Wednesday 26 June 2019

बुखार का इंतजार, कुपोषण की भरमार


डॉ.संजीव मिश्र
बिहार में बुखार से हो रही मौतें सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुकी हैं, तो पड़ोसी उत्तर प्रदेश में खतरनाक संकेत सामने आने लगे हैं। हर साल इन मौतों से मुक्ति के बड़े-बड़े वादे होते हैं किन्तु लोकतंत्र मानो बुखार का इंतजार करता है। इस इंतजार के बीच ही भारतीय बच्चों में कुपोषण की भरमार का मामला भी मुखर रूप से सामने आ रहा है। कुपोषित बच्चों के मामले में हम दुनिया में अव्वल हैं और कुपोषित बच्चों की घटती प्रतिरोधक क्षमता उनके अंदर बुखार से जूझने की शक्ति कम कर उसे जानलेवा बना देती है।
पिछले कई दिनों से लोकतंत्र के सभी खंभे बुखार की तपिश में डूबे से नजर आ रहे हैं। राजनीति अचानक सक्रिय हो गई है, नौकरशाही रिपोर्ट-दर-रिपोर्ट बनाने में व्यस्त है, मीडिया आईसीयू तक बिना ग्लब्स-मास्क के घुस चुका है और अब मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच गया है। यह सब पहली बार हो रहा हो, ऐसा नहीं है। हर साल ऐसे ही लोकतंत्र के चारो स्तंभ सक्रिय नजर आते हैं। बच्चों को बुखार आता है, वे मरते हैं और उनके परिजनों के साथ लोकतंत्र चीखता नजर आता है। यह चीख-पुकार मृत्यु के उस क्रंदन की तरह कुछ दिनों में बंद हो जाती है, जिस तरह चिता को मुखाग्नि देने के बाद लोग अपने घरों को लौट जाते हैं और रोने वाले रह जाते हैं बस मृतक के कुछ परिजन। बिहार में चमकी बुखार से हुई मौतों पर संग्राम चल ही रहा था, कि पूर्वी उत्तर प्रदेश से इंसेफेलाइटिस के मामले सामने आने लगे हैं। यहां 1978 से हर साल जापानी इंसेफेलाइटिस जानलेवा रूप में सामने आता है। हर साल बड़ी-बड़ी बातें होती हैं, सैकड़ों की संख्या में बच्चे मरते हैं और फिर अगले साल मौतों का इंतजार शुरू हो जाता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के 38 जिले इंसेफेलाइटिस से पीड़ित हैं और ज्यादातर मरीज गोरखपुर पहुंचते हैं, वहीं बिहार का मुजफ्फरपुर चमकी बुखार का केंद्र बनता है। इन दोनों जिलों में एम्स की स्थापना से लेकर तमाम घोषणाएं हो चुकी हैं और जनता इलाज के साथ घोषणाओं पर अमल का भी इंतजार कर रही है।
बुखार के कारण हो रही इन मौतों को लेकर तमाम शोध भी हो रहे हैं। इन शोधों में एक बात मुखर रूप में सामने आ रही है कि बच्चों में कुपोषण इस समस्या की जड़ में है। कुपोषण को लेकर भारत के लिए बेहद चिंताजनक खबर भी सामने आ रही है। हाल ही में आई ग्लोबल न्यूट्रीशन रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया के कुल कुपोषित बच्चों में लगभग एक तिहाई भारत में ही हैं। राष्ट्रीय पोषण मिशन के रूप में इस समस्या के समाधान के लिए की जा रही सरकारी कोशिशें प्रभावी साबित नहीं हो रही हैं, यह बात भी इस रिपोर्ट से पुष्ट हो रही है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत के साढ़े चार करोड़ से अधिक बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। यह संख्या पूरी दुनिया के कुल कुपोषित बच्चों में तीस प्रतिशत के आसपास है। दुनिया भर से कुपोषण की तमाम तस्वीरें सामने आती हैं, जिनमें अक्सर नाइजीरिया के बच्चों की तस्वीरों पर फोकस किया जाता है। इस रिपोर्ट कुछ और ही सच्चाई बयां कर रही है। इस रिपोर्ट के मुताबिक कुपोषण के मामले में हम नाइजीरिया से भी आगे हैं। नाइजीरिया के लगभग डेढ़ करोड़ बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। पाकिस्तान के आर्थिक संकट से जूझने की खबरें हमें अक्सर पढ़ने-सुनने को मिलती हैं, किन्तु इस सूची में पाकिस्तान तीसरे स्थान पर है, जहां के लगभग एक करोड़ बच्चे कुपोषण से जूझ रहे हैं।
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च भी कुपोषण को लेकर चिंतित है और बुखार के कारण बिहार व पूर्वी उत्तर प्रदेश में हो रही मौतों के पीछे कुपोषण को भी एक कारण मानकर शोध कर रही है। वैसे ग्लोबल न्यूट्रीशन रिपोर्ट हमें कठोर चेतावनी भी दे रही है। रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि भारत एक गंभीर कुपोषण संकट से जूझ रहा है। कुपोषण बच्चों के विकास में सबसे बड़ा बाधक साबित हो रहा है। बच्चों का विकास अपनी आयु के हिसाब से नहीं हो रहा है। न तो वे उम्र के अनुपात में लंबे हो रहे हैं, न ही उनका मानसिक विकास ठीक से हो पा रहा है। कुपोषण के चलते उनकी प्रतिरोधक क्षमता विकसित नहीं हो पाती और वे बार-बार संक्रमण का शिकार बन जाते हैं। भारत में पांच साल से कम आयु के 40 प्रतिशत से अधिक बच्चे कुपोषण के शिकार हैं और इसके पीछे गरीबी व अज्ञानता तो बड़ा कारण है ही, इन तथ्यों को नजर-अंदाज किये जाने से भी संकट बढ़ रहा है। इससे देश की उत्पादकता व बौद्धिक क्षमता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की बात कही गयी है। ऐसे में अब जब बुखार देश की चर्चा के केंद्र मैं है, लोकतंत्र के सभी स्तंभों की सक्रियता से उम्मीदों की लौ टिमटिमा रही है। सरकारें तत्पर हैं और हर साल की तरह इस साल भी कुछ ठोस होने की उम्मीद जगी है। इस दिशा में कितना ठोस काम हो सका है, यह तो अगले साल ही पता चलेगा। इतना जरूर है कि बच्चों की चिंता पर शोर से ज्यादा ठोस काम की जरूरत है। बच्चे स्वस्थ रहेंगे, तो देश का भविष्य स्वस्थ होगा, वरना..... महज चिंता हमें चिता की ओर ही ले जाएगी।

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