Wednesday 4 November 2015

प्रत्यारोपण संकट से बढ़ रहे बीमार


-----------
अंगदान अभियान
-----------
-हर वर्ष हजारों लोगों की जाती जान

डॉ.संजीव, लखनऊ : उत्तर प्रदेश में अंग प्रत्यारोपण के पुख्ता इंतजाम न होने से बीमारों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। चिकित्सकों के अनुसार इस कारण हजारों लोगों की जान भी चली जाती है।
चिकित्सा विज्ञान की क्रांति भारत में दस्तक दे चुकी है, किन्तु उत्तर प्रदेश में वह प्रभावी साबित नहीं हो रही है। चिकित्सकों के मुताबिक प्रदेश में प्रत्यारोपण के मरीजों की संख्या हर साल बढ़ती जाती है। यहां नीतिगत कमियों के कारण मरीज वैकल्पिक उपचार के सहारे रहते हैं और प्रत्यारोपण न हो पाने के कारण उनकी मौत हो जाती है। इस मामले में उत्तर प्रदेश अन्य राज्यों से सीखने की कोशिश भी नहीं कर रहा है। सिर्फ तमिलनाडु में ही 40 अस्पतालों में प्रत्यारोपण होता है। यहां इस पर ध्यान न दिए जाने के कारण अच्छे चिकित्सक भी नहीं रुकते हैं। आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु सहित कुछ राज्यों ने तो अतिविशिष्टता (डीएम, एमसीएच आदि) की पढ़ाई करने के बाद कम से कम दो वर्ष तक उसी राज्य में सेवा करने की शर्त तक लगा रखी है। इसके विपरीत उत्तर प्रदेश में यदि कोई ट्रांसप्लांट सर्जन रुकना चाहे, तो उसे सुविधाएं ही नहीं मिलतीं। इसका खामियाजा मरीजों को उठाना पड़ता है।
4000 गुर्दे बदलने की नौबत
चिकित्सकीय आकलन के अनुसार उत्तर प्रदेश में हर वर्ष एक लाख लोगों के गुर्दे किसी न किसी बीमारी के शिकार बनते हैं। इनमें से चार हजार लोगों को गुर्दा प्रत्यारोपण की जरूरत होती है। इसके विपरीत दस फीसद भी उपलब्धता न होने के कारण लोग डायलिसिस पर रहने को विवश हैं। ऐसे में गुर्दों की जरूरत हर साल बढ़ती जाती है।
6000 दिलों-फेफड़ों की जरूरत
प्रदेश में प्रत्यारोपण के लिए हर वर्ष औसतन छह हजार दिलों-फेफड़ों की जरूरत होती है। इसके विपरीत प्रदेश में दिल या फेफड़ों के प्रत्यारोपण की व्यवस्था न होने से बेहद दिक्कत होती है। चिकित्सकों के मुताबिक गुर्दा रोगियों को तो डायलिसिस के सहारे जिंदा रखा जा सकता है किन्तु दिल के प्रत्यारोपण वाले मरीजों की तो बस इस इंतजार में मौत ही हो जाती है।
चाहिए सबसे ज्यादा लिवर
चिकित्सकों के मुताबिक लिवर खराब होने की समस्या सर्वाधिक चिंताजनक स्थिति में है। हर वर्ष औसतन 15 हजार मरीजों के लिवर प्रत्यारोपण की स्थिति में होते हैं। इनके प्रत्यारोपण की व्यवस्था न होने से बेहद दिक्कत होती है। कई मरीज तो बिना जाने ही मौत के मुंह में समा जाते है।
श्रीलंका तक जाते मरीज
अंग प्रत्यारोपण की प्रक्रिया बेहद महंगी भी है। गुर्दा प्रत्यारोपण पर सामान्यत: पांच लाख, दिल व फेफड़ा प्रत्यारोपण पर दस लाख व लिवर प्रत्यारोपण पर 15 लाख रुपये तक खर्च होता है। उत्तर प्रदेश में व्यवस्था न होने के कारण अंग प्रत्यारोपण के मरीज श्रीलंका तक जाते हैं। इसके अलावा दिल्ली, हरियाणा के कुछ निजी अस्पतालों में भी प्रत्यारोपण की कतारें लगी रहती हैं।
बने अस्पतालों का नेटवर्क
प्रमुख हृदय प्रत्यारोपण विशेषज्ञ डॉ.एसके अग्रवाल का मानना है कि अभी सबसे बड़ी समस्या मरीजों को मझधार में छोड़ देने की है। हमें जागरूकता बढ़ाने पर जोर देना होगा। इसके अलावा सभी अस्पतालों का नेटवर्क बनाया जाना जरूरी है। इससे जरूरतमंदों की सूची बनाने में तो आसानी होगी ही, अंगदान करने वालों को भी सूचीबद्ध किया जा सकेगा। इसके अलावा अस्पतालों को भी अपने आपको प्रत्यारोपण के लिए तैयार करना होगा। सरकार इसमें मदद करे, ताकि बिना इलाज जान गंवाने वाले मरीजों को बचाया जा सके।

No comments:

Post a Comment