Tuesday 15 March 2016

सेहत की चिंता के चार कदम पर उखड़ी सांस


-पूरे नहीं हो सके चिकित्सा और स्वास्थ्य क्षेत्र के ज्यादातर वादे
-डॉक्टरों का अस्पताल न पहुंचना आज भी है संकट का सबब
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डॉ.संजीव, लखनऊ: समाजवादी नायक राम मनोहर लोहिया के नारे 'रोटी कपड़ा सस्ती हो, दवा पढ़ाई मुफ्ती हो' को सूक्त वाक्य बनाकर सत्ता में आयी अखिलेश यादव सरकार ने सेहत की चिंता में तेज चाल का वादा किया था। लोगों को उम्मीदें भी बहुत थीं किन्तु चार कदम चलते ही सांस उखड़ती नजर आ रही है। पीएचसी-सीएचसी पर अल्ट्रासाउंड और सीटी स्कैन जैसी सुविधाएं तो दूर, डॉक्टरों तक की उपस्थिति सुनिश्चित नहीं हो पा रही है।
अखिलेश सरकार के घोषणा पत्र में चिकित्सा-स्वास्थ्य के लिए सात बिन्दुओं का जिक्र था। ज्यादातर बिन्दुओं पर सरकार प्रभावी भूमिका नहीं निभा सकी है। अपनी पीठ थपथपाने के लिए सरकारी महकमा नए मेडिकल कालेज खोलने, एंबुलेंस सेवाओं को पटरी पर लाने और चिकित्सकीय जांचों का दायरा बढ़ाने का दावा कर सकता है, किन्तु अस्पतालों में डॉक्टरों की उपलब्धता सुनिश्चित न करा पाने का जवाब किसी के पास नहीं है।
सपने तो थे बड़े-बड़े
घोषणा पत्र के मुताबिक 'हृदय का ऑपरेशन, कैंसर, लिवर, किडनी आदि की चिकित्सा प्रदेश के सभी मेडिकल कालेजों को समृद्ध बनाकर मुफ्त करायी जाएगी'। यह अभी संभव नहीं हुआ है। गरीबी रेखा से नीचे वालों को भी पूरी तरह मुफ्त इलाज नहीं मिल सका है। प्राथमिक व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों को उच्चीकृत करते हुए उनमें अल्ट्रासाउंड व सीटी स्कैन होने की बात कही गयी थी लेकिन सभी जिला अस्पतालों तक में अभी सीटी स्कैन नहीं हैं। कई अस्पतालों में मशीन पहुंची भी तो उनका संचालन नहीं हो सका।
...तो न रहना इनके सहारे
घोषणा पत्र आकस्मिक परिस्थितियों में उपचार के लिए 'सभी राज्य स्तरीय एवं राष्ट्रीय राजमार्गों पर चल चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध करायी जाएंगी' जैसे बड़े-बड़े वादे कर रहा था, किन्तु ऐसा नहीं हो सका है। एंबुलेंस की संख्या बढ़ी लेकिन वे भी अस्पताल तक ही पहुंचाती हैं। एंबुलेंस की तत्परता का प्रमाण भी हाल ही में तब मिला, जब सपा के विधायक हाजी इरफान दुर्घटना में घायल हुए तो उन्हें ले जाने वाली एंबुलेंस में ऑक्सीजन किट तक नहीं थी। खैर, किसी तरह एंबुलेंस से अस्पताल पहुंच भी गए तो राजमार्गों पर स्थित प्राथमिक व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों तक पर डॉक्टर नहीं मिलते। स्कूलों व कालेजों में पढऩे वाली छात्राओं के लिए मुफ्त चिकित्सकीय सुविधाओं के वादे पर भी अमल नहीं हुआ है।
और इन वादों का क्या
घोषणापत्र कहता है कि 'केवल उन जनपदों में ही निजी मेडिकल कालेज खोलने की अनुमति दी जाएगी, जहां अभी कोई मेडिकल कालेज न हो'। यह वादा तो प्रदेश के शीर्ष सत्ता प्रतिष्ठान की नाक के नीचे हवा में उड़ता नजर आ रहा है। राजधानी लखनऊ में ही जहां केजीएमयू जैसा सरकारी चिकित्सा शिक्षा विश्वविद्यालय है, लोहिया संस्थान को अंतर्राष्ट्रीय स्तर के मेडिकल कालेज में बदलने का फैसला हो चुका है, निजी क्षेत्र को मेडिकल कालेज खोलने की अनुमति भी मिल चुकी है। इसी तरह वाराणसी में भी एक निजी मेडिकल कालेज मूर्त रूप ले चुका है। अनुमति तो कई जिलों में दी जा चुकी है।

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