डॉ.
संजीव मिश्र
उत्तर
प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 18 अप्रैल की दोपहर चटख धूप के साथ तापमान भी खासा
बढ़ा हुआ था। लोकसभा चुनाव की गहमागहमी इस तपिश को और बढ़ा रही थी। दरअसल हाल ही
में भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए दिग्गज फिल्म अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा
यहां समाजवादी पार्टी का झंडा लहरा रहे थे।
शत्रुघ्न की पत्नी पूनम को समाजवादी पार्टी ने केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के
सामने लखनऊ से टिकट दिया और शत्रुघ्न अपनी पार्टी कांग्रेस के प्रत्याशी की जगह
समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी गठबंधन की प्रत्याशी के समर्थन में बाकी सभी
को ‘खामोश’ कर रहे थे। दरअसल सपा व कांग्रेस की यह ‘फिक्सिंग’ महज लखनऊ में ही
नहीं, पूरे उत्तर प्रदेश में दिखाई दे रही है। माना जा रहा है कि यह ‘फिक्सिंग’
चुनाव बाद काम आ सकती है।
कांग्रेस
और समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश में 2017 का विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ा था। तब
फिजां में गठबंधन की शक्ल में ‘दो लड़के’ छाए थे और राहुल गांधी व अखिलेश यादव की
इस जोड़ी में तमाम लोग देश का भविष्य देख रहे थे। दो बरस भी नहीं हुए और यह जोड़ी
टूट गयी। कभी धुर विरोधी रहे समाजवादी पार्टी व बहुजन समाज पार्टी ने राष्ट्रीय
लोकदल के साथ मिलकर महागठबंधन बनाया किन्तु कांग्रेस को उससे दूर रखा। शुरू में तो
माना गया कि राजनीतिक नफा-नुकसान के आधार पर गठबंधन से कांग्रेस को दूर रखा गया है
किन्तु अब जैसे-जैसे चुनाव आगे बढ़ रहे हैं, उत्तर प्रदेश में तेजी से ‘फिक्सिंग’
की राय बन रही है। माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश की तमाम सीटों पर सपा व
कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। वैसे भी सपा-बसपा ने गठबंधन के लिए दो सीटें
(सोनिया गांधी की रायबरेली व राहुल गांधी की अमेठी) छोड़ दी थीं। इसके जवाब में कांग्रेस
ने गठबंधन को सात सीटें देने का एलान कर दिया। कांग्रेस ने रालोद मुखिया अजित सिंह
की सीट मुजफ्फर नगर, उनके बेटे जयंत चौधरी की सीट बागपत, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव
की सीट आजमगढ़, उनकी पत्नी डिम्पल यादव की सीट कन्नौज, सपा संरक्षक मुलायम सिंह
यादव की सीट मैनपुरी व उनके भतीजे अक्षय यादव की सीट फिरोजाबाद से कांग्रेस ने
प्रत्याशी ही नहीं खड़े किये। ऐसे में इन सीटों पर भाजपा को सपा-बसपा-रालोद के
महागठबंधन से सीधा मुकाबला करना है और यहां ध्रुवीकरण की स्थितियां भी बन रही हैं।
महागठबंधन
से मुकाबले में कुछ सीटें छोड़ने तक तो बात खुल कर हुई किन्तु जिस तरह के
प्रत्याशी उतारे गए हैं, उससे ‘फिक्सिंग’ के आरोप लगने अवश्यंभावी हैं। देश के गृह
मंत्री राजनाथ सिंह की सीट लखनऊ को ही लें, तो वहां से समाजवादी पार्टी की टिकट
पटना से कांग्रेस प्रत्याशी शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी पूनम सिन्हा को मिली है।
स्वयं शत्रुघ्न पार्टी धर्म भूल पत्नी धर्म निभाते हुए लखनऊ आए और सपा-बसपा के
लहराते झंडों के बीच रोड शो किया। यही कारण है कि लखनऊ के कांग्रेस प्रत्याशी
प्रमोद कृष्णम् को उन्हें पार्टी धर्म की याद दिलानी पड़ी। प्रदेश की कुछ अन्य
सीटों पर भी यह ‘फिक्सिंग’ साफ नजर आती है। उत्तर प्रदेश में इस समय सर्वाधिक
चर्चा में रामपुर सीट है। यहां सपा प्रत्याशी आजम खां का मुकाबला भाजपा प्रत्याशी
व फिल्म अभिनेत्री जयाप्रदा से है। कांग्रेस यहां लगातार मुस्लिम प्रत्याशी उतारती
रही है। यहां से कांग्रेस की टिकट पर राजा सैयद अहमद मेहदी, जुल्फिकार अली खान के
बाद 1996 व 1999 में बेगम नूर बानो सांसद बनी थीं। पिछले चुनाव में भी कांग्रेस ने
नवाब काजिम अली खान को टिकट दिया था, किन्तु इस बार अचानक कांग्रेस का टिकट बदल
गया। यहां से मुस्लिम प्रत्याशी की जगह संजय कपूर को टिकट दिया जाना लोग आजम खान
के लिए फायदेमंद करार दे रहे हैं। इसी तरह मेरठ में भाजपा के राजेंद्र अग्रवाल के
मुकाबले हरेंद्र अग्रवाल को उतारना गठबंधन के लिए लाभदायक माना जा रहा है। कैराना
में सपा ने तबस्सुम हसन और भाजपा ने प्रदीप चौधरी को टिकट दिया है। इनके बीच
कांग्रेस से हरेंद्र मलिक को मिली टिकट भी चौंका रही है। अमरोहा से गठबंधन
प्रत्याशी कुँवर दानिश अली के मुकाबले में भाजपा के कंवर सिंह तंवर मैदान में हैं।
यहां से राशिद अल्वी का टिकट पक्का माना जा रहा था, किन्तु अंततः कांग्रेस
प्रत्याशी बने सचिन चौधरी, जो गठबंधन के लिए मुफीद माने जा रहे हैं।
ऐसा
नहीं है कि इस ‘फिक्सिंग’ धर्म का पालन केवल कांग्रेस द्वारा ही किया जा रहा है।
कई सीटों पर गठबंधन भी इस धर्म पर खरा उतरता नजर आ रहा है। उन्नाव सीट पर समाजवादी
पार्टी ने इलाहाबाद की चर्चित विधायक पूजा पाल का टिकट घोषित कर दिया था। मौजूदा
सांसद साक्षी महाराज के खिलाफ कांग्रेस ने यहां पूर्व सांसद अन्नू टंडन को मैदान
में उतारा है। ऐसे में सपा ने यहां टिकट बदला और अरुण कुमार शुक्ला को टिकट दिया।
माना जा रहा है कि शुक्ला भाजपा के ब्राह्मण वोट बैंक में सेंध लगाएंगे और इसका
सीधा लाभ कांग्रेस को मिलेगा। इसी तरह कानपुर नगर से कांग्रेस ने पूर्व मंत्री
श्रीप्रकाश जायसवाल को टिकट दिया है। यहां से भाजपा ने प्रदेश सरकार के मंत्री
सत्यदेव पचौरी को चुनाव मैदान में उतारा है। ऐसे में सपा प्रत्याशी के रूप में राम
कुमार का आना लोगों को चौंका गया। रामकुमार कभी राजनीतिक रूप से कानपुर में सक्रिय
ही नहीं रहे और वे जो भी नुकसान करेंगे भाजपा का ही करेंगे। इस ‘फिक्सिंग’ के
नतीजे तो 23 मई को पता चलेंगे, पर इतना तय है कि यदि नतीजे सकारात्मक रहे तो चुनाव
बाद सरकार बनने के दौर में इनकी खासी भूमिका होगी।