डॉ. संजीव मिश्र
वह बच्ची बस ढाई साल की थी। तोतली बोली में वह ‘ट्विंकल ट्विंकल
लिटिल स्टार’ गाती तो घर वाले ही नहीं, आसपास के लोग भी उसकी तारीफ किये बिना नहीं
रहते थे। उसका नाम भी ट्विंकल ही था, ट्विंकल यानी टिमटिमाहट। इस छोटे से तारे की
टिमटिमाहट अभी परवान चढ़ती कि कुछ दरिंदों की नजर उस पर पड़ गयी और उन्होंने
ट्विंकल की सारी चमक छीन ली। अलीगढ़ की ट्विंकल ही नहीं, जिस तरह पूरे देश में
बच्चियों के साथ अपहरण व बलात्कार की घटनाएं हो रही हैं, उससे साफ है कि देश में
बच्चियां सुरक्षित नहीं हैं। लोग बच्चियों पर मनमाने ढंग से हमले कर रहे हैं और
पुलिस या सरकार का डर खत्म हो गया है। वही डर, जिसे लोग पुलिस या सत्ता के इकबाल
के नाम से जानते हैं। देश में लगातार बढ़ रही ऐसी घटनाएं, सत्ता के पहरेदारों से
बस यही विनती कर रही हैं कि अब तो जागिये और अपना इकबाल कायम कीजिए हुजूर।
भारत वह देश है, जहां हम ‘यत्र नार्यस्यु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र
देवता’ की पंक्तियों के साथ महिलाओं के पूजनीय होने का दावा करते हैं। नवरात्र के
दिनों में कन्यापूजन की होड़ सी लगती ही। इसी देश में बच्चियों के साथ हो रहे
अपराध कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की रिपोर्ट
के अनुसार बच्चों के खिलाफ अपराध में हर वर्ष औसतन दस प्रतिशत की वृद्धि हो रही
है। आंकड़ों के मुताबिक 2014 की तुलना में 2016 में बच्चों के साथ अपराध में 20
फीसद की वृद्धि हुई है। सिर्फ 2016 में ही बच्चों के खिलाफ यौन उत्पीड़न के 36022
मामले दर्ज हुए, जिनमें से 19765 बच्चियों के साथ बलात्कार की घटनाएं हुई थीं। इसी
वर्ष देश में 54 हजार से अधिक बच्चों का अपहरण हुआ, जिनमें से 222 की हत्या भी कर
दी गयी। यहां दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि बच्चों के खिलाफ अपराध के मामले में समग्र
रूप से अपराध दर के हिसाब से देश की राजधानी दिल्ली अव्वल नंबर पर है। वह राजधानी
जहां चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा बंदोबस्त के दावे होते हैं, वह दिल्ली जहां की पुलिस
खुद को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ पुलिस होने का दावा करती है, वहां बच्चे सर्वाधिक
असुरक्षित हैं और साहब लोगों का इस ओर ध्यान ही नहीं जाता है।
राजधानी दिल्ली की असुरक्षा को लेकर तो आए दिन सवाल उठते ही रहते हैं
किन्तु बच्चों के साथ अपराध के मामले में अन्य राज्य पीछे नहीं हैं। यदि बच्चों के
साथ होने वाली आपराधिक घटनाओं में हिस्सेदारी को आधार बनाया जाए तो उत्तर प्रदेश व
महाराष्ट्र अव्वल नजर आते हैं। यौन उत्पीड़न व ऐसी ही अन्य समस्याओं से पीड़ित
बच्चों में से 15 प्रतिशत उत्तर प्रदेश के, तो 13.6 प्रतिशत महाराष्ट्र के हैं।
उत्तर प्रदेश का ही उदाहरण लें तो अलीगढ़ में ट्विंकल के साथ हुई घटना ने जहां
पूरे देश को झकझोर दिया, वहीं इस घटना के 72 घंटे के भीतर बाराबंकी में आठ साल,
बरेली में सात साल, हमीरपुर में दस साल, अमरोहा में पांच साल, वाराणसी में नौ साल
व मेरठ में 11 साल की बच्ची के साथ यौन उत्पीड़न के मामले सामने आए हैं। इसके
अलावा लगभग रोज कहीं न कहीं बच्चियों के साथ यौन उत्पीड़न, बलात्कार व हत्या की
घटनाएं हो रही हैं। हाल ही में चुनाव के दौरान बच्चियों की सुरक्षा के बड़े-बड़े
दावे व वादे तो किये गए किन्तु चुनाव के बाद इस दिशा में कोई सकारात्मक पहल होती
दिखाई नहीं दे रही है। पुलिस व सरकार का डर ही मानो खत्म हो गया है। लोग बेखौफ
होकर अपराध करते हैं और ऐसी घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं।
पुलिस व सरकार का खौफ कम होने के पीछे मामलों के
निस्तारण में होने वाला विलंब बड़ा कारण माना जाता है। यौन उत्पीड़न के 60 हजार से
अधिक मामले पुलिस की फाइलों में दबे हैं। सिर्फ बच्चियों से बलात्कार के ही 35
हजार से अधिक मामले अभी तक जांच के स्तर पर लंबित हैं। इन सबको न्याय तभी मिलेगा,
जब समयबद्ध जांच होगी। बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों पर त्वरित कार्रवाई
उन्हीं मामलों में होती है, जो मामले किसी न किसी तरह सामाजिक चर्चा में आ जाते
हैं। दिल्ली का निर्भया कांड इसका बड़ा उदाहरण है, जिसके बाद कानून बदलने तक की
नौबत आ गयी थी। अब ट्विंकल हत्याकांड के बाद एक बार फिर देश में चर्चाएं तेज हैं
किन्तु जब तक पुलिस सख्त नहीं होगी, सरकारें गंभीर नहीं होंगी, उनका इकबाल कायम नहीं
हो सकेगा। अपराधी बेखौफ घूमेंगे और बच्चे डरे-सहमे रहेंगे।
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