Monday 7 September 2015

जनता परिवार की फूट से उम्मीदें गईं टूट

-समीकरण बदलने की उम्मीद से निराश छोटे दल
-राजद व जद (यू) ने कहा, भाजपा को होगा फायदा
---
राज्य ब्यूरो, लखनऊ : समाजवादी पार्टी द्वारा बिहार में जनता परिवार की परिकल्पना को चकनाचूर करते हुए बिहार में अकेले चुनाव लडऩे का फैसला उत्तर प्रदेश में भी असर डालेगा। इस आशंका से छोटे दल परेशान हैं। राजद व जद (यू) तो मानते हैं कि सपा के इस फैसले का सर्वाधिक फायदा भारतीय जनता पार्टी को होगा।
जनता परिवार की एकता की शुरुआत से ही उत्तर प्रदेश के उन तमाम नेताओं की बांछें खिल गई थीं, जो जनता दल (यू) या राष्ट्रीय जनता दल का बैनर थामकर राजनीति कर रहे थे। इन्हें लगने लगा था कि 2017 के विधानसभा चुनाव में इन्हें भी हिस्सेदारी मिलेगी और समाजवादी पार्टी के कंधे पर सवार होकर ये कुछ सीटों पर अपनी नैया पार लगा लेंगे, पर अचानक सपा के धमाके से ये नेता खासे निराश हैं। 2012 के विधानसभा चुनाव की बात करें, तो जद (यू) तो उन चुनावों से पहले ही भाजपा से दूर हो गया था। तब जद (यू) ने प्रदेश की 220 सीटों पर चुनाव लड़ा था। तब बलिया की बांसडीह सीट पर उसका प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहा था। इस बार जद (यू) को उम्मीद थी कि जनता परिवार का महत्वपूर्ण घटक होने के चलते पार्टी को सम्मानजनक सीटें मिलेंगी और पार्टी विधानसभा में अपनी हाजिरी दर्ज करा सकेगी।
राजद का तो उत्तर प्रदेश में अस्तित्व नगण्य है। 2012 के विधानसभा चुनाव में राजद सिर्फ उन्नाव की नवाबगंज सीट पर लड़ा था, जहां उसे तीस हजार वोट मिले थे। इस बार राजद मुखिया लालू प्रसाद यादव की सपा मुखिया के साथ सीधी रिश्तेदारी और गठबंधन के चलते राजद के नेता भी मान रहे थे कि उन्हें कुछ सीटें मिल जाएंगी और वे सपा के सहारे चुनावी वैतरणी पार भी कर लेंगे।
समाजवादी पार्टी नेतृत्व द्वारा बिहार में महागठबंधन से अलग होने के फैसले से इन पार्टियों के नेता खासे निराश हैं। उनका मानना है कि यह करके सपा नेतृत्व ने प्रदेश की राजनीतिक तस्वीर ही बदल दी है। जद (यू) के प्रदेश अध्यक्ष सुरेश निरंजन भैयाजी का मानना है कि सपा के इस फैसले से भाजपा को ही फायदा होगा। राष्ट्रीय जनता दल के प्रदेश अध्यक्ष अशोक सिंह का मानना है कि सपा नेतृत्व का यह कदम दुर्भाग्यपूर्ण है।

No comments:

Post a Comment