Friday 7 June 2019

पर्यावरण सुधार से रामराज्य की राह


डॉ.संजीव मिश्र
सफल रसाल पूगफल केरा।
रोपहु वीथिन्ह पुर चहुँ फेरा।।
रामचरित मानस की यह चौपाई, श्रीराम राज्याभिषेक की तैयारियों के बीच गुरु वशिष्ठ के निर्देशों का हिस्सा है। वे सभी मार्गों के किनारे पौधरोपण का निर्देश दे रहे हैं। पांच जून को हम भी बड़े-बड़े वादों-दावों के साथ विश्व पर्यावरण दिवस के हिस्सेदार बनेंगे, किन्तु यह भूल जाएंगे कि सही अर्थों में पर्यावरण संरक्षण के लिए हमें ईमानदार प्रयास करने होंगे। देश का मौजूदा राजनीतिक नेतृत्व रामराज्य को अपना आधार स्तंभ मानता है, उसे भी याद रखना होगा कि रामराज्य की कसौटी के तमाम बिंदुओं में से पर्यावरण संरक्षण भी बेहद महत्वपूर्ण बिंदु है।
इस समय पूरी दुनिया में जलवायु संरक्षण को लेकर चल रही मुहिम में भी अधिकाधिक भागीदारी पर जोर दिया जा रहा है। दुनिया बार-बार चिल्ला रही है कि हम खतरे के मुहाने पर हैं। भारत के मौसम चक्र में बदलाव स्पष्ट दिखने भी लगा है। अखबारों में आए दिन अत्यधिक तापमान की खबरें आम हो गयी हैं। नागपुर से कानपुर तक तापमान कब पचास डिग्री सेल्सियस पहुंच जाए, कहा नहीं जा सकता। बिगड़ा जलवायु चक्र हमारी व सरकारों की ढिलाई का नतीजा है। इसका प्रभाव खेती पर भी प्रतिकूल पड़ने लगा है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान का मानना है कि तापमान में औसतन तीन डिग्री सेल्सियस की वृद्धि गेहूं के उत्पादन में 15 से 20 प्रतिशत तक की कमी कर देगी। भारत 2050 तक दुनिया में सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश हो जाएगा। उसके विपरीत प्राकृतिक संसाधनों की कमी निश्चित रूप से समस्या बनेगी। पर्यावरण व जलवायु संरक्षण पर पर्याप्त ध्यान न दिये जाने के कारण देश में पानी की कमी भी होती जा रही है। वर्ष 2001 में भारत में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 1820 घन मीटर थी, जो 2011 में घटकर 1545 घन मीटर प्रति व्यक्ति रह गयी। भारत सरकार के जल संसाधन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 2025 में 1341 घन मीटर रह जाएगी। यह स्थिति भीषण जल संकट का कारण बनेगी। जल प्रदूषण की भयावहता के कारण उपलब्ध जल भी पूरी तरह उपयोग की स्थिति में नहीं है। वायु प्रदूषण के मामले में तो हम दुनिया का नेतृत्व कर ही रहे हैं, देश का वन क्षेत्र भी लगातार कम हो रहा है।

पिछले कुछ वर्षों से देश में पर्यावरण को लेकर जागरूकता तो दिख रही है, किन्तु प्रभावी क्रियान्वयन का संकट भी साफ दिख रहा है। यह संयोग ही है कि केंद्र की मौजूदा सरकार रामराज्य की परिकल्पना जनता के बीच लेकर जाती है। रामराज्य का जो विवरण गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में दिया है, उसमें पर्यावरण संरक्षण बेहद महत्वपूर्ण भूमिका में है। रामराज्य का वर्णन करते हुए वे लिखते हैं, ‘सुमन वाटिका सबहिं लगाईं। विविध भाँति करि जतन बनाई।। लता ललित बहु जाति सुहाईं। फूलहिं सदा बसन्त की नाईं।।’ तुलसी ने रामराज्य में पौधरोपण व पर्यावरण संरक्षण के लिए सभी की भागीदारी को महत्वपूर्ण करार दिया है। मौजूदा सरकार का नेतृत्व कर रही भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव के लिए जारी अपने संकल्प पत्र में पर्यावरण को लेकर थोड़ी-बहुत चिंता जताई है। सरकार ने अलग जलशक्ति मंत्रालय बनाया है। इससे उम्मीदें बढ़ी हैं। वैसे भी गंगा प्रदूषण को लेकर प्रधानमंत्री से लेकर सरकार के अन्य मंत्री तक वादे व दावे करते रहे हैं। भाजपा के संकल्प पत्र के अनुसार पिछले पांच वर्षों में देश में नौ करोड़ शौचालयों का निर्माण हो चुका है। सरकार ने अब हर गांव में सतत ठोस कचरा प्रबंधन लागू करने का वादा किया है। ऐसा हुआ तो तात्कालिक प्रदूषण पर अंकुश लगेगा। भाजपा ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु मिशन की स्थापना का वादा भी किया है। इसके अंतर्गत देश के 102 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर मौजूदा खतरनाक स्तर से 35 प्रतिशत नीचे लाने का संकल्प व्यक्त किया गया है। भाजपा का वादा है कि हर गांव, उपनगर व बिना नालियों वाले इलाकों में तरल अपशिष्ट के पूर्ण निस्तारण को मल प्रबंधन व गंदे पानी के पुनः इस्तेमाल के माध्यम से सुनिश्चित किया जाएगा। दावा है कि पिछले पांच वर्षों में देश में नौ हजार किलोमीटर वनाच्छादन बढ़ाया गया है। इसे और गति देने का वादा भी किया गया है।
सरकारों के वादे व दावे तो होते रहते हैं किन्तु उन पर अमल का मजबूत ढांचा सुनिश्चित करना जरूरी है। पिछले कुछ वर्षों में सरकारों द्वारा अभियान चलाकर पौधरोपण की पहल भी हुई है। उत्तर प्रदेश का ही उदाहरण लें तो यहां 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पांच करोड़ से अधिक पौधे एक दिन में ही लगाकर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रेकार्ड्स में नाम दर्ज कराया था। 2017 में योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में बनी भाजपा सरकार भी इसमें पीछे नहीं रहना चाहती थी और 2018 में नौ करोड़ पौधे लगाकर कीर्तिमान अपने नाम किया गया। अब दो साल के भीतरह लगे 14 करोड़ से अधिक पौधों में से कितने बचे हैं, इसकी चिंता किसी ने नहीं की। इसके अलावा हर साल कागजों पर करोड़ों पौधे लगते हैं। सरकार को इन पौधों की रक्षा भी सुनिश्चित करनी होगी। जल, वायु व धरती का संरक्षण ही सृष्टि की समग्र रक्षा कर सकता है। हम अभी नहीं चेते, तो संकट तय है।

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