Saturday 6 February 2016

पुलिस ही नहीं चाहती असली मालिकों तक पहुंचें वाहन

-अफसरों की लापरवाही से थानों में लगा कबाड़ का अंबार
-नहीं ले रहे परिवहन विभाग से वाहनों के ब्यौरे का पासवर्ड
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ
परिवहन विभाग की तमाम कोशिशों के बावजूद पुलिस चोरी के वाहन असली मालिकों तक नहीं पहुंचा रही है। अफसरों की लापरवाही से थानों में कबाड़ का अंबार लगा है। कई बार कहने के बावजूद पुलिस अधिकारी परिवहन विभाग से वाहनों के ब्यौरे से जुड़े साफ्टवेयर का पासवर्ड नहीं ले रहे हैं।
परिवहन विभाग ने आम जनता के लिए गाड़ी नंबर डालकर उसका पूरा ब्यौरा ऑनलाइन कर दिया है। वाहनों का ब्यौरा सहेजे जिस साफ्टवेयर के सहारे यह व्यवस्था की गयी है, उसमें गाड़ी के नंबर के साथ इंजन नंबर, चेचिस नंबर आदि का ब्यौरा भी है। उत्तर प्रदेश में इस समय कुल डेढ़ करोड़ वाहन सक्रिय अवस्था में हैं। इन सभी का ब्यौरा डिजिटाइज करके साफ्टवेयर से जोड़ दिया गया है। परिवहन आयुक्त के.रविन्द्र नायक ने बताया कि परिवहन विभाग कई बार पुलिस महानिदेशक स्तर पर यह पत्र लिखकर कह चुका है कि हर जिले के पुलिस प्रमुख (एसएसपी या एसपी) के स्तर पर उक्त साफ्टवेयर का पासवर्ड ले लिया जाए। इसके बावजूद अब तक ऐसा नहीं हुआ है। कई बार कहने के बाद 75 में से सिर्फ 38 जिलों के अफसरों ने उक्त साफ्टवेयर का पासवर्ड लिया है। शेष 37 जिलों में अब भी उक्त साफ्टवेयर का प्रयोग पुलिस ने नहीं शुरू किया है।
परिवहन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक पुलिस अफसरों की ढिलाई से उक्त साफ्टवेयर का प्रयोग वाहन चोरी रोकने व वाहन चोरी के बाद मालिक तक सही वाहन पहुंचाने में नहीं हो पा रहा है। बताया गया कि परिवहन आयुक्त की ओर से कई बार पत्र लिखे जाने पर पूर्व पुलिस महानिदेशक जगमोहन यादव ने तो जवाब में लिखकर भेज दिया कि वे इस पर विचार करेंगे। इसे लेकर परिवहन विभाग में अफसरों में आक्रोश भी हुआ। उनका कहना था कि विभाग तो पुलिस की मदद करना चाहता है और वहां से ऐसे जवाब आ रहे हैं। दरअसल थानों में भारी संख्या में ऐसे वाहन डम्प हैं जो प्रदेश के किसी एक हिस्से में चोरी हुए और दूसरे हिस्से में पकड़े गए। उक्त साफ्टवेयर का प्रयोग कर वाहन के मालिक का सही पता लगाया जा सकता है किन्तु पुलिस ऐसा नहीं करती। इससे बीमा कंपनियों को भी भारी राशि का फायदा होगा, क्योंकि पुलिस अभी वाहन चोरी के मामले में फाइनल रिपोर्ट लगा देती है और उसके बाद चोरी गए वाहन के बदले बीमा कंपनी को भुगतान करना पड़ता है। यदि पुलिस पकड़े गए वाहनों के बारे में साफ्टवेयर से पड़ताल कर उन्हें उनके सही मालिकों तक पहुंचा दे, तो स्थितियां बदल सकती हैं। 

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