Saturday 28 November 2015

सर्वाधिक एंबुलेंस का बनेगा कीर्तिमान


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-आज 500 एंबुलेंस जनता को सौंपेंगे मुख्यमंत्री
-चार माह में 4500 तक पहुंचा कर होगा आवेदन
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : उत्तर प्रदेश अब देश ही नहीं दुनिया के किसी एक राज्य में सर्वाधिक एंबुलेंस का रेकार्ड बनाने की तैयारी में है। अगले चार माह में राज्य के सरकारी एंबुलेंस बेड़े को 4500 तक पहुंचाने के बाद स्वास्थ्य विभाग रिकार्ड के लिए आवेदन करेगा। शनिवार को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव 500 नयी एंबुलेंस सूबे के आपात चिकित्सा सेवा बेड़े में शामिल करेंगे।
राज्य में इस समय 102 व 108 नंबर डायल करने पर एंबुलेंस की सेवा उपलब्ध है। इस समय 102 नंबर सेवा की 1964 और 108 नंबर सेवा की 988 एम्बुलेंस संचालित हो रही हैं। इनके अलावा विभिन्न सरकारी अस्पतालों की अपनी 450 एंबुलेंस हैं। इस तरह मौजूदा समय में प्रांतीय चिकित्सा सेवा से जुड़ी हुई 3402 एंबुलेंस हैं। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव शनिवार को समारोह पूर्वक 500 नई एंबुलेंस डायल 108 सेवा में शामिल करेंगे। मुख्यमंत्री श्रेष्ठ चालकों व इसके प्रबंधन से जुड़े उत्कृष्ट कर्मचारियों को सम्मानित भी करेंगे। इन 500 के साथ डायल 108 सेवा में एंबुलेंस की संख्या 1488 हो जाएगी, वहीं प्रांतीय चिकित्सा सेवा में 3902 एंबुलेंस हो जाएंगी।
इसके साथ ही डायल 102 सेवा में भी 300 और एंबुलेंस को सैद्धांतिक मंजूरी मिल चुकी है। इसके लिए जनवरी में खरीद आदेश जारी हो जाएंगे। प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा संस्थानों व अन्य सुपरस्पेशियलिटी अस्पतालों में भी डेढ़ सौ एंबुलेंस हैं। एडवांस सपोर्ट सिस्टम की 150 एंबुलेंस सहित अगले चार माह में यानी मौजूदा वित्तीय वर्ष की समाप्ति तक प्रदेश में एंबुलेंस की कुल संख्या साढ़े चार हजार पार कर जाएगी। प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) अरविंद कुमार के मुताबिक एक राज्य में सरकारी क्षेत्र में सर्वाधिक एंबुलेंस उत्तर प्रदेश में हो जाएंगी। इसके बाद औपचारिक रूप से रिकार्ड के लिए आवेदन किया जाएगा।
हर जिले को मिलेंगी दो अत्याधुनिक एंबुलेंस
शासन हर जिले में एडवांस सपोर्ट सिस्टम से लैस दो अत्याधुनिक एंबुलेंस तैनात करने की तैयारी में है। राज्य में इस समय 75 ऐसी एंबुलेंस आ चुकी हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने ऐसी 75 और एंबुलेंस को मंजूरी दे दी है। इसके बाद हर जिले को ये दो-दो एंबुलेंस दे दी जाएंगी। हर एंबुलेंस में वेंटिलेटर, इन्फ्यूजन पम्प, हृदय रोगियों को शॉक देने के लिए जरूरी डीफ्रिडिलेटर सहित तमाम जरूरी उपकरणों के साथ अति प्रशिक्षित कर्मचारी भी मौजूद रहेंगे। जिन जिलों  में अतिविशिष्टता वाली चिकित्सा सेवाएं नहीं हैं, वहां के गंभीर मरीजों को मेडिकल कालेजों व अतिविशिष्टता वाले अस्पतालों तक ले जाने के काम ये एंबुलेंस आएंगी।
ग्रामीण इलाकों पर जोर
डायल 108 सेवा में 500 और एंबुलेंस जोडऩे के साथ ही प्रदेश में उनके वितरण का फार्मूला भी तय हो गया है। अभी ब्लाक स्तर तक एक, दस लाख से अधिक आबादी वाले जिला मुख्यालयों में चार, दस लाख से कम वाले जिला मुख्यालयों में दो-दो एंबुलेंस हैं। नयी पांच सौ एंबुलेंस में से महानगरों में हर तीन लाख आबादी पर एक, महानगरों की शहरी सीमा से जुड़े इलाकों में ढाई लाख पर एक, महानगरों के ग्र्रामीण क्षेत्र में दो लाख पर एक, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पांच लाख पर एक, बड़े जनपदों के शहरी क्षेत्र में ढाई लाख, शहर से जुड़े इलाकों में दो लाख व ग्र्रामीण इलाकों में 1.75 लाख आबादी पर एक, शेष जनपदों के शहरी क्षेत्र में दो लाख व ग्र्रामीण क्षेत्र में डेढ़ लाख आबादी पर एक एंबुलेंस तैनात की जाएगी। 

टैक्सी-बसों में लगेंगे जीपीएस-जीपीआरएस व सीसीटीवी कैमरे


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-23 सीटों से कम क्षमता वाले वाहनों को सीसीटीवी से मुक्ति
-सभी परिवहन वाहनों में आपातकालीन बटन भी लगाए जाएंगे
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : टैक्सी चालकों व बसों में यात्रियों के साथ अभद्रता जैसी घटनाएं रोकने के लिए परिवहन विभाग सख्त रुख अख्तियार करने जा रहा है। अब प्रदेश के सभी परिवहन वाहनों में आपातकालीन बटन लगाने के साथ उन्हें जीपीएस व जीपीआरएस से लैस किया जाएगा। 23 या अधिक सीटों वाली बसों में तो सीसीटीवी कैमरे भी लगवाना सुनिश्चित करने का फैसला हुआ है।
प्रदेश के विभिन्न परिवहन वाहनों में यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए शासन स्तर पर उत्तर प्रदेश मोटरयान नियमावली में संशोधन का फैसला किया है। प्रमुख सचिव (परिवहन) कुमार अरविंद सिंह देव द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया है कि सभी परिवहन वाहनों का परमिट देते समय राज्य परिवहन प्राधिकरण जीपीएस, जीपीआरएस व सीसीटीवी कैमरे संबंधी शर्तें जोड़ सकेगा। इन शर्तों में सभी परिवहन यानों में ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम (जीपीएस), जनरल पॉकेट रेडियो स्विचिंग (जीपीआरएस) के साथ आपातकालीन बटन लगाए जाने की बात शामिल होगी। इसके अलावा 23 या उससे अधिक सीटों वाले परिवहन वाहनों में क्लोज सर्किट टीवी कैमरा भी लगाना अनिवार्य होगा। अधिसूचना के मुताबिक राज्य परिवहन प्राधिकरण इन शर्तों को लागू करने के साथ संभागीय परिवहन प्राधिकरणों के स्तर पर भी इन शर्तों पर अमल सुनिश्चित कराने के लिए निर्देश जारी कर सकेंगे। परमिट जारी करते समय इन उपकरणों का परीक्षण करने के साथ ही वाहन स्वामियों को निर्देश जारी किये जाएंगे कि वे ये सभी उपकरण हर समय चालू रखेंगे। निरीक्षण के दौरान उपकरण चालू न पाए जाने पर इसे अपराध माना जाएगा और उनके खिलाफ मोटर वाहन अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाएगी। 

Wednesday 25 November 2015

ऐसे कैसे दूर होगी प्रसूति विशेषज्ञों की कमी!

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-स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ के लिए भेजे नामों में 90 फीसद पुरुष
-छात्राओं के साथ मेडिकल कालेजों में करेंगे डीजीओ की पढ़ाई
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : पहले ही स्त्री एवं प्रसूति विशेषज्ञों की कमी से जूझ रहे स्वास्थ्य विभाग के सामने अब अजब स्थिति है। हाल ही में विभागीय चयन से स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ के लिए भेजे जाने के लिए चयनित चिकित्सकों में 90 फीसद से अधिक पुरुष हैं। अब इन पुरुष विशेषज्ञों से महिलाएं कैसे इलाज कराएंगी, यह सवाल खड़ा हो रहा है।
सरकारी मेडिकल कालेजों में परास्नातक पाठ्यक्रमों एमडी, एमएस, डीजीओ, डीसीएच आदि में प्रवेश के लिए तीस फीसद सीटें प्रांतीय चिकित्सा सेवा के चिकित्सकों के लिए आरक्षित हैं। सरकारी चिकित्सा सेवा के लिए युवाओं को आकर्षित करने की दृष्टि से यह नियम बनाया गया था। इन चिकित्सकों को मेडिकल कालेजों के परास्नातक पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए परीक्षा (पीजीएमईई) भी नहीं देनी होती है। स्वास्थ्य महकमा सूची बनाकर चिकित्सा शिक्षा महानिदेशालय को सौंप देता है, जिसके बाद उन्हें सीधे प्रवेश मिल जाता है।
इस बार भी बीते नौ व दस नवंबर को हुई काउंसिलिंग के बाद चिकित्सा शिक्षा विभाग को जो सूची सौंपी गयी है, उससे अधिकारी से लेकर डॉक्टर तक चौंक गए हैं। स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग में परास्नातक डिप्लोमा पाठ्यक्रम डिप्लोमा इन गायनोकोलॉजी एंड ऑब्सटेट्रिक्स (डीजीओ) करने के लिए जिन 13 चिकित्सकों की सूची चिकित्सा शिक्षा विभाग को सौंपी गयी है, उनमें से 12 पुरुष हैं। पहले ही ग्र्रामीण अंचल में महिलाएं पुरुषों से इलाज तक कराने में संकोच करती हैं। अब ये पुरुष चिकित्सक यदि स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ के रूप में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर तैनात किये जाएंगे तो महिलाएं इनके साथ कितनी सहज होंगी, इस पर सवाल खड़े हो रहे हैं। बीते दिनों स्वास्थ्य विभाग के आंकलन में ही यह तथ्य सामने आ चुका है कि ग्र्रामीण महिलाएं पुरुष चिकित्सकों के साथ असहज महसूस करती हैं, इसलिए संस्थागत प्रसव भी पर्याप्त संख्या में नहीं हो पा रहे हैं। फिलहाल ये सभी पुरुष चिकित्सक स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ बनने के लिए अलग-अलग मेडिकल कालेजों में प्रवेश लेंगे और वहां छात्राओं के साथ पढ़ाई करेंगे। दरअसल प्रवेश परीक्षा पीजीएमईई देकर आने वाले चिकित्सकों में से एक भी पुरुष ने डीजीओ नहीं चुना है। इस संबंध में चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक डॉ.वीएन त्रिपाठी का कहना है कि स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ पुरुष या महिला, कोई भी हो सकता है। सामान्यत: पीजीएमईई में सफल छात्र स्त्री एवं प्रसूति विशेषज्ञता में प्रवेश नहीं लेते हैं, इसलिए यह चौंकाने वाला तथ्य है। चिकित्सा शिक्षा विभाग अपने मेडिकल कालेजों के लिए स्वास्थ्य विभाग की सूची के अनुरूप प्रवेश देगा और उन सभी पुरुष चिकित्सकों को वहां पढ़ाई करनी होगी। 

..ताकि डॉक्टरों के अभाव में मरीज न लौटें

-बिना वैकल्पिक इंतजाम स्वास्थ्य केंद्र नहीं छोड़ सकेंगे डॉक्टर
-प्रमुख सचिव ने जारी किये निर्देश, सीएमओ होंगे जिम्मेदार
राज्य ब्यूरो, लखनऊ : प्रदेश के प्राथमिक व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों के तमाम चिकित्सक सरकारी ड्यूटी बताकर अस्पतालों से गायब हो जाते हैं। ऐसी तमाम शिकायतों के बाद प्रमुख सचिव ने निर्देश जारी कर बिना वैकल्पिक इंतजाम चिकित्सकों के स्वास्थ्य केंद्र छोडऩे पर रोक लगा दी है। इसके लिए मुख्य चिकित्सा अधिकारियों की जिम्मेदारी सुनिश्चित करने को भी कहा है।
प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) अरविंद कुमार ने सभी मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को आदेश जारी कर कहा है कि मरीजों को परेशानी न होने देना उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी है। शासन के संज्ञान में यह तथ्य लाया गया है कि प्राथमिक व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर तैनात चिकित्सक न्यायालय में साक्ष्य प्रस्तुत करने, पोस्टमार्टम ड्यूटी करने या कोई अन्य ड्यूटी बताकर अस्पतालों से गायब हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में अस्पतालों में सन्नाटा हो जाता है और वहां पहुंचने वाले मरीज निराश लौटने को विवश होते हैं। कई बार को इस कारण मरीजों को आसपास किसी झोलाछाप डॉक्टर तक से इलाज कराना पड़ता है, जिससे उनकी जान तक पर बन आती है।
प्रमुख सचिव ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि प्राथमिक व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर तैनात किसी भी चिकित्सा अधिकारी को अस्पताल छोडऩे की छूट नहीं होगी। इसके लिए मुख्य चिकित्सा अधिकारी स्तर से पहले वैकल्पिक इंतजाम सुनिश्चित किया जाएगा। मुख्य चिकित्सा अधिकारियों से कहा गया है कि इन चिकित्सा अधिकारियों की ड्यूटी सिर्फ विशेष परिस्थितियों में ही कहीं अन्यत्र लगाई जाए। सिर्फ न्यायालय में साक्ष्य के लिए बुलाए जाने पर ही उन्हें स्वास्थ्य केंद्र छोडऩे की छूट होगी, किन्तु इस दौरान संबंधित स्वास्थ्य केंद्र पर वैकल्पिक चिकित्सक तैनात करने की जिम्मेदारी सीएमओ की होगी। ऐसा न होने पर सीएमओ के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। 

Tuesday 24 November 2015

पेंशनर 15 दिसंबर तक जमा करें जीवन प्रमाण पत्र


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-कोषागारों में उमड़ी भीड़ से निपटने की कवायद
-नहीं उठाते कभी भी जमा करने की सुविधा का लाभ
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : कोषागारों के बाहर भीड़ में परेशान हो रहे पेंशनरों के लिए खुशखबरी। वे 15 दिसंबर तक अपना जीवन प्रमाण पत्र जमा कर सकेंगे। पेंशनरों द्वारा वर्ष में कभी भी जीवन प्रमाण पत्र जमा करने की सुविधा का लाभ न उठाने के कारण कोषागारों में उमड़ रही भीड़ से निपटने के लिए यह फैसला किया गया है।
इस समय सभी 75 कोषागारों में सुबह होते ही पेंशनर जुटने शुरू हो जाते हैं। कहीं धूप में पड़ी बेंचों पर तो कहीं पेड़ की छांव में ये बुजुर्ग फार्म भरने के साथ ही अपने जीवित होने का प्रमाण जमा करने की मशक्कत करते हैं। पेंशनरों को दिसंबर माह की पेंशन पाने के लिए 30 नवंबर तक अपने जीवित होने का प्रमाण पत्र जमा करना है। कोषागार विभाग का नियम तो यह है कि वे वर्ष में कभी भी कोषागार या अपनी बैंक में जाकर अपना जीवन प्रमाण पत्र जमा कर सकते हैं, किन्तु अधिकांश ने ऐसा नहीं किया है। दरअसल पिछले वर्ष तक नवंबर माह में ही हर हाल में जीवन प्रमाण पत्र जमा करने का नियम था। इस बार नियम तो बदला किन्तु अनिवार्यता न होने के कारण पेंशनर बीच में नहीं आए। अब सभी पेंशनर कोषागार पहुंच रहे हैं और वहां भीड़ लग रही है। अब कोषागार महकमे को नवंबर के आखिरी कुछ दिनों में कोषागारों में अत्यधिक भीड़ उमडऩे की उम्मीद है। इससे निपटने के लिए कोषागारों को निर्देश दिये गए हैं कि 15 दिसंबर तक आने वाले सभी जीवन प्रमाण पत्रों को प्रोसेस किया जाए, ताकि उन सभी को पेंशन मिल सके। नवंबर की पेंशन तो सभी को वैसे ही मिल जाएगी। पेंशनरों से भी कहा जा रहा है कि वे अगले साल से कुछ माह पूर्व जीवन प्रमाण पत्र जमा करने का चक्र बना लें।
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500 कर्मचारी, 11 लाख पेंशनर
कोषागारों में उमड़ रही भीड़ के पीछे बड़ा कारण कर्मचारियों की संख्या खासी कम होना है। कोषागार महकमे को प्रदेश में 1600 कर्मचारियों की जरूरत है। इसके विपरीत महज 500 कर्मचारी है। कर्मचारी तो घट रहे हैं किन्तु पेंशनर लगातार बढ़ रहे हैं। इस समय कोषागार से लगभग 11 लाख पेंशनरों को पेंशन मिलती है। वैसे अधिकारियों को अगले कुछ महीनों में इस समस्या का समाधान होने की उम्मीद है। बीते रविवार को हुई कर्मचारी चयन आयोग की परीक्षा के बाद चयनित कर्मियों में कोषागारों की भी हिस्सेदारी होगी।
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कर्मी मुस्तैद, घर तक जाएंगे
पेंशनरों की सुविधा के लिए कोषागारों में कर्मचारी मुस्तैद हैं। 15 दिसंबर तक जीवन प्रमाण पत्र जमा करने वालों को भी हर हाल में दिसंबर की पेंशन मिलेगी। कोषागार न पहुंच सकने वालों के परिजन सूचना दें, तो कोषागारकर्मी उनके घर जाकर जीवन प्रमाण पत्र ले आएंगे। - लोरिक यादव, निदेशक कोषागार

स्वास्थ्य विभाग को अगले माह मिलेंगे दो नए महानिदेशक


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-परिवार कल्याण महानिदेशक के पास हैं दोनों प्रभार
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : स्वास्थ्य विभाग को अगले माह दो नए महानिदेशक मिलेंगे। अभी परिवार कल्याण महानिदेशक डॉ.रेनू जलोटे के पास दोनों प्रभार हैं, जो स्वयं 30 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रही हैं। इस बीच स्वास्थ्य और परिवार कल्याण महानिदेशकों के चयन के लिए विभागीय प्रोन्नति समिति की बैठक हो चुकी है और जल्द ही नामों की घोषणा कर दी जाएगी।
स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ.विजयलक्ष्मी के 30 अक्टूबर को सेवानिवृत्त होने के बाद उनका कार्यभार परिवार कल्याण महानिदेशक डॉ. रेनू जलोटे को दे दिया गया था। दोनों पदों पर नियुक्ति के लिए विभागीय प्रोन्नति समिति की बैठक करा ली गयी है। ऐसे में दिसंबर में स्वास्थ्य व परिवार कल्याण विभाग में अलग-अलग महानिदेशकों की नियुक्ति होने की पूरी उम्मीद है।
सेवानिवृत्त हो, एनएचएम आओ
स्वास्थ्य विभाग से सेवानिवृत्त होने वालों को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) खूब रास आ रहा है। बीते दिनों स्वास्थ्य महानिदेशक पद से सेवानिवृत्त हुई डॉ.विजयलक्ष्मी ने एनएचएम में परामर्शदाता के रूप में काम संभाल लिया है। इससे पूर्व स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ.बलजीत सिंह अरोड़ा भी सेवानिवृत्ति के बाद पहले से ही एनएचएम से जुड़े हुए हैं। मलेरिया उन्मूलन विभाग के निदेशक रहे डॉ.योगेश्वर दयाल, डॉ.हरिओम दीक्षित, डॉ.उत्तम कुमार, डॉ.एके शर्मा आदि भी सेवानिवृत्ति के बाद स्वास्थ्य मिशन को सलाह दे रहे हैं। अधिकारियों का मानना है कि इनसे मिशन समृद्ध होगा और प्रदेश में कामकाज सुधरेगा। 

आउटसोर्सिंग से कर्मचारियों की नियुक्ति में जरूर मिले आरक्षण


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-राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के मुख्य सचिव को निर्देश
-2008 में जारी शासनादेश का नहीं हो रहा अनुपालन
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : प्रदेश के तमाम सरकारी महकमों में स्थायी नियुक्ति न होने की दशा में आउटसोर्सिंग से कर्मचारी नियुक्त किये जा रहे हैं। राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने मुख्य सचिव को निर्देश जारी कर आउटसोर्सिंग के माध्यम से होने वाली नियुक्तियों में भी आरक्षण सुनिश्चित करने को कहा है। वर्ष 2008 में जारी शासनादेश का हवाला देते हुए कहा गया है कि आउटसोर्सिंग से नियुक्ति में भी आरक्षण मिलना चाहिए, किन्तु उसका अनुपालन नहीं हो रहा है।
राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष राम आसरे विश्वकर्मा ने 23 जनवरी 2008 को जारी शासनादेश संलग्न करते हुए लिखा है कि राज्य सरकार के सभी विभागों, निगमों व परिषदों आदि में आउटसोर्सिंग के माध्यम से या अनुबंध के आधार पर रखे जा रहे कर्मचारियों की नियुक्ति में भी आरक्षण के सभी मापदंडों का पालन किया जाना चाहिए। यहां तक कि कार्यालयों के रखरखाव आदि तक का काम यदि किसी संस्था को दिया जाता है तो इस बाबत होने वाले करार में आरक्षण की व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए। हां, इस आदेश में लोक निर्माण, सिंचाई, ग्र्राम्य विकास आदि विभागों के ऐसे कार्यों में लागू नहीं होगी जो परंपरागत रूप से ठेके के आधार पर कराए जाते हैं। आयोग अध्यक्ष के मुताबिक शासनादेश का पालन प्रदेश के अधिकांश विभागों में नहीं हो रहा है। कई विभागों को तो इस शासनादेश की जानकारी तक नहीं है। उन्होंने मुख्य सचिव से कहा है कि प्रमुख सचिवों, सचिवों व विभागाध्यक्षों को पुन: आदेश जारी कर हर स्तर पर आरक्षण सुनिश्चित कराएं। इस आदेश का कड़ाई से पालन कराया जाए, ताकि समाज के पिछड़े वर्ग को न्याय मिल सके।
निजी क्षेत्र में आरक्षण की बात दोहराई
मुख्य सचिव को लिखे पत्र के साथ पिछड़ा वर्ग आयोग अध्यक्ष ने निजी क्षेत्र में आरक्षण की बात भी दोहराई है। उन्होंने 11 जनवरी 2008 को जारी शासनादेश का हवाला दिया है। शासनादेश में राज्य सरकार की 11 से 49 प्रतिशत तक पूंजीगत भागीदारी वाली इकाइयों में आरक्षण सुनिश्चित करने की बात कही गयी थी। इसमें विकास में निजी क्षेत्र की भागीदारी के साथ सभी वर्गों का विकास सुनिश्चित करने के लिए आरक्षण लागू करने का तर्क दिया गया है। 

Monday 23 November 2015

छात्रवृत्ति प्रबंधन तक सिमटा पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग

-जिला स्तरीय दफ्तरों की दशा देख चौंके मंत्री
-अफसरों से नई योजनाओं के प्रस्ताव मांगे
राज्य ब्यूरो, लखनऊ : पिछड़ों के कल्याण के लिए सृजित किया गया पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग महज छात्रवृत्ति प्रबंधन तक सिमट कर रह गया है। कई योजनाएं या तो बंद हो गयी हैं या विस्तार नहीं ले पा रहीं। नए मंत्री ने जिला स्तरीय दफ्तरों की दशा देखी तो चौंके बिना न रह सके। अब अफसरों से नई योजनाओं के प्रस्ताव मांगे गए हैं।
नए पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री साहब सिंह सैनी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के दफ्तरों का दौरा किया तो चौंक गए। एक अधिकारी, एक लिपिक व एक चपरासी के सहारे चलाए जा रहे इन दफ्तरों का कामकाज छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति के मैनेजमेंट तक सिमट कर रह गया है। छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति के अलावा इस समय शादी-बीमारी योजना बंद ही चल रही है, ओ लेवल कम्प्यूटर प्रशिक्षण योजना के लिए इस वर्ष अब तक कोई आवंटन नहीं हुआ है। इन स्थितियों का आकलन कर मंत्री ने अधिकारियों के साथ बैठक कर उनसे नयी योजनाओं के प्रस्ताव मांगे हैं।
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आधे से ज्यादा पद रिक्त
यूं तो इस विभाग के गठन का उद्देश्य प्रदेश के अन्य पिछड़ा वर्गों का सामाजिक, शैक्षिक आर्थिक विकास सुनिश्चित करना था किन्तु इस ओर काम हो ही नहीं रहा है। एक आइएएस निदेशक व एक पीसीएस संयुक्त निदेशक की अगुवाई वाले विभाग में आधे से अधिक पद रिक्त हैं। 75 जिला पिछड़ा वर्ग कल्याण अधिकारियों में से 53 पद ही भरे हैं। सपोर्टिंग स्टाफ के 307 पदों में से 180 पद खाली हैं।
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आय सीमा बढ़वाना भी जरूरी
पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री साहब सिंह सैनी भी स्वीकार करते हैं कि विभाग महज छात्रवृत्ति प्रबंधन के काम में सिमट कर रह गया है। उन्होंने कहा कि पिछड़े वर्ग के हित की योजनाओं के विस्तार के लिए वे स्वयं मुख्यमंत्री से मिलेंगे। इसके अलावा पिछड़े वर्गों को विभिन्न योजनाओं के लाभ के लिए आय सीमा बढ़ाकर दो लाख रुपये करने प्रस्ताव भी मांगा गया अभी दशमोत्तर छात्रवृत्ति के लिए आय सीमा दो लाख है, इसे सभी योजनाओं पर लागू किया जाना चाहिए। 

Friday 20 November 2015

नई से ज्यादा लंबित योजनाओं पर जोर

--बजट की तैयारी--
-बीते तीन वर्षों में घोषित व रुके काम पूरे करने को वरीयता
-2017 विधानसभा चुनाव से पहले विकास दिखाने का लक्ष्य
राज्य ब्यूरो, लखनऊ : वित्त विभाग वर्ष 2016-17 के बजट की तैयारियों में लगा है। मुख्य सचिव स्वयं विभागवार विकास एजेंडा को अंतिम रूप दे रहे हैं। वैसे इस बार नई योजनाओं से ज्यादा लंबित योजनाओं को पूरा करने पर जोर रहेगा, ताकि वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले कामकाज दिखाई दे।
प्रदेश का बजट सामान्य स्थितियों में सरकार की प्राथमिकताओं का आईना भी होता है। इस बार के बजट के लिए भी तैयारी शुरू हो गयी है। प्रमुख सचिव (वित्त) राहुल अग्रवाल की अगुवाई में वित्त विभाग के अधिकारी तो सक्रिय हैं ही, मुख्य सचिव आलोक रंजन ने स्वयं सीधी कमान संभाल रखी है। मुख्य सचिव की अध्यक्षता में अलग-अलग विभागों की बैठकें शुरू हो चुकी हैं, जो एक पखवाड़े तक चलेंगी। इन बैठकों में सभी विभागों के विकास एजेंडे की स्थितियों पर चर्चा होती है। बीते तीन वर्षों में घोषित हुए काम किन स्थितियों में हैं, विभिन्न विभागों के प्रमुख सचिवों व अन्य अधिकारियों के साथ मुख्य सचिव स्वयं उनका आकलन करते हैं और बचे कामों के बारे में पूरी जानकारी लेते हैं। विभागवार इन अवशेष कामों की सूची बन रही है और माना जा रहा है कि यह अगले बजट का हिस्सा होंगे।
दरअसल, वर्ष 2017 में विधानसभा चुनाव होने हैं। वर्ष 2016-17 का बजट पूरे वर्ष के लिए मौजूदा सरकार का अंतिम पूर्ण बजट होगा। ऐसे में सरकार के सामने विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में भरपूर विकास दिखाने का भी लक्ष्य है और आगामी बजट उसका जरिया बनेगा। यही कारण है कि इस बार सर्वाधिक जोर लंबित योजनाओं पर है। प्रदेश में मेट्रो, हाईटेक सिटी सहित कई योजनाओं को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपनी उपलब्धि के रूप में बार-बार गिनाया है, इसलिए बजट में इनके लिए पर्याप्त धन के प्रावधान की तैयारी है। कन्या विद्याधन, लैपटॉप, समाजवादी पेंशन जैसी योजनाओं के लिए भी विस्तार तय माना जा रहा है। स्वास्थ्य क्षेत्र में अधूरे काम पूरे करने को भी इस बार लक्ष्य के रूप में देखा जा रहा है। राहुल भटनागर ने बताया कि 30 नवंबर तक सभी विभागों से प्रस्ताव मांगे गए हैं।
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लोकलुभावन घोषणाएं भी
माना जा रहा है प्रदेश सरकार एक से डेढ़ हजार के बीच गांवों को स्मार्ट विलेज के रूप में विकसित करने की पहल करेगी। साथ ही आम आदमी को श्रेष्ठ स्वास्थ्य सेवाओं के लिए स्वास्थ्य बीमा योजना की भी तैयारी है। आवास, नगर विकास, स्वास्थ्य व शिक्षा क्षेत्र में कुछ अन्य घोषणाएं भी की जा सकती हैं।

Thursday 19 November 2015

कोहरे में नहीं रुकेगा रोडवेज बसों का संचालन

कोहरे का कहर
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-बंद शीशों व सही सीटों के साथ लगेंगे ऑल वेदर बल्ब
-दिसंबर से फरवरी तक मुस्तैदी को परिवहन निगम के निर्देश
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : जाड़े में कोहरे के कारण होने वाली दुर्घटनाओं से बचने के लिए परिवहन निगम ने विशेष तैयारी की है। बसों में सामान्य फॉग लाइट के स्थान पर ऑल वेदर बल्ब लगाए जा रहे हैं, ताकि कोहरे के कारण रोडवेज बसों का संचालन प्रभावित न हो।
उत्तर प्रदेश में राज्य परिवहन निगम की 7,900 बसों के साथ 2000 अनुबंधित बसें संचालित होती हैं। परिवहन निगम के कैलेंडर में एक दिसंबर से 29 फरवरी तक अत्यधिक जाड़े वाले माने जाते हैं। इस दौरान कोहरे से निपटने के साथ यात्रियों को ठंड से बचाने के लिए विशेष इंतजाम करने की पहल भी होती है। इस बार भी परिवहन निगम ने डिपो से बस निकलते समय पूरी मुस्तैदी बरतने के निर्देश दिये हैं। अधिकांश बसों में ऑल वेदर बल्ब लग चुके हैं और जिनमें बचे हैं, उनमें इस माह के अंत तक लग जाएंगे। ऑल वेदर बल्ब लगने के बाद अलग से फॉग लाइट लगाने की जरूरत नहीं रह जाती, क्योंकि इनकी रोशनी मौसम के अनुरूप होती है। नियमित अनुरक्षण में डिपो पहुंचने वाली बसों में खिड़कियों के शीशे व सीटों का निरीक्षण विशेष रूप से करने के निर्देश दिये गए हैं। हर बस में सभी शीशे सही ढंग से लगाने व उनका बंद होना सुनिश्चित करने को कहा गया है। कंडक्टर व ड्राइवर बसें डिपो में ले जाते ही टूटे शीशों व सीटों आदि की जानकारी देंगे, ताकि उन्हें समय रहते ठीक किया जा सके। जाड़ा बढऩे के साथ ही परिवहन निगम ने रात में बसों की आवाजाही अपेक्षाकृत कम करने के निर्देश दिये हैं। कहा गया कि किसी भी रूट पर कोई भी बस 25 से कम सवारी लेकर नहीं चलेगी। अधिकारियों का मानना है कि इससे रात में बसों की फ्रिक्वेंसी स्वयं ही कम हो जाएगी और दुर्घटनाओं संभावना भी घटेगी।

फिर शुरू होगी पिछड़ों की शादी व बीमारी अनुदान योजना

-पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री ने अधिकारियों को दिए निर्देश
-दो साल से बंद योजना पर फिर से प्रस्ताव भेजने को कहा
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : पिछड़े वर्ग की गरीबों के लिए दो साल पहले तक संचालित होती रही शादी और बीमारी अनुदान योजना फिर शुरू होगी। पिछड़ा वर्ग एवं विकलांग जन विकास कल्याण मंत्री साहब सिंह सैनी ने बुधवार को अधिकारियों के साथ बैठक में इस आशय के निर्देश दिए।
बैठक में अधिकारियों ने मंत्री को बताया कि वर्ष 2007-08 से प्रदेश सरकार ने गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले अन्य पिछड़े वर्ग के परिवारों की पुत्रियों की शादी के लिए दस हजार व गंभीर बीमारी से पीडि़त लोगों को पांच हजार रुपये अनुदान देने का प्रावधान किया था। वर्ष 2013-14 तक योजना संचालित भी हुई, किन्तु उसके बाद से बंद कर दी गयी। इस योजना में वर्ष 2009-10, 2010-11 में 40-40 करोड़, 2011-12 में 50 करोड़ और 2012-13 में 90.18 करोड़ रुपये खर्च किए गए। वर्ष 2013-14 में 150 करोड़ रुपये मिले, जिसमें 112.49 करोड़ रुपये खर्च कर 1,11,649 लोगों को शादी व 1877 लोगों को बीमारी में अनुदान दिया गया। योजना के अंतिम पांच वर्षों में कुल उपलब्ध 370.33 करोड़ राशि में से 332.66 करोड़ रुपये खर्च कर 3,37,325 लोगों को लाभ पहुंचाया गया। इसके बाद यह योजना बंद हो गयी। इस पर मंत्री ने कहा कि यह योजना दोबारा शुरू कराई जाएगी। उन्होंने अधिकारियों से इस संबंध में पुन: प्रस्ताव भेजने को कहा है।
मंत्री ने बताया कि वर्तमान वित्तीय वर्ष में पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग में 1532.41 करोड़ रुपये के बजट प्रावधान के सापेक्ष कुल 1511.36 करोड़ रुपये स्वीकृत और 406.58 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। इसी तरह विकलांग कल्याण पर 595.48 करोड़ रुपये खर्च करने का प्रावधान है। 8,91,550 विकलांगों को पेंशन के लिए 323.65 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। आठ हजार विकलांगों को कृत्रिम अंग व सहायक उपकरण देकर लाभान्वित किया जाना है, वहीं 1200 विकलांगों को शादी प्रोत्साहन पुरस्कार योजना के तहत 2.10 करोड़ रुपये के अनुदान का प्रावधान है। उन्हें रोडवेज की बसों में नि:शुल्क यात्रा के लिए 29 करोड़ रुपये प्रतिपूर्ति देने का प्रावधान है। बैठक में पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग के सचिव डॉ.हरिओम, निदेशक पुष्पा सिंह, विकलांग जन विकास विभाग के सचिव अनिल कुमार सागर आदि उपस्थित थे।
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अधिकाधिक लोगों को लाभ
शादी-बीमारी योजना किन परिस्थितियों में बंद हुई थी, उसकी पड़ताल होगी। मैं स्वयं मुख्यमंत्री से बात कर इस योजना को दोबारा शुरू कराऊंगा। पिछड़े वर्ग व विकलांगजन के बीच अधिकाधिक लोगों को लाभ पहुंचाने की पूरी कोशिश होगी।
-साहब सिंह सैनी, पिछड़ा वर्ग व विकलांग कल्याण मंत्री

पुराने मेडिकल कालेजों को सौंपी बड़े भाई की भूमिका

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-मजबूती में केजीएमयू व लोहिया संस्थान भी करेंगे मदद
-इलाज के साथ विशेषज्ञों की मदद को बनाई गई रणनीति
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : ताबड़तोड़ खुले नए मेडिकल कालेजों को मजबूती देने के लिए अब पुराने कालेजों को मेंटर संस्थान के रूप में जिम्मेदारी दी गयी है। बड़े भाई की भूमिका में आकर ये संस्थान नए कालेजों का स्तरीय उन्नयन सुनिश्चित करेंगे।
प्रदेश में चिकित्सा शिक्षा ढांचे को मजबूत करने के लिए निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने के साथ ही सरकारी क्षेत्र में भी मेडिकल कालेजों की संख्या लगभग हर साल बढ़ाई जा रही है। कुछ वर्षों में कन्नौज, अंबेडकर नगर, जालौन में मेडिकल कालेज खोलने के बाद इसी वर्ष सहारनपुर में मेडिकल कालेज की शुरुआत हुई है। अगले वर्ष बांदा व बदायूं मेडिकल कालेज खोलने का प्रस्ताव है। इस तरह एक साथ मेडिकल कालेज खोल तो दिये गए किन्तु वहां ढांचागत विकास नहीं हो सका है। पहले से ही शिक्षकों की कमी झेल रहे चिकित्सा शिक्षा विभाग को इन कालेजों के लिए भारतीय चिकित्सा परिषद से मान्यता पाना खासा दुरूह हो जाता है।
इस स्थिति से निपटने के लिए चिकित्सा शिक्षा विभाग ने पुराने मेडिकल कालेजों व चिकित्सा शिक्षा संस्थानों को नए मेडिकल कालेजों के बड़े भाई की भूमिका देने का फैसला किया है। हर नए मेडिकल कालेज के लिए किसी पुराने मेडिकल कालेज या सुपरस्पेशियलिटी चिकित्सा शिक्षा संस्थान को मेंटर संस्थान के रूप में नामित किया है। सहारनपुर मेडिकल कालेज के लिए मेरठ मेडिकल कालेज मेंटर संस्थान की भूमिका में होगा, तो कन्नौज के लिए यह जिम्मेदारी कानपुर को उठानी होगी। जालौन व कन्नौज मेडिकल कालेजों के लिए कानपुर मेडिकल कालेज मेंटर संस्थान की भूमिका में होगा। आजमगढ़ मेडिकल कालेज के लिए गोरखपुर मेडिकल कालेज व किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी लखनऊ को मेंटर संस्थान बनाया गया है, वहीं लखनऊ के राम मनोहर लोहिया संस्थान को अंबेडकर नगर मेडिकल कालेज का मेंटर संस्थान बनाया गया है। अगले वर्ष से प्रस्तावित बांदा मेडिकल कालेज को इलाहाबाद मेडिकल कालेज व कानपुर के हृदय रोग संस्थान का साथ मिलेगा वहीं बदायूं के लिए आगरा मेडिकल कालेज की टीम बड़े भाई की भूमिका में होगी। चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक डॉ.वीएन त्रिपाठी ने बताया कि मेंटर संस्थानों में नए स्थापित मेडिकल कालेजों के चिकित्सकों व चिकित्सा शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किये जाएंगे। कैंसर, हृदय रोग, लिवर व किडनी सहित असाध्य रोगों के लिए सुपरस्पेशियलिटी सेवाएं भी अपने संसाधनों से उपलब्ध कराई जाएंगी।

Wednesday 18 November 2015

एक छतरी के नीचे सेहत पर नजर


जागरण विशेष
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-बनेगी एलाइड एंड हेल्थकेयर प्रोफेशनल काउंसिल
-रुकेगी पैरामेडिकल पाठ्यक्रमों मे चल रही मनमानी
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डॉ.संजीव, लखनऊ
स्वास्थ्य का दायरा बढऩे के साथ ही पाठ्यक्रमों की संख्या बढ़ रही है। अब एक छतरी के लिए सभी स्वास्थ्य व सहयोगी प्रोफेशनल्स को लाने के लिए एलाइड एंड हेल्थकेयर प्रोफेशनल काउंसिल बनाने की तैयारी है। शासन स्तर पर इसके लिए एक चक्र बैठक भी हो चुकी है।
अभी तक चिकित्सा क्षेत्र में उपचार से सीधे जुड़े पाठ्यक्रमों पर नजर रखने के लिए मेडिकल काउंसिल, डेंटल काउंसिल, नर्सिंक काउंसिल जैसी संस्थाएं तो हैं किन्तु सहयोगी पाठ्यक्रमों का संचालन मनमाने तरीके से होता है। अब सेहत व उससे जुड़ी सभी सेवाओं से जुड़े लोगों को नियंत्रित करने के लिए एलाइड एंड हेल्थ केयर प्रोफेशनल्स काउंसिल बनाने का प्रस्ताव किया गया है। इसमें थिरैपी, डायग्नोस्टिक, उपचार व बचाव के साथ पुनर्वास जैसे सभी पाठ्यक्रमों को शामिल किया जाएगा। काउंसिल फिजियोथिरैपी से लेकर एक्सरे टेक्नीशियन और अल्ट्रासाउंड टेक्नीशियन तक तमाम पैरामेडिकल पाठ्यक्रमों के डिप्लोमा, स्नातक, परास्नातक व शोध पाठ्यक्रमों तक को मान्यता देने का काम करेगी।
केंद्रीय स्तर पर काउंसिल के गठन की पहल के बाद अब राज्य सरकार ने भी प्रक्रिया शुरू की है। पिछले दिनों प्रमुख सचिव (चिकित्सा शिक्षा) की अगुवाई में शासन स्तर पर हुई उच्च स्तरीय बैठक में मेडिकल फैकल्टी के साथ विभिन्न विधाओं के विशेषज्ञों के साथ संभावित काउंसिल पर विचार विमर्श हुआ। माना गया कि स्वास्थ्य क्षेत्र के लगातार विस्तार के बाद पढ़ाई के सही नियोजन के लिए काउंसिल की तुरंत जरूरत है। इस पर अमल की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गयी है। दिल्ली, आंध्रप्रदेश, केरल, नागालैंड, हिमाचल प्रदेश व मध्यप्रदेश में पैरामेडिकल काउंसिल के नाम से राज्य स्तरीय समितियां हैं। उनके नियमों को भी आधार बनाने का फैसला हुआ है।
प्रमुख सचिव होंगे पहले अध्यक्ष
काउंसिल के आधे सदस्य प्रतिष्ठित चिकित्सा शिक्षा या स्वास्थ्य संस्थानों के निदेशक स्तर के अधिकारी होंगे। अन्य आधे सदस्य विश्वविद्यालयों व संबंधित पैरामेडिकल चिकित्सा क्षेत्र के नामचीन लोग होंगे। प्रमुख सचिव (चिकित्सा शिक्षा) काउंसिल के पहले अध्यक्ष होंगे। बाद में काउंसिल के सदस्यों के बीच से अध्यक्ष का चुनाव किया जाएगा। काउंसिल की अनुमति के बिना प्रदेश में कोई भी पैरामेडिकल पाठ्यक्रम संचालित नहीं हो सकेगा। पाठ्यक्रम उत्तीर्ण करने के बाद छात्र-छात्राओं को काउंसिल में अपना पंजीकरण कराना पड़ेगा और उन्हें उसी तरह प्रमाणपत्र व पंजीकरण क्रमांक मिलेगा, जैसा एमबीबीएस या बीडीएस करने के बाद राज्य मेडिकल या डेंटल फैकल्टी से मिलता है।
बनेंगे मानक, सुधरेगी गुणवत्ता
चिकित्सा क्षेत्र में हुए शोध व उपचार में सुधार से सहयोगी स्वास्थ्य सेवाओं की मांग तेजी से बढ़ी है। ऐसे में एक समान पाठ्यक्रम से लेकर मानक निर्धारण तक काम एलाइड एंड हेल्थकेयर काउंसिल कर सकेगी। इससे पैरामेडिकल चिकित्सा शिक्षा का उन्नयन होगा और मानकों के साथ गुणवत्ता पर नजर रखी जा सकेगी। -डॉ.अनूप चंद्र पाण्डेय, प्रमुख सचिव, चिकित्सा शिक्षा

Tuesday 17 November 2015

नवजातों को बचाने की मुहिम

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-14 से 21 नवंबर तक मनाया जा रहा नवजात शिशु सप्ताह
-शिशु मृत्यु दर घटाना स्वास्थ्य विभाग के लिए बड़ी चुनौती
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : तमाम कोशिशों के बावजूद प्रदेश में नवजात शिशु पूरी तरह सुरक्षित नहीं। शिशु मृत्यु दर घटाना स्वास्थ्य विभाग के लिए बड़ी चुनौती बन गया है। इससे निपटने के लिए अब 14 से 21 नवंबर तक नवजात शिशु सप्ताह के रूप में विशेष मुहिम चलाकर जागरूकता व बच्चों की चिंता की पहल की गयी है।
मुख्यमंत्री की पहल पर स्वास्थ्य विभाग वर्ष 2015 को मातृ-शिशु कल्याण वर्ष के रूप में मना रहा है। इसमें भी नवजात शिशु की मृत्यु दर घटाना स्वास्थ्य विभाग के लिए बड़ी चुनौती बना है। संयुक्त राष्ट्र ने भी वर्ष 2015 के अंत तक नवजात शिशुओं की मौत पर नियंत्रण का लक्ष्य भारत को दिया है, जो उत्तर प्रदेश के लिए भी चुनौती है। अब स्वास्थ्य विभाग ने एक सप्ताह तक विशेष मुहिम के रूप में नवजात शिशु रक्षा के लिए जागरूकता व सक्रियता अभियान शुरू किया है। इसे गांव में आशा व एएनएम स्तर तक और संस्थागत रूप से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के स्तर तक संचालित किया जाएगा।
बनेंगे न्यू बॉर्न केयर कॉर्नर
तय हुआ है कि जिन शिशुओं की स्थिति अत्यधिक गंभीर है, उनके लिए प्रसूति की सुविधा वाले सभी स्वास्थ्य केंद्रों पर न्यू बॉर्न केयर कॉर्नर बनाए जाएंगे। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर एक स्टाफ नर्स को प्रभारी बनाकर नवजात संरक्षा इकाई सक्रिय की जाएगी। हर जिला चिकित्सालय में नवजात शिशु त्वचा रक्षा इकाई गठित होगी, ताकि बच्चों की त्वचा संबंधी समस्याओं का त्वरित समाधान हो सके। ढाई किलो से कम वजन वाले शिशुओं के लिए विशेष वार्ड व बेड आरक्षित कर कंगारू मदर केयर की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी।
घर जाएंगी आशा-एएनएम
आशा व एएनएम को बार-बार घर तक भेजने की मुहिम शुरू की गयी है। अस्पताल में प्रसव होने पर छह बार और घर में प्रसव की स्थिति में सात बार घर जाकर आशा कार्यकर्ता जच्चा-बच्चा की सेहत पर नजर रखेंगी। इसी तरह एएनएम भी घर जाएंगी।
पांच साल भी नहीं जीते नौ फीसद बच्चे
स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में जन्म लेने वाले नौ फीसद बच्चे पांच साल के भी नहीं हो पाते हैं। इनमें नवजात शिशुओं की संख्या आधे से अधिक है। जन्म के एक वर्ष के भीतर 6.8 फीसद बच्चों की मृत्यु हो जाती है, वहीं 4.9 फीसद बच्चों की मृत्यु तो जन्म लेने के एक माह भीतर ही हो जाती है। इनमें से बड़ी संख्या कम वजन के साथ पैदा हुए बच्चों की होती है।

शरीरदान से ही खुलती मोक्ष की असली राह

यह अक्टूबर 1993 की बात है। मनोज और माधवी विवाह से पहले घर वालों की मर्जी से मिले थे। सामान्य बातों के बाद मनोज ने माधवी से कहा, देखो मैंने समाज को अपना जीवन समर्पित करने का फैसला लिया है, क्या तुम मेरा साथ दोगी। माधवी भला मना कैसे करतीं, पर दूसरी बात ने उन्हें चौंका दिया। मनोज ने कहा, समाज को पूरा समय देने के लिए हम आजीवन नि:संतान रहेंगे। माधवी अवाक सी रह गयीं। कुछ देर सन्नाटा रहा और आखिर में तय हुआ कि मनोज-माधवी विवाह तो करेंगे, किन्तु समाज को जीवन समर्पित कर देंगे। दैनिक जागरण के विशेष संवाददाता डॉ.संजीव से बातचीत में युग दधीचि देहदान अभियान के संयोजक मनोज सेंगर कहते हैं कि अब तो उनकी समाजसेवा यात्रा में शरीरदान ही सबसे बड़ा यज्ञ बन गया है। वे लोगों को समझाते हैं कि शरीरदान से ही मोक्ष की असली राह खुलती है और लोग उनके तर्कों को स्वीकार भी करते हैं।
-देहदान अभियान की शुरुआत कैसे हुई?
--आजाद हिंद फौज में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की सहयोगी रहीं मानवती आर्या के पति केसी आर्या का निधन 20 जनवरी 2003 को हुआ था। वे स्वयं अपने पति का शव लेकर मेडिकल कालेज पहुंचीं और देहदान किया। इस घटना ने मुझे हिलाकर रख दिया था। तब मैं कानपुर में ही गायत्री परिवार से जुड़ा था। एक कार्यक्रम के लिए तत्कालीन राज्यपाल आचार्य विष्णुकांत शास्त्री से मिलने गया, तो उनसे देहदान पर चर्चा हुई। उन्होंने इसे अभियान के रूप में शुरू करने को कहा। इसके बाद 15 नवंबर 2003 को 24 लोगों को आचार्य विष्णुकांत शास्त्री ने ही देहदान की शपथ दिलाई थी। उस दिन शपथ लेने वालों में से एक श्रीमती सोनदाई देवी का निधन होने पर 31 जनवरी 2010 को देहदान हुआ था।
-आज अभियान की क्या स्थिति है?
--इलाहाबाद, कन्नौज, इटावा, पीलीभीत, अम्बेडकर नगर, प्रतापगढ़, मेरठ, लखनऊ में कार्यक्रम हो चुके हैं। 2500 से अधिक लोग पंजीकरण करा चुके हैं। 145 देहदान हुए, जिन्हें कानपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, अम्बेडकर नगर, सैफई, आगरा मेडिकल कालेजों के साथ वर्धमान महावीर मेडिकल कालेज दिल्ली तक को सौंपा गया है।
-दिक्कतें क्या आयीं और कैसीं?
--कई बार परिजनों ने कहा कि यदि शरीर का अग्निदाह नहीं करेंगे तो ये भूत बन जाएंगे। लोगों ने कहा कि हमारे घरों में न घुसिये। कानपुर के साकेत नगर में एक देहदानी के निधन पर बाहरी रिश्तेदार विरोध में थे। उन्होंने हमें दौड़ा लिया। साथ ही अंगों के चीरफाड़ की संभावना का विरोध होता था।
-इन दिक्कतों का सामना कैसे किया?
--दधीचि के प्रसंग, ऋग्वेद के प्रसंगों व महाभारत काल के प्रयोगों से लोगों को जानकारी दी। महाभारत में सर्जरी के लिए शत्रुओं के मृत सैनिकों के शरीरों को संरक्षित करके उनसे प्रत्यारोपण होता है। सुश्रुत संहिता में भी इसके प्रमाण प्राप्त होते हैं। इन जानकारियों से लोगों को जागरूक किया। साथ ही देहदान संस्कार की शुरुआत की। इसमें शव की आरती के बाद परिक्रमा कराते हैं। फिर प्रार्थना और मंत्रों के साथ पुष्पांजलि कर शांति पाठ के बाद शव मेडिकल कालेज को सौंप दिया जाता है। इसके अलावा सेमिनार, नुक्कड़ नाटक आदि से फायदे गिनाए।
-भारतीय परंपराएं बाधक बनती हैं क्या?
--प्रारंभ में चितारोहण न होने से मोक्ष न होने की मान्यता सर्वाधिक बाधक बनी। इसके लिए हमने यह कहकर तैयार किया कि समाज कल्याण ही मोक्ष का रास्ता है। इसके अलावा किसी की आंख निकालने पर अगले जनम में अंधा होने जैसी मान्यताएं भी थीं। हमने तर्क दिया कि यदि आंख लेने से आंख नहीं मिलेगी तो शरीर लेने से शरीर नहीं मिलेगा, यही मोक्ष है। ऐसे तर्कों से ही समझाया जा सका।
-अब अंगदान अभियान की क्या तैयारी है?
--अंगदान अभियान की शुरुआत भी कानपुर से करेंगे। 45 लोग पंजीकरण करा चुके हैं। 19 नवंबर से चार दिवसीय कार्यक्रम शुरू होगा। 22 नवंबर को दोपहर 12 बजे अग्निकुंडों के समक्ष 108 लोग अंगदान करेंगे। केजीएमयू का अंग प्रत्यारोपण विभाग हमें ब्रेन डेथ व्यक्ति के शरीर को संरक्षित करने का भरोसा दिला चुका है।
-भविष्य की कार्य योजना क्या है?
--हम प्रदेश भर में इस आंदोलन को पहुंचाने के लिए दिसंबर से हर जिले के जिलाधिकारी व सीएमओ से मिलना शुरू करेंगे। मंडल स्तर पर युग दधीचि देहदान अभियान के नोडल सेंटर स्थापित करेंगे, ताकि लोग वहां पंजीकरण करा सकें। इसके बाद पूरे देश में काम फैलाएंगे। रांची से इस विस्तार की शुरुआत होगी। इसके अलावा मुस्लिम व ईसाई धर्मगुरुओं से मिलना शुरू किया है, ताकि उनके समर्थन से अभियान को विस्तार दिया जा सके।
-कोई अंगदान करना चाहे तो कहां संपर्क करे?
-कानपुर में मुझसे 9839161790, लखनऊ में शिशुपाल सिंह गौर से 9450917473, आगरा में मुकेश सिंह से 9359665560, कन्नौज में विनय दुबे से 9415146801, इलाहाबाद में जीएस शाक्य से 9198096437, मेरठ में कृष्णकुमार गर्ग से 9927001063, पीलीभीत में अमृत लाल अग्र्रवाल से 9837009375, बदायूं में डॉ.विष्णु प्रकाश मिश्र से 9411842001 व प्रतापगढ़ में अतुल खंडेलवाल से 9452887234 पर संपर्क किया जा सकता है। इसके अलावा शरीरदान के पश्चात अंगदान संरक्षण संबंधी किसी जानकारी के लिए किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के डॉ.मनमीत सिंह भी सहयोग को तत्पर रहते हैं। उनसे उनके मोबाइल नंबर 9792957585 पर बात की जा सकती है। 

Monday 16 November 2015

दीवाली की गूंज में छिपा पुरुष नसबंदी सप्ताह


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-पिछले वर्ष 800 की तुलना में इस बार 100 लोग भी नहीं पहुंचे
-स्वास्थ्य विभाग के अफसर बेखबर, एनएचएम ने संभाली कमान
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सात से तेरह नवंबर तक पुरुष नसबंदी सप्ताह मनाने का फैसला हुआ था। उत्तर प्रदेश में भी इस बाबत निर्देश जारी किये गए थे किन्तु दीवाली की छुट्टियों के चलते यहां यह सप्ताह प्रभावी नहीं हो सका। पिछले वर्ष जहां इस सप्ताह के दौरान प्रदेश में 800 से अधिक पुरुष नसबंदी कराने पहुंचे थे, इस बार अब तक यह संख्या 100 भी नहीं पहुंची है।
पुरुष नसबंदी सप्ताह का मूल उद्देश्य पुरुषों को नसबंदी के प्रति प्रोत्साहित करना है। इस बार भी स्वास्थ्य विभाग ने सभी जिला अस्पतालों में पुरुष नसबंदी सप्ताह मनाने के निर्देश दिये थे। सभी जगह नसबंदी शिविर लगाने थे और प्रचार-प्रसार कर पुरुषों की नसबंदी करानी थी। राष्ट्रीय स्वीकार्यता के बावजूद प्रदेश में इस पर पहले तो गंभीरता से अमल नहीं हुआ, फिर रही सही कसर दीपावली  ने पूरी कर दी। परिवार कल्याण निदेशक व उप निदेशक के छुïट्टी पर होने के कारण परिवार कल्याण विभाग की ओर से मॉनीटङ्क्षरग नगण्य हो गयी। पूरा काम महज राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के स्तर पर नियोजित किया गया। शुरू में दो दिन शिविर लगे, फिर धनतेरस व दीवाली में व्यस्तता के चलते शिविरों से डॉक्टर व नसबंदी कराने वाले गायब हो गए।
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वैसे भी नसबंदी महिलाओं के हवाले
पुरुष नसबंदी सप्ताह भले ही दीवाली की भेंट चढ़ गया हो, किन्तु सामान्य स्थितियों में भी नसबंदी महिलाओं के हवाले ही है। पुरुष नसबंदी की पहल ही नहीं करते हैं। पूरे भारत में महज 0.8 प्रतिशत पुरुष ही नसबंदी कराते हैं और उत्तर प्रदेश में तो यह संख्या महज चौथाई यानी 0.2 प्रतिशत ही है। इस वर्ष 31 अक्टूबर तक प्रदेश में कुल 51,712 नसबंदी हुईं, जिनमें से नसबंदी कराने वाले पुरुषों की संख्या महज 2062 है।
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एक सप्ताह और बढ़ाएंगे शिविर
पुरुष नसबंदी सप्ताह के दौरान जिला अस्पतालों के माध्यम से शिविरों का आयोजन होना था। दीवाली के कारण इस पर कुछ असर पड़ा है। सोमवार को बैठक कर एक सप्ताह के लिए शिविर की तारीखें आगे बढ़ा देंगे, ताकि अधिक से अधिक लोगों को इसका लाभ मिल सके।
-डॉ. रेनू जलोटे, स्वास्थ्य महानिदेशक
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डॉक्टर न मिलने से टूटा मरीजों का भरोसा


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-फतेहपुर व चित्रकूट के सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य महानिदेशक का छापा, नहीं मिले मरीज
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : सरकारी अस्पतालों में जरूरत के अनुरूप डॉक्टर न मिलने से मरीजों का भरोसा टूट गया है। यह बात एक बार फिर सामने आयी, जब स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ.रेनू जलोटे को ग्रामीण अस्पतालों में पर्याप्त मरीज नहीं मिले। उन्होंने दीवाली की छुट्टियों में सरकारी अस्पतालों का जायजा लेने के लिए फतेहपुर व चित्रकूट में छापा मारा।
इसके पीछे छुट्टियों के दौरान चिकित्सकों की उपस्थिति के आकलन की कोशिश भी थी। छापे के दौरान उन्हें ग्रामीण अस्पतालों में मरीज बहुत कम संख्या में मिले। सरकार की महत्वाकांक्षी जननी सुरक्षा योजना पर अमल होते भी नहीं दिखा। पता चला कि महिलाएं यदि कोशिशों के बाद प्रसव के लिए सरकारी अस्पतालों तक पहुंचती भी हैं तो वहां पुरुष चिकित्सक देखकर लौट जाती हैं। इसी तरह थोड़ा गंभीर मरीज आने पर भी डॉक्टर उन्हें कानपुर मेडिकल कालेज रेफर कर देते हैं, ऐसे में तमाम मरीज तो सीधे कानपुर जाने लगे हैं।
महानिदेशक पहले दिन गुरुवार को फतेहपुर पहुंचीं और जिला अस्पताल व कुछ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों का निरीक्षण किया। वहां बताया गया कि महिला डॉक्टर न होने से बेहद दिक्कत हो रही है। कई बार समय पर चिकित्सकों के न पहुंचने की समस्या भी सामने आयी। दूसरे दिन शुक्रवार को उन्होंने चित्रकूट के जिला अस्पताल, आसपास के सामुदायिक व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का निरीक्षण किया। चित्रकूट के जिला अस्पताल में सुविधाओं के बावजूद मरीज नहीं मिले। डॉक्टरों ने बताया कि यहां मरीज आते ही नहीं और आते हैं तो झगड़े पर उतारू रहते हैं। यह स्थिति तब है, जबकि दूर-दूर तक कोई निजी अस्पताल नहीं हैं। तमाम मरीज यहां आने के स्थान पर बांदा, फतेहपुर या कानपुर जाना पसंद करते हैं। स्वास्थ्य महानिदेशक डॉ.रेनू जलोटे ने बताया कि दो दिन के दौरे में पता चला कि अस्पतालों में आधारभूत ढांचा सही होने के बावजूद पर्याप्त संख्या में मरीज नहीं आ रहे हैं। इन बिन्दुओं पर वह मुख्य चिकित्सा अधीक्षकों व अन्य अधिकारियों के साथ बैठक कर समाधान निकालेंगी, ताकि मरीजों का अस्पताल से जुड़ाव स्थापित हो सके।
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Friday 13 November 2015

राज्यपाल करा रहे जांच, सीएम ने किया बहाल


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- प्राविधिक विश्वविद्यालय के कुलसचिव रहे तोमर का निलंबन समाप्त
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : डा.एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय के कुलसचिव रहे यूएस तोमर का निलंबन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने समाप्त कर दिया है। यह कार्रवाई तब हुई है जबकि पिछले दिनों कुलाधिपति व राज्यपाल राम नाईक ने उनके खिलाफ सभी मामलों के लिए उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिये थे।
तोमर को तीन जुलाई, 2014 को मुख्यमंत्री के निर्देश पर निलंबित किया गया था। उन पर तमाम कालेजों को गलत मान्यता देने और वेबसाइट निर्माण में अनियमितताओं जैसे आरोप लगे थे। तीन जनवरी, 2015 को निलंबन के छह माह पूरे होने पर उन्होंने बहाली को शासन में गुहार की। इस बीच 16 फरवरी को सर्वोच्च न्यायालय ने एक मामले में जब तीन माह में निलंबन के मामले निस्तारित करने को कहा तब तोमर भी इसी आधार पर 25 फरवरी को शासन में और फिर 15 मई को मुख्यमंत्री कार्यालय में अपनी बात रखी। बाद में वह हाई कोर्ट भी गए।
छह नवंबर को राज्यपाल ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायमूर्ति एसके त्रिपाठी की अध्यक्षता में जांच समिति को तोमर के खिलाफ सभी मामलों की जांच सौंप कर दो माह में रिपोर्ट मांगी थी। समिति में डा.राम मनोहर लोहिया विधि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.गुरदीप सिंह व पूर्व आइएएस सर्वेश चंद्र मिश्र भी हैं। यह समिति अभी जांच शुरू करती, इसी बीच मुख्यमंत्री ने तोमर का निलंबन समाप्त करने के आदेश जारी कर दिये। प्राविधिक शिक्षा राज्य मंत्री फरीद महफूज किदवई ने बताया कि मुख्यमंत्री के फैसले के अनुपालन में उन्होंने भी निलंबन समाप्ति की फाइल पर हस्ताक्षर कर दिये हैं।
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सीटें 222, परीक्षार्थी 178, सफल हुए 15

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एमडी आयुर्वेद
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-सख्ती से हुई परीक्षा तो बदल गयी तस्वीर
-धांधली की जांच कर कार्रवाई की तैयारी
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : प्रदेश के निजी आयुर्वेदिक कालेजों में परास्नातक (एमडी) कक्षाओं में प्रवेश परीक्षा में सख्ती हुई तो पूरी तस्वीर ही बदल गयी। 222 सीटों के लिए 178 ने परीक्षा दी और उनमें से सिर्फ 15 ही सफल हुए। अब इस मसले पर चिकित्सा शिक्षा विभाग पूरी धांधली की जांच कर कार्रवाई की तैयारी कर रहा है।
निजी आयुर्वेदिक कालेजों की एमडी कक्षाओं में प्रवेश के लिए 29 अक्टूबर को परीक्षा होनी थी। इस बीच तमाम अनियमितताओं के आरोप लगे तो उक्त परीक्षा रद कर नए सिरे से परीक्षा कराने का फैसला किया गया। प्रमुख सचिव (चिकित्सा शिक्षा) डा.अनूप चंद्र पाण्डेय ने पड़ताल कराई तो पता चला कि उस समय जिन 186 सीटों की मान्यता मिली थी, उनके लिए 196 छात्र-छात्राओं ने ही आवेदन किया था। इस पर आठ नवंबर को दोबारा परीक्षा की तारीख घोषित करने के साथ पांच नवंबर तक आवेदन मांगे गए। इस दौरान 78 नए आवेदन आए, वहीं विभिन्न कालेजों में एमडी की 36 सीटें भी बढ़ गयीं। इस तरह कुल 222 सीटों के लिए परीक्षा हुई।
परीक्षा प्रभारी बनाई गयीं विशेष सचिव कुमुदलता श्रीवास्तव ने बताया कि 274 आवेदन पत्रों की स्क्रुटनी में 237 विद्यार्थियों के फार्म सही पाए गए। इन्हें प्रवेश पत्र भी जारी किये गए किन्तु सख्ती देख कर महज 178 परीक्षार्थी ही आठ नवंबर को किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में हुई परीक्षा में शामिल हुए। मंगलवार को जारी परीक्षा परिणामों में इनमें से मात्र 15 परीक्षार्थी ही सफल हुए हैं। परीक्षा पास होने के लिए कम से कम पचास फीसद अंक लाना जरूरी था। अब 14 नवंबर को काउंसिलिंग कर मेरिट के आधार पर ये सीटें दी जाएंगी। शेष सीटें खाली रहेंगी।
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भूतिया व खंगार को पिछड़ा मानने से सरकार का इन्कार


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-खुद को यदुवंशी बताते हैं भूतिया जाति के लोग
-बुंदेलखंड के जिलों में रहते हैं अर्कवंशीय खंगार
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की संस्तुति के बाद भी प्रदेश सरकार ने भूतिया और खंगार जातियों को पिछड़ा मानने से इन्कार कर दिया है। इन जातियों से जुड़े लोग बुंदेलखंड व इलाहाबाद के आसपास भारी संख्या में रहते हैं, वैसे अब पूरे प्रदेश में फैल चुके हैं।
उत्तर प्रदेश राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के समक्ष भूतिया व खंगार जाति के लोगों ने स्वयं को पिछड़े वर्ग में शामिल करने की गुहार की थी। इलाहाबाद व आसपास के जिलों में बहुतायत में रहने वाले भूतिया जाति के लोगों का कहना था कि वे यदुवंशी हैं। मांग की गयी थी कि अन्य पिछड़े वर्ग की अनुमन्य सूची में उन्हें अहीर, यादव, यदुवंशीय व ग्वाला के साथ सूचीबद्ध किया जाए। इसी तरह खंगार जाति के लोग बुंदेलखंड के झांसी, उरई, बांदा, जालौन व आसपास के क्षेत्र में रहते हैं। इन लोगों ने मांग की थी कि उन्हें पिछड़े वर्ग की अनुमन्य सूची में अरख व अर्कवंशीय के साथ सूचीबद्ध किया जाए।
उत्तर प्रदेश पिछड़ा वर्ग आयोग में हुई सुनवाई में इन जातियों के प्रतिनिधियों का तर्क था कि इलाहाबाद व बुंदेलखंड के आसपास के जिलों में रहने के अलावा अब वे लोग पूरे प्रदेश में फैल गए हैं। उनके पारिवारिक रिश्ते भी यदुवंशियों व अर्कवंशियों में हैं, इसलिए उन्हें अन्य पिछड़े वर्ग में शामिल किया जाना चाहिए। आयोग के अध्यक्ष राम आसरे विश्वकर्मा ने इस संबंध में आदेश जारी कर इन दोनों जातियों को अन्य पिछड़ा वर्ग की सूची में जोडऩे को कहा था। यह आदेश अनुमति के लिए शासन के पास गया, तो सरकार ने इन्कार कर दिया। हाल ही में आयोग के पास शासन से इस बाबत जानकारी आयी, जिसमें कहा गया है कि इन जातियों को अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल नहीं किया जा सकता है। इस संबंध में आयोग के अध्यक्ष ने बताया कि आयोग ने जांच-पड़ताल व तथ्यों के आधार पर फैसला किया था, किन्तु सरकार ने इन्कार कर दिया। उधर इन जातियों के प्रतिनिधियों का कहना है कि एक ओर सरकारें आयोग की संस्तुति के बिना ही राजनीतिक कारणों से जातियों को अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल कर लेती हैं, वहीं इस मामले में आयोग के फैसले को भी नहीं माना गया। वे लोग उच्च न्यायालय में राज्य सरकार के फैसले को चुनौती देंगे।

Tuesday 10 November 2015

संसाधन दीजिये, चेहरा व हाथ भी बदल देंगे


-अंगदान अभियान-
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-प्रत्यारोपण में दुनिया से मुकाबले को तैयार यूपी के डॉक्टर
-चिकित्सा शिक्षा विभाग बढ़ाएगा अनुमति देने की रफ्तार
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डॉ.संजीव, लखनऊ : अंग प्रत्यारोपण व अंगदान के मामले में फिसड्डी उत्तर प्रदेश के डॉक्टर इस बाबत कानून बनाने की शासन की पहल से उत्साहित हैं। उनका कहना है कि सरकार संसाधन मुहैया कराए, हम दुनिया से मुकाबला कर चेहरा व हाथ तक बदलने को तैयार हैं।
अंग प्रत्यारोपण के लिए कोई नीति न होने और शरीर दान को महत्व न मिलने से प्रदेश इस मामले में कई राज्यों की तुलना में खासा पीछे है। दैनिक जागरण की मुहिम के बाद अंगदान के लिए नीति को कानूनी दर्जा दने के सरकार के फैसले से चिकित्सक उत्साहित हैं। अब तक उत्तर प्रदेश में अंग प्रत्यारोपण का जिम्मा महज संजय गांधी परास्नातक आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआइ) ने संभाल रखा है। वहां भी लिवर व दिल-फेफड़े का प्रत्यारोपण करने के विशेषज्ञ होने के बावजूद महज गुर्दा प्रत्यारोपण ही होते हैं। अब शासन की पहल के बाद उम्मीद जगी है तो एसजीपीजीआइ प्रशासन ने भी विविधतापूर्ण अंग प्रत्यारोपण की बात कही है। संस्थान के निदेशक डॉ.राकेश कपूर के मुताबिक संस्थान में प्रस्तावित प्रत्यारोपण केंद्र स्थापित होने के बाद हम प्रत्यारोपण को विस्तार दे सकेंगे। उसके बाद हम किडनी के साथ लिवर व गुर्दे पर तो जोर देंगे ही हाथ व चेहरे प्रत्यारोपित करने की अंतर्राष्ट्रीय पहल से भी कदम से कदम मिलाकर चल सकेंगे। इससे शरीरदान करने वाले एक शरीर के कई अंगों का प्रयोग होगा और उतने ही अधिक लोग लाभान्वित होंगे। अन्य सरकारी व निजी संस्थान भी प्रत्यारोपण की पहल कर रहे हैं किन्तु अनुमति की प्रक्रिया खासी जटिल होने के कारण उन्हें परेशान होना पड़ता है। कई बार तो अनुमति की फाइल चिकित्सा शिक्षा विभाग में ही घूमती रहती है। चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव डॉ.अनूप चंद्र पाण्डेय का कहना है कि समयबद्ध ढंग से अनुमति देने की रफ्तार बढ़ाई जाएगी। जो निजी संस्थान इस दिशा में सामने आएंगे, उन्हें भी सरकारी नेटवर्क का हिस्सा बनाया जाएगा।
केजीएमयू बदलेगा दिल
लखनऊ की किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) ने दिल के प्रत्यारोपण की अनुमति के लिए आवेदन किया है। मंजूरी मिलने के बाद वहां हृदय प्रत्यारोपण का काम शुरू हो जाएगा। प्रमुख सचिव ने बताया कि केजीएमयू में दिल के प्रत्यारोपण के साथ ही छह महीने में किडनी प्रत्यारोपण भी दोबारा शुरू कराया जाएगा। केजीएमयू में तो अलग से प्रत्यारोपण विभाग ही है किन्तु नेफ्रोलॉजिस्ट न होने से दिक्कत हो रही है। इसका समाधान शीघ्र ढूंढ़ा जाएगा।
लोहिया में होगी शुरुआत
लखनऊ के ही डॉ.राम मनोहर लोहिया संस्थान में सुपर स्पेशियलिटी इलाज की सुविधा होने के बावजूद यहां प्रत्यारोपण नहीं हो रहे हैं। संस्थान के निदेशक डॉ.दीपक मालवीय का कहना है कि वहां नेफ्रोलॉजी व यूरोलॉजी विभागों के समृद्ध होने के कारण गुर्दा प्रत्यारोपण तत्काल शुरू होने की संभावना है। वे स्वयं इसके लिए पहल करेंगे। उन्होंने कहा कि प्रत्यारोपण के लिए अनुमति की प्रक्रिया जल्द शुरू की जाएगी और अगले तीन से चार माह के भीतर प्रत्यारोपण भी शुरू कर दिये जाएंंगे।
15 लोग करा चुके पंजीकरण
संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान के प्लास्टिक सर्जरी विभागाध्यक्ष डॉ.राजीव अग्र्रवाल का कहना है कि हाथ व चेहरे का प्रत्यारोपण करने के लिए एसजीपीजीआइ पूरी तरह तैयार है। इसके लिए पंद्रह लोग पंजीकरण भी करा चुके हैं। दुर्घटना में अत्यधिक क्षतिग्र्रस्त हाथ, जला हुआ या पुराना कटा हुआ हाथ भी शरीरदान से प्राप्त शरीर के हाथ से बदला जा सकेगा। चेहरे का प्रत्यारोपण भी संभव है।

पुराने मेडिकल कालेजों के विशेषज्ञ नये में करेंगे इलाज


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-गंभीर प्रकृति के ऑपरेशन भी कराए जाएंगे
-मोबाइल हेल्थ क्लीनिक के माध्यम से सुधार
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : प्रदेश में ताबड़तोड़ खोल दिए गए मेडिकल कालेज विशेषज्ञ चिकित्सकों के अभाव से जूझ रहे हैं। हाल ही में चार कालेजों में भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआइ) के निरीक्षण में यह तथ्य सामने आया। तय हुआ है कि अब पुराने मेडिकल कालेजों के विशेषज्ञ नए कालेजों में जाकर इलाज करेंगे।
बीते कुछ वर्षों में कन्नौज, आजमगढ़, अंबेडकर नगर, जालौन व सहारनपुर में नए मेडिकल कालेज खोले गए हैं। इसके अलावा बांदा व बदायूं मेडिकल कालेज अगले शैक्षिक सत्र से शुरू करने की तैयारी है। हाल ही में कन्नौज, आजमगढ़, अंबेडकर नगर व जालौन में मान्यता के लिए एमसीआइ की टीमों ने निरीक्षण किये तो सभी जगह विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरी। अभी तो आसपास के मेडिकल कालेजों से जुगाड़ कर, तबादला कर और कहीं-कहीं तो संबद्ध कर मान्यता के लिए शिक्षकों का कोटा पूरा किया गया किन्तु मरीज न होने और भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या कम होने से आने वाले संकट से अफसर चिंतित हैं।
इस स्थिति से निपटने के लिए प्रमुख सचिव (चिकित्सा शिक्षा) डॉ.अनूप चंद्र पाण्डेय ने सोमवार को चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक डॉ.वीएन त्रिपाठी के साथ कन्नौज, आजमगढ़, अंबेडकर नगर व जालौन के प्राचार्यों की बैठक बुलाकर एमसीआइ निरीक्षण में उठे सवालों पर विचार विमर्श किया। तय हुआ कि नए कालेजों के आसपास के पुराने कालेजों से अतिविशिष्टता (सुपर स्पेशियलिटी) वाले चिकित्सकों को बुलाकर नए कालेजों में उनसे इलाज की व्यवस्था सुनिश्चित कराई जाए। इसमें गुर्दा, हृदय, कैंसर, न्यूरोलॉजी आदि के विशेषज्ञों को विशेष ओपीडी व ऑपरेशन का जिम्मा सौंपा जाएगा। कानपुर से विशेषज्ञ कन्नौज व जालौन, झांसी से जालौन व बांदा, इलाहाबाद से बांदा, गोरखपुर से आजमगढ़ व मेरठ से सहारनपुर भेजे जाएंगे। बदायूं में अभी वाह्यï रोगी विभाग (ओपीडी) शुरू हुआ है। इसके लिए आगरा मेडिकल कालेज की मदद ली ही जा रही है। भविष्य में मरीज भर्ती करने व ऑपरेशन आदि के लिए भी आगरा की मदद ली जाएगी। इसके अलावा प्रदेश के विशेषज्ञ चिकित्सकों की मदद से मोबाइल हेल्थ क्लीनिक भी संचालित किए जाएंगे।

नौवीं के 80 फीसद फर्जी विद्यार्थियों ने ली छात्रवृत्ति

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पूर्वदशम छात्रवृत्ति योजना
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-वर्ष 2014-15 में प्रवेश लेकर दसवीं में नहीं पहुंचे ये छात्र
-90 प्रतिशत से कम नवीनीकरण वाले स्कूलों की होगी जांच
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : दशमोत्तर छात्रवृत्ति और शुल्क प्रतिपूर्ति योजना की तरह पूर्व दशम छात्रवृत्ति में भी तमाम गड़बडिय़ां सामने आ रही हैं। पता चला है कि वर्ष 2014-15 में कक्षा नौ में प्रवेश लेकर छात्रवृत्ति लेने वालों में से 80 फीसद दसवीं में पहुंचे ही नहीं। माना जा रहा है कि नौवीं के 80 फीसद फर्जी विद्यार्थियों ने छात्रवृत्ति ली थी। इसे देखते हुए समाज कल्याण विभाग ने 90 प्रतिशत से कम नवीनीकरण वाले स्कूलों को संदिग्ध करार देकर मामले की जांच के आदेश दिये हैं।
पूर्वदशम छात्रवृत्ति योजना के अंतर्गत आए आवेदनों का कंप्यूटरीकृत मिलान करते समय तमाम चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। पता चला कि वर्ष 2014-15 में कक्षा नौ में प्रवेश लेकर छात्रवृत्ति लेने वाले 5.05 लाख छात्र-छात्राओं में से सिर्फ 1.04 लाख ने ही दसवीं में छात्रवृत्ति के लिए आवेदन किया। इस तरह 80 प्रतिशत विद्यार्थी दसवीं में पहुंचे ही नहीं और गायब हो गए। पता चला कि कुल 13,484 शिक्षण संस्थाओं में से बड़ी संख्या में ऐसी संस्थाएं हैं, जिन्होंने नवीनीकरण के लिए पुराने एक भी विद्यार्थी का फार्म नहीं दिया है। तमाम में नवीनीकरण श्रेणी के विद्यार्थियों की संख्या 50 फीसद से भी कम है। शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने बताया कि नौवीं से दसवीं में न जाने वाले विद्यार्थियों (ड्राप आउट) की संख्या सामान्यत: पांच से दस प्रतिशत तक रहती है। प्रमुख सचिव (समाज कल्याण) की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि जिन संस्थाओं में नवीनीकरण के लिए छात्र-छात्राओं की संख्या 90 फीसद से कम है, वे प्रथमदृष्ट्या संदिग्ध श्रेणी में आ जाते हैं। ऐसे संस्थाओं की विस्तृत जांच की जाएगी। जिला विद्यालय निरीक्षक स्तर पर नवीनीकरण व नए छात्रों का फिर से परीक्षण किया जाएगा। जिला समाज कल्याण, पिछड़ा वर्ग व अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी दस प्रतिशत संस्थाओं व पांच प्रतिशत विद्यार्थियों का रैंडम आधार पर चयन कर भौतिक निरीक्षण करेंगे। इसके बाद जनपदीय छात्रवृत्ति स्वीकृति समिति सभी स्वीकृत आवेदन पत्र 20 दिसंबर तक अपलोड कर देगी।
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Monday 9 November 2015

बनेंगे अंग संरक्षण केंद्र, ऑनलाइन प्रतीक्षा सूची


-अंगदान अभियान-
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-अंग प्रत्यारोपण नीति के कानूनी दर्जा लेते ही काम शुरू
-नीति में अंगदाताओं की चिंता व प्रोत्साहन पर भी जोर
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डॉ.संजीव, लखनऊ : प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तावित अंग प्रत्यारोपण कानून में अंगदाताओं की चिंता के साथ उनके प्रोत्साहन पर भी जोर दिया जाएगा। प्रदेश भर में अंग संरक्षण केंद्र बनाने के साथ प्रत्यारोपण के लिए राज्य स्तरीय ऑनलाइन प्रतीक्षा सूची बनेगी।
केंद्र सरकार ने सुरक्षित अंगदान को बढ़ावा देने के लिए 27 मार्च 2014 को अधिसूचना जारी कर ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन्स एंड टिश्यूज रूल्स 2014 को मंजूरी दी थी। लेकिन प्रदेश में अब तक इस बाबत कोई नीति नहीं बन सकी है। दैनिक जागरण में लगातार अभियान चलाए जाने के बाद शासन ने अंग प्रत्यारोपण नीति के लिए कानून बनाने का फैसला किया है। प्रमुख सचिव (चिकित्सा शिक्षा) डॉ.अनूप चंद्र पांडेय की अगुवाई में नीति को अंतिम रूप दिया जा रहा है। इसमें प्रदेश के प्रमुख हिस्सों में अंग संरक्षण केंद्र बनाने का प्रस्ताव किया गया है। राजकीय मेडिकल कालेजों में प्रस्तावित इन अंग संरक्षण केंद्रों में अंगदानियों के ब्रेन डेथ होते ही उनके अंगों का संरक्षण कर लिया जाएगा। उसके बाद प्रदेश के विभिन्न अंग प्रत्यारोपण केंद्रों पर प्रतीक्षा सूची के अनुसार संबंधित अंगों को प्रत्यारोपण के लिए भेजा जाएगा। प्रत्यारोपण में पारदर्शिता लाने के लिए प्रदेश स्तरीय नेटवर्क बनाकर ऑनलाइन प्रतीक्षा सूची बनाई जाएगी। जैसे ही किसी प्रत्यारोपण केंद्र के चिकित्सकों की टीम किसी मरीज के लिए प्रत्यारोपण अनिवार्य करेगी, उसका ब्योरा उक्त वेबसाइट में दर्ज हो जाएगा। उससे मैचिंग अंग किसी भी अंग संरक्षण केंद्र में आते ही प्रतीक्षा सूची से नाम बुलाकर प्रत्यारोपण सुनिश्चित किया जाएगा। राज्य में प्रत्यारोपण के लिए मैचिंग व्यक्ति पंजीकृत न होने पर उक्त अंग को आसपास के राज्यों या देश के किसी अन्य राज्य में भेजने पर भी विचार किया जाएगा।
बनेंगे विशेषज्ञों के पैनल
ब्रेन डेथ घोषित करने के लिए अंग संरक्षण केंद्रों के अलावा राज्य, जिला व संस्थान स्तर पर विशेषज्ञों के पैनल होंगे। इन पैनलों में अंग प्रत्यारोपण करने वाले चिकित्सक को शामिल नहीं किया जा सकेगा। संस्थान स्तर की समिति में अस्पताल के चिकित्सा निदेशक या अधीक्षक के साथ दो वरिष्ठ चिकित्सक और एक महिला सहित दो ऐसे लोग शामिल किये जाएंगे जो किसी उच्च सरकारी पद पर तैनात रह चुके हों। राज्य या जिला स्तरीय पैनल सीएमओ की अध्यक्षता में बनेगा, जिसमें दो वरिष्ठ चिकित्सकों व एक महिला सहित दो उच्च पदस्थ लोगों के साथ प्रदेश के स्वास्थ्य सचिव सदस्य होंगे।
उठाएंगे संरक्षण का खर्च
अंगदान के बाद अंग संरक्षण व उसे प्रत्यारोपण केंद्र पर पहुंचाने का खर्चा भी इस नीति का हिस्सा होगा। ब्रेन डेथ घोषित शरीर से अंगों को निकालकर उन्हें संरक्षित करने व प्रत्यारोपण केंद्र तक पहुंचाने में आने वाला खर्च सरकार उठाएगी। अभी शासन असाध्य रोगों पर होने वाले खर्च के लिए अलग से अनुदान देती है। इस खर्च को इसी मद में जोड़ा जाएगा। इसके अलावा देहदान करने वालों के इलाज का खर्च उठाने का प्रस्ताव भी इस नीति में किया जाएगा।
चिकित्सा शिक्षा नेटवर्क साबित होगा मददगार
प्रमुख सचिव (चिकित्सा शिक्षा) डॉ.अनूप चंद्र पांडेय का कहना है कि अंगदान व अंग प्रत्यारोपण को प्रदेश में मजबूती से लागू करने में चिकित्सा शिक्षा का नेटवर्क अत्यधिक मददगार साबित होगा। प्रदेश भर में हमारे मेडिकल कालेज हैं और वहां सुपरस्पेशियलिटी शिक्षा की व्यवस्था है। कुछ परास्नातक शिक्षा संस्थान अतिविशिष्टता से जुड़े ही हैं। ऐसे में मेडिकल कालेजों को मजबूत अंगदान व अंग प्रत्यारोपण को बढ़ाने की रणनीति बनाई गयी है। पहले चरण में लिवर, किडनी व रेटिना प्रत्यारोपण को मुहिम चलाकर बढ़ाया जाएगा। इसके साथ ही शरीरदान के माध्यम से अन्य अंगों के प्रत्यारोपण के लिए नेटवर्क को मजबूती दी जाएगी। 

Saturday 7 November 2015

...ताकि कोई और अरविंद न करे सालों इंतजार


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-अंगदान अभियान-
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-उत्तर प्रदेश की नीति बनाते समय रखें अन्य राज्यों का ध्यान
-नए प्रत्यारोपण केंद्र स्थापित किये बिना नहीं चलेगा काम
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डॉ.संजीव, लखनऊ :
दिनांक : 28 अक्टूबर 2013
स्थान: संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान
राजधानी लखनऊ के आशियाना स्थित एलडीए कालोनी निवासी अरविंद कुमार की पहली डायलिसिस होने जा रही थी। पत्नी अर्चना खासी परेशान थीं। डॉक्टर ने कह दिया था कि उनके गुर्दे खराब हो चुके हैं। वे अपना गुर्दा देने को तैयार थीं किन्तु लंबी प्रतीक्षा सूची के कारण यह संभव नहीं हो पा रहा था। ...अब पूरे दो साल बाद अर्चना के चेहरे पर चमक है। उनका गुर्दा अब पति अरविंद को लग चुका है। पर दो साल का यह इंतजार व दौड़-धूप यादकर आज भी उनकी आंखें नम हो उठती हैं। वे बस इतना ही कहती हैं कि कुछ ऐसा हो, जिससे कोई और अरविंद इस तरह इंतजार को विवश न हो।
बीते माह हुए प्रत्यारोपण के बाद अर्चना शुक्रवार को एसजीपीजीआइ से पति की छुïट्टी कराकर घर ले आयीं। वे बताती हैं कि 2012 में जब उनके पति के गुर्दे में समस्या पता चली और काफी इलाज के बावजूद जब 2013 में प्रत्यारोपण की नौबत आ गयी तो इंतजार के साथ डायलिसिस के अलावा कोई विकल्प ही नहीं था। वे दिल्ली भी गयीं किन्तु उन्हें सफलता नहीं मिली। यह स्थिति केवल अरविंद की नहीं है। उत्तर प्रदेश में अंगदान को लेकर अब तक हुई ढिलाई के कारण हजारों ऐसे अरविंद प्रत्यारोपण के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। यह स्थिति पूरे देश में नहीं है।
विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तर प्रदेश में नीति बनाते समय देश के अन्य राज्यों की स्थितियों को ध्यान में रखना होगा। देश के कई राज्यों में न सिर्फ नीतियां निर्धारित हैं, बल्कि प्रत्यारोपण के पक्ष में भी हैं। तमिलनाडु में अंग प्रत्यारोपण के लिए एक सूची बनी हुई है। लोगों के अंग प्रत्यारोपण कार्ड बने हुए हैं। जैसे ही कोई अंग उपलब्ध होता है, उस सूची के आधार पर आवंटन हो जाता है और फिर 40 में से जिस केंद्र पर प्रत्यारोपण के लिए पंजीकरण होता है, वहां प्रत्यारोपण करा दिया जाता है। केरल में भी इसी नीति पर काम हो रहा है और हाल ही में राजस्थान ने भी इस नीति को अंगीकार किया है। विशेषज्ञों का मानना है कि नए प्रत्यारोपण केंद्र विकसित किये बिना काम नहीं चलेगा। मेडिकल कालेज स्तर पर कोशिशें करनी होंगी। अलग-अलग अंगों को लेकर विशेष प्रत्यारोपण केंद्र भी स्थापित करने होंगे।
भारत में दुनिया का पहला प्रत्यारोपण विश्वविद्यालय
एक ओर उत्तर प्रदेश में प्रत्यारोपण के पुख्ता बंदोबस्त नहीं हो पा रहे हैं, वहीं दुनिया का पहला प्रत्यारोपण विश्वविद्यालय खोलने का गौरव भारत को ही मिला है। इसी वर्ष मई में अहमदाबाद में शुरू हुई गुजरात यूनिवर्सिटी ऑफ ट्रांसप्लांटेशन साइंसेज में अंग प्रत्यारोपण से जुड़े सुपरस्पेशियलिटी मेडिकल व पैरामेडिकल पाठ्यक्रमों की पढ़ाई होती है। यहां प्रत्यारोपण को आम जनमानस के लिए सुलभ व सस्ता बनाने पर शोध भी किये जा रहे हैं।
बनाए जाएं अंगदान कार्ड
इंडियन सोसायटी ऑफ ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन के सचिव डॉ.नारायण प्रसाद प्रदेश सरकार द्वारा अंग प्रत्यारोपण नीति के लिए कानून बनाने के फैसले का स्वागत करते हुए कहते हैं कि इसके साथ ही अंगदान कार्ड बनाने की पहल भी होनी चाहिए। इससे जो लोग अंगदान करना चाहते हैं, वे आगे आ सकेंगे। सभी अस्पतालों को जोड़कर ऑनलाइन प्रणाली विकसित की जाए, जिससे अंगदान व प्रत्यारोपण की प्रक्रिया सुगम हो सके। जिस मरीज को अंग प्रत्यारोपण हो रहा है, उसके अलावा अंगदान करने वालों व उनके परिवारीजन की चिंता का प्रावधान भी नीति का हिस्सा होना चाहिए।

नौवीं-दसवीं की छात्रवृत्ति में समान आय सीमा की तैयारी

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-अभी हर वर्ग के लिए अलग आय सीमा से दिक्कत
-अब सभी के लिए दो लाख आय सीमा का प्रस्ताव
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : नौवीं व दसवीं के छात्र-छात्राओं को छात्रवृत्ति वितरण में अलग-अलग आय सीमा के कारण विभागों को सूची बनाने से लेकर कई अन्य दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। अब शासन स्तर पर सभी वर्गों के लिए समान आय सीमा निर्धारित करने की तैयारी की जा रही है।
आठवीं के बाद पढ़ाई न रुकने देने के लिए छात्रवृत्ति देने की योजना का संचालन समाज कल्याण विभाग द्वारा किया जाता है। समाज कल्याण विभाग इसके साथ ही सामान्य व अनुसूचित जाति वर्ग के लिए छात्रवृत्ति वितरण का जिम्मा भी संभालता है। इसके अलावा अल्पसंख्यक छात्र-छात्राओं के लिए अल्पसंख्यक कल्याण विभाग व पिछड़े वर्ग के लिए पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग समन्वयक की भूमिका में होता है। हाल ही में छात्रवृत्ति वितरण में पारदर्शिता को लेकर तीनों विभागों की कई बैठकें हुईं तो चारों वर्गों के लिए असमान आय सीमा का मामला सामने आया।
बताया गया कि सामान वर्ग के लिए गरीबी रेखा से नीचे वाले ही छात्रवृत्ति के लिए आवेदन कर सकते हैं। यानी ग्र्रामीण क्षेत्र में 19,884 रुपये व शहरी क्षेत्र में 25,546 रुपये वार्षिक से अधिक आय वाले अभिभावकों के बच्चे छात्रवृत्ति के लिए आवेदन ही नहीं कर सकते। इसी पिछड़ा वर्ग के मामले में अधिकतम आय सीमा 30 हजार रुपये वार्षिक निर्धारित है। अल्पसंख्यकों के लिए आय सीमा एक लाख रुपये वार्षिक है, वहीं अनुसूचित जाति के लिए आय सीमा दो लाख रुपये वार्षिक निर्धारित की गयी है। इस पर सभी वर्गों की आय सीमा समान करने का प्रस्ताव लाया गया है। दशमोत्तर छात्रवृत्ति के लिए सभी वर्गों की आय सीमा दो लाख है और अब नौवीं-दसवीं की छात्रवृत्ति पाने के लिए भी इसे दो लाख करने की तैयारी है। पिछड़ा वर्ग विभाग के सचिव डॉ.हरिओम के मुताबिक समान आय सीमा के साथ ही अधिकाधिक छात्र-छात्राओं को लाभान्वित किया जा सकेगा। इस बाबत तीनों विभागों के साथ संयुक्त विचार विमर्श किया जा चुका है। जल्द ही विधिवत प्रस्ताव बनाकर इस पर अमल सुनिश्चित किया जाएगा। 

Friday 6 November 2015

अंग प्रत्यारोपण नीति के लिए बनेगा कानून


-अंगदान प्रोत्साहन का फैसला
-कैबिनेट में आएगा केंद्रीय नीति को अंगीकार करने का प्रस्ताव
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डॉ.संजीव, लखनऊ :
उत्तर प्रदेश में अंग प्रत्यारोपण नीति के लिए कानून बनेगा। दैनिक जागरण के 'अंगदान अभियानÓ को संज्ञान में लेते हुए गुरुवार को हुई शासन की उच्चस्तरीय बैठक में प्रदेश में अंगदान को प्रोत्साहित करने का फैसला हुआ। इसके अंतर्गत तात्कालिक रूप से कैबिनेट में अंगदान के संबंध में केंद्रीय नीति को अंगीकार करने का प्रस्ताव लाने और फिर उस पर कानून बनवाने की पहल करने का फैसला लिया गया।
प्रदेश में अंग प्रत्यारोपण की स्थितियां अत्यंत गंभीर अवस्था में हैं। हालात ये हैं कि देश में सर्वाधिक आबादी होने वाला प्रदेश अंगदान के मामले में फिसड्डी है। यहां प्रत्यारोपण की सुविधाएं भी नगण्य सी हैं। इसके पीछे अंगदान के लिए एक उपयुक्त नीति न होने को बड़ा कारण माना जा रहा है। दैनिक जागरण ने बीते कुछ दिनों से 'अंगदान अभियानÓ चलाया तो इस पर शासन ने गुरुवार को बड़ी बैठक बुलाई। बैठक में प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा डॉ.अनूप चंद्र पाण्डेय, प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) अरविंद कुमार, किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के कुलपति प्रो.रविकांत के साथ स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा महानिदेशालयों के अधिकारियों ने हिस्सा लिया। बैठक में स्वीकार किया गया कि प्रदेश में अब तक अंगदान को प्रोत्साहित करने के लिए प्रभाव कदम नहीं उठाए गए। अति विशिष्टता (सुपरस्पेशियलिटी) वाली चिकित्सा सेवाएं अभी चिकित्सा शिक्षा विभाग से जुड़े संस्थानों में ही अधिक संचालित हो रही हैं, इसलिए इस अभियान की कमान प्रमुख सचिव (चिकित्सा शिक्षा) को सौंपी गयी।
यह तथ्य सामने आया कि अब तक प्रदेश में अंगदान या अंग प्रत्यारोपण के लिए कोई स्वीकार्य नीति ही नहीं है। प्रमुख सचिव (चिकित्सा शिक्षा) डॉ.अनूप चंद्र पाण्डेय ने बताया कि उत्तर प्रदेश वर्ष 20014 में भारत सरकार द्वारा पारित ट्रांसप्लांट ऑफ ह्यïूमन ऑर्गन एंड टिश्यूज रूल एक्ट 2014 को अंगीकार करेगा। इसके लिए कैबिनेट में प्रस्ताव लाया जाएगा। इसे कानूनी दर्जा देने के साथ ही राज्य स्तर पर समिति बनाने का भी फैसला हुआ, जो प्रदेश में अंग प्रत्यारोपण की राह आसान करने के साथ अन्य राज्यों की नीतियों का अध्ययन कर तदनुरूप सुझाव देगी। आज की बैठक की संस्तुतियों को मुख्य सचिव को भेज कर जल्द से जल्द कैबिनेट में उक्त प्रस्ताव लाने की बात कही गयी है।
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मुख्यमंत्री की सहमति
अंग प्रत्यारोपण नीति को लेकर मुख्यमंत्री स्वयं गंभीर हैं। इस मसले से जुड़े दोनों विभागों, स्वास्थ्य व चिकित्सा शिक्षा के मंत्री स्वयं मुख्यमंत्री हैं, इसलिए अंग प्रत्यारोपण नीति को कानूनी दर्जा देने तक के प्रस्ताव पर मुख्यमंत्री से भी चर्चा की गयी है। उन्होंने सहमति जताई है। तय हुआ है कि चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा संचालित संस्थानों के साथ ही स्वास्थ्य विभाग द्वारा राजधानी में प्रस्तावित एक हजार बेड के सुपरस्पेशियलिटी अस्पताल में भी प्रत्यारोपण के प्रबंध किये जाएंगे।
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अंगदान की शपथ लेंगे 108 लोग
दैनिक जागरण के अंगदान अभियान को प्रेरक मानते हुए कानपुर में 19 नवंबर को एक भव्य कार्यक्रम में 108 लोग अंगदान की शपथ लेंगे। युग दधीचि देहदान अभियान के संयोजक मनोज सेंगर के अनुसार संस्था ने अब तक मृत्यु के बाद मेडिकल कालेजों को शव देने का अभियान चला रखा था। अब तक 145 मृत शरीर मेडिकल कालेजों को समर्पित किये गए और 2500 से अधिक लोग देहदान का संकल्प कर चुके हैं। अब जागरण की कल्याणकारी मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए अंगदान अभियान भी शुरू किया जाएगा। 19 नवंबर को कानपुर के जेके कालोनी स्थित वेलफेयर सेंटर प्रांगण में संकल्प होगा।
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अल्ट्रासाउंड करने के लिए पास करनी होगी परीक्षा

-शासन सख्त-
-पुराने टेक्नीशियन के लिए विशेष परीक्षा की तैयारी
-नए के लिए मेडिकल कालेजों में छह माह का कोर्स
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ
अल्ट्रासाउंड केंद्रों की मनमानी रोकने के लिए सरकार अब बेहद सख्त रुख अख्तियार करेगी। महज डॉक्टर के साथ रहते-रहते अल्ट्रासाउंड करना अब संभव नहीं होगा। इसके लिए एक विशेष परीक्षा पास करनी होगी। साथ ही मेडिकल कालेजों में छह माह का एक विशेष पाठ््यक्रम भी शुरू किया जाएगा।
प्रमुख सचिव (चिकित्सा शिक्षा) डॉ.अनूप चंद्र पाण्डेय ने गुरुवार को अधिकारियों के साथ अल्ट्रासाउंड केंद्रों के संचालन में हो रही गड़बडिय़ों व उनके समाधान पर विचार विमर्श किया। उन्होंने बताया कि अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर मनमाने ढंग से अल्ट्रसाउंड पर बंदिश लगाना सुनिश्चित किया जाएगा। इसके लिए केंद्र सरकार ने भी कानून में बदलाव किए हैं और एक जनवरी 2017 के बाद किसी भी अल्टासाउंड मशीन को चलाने के लिए प्रशिक्षित व्यक्ति को ही अवसर देने की बात कही है। इस पर तय हुआ है कि उपयुक्त प्रशिक्षण व योग्यता के बिना अल्ट्रासाउंड करने वालों पर पूरी तरह रोक लगा दी जाएगी। अब अल्ट्रासाउंड टेक्नीशियन के लिए एक छह माह का विशेष पाठ्यक्रम शुरू किया जाएगा। एक जनवरी 2017 के बाद अल्ट्रासाउंड करने के लिए यह पाठ्यक्रम उत्तीर्ण करना जरूरी होगा। यह पाठ्यक्रम उन सभी मेडिकल कालेजों में संचालित होगा, जहां अभी स्त्री एवं प्रसूति रोग और रेडियोलॉजी में परास्नातक (एमडी) पाठ्यक्रमों का संचालन हो रहा है। इसके लिए इन दोनों विभागों के बीच समन्वय कराया जाएगा। इस पाठ्यक्रम के लिए हर कालेज में सीटों की संख्या भी निर्धारित की जाएगी। इसके अलावा जो लोग किसी प्रशिक्षित अल्ट्रासोनोलॉजिस्ट के साथ एक साल या उससे अधिक समय से काम कर रहे हैं, उन्हें भी एक विशेष परीक्षा देनी होगी। इस परीक्षा का आयोजन भी हर वर्ष किया जाएगा। 

निजी आयुर्वेदिक कालेजों में 186 एमडी सीटें, 274 आवेदन

-दोबारा परीक्षा कराने की घोषणा के बाद बढ़े 78 अभ्यर्थी
-आठ नवंबर को परीक्षा, नौ को परिणाम, 14 को काउंसिलिंग
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : निजी आयुर्वेदिक कालेजों में 186 परास्नातक (एमडी) सीटों पर प्रवेश के लिए 274 आवेदन आए हैं। इन कालेजों के लिए 29 अक्टूबर को प्रस्तावित परीक्षा रद कर दोबारा परीक्षा कराने की घोषणा के बाद 78 अभ्यर्थी बढ़ गए हैं।
निजी आयुर्वेदिक कालेजों के एमडी पाठ्यक्रमों की 186 सीटों के लिए 29 अक्टूबर को प्रवेश परीक्षा होनी थी।  तमाम अनियमितताओं के आरोप में उक्त परीक्षा रद करने के साथ पूरे मामले में जांच भी बैठा दी गयी थी। साथ ही प्रवेश परीक्षा की नयी तारीख आठ नवंबर घोषित कर पांच नवंबर तक आवेदन भी मांगे गए थे। गुरुवार को आवेदन के अंतिम दिन तक 78 और अभ्यर्थियों ने परीक्षा के लिए आवेदन किए। पहले भी 196 लोग आवेदन कर चुके थे। इस तरह 186 सीटों के लिए कुल 274 अभ्यर्थी परीक्षा देंगे। पहले परीक्षा आयुर्वेद फार्मेसी में होनी थी, जो इस बार किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) में कराने का फैसला हुआ है। परीक्षा प्रक्रिया का संचालन कर रहीं चिकित्सा शिक्षा विभाग की विशेष सचिव कुमुदलता श्रीवास्तव ने बताया कि परीक्षा में पूरी पारदर्शिता सुनिश्चित की जाएगी। इसके लिए छह नवंबर को सभी अभ्यर्थियों के रोल नंबर व नाम आयुर्वेद विभाग की वेबसाइट पर डाल दिये जाएंगे। इससे आवेदन करने वाले अभ्यर्थी कोई भी आपत्ति प्रस्तुत कर सकेंगे। सात नवंबर को लखनऊ के राजकीय आयुर्वेदिक कालेज में प्रवेश पत्र बांटे जाएंगे। आठ नवंबर को परीक्षा के बाद प्रश्नों के उत्तर वेबसाइट पर डाल दिए जाएंगे, जिससे परीक्षार्थी अपनी स्थिति का आकलन कर सकेंगे। नौ नवंबर को परीक्षा परिणाम के साथ मेरिट लिस्ट जारी हो जाएगी। सफलता के लिए मेरिट के साथ कम से कम पचास फीसद अंक प्राप्त करना भी अनिवार्य होगा। सफल छात्र-छात्राओं की मेडिकल जांच व काउंसिलिंग 14 नवंबर को लखनऊ के राजकीय आयुर्वेदिक कालेज में होगी।

Thursday 5 November 2015

एसजीपीजीआइ के सहारे छोड़ा जीवन यज्ञ


-अंगदान अभियान-
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-गुर्दा प्रत्यारोपण के लिए ही एक साल की प्रतीक्षा सूची
-लिवर व दिल प्रत्यारोपण विशेषज्ञता का पूरा उपयोग नहीं
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डॉ.संजीव, लखनऊ : प्रदेश में प्रत्यारोपण के सहारे 'जीवनÓ देने का 'यज्ञÓ पूरी तरह से संजय गांधी परास्नातक आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआइ) के सहारे है। यही कारण है कि वहां गुर्दा प्रत्यारोपण के लिए ही एक साल की प्रतीक्षा सूची है। लिवर व दिल प्रत्यारोपण विशेषज्ञता का पूरा उपयोग ही नहीं हो पा रहा है।
अंग प्रत्यारोपण से तमाम लोगों को जीवन दिया जाना संभव है। लेकिन अंग प्रत्यारोपण के लिए पर्याप्त केंद्र विकसित न किये जाने के कारण पूरा बोझ राजधानी लखनऊ स्थित संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान पर डाल दिया गया है। यहां गुर्दा व यूरोलॉजी विभाग संयुक्त रूप से संचालित होता है और प्रत्यारोपण का काम अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप किया जाता है। यहां गुर्दे के साथ दिल, फेफड़ों व लिवर प्रत्यारोपण के विशेषज्ञ चिकित्सक हैं किन्तु अत्यधिक लोड होने के कारण यह संस्थान भी महज गुर्दा प्रत्यारोपण तक सीमित होकर रह गया है। गुर्दा प्रत्यारोपण के लिए इतनी लंबी लाइन है कि एक साल तक की प्रतीक्षा सूची बनी हुई है। ऐसे में अन्य प्रत्यारोपण कभी-कभार ही हो पाते हैं।
बीएचयू व केजीएमयू में बंद
अंगप्रत्यारोपण को लेकर शासन व प्रशासन के स्तर पर गंभीर प्रयास न होने के कारण यहां प्रत्यारोपण बढऩे के बजाय घटने की स्थिति है। बीएचयू से संबद्ध अस्पताल में पिछले वर्ष तक प्रत्यारोपण होते थे, किन्तु अब बंद हो गए। यहां जो चिकित्सक प्रत्यारोपण करते थे, वे दिल्ली चले गए और उनके जाने के बाद कोई वैकल्पिक प्रबंध किये ही नहीं गए। लखनऊ की किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में  प्रत्यारोपण विभाग शुरू किया गया था, किन्तु वह प्रभावी नहीं साबित हुआ। वहां प्रत्यारोपण शुरू होकर बंद हो गए। चिकित्सक की कमी इस समस्या का कारण मानी जा रही है। राजधानी के ही लोहिया संस्थान को अब भले ही उच्च स्तरीय मेडिकल कालेज में तब्दील करने की तैयारी हो रही हो, सभी सुपरस्पेशियलिटी विभाग भी कार्यरत हैं, ऑपरेशन थियेटर से लेकर अन्य सुविधाएं भी उच्च स्तरीय हैं, किन्तु प्रत्यारोपण शुरू तक नहीं हुए।
मेडिकल कालेजों में पहल नहीं
चिकित्सकों का मानना है कि आगरा, कानपुर, इलाहाबाद, मेरठ मेडिकल कालेजों में आधारभूत ढांचा उपलब्ध है, बस वहां थोड़ी कोशिशों से प्रत्यारोपण शुरू किया जा सकता है। कानपुर मेडिकल कालेज से संबद्ध हृदय रोग संस्थान एक अलग सुपरस्पेशियलिटी संस्थान है। वहां परास्नातक के बाद अतिविशिष्टता वाली एमसीएच तक की पढ़ाई भी होती है किन्तु प्रत्यारोपण सुविधा की पहल ही नहीं की जा रही है।  
अन्य संस्थान भी आगे आएं
संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान के निदेशक डॉ.राकेश कपूर कहते हैं कि सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं आसपास के राज्यों और नेपाल, बांग्लादेश तक से मरीज एसजीपीजीआइ में आते हैं। ऐसे में प्रतीक्षा सूची बनना स्वाभाविक है। बावजूद इसके हम हर वर्ष औसतन 130 से 150 गुर्दा प्रत्यारोपण कर लेते हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि संस्थान में निर्माणाधीन ट्रांसप्लांट सेंटर शुरू हो जाने के बाद न सिर्फ अन्य अंगों के प्रत्यारोपण को रफ्तार मिलेगी, बल्कि गुर्दा प्रत्यारोपण की संख्या भी बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि प्रदेश के कई अन्य संस्थानों को भी प्रत्यारोपण केंद्रों के रूप में विकसित करने की क्षमता है। यदि उनमें आधारभूत ढांचा मुहैया कराकर प्रत्यारोपण शुरू कर दिया जाए तो स्थितियां सुधर सकती हैं। प्रदेश में अंग प्रत्यारोपण का वातावरण बनाने की भी पहल होनी चाहिए ताकि लोग अधिक से अधिक संख्या में आगे आ सकें।

Wednesday 4 November 2015

प्रत्यारोपण संकट से बढ़ रहे बीमार


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अंगदान अभियान
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-हर वर्ष हजारों लोगों की जाती जान

डॉ.संजीव, लखनऊ : उत्तर प्रदेश में अंग प्रत्यारोपण के पुख्ता इंतजाम न होने से बीमारों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। चिकित्सकों के अनुसार इस कारण हजारों लोगों की जान भी चली जाती है।
चिकित्सा विज्ञान की क्रांति भारत में दस्तक दे चुकी है, किन्तु उत्तर प्रदेश में वह प्रभावी साबित नहीं हो रही है। चिकित्सकों के मुताबिक प्रदेश में प्रत्यारोपण के मरीजों की संख्या हर साल बढ़ती जाती है। यहां नीतिगत कमियों के कारण मरीज वैकल्पिक उपचार के सहारे रहते हैं और प्रत्यारोपण न हो पाने के कारण उनकी मौत हो जाती है। इस मामले में उत्तर प्रदेश अन्य राज्यों से सीखने की कोशिश भी नहीं कर रहा है। सिर्फ तमिलनाडु में ही 40 अस्पतालों में प्रत्यारोपण होता है। यहां इस पर ध्यान न दिए जाने के कारण अच्छे चिकित्सक भी नहीं रुकते हैं। आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु सहित कुछ राज्यों ने तो अतिविशिष्टता (डीएम, एमसीएच आदि) की पढ़ाई करने के बाद कम से कम दो वर्ष तक उसी राज्य में सेवा करने की शर्त तक लगा रखी है। इसके विपरीत उत्तर प्रदेश में यदि कोई ट्रांसप्लांट सर्जन रुकना चाहे, तो उसे सुविधाएं ही नहीं मिलतीं। इसका खामियाजा मरीजों को उठाना पड़ता है।
4000 गुर्दे बदलने की नौबत
चिकित्सकीय आकलन के अनुसार उत्तर प्रदेश में हर वर्ष एक लाख लोगों के गुर्दे किसी न किसी बीमारी के शिकार बनते हैं। इनमें से चार हजार लोगों को गुर्दा प्रत्यारोपण की जरूरत होती है। इसके विपरीत दस फीसद भी उपलब्धता न होने के कारण लोग डायलिसिस पर रहने को विवश हैं। ऐसे में गुर्दों की जरूरत हर साल बढ़ती जाती है।
6000 दिलों-फेफड़ों की जरूरत
प्रदेश में प्रत्यारोपण के लिए हर वर्ष औसतन छह हजार दिलों-फेफड़ों की जरूरत होती है। इसके विपरीत प्रदेश में दिल या फेफड़ों के प्रत्यारोपण की व्यवस्था न होने से बेहद दिक्कत होती है। चिकित्सकों के मुताबिक गुर्दा रोगियों को तो डायलिसिस के सहारे जिंदा रखा जा सकता है किन्तु दिल के प्रत्यारोपण वाले मरीजों की तो बस इस इंतजार में मौत ही हो जाती है।
चाहिए सबसे ज्यादा लिवर
चिकित्सकों के मुताबिक लिवर खराब होने की समस्या सर्वाधिक चिंताजनक स्थिति में है। हर वर्ष औसतन 15 हजार मरीजों के लिवर प्रत्यारोपण की स्थिति में होते हैं। इनके प्रत्यारोपण की व्यवस्था न होने से बेहद दिक्कत होती है। कई मरीज तो बिना जाने ही मौत के मुंह में समा जाते है।
श्रीलंका तक जाते मरीज
अंग प्रत्यारोपण की प्रक्रिया बेहद महंगी भी है। गुर्दा प्रत्यारोपण पर सामान्यत: पांच लाख, दिल व फेफड़ा प्रत्यारोपण पर दस लाख व लिवर प्रत्यारोपण पर 15 लाख रुपये तक खर्च होता है। उत्तर प्रदेश में व्यवस्था न होने के कारण अंग प्रत्यारोपण के मरीज श्रीलंका तक जाते हैं। इसके अलावा दिल्ली, हरियाणा के कुछ निजी अस्पतालों में भी प्रत्यारोपण की कतारें लगी रहती हैं।
बने अस्पतालों का नेटवर्क
प्रमुख हृदय प्रत्यारोपण विशेषज्ञ डॉ.एसके अग्रवाल का मानना है कि अभी सबसे बड़ी समस्या मरीजों को मझधार में छोड़ देने की है। हमें जागरूकता बढ़ाने पर जोर देना होगा। इसके अलावा सभी अस्पतालों का नेटवर्क बनाया जाना जरूरी है। इससे जरूरतमंदों की सूची बनाने में तो आसानी होगी ही, अंगदान करने वालों को भी सूचीबद्ध किया जा सकेगा। इसके अलावा अस्पतालों को भी अपने आपको प्रत्यारोपण के लिए तैयार करना होगा। सरकार इसमें मदद करे, ताकि बिना इलाज जान गंवाने वाले मरीजों को बचाया जा सके।

Tuesday 3 November 2015

हर आठ मिनट में मिल सकता दस को जीवन


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-अंगदान अभियान-
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-स्पेन में हर दुर्घटनाग्र्रस्त शरीर पर सरकार का अधिकार
-जीवित दानदाता न मिलने का संकट भी हो सकता दूर
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डॉ.संजीव, लखनऊ : भारत में हर आठ मिनट में मार्ग दुर्घटना में मृत्यु होती है। यदि स्पेन की तर्ज पर कानून बनाकर इन सभी शवों को सरकार को सौंप दिया जाए तो दस लोगों को जीवन मिल सकता है। इससे जीवित दानदाता न मिलने का संकट भी दूर हो सकता है।
स्पेन में मार्ग दुर्घटना के बाद ब्रेन डेथ घोषित हर व्यक्ति का शरीर सरकार की संपत्ति का होता है। इससे अंग दान कर वहां एक ब्रेन डेथ शरीर से दस लोगों की जान बचाई जाती है। भारत में भी हर आठ मिनट में एक मार्ग दुर्घटना होती है, जिसके बाद अस्पताल या ट्रामा सेंटर पहुंचे मरीजों की मृत्यु होने पर वे पहले ब्रेन या कार्डियक डेथ की स्थिति में होते हैं। एक ब्रेन डेथ शरीर से दो आंखें, दो किडनी, एक लीवर, दो फेफड़े, एक दिल, एक पैंक्रियास व एक आंत का प्रत्यारोपण कर दस लोगों को नई जिंदगी दी जा सकती है। उत्तर प्रदेश में अंग प्रत्यारोपण की स्थिति बेहद चिंताजनक कही जाए, तो यह अतिशयोक्ति न होगी। उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक गुर्दा प्रत्यारोपण होते हैं, किन्तु उनमें भी लिविंग डोनर ही ज्यादा होते हैं। गुर्दा प्रत्यारोपण के मामले में भी लिविंग डोनर मिलने में दिक्कत आती है। मधुमेह के कारण किडनी सर्वाधिक खराब होती हैं और ऐसे में जब गुर्दा प्रत्यारोपण के लिए दानदाता की पड़ताल शुरू होती है, तो कई बार घर में सभी की किडनी पूरी तरह स्वस्थ नहीं मिलती। चिकित्सकों के मुताबिक 40 से 50 फीसद मामलों में ऐसा ही होता है। यदि अंगदान का वातावरण बने और लोग आगे आएं तो हालात बदल सकते हैं। अभी तो यहां शरीरदान की ठीक से शुरुआत ही नहीं हुई है, जबकि भारत के अन्य राज्यों में यह तेजी पकड़ चुकी है। तीन वर्षों में शरीरदान की बदौलत देश में 1628 किडनी, 764 लिवर, 98 दिल, 47 फेफड़े, छह पेंक्रियास व दो आंतों का प्रत्यारोपण हो चुका है। उत्तर प्रदेश में तीन वर्षों में महज सात शरीरदान ही हुए हैं और प्रत्यारोपण के पुख्ता बंदोबस्त न होने के कारण उनके सभी अंगों का प्रयोग भी नहीं किया जा सका।
...जबकि आसान हुए हैं नियम
शरीरदान को लेकर देश में उत्साह के पीछे नियमों की शिथिलता भी बड़ा कारण है। कुछ वर्षों में ब्रेन डेथ घोषित करने के नियम आसान हुए हैं। पहले इस प्रक्रिया में चार दिन लगते थे और शरीर को संभाल कर रखने में बेहद मुश्किलें आती थीं। बदली परिस्थितियों में दो डॉक्टरों का पैनल शरीर का परीक्षण कर ब्रेन डेथ घोषित कर सकता है। नियमों की शिथिलता के बावजूद चिकित्सकों व जनमानस को इस बारे में जानकारी ही नहीं है और ब्रेन डेथ घोषित करने के मामले में तत्परता नहीं आती है।
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डॉक्टरों को संभालनी होगी कमान
प्रमुख लिवर ट्रांसप्लांट सर्जन पद्मश्री डॉ.राजन सक्सेना कहते हैं कि प्रत्यारोपण कम होने के लिए चिकित्सक भी जिम्मेदार हैं। वे मरीजों को समय पर सही जानकारी ही नहीं देते। वास्तव में शरीरदान व प्रत्यारोपण के लिए प्रेरित करने की कमान डॉक्टरों को संभालनी होगी। वास्तव में डॉक्टर मरीजों के परिवारीजन को ब्रेन डेथ होने की स्थिति में समझाएं तो वे मान जाते हैं।
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भारत में शरीरदान से प्रत्यारोपण
अंग - 2012 -2013 -2014 -कुल
किडनी -362 -848  -720  -1628
लिवर  -153 -257  -354  -764
दिल   -19   -25   -54    -98
फेफड़े -9    -22   -16    -47
पैंक्रियास -1  -0     -5    -6
आंतें    -1   -0     -1     -2


बीएएमएस को मंजूरी नहीं, एमडी पर विवाद


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-लखनऊ व वाराणसी के अलावा किसी कालेज को मान्यता नहीं
-निजी आयुर्वेदिक कालेजों की परास्नातक प्रवेश परीक्षा आठ को
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : प्रदेश में आयुर्वेदिक शिक्षा की स्थिति सुधरने का नाम नहीं ले रही है। लखनऊ व वाराणसी के अलावा किसी भी कालेज में बैचलर ऑफ आयुर्वेद मेडिसिन एंड सर्जरी (बीएएमएस) की पढ़ाई को मान्यता न मिलने से पैदा हुए संकट का हल अभी खोजा नहीं जा सका था कि परास्नातक (एमडी) को लेकर विवाद खड़ा हो गया है।
देश भर में आयुर्वेदिक कालेजों के संचालन के लिए सेंट्रल काउंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन (सीसीआइएम) से अनुमति लेनी होती है। सीसीआइएम ने हर हाल में 31 अक्टूबर तक प्रवेश प्रक्रिया पूरी करने के निर्देश दिये हैं। इस बार यह प्रक्रिया अक्टूबर समाप्त होने के बात भी पूरी नहीं हो सकी है। बीएएमएस के लिए तो सीसीआइएम ने वाराणसी व लखनऊ आयुर्वेदिक कालेजों के अलावा किसी को मंजूरी ही नहीं दी है। मुजफ्फरनगर के आयुर्वेदिक कालेज को तो अमान्य ही घोषित कर दिया गया है और अन्य को मंजूरी न देकर वहां पूरी प्रक्रिया रोक दी है। मान्यता के अभाव में इन कालेजों में इस वर्ष प्रवेश नहीं हो सके हैं। सीपीएमटी की काउंसिलिंग भी पूरी हो चुकी है।
बीएएमएस की मंजूरी न मिलने से परेशान आयुर्वेद विभाग को सरकारी व निजी कालेजों में परास्नातक सीटों, एमडी पर प्रवेश को लेकर भी विवाद हो गया है। सरकारी कालेजों में एमडी (आयुर्वेद) में प्रवेश के लिए 26 अक्टूबर को प्रवेश परीक्षा हुई थी। इसका परिणाम निकालकर कालेज आवंटन तक की प्रक्रिया 31 अक्टूबर तक पूरी कर दी गयी, किन्तु अब इसे लेकर तमाम शिकायतें सामने आ रही हैं। प्रमुख सचिव से लेकर मुख्यमंत्री तक से की गयी शिकायतों में छात्र-छात्राओं ने प्रवेश परीक्षा में गलत सवाल व जवाब होने की शिकायत की है। इन लोगों ने परीक्षा रद करने की मांग भी की है। निजी कालेजों में प्रवेश के लिए 29 को प्रस्तावित परीक्षा को लेकर भी सवाल खड़े हुए तो वह परीक्षा ही रद कर दी गयी। आरोप लगे कि निदेशक ने जानबूझकर आयुर्वेद फार्मेसी में परीक्षा केंद्र बनवाया। उनकी बेटी के परीक्षार्थी होने की शिकायत तक शासन से की गयी। इसके बाद रद हुई परीक्षा अब आठ नवंबर को है। आयुर्वेद निदेशक डॉ.सुरेश चंद्र का कहना है कि उनकी बेटी विवाहित है और उनकी आश्रित नहीं है। फिर भी उन्होंने शासन को बताकर स्वयं को परीक्षा से दूर कर लिया था। संयुक्त निदेशक परीक्षा करा रहे हैं। अब विवाद होने पर उनकी बेटी परीक्षा में नहीं बैठ रही है। उन्होंने सरकारी कालेजों की प्रवेश परीक्षा में कोई गड़बड़ी होने से इनकार किया और कहा, सभी अभ्यर्थियों के आवेदनों का निस्तारण कर दिया गया है।
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Monday 2 November 2015

आबादी 20 करोड़, शरीरदान 20 भी नहीं


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-अंगदान अभियान-
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-दो साल में दोगुना से ज्यादा बढ़े देश में अंगदान के मामले
-उत्तर प्रदेश में शुरुआत तो हुई पर आंकड़ा सात पर अटका
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डॉ.संजीव, लखनऊ
उत्तर प्रदेश की आबादी 20 करोड़ है लेकिन वर्ष में 20 अंगदान भी नहीं होते हैं। बीते वर्ष यहां सिर्फ सात शरीरदान हुए, वह भी तब, जबकि इसके लिए तमाम अतिरिक्त कोशिशें की गयीं।
देश में अंग प्रत्यारोपण के लिए दो विधियां हैं। एक तो जीवित व्यक्ति के अंग लेकर उनका प्रत्यारोपण कराया जाता है। ऐसे दानदाताओं को लिविंग यानी जीवित डोनर कहा जाता है। इसके अंतर्गत अंगदाता को सामान्यत: अंग की आवश्यकता वाले व्यक्ति का रिश्तेदार होना जरूरी होता है और फिर अंग प्रत्यारोपण की अनुमति की प्रक्रिया भी खासी जटिल होती है। ऐसे में मस्तिष्क काम करना बंद कर देने (ब्रेन डेथ) या हृदय काम करना बंद कर देने (कार्डियक डेथ) की स्थिति में शरीर दान कर दिया जाता है। इसे अभी तक कैडबर डोनेशन कहा जाता था, किन्तु कैडबर से शव का भान होने के कारण अब इसे डिसीज्ड डोनेशन (बीमार या घायल शरीर का दान) कहा जाने लगा है।
लिविंग डोनेशन को लेकर तमाम समस्याएं व जटिलताएं सामने आने के कारण पूरी दुनिया में डिसीज्ड डोनेशन पर जोर है। भारत में भी इस दिशा में सक्रियता आई है किन्तु उत्तर प्रदेश इस मामले में फिसड्डी है। उत्तर प्रदेश की तुलना में एक तिहाई आबादी वाले तमिलनाडु में वर्ष 2014 में 136 लोगों ने शरीरदान किया है। इसके बाद 58 शरीरदानों के साथ केरल दूसरे और 52 के साथ महाराष्ट्र व आंध्रप्रदेश तीसरे स्थान पर है। छह करोड़ की आबादी वाले कर्नाटक व गुजरात राज्यों से भी क्रमश: 28 व 20 लोगों ने शरीरदान किया है, वहीं महज 13 लाख आबादी वाले पुडुचेरी में 13 और 11 लाख आबादी वाले चंडीगढ़ से छह लोगों ने वर्ष 2014 में शरीरदान किया है। उत्तर प्रदेश के लिए संतोष की बात बस यह हो सकती है कि जहां वर्ष 2012 व 2013 में यहां प्रत्यारोपण के लिए एक भी शरीर दान में नहीं मिला था, वर्ष 2014 में सात लोगों ने पहल की। इसके विपरीत राष्ट्रीय स्तर पर दो वर्षों में शरीरदान के प्रति रुझान बढ़ा और कुल मिलाकर शरीरदान करने वालों की संख्या दोगुने से अधिक हो गयी है। केरल ने सबसे तेज रफ्तार पकड़ी है, जहां वर्ष 2012 में महज 12 शरीरदान हुए थे, जो 2013 में बढ़कर 35 और फिर 2014 में बढ़कर 58 हो गए।
बनें प्रत्यारोपण हितैषी नियम
इंडियन सोसायटी ऑफ ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन के सचिव डॉ.नारायण प्रसाद के मुताबिक उत्तर प्रदेश में शरीरदान कम होने और अंग प्रत्यारोपण सीमित होने की बड़ी वजह प्रत्यारोपण हितैषी नियमों का न होना है। इसे बढ़ाने के लिए नए सिरे से नियम बनाने होंगे। प्रत्यारोपण के लिए प्रोत्साहन राशि के बारे में भी सोचा जाना चाहिए। साथ ही ब्रेन डेथ होने की स्थिति में अंगों को बचाए रखने के लिए पुख्ता इंतजाम किये जाने चाहिए। प्रत्यारोपण के लिए अंग को एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल ले जाने के लिए ग्र्रीन कॉरीडोर बनाने की राह भी पुख्ता की जानी चाहिए।
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शरीरदान की स्थिति
राज्य -2012 -2013 -2014
तमिलनाडु -83  -131 -136
केरल      -12  -35  -58
महाराष्ट्र   -29  -35  -52
आंध्रप्रदेश -13  -40  -52
कर्नाटक   -17  -18  -39
गुजरात    -18  -25  -28
दिल्ली     -12  -27  -20
पुडुचेरी    -00  -02  -13
उत्तर प्रदेश -00  -00  -07
चंडीगढ़    -12  -00  -06