Saturday 2 January 2016

कदम उठे तो काफिला बना


डॉ.संजीव, लखनऊ
महाराजगंज के एसपी सिंह और सोनभद्र की डा. विभा। दोनों ने स्वास्थ्य की दृष्टि से पिछड़े जिलों में काम शुरू किया, दोनों को विपरीत हालात मिले पर दोनों ने ही अपने जज्बे से सफलता पायी और सैकड़ों को सेहत का वरदान बख्शा। उन्होंने सिद्ध किया कि कोशिशें महत्वपूर्ण होती हैं, संसाधन उनके बाद आते हैं।
महाराजगंज जिले के सदर ब्लाक में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के अलावा 24 सबसेंटर हैं। यहां प्राथमिक इलाज के साथ टीकाकरण और पोषण तक की चिंता की जानी चाहिए थी। दो बरस पहले इस ब्लाक के लिए परियोजना प्रबंधक के रूप में एसपी सिंह पहुंचे तो पाया कि वहां 24 में से अधिकांश सबसेंटर चल ही नहीं रहे थे जबकि हर सबसेंटर के लिए अलग एएनएम व अन्य स्वास्थ्य कर्मी तैनात थे। एसपी सिंह सभी जगह गए तो पाया कि गांव के लोग इनका फायदा तो उठाना चाहते हैं किन्तु पहल नहीं हो रही है। तब शुरुआत हुई सिसवनिया के स्वास्थ्य उपकेंद्र से। वहां के ग्र्राम प्रधान सुदामा प्रसाद से मिले तो राह दिखने लगी। गांव के लोग मिले और सिसवनिया सबसेंटर का चोला बदलने लगा। उसकी मरम्मत कराई गयी, वहां फर्नीचर का इंतजाम कराया गया और फिर सौर ऊर्जा से बिजली चमकने लगी। अब हाल यह है कि 24 में से 11 सबसेंटर सुसज्जित हो चुके हैं और आठ पर काम चल रहा है। वहां प्रसव के साथ प्राथमिक उपचार के बंदोबस्त हो चुके हैं। चिकित्सक भी नियमित पहुंचते हैं और गांव वाले भी सक्रिय हैं। संस्थागत प्रसव बढ़ गया है।
अब चलते हैं सोनभद्र के जंगलों में जहां चिकित्सा क्षेत्र में गांधी का ग्र्राम स्वराज अंगड़ाई लेता दिख रहा है। वहां के म्योरपुर ब्लाक के 400 गांवों में काम कर रही डॉ.विभा व उनकी टीम को सेहत से सेवा का यह संदेश उनके माता-पिता से मिला था। 1967 में इन गांवों में पहुंचे गांधीवादी डॉ.प्रेम भाई और उनकी चिकित्सक पत्नी डॉ.रागिनी पर्शिकर ने 1969 में एक झोपड़ी में क्लीनिक की शुरुआत की थी। बेटी विभा एमबीबीएस करने के बाद स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ बनी तो विवाह के बाद कानपुर के एक मिशनरी अस्पताल में चिकित्सा करने लगी। माता-पिता के संस्कार उन्हें बहुत दिन कानपुर में भी न रोक सके और कुछ बरस पहले वह भी सोनभद्र पहुंच गयीं। अब 400 गांवों में लोगों को जागरूक करने के साथ सेहत की चिंता कर रही हैं। नियमित अभियान चलाकर खानपान के प्रति सतर्क रहने और सफाई से जोड़ा जाता है। अशिक्षा व भूतप्रेत जैसी मान्यताओं के कारण लोग इलाज नहीं कराते, तो उन्हें इसके लिए तैयार किया जाता है। अब मरीजों की जबरदस्त भीड़ लगती है।
स्कूलों से कराई प्रतियोगिता
महाराजगंज के सदर ब्लाक में सक्रिय एसपी सिंह कहते हैं कि जब उपकेंद्रों को सही करने का कोई रास्ता नहीं दिखा तो हर गांव में खुले स्कूलों से प्रतियोगिता का भाव जगाया। जब स्कूल चमक सकते हैं, बच्चे वहां पढऩे के लिए जाते हैं तो सेहत में वही प्रयास क्यों नहीं हो सकते? यह प्रयोग सफल हुआ और लोग स्कूलों की तर्ज पर स्वास्थ्य उपकेंद्रों को संवारने के लिए आगे आए। अब हर गांव में ग्र्राम स्वास्थ्य पोषण समितियां सक्रिय हैं। नियमित टीकाकरण के साथ ग्र्राम स्वास्थ्य पोषण दिवस जैसे आयोजन होते हैं।
स्वास्थ्य मित्रों से मिली मदद
सोनभद्र के म्योरपुर ब्लाक में विपरीत परिस्थितियों में इलाज की राह आसान करने में लगी डॉ.विभा बताती हैं कि उन्हें इस स्वास्थ्य मित्रों से अत्यधिक मदद मिली है। दरअसल त्रिस्तरीय प्रणाली विकसित कर इलाज की पहल की गयी है। पहले स्तर में हर गांव में स्वास्थ्य मित्र बनाकर उन्हें प्रशिक्षित किया गया। दूसरे स्तर पर उनके माध्यम से जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं और तीसरे स्तर पर बीमारियों को चिह्नित कर इलाज किया जाता है। स्वास्थ्य मित्रों के लिए नियमित रिफ्रेशर कोर्स चलते हैं, ताकि लोग बीमार ही न हों। 

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