिर शेष सभी बसों में ये सेंसर लगाए जाएंगे। इससे निश्चित रूप से रोडवेज को लाभ मिलेगा। -के.रविन्द्र नायक, प्रबंध निदेशक, उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम

Monday 28 March 2016

नए कलेवर में 'मिशन यूपी' पर संघ


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-संघ प्रमुख आज से तीन दिन के लखनऊ प्रवास पर
-प्रचारकों की बैठक, भाजपा के संगठन मंत्री बुलाये गए
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नए तेवर-कलेवर के साथ 'मिशन यूपी' पर सक्रिय होने जा रहा है। संघ प्रमुख मोहन भागवत रविवार से तीन दिन के लखनऊ प्रवास पर रहेंगे। रविवार से ही शुरू हो रही प्रदेश के संघ प्रचारकों की बैठक में भाजपा के संगठन मंत्रियों को भी बुलाया गया है।
उत्तर प्रदेश की मौजूदा राजनीतिक व सामाजिक परिस्थितियों में संघ के कामकाज को नियोजित विस्तार देने व मौजूदा स्थितियों की समीक्षा के लिए प्रदेश में सक्रिय प्रचारकों की तीन दिवसीय बैठक राजधानी लखनऊ में रविवार से शुरू हो रही है। हाल ही में राजस्थान के नागौर में हुई अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में संघ ने हॉफ पैंट की जगह फुल पैंट को गणवेश का हिस्सा बनाने का फैसला लिया है। इस तरह अब स्वयंसेवकों का कलेवर बदल रहा है, वहीं तमाम प्रचारकों के तबादले व दायित्वों में भी परिवर्तन हुआ है। इन परिवर्तनों के बाद प्रदेश में हो रही पहली बैठक महत्वपूर्ण मानी जा रही है। इस बैठक में संघ ने अपने उन प्रचारकों को भी बुलाया है, जो भाजपा में संगठन मंत्री का दायित्व संभालते हुए संघ का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
संघ ने उत्तर प्रदेश को लेकर गंभीर रणनीति बनाई है। यही कारण है कि सह सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले अब लखनऊ में केंद्र बनाकर रहेंगे। अभी तक वह पटना में रह रहे थे। संघ प्रमुख मोहन भागवत भी रविार से तीन दिवसीय प्रवास पर लखनऊ पहुंच रहे हैं। वह प्रदेश की बदली राजनीतिक परिस्थितियों पर विमर्श के साथ संघ की शाखाओं के विस्तार पर भी चर्चा करेंगे। माना जा रहा है कि तीन दिनों की प्रचारकों की बैठक और इस दौरान संघ प्रमुख की उपस्थिति से संघ के 'मिशन यूपी' की रूपरेखा भी बन जाएगी। इस बैठक में संघ के मूल कामकाज में सक्रिय प्रचारकों की भूमिका के साथ भाजपा के संगठन मंत्री के रूप में काम कर रहे प्रचारकों की भूमिका पर भी निश्चित रूप से चर्चा होगी। संघ प्रमुख 28 मार्च को चारबाग क्षेत्र के एपी सेन रोड स्थित भारतीय किसान संघ के नवनिर्मित कार्यालय भवन का उद्घाटन करेंगे। 29 मार्च को संघ प्रमुख रायबरेली रोड स्थित माधव सेवाश्रम की नयी विंग का लोकार्पण करेंगे।
जन से किसान की यात्रा का साक्षी रज्जू भैया भवन
संघ प्रमुख मोहन भागवत किसान संघ के जिस भवन का लोकार्पण करेंगे, उसका नामकरण पूर्व सरसंघ चालक प्रो.राजेंद्र सिंह (रज्जू भैया) पर किया गया है। रज्जू भैया स्मृति भवन जन से किसान तक की यात्रा का साक्षी भी है। 1948 में आवंटन के बाद संघ कार्यालय के रूप में इसका प्रयोग शुरू हुआ था। पं.दीनदयाल उपाध्याय, नानाजी देशमुख, भाऊराव देवरस, डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी आदि यहां रहते थे। 9151 में जनसंघ की स्थापना के बाद यहां जनसंघ का प्रांतीय कार्यालय रहा। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी इसी भवन के पते से लखनऊ के मतदाता रहे। 1979 में यहां किसान संघ का कार्यालय स्थापित हुआ।

पहले स्वीकृतियां कम, फिर खर्च और कम


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-बजट प्रावधान के अनुरूप धन स्वीकृत करने में हुई ढिलाई
-धन मिला तो विभाग खर्च के लिए मार्च का इंतजार करते रहे
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : वित्तीय वर्ष खत्म होने को है और आखिरी 15 दिनों में सभी विभागों में ताबड़तोड़ स्वीकृतियों व खर्चों को अंतिम रूप देने की मशक्कत चली है। आंकड़े बताते हैं कि पहले तो शासन स्तर से धन स्वीकृत करने में हाथ कसा गया और फिर विभागों ने खर्च करने में ढिलाई बरती।
प्रदेश सरकार आम बजट में ही अलग-अलग विभागों के लिए धन आवंटित कर प्रावधान कर देती है। उसके बाद आवश्यकतानुरूप इसमें बदलाव होते रहते हैं। अफसरों की लापरवाही व ढिलाई से सामान्यत: देखा गया है कि मार्च आते-आते यह पूरी धनराशि खर्च ही नहीं हो पाती है। इस साल भी कमोवेश यही स्थिति है और सभी विभाग आनन-फानन स्वीकृत धन खर्च करने के लिए खरीद या निर्माण आदेश आदि जारी करने में जुटे हैं। मार्च के आखिरी पखवाड़े यह मशक्कत तेज हो गयी है। 14 मार्च तक के आंकड़ों को देखें तो प्रदेश के 21 विभागों को कुल बजट प्रावधान 1058 अरब रुपये के विपरीत 69.7 फीसद राशि यानी 738 अरब रुपये ही स्वीकृत किये गए थे। स्वीकृत राशि के साथ सीधे प्राप्त केंद्रांश व एक अप्रैल 2015 को बैंक पड़ी अप्रयुक्त धनराशि को जोड़ लिया जाए तो इन विभागों के पास खर्च के लिए 931 अरब रुपये थे, किन्तु खर्च हुए केवल 718 अरब रुपये। इस तरह उपलब्ध धनराशि में भी 23 फीसद धन तमाम सरकारी विभाग खर्च ही नहीं कर पाए।
खर्च में अल्पसंख्यक कल्याण पीछे
धन खर्च करने में अल्पसंख्यक कल्याण विभाग सबसे पीछे रहा। 2284 करोड़ रुपये बजट प्रावधान के विपरीत महज 39 प्रतिशत धनराशि स्वीकृत हुई और उसमें भी मात्र 36 फीसद खर्च की गयी। न्याय विभाग को स्वीकृति भले ही 61 फीसद की मिली, किन्तु जितना मिला, पूरा खर्च कर लिया। इसी तरह ग्राम्य विकास विभाग भी खर्च के मामले में 98 फीसद के साथ अव्वल है। पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग को शासन ने तो 98.8 फीसद राशि स्वीकृत कर दी, किन्तु 14 मार्च तक खर्च हो सकी महज 40 फीसद।
शिक्षा विभाग को न्यूनतम स्वीकृति
स्वीकृति के मामले में शिक्षा विभाग सबसे पीछे रहा है। 14 मार्च तक माध्यमिक शिक्षा विभाग को 2187 करोड़ के बजट प्रावधान की तुलना में महज 31.3 फीसद राशि ही स्वीकृत की गयी थी। विभाग ने कुल प्राप्त धन में 61 फीसद खर्च कर लिया था। इसी तरह बेसिक शिक्षा के 17014 करोड़ प्रावधान के विपरीत महज 47 फीसद राशि की स्वीकृतियां ही जारी हुई थीं। बेसिक शिक्षा विभाग ने भी 78 फीसद धनराशि खर्च कर डाली।
मुख्य सचिव सख्त, बुलाई बैठक
विभागों के कामकाज की इस गति पर मुख्य सचिव आलोक रंजन ने सख्त रुख अख्तियार किया है। उन्होंने 30 मार्च को वित्तीय वर्ष के दौरान धनराशि के उपयोग की समीक्षा करने के लिए सभी विभागों की बैठक बुलाई है। 22 विभागों के प्रमुख सचिवों व सचिवों को स्वयं उपस्थित रहने के निर्देश के साथ सभी को एक प्रोफार्मा भेजा गया है। उनसे वित्तीय वर्ष 2015-16 के लिए बजट प्रावधानों के सापेक्ष जारी स्वीकृतियों, भारत सरकार से प्राप्त सहायता व अप्रयुक्त धनराशि के उपयोग संबंधी जानकारियां इस प्रोफार्मा में भरकर 28 मार्च तक नियोजन विभाग को उपलब्ध कराने को कहा गया है।

Saturday 26 March 2016

आयुर्वेद प्रयोगशाला ही नहीं, कैसे हो जांच


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-दो साल से धूल फांक रहीं सुधार की संस्तुतियां
-एकमात्र प्रयोगशाला में विश्लेषक तक तैनात नहीं
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : प्रदेश में आयुर्वेद औषधि विक्रेताओं को अराजकता की पूरी छूट मिल रही है। आयुर्वेद महकमा औषधियों की जांच में प्रभावी भूमिका नहीं निभा पा रहा है। एक भी प्रयोगशाला न होने से नमूनों की जांच तक नहीं हो रही है।
एलोपैथिक दवाओं के उत्पादन से लेकर बिक्री तक के लिए खाद्य एवं औषधि प्रसाधन विभाग एक स्वतंत्र इकाई के रूप में कार्य करता है। शासन स्तर पर इस विभाग के लिए अलग से प्रमुख सचिव तैनात हैं। आयुर्वेद दवाओं के उत्पादन से बिक्री तक पर नजर रखने का जिम्मा आयुर्वेद निदेशालय के पास है। आयुर्वेद निदेशक के पास आयुर्वेद औषधि नियंत्रक का कार्यभार है और जिलों के आयुर्वेद अधिकार औषधि निरीक्षक की भूमिका में होते हैं। ऐसे में आयुर्वेद विभाग के अधिकारियों की जिम्मेदारी है कि वे आयुर्वेद औषधि विक्रेताओं व उत्पादकों के परिसरों का नियमित निरीक्षण करें। वहां नमूने भरें और गड़बड़ी पाए जाने पर परीक्षण भी कराएं।
आयुर्वेद विभाग के अधिकारी भी मानते हैं कि ऐसा नहीं हो पा रहा है। यह स्थिति तब है, जबकि पिछले दो वर्षों में भारी संख्या में हर शहर में आयुर्वेद उत्पादों की दुकानें खुली हैं। हाल ही में पतंजलि के एक उत्पाद में अक्टूबर की उत्पादन तिथि पड़ी होने के बावजूद वह उत्पाद मार्च में बिकता मिला था। जिलाधिकारी द्वारा शिकायत किये जाने के बाद भी उक्त उत्पाद का परीक्षण तक प्रदेश में नहीं हो सका। अधिकारियों का कहना है कि प्रदेश में प्रभावी सरकारी प्रयोगशाला ही नहीं है, जांच कैसे करायी जाए। एक मात्र आयुर्वेद प्रयोगशाला राजधानी लखनऊ के राजाजीपुरम् स्थित राजकीय आयुर्वेदिक औषधि निर्माणशाला परिसर में है किन्तु वह कई वर्षों से बंद है। दो वर्ष पूर्व डॉ.अशोक श्रीवास्तव, डॉ.कमल सचदेवा व डॉ.एसके वर्मा की एक समिति बनाकर शासन स्तर से इस प्रयोगशाला को पुनर्जीवित करने के लिए जांच-पड़ताल कराई गयी थी। इस समिति ने वहां गड़बडिय़ां सुधारने के साथ तत्काल एक विश्लेषण नियुक्त करने की संस्तुति की थी। उस समय भी प्रयोगशाला बिना किसी विश्लेषक (एनालिस्ट) के थी और आज तक वहां नियुक्ति नहीं हुई है। ऐसे में वहां नमूने भेजे ही नहीं जाते हैं और आयुर्वेदिक उत्पादों के निर्माता व विक्रेता मनमाने ढंग से काम करते रहते हैं।

पहली दफा अस्पतालों की ओपीडी पांच दिन बाधित


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-होली का असर-
-एसजीपीजीआइ व लोहिया संस्थान में बंद रहे वाह्य रोगी विभाग
-अन्य अस्पतालों में भी दो दिन पूरी तरह और तीन दिन आधी बंदी
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : इस बार होली सरकारी कर्मचारियों के लिए भले ही ढेर सारी छुट्टियों की सौगात लाई हो किन्तु मरीजों के लिए परेशानी का सबब भी बनी। पहली दफा अस्पतालों की ओपीडी पांच दिन तक बाधित है। इस कारण तमाम स्थानों पर मरीजों को निराश लौटना पड़ा।
इस बार होली की छुïट्टी 23 व 24 मार्च को, गुड फ्राइडे की छुïट्टी 25 मार्च को पड़ी। उसके बाद 26 मार्च को शनिवार पड़ गया और 27 मार्च को रविवार है। राजधानी लखनऊ के संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआइ) में पूरे प्रदेश से मरीज आते हैं। पहले 24 को होली खेली जानी थी, इसलिए 24 के एप्वाइंटमेंट नहीं दिये गए। इस बीच राजधानी में 23 को होली खेलने का फैसला हो गया तो बुधवार को भी वहां वाह्य रोगी विभाग बंद हो गया। 25 को गुड फ्राइडे का अवकाश रहा और 26 को शनिवार के कारण आधे दिन ओपीडी बंद रहेगी। 27 को रविवार है और ओपीडी बंद रहेगी। इस तरह पांच दिन बाद 28 मार्च को ओपीडी पूरी तरह से संचालित होगी। राजधानी के ही लोहिया संस्थान में भी पिछले तीन दिन से छुट्टी का माहौल है। ओपीडी बंद है और सिर्फ गंभीर अवस्था में पहुंचने वाले मरीज ही भर्ती किये जा रहे हैं। यहां भी शनिवार को आधे दिन ओपीडी चलेगी और रविवार को फिर बंद हो जाएगी।
मेडिकल कालेजों से संबद्ध व जिला अस्पतालों सहित अन्य अस्पतालों में पांच दिन तक वाह्य रोगी विभाग का कामकाज बाधित रहा है। इस बार प्रदेश के कुछ जिलों में 23 को और कुछ में 24 को होली खेली गयी। होली खेलने वाले दिन तो पूरी तरह ओपीडी बंद रही और दूसरे दिन महज तीन घंटे ही खुली। शुक्रवार को भी गुडफ्राइडे के कारण आधे दिन ओपीडी खुली और शनिवार को भी यही स्थिति रहेगी। रविवार को ओपीडी फिर बंद हो जाएगी। इसका सर्वाधिक खामियाजा मरीजों को उठाना पड़ा। इमरजेंसी में सिर्फ गंभीर मरीजों का ही इलाज किया जाता है, इसलिए वहां पहुंचे सामान्य मरीजों को लौटा दिया गया। छुट्टियों में अपने घर आए लोग यदि बीमार पड़े तो उन्हें निजी अस्पतालों व डॉक्टरों के सहारे ही रहना पड़ा। इस संबंध में संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान के निदेशक डॉ.राकेश कपूर ने बताया कि पहली बार यह स्थिति बनी है, जब लगातार तीन दिन ओपीडी बंद रही है। शनिवार को आधे दिन खुलेगी और फिर रविवार को बंद रहेगी। चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक डॉ.वीएन त्रिपाठी ने भी माना कि पहली दफा ओपीडी लगातार पांच दिन बाधित हुई है। दावा किया कि इस दौरान इमरजेंसी सेवाएं मुस्तैद रहीं।

सपा ने हारी सीटों पर बदले आधे से ज्यादा चेहरे


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-पहली सूची में 76 टिकट बदलकर रोचक मुकाबले की कोशिश
-65 सीटों पर दूसरे स्थान पर रहे प्रत्याशियों में भी 31 बदले
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : समाजवादी पार्टी ने अगले विधानसभा चुनाव के लिए जारी की गयी पहली सूची में 76 टिकट बदलकर मुकाबले को रोचक बनाने की कोशिश की है। पिछले विधानसभा चुनाव में दूसरे स्थान पर रहे 31 प्रत्याशियों सहित हारी सीटों पर आधे से ज्यादा चेहरे बदल दिये गए हैं।
शुक्रवार को समाजवादी पार्टी ने जिन 141 सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा की है, उनमें सीट-दर-सीट समीकरणों का ध्यान रखा गया है। यही कारण है कि पिछली बार चुनाव लड़े 76 लोग इस बार चुनाव मैदान में नहीं दिखेंगे। 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा इन 141 सीटों में से तीन सीटें जीती थीं, किन्तु बीच में हुए उपचुनावों में उसे यह सीटें गंवानी पड़ीं। इनमें से उन्नाव में दीपक कुमार की पत्नी मनीषा दीपक, प्रतापगढ़ की विश्वनाथगंज सीट पर राजाराम पाण्डेय के पुत्र संजय पाण्डेय टिकट पाए हैं। फतेहपुर सीट भी सपा के पास थी, जिस पर चंद्र प्रकाश लोधी को उतारा गया है। दूसरे स्थान पर रहे 65 प्रत्याशी भी अपनी टिकट नहीं बचा सके हैं। इनमें से 31 के टिकट बदल गए हैं और सिर्फ 34 को ही इस बार फिर मौका मिला है।
तीसरे स्थान पर रहे 24 पाए टिकट
घोषित 141 सीटों में से पिछले चुनाव में समाजवादी पार्टी 42 सीटों पर तीसरे और 24 सीटों पर चौथे स्थान पर रही थी। तीसरे स्थान पर रहे लोगों में से 24 लोग दोबारा टिकट पाने में सफल हो गए हैं। सिर्फ 18 लोगों के ही टिकट बदले गए हैं। पिछली बार चौथे स्थान पर रहे तीन लोग भी इस बार टिकट पा गए हैं। चौैथे स्थान पर रहने वाले 24 में से 21 को इस बार टिकट नहीं मिले हैं और इन सीटों पर नए चेहरे दिखाई देंगे।
...पर ये निकले खुशकिस्मत
शुक्रवार को घोषित प्रत्याशियों का आकलन करें तो पिछले चुनाव में दूसरे, तीसरे व चौथे स्थान पर रहने वाले 70 लोगों को भले ही टिकट न दिया गया हो, पर पांचवें स्थान पर रहे पांच में से दो प्रत्याशी टिकट पा गए हैं। शेष तीन प्रत्याशियों को इस बार मौका नहीं मिलेगा। इसी तरह छठे व आठवें स्थान पर रहे एक-एक प्रत्याशी भी इस बार सपा की सूची में अपना स्थान नहीं बना सके हैं।

Tuesday 22 March 2016

पिछड़ों को आरक्षण पर विश्वविद्यालयों से पड़ताल


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-लागू होने के 22 साल बाद भी पूरी तरह लागू न होने की शिकायत
-राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने मांगी कुलसचिवों से विस्तृत रिपोर्ट
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : उच्च शिक्षा में पिछड़ों को आरक्षण की घोषणा के दो दशक बाद भी इसका पूरा लाभ न मिल पाने की शिकायत पिछड़ा वर्ग आयोग से की गयी है। इस पर आयोग ने सभी विश्वविद्यालयों से शैक्षिक सत्र 2015-16 में आरक्षण के अनुुपालन पर पूरी रिपोर्ट मांगी है।
उत्तर प्रदेश के उच्च शिक्षा संस्थानों में अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्र-छात्राओं को 27 फीसद आरक्षण देने का प्रावधान है। राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के पास पहुंची तमाम शिकायतों में कहा गया है कि यह प्रावधान लागू होने के 22 साल बाद भी इस पर पूरी तरह अमल नहीं हुआ है। इस पर राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों के कुलसचिवों को पत्र लिखकर जवाब-तलब किया है। उनसे पूछा गया है कि सभी विश्वविद्यालयों, राजकीय महाविद्यालयों, सहायता प्राप्त अशासकीय महाविद्यालयों व अन्य उच्च शिक्षा संस्थानों में अन्य पिछड़े वर्गों के लिए निर्धारित 27 फीसद आरक्षण के अंतर्गत कितने प्रवेश दिये गए हैं? एक माह के भीतर पूरा ब्योरा देने के निर्देश के साथ उच्च शिक्षा, प्राविधिक शिक्षा व चिकित्सा शिक्षा विभागों के प्रमुख सचिवों से इस संबंध में अलग से निर्देश जारी करने को भी कहा गया है।
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गड़बड़ी में आगे हैं निजी कालेज
शिकायत के मुताबिक निजी इंजीनियरिंग व मेडिकल कॉलेज गड़बड़ी में सबसे आगे हैं। ये कॉलेज प्रबंधन कोटे के नाम पर मनमाने ढंग से प्रवेश लेते हैं। प्रदेश के निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों में पहले तो प्रबंधन कोटा का नाम पर मनमाने ढंग से प्रवेश की छूट है, फिर राज्य इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा में सीटें न भरने के बाद मुक्त सीटों के नाम पर आरक्षण का पालन नहीं होता। निजी मेडिकल कॉलेज तो पूरी तरह से अराजक हैं। किसी भी निजी मेडिकल कॉलेज में स्नातक या परास्नातक स्तर पर पिछड़ों को 27 फीसद आरक्षण नहीं मिल रहा है। पिछड़ा वर्ग आयोग ने डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय से सभी निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों में आरक्षण नियमों के अनुपालन का पूरा ब्योरा मांगा है। साथ ही चिकित्सा शिक्षा महानिदेशालय से निजी मेडिकल कालेजों में आरक्षण नियमों के अनुपालन पर रिपोर्ट तलब की है।
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'अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्र-छात्राओं के शैक्षिक उन्नयन के लिए 1994 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने प्रदेश के उच्च शिक्षा संस्थानों में आरक्षण लागू किया था। 22 साल बाद भी उस पर पूरी तरह अमल नहीं हो रहा है। इसीलिए प्रदेश के 25 विश्वविद्यालयों व चिकित्सा शिक्षा महानिदेशालय से रिपोर्ट तलब की है। गड़बड़ी पर संबंधित विश्वविद्यालयों के खिलाफ कार्रवाई होगी।'
-राम आसरे विश्वकर्मा, अध्यक्ष, राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग

Monday 21 March 2016

बड़े नेताओं ने संसद में बनाए रखा सन्नाटा


- पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च ने खोली यूपी के सांसदों की पोल
- लोकसभा से गायब रहने के साथ बहस व सवालों से भी रहते दूर
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : लोकसभा के बजट सत्र में प्रदेश का प्रतिनिधित्व कर रहे बड़े नेताओं ने सन्नाटा बनाए रखा। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च ने उत्तर प्रदेश के सांसदों की पोल खोलते हुए दावा किया है कि ये लोग लोकसभा से गायब रहने के साथ ही बहस व सवालों से भी दूर रहे हैं।
पीआरएस ने 23 मार्च से 15 मार्च के दौरान बजट सत्र का आकलन किया है। इस दौरान प्रदेश के सांसदों की उपस्थिति का आकलन करने के लिए संसद के रजिस्टर में उनके हस्ताक्षर को आधार बनाया गया। बहस में सहभागिता के लिए व्यक्तिगत क्षमता या पार्टी की ओर से नामित किये जाने पर बोलने को जोड़ा गया। सवालों में तारांकित व अतारांकित, दोनों तरह के सवाल जोड़े गए हैं। मोदी मंत्रिमंडल के मंत्रियों को हटाकर शेष 68 लोकसभा सदस्यों का आकलन चौंकाने वाला रहा है। हरिबंश सिंह 58 सवालों के साथ सबसे आगे और धर्मेंद्र यादव 47 सवाल पूछ कर दूसरे स्थान पर रहे। पुष्पेंद्र सिंह चंदेल ने सर्वाधिक 131 बार बहस में हिस्सा लिया और भैरो प्रसाद मिश्रा 129 बार बहस में भाग लेकर दूसरे स्थान पर रहे।
डिंपल-हेमा सर्वाधिक गैरहाजिर
आकड़ों के मुताबिक 21 सांसद अब तक के सत्र में शत प्रतिशत उपस्थित हुए हैं। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव 40 फीसद उपस्थिति के साथ सबसे पीछे हैं, वहीं सिने तारिका व भाजपा सांसद हेमा मालिनी 47 फीसद के साथ न्यूनतम उपस्थिति में दूसरे स्थान पर हैं। सांसद रेखा वर्मा भी महज 47 फीसद ही उपस्थित रहीं। हेमा व रेखा, दोनों ने एक भी सवाल नहीं पूछा और बस एक-एक बार बहस में भाग लिया।
बहस-सवाल में यादव परिवार पीछे
पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव सहित परिवार के सांसद बहस व सवाल में खासा पीछे हैं। स्वयं मुलायम ने 67 फीसद उपस्थित रहकर एक भी सवाल नहीं पूछा और महज दो बार बहस में हिस्सा लिया। डिंपल, अक्षय व तेजप्रताप ने न तो बहस में हिस्सा लिया, न सवाल पूछे। धर्मेंद्र ने जरूर 47 सवाल पूछे और दो बार बहस में हिस्सा लिया किंतु उपस्थिति 53 फीसद ही रही।
गांधी परिवार भी निष्क्रिय
रिपोर्ट के मुताबिक लोकसभा में गांधी परिवार भी निष्क्रिय रहा है। कांग्र्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 73 फीसद उपस्थित रहकर सिर्फ एक बार बहस में हिस्सा लिया और सवाल तो एक भी नहीं पूछा। राहुल गांधी संसद में मात्र 60 फीसद उपस्थित रहे और एक भी सवाल पूछे बिना दो बार बहस में हिस्सा लिया। 67 फीसद उपस्थित वरुण गांधी ने सिर्फ एक बार बहस में हिस्सा लिया और 13 सवाल पूछे।
भाजपाई दिग्गज भी रहे मौन
संसद में मौन रहने वालों में भाजपाई दिग्गज भी शामिल हैं। सांसद मुरली मनोहर जोशी की सदन में उपस्थित 73 प्रतिशत रही, किंतु उन्होंने एक बार भी बहस में हिस्सा नहीं लिया और एक भी सवाल नहीं पूछा। नौ अन्य भाजपा सांसदों अशोक दोहरे, बाबूलाल चौधरी, ब्रजभूषण शरण सिंह, धर्मेन्द्र कुमार, हरीओम पांडेय, कृष्ण प्रताप, कुंवर सर्वेश कुमार, नेपाल सिंह व सतीश कुमार ने न तो बहस में एक बार भी हिस्सा लिया, न ही एक भी सवाल पूछा।
उपस्थिति में आगे, सवालों में पीछे
यूपी के सांसद उपस्थिति के मामले में राष्ट्रीय औसत से आगे रहे किंतु सवाल पूछने के मामले में पीछे साबित हुए। रिपोर्ट के मुताबिक उपस्थिति के मामले में लोकसभा का कुल औसत 80 प्रतिशत है, तो प्रदेश के सांसद औसतन 85 फीसद उपस्थित रहे हैं। इस दौरान हुई बहसों में देश भर के लोकसभा सदस्यों का कुल औसत 3.6 है, वहीं प्रदेश के लोकसभा सांसदों ने औसतन 6.7 बार बहस में हिस्सा लिया। इसके विपरीत सवाल पूछने ने प्रदेश के लोकसभा सदस्य पीछे रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर पर सांसदों ने 14 सवाल पूछे, वहीं प्रदेश के सांसदों ने औसत नौ सवाल ही पूछे।

Saturday 19 March 2016

यूपीपीजीएमईई से दूर होंगे निजी मेडिकल कालेज!


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-चिकित्सा शिक्षा महानिदेशालय ने शासन को भेजा प्रस्ताव
-निजी कालेजों से पढ़े विद्यार्थियों को न मिले सरकारी में मौका
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डॉ.संजीव, लखनऊ
प्रदेश के सरकारी मेडिकल कालेजों की परास्नातक कक्षाओं में प्रवेश के लिए होने वाली परीक्षा यूपीपीजीएमईई से निजी मेडिकल कालेजों को दूर करने की तैयारी है। चिकित्सा शिक्षा महानिदेशालय ने शासन को इस बाबत प्रस्ताव भेजा है।
प्रदेश के सरकारी मेडिकल कालेजों के एमडी, एमएस या परास्नातक डिप्लोमा पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए कुल 751 व एमडीएस की 27 सीटें हैं। इनमें से आधी सीटें अखिल भारतीय कोटे से भरी जाती हैं और आधी सीटें उत्तर प्रदेश से एमबीबीएस करने वालों के लिए बचती हैं। इनमें भी बीते दो वर्षों से 30 फीसद आरक्षण पीएमएस संवर्ग के अभ्यर्थियों के लिए कर दिया गया है। चिकित्सा शिक्षा महानिदेशालय ने शासन को भेजी अपनी संस्तुति में प्रदेश के अभ्यर्थियों के लिए बहुत कम सीटें बचने का मुद्दा उठाते हुए निजी कालेजों से एमबीबीएस या बीडीएस करने वालों को पीजीएमईई में बैठने की अनुमति न देने की बात कही है।
इस बाबत चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक डॉ.वीएन त्रिपाठी द्वारा लिखे गए पत्र में कहा गया है कि जब निजी कालेजों को पीजीएमईई के माध्यम से प्रवेश का फैसला हुआ था तब कालेज भी कम थे और उनके यहां परास्नातक पाठ्यक्रम भी नहीं थे। इस समय निजी क्षेत्र में एमबीबीएस की 2300 व बीडीएस की 2300 सीटें हैं। इसी तरह परास्नातक स्तर पर एमडी, एमएस व डिप्लोमा की 509 व एमडीएस की 611 सीटें हैं। सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा गया है कि निजी मेडिकल व डेंटल कालेजों की एक भी सीट पीजीएमईई का हिस्सा नहीं है, इसलिए उनके विद्यार्थियों को इस परीक्षा में नहीं बैठने देना चाहिए।
इस संबंध में प्रमुख सचिव (चिकित्सा शिक्षा) डॉ.अनूपचंद्र पाण्डेय ने बताया कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के आलोक में निदेशालय की संस्तुतियों के अनुरूप शासन स्तर पर विचार विमर्श किया जाएगा।
वे तो नहीं देते प्रवेश
इस समय प्रदेश में निजी क्षेत्र में 21 मेडिकल व 23 डेंटल कालेज संचालित हो रहे हैं। इनमें 11 मेडिकल व 21 डेंटल कालेजों में परास्नातक पाठ्यक्रम संचालित हैं। निजी मेडिकल व डेंटल कालेजों में स्नातक या परास्नातक कक्षाओं में यूपीसीपीएमटी या यूपीपीजीएमईई के माध्यम से प्रवेश नहीं मिलता है। शासन ने 2006 में अधिसूचना जारी कर निजी मेडिकल व डेंटल कालेजों में स्टेट कोटा का निर्धारण किया गया था, पर प्रदेश के निजी मेडिकल कालेजों ने न्यायालय से स्थगनादेश प्राप्त कर लिया और सभी सीटें वे स्वयं भरते हैं।
विधानसभा में उठा था मुद्दा
विधानसभा के बजट सत्र में भाजपा विधायक डॉ.राधामोहन दास अग्र्रवाल ने कहा था कि बाहर से आकर डोनेशन देकर निजी मेडिकल कालेजों के छात्र-छात्राएं तो यूपीपीजीएमईई में बैठ सकते हैं किन्तु प्रदेश में जन्मे और राष्ट्रीय परीक्षाओं में अच्छी रैंक लेकर देश के प्रतिष्ठित मेडिकल कालेजों में प्रवेश लेकर एमबीबीएस करने वाले इसमें नहीं बैठ सकते। यही नहीं बीएचयू व एएमयू से संबद्ध मेडिकल कालेजों के छात्र-छात्राएं भी इसमें नहीं बैठ सकते। मांग हुई थी कि प्रदेश के मूल निवासी छात्र-छात्राओं को यूपीपीजीएमईई में छूट मिलनी चाहिए।

Friday 18 March 2016

सरकारी दवा फैक्ट्री को जिंदा कर बढ़ाएंगे काम


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-यूपीडीपीएल को मजबूती, दवाएं बनाने व खरीदने का जिम्मा
-शासन स्तर पर प्रस्ताव तैयार, मंत्रिमंडल की मंजूरी का इंतजार
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : प्रदेश सरकार सरकारी अस्पतालों में दवा के आपूर्ति तंत्र को मजबूत करने जा रही है। इसके लिए यूपी ड्रग एंड फार्मास्युटिकल लिमिटेड का जीर्णोद्धार कर उसे दवाओं की खरीद-फरोख्त का काम भी सौंपने की तैयारी है। शासन स्तर पर यह प्रस्ताव तैयार कर लिया गया है और अब मंत्रिमंडल की मंजूरी का इंतजार है।
उत्तर प्रदेश ड्रग एंड फार्मास्युटिकल लिमिटेड (यूपीडीपीएल) की स्थापना लखनऊ में दवा निर्माण के एक सरकारी प्रतिष्ठान के रूप में हुई थी। राज्य सरकार ने यहां तमाम जीवन रक्षक दवाएं बनाने का फैसला लिया था, ताकि सरकारी अस्पतालों में सीधे आपूर्ति हो सके। बीते कुछ वर्षों से यह प्रतिष्ठान मरणासन्न है। प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) अरविंद कुमार के मुताबिक अब यूपीडीपीएल के जीर्णोद्धार का फैसला लिया गया है। इसकी उत्पादन क्षमता का आकलन हो चुका है और यहां दोबारा दवाओं का उत्पादन शुरू किया जाएगा। दवा उत्पादन क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जबर्दस्त प्रतिस्पद्र्धा है, इसलिए यहां प्रारंभिक रूप से जरूरी 12 दवाइयां ही बनाई जाएंगी। इन 12 जीवनरक्षक दवाइयों की आपूर्ति प्रदेश के सभी सरकारी अस्पतालों में होगी। कोशिश होगी कि प्रदेश के सरकारी अस्पतालों के लिए जरूरत भर की ये दवाएं यहां बन जाएं।
दवा बनाने के अलावा यूपीडीपीएल को दवाओं की खरीदफरोख्त के लिए प्रोक्योरमेंट कॉरपोरेशन के रूप में भी विकसित किया जाएगा। तमिलनाडु, राजस्थान व उड़ीसा में इस आशय के प्रयोग हुए हैं, जहां दवाओं की खरीद फरोख्त व रखरखाव के लिए अलग निगम बना दिये गए हैं। अभी दवाओं की खरीद का जिम्मा स्वास्थ्य महानिदेशालय के पास है और वहां आए दिन टेंडर से लेकर कई गड़बडिय़ों की शिकायतें मिलती रहती हैं। अब खरीद व रखरखाव के लिए अलग से अधिष्ठान होने के बाद ये शिकायतें तो दूर होंगी ही, दवाओं की कमी भी नहीं पड़ेगी। अभी केंद्र सरकार स्वास्थ्य योजना (सीजीएचएस) की दरों को आधार बनाया जाता है किंतु अलग अधिष्ठान होने पर प्रतियोगी दरें मिलना भी आसान होगा। इस संबंध में व्यापक प्रस्ताव तैयार हो गया है और जल्द ही मंत्रिमंडल के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा।

शादी अनुदान राशि दोगुनी, आवेदन ऑनलाइन


-सामान्य व अनुसूचित जाति का शासनादेश जारी, पिछड़ों को प्रतीक्षा
-परिवार में अधिकतम दो पुत्रियों के विवाह में मिलेगी मदद
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : अनुसूचित जाति, जनजाति व सामान्य वर्ग के गरीबों की बेटियों के विवाह के लिए अनुदान राशि दोगुनी कर दी गयी है। इसके साथ ही पूरी अनुदान प्रक्रिया अब ऑनलाइन कर दी गयी है।
गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले परिवारों की बेटियों के विवाह में अभी तक दस हजार रुपये मदद मिलती थी। सामान्य व अनुसूचित जाति-जनजाति के परिवारों के लिए यह जिम्मा समाज कल्याण विभाग का है, वहीं पिछड़े वर्ग के लिए पिछड़ा वर्ग विभाग की जिम्मेदारी है। दोनों विभागों ने सहायता राशि बढ़ाकर बीस हजार करने का प्रस्ताव भेजा था। समाज कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव सुनील कुमार ने सामान्य व अनुसूचित जाति-जनजाति के परिवारों की बेटियों के लिए सहायता राशि दोगुनी कर बीस हजार रुपये करने का शासनादेश जारी कर दिया है। पिछड़ा वर्ग विभाग को अभी शासनादेश जारी होने का इंतजार है। समाज कल्याण विभाग के शासनादेश में एक अप्रैल से इस योजना के लिए ऑनलाइन आवेदन का प्रावधान भी किया गया है। एक परिवार की अधिकतम दो पुत्रियों के विवाह में इसका लाभ दिया जाएगा। पति की मृत्यु के उपरांत निराश्रित व विकलांग महिला को वरीयता दी जाएगी। योजना का लाभ उठाने के लिए अधिकतम वार्षिक आय 56,460 रुपये व ग्रामीण क्षेत्रों में 46080 रुपये निर्धारित की गयी है। वृद्धावस्था पेंशन, निराश्रित विधवा पेंशन, विकलांग पेंशन व समाजवादी पेंशन पाने वालों को आय प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं होगी। अनुसूचित जाति, जनजाति के आवेदकों के लिए तहसील द्वारा ऑनलाइन निर्गत जाति प्रमाणपत्र लगाना अनिवार्य होगा।
यह होगी आवेदन प्रक्रिया
समाज कल्याण विभाग की वेबसाइट पर लॉगइन करके आवेदक को स्वयं सारी जानकारी भरनी होगी। शादी की तिथि के 90 दिन पूर्व से 90 दिन बाद तक ही आवेदन किया जा सकेगा। आवेदन में कोर बैंकिंग सुविधा वाली बैंक शाखा में खाते का ब्योरा भी भरना होगा, ताकि धनराशि सीधे उनके खाते में जा सके। इस आवेदन को डाउनलोड करके हार्ड कापी 30 दिनों के भीतर जिला समाज कल्याण अधिकारी कार्यालय में जमा करनी होगी।
जिला स्तरीय स्वीकृति समिति
अनुदान स्वीकृति के लिए जिलाधिकारी की अध्यक्षता में जिला स्तरीय समिति बनाई जाएगी। आवेदन की हार्ड कॉपी जमा होने के सात दिनों के भीतर जिला समाज कल्याण अधिकारी इस आवेदन को जांच के लिए उपजिलाधिकारी या खंडविकास अधिकारी को भेजेंगे। वहां से 15 दिनों के भीतर जांच के बाद आवेदन वापस जिला समाज कल्याण अधिकारी कार्यालय आएगा। इसके बाद जिला स्तरीय समित अनुदान स्वीकृत करेगी और धनराशि सीधे खाते में चली जाएगी। 

लापरवाही कर्मचारियों की, सजा भुगत रहे पेंशनर


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-समाजवादी पेंशन-
-1,43,563 लोगों का जमीनी सर्वेक्षण ही नहीं किया गया
-सर्वे में अपने पते पर ढूंढ़े नहीं जा सके 17,622 पेंशनर
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : समाजवादी पार्टी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना समाजवादी पेंशन योजना को लेकर भी कर्मचारी-अधिकारी संवेदनशील नहीं हैं। उनकी लापरवाही की सजा पेंशनरों को भुगतनी पड़ रही है। वित्तीय वर्ष 2014-15 के सभी पेंशनरों को ही अब तक पेंशन नहीं मिल सकी है। डेढ़ लाख का तो भुगतान ही रोक दिया गया है। 1,43,563 लोगों का जमीनी सर्वेक्षण किया ही नहीं गया और 17,622 पेंशनर अपने पते पर ढूंढे ही नहीं जा सके।
समाजवादी पेंशन योजना में वर्ष 2014-15 के लिए 33.35 लाख परिवारों को चुना गया था। पेंशन बांटने का जिम्मा संभाले समाज कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव सुनील कुमार ने सभी जिलाधिकारियों को भेजे आदेश में कंप्यूटरीकरण अनुश्रवण व्यवस्था सुनिश्चित करने के साथ अंतर्विभागीय समन्वय बढ़ाने को कहा है। 16 जिलों कानपुर नगर, खीरी, महाराजगंज, गोरखपुर, बाराबंकी, देवरिया, कुशीनगर, बांदा, सीतापुर, बुलंदशहर, रायबरेली, कानपुर देहात, शाहजहांपुर, बरेली, आजमगढ़ व फतेहपुर में सर्वाधिक लाभार्थी ऐसे मिले, जिनका बेसलाइन सर्वेक्षण ही नहीं हुआ है। एक वर्ष बाद तक यह सर्वेक्षण न होने से स्पष्ट है कि नामित कर्मचारी द्वारा घोर लापरवाही बरती गयी है। उन्होंने ऐसे मामलों की विस्तृत स्थलीय जांच कराने के निर्देश दिये हैं। 15 अप्रैल तक यह कार्य पूरा करने के साथ जिलाधिकारियों से साप्ताहिक समीक्षा करने को भी कहा गया है।
अब बुंदेलखंड पर पूरा ध्यान
वित्तीय वर्ष 2016-17 में प्रदेश के 55 लाख लोगों को समाजवादी पेंशन योजना से जोडऩे के लिए विस्तृत आदेश जारी कर जिलावार लाभार्थियों की संख्या निर्धारित कर दी गयी है। इसके अनुसार एक जिले में भले ही 55000 लोगों के साथ समाजवादी पेंशन के मामले में सोनभद्र आगे है, किन्तु कुल मिलाकर बुंदेलखंड के जिलों को सर्वाधिक पेंशन मिलेगी। इस बाबत जारी शासनादेश के अनुसार जालौन के 45000, चित्रकूट के 40000, बांदा के 35000, ललितपुर व मीरजापुर के 30000, बलिया व बहराइच के 25000, सीतापुर के 23000, बदायूं के 22500, आजमगढ़ व इलाहाबाद के 20000, गोरखपुर व गाजीपुर के 18000, झांसी व गोंडा के 16000, कन्नौज के 15500, मऊ, महोबा, कौशांबी, फतेहपुर, कुशीनगर, खीरी व हरदोई 15000, प्रतापगढ़ व देवरिया के 14000, हमीरपुर के 13500, संभल व वाराणसी के 13000, सिद्धार्थ नगर के 12500, आगरा, महाराजगंज, बलरामपुर. फैजाबाद व उन्नाव के 12000, संतकबीर नगर के 11500, बस्ती के 11000, कानपुर नगर, कानपुर देहात, बाराबंकी, सुलतानपुर, मुरादाबाद, बुलंदशहर, रायबरेली, लखनऊ व चंदौली के 10000 लोग समाजवादी पेंशन से लाभान्वित होंगे।

Thursday 17 March 2016

फेसबुक नहीं देखने देगा विधानसभा का 'फेस'


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-भाजपा के ज्यादातर विधायक नहीं पूरा करते टिकट का मापदंड
-ट्विटर व फालोअर्स के मामले में फिसड्डी दावेदार परेशान
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डॉ.संजीव, लखनऊ : भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए चर्चा में रहे एक विधायक इस समय परेशान हैं। उनका फेसबुक पेज है नहीं और एकाउंट पर भी बमुश्किल तीन हजार लोग उनसे जुड़े हैं। राष्ट्रीय नेतृत्व द्वारा विधायक का टिकट मांगने के लिए सोशल मीडिया पर 25 हजार फॉलोअर की शर्त लगाए जाते ही उन्होंने बेटे को सक्रिय कर दिया है। उनके सहित भाजपा के बहुत से विधायक फेसबुक या ट्विटर पर सक्रिय नहीं हैं। ऐसे में दोबारा विधानसभा का 'फेस' देखने की राह में फेसबुक रोड़ा बन सकती है।
भाजपा नेतृत्व ने पार्टी के विधायकों व सांसदों को सोशल मीडिया में सक्रिय रहने की सलाह देने के साथ ही विधानसभा का टिकट मांगने के लिए 25 हजार फॉलोअर्स होने की शर्त रख दी है। नए टिकटार्थी तो जनता के बीच समर्थन जुटाने के साथ फेसबुक व ट्विटर सहित सोशल मीडिया पर जुट ही गये हैं, सबसे ज्यादा चुनौती मौजूदा विधायकों के सामने है। इस समय भाजपा के 41 विधायक हैं। 25 हजार फॉलोअर्स तक पहुंचना तो दूर, इनमें से अधिकांश सोशल मीडिया में सक्रिय ही नहीं हैं। प्रधानमंत्री मोदी भले ही सांसदों से खुद अपना स्मार्ट फोन चलाने व सोशल मीडिया हैंडल करने को कहें, भाजपा विधायकों में जो सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं, उनके संचालन का जिम्मा उनके बच्चे या सहायक संभालते हैं। बुधवार को टिकट के लिए सोशल मीडिया अनिवार्यता संबंधी खबर छपने के बाद ये विधायक सक्रिय तो हुए किन्तु अनमने ढंग से। इनमें से अधिकांश का कहना था कि पार्टी नेतृत्व के फैसले का पालन होगा और वे जल्द से जल्द लक्ष्य की प्राप्ति कर लेंगे, ताकि टिकट में बाधा न आए।
झंझट लगता था, अब सीखूंगा
विधायक रवीन्द्र भड़ाना का फेसबुक पेज उनका बेटा संभालता है। उनके फॉलोअर्स की संख्या है 6065। वे बोले, पहले इसमें रुचि नहीं थी और ये सब झंझट लगता था, किन्तु अब खुद सीखूंगा और ऑपरेट करूंगा। विधायक सतीश महाना के पेज पर 3,265 लाइक्स हैं। बोले, अब इसे बढ़ाएंगे।
हमें चाहते हो तो लाइक करो
विधायक जगन प्रसाद गर्ग का एकाउंट भतीजा संभालता है। वे बोले, अभी पेज पर 2500 लाइक्स व एकाउंट पर 3500 फॉलोअर हैं। जल्द ही एक लाख कर देंगे। लोगों से कहेंगे, हमें चाहते हो तो पेज लाइक करो। विधायक सत्यप्रकाश अग्र्रवाल का फेसबुक व ट्विटर एकाउंट तो है पर वे अब सक्रिय होंगे। विधायक रघुनंदन भदौरिया का फेसबुक पेज ही नहीं है। बोले, मेरा पीए फेसबुक चलाता है, उससे कहकर पेज बनवा देंगे।
फेसबुक से नहीं चलती राजनीति
विधायक धर्मपाल सिंह का कहना है कि वह गांव की राजनीति करते हैं और गांव के लोगों के बीच रहते हैं। उनके प्रोफाइल से 3500 लोग जुड़े हैं, यह संख्या अभी और बढ़ाई जाएगी। विधायक सत्यदेव पचौरी कहते हैं कि अभी तक लगता था फेसबुक से राजनीति नहीं चलती, सिर्फ विकास पर फोकस रहता था।
ऐसा नियम नहीं बन सकता
विधायक योगेंद्र उपाध्याय के दो प्रोफाइल व एक फेसबुक पेज से 15 हजार लोग जुड़े हैं। बोले, ऐसा नियम नहीं बन सकता है, फिर भी होगा तो मानेंगे। विधायक डॉ. राधामोहन दास अग्र्रवाल के फेसबुक एकाउंट पर 4,981 लोग जुड़े हैं तो 6,251 लोग फॉलो कर रहे हैं।
फर्जी एकाउंट से परेशान सोम
विधायक संगीत सोम के फेसबुक पेज पर 3,09,217 फॉलोअर हैं, किन्तु वे अपनी फर्जी एकाउंट्स से परेशान हैं। उन्होंने कहा कि एक एकाउंट वह स्वयं संचालित करते हैं और फर्जी एकाउंट्स की कई बार शिकायत कर चुके हैं। विधायक गोपालजी टंडन के फेसबुक एकाउंट से 4,493 लोग जुड़े हैं और 9,370 लोग उन्हें फॉलो करते हैं। विधायक सुरेश राणा के पेज पर 3,270 लाइक्स नजर आते हैं।
नहीं ली प्रोफेशनल की मदद
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष डॉ.लक्ष्मीकांत वाजपेयी के पेज पर 24,429 लाइक्स हैं। वह स्वयं यह पेज संचालित करते हैं और ट्विटर एकाउंट भी खुद ही संभालते हैं। इसके लिए कभी प्रोफेशनल की मदद नहीं ली, वरना उनके मुताबिक एक महीने में एक लाख लाइक्स हो जाएंगे। विधायक दल के नेता सुरेश खन्ना के समर्थकों ने एक पेज बना रखा है, जिस पर मात्र 1,570 लाइक्स हैं।

Wednesday 16 March 2016

यह 'फिनिशिंग स्कूल' देगा आइआइटी को टक्कर


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-इंजीनियरिंग विद्यार्थियों को ज्यादा रोजगार का लक्ष्य
-गुणवत्ता सुधारने को शिक्षकों के प्रशिक्षण पर भी रहेगा पूरा जोर
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डॉ.संजीव, लखनऊ
देश में श्रेष्ठ इंजीनियरिंग शिक्षा का पर्याय माने जाने वाले भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों को प्रेरक मानकर उन्हें टक्कर देने के लिए प्रदेश में 'इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज' की परिकल्पना की गयी है। प्रदेश के इंजीनियरिंग विद्यार्थियों को ज्यादा रोजगार दिलाने का लक्ष्य बनाकर प्रस्तावित इस 'फिनिशिंग स्कूल' में इंजीनियरिंग कालेजों की गुणवत्ता सुधारने के लिए उनके शिक्षकों के प्रशिक्षण पर भी पूरा जोर दिया जाएगा।
प्रदेश में डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय (एकेटीयू) से संबद्ध इंजीनियरिंग कालेजों में शिक्षा का स्तर लगातार सवालों के घेरे में है। पिछले कुछ वर्षों में न सिर्फ अनेक कालेज बंद हुए हैं, बल्कि इनमें प्रवेश का उत्साह कम हो जाने से भारी संख्या में सीटें खाली रह जाती हैं। इस समय एकेटीयू से संबद्ध 350 इंजीनियरिंग कालेजों से हर साल औसतन एक लाख विद्यार्थी बीटेक पास होकर निकलते हैं। इन कालेजों से बीटेक करने वाले छात्र-छात्राओं में बेरोजगारी इस कदर हावी है कि पिछले दिनों सचिवालय में चपरासी बनने के लिए बीटेक ने भी फार्म भरा है। विशिष्ट बीटीसी से प्राइमरी शिक्षक बनने वालों में भी यूपीटीयू से बीटेक करने वालों की संख्या कम नहीं है। इन स्थितियों में सुधार के लिए प्राविधिक शिक्षा विभाग ने आंकलन कराया तो पता चला कि संस्थानों में शिक्षकों के स्तर में सुधार जरूरी है।
इन स्थितियों से निपटने के लिए प्राविधिक शिक्षा विभाग ने इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज की स्थापना का फैसला किया है। प्रमुख सचिव (प्राविधिक शिक्षा) मुकुल सिंघल ने बताया कि यह संस्थान एक 'फिनिशिंग स्कूल' के रूप में विकसित किया जाएगा। प्रदेश के इंजीनियरिंग कालेजों में पढऩे वाले छात्र-छात्राएं जब रोजगार के लिए साक्षात्कार का सामना करते हैं तो उनकी 'प्रेजेंटिबिलिटी' पर सवाल खड़े होते हैं, जिससे उनकी 'इम्प्लायबिलिटी' भी प्रभावित होती है। यह 'फिनिशिंग स्कूल' तमाम भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों की तर्ज पर इन छात्र-छात्राओं को तैयार करेगा। इसके लिए न सिर्फ उन्हें आधुनिक मशीनों पर प्रशिक्षण देने पर जोर दिया जाएगा, बल्कि अलग-अलग विशिष्टताओं के सर्टिफिकेट कोर्स भी संचालित किये जाएंगे। इन इंजीनियरिंग कालेजों में पढ़ाने वाले शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए भी मॉड्यूल बनेंगे। संस्थान राजधानी लखनऊ में नये बन रहे एकेटीयू परिसर में स्थापित होगा, किन्तु ये सभी प्रशिक्षण प्रदेश भर में अलग-अलग स्थानों पर समयबद्ध ढंग से दिये जाएंगे।
बनी उच्चस्तरीय समिति
इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज की परिकल्पना को मूर्त रूप देने के लिए आइआइटी कानपुर के पूर्व निदेशक प्रो.एसजी धांडे, इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ साइंस बंगलुरु के पूर्व इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभागाध्यक्ष प्रो.एचपी खिन्चा, आइआइआइटी इलाहाबाद के निदेशक प्रो.सोमनाथ विश्वास, यूपीटीयू के पूर्व कुलपति प्रो.प्रेमव्रत की एक समिति बनाई गयी है। संस्थान की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट भी बन गयी है। इसे जल्द ही मंजूरी दिलाकर संस्थान को अमल में लाया जाएगा।

Tuesday 15 March 2016

सेहत की चिंता के चार कदम पर उखड़ी सांस


-पूरे नहीं हो सके चिकित्सा और स्वास्थ्य क्षेत्र के ज्यादातर वादे
-डॉक्टरों का अस्पताल न पहुंचना आज भी है संकट का सबब
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डॉ.संजीव, लखनऊ: समाजवादी नायक राम मनोहर लोहिया के नारे 'रोटी कपड़ा सस्ती हो, दवा पढ़ाई मुफ्ती हो' को सूक्त वाक्य बनाकर सत्ता में आयी अखिलेश यादव सरकार ने सेहत की चिंता में तेज चाल का वादा किया था। लोगों को उम्मीदें भी बहुत थीं किन्तु चार कदम चलते ही सांस उखड़ती नजर आ रही है। पीएचसी-सीएचसी पर अल्ट्रासाउंड और सीटी स्कैन जैसी सुविधाएं तो दूर, डॉक्टरों तक की उपस्थिति सुनिश्चित नहीं हो पा रही है।
अखिलेश सरकार के घोषणा पत्र में चिकित्सा-स्वास्थ्य के लिए सात बिन्दुओं का जिक्र था। ज्यादातर बिन्दुओं पर सरकार प्रभावी भूमिका नहीं निभा सकी है। अपनी पीठ थपथपाने के लिए सरकारी महकमा नए मेडिकल कालेज खोलने, एंबुलेंस सेवाओं को पटरी पर लाने और चिकित्सकीय जांचों का दायरा बढ़ाने का दावा कर सकता है, किन्तु अस्पतालों में डॉक्टरों की उपलब्धता सुनिश्चित न करा पाने का जवाब किसी के पास नहीं है।
सपने तो थे बड़े-बड़े
घोषणा पत्र के मुताबिक 'हृदय का ऑपरेशन, कैंसर, लिवर, किडनी आदि की चिकित्सा प्रदेश के सभी मेडिकल कालेजों को समृद्ध बनाकर मुफ्त करायी जाएगी'। यह अभी संभव नहीं हुआ है। गरीबी रेखा से नीचे वालों को भी पूरी तरह मुफ्त इलाज नहीं मिल सका है। प्राथमिक व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों को उच्चीकृत करते हुए उनमें अल्ट्रासाउंड व सीटी स्कैन होने की बात कही गयी थी लेकिन सभी जिला अस्पतालों तक में अभी सीटी स्कैन नहीं हैं। कई अस्पतालों में मशीन पहुंची भी तो उनका संचालन नहीं हो सका।
...तो न रहना इनके सहारे
घोषणा पत्र आकस्मिक परिस्थितियों में उपचार के लिए 'सभी राज्य स्तरीय एवं राष्ट्रीय राजमार्गों पर चल चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध करायी जाएंगी' जैसे बड़े-बड़े वादे कर रहा था, किन्तु ऐसा नहीं हो सका है। एंबुलेंस की संख्या बढ़ी लेकिन वे भी अस्पताल तक ही पहुंचाती हैं। एंबुलेंस की तत्परता का प्रमाण भी हाल ही में तब मिला, जब सपा के विधायक हाजी इरफान दुर्घटना में घायल हुए तो उन्हें ले जाने वाली एंबुलेंस में ऑक्सीजन किट तक नहीं थी। खैर, किसी तरह एंबुलेंस से अस्पताल पहुंच भी गए तो राजमार्गों पर स्थित प्राथमिक व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों तक पर डॉक्टर नहीं मिलते। स्कूलों व कालेजों में पढऩे वाली छात्राओं के लिए मुफ्त चिकित्सकीय सुविधाओं के वादे पर भी अमल नहीं हुआ है।
और इन वादों का क्या
घोषणापत्र कहता है कि 'केवल उन जनपदों में ही निजी मेडिकल कालेज खोलने की अनुमति दी जाएगी, जहां अभी कोई मेडिकल कालेज न हो'। यह वादा तो प्रदेश के शीर्ष सत्ता प्रतिष्ठान की नाक के नीचे हवा में उड़ता नजर आ रहा है। राजधानी लखनऊ में ही जहां केजीएमयू जैसा सरकारी चिकित्सा शिक्षा विश्वविद्यालय है, लोहिया संस्थान को अंतर्राष्ट्रीय स्तर के मेडिकल कालेज में बदलने का फैसला हो चुका है, निजी क्षेत्र को मेडिकल कालेज खोलने की अनुमति भी मिल चुकी है। इसी तरह वाराणसी में भी एक निजी मेडिकल कालेज मूर्त रूप ले चुका है। अनुमति तो कई जिलों में दी जा चुकी है।

Monday 14 March 2016

आयुर्वेद भर्ती घोटाले में तीन और निलंबित


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-एक सेवानिवृत्ति चिकित्सा अधिकारी के खिलाफ होगी कार्रवाई
-दो चिकित्सकों सहित पांच पर गिर चुकी निलंबन की गाज
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : आयुर्वेद भर्ती घोटाले में एक चिकित्सक सहित तीन और लोग निलंबित किये गए हैं। एक सेवानिवृत्त चिकित्सा अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की संस्तुति की गयी है। अब तक दो चिकित्सकों सहित पांच पर निलंबन की गाज गिर चुकी है।
बीते माह आयुर्वेद विभाग में फर्जी नियुक्ति का बड़ा मामला प्रकाश में आया था। क्षेत्रीय आयुर्वेद अधिकारी हमीरपुर के कार्यालय में ज्वाइन करने पहुंचे फतेहपुर के अमौली निवासी आशीष के नियुक्ति पत्र पर शक होने पर उसे जांच के लिए राजधानी स्थित आयुर्वेद निदेशालय भेजा गया था। पता चला कि एक साथ सात लोगों के फर्जी नियुक्ति पत्र जारी हो गए थे। इस मामले की जांच के साथ मुकदमा कायम कराने के आदेश हुए ही थे, कि उरई में कानपुर के कर्नलगंज निवासी अनूप कुमार सोनकर को ज्वाइन कराकर तीन माह का वेतन देने की बात पता चली। इसी तरह के कुछ अन्य फर्जी नियुक्ति पत्र सामने आने पर मुकदमा कराने के साथ जांच के आदेश भी दिये गए थे।
जांच शुरू होते ही उरई के क्षेत्रीय आयुर्वेद अधिकारी डॉ.डीके जैन व वहां के कार्यालय प्रभारी मोहम्मद मियां को निलंबित कर दिया गया था। इन सबसे हुई पूछताछ के बाद बबीना के फार्मासिस्ट विजेंद्र स्वरूप, उरई के लिपिक अमित जाटव और बिजौली के प्रभारी चिकित्सा अधिकारी डॉ.वीरेंद्र सोनकर को भी निलंबित कर दिया गया है। डॉ.सोनकर ने आनन-फानन अनूप के कागजातों का वेरीफिकेशन किया था और इस बाबत कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे सके थे। सेवानिवृत्त हो चुके डॉ.धनीराम चंचल के खिलाफ कार्रवाई के लिए आयुर्वेद निदेशालय ने शासन को संस्तुति की है। डॉ.चंचल ने अनूप सोनकर को अपने घर में बैठकर ज्वाइन कराया था, जबकि उस समय उनके पास कार्यवाहक क्षेत्रीय आयुर्वेद अधिकारी का कार्यभार था। इस बीच मामले की जांच कर रहे संयुक्त निदेशक जेएस मिश्र ने प्रारंभिक रिपोर्ट सौंप दी है। उधर निलंबन के साथ ही मामले सभी मामलों की अलग-अलग जांच भी कराई जा रही है। क्षेत्रीय आयुर्वेदिक अधिकारियों की भूमिका की जांच शासन ने आयुर्वेद निदेशक को सौंपी है, वहीं अन्य कर्मचारियों की भूमिका की जांच कानपुर के क्षेत्रीय आयुर्वेद अधिकारी को सौंपी गयी है।

फाइलेरिया यूनिट में कागजों से आगे न काम न कार्रवाई

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-दो साल पहले भी दब चुका 25 अफसरों पर कार्रवाई का आदेश
-प्रमुख सचिव ने कहा, जांच में गड़बड़ी पर इस बार नहीं छोड़ेंगे
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : मलेरिया व फाइलेरिया पर अंकुश के लिए बनी फाइलेरिया यूनिट में कागजों से आगे न काम होता है न कोई कार्रवाई। दो साल पहले भी लापरवाही के आरोप में 25 अफसरों पर कार्रवाई के आदेश हुए थे किन्तु वह भी दब गए।
प्रदेश को फाइलेरिया मुक्त बनाने के लिए दस वर्ष से अधिक समय से मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एमडीए) कार्यक्रम चल रहा है। इसके लिए हर जिले में फाइलेरिया यूनिट गठित की गयी है। दो वर्ष पहले जून 2014 में तत्कालीन स्वास्थ्य राज्य मंत्री नितिन अग्र्रवाल को इस अभियान में लापरवाही की जानकारी मिली तो उन्होंने राज्य स्तर पर पांच टीमें गठित कर जांच कराई थी। इस अभियान में लापरवाही के लिए इटावा, कानपुर, बाराबंकी, महाराजगंज, सोनभद्र, शाहजहांपुर, गोरखपुर, चित्रकूट, कानपुर देहात, फैजाबाद, मीरजापुर, सीतापुर, रायबरेली, रामपुर व औरैया के 25 अफसरों को चिन्हित कर उनके खिलाफ कार्रवाई के निर्देश तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री ने दिये थे।
उस समय जांच में पता चला था कि फाइलेरिया के खिलाफ पूरा अभियान ही कागजों पर चल रहा है। दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि मंत्री के निर्देशों के बावजूद इन दोषी अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। सिर्फ कानपुर के चार मलेरिया निरीक्षकों के तबादले किये गए। उनके तबादला आदेश में राष्ट्रीय वेक्टर बॉर्न डिसीज कंट्रोल कार्यक्रम के अंतर्गत एमडीए अभियान के प्रभावी क्रियान्वयन में शिथिलता बरतने के आरोप लगाए गए थे। इस पर ये लोग अदालत चले गए थे। अन्य दोषी पाए गए अधिकारियों के खिलाफ आज तक कार्रवाई नहीं हुई है। अब एक बार फिर फाइलेरिया निवारण अभियान में लापरवाही उजागर हुई है। कर्मचारियों का कहना है कि लापरवाह अधिकारियों-कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई होगी, इस पर संशय है। इस संबंध में प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) अरविंद कुमार का कहना है कि हर जिले में जांच कराकर लापरवाह कर्मचारी व अधिकारी चिन्हित किये जाएंगे। उन सभी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। गड़बड़ी करने पर किसी को भी इस बार नहीं बख्शा जाएगा।

Saturday 12 March 2016

हाथीपांव मिटाने वालों ने जमाए हाथी जैसे पांव


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-पड़ताल में 17 जिलों में अभियान से खिलवाड़ उजागर
-फाइलेरिया खात्मे का मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन हुआ विफल
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डॉ.संजीव, लखनऊ :
हाथीपांव (फाइलेरिया) मिटाने का जिम्मा संभालने वालों ने हाथी जैसे पांव जमाकर क्षेत्र में जाने की जरूरत ही नहीं समझी और मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन को विफल कर दिया। प्रदेश के 17 जिलों में इस अभियान से खिलवाड़ की पुष्टि हुई है।
51 फाइलेरिया प्रभावित जिलों में वर्ष 2004 से मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एमडीए) अभियान शुरू हुआ था। दो वर्ष से अधिक आयु के कम से कम 65 फीसद ब'चों को दवा खिलानी थी। पांच साल तक लगातार अभियान के बाद इनमें माइक्रोफाइलेरिया की दर एक फीसद से कम रह जाती है। 51 में से 33 जिले तो फाइलेरिया मुक्त हो गए और बरेली ने फाइलेरिया मुक्त न होने की बात स्वीकार कर ली। शेष 17 जिलों की पड़ताल शुरू हुई तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। यहां दवाएं जनता तक पहुंची ही नहीं। साल में एक बार घर-घर जाकर दवाएं खिलाने के अभियान को इस तरह ठेंगा दिखाए जाने से पूरे वेक्टरजनित रोग विभाग में हड़कंप मच गया है। नए सिरे से जांच कराने की मशक्कत हो रही है। आठ जिलों में यह अभियान शुरू भी कर दिया गया है।
नाइट सर्वे हुआ ही नहीं
पड़ताल में पता चला कि इन 17 जिलों के अधिकांश इलाकों में नाइट सर्वे हुआ ही नहीं। नियमानुसार हर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के स्तर पर रात के समय कम से कम 500 लोगों के रक्त के नमूने लेकर स्लाइड्स बनानी चाहिए। कर्मचारियों ने ये स्लाइड्स तक फर्जी बना दीं।
स्कूलों में आ रही दिक्कत
पांच साल पहले दो साल से कम आयु के जो बच्चे रह गए थे, वे अब सात साल के हो गए हैं। ऐसे बच्चों का रक्त परीक्षण करने के निर्देश दिये गए हैं। कक्षा एक व दो में पढऩे वाले बच्चों के रक्त का नमूना लेने के लिए अभिभावकों की मंजूरी जरूरी है। तमाम स्थानों पर अभिभावक अनुमति नहीं देते, इससे दिक्कत आ रही है।
बरेली ने दिखाई ईमानदारी
पड़ताल में सिर्फ बरेली ने ईमानदारी से स्वीकार किया कि वहां एमडीए प्रभावी नहीं हुआ है। इस पर वहां दुबारा पूरा अभियान चलाने का फैसला हुआ है। इस पर 42 लाख रुपये खर्च का आकलन किया गया है, जिसमें से 15 लाख उपलब्ध भी करा दिये गए हैं। वहां एमडीए के साथ नाइट सर्वे पर भी फोकस किया जाएगा। अन्य 17 जिलों कौशांबी, बस्ती, बहराइच, रामपुर, जालौन, चित्रकूट, महोबा, इटावा, औरैया, गाजीपुर, बलिया, चंदौली, इलाहाबाद, सिद्धार्थनगर, कुशीनगर, अंबेडकरनगर, महाराजगंज में अराजकता की पुष्टि हुई।
जांच, जिम्मेदार होंगे चिह्नित
वेक्टर बोर्न डिसीज विभाग के अपर निदेशक डॉ.के. राम ने स्वीकार किया कि गड़बड़ी हुई है। मरीजों तक दवाएं नहीं पहुंचीं, जिससे दिक्कत हुई है। अब मामले की जांच कराई जा रही है। जिम्मेदारों को भी चिह्नित किया जाएगा। स्वास्थ्य महानिदेशक से चर्चा कर कार्रवाई पर फैसला होगा। 

Friday 11 March 2016

सातवें वेतन आयोग के लिए मांगे 26,573 करोड़


-प्रदेश पर बढ़ेगा हर साल 22,777 करोड़ रुपये का खर्च
-आधार बताने के साथ वार्षिक अनुदान देने की भी मांग
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डॉ.संजीव, लखनऊ : सातवें वेतन आयोग के लिए केंद्र के बजट में प्रावधान होने के साथ प्रदेश सरकार की सक्रियता भी बढ़ गयी है। प्रदेश सरकार ने राज्य कर्मचारियों को इन सिफारिशों का लाभ देने के लिए केंद्र सरकार से पहले वर्ष 26,573 करोड़ सहित हर वर्ष 22 हजार करोड़ से अधिक मदद मांगी है।
पिछले वर्ष सातवें वेतन आयोग की संस्तुतियां आने के बाद केंद्र सरकार ने वित्तीय वर्ष 2016-17 के बजट में जरूरी धन का प्रावधान किया है। केंद्र सरकार द्वारा संस्तुतियां लागू करते ही राज्य को भी इन्हें लागू करना होगा। ऐसे में राज्य सरकार ने केंद्र से मदद मांगी है। बीते दिनों केंद्रीय वित्त मंत्रालय के अधिकारियों के साथ हुई बैठक में वित्तीय वर्ष 2016-17 के लिए 26573 करोड़ रुपये अनुदान की मांग की गयी। अगले वर्ष से प्रति वर्ष औसतन 22,777 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च का आकलन कर वार्षिक अनुदान की बात भी कही गयी है।
केंद्रीय वित्त मंत्रालय को दिये गए प्रतिवेदन में कहा गया है कि अभी वेतन के लिए केंद्र सरकार से कोई सहायता नहीं मिलती है, इसलिए इस बाबत एक अलग मद सृजित किया जा सकता है। इसमें वित्तीय वर्ष 2015-16 के मुख्य व अनुपूरक बजट में की गयी अनुमानित व्यवस्था में तीन फीसद की वृद्धि करते हुए वित्तीय वर्ष 2016-17 के वर्तमान अनुमानित व्यय का आकलन हुआ है। महंगाई भत्ते में दस फीसद वृद्धि के साथ अन्य भत्तों को यथावत मान लिया गया है। पेंशन व्यय में मौजूदा आधार पर भी छह फीसद वृद्धि की उम्मीद है। कहा गया है कि सातवें वेतन आयोग की संस्तुतियां लागू किये जाने की स्थिति में अतिरिक्त व्ययभार में औसतन 25 फीसद वृद्धि होगी क्योंकि पुनरीक्षित वेतनमानों में महंगाई भत्ता वेतन में सम्मिलित होकर मूल वेतन बन जाएगा।
औसत वृद्धि
मूल वेतन : 15 फीसद
अन्य भत्ते : 50 फीसद
पेंशन : 24 फीसद
डीए व अन्य : 20 फीसद
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केंद्रीय वित्त मंत्रालय के साथ हुई बैठक में हमने सातवें वेतन आयोग की संस्तुतियां लागू होने की स्थिति में आने वाले अतिरिक्त खर्च का पूरा ब्योरा सौंप दिया है। इससे प्रदेश पर अत्यधिक धन का खर्च बढ़ेगा, इसलिए केंद्र से पहले वित्तीय वर्ष 2016-17 के साथ आगे के लिए भी अनुदान की मांग की गयी है।
-राहुल भटनागर, प्रमुख सचिव (वित्त)

Tuesday 8 March 2016

...जिससे मौत के बाद सम्मान के साथ घर तक पहुंचे शव

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-55 जिला अस्पतालों में वातानुकूलित शव वाहनों को मंजूरी
-निजी एजेंसी से अनुबंध कर सुनिश्चित होगा संचालन
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: अस्पताल में इलाज के दौरान किसी गरीब की मौत के बाद उनके परिजनों को अब शव घर ले जाने की चिंता नहीं करनी होगी। प्रदेश शासन ने 55 जिला अस्पतालों में वातानुकूलित शव वाहन तैनात करने को मंजूरी दे दी है। इनका संचालन सुनिश्चित करने के लिए निजी एजेंसी से अनुबंध किया जाएगा।
अस्पतालों में इलाज के दौरान मौत के बाद अभी मृतक के शव को उसके दूरदराज ग्र्रामीण इलाकों में घर तक पहुंचाने का कोई बंदोबस्त न होने से बेहद दिक्कतें आती हैं। कई बार तो इलाज में ही मरीजों के तीमारदार इस कदर टूट चुके होते हैं कि उनके पास शव ले जाने तक का इंतजाम नहीं होता है। स्वास्थ्य विभाग ने अब सभी जिला अस्पतालों में शव वाहन उपलब्ध कराने का फैसला किया है। इस समय स्वास्थ्य विभाग के पास 55 शव वाहन उपलब्ध हैं। प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) अरविंद कुमार ने इन 55 शव वाहनों को पहले चरण में 55 जिला अस्पतालों में तैनात करने के आदेश स्वास्थ्य महानिदेशक को दिये हैं। इन वाहनों के संचालन के लिए चालक या अन्य बंदोबस्त में दिक्कत न आए, इसलिए इनका संचालन बाहरी सेवा प्रदाता एजेंसी के माध्यम से कराने को कहा गया है। इसके लिए प्रति वाहन दस हजार रुपये प्रति माह संचालन व्यय व दस हजार रुपये प्रति माह ईंधन व्यय के रूप में खर्च करने की अनुमति भी दी गयी है। अगले चरण में शेष जिला अस्पतालों व अन्य बड़े अस्पतालों में भी शव वाहनों की उपलब्धता सुनिश्चित की जाएगी।
ये हैं 55 जिले
आगरा, फीरोजाबाद, मैनपुरी, अलीगढ़, बरेली, मेरठ, मुरादाबाद, सहारनपुर, फैजाबाद, कानपुर नगर, इटावा, कन्नौज, लखनऊ, उन्नाव, चित्रकूट, झांसी, आजमगढ़, इलाहाबाद, बस्ती, गोंडा, बलरामपुर, गोरखपुर, मीरजापुर, वाराणसी, मथुरा, एटा, बदायूं, शाहजहांपुर, गाजियाबाद, बिजनौर, अमरोहा, रामपुर, मुजफ्फरनगर, अंबेडकरनगर, बाराबंकी, सुलतानपुर, कानपुर देहात, औरैया, फर्रुखाबाद, हरदोई, सीतापुर, बांदा, ललितपुर, बलिया, मऊ, फतेहपुर, प्रतापगढ़, संतकबीरनगर, बहराइच, देवरिया, कुशीनगर, महाराजगंज, सोनभद्र, चंदौली, जौनपुर
फोन करिये, पहुंचेगा शव वाहन
प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) अरविंद कुमार ने बताया कि अगले वित्तीय वर्ष में इस योजना को प्रदेश के सभी जिलों में लागू कर दिया जाएगा। इसके लिए एक कॉल सेंटर बनेगा। उसके लिए विशेष नंबर जारी होगा। उस पर फोन करने पर कुछ देर बाद ही संबंधित अस्पताल में शव लेने के लिए वाहन पहुंच जाएगा। इसके लिए वित्तीय वर्ष 2016-17 के बजट में धन का प्रावधान भी कर दिया गया है। 

फैशन स्टेटमेंट से जुड़ेगी डिजाइनर खादी

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-खादी में शोध, डिजाइन, प्रचार व मानकीकरण पर जोर
-एनआइएफटी से उत्पादकों को प्रशिक्षण दिलाने की तैयारी
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : खादी एवं ग्र्रामोद्योग विभाग एनआइएफटी की मदद से प्रदेश में बन रहे खादी उत्पादों को फैशनल स्टेटमेंट से जोड़कर डिजाइनर रूप देने की पहल कर रहा है। इसके लिए कार्ययोजना को मंजूरी के साथ शुरुआती बजट का प्रावधान भी कर दिया गया है।
अभी तक तमाम कोशिशों के बावजूद सरकारी क्षेत्र में खादी प्रभावी भूमिका में नहीं आ पा रही है। इसके विपरीत खादी वस्त्रों के निर्माण व विपणन से जुड़ी निजी व सामाजिक क्षेत्र की संस्थाएं प्रभावी काम कर रही हैं। कुछ कंपनियां तो हाई-एंड प्रोडक्ट्स के साथ देश-दुनिया में खादी के साथ ही छा गयी हैं। ऐसे में उत्तर प्रदेश के खादी उत्पादकों को बड़ा बाजार देने और खादी वस्त्रों को लोकप्रिय बनाने के लिए राज्य सरकार ने विशेष योजना को हरी झंडी दी है।
प्रमुख सचिव मोनिका एस. गर्ग ने बताया कि इस योजना में खाद के शोध और डिजाइन पर विशेष जोर देने का फैसला किया गया है। इसके लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी (एनआइएफटी) की मदद ली जाएगी। एनआइएफटी के छात्र-छात्राओं व शिक्षक-शिक्षिकाओं को इस अभियान से जोड़ा जाएगा। प्रदेश को खादी उत्पादकों की दृष्टि से क्लस्टर्स में बांटकर एनआइएफटी फैकल्टी को विद्यार्थियों की एक टीम के साथ उस क्लस्टर का जिम्मा सौंपा जाएगा। एनआइएफटी की यह टीम खादी उत्पादकों को प्रशिक्षण देकर जरूरत के अनुरूप डिजाइनर खादी का उत्पादन सुनिश्चित कराएगी, ताकि वह आधुनिक फैशन स्टेटमेंट से कदमताल कर सके। इस बाबत विस्तृत कार्ययोजना बनाने की जिम्मेदारी एनआइएफटी, रायबरेली के निदेशक को सौंपी गयी है।
इस योजना में खादी के मानकीकरण व प्रचार प्रसार पर भी जोर देने का फैसला हुआ है। इसमें पूरा फोकस खादी को महज छूट व प्रदर्शनी तक सीमित रखने के बजाय आम उपभोक्ताओं से सीधे जोडऩे पर है। अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप खादी निर्माण के साथ उसकी मार्केटिंग पर भी ध्यान दिया जाएगा। इसके लिए भारतीय प्रबंध संस्थान (आइआइएम) की मदद लेने का फैसला हुआ है। खादी शो-रूम किसी भी दिग्गज खादी चेन का मुकाबला कर सकें, इसके लिए उन्हें भी डिजाइनर स्वरूप दिया जाएगा। जरूरत महसूस किये जाने पर मॉल्स में भी प्रदेश के खादी उत्पादकों के शो-रूम नजर आ सकते हैं। शासन ने इस बाबत विभाग से विस्तृत प्रस्ताव बनाने को कहा है। इसमें प्रारंभिक रूप से पैसे की कमी न पडऩे देने के लिए 40 लाख रुपये का प्रावधान वित्तीय वर्ष 2016-17 के बजट में अलग से इस योजना के लिए कर दिया गया है। 

मशीनें खरीदीं-अस्पताल बने, इलाज वर्षों बाद भी नहीं

--करोड़ों बर्बादी की पुष्टि--
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-कैंसर इलाज को खरीदी लीनियर एक्सीलरेटर मशीन पांच साल से डंप
-ट्रामा सेंटर व अस्पताल बने खड़े, डॉक्टर-कर्मचारी नहीं किये नियुक्त
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : सेहत महकमे में मशीनें तो खरीद ली जाती हैं, भवन भी बन जाते हैं किंतु वर्षों इलाज नहीं शुरू हो पाता। रविवार को विधानसभा में पेश भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में इस कारण करोड़ों रुपये बर्बाद होने की पुष्टि हुई है।
रिपोर्ट के मुताबिक राज्य के कैंसर पीडि़त रोगियों को आधुनिक चिकित्सकीय उपचार के लिए लीनियर एक्सीलरेटर खरीदने व स्थापित करने के लिए नवंबर 2008 में 9.7 करोड़ रुपये की मंजूरी प्रदान की गयी थी। लखनऊ के किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के अभिलेखों की जांच में स्पष्ट है कि अप्रैल 2010 तक इस मशीन की स्थापना के लिए 9.69 करोड़ रुपये का भुगतान भी कर दिया गया था। इसके बावजूद अब तक यह मशीन चालू नहीं हो सकी है। रिपोर्ट के मुताबिक यह खर्च अलाभकारी रहा और राज्य के कैंसर रोगी लाभान्वित नहीं हो सके।
राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे ट्रामा सेंटर स्थापित करने के लिए केंद्र पोषित योजना के अंतर्गत आगरा में ट्रामा केयर सेंटर बनाया गया था। इसमें भवन, उपकरण, एंबुलेंस आदि तक खरीदे जा चुके हैं। रिपोर्ट में स्पष्ट है कि अक्टूबर 2008 में 9.65 करोड़ रुपये की स्वीकृति के बाद भवन निर्माण के लिए जनवरी 2009 में 80 लाख रुपये, उपकरणों के लिए नवंबर 2010 में 5.79 करोड़ रुपये जारी किये गए। जल निगम को निर्माण सौंपा गया और राज्य सरकार ने फरवरी 2009 व मार्च 2011 में पुन: 1.28 करोड़ रुपये जल निगम को जारी किये। अगस्त में ट्रामा सेंटर का भवन बनाकर आगरा मेडिकल कालेज को हस्तांतरित भी कर दिया गया किंतु ट्रामा सेंटर आज तक चालू नहीं हो सका। 4.99 करोड़ रुपये के उपकरणों व 13.21 लाख रुपये की दो एंबुलेंसों की खरीदारी भी हो गयी। यही नहीं एक एंबुलेंस में तो 47.25 लाख के उपकरण भी लगा दिये गए किंतु ट्रामा सेंटर चालू न हो सकने के कारण उनका इस्तेमाल नहीं हो पाया। रिपोर्ट के मुताबिक प्राचार्य का तर्क था कि चिकित्सकों व अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति न हो पाने के कारण ट्रामा सेंटर चालू नहीं हो सका। आजमगढ़ में 100 बेड का अस्पताल बना खड़ा है। मार्च 2005 में इस अस्पताल को स्वीकृति प्रदान की गयी थी किंतु आज तक चालू नहीं हो सका है। रिपोर्ट के मुताबिक इस अस्पताल के निर्माण में 12.38 करोड़ रुपये खर्च कर दिये गए किंतु जनता को आजतक उसका कोई लाभ नहीं मिला। लखनऊ के डॉ.राममनोहर लोहिया संयुक्त चिकित्सालय में आवश्यक अनुमोदन प्राप्त किये बिना निर्माण कार्य प्रारंभ करने से 10.69 करोड़ रुपये बर्बाद हुए। वहीं कार्य की लागत 14.22 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई और मई 2011 में स्वीकृति के बाद भी आज तक इस 11 मंजिल के प्रस्तावित बाह्यï रोगी विभाग व वार्ड ब्लाक का उपयोग शुरू नहीं हो सका है।
नहीं बना हर्बल गार्डेन
रिपोर्ट ने लखनऊ होम्योपैथिक मेडिकल कालेज परिसर में प्रस्तावित औषधीय हर्बल गार्डेन का विकास न कर 3.55 करोड़ रुपये की बर्बादी पर चिंता जताई है। यहां जुलाई 2008 में एलडीए से 4.8 एकड़ जमीन हर्बल गार्डेन व बहुुद्देश्यीय सभागार बनाने के लिए खरीदी गयी थी। आज तक वहां हर्बल गार्डेन नहीं बना और पैसा बर्बाद हो गया।
ब्याज पर भी गंवाए करोड़ों
उत्तर प्रदेश सरकार ने मार्च 1998 में आदेश दिया था कि यदि शासकीय निगमों द्वारा शासन से अवमुक्त धनराशि बैंक खातों में जमा करने पर ब्याज अर्जित किया जाएगा तो उस ब्याज की आय शासन की आय होगी और उसे कोषागार में जमा कराया जाएगा। चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग को 11 अस्पताल भवनों के निर्माण के लिए 215.23 करोड़ रुपये दिये गए। इस राशि पर अर्जित 9.08 करोड़ ब्याज को राजकोष में जमा कराने में स्वास्थ्य विभाग विफल रहा। 

Monday 7 March 2016

मारा गया 'वीकेंड', इंतजार करते रहे बच्चे


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-सोलहवीं विधानसभा में पहली बार शनिवार को खुला सचिवालय
-कुछ विभागों में रही सक्रियता तो कुछ में औपचारिक कामकाज
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : '...सॉरी बेटा हम आज दिल्ली नहीं आ पाए, अगले वीकेंड पक्का आएंगे। ...हां बेटा, क्या करें... अचानक एसेम्बली चलने का फैसला हुआ... हम कैसे आ जाते।' मोबाइल पर हो रहा यह संवाद सचिवालय में तैनात एक अफसर और उनकी दिल्ली में रह रही बेटी का है। शनिवार को सोलहवीं विधानसभा के मौजूदा कार्यकाल में पहली दफा सचिवालय खुला और अफसरों-कर्मचारियों को आना पड़ा। इससे उनके मन में 'वीकेंड' मारे जाने और बच्चों के इंतजार करते रहने की टीस बार-बार उठ रही थी।
विधानसभा का बजट सत्र इस बार शनिवार व रविवार को भी चलाने का फैसला हुआ है। मौजूदा विधानसभा के कार्यकाल में ऐसा पहली बार हुआ है। इससे पहले मायावती के मुख्यमंत्रित्व काल में भी एक बार शनिवार को विधानसभा की बैठक हुई थी। इस बार शनिवार को सदन की कार्यवाही होने से सचिवालय ही नहीं विभागाध्यक्ष कार्यालय तक खोले गए हैं। इस कारण अधिकारियों व कर्मचारियों को भी सचिवालय आना पड़ा। जिन विभागों का बजट शनिवार को पेश होना था, उनसे जुड़े विभागों में तो खासी सक्रियता रही। जनपथ स्थित सचिवालय भवन में चिकित्सा शिक्षा व स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी सक्रिय थे। कुछ विभागों में तो बाकायदा लंच पैकेट की व्यवस्था भी की गयी। बापू भवन में श्रम विभाग के अधिकारी-कर्मचारी सक्रिय थे, तो सचिवालय परिसर स्थित प्राविधिक शिक्षा महकमे में एचबीटीयू विधेयक पेश होने को लेकर सक्रियता थी। इस सक्रियता के बीच जिन विभागों का आज विधानसभा से सीधा जुड़ाव नहीं था, वहां बहुत सक्रियता नहीं दिख रही थी। सचिवालय खुला होने से कार्यालय तो आए लेकिन जब मन आया तब चले भी गए।
अधिकारियों-कर्मचारियों का कहना था कि कुछ लोगों ने तो दो-तीन माह पहले से 'वीकेंड' प्लान कर रखा था। अब न सिर्फ बुकिंग बेकार हुई, सारी तैयारियां ध्वस्त हो गयीं। सहालग के कारण शादियां भी खूब हैं किन्तु अब उनमें भी नहीं जा सकेंगे। जिन अधिकारियों के बच्चे दिल्ली या दूसरे शहरों में पढ़ते हैं, उनमें से तमाम ने 'वीकेंड' में उनके पास जाने की तैयारी की थी, किन्तु उन्हें निराश होना पड़ा।
रविवार को पहली दफा बैठक
रविवार, छह मार्च को विधान सभा की बैठक उत्तर प्रदेश विधानसभा के इतिहास में पहली बार होगी। इस कारण पहली बार सचिवालय भी खुलेगा। खास बात यह है कि शनिवार व रविवार को बुलाए जाने के बावजूद इसके बदले अवकाश नहीं मिलेगा। अधिकारियों व कर्मचारियों में इस बात को लेकर भी चर्चा होती रही।
होली में दें दो दिन की छुट्टी
अचानक दो दिन के लिए दफ्तर खोले जाने को लेकर सचिवालय कर्मचारी बहुत उत्साहित नहीं दिखे। उत्तर प्रदेश सचिवालय संघ के अध्यक्ष यादवेंद्र मिश्र का कहना है कि तमाम लोगों को अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम निरस्त करने पड़े हैं। शनिवार व रविवार का अवकाश समाप्त किया गया है, उसके स्थान पर 21 व 22 मार्च को छुïट्टी दे दी जानी चाहिए। होली के आसपास ये छुïिट्टयां मिलने से कर्मचारियों को बदले में सिर्फ छुïिट्टयां ही नहीं मिलेंगी, परिवार वाले भी खुश होंगे।

Saturday 5 March 2016

जिला अस्पतालों में होगा एनआइसीयू का विस्तार

-आजमगढ़, गोंडा, रायबरेली, हरदोई व सीतापुर से शुरुआत
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : स्वास्थ्य महकमा बच्चों की जान बचाने के लिए तमाम सरकारी योजनाओं के साथ उनकी सघन चिकित्सा व्यवस्था मजबूत करने की पहल कर रहा है। इसके अंतर्गत जिला अस्पतालों में बाल सघन चिकित्सा इकाई (एनआइसीयू) की स्थापना होगी। पांच जिला अस्पतालों से इसके विस्तार की शुरुआत का फैसला हुआ है।
जच्चा-बच्चा की सेहत में सुधार के लिए प्रदेश में 100 शैय्याओं वाले 50 जच्चा-बच्चा अस्पताल बनाने पर काम चल रहा है। इन अस्पतालों के साथ अभी बच्चों की सघन चिकित्सा की व्यवस्था अपर्याप्त है। अभी सिर्फ इंसेफ्लाइटिस प्रभावित गोरखपुर व बस्ती मंडल के सात जिलों गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर, महाराजगंज, बस्ती, सिद्धार्थ नगर व संतकबीर नगर के साथ लखीमपुर व बहराइच के जिला अस्पतालों में ही बच्चों के लिए सघन चिकित्सा कक्ष की व्यवस्था है। प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) अरविंद कुमार के अनुसार अब इनका विस्तार करने का फैसला हुआ है। अब आजमगढ़, गोंडा, रायबरेली, हरदोई, सीतापुर में भी बाल सघन चिकित्सा कक्षों की स्थापना होगी। इनमें सीतापुर के लिए अभी जमीन की व्यवस्था नहीं हुई है। वहां के जिलाधिकारी व मुख्य चिकित्सा अधिकारी से जमीन का बंदोबस्त सुनिश्चित करने को कहा गया है। स्वास्थ्य विभाग इन पांचों जिलों में दस शैय्याओं व पांच वेंटिलेटर वाले बाल सघन चिकित्सा कक्ष की स्थापना करेगा। इसके लिए टेंडर प्रक्रिया शुरू हो गयी है। हर सघन चिकित्सा कक्ष अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनेगा, जिसकी निर्माण लागत औसतन सवा करोड़ रुपये के आसपास आने की उम्मीद है। इन पांच जिला अस्पतालों में सघन चिकित्सा कक्ष स्थापित होने के बाद अन्य जिलों में भी इस बाबत पहल होगी। 

आधार कार्ड से जुड़ेंगी चार पेंशन योजनाएं

-समाजवादी, वृद्धावस्था, विधवा व विकलांग पेंशन की गयीं शामिल
-तीन माह का अभियान चलाकर मोबाइल नंबर भी दर्ज किये जाएंगे
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: समाजवादी पेंशन, वृद्धावस्था पेंशन, विधवा पेंशन व विकलांग पेंशन योजनाओं को प्रदेश सरकार ने आधार कार्ड से जोडऩे का फैसला किया है। इसके लिए तीन माह के विशेष अभियान में लाभार्थियों के मोबाइल नंबर भी दर्ज किये जाएंगे।
मुख्य सचिव आलोक रंजन ने सभी मंडलायुक्तों व जिलाधिकारियों को पत्र लिखकर कहा है कि इन पेंशन योजनाओं के लाभार्थियों को पेंशन राशि का भुगतान सीधे बैंक खातों में जा रहा है। वर्ष 2015-16 के सभी लाभार्थियों का डिजिटाइज्ड डेटा सामाजिक पेंशन योजना की वेबसाइट पर उपलब्ध है। प्रदेश में 70 फीसद से अधिक लोगों को आधार कार्ड भी बन चुके हैं। खाद्य सुरक्षा अधिनियिम के क्रियान्वयन के दौरान बड़ी संख्या में लोगों के आधार कार्ड बने हैं। ऐसे में इन पेंशन योजनाओं के अधिकांश लाभार्थियों के पास आधार कार्ड होने की संभावना है। युद्ध स्तर पर तीन माह का विशेष अभियान चलाकर इन योजनाओं के लाभार्थियों के आधार कार्ड लिंकेज का काम पूरा कर लिया जाए। लाभार्थियों या परिजनों के मोबाइल नंबर भी जुटाए जाएं, ताकि पेंशन भुगतान की सूचना उनके मोबाइल पर एसएमएस से मिल सके।
सभी योजनाओं का डेटा जनपदीय कल्याण अधिकारियों के लॉग-इन पर उपलब्ध होगा। उक्त डेटा को एक्सेल फॉर्म में डाउनलोड कर अंतिम दो कॉलम में आधार संख्या व मोबाइल नंबर दर्ज किया जाएगा। इस फार्मेट को अपलोड करते ही डेटा सीधे राज्य स्तरीय सर्वर तक पहुंच जाएगा। इस दौरान कुछ ऐसे लाभार्थी भी मिल सकते हैं, जिनके आधार कार्ड अभी नहीं बने होंगे। 30 अप्रैल तक इन सभी के आधार कार्ड बनवाना भी सुनिश्चित करने को कहा गया है। मई के अंत तक यह प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। इसके जून में पहली किस्त का भुगतान किया जाएगा। यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि आधार कार्ड से जुड़े और मोबाइल नंबर दर्ज हुए बिना अगले वित्तीय वर्ष में इन योजनाओं का लाभ नहीं मिल सकेगा। हर जिले के मुख्य विकास अधिकारी को इस अभियान के लिए नोडल अधिकारी बनाया गया है।
सत्यापन में बरतें सावधानी
मुख्य सचिव ने इस अभियान के दौरान भौतिक सत्यापन में सावधानी बरतने के निर्देश दिये हैं। उन्होंने कहा है कि वर्ष 2015-16 के दौरान समाजवादी पेंशन 1.32 लाख, वृद्धावस्था पेंशन के 1.97 लाख, विधवा पेंशन के 62 हजार व विकलांग पेंशन के 23 हजार लाभार्थियों की पेंशन रोकी गयी थी। इनमें से अधिकांश या तो अपात्र पाए गए थे, या उनकी मृत्यु हो चुकी थी। अत: भौतिक सत्यापन का रैंडम परीक्षण भी कराया जाए।

समिति तलाशेगी एचबीटीयू का पहला कुलपति

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-उप्र हरकोर्ट बटलर प्राविधिक विवि  विधेयक की तैयारी
-राज्य सरकार को करनी है नियुक्ति, दावेदारों की सक्रियता भी बढ़ी
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : आइआइटी कानपुर सहित कई इंजीनियङ्क्षरग कालेजों के जन्मदाता संस्थान कानपुर के हरकोर्ट बटलर टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट (एचबीटीआइ) के विश्वविद्यालय बनने का रास्ता साफ होने वाला है। शुक्रवार को हरकोर्ट बटलर प्राविधिक विश्वविद्यालय (एचबीटीयू) विधेयक की तैयारियों के साथ पहले कुलपति को लेकर चर्चाएं शुरू हो गयीं। प्रमुख सचिव के संयोजन में गठित समिति विश्वविद्यालय के पहले कुलपति की तलाश करेगी।
उत्तर प्रदेश हरकोर्ट बटलर प्राविधिक विश्वविद्यालय की परिकल्पना देश के अग्र्रणी आवासीय प्राविधिक विश्वविद्यालय व उत्कृष्ट शिक्षा केंद्र के रूप में की गयी है। कुलपति के चयन के लिए प्रमुख सचिव (प्राविधिक शिक्षा) के संयोजन में समिति गठित होगी, जिसमें अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद द्वारा नामनिर्दिष्ट एक व्यक्ति व कुलाधिपति द्वारा नामनिर्दिष्ट एक व्यक्ति इसके सदस्य होंगे। वैसे विश्वविद्यालय मूर्त रूप में आने के बाद पहले कुलपति की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा किये जाने का प्रावधान है। ऐसे में दावेदारों की सक्रियता बढ़ गयी है। प्रदेश के एक प्राविधिक विश्वविद्यालय के कुलपति, आइईटी लखनऊ के एक वरिष्ठ शिक्षक सहित कई लोग कुलपति बनने की पेशबंदी में जुटे हैं।
कुलपति की अध्यक्षता में गठित विश्वविद्यालय की कार्यपरिषद में आइआइटी कानपुर के निदेशक, आइआइआइटी इलाहाबाद के निदेशक, एकेटीयू के कुलपति, एआइसीटीई के पर्तिनिधियों के अलावा दो उद्योगपति, दो वैज्ञानिक और प्राविधिक शिक्षा, वित्त व उच्च शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव सदस्य होंगे। विद्या परिषद में भी आइआइटी कानपुर, आइआइआइटी इलाहाबाद व लखनऊ और एकेटीयू का प्रतिनिधित्व होगा। विश्वविद्यालय में एक शोध व विकास परिषद का गठन भी होगा।
जेईई से होंगे प्रवेश
एचबीटीयू में पढ़ाई के लिए प्रवेश राष्ट्रीय स्तर की प्रवेश परीक्षा के माध्यम से किये जाने का प्रावधान किया गया है। यह प्रवेश परीक्षा आइआइटी जेईई होती है। एचबीटीयू में प्रवेश के लिए जेईई मेन्स की रैंक को आधार बनाया जाएगा। 

Friday 4 March 2016

दो लाख कर्मचारियों के लिए खुशखबरी


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- खुले नयी पेंशन योजना के द्वार, अप्रैल से लागू
- सरकार ने विभागों के लिए किया वित्तीय प्रावधान
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डॉ.संजीव, लखनऊ
खुशखबरी। प्रदेश सरकार ने सभी कर्मचारियों को नयी पेंशन योजना से जोडऩे की राह में आ रही बाधा दूर कर दी है। अभी तक विभागीय धनाभाव के कारण दो लाख से अधिक कर्मचारियों को नयी योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा था। अब सरकार ने वित्तीय प्रावधान कर दिया है ताकि सूबे के सभी कर्मचारी लाभान्वित हो सकें।
प्रदेश में एक अप्रैल 2005 के बाद नौकरी पाने वाले कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना का लाभ नहीं मिलता है। प्रदेश में प्राथमिक विद्यालयों व सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षकों, पुलिस व पंचायतों सहित कई विभागों के दो लाख से अधिक कर्मचारी ऐसे हैं जिन्हें अब तक नयी पेंशन योजना का भी लाभ नहीं मिल सका है। इनमें से अधिकांश ने पेंशन योजना के लिए फॉर्म भी भर दिये और उनका कार्ड भी बन गया किन्तु पेंशन के लिए जरूरी धनराशि कटना शुरू नहीं हुई। वित्त सचिव अजय अग्र्रवाल के मुताबिक इन कर्मचारियों के संबद्ध विभागों ने धनाभाव के कारण पेंशन के लिए अंशदान दे पाने में असमर्थता जताई थी। अब शासन ने सभी कर्मचारियों को पेंशन दिलाना सुनिश्चित कराने के लिए इन विभागों का धनाभाव दूर करने का फैसला किया है। इन सभी विभागों के लिए पेंशन योजना अंशदान के लिए पैसे का इंतजाम कर दिया गया है। अगले वित्तीय वर्ष में यह राशि आवंटित हो जाएगी और इसके बाद प्रदेश के सभी कर्मचारी नयी पेंशन योजना से जुड़ सकेंगे।
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दस-दस फीसद अंशदान
नयी पेंशन योजना के दायरे में आने वाले कर्मचारियों का प्राविडेंट फंड भी नहीं कटता है। केंद्र सरकार की पहल पर नये कर्मचारियों के लिए नयी पेंशन योजना आयी है, जिसमें कर्मचारी व सरकार के बराबर अंशदान से पेंशन प्रावधान है। इसमें कर्मचारियों के मूल वेतन में ग्र्रेड पे व डीए जोड़कर आने वाली राशि का दस फीसद कर्मचारियों की ओर से उतनी ही राशि राज्य सरकार की ओर से जमा की जाती है। इससे एकत्र राशि उनके लिए धन बचत का साधन भी बनती है और एक तरह से प्राविडेंट फंड के विकल्प के रूप में सामने आती है।