Tuesday 9 February 2016

बारह लाख गर्भवती ढूंढ़ीं, एक लाख गंभीर


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-मातृत्व सप्ताह के बाद लगातार फॉलोअप के निर्देश
-प्रदेश के 820 ब्लाकों के 97,800 गांवों में लगे शिविर
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : मातृत्व सप्ताह के दौरान गांव-गांव पड़ताल में 12 लाख गर्भवती महिलाएं ढूंढ़ी गयी हैं। इनमें से एक लाख गंभीर हालत में हैं। इन सभी के मामले में लगातार फॉलोअप किया जाएगा।
प्रदेश के 820 ब्लाकों के 97,800 गांवों में 27 जनवरी से 3 फरवरी तक मातृत्व सप्ताह का आयोजन किया गया था। हर गांव में गर्भवती महिलाओं को चिह्नित किया गया। राष्ट्रीय आंकड़ों के अनुसार कुल 18,19,725 महिलाओं को ढूंढऩे का लक्ष्य था, इसके विपरीत 11,93,486 महिलाओं को ढूंढऩे में सफलता मिली। इन गर्भवती महिलाओं का पंजीकरण कर उनकी प्रारंभिक स्वास्थ्य जांच हुई तो उनमें से एक लाख गंभीर अवस्था में पायी गयीं। पांच फरवरी को 849 चिकित्सा इकाइयों में इन सभी की जांच की गयी है। प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) अरविंद कुमार के अनुसार गंभीर अवस्था में सामने आयी गर्भवती महिलाओं का विशेष फॉलोअप किया जाएगा। इन्हें पूरे प्रसव काल के दौरान स्वास्थ्य केंद्रों व चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुरक्षण में रखा जाएगा। इनमें भी हाई रिस्क श्रेणी की महिलाओं को अलग से चिह्नित करने के निर्देश दिये गए हैं।
प्रधानों की भी ली मदद 
इस अभियान के दौरान ग्र्राम प्रधानों की मदद भी ली गयी है। बाराबंकी जिले के सिद्दौर ब्लाक के मोहम्मदपुर गाँव में नवनिर्वाचित प्रधान चंद्रकुमार के घर पर बुलाकर गांव की 20 गर्भवती महिलाएं चिह्नित हुईं। घर-घर संपर्क का परिणाम था कि दो ऐसी गर्भवती महिलाएं भी पंजीकृत की गयीं जो फिलहाल मायके गयी हुई थीं। आठ माह की गर्भवती शशिबाला को खून की कमी थी और वह पहली दफा गर्भवती हुई हैं। उन्हें हाई रिस्क श्रेणी में पंजीकृत कर फॉलोअप करने को कहा है। गोंडा जिले के परसपुर विकास खंड के बेलवानोहर गांव की प्रधान बुधना देवी ने घूम-घूम कर 1272 आबादी वाले गांव में 16 गर्भवती महिलाओं का पंजीकरण कराया।
इस बार बच्चा बचाना है
फैजाबाद जिले के मसौधा ब्लाक मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर गांव में रहने वाली संतोष सात माह की गर्भवती हैं। यह उनका तीसरा प्रसव है। दूसरा बच्चा विकृति के कारण बचाया नहीं जा सका था और इस बार भी अभी तक मायके में होने के कारण उनका पंजीकरण नहीं हो सका था। शिविर में न सिर्फ उनका पंजीकरण हुआ बल्कि डॉक्टरों ने भी उनसे स्वस्थ बच्चे का वादा किया। जांच में वजन कम निकला तो उन्हें दवाओं व टीकों के साथ फॉलोअप के लिए चिह्नित कर लिया गया। फर्रुखाबाद के बरों ब्लाक के सुंदर नगला गांव की 20 वर्षीय किरन पहली बार गर्भवती हुई हैं। वे सास के साथ जांच के लिए पहुंचीं तो खून की कमी के कारण उनका प्रसव भी हाई रिस्क श्रेणी में आ गया। सास ने ही उनका प्रसव अस्पताल में कराने की पहल की तो बहू का चेहरा खिल उठा।
दूरियां नजदीकियां बनीं
अभियान के दौरान दूरदराज के तमाम गांवों से लोग जांच कराने पहुंचे। अमेठी और प्रतापगढ़ की सीमा पर स्थित गांव पांडेय का पुरवा से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र 20 किलोमीटर दूर है। गांव पहुंचने के लिए तीन किलोमीटर कच्चा रास्ता है और बीच में रेलवे लाइन का फाटक अक्सर बंद रहता है। डेढ़ हजार जनसंख्या वाले इस गांव में 256 घर हैं और यहां एएनएम तक नहीं आतीं। मातृत्व सप्ताह के दौरान वहां दो नर्स भेजी गयीं। आशा कार्यकर्ता मीरा व आंगनवाड़ी कार्यकर्ता पुष्पा ने 11 महिलाओं का पंजीकरण कराया था। इनमें से चार अपने मायके चली गयी थीं। यहां भी दो महिलाएं गंभीर रूप में पंजीकृत हुईं, जिनका चिकित्सकीय फॉलोअप होगा।
परिवार ने किया विरोध
सरकार भले ही घर-घर जाकर जांच करे, तमाम परिवार ही जांच के लिए राजी नहीं होते। अमेठी ब्लाक के कुटरू का पुरवा गांव की 25 वर्षीय रुक्मिणी व 22 वर्षीय सकीना के घर वालों ने जांच कराने से मना कर दिया। इन दोनों ने परिवार का विरोध कर मातृत्व जांच शिविर में जाने का फैसला किया। वजन कम होने और खून की कमी होने के कारण रुक्मिणी की हालत भी अच्छी नहीं थी। उन्हें हाई रिस्क प्रसव की श्रेणी में पंजीकृत कर लिया गया।

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