Thursday 5 November 2015

एसजीपीजीआइ के सहारे छोड़ा जीवन यज्ञ


-अंगदान अभियान-
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-गुर्दा प्रत्यारोपण के लिए ही एक साल की प्रतीक्षा सूची
-लिवर व दिल प्रत्यारोपण विशेषज्ञता का पूरा उपयोग नहीं
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डॉ.संजीव, लखनऊ : प्रदेश में प्रत्यारोपण के सहारे 'जीवनÓ देने का 'यज्ञÓ पूरी तरह से संजय गांधी परास्नातक आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआइ) के सहारे है। यही कारण है कि वहां गुर्दा प्रत्यारोपण के लिए ही एक साल की प्रतीक्षा सूची है। लिवर व दिल प्रत्यारोपण विशेषज्ञता का पूरा उपयोग ही नहीं हो पा रहा है।
अंग प्रत्यारोपण से तमाम लोगों को जीवन दिया जाना संभव है। लेकिन अंग प्रत्यारोपण के लिए पर्याप्त केंद्र विकसित न किये जाने के कारण पूरा बोझ राजधानी लखनऊ स्थित संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान पर डाल दिया गया है। यहां गुर्दा व यूरोलॉजी विभाग संयुक्त रूप से संचालित होता है और प्रत्यारोपण का काम अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप किया जाता है। यहां गुर्दे के साथ दिल, फेफड़ों व लिवर प्रत्यारोपण के विशेषज्ञ चिकित्सक हैं किन्तु अत्यधिक लोड होने के कारण यह संस्थान भी महज गुर्दा प्रत्यारोपण तक सीमित होकर रह गया है। गुर्दा प्रत्यारोपण के लिए इतनी लंबी लाइन है कि एक साल तक की प्रतीक्षा सूची बनी हुई है। ऐसे में अन्य प्रत्यारोपण कभी-कभार ही हो पाते हैं।
बीएचयू व केजीएमयू में बंद
अंगप्रत्यारोपण को लेकर शासन व प्रशासन के स्तर पर गंभीर प्रयास न होने के कारण यहां प्रत्यारोपण बढऩे के बजाय घटने की स्थिति है। बीएचयू से संबद्ध अस्पताल में पिछले वर्ष तक प्रत्यारोपण होते थे, किन्तु अब बंद हो गए। यहां जो चिकित्सक प्रत्यारोपण करते थे, वे दिल्ली चले गए और उनके जाने के बाद कोई वैकल्पिक प्रबंध किये ही नहीं गए। लखनऊ की किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में  प्रत्यारोपण विभाग शुरू किया गया था, किन्तु वह प्रभावी नहीं साबित हुआ। वहां प्रत्यारोपण शुरू होकर बंद हो गए। चिकित्सक की कमी इस समस्या का कारण मानी जा रही है। राजधानी के ही लोहिया संस्थान को अब भले ही उच्च स्तरीय मेडिकल कालेज में तब्दील करने की तैयारी हो रही हो, सभी सुपरस्पेशियलिटी विभाग भी कार्यरत हैं, ऑपरेशन थियेटर से लेकर अन्य सुविधाएं भी उच्च स्तरीय हैं, किन्तु प्रत्यारोपण शुरू तक नहीं हुए।
मेडिकल कालेजों में पहल नहीं
चिकित्सकों का मानना है कि आगरा, कानपुर, इलाहाबाद, मेरठ मेडिकल कालेजों में आधारभूत ढांचा उपलब्ध है, बस वहां थोड़ी कोशिशों से प्रत्यारोपण शुरू किया जा सकता है। कानपुर मेडिकल कालेज से संबद्ध हृदय रोग संस्थान एक अलग सुपरस्पेशियलिटी संस्थान है। वहां परास्नातक के बाद अतिविशिष्टता वाली एमसीएच तक की पढ़ाई भी होती है किन्तु प्रत्यारोपण सुविधा की पहल ही नहीं की जा रही है।  
अन्य संस्थान भी आगे आएं
संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान के निदेशक डॉ.राकेश कपूर कहते हैं कि सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं आसपास के राज्यों और नेपाल, बांग्लादेश तक से मरीज एसजीपीजीआइ में आते हैं। ऐसे में प्रतीक्षा सूची बनना स्वाभाविक है। बावजूद इसके हम हर वर्ष औसतन 130 से 150 गुर्दा प्रत्यारोपण कर लेते हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि संस्थान में निर्माणाधीन ट्रांसप्लांट सेंटर शुरू हो जाने के बाद न सिर्फ अन्य अंगों के प्रत्यारोपण को रफ्तार मिलेगी, बल्कि गुर्दा प्रत्यारोपण की संख्या भी बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि प्रदेश के कई अन्य संस्थानों को भी प्रत्यारोपण केंद्रों के रूप में विकसित करने की क्षमता है। यदि उनमें आधारभूत ढांचा मुहैया कराकर प्रत्यारोपण शुरू कर दिया जाए तो स्थितियां सुधर सकती हैं। प्रदेश में अंग प्रत्यारोपण का वातावरण बनाने की भी पहल होनी चाहिए ताकि लोग अधिक से अधिक संख्या में आगे आ सकें।

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