Tuesday 17 November 2015

शरीरदान से ही खुलती मोक्ष की असली राह

यह अक्टूबर 1993 की बात है। मनोज और माधवी विवाह से पहले घर वालों की मर्जी से मिले थे। सामान्य बातों के बाद मनोज ने माधवी से कहा, देखो मैंने समाज को अपना जीवन समर्पित करने का फैसला लिया है, क्या तुम मेरा साथ दोगी। माधवी भला मना कैसे करतीं, पर दूसरी बात ने उन्हें चौंका दिया। मनोज ने कहा, समाज को पूरा समय देने के लिए हम आजीवन नि:संतान रहेंगे। माधवी अवाक सी रह गयीं। कुछ देर सन्नाटा रहा और आखिर में तय हुआ कि मनोज-माधवी विवाह तो करेंगे, किन्तु समाज को जीवन समर्पित कर देंगे। दैनिक जागरण के विशेष संवाददाता डॉ.संजीव से बातचीत में युग दधीचि देहदान अभियान के संयोजक मनोज सेंगर कहते हैं कि अब तो उनकी समाजसेवा यात्रा में शरीरदान ही सबसे बड़ा यज्ञ बन गया है। वे लोगों को समझाते हैं कि शरीरदान से ही मोक्ष की असली राह खुलती है और लोग उनके तर्कों को स्वीकार भी करते हैं।
-देहदान अभियान की शुरुआत कैसे हुई?
--आजाद हिंद फौज में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की सहयोगी रहीं मानवती आर्या के पति केसी आर्या का निधन 20 जनवरी 2003 को हुआ था। वे स्वयं अपने पति का शव लेकर मेडिकल कालेज पहुंचीं और देहदान किया। इस घटना ने मुझे हिलाकर रख दिया था। तब मैं कानपुर में ही गायत्री परिवार से जुड़ा था। एक कार्यक्रम के लिए तत्कालीन राज्यपाल आचार्य विष्णुकांत शास्त्री से मिलने गया, तो उनसे देहदान पर चर्चा हुई। उन्होंने इसे अभियान के रूप में शुरू करने को कहा। इसके बाद 15 नवंबर 2003 को 24 लोगों को आचार्य विष्णुकांत शास्त्री ने ही देहदान की शपथ दिलाई थी। उस दिन शपथ लेने वालों में से एक श्रीमती सोनदाई देवी का निधन होने पर 31 जनवरी 2010 को देहदान हुआ था।
-आज अभियान की क्या स्थिति है?
--इलाहाबाद, कन्नौज, इटावा, पीलीभीत, अम्बेडकर नगर, प्रतापगढ़, मेरठ, लखनऊ में कार्यक्रम हो चुके हैं। 2500 से अधिक लोग पंजीकरण करा चुके हैं। 145 देहदान हुए, जिन्हें कानपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, अम्बेडकर नगर, सैफई, आगरा मेडिकल कालेजों के साथ वर्धमान महावीर मेडिकल कालेज दिल्ली तक को सौंपा गया है।
-दिक्कतें क्या आयीं और कैसीं?
--कई बार परिजनों ने कहा कि यदि शरीर का अग्निदाह नहीं करेंगे तो ये भूत बन जाएंगे। लोगों ने कहा कि हमारे घरों में न घुसिये। कानपुर के साकेत नगर में एक देहदानी के निधन पर बाहरी रिश्तेदार विरोध में थे। उन्होंने हमें दौड़ा लिया। साथ ही अंगों के चीरफाड़ की संभावना का विरोध होता था।
-इन दिक्कतों का सामना कैसे किया?
--दधीचि के प्रसंग, ऋग्वेद के प्रसंगों व महाभारत काल के प्रयोगों से लोगों को जानकारी दी। महाभारत में सर्जरी के लिए शत्रुओं के मृत सैनिकों के शरीरों को संरक्षित करके उनसे प्रत्यारोपण होता है। सुश्रुत संहिता में भी इसके प्रमाण प्राप्त होते हैं। इन जानकारियों से लोगों को जागरूक किया। साथ ही देहदान संस्कार की शुरुआत की। इसमें शव की आरती के बाद परिक्रमा कराते हैं। फिर प्रार्थना और मंत्रों के साथ पुष्पांजलि कर शांति पाठ के बाद शव मेडिकल कालेज को सौंप दिया जाता है। इसके अलावा सेमिनार, नुक्कड़ नाटक आदि से फायदे गिनाए।
-भारतीय परंपराएं बाधक बनती हैं क्या?
--प्रारंभ में चितारोहण न होने से मोक्ष न होने की मान्यता सर्वाधिक बाधक बनी। इसके लिए हमने यह कहकर तैयार किया कि समाज कल्याण ही मोक्ष का रास्ता है। इसके अलावा किसी की आंख निकालने पर अगले जनम में अंधा होने जैसी मान्यताएं भी थीं। हमने तर्क दिया कि यदि आंख लेने से आंख नहीं मिलेगी तो शरीर लेने से शरीर नहीं मिलेगा, यही मोक्ष है। ऐसे तर्कों से ही समझाया जा सका।
-अब अंगदान अभियान की क्या तैयारी है?
--अंगदान अभियान की शुरुआत भी कानपुर से करेंगे। 45 लोग पंजीकरण करा चुके हैं। 19 नवंबर से चार दिवसीय कार्यक्रम शुरू होगा। 22 नवंबर को दोपहर 12 बजे अग्निकुंडों के समक्ष 108 लोग अंगदान करेंगे। केजीएमयू का अंग प्रत्यारोपण विभाग हमें ब्रेन डेथ व्यक्ति के शरीर को संरक्षित करने का भरोसा दिला चुका है।
-भविष्य की कार्य योजना क्या है?
--हम प्रदेश भर में इस आंदोलन को पहुंचाने के लिए दिसंबर से हर जिले के जिलाधिकारी व सीएमओ से मिलना शुरू करेंगे। मंडल स्तर पर युग दधीचि देहदान अभियान के नोडल सेंटर स्थापित करेंगे, ताकि लोग वहां पंजीकरण करा सकें। इसके बाद पूरे देश में काम फैलाएंगे। रांची से इस विस्तार की शुरुआत होगी। इसके अलावा मुस्लिम व ईसाई धर्मगुरुओं से मिलना शुरू किया है, ताकि उनके समर्थन से अभियान को विस्तार दिया जा सके।
-कोई अंगदान करना चाहे तो कहां संपर्क करे?
-कानपुर में मुझसे 9839161790, लखनऊ में शिशुपाल सिंह गौर से 9450917473, आगरा में मुकेश सिंह से 9359665560, कन्नौज में विनय दुबे से 9415146801, इलाहाबाद में जीएस शाक्य से 9198096437, मेरठ में कृष्णकुमार गर्ग से 9927001063, पीलीभीत में अमृत लाल अग्र्रवाल से 9837009375, बदायूं में डॉ.विष्णु प्रकाश मिश्र से 9411842001 व प्रतापगढ़ में अतुल खंडेलवाल से 9452887234 पर संपर्क किया जा सकता है। इसके अलावा शरीरदान के पश्चात अंगदान संरक्षण संबंधी किसी जानकारी के लिए किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के डॉ.मनमीत सिंह भी सहयोग को तत्पर रहते हैं। उनसे उनके मोबाइल नंबर 9792957585 पर बात की जा सकती है। 

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