Tuesday 3 November 2015

हर आठ मिनट में मिल सकता दस को जीवन


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-अंगदान अभियान-
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-स्पेन में हर दुर्घटनाग्र्रस्त शरीर पर सरकार का अधिकार
-जीवित दानदाता न मिलने का संकट भी हो सकता दूर
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डॉ.संजीव, लखनऊ : भारत में हर आठ मिनट में मार्ग दुर्घटना में मृत्यु होती है। यदि स्पेन की तर्ज पर कानून बनाकर इन सभी शवों को सरकार को सौंप दिया जाए तो दस लोगों को जीवन मिल सकता है। इससे जीवित दानदाता न मिलने का संकट भी दूर हो सकता है।
स्पेन में मार्ग दुर्घटना के बाद ब्रेन डेथ घोषित हर व्यक्ति का शरीर सरकार की संपत्ति का होता है। इससे अंग दान कर वहां एक ब्रेन डेथ शरीर से दस लोगों की जान बचाई जाती है। भारत में भी हर आठ मिनट में एक मार्ग दुर्घटना होती है, जिसके बाद अस्पताल या ट्रामा सेंटर पहुंचे मरीजों की मृत्यु होने पर वे पहले ब्रेन या कार्डियक डेथ की स्थिति में होते हैं। एक ब्रेन डेथ शरीर से दो आंखें, दो किडनी, एक लीवर, दो फेफड़े, एक दिल, एक पैंक्रियास व एक आंत का प्रत्यारोपण कर दस लोगों को नई जिंदगी दी जा सकती है। उत्तर प्रदेश में अंग प्रत्यारोपण की स्थिति बेहद चिंताजनक कही जाए, तो यह अतिशयोक्ति न होगी। उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक गुर्दा प्रत्यारोपण होते हैं, किन्तु उनमें भी लिविंग डोनर ही ज्यादा होते हैं। गुर्दा प्रत्यारोपण के मामले में भी लिविंग डोनर मिलने में दिक्कत आती है। मधुमेह के कारण किडनी सर्वाधिक खराब होती हैं और ऐसे में जब गुर्दा प्रत्यारोपण के लिए दानदाता की पड़ताल शुरू होती है, तो कई बार घर में सभी की किडनी पूरी तरह स्वस्थ नहीं मिलती। चिकित्सकों के मुताबिक 40 से 50 फीसद मामलों में ऐसा ही होता है। यदि अंगदान का वातावरण बने और लोग आगे आएं तो हालात बदल सकते हैं। अभी तो यहां शरीरदान की ठीक से शुरुआत ही नहीं हुई है, जबकि भारत के अन्य राज्यों में यह तेजी पकड़ चुकी है। तीन वर्षों में शरीरदान की बदौलत देश में 1628 किडनी, 764 लिवर, 98 दिल, 47 फेफड़े, छह पेंक्रियास व दो आंतों का प्रत्यारोपण हो चुका है। उत्तर प्रदेश में तीन वर्षों में महज सात शरीरदान ही हुए हैं और प्रत्यारोपण के पुख्ता बंदोबस्त न होने के कारण उनके सभी अंगों का प्रयोग भी नहीं किया जा सका।
...जबकि आसान हुए हैं नियम
शरीरदान को लेकर देश में उत्साह के पीछे नियमों की शिथिलता भी बड़ा कारण है। कुछ वर्षों में ब्रेन डेथ घोषित करने के नियम आसान हुए हैं। पहले इस प्रक्रिया में चार दिन लगते थे और शरीर को संभाल कर रखने में बेहद मुश्किलें आती थीं। बदली परिस्थितियों में दो डॉक्टरों का पैनल शरीर का परीक्षण कर ब्रेन डेथ घोषित कर सकता है। नियमों की शिथिलता के बावजूद चिकित्सकों व जनमानस को इस बारे में जानकारी ही नहीं है और ब्रेन डेथ घोषित करने के मामले में तत्परता नहीं आती है।
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डॉक्टरों को संभालनी होगी कमान
प्रमुख लिवर ट्रांसप्लांट सर्जन पद्मश्री डॉ.राजन सक्सेना कहते हैं कि प्रत्यारोपण कम होने के लिए चिकित्सक भी जिम्मेदार हैं। वे मरीजों को समय पर सही जानकारी ही नहीं देते। वास्तव में शरीरदान व प्रत्यारोपण के लिए प्रेरित करने की कमान डॉक्टरों को संभालनी होगी। वास्तव में डॉक्टर मरीजों के परिवारीजन को ब्रेन डेथ होने की स्थिति में समझाएं तो वे मान जाते हैं।
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भारत में शरीरदान से प्रत्यारोपण
अंग - 2012 -2013 -2014 -कुल
किडनी -362 -848  -720  -1628
लिवर  -153 -257  -354  -764
दिल   -19   -25   -54    -98
फेफड़े -9    -22   -16    -47
पैंक्रियास -1  -0     -5    -6
आंतें    -1   -0     -1     -2


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