डॉ. संजीव मिश्र
न्यूयार्क की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में जन नीति (पब्लिक पॉलिसी) की
पढ़ाई कर रहे प्रखर जब कोरोना संकट से जूझते अमेरिका को छोड़कर वतन लौटे, तो यहां
के हालात और चौंकाने वाले मिले। यहां कोरोना से जूझ रही सरकार के सामने वेंटिलेटर
व परीक्षण की चुनौती तो थी ही, कोरोना संकट के कारण भूख से तड़प रही जनता तक भोजन
व अन्य सामग्री पहुंचाने का कठिन मार्ग भी मुंह बाए खड़ा था। इस चुनौती का सामना
करने के लिए सरकार के साथ तमाम छोटी-बड़ी स्वयंसेवी व समाजसेवी संस्थाएं भी सामने
आ रही थीं, किन्तु आम जनमानस को कोरोना के दौर में करुणा से जोड़ने की जरूरत साफ
दिख रही थी। प्रखर ने कुछ साथियों के साथ पहल की और कोरोना के दौर में करुणा यानी
करुणा ड्यूरिंग कोरोना मुहिम शुरू की। इस मुहिम में लोग अपनी संपूर्ण संपत्ति या
लाभ के एक हिस्से से लेकर कुछ माह का वेतन तक दान करने की शपथ ले रहे हैं। प्रखर
की टीम उन्हें उपयुक्त संस्थाओं की जानकारी देती है, ताकि वे अपने धन का सही उपयोग
सुनिश्चित करा सकें।
भारत ने कोरोना पर नियंत्रण पाने के लिए प्रभावी कार्रवाई की है और
दुनिया के अन्य देशों की तुलना में बहुत अच्छे तरीके से इस समस्या का सामना भी
किया जा रहा है। देश में कोरोना की रफ्तार नियंत्रित करने में भी मदद मिली है
किन्तु असली चुनौती तो कोरोना के बाद के दौर में सामने आने वाली है। पूरे देश में
लॉक़डाउन के कारण करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी के द्वार बंद हो चुके हैं। रोज
कमाने-खाने वाले तो परेशान हैं ही, ठेले वालों सहित तमाम छोटे दुकानदारों का
रोजगार छिन चुका है। उनकी जमा पूंजी भी इस लॉक़डाउन के दौर में खत्म हुई जा रही
है। ऐसे में जब लॉकडाउन खत्म होगा, तो इन छोटे दुकानदारों को अपनी रोजी-रोटी के
लिए अतिरिक्त संघर्ष करना होगा। दूसरे पूरे देश में मजदूर इधर से उधर विस्थापित
जैसी स्थितियों में पहुंच चुके हैं। अर्थव्यवस्था में आए बदलाव के बाद लॉक़डाउन
समाप्ति के पश्चात उनके रोजगार की चिंता भी स्पष्ट रूप से दिख रही है। सरकारों के
साथ समृद्ध जनमानस को भी इस ओर ध्यान देना होगा।
कोरोना के दौर में करुणा की तमाम कहानियां सामने आ रही हैं। कहीं
लोगों ने भूखे लोगों की मदद के लिए भंडारे खोल दिये हैं तो कहीं अपने घर के दरवाजे
तक परेशान लोगों के लिए खोल दिये गए हैं। करुणा का यह भाव कोरोना के साथ भी और
कोरोना के बाद भी बनाए रखने की जरूरत होगी। दशांश दान की भारतीय पंरपरा को एक बार
फिर सही अर्थों में पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। इसकी शुरुआत अपने आसपास से की
जा सकती है। हमारी गली, हमारे गांव व हमारे मोहल्ले में कोई बेरोजगार न रहे, कोई
भूखा न सोए जैसे भाव के साथ सभी को पहल करनी होगी। करुणा का यह भाव चिरस्थायी रूप
में स्वीकार कर उस पर काम करना होगा। जो संस्थाएं पूरे मन से कोरोना संकट के शिकार
लोगों की मदद में जुट गयी हैं, उनकी हर संभव मदद की जिम्मेदारी भी हम सभी की है।
इन सारी तैयारियों के लिए करुणाभाव सर्वाधिक जरूरी है। इस समय भी जब
देश कोरोना की चुनौती से जूझ रहा है, हमें आपसी करुणाभाव बनाए रखना होगा। जिस तरह
नवरात्र में लोगों ने घरों में रहकर कोरोना से बचाव के सुरक्षा चक्र को मजबूत किया
था, रमजान के दौरान भी उस सुरक्षा चक्र को मजबूती से स्थापित करने की जरूरत होगी।
हमें इस दौरान आरोप प्रत्यारोप से भी बचना होगा। पिछले कुछ दिनों से जिस तरह देश
में धर्म आधारित विभाजन ने विस्तार लिया है, यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है। तब्लीगी
जमात की लापरवाही के कारण कोरोना के विस्तार को नकारा नहीं जा सकता, किन्तु इसके
लिए पूरे धर्म को निशाने पर ले लेना किसी भी तरह से भारतीय संस्कृति की मर्यादा व
मान्यताओं के अनुरूप नहीं माना जा सकता। देश के लिए खतरनाक पहलू यह है कि एक
हिस्सा कोरोना संकट के विस्तार के लिए पूरे तौर पर मुस्लिमों को जिम्मेदार ठहराने
में जुट गया है, वहीं मुस्लिमों का एक हिस्सा उनके समर्थन में तर्क ढूंढ़ रहा है।
ये दोनों ही स्थितियां खतरनाक हैं।
कोरोना से जूझते देश को अर्थव्यवस्था, रोजगार, रुकी विकास यात्रा को
पुनः चालू करने जैसी चुनौतियों का सामना करना है। इसके लिए देश को एकजुट होना
होगा। समृद्ध भारतीय सांस्कृतिक विरासत को अंगीकर करते हुए करुणा का भाव जागृत किये
रहना होगा। जिस तरह से भारत में मंदी का माहौल बना है, उससे समग्र अर्थव्यवस्था के
लिए बेहद संकट वाला भविष्य स्पष्ट दिख रहा है। कोरोना से जूझते हुए हमें उसकी
तैयारी भी कर लेनी होगी। कोरोना से निपटने के अभियान के दौरान हमने मिलकर
ताली-थाली बजाई, हमने एक साथ दीये जलाए और अब हमें करुणा का भाव भी एक साथ जागृत
करना है। भारत ने पहले भी ऐसी चुनौतियों का मिलकर सामना किया है और इस बार भी हम
मिलकर कोरोनाजनित संकट से निपटेंगे और महाशक्ति बनकर उभरेंगे, इस विश्वास के साथ
देश को काम पर लौटना होगा।
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