Thursday 18 April 2019

राजनीति नहीं देखती हवा में घुलता जहर



डॉ.संजीव मिश्र
लोकसभा चुनाव की इस मारामारी के बीच भारत के लिए एक चौंकाने वाली खबर आयी है। अमेरिका के जार्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय की एक टीम ने भारत सहित पूरी दुनिया के 125 प्रमुख शहरों में वाहन जनित प्रदूषण के परिणामों पर शोध किया है। इस शोध के निष्कर्ष खतरनाक संदेश लिए हुए हैं। हमारे देश के बच्चे लगातार हवा में घुलते जहर के प्रकोप का शिकार हो रहे हैं, और राजनीति को इसकी कोई परवाह ही नहीं है। गंगा सहित नदियों के प्रदूषण पर बड़ी-बड़ी बातें करने वाली राजनीति इस मसले पर मौन है। मंदिर से लेकर कश्मीर तक की चिंता के बीच किसी राजनीतिक दल की चिंता में वायु प्रदूषण नहीं हैं। सवाल यही है कि आखिर राजनीति को कब दिखेगा हवा में घुलता यह जहर?
देश में इस समय सरकार को लेकर हर नुक्कड़ पर चर्चा हो रही है। चौराहों पर चर्चा के बीच सड़क पर उड़ता धुआं इन चर्चाओं का हिस्सा नहीं बन पा रहा है। क्या आपने सुना है कि लोकसभा चुनाव लड़ रहा कोई प्रत्याशी कभी अपने भाषण में यह कहे कि वह अपने संसदीय क्षेत्र को वायु प्रदूषण और उससे हो रही बीमारियों से मुक्ति दिलाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान 2014 में जब वाराणसी चुनाव लड़ने पहुंचे तो उन्हें ‘मां गंगा ने बुलाया था’। मां गंगा की पुकार पर नमामि गंगे जैसा व्यापक अभियान भी चलाया गया किन्तु वायु प्रदूषण पर प्रभावी अंकुश की कोई कोशिश नहीं हुई। इसी तरह पिछली सरकारों ने गंगा कार्य योजना पर अरबों रुपये खर्च कर दिये, किन्तु वायु प्रदूषण पर नियंत्रण की कोई कार्ययोजना नहीं बनाई गयी। वाहनों के मानकों पर आगे बढ़ने की मशक्कत के बीच भी उनके कारण हो रहे प्रदूषण पर प्रभावी रोकथाम आज तक सुनिश्चित नहीं हो सकी है।
चर्चित मेडिकल जर्नल ‘द लैंसेट’ में इसी दस अप्रैल को प्रकाशित आंकड़े चौंकाने वाले हैं। ये आंकड़े बताते हैं कि जहरीली हवाओं के कारण हमारा बचपन संकट में है। लैंसेट के इस शोध प्रबंध के मुताबिक यूं तो पूरी दुनिया में बच्चे वायु प्रदूषण सहित अन्य कारणों से होने वाले अस्थमा के शिकार हैं, किन्तु भारत जैसे देशों में वायु प्रदूषण के कारण होने वाला अस्थमा खतरनाक स्थितियों में पहुंच रहा है। लगातार बढ़ते वाहनों के कारण नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड तेजी से हवा को जहरीला बना रही है। इस कारण बच्चों में अस्थमा तेजी से बढ़ रहा है। अस्थमा के नए शिकार भी बच्चे ही ज्यादा जल्दी बनते हैं। जहरीली हवाओं के कारण बच्चों में सर्वाधिक अस्थमा के मामले में भारत चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। चीन में जहां हर साल साढ़े सात लाख के आसपास नए बच्चे अस्थमा के शिकार बन रहे हैं, वहीं भारत में यह संख्या प्रति वर्ष साढ़े तीन लाख के ऊपर है। दुनिया में सर्वाधिक बच्चों को सहेजे भारत में नए बच्चों का इस तेजी से अस्थमा का शिकार बनना चिंताजनक है, पर सरकारों का इस ओर ध्यान ही नहीं जाता।
आंकड़े गवाही देते हैं कि भारत का हर बड़ा शहर बच्चों के लिए खतरनाक बनता जा रहा है। नई दिल्ली, अहमदाबाद, बंगलौर, मुंबई, हैदराबाद, पुणे, सूरत, चेन्नई, जयपुर, कोलकाता, लखनऊ, कानपुर व वाराणसी दुनिया के उन 125 शहरों में शामिल हैं, जहां वायु प्रदूषण के कारण बच्चों में अस्थमा तेजी से फैल रहा है। इन शहरों में हर एक हजार बच्चों में से कम से दो बच्चे तो हर साल अस्थमा के नए मरीज बन ही जाते हैं। कुल नए अस्थमा पीड़ित बच्चों में से इन शहरों की हिस्सेदारी अलग-अलग 25 से 30 फीसद के बीच है। पूरी दुनिया की तुलना में भी भारत की हिस्सेदारी कुछ कम नहीं है। पूरी दुनिया में वायु प्रदूषण के कारण बच्चों को होने वाले अस्थमा में 14 फीसद बच्चे भारतीय होते हैं। ये आंकड़े तो सिर्फ यातायात जनित प्रदूषण के कारण बच्चों में हो रहे अस्थमा की गवाही दे रहे हैं। सामान्य स्थितियों तो और खतरनाक हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय के स्तर पर राष्ट्रीय कार्यक्रम की शुरुआत तो हुई किन्तु प्राथमिक ही नहीं, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र स्तर तक पर जांच की सुविधा नहीं है। हाल ये हैं कि वायु प्रदूषण जनित बीमारियों की चपेट में आने पर सबसे जरूरी जांच स्पाइरोपेट्री सभी सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध नहीं है। कहीं यदि स्पाइरोमीटर हैं तो जांच करने वाले विशेषज्ञों की अनुपलब्धता संकट बनती है।
पूरी दुनिया में भारत की आबो-हवा को लेकर सवाल खड़े किये जा रहे हैं। इसके बावजूद भारतीय राजनीतिज्ञों की गंभीरता इस ओर दिखाई नहीं पड़ रही है। देश के दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों के एजेंडे में पूरा प्रदूषण महज गंगा तक सिमट गया है। जलवायु परिवर्तन की चुनौती पूरी दुनिया को परेशान कर रही है। विकसित देशों से लेकर विकासशील व विकास के लिए संघर्षरत देशों तक की प्राथमिकताओं में यह मुद्दा है, किन्तु भारतीय राजनीति की प्राथमिकताएं ही अलग हैं। मंदिर-मस्जिद, जाति-धर्म, देश-प्रदेश की तमाम चर्चाओं के बीच जानलेवा बीमारियों का कारण बन रहा वायु प्रदूषण चर्चा तक में नहीं है। नए मेडिकल कालेज बनाने से लेकर अस्पताल खोलने की बातें चुनाव घोषणा पत्र व संकल्प पत्र का हिस्सा हैं किन्तु मौजूदा अस्पतालों में चिकित्सकों, विशेषज्ञों व उपकरणों आदि के प्रबंध की कार्ययोजना कहीं नहीं दिख रही है। देश में लंबे समय से ऐसे रोगों के लिए अलग नीति व नियोजन की मांग की जा रही है किन्तु राजनीतिक नेतृत्व पर इन मांगों का कोई असर नहीं दिख रहा है। दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह भी है कि नेताओं का इलाज कर तमाम सम्मान बटोर लेने वाले डॉक्टर व उनकी संस्थाएं भी अपने राजनीतिक संपर्कों का प्रयोग देश के एजेंडे में सुधार के लिए नहीं कर रही हैं। ऐसे में जरूरी है कि जनता वोट मांगने आने वालों से सवाल करे, ताकि वे लोग बच्चों से बड़ों तक की सेहत के बारे में सोचने पर विवश हों।

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