Wednesday 10 April 2019

कोउ नृप होउ हमहि का हानी



डॉ. संजीव मिश्र
गोस्वामी तुलसीदास ने राम चरित मानस के अयोध्या कांड में एक चौपाई लिखी है, ‘कोउ नृप होउ हमहि का हानी। चेरि छाड़ि अब होब कि रानी।।’ मानस में यह चौपाई मंथरा और कैकेयी के बीच संवाद की है, किन्तु इस समय देश की जनता से हो रहे वायदों में भी बार-बार याद आ रही है। देश के दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों, भारतीय जनता पार्टी व भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के घोषणा पत्र जनता के सामने आ चुके हैं। इन घोषणा पत्रों से तो जनता बस फायदे ही फायदे में दिखती है। लुभावने वायदों के बीच जनता को यह तय करना मुश्किल सा हो रहा है कि चुनाव बाद ये वायदे किस हद तक पूरे होंगे, क्योंकि कोई भी इन्हें पूरा करने की योजना के साथ सामने नहीं आया है।
  इस वर्ष के लोकसभा चुनावों में जनता को लुभाने की हर कोशिश की जा रही है। कांग्रेस ने पहले घोषणा पत्र जारी कर देश के गरीबों को 72 हजार रुपये की न्यूनतम आय देने का वायदा कर छक्का मारा था। वह गेंद हवा में ही थी कि भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में सभी किसानों को छह हजार रुपये देने के साथ सस्ती चीनी व पांच साल तक ब्याजमुक्त एक लाख रुपये देने जैसे वायदों से उस गेंद को कैच करने की कोशिश की है। अब भाजपा ने इस कोशिश से कांग्रेस को आउट किया है या कांग्रेस 72 हजार रुपये न्यूनतम आय का छक्का लगाने में सफल हुई है, यह तो लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद ही पता चल सकेगा। फिलहाल तो जनता के सामने वायदों व फायदों की पूरी फेहरिश्त है और उसे अपने हिसाब से फैसला करना है। अब सवाल सिर्फ इतना ही है कि कहीं ऐसा न हो कि जिस तरह मंथरा ने कैकेयी का मतिभ्रम कर राजा दशरथ से राम वनगमन जैसा बड़ा फैसला करवा लिया था और अयोध्या की जनता छली गयी है, वैसे ही देश की जनता के साथ छल हो और आधारहीन वायदे पूरे ही न हो सकें।
  फिलहाल कांग्रेस व भाजपा के दो बड़े वायदों पर बात करते हैं। कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में तमाम वायदों के साथ देश की बीस फीसद सबसे गरीब आबादी को 72 हजार रुपये सालाना तक आर्थिक सहयोग का वादा किया है। इस वायदे को गरीबी पर आखिरी प्रहार बताने के साथ दावा किया गया है कि इससे सबसे गरीब लोग आर्थिक रूप से मजबूत होंगे और देश की अर्थव्यवस्था को भी मजबूती प्रदान करेंगे। कांग्रेस ने तमाम अर्थशास्त्रियों की सलाह लेने की बात तो कही है किन्तु जनता में आज भी सवाल खड़ा हो रहा है कि इस कारण आने वाले आर्थिक बोझ को सरकार कैसे सहेगी। कहा जा रहा है कि इसका सबसे बड़ा असर ईमानदार करदाताओं पर होगा। कांग्रेसी दिग्गज इस सवाल का सीधा जवाब भी नहीं दे रहे हैं। कांग्रेस अपने पूरे चुनाव अभियान में पिछले लोकसभा चुनाव के साथ भाजपा के हर खाते में 15 लाख रुपये पहुंचाने के वादे और फिर उसे जुमला करार दिये जाने की बात उठा रही है। अब कांग्रेस की 72 हजारी योजना अमल में आएगी या जुमला बनेगी, इस पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
  वादे करने में भाजपा भी पीछे नहीं है। अब हर किसान को छह हजार रुपये वार्षिक देने के साथ उनकी आय दोगुनी करने का वायदा भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में किया है। सत्ता प्राप्ति का यह संकल्प दोहराते समय भाजपा भी तमाम लुभावने वादों पर अमल की राह नहीं बता पाई है। कांग्रेस ने जहां धारा 370 को बरकरार रखने का वायदा किया है, वहीं भाजपा ने इसे समाप्त करने की प्रतिबद्धता दोहराई है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 व धारा 35ए को समाप्त करने का वायदा कर भाजपा ने अपनी कश्मीर नीति पर बने रहने की बात कही है। साथ ही समान नागरिक संहिता लागू करने का वायदा भी संकल्प पत्र का हिस्सा है। पूर्ण बहुमत के साथ पांच साल सरकार चला चुकी भाजपा इसे पहले क्यों नहीं कर पायी और अब कैसे करेगी, इसका जिक्र संकल्प पत्र में कहीं नहीं है। ऐसे में जनता के मन में इस वायदे को पूरा करने की राह खोजने जैसे सवाल उठना स्वाभाविक है।
  दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों के तमाम वायदों के बीच इतना तो है कि भारतीय राजनीति अब अलग दिशा में करवट ले रही है। पहली दफा शिक्षा पर भाजपा व कांग्रेस, दोनों राजनीतिक दलों का ठीक-ठाक फोकस नजर आ रहा है। कांग्रेस ने जहां सकल घरेलू आय का छह फीसद शिक्षा पर खर्च करने की बात कही थी, वहीं भाजपा ने सभी के लिए प्रभावी शिक्षा के साथ इंजीनयिरंग मेडिकल कालेजों में पचास फीसद तक सीटें बढ़ाने की बात कही है। 2025 तक देश को टीबीमुक्त करने का वायदा भी भाजपा के घोषणा पत्र का हिस्सा है। रोजगार पर भी दोनों राजनीतिक दल खुल कर बात कर रहे हैं। उम्मीदें दोनों से हैं, सरकार किसी की भी बने, वायदे पूरे हुए तो सभी प्रसन्न होंगे। ऐसा न हुआ तो जुमलों व वायदों से मुकरने वालों की आदी तो देश की जनता हो ही चुकी है।

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