Wednesday 16 December 2015

जादुई आंखें जांच लेती हैं गाड़ी की फिटनेस


सड़क सुरक्षा अभियान
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-आरटीओ में नहीं होता जांच प्रक्रिया का पालन
-कई बार तो गाड़ी के पास जाए बिना ही आरआइ देते प्रमाणपत्र
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डॉ.संजीव, लखनऊ : क्या परिवहन कर्मचारियों के पास जादुई आंखें हैं जो वे गाड़ी के पास भी गए बिना उसे फिटनेस सर्टिफिकेट दे देते हैं। लगता तो ऐसा ही है क्योंकि बिना शीशे वाली बसों और जर्जर ट्रकों का सड़क पर उतरना तभी संभव है जब उन्हें परिवहन विभाग से पूरी छूट हासिल हो।
सात सीटों से कम क्षमता वाले निजी वाहनों को छोड़कर बाकी सभी को पंजीकरण के बाद पहली दफा दो वर्ष में और फिर हर वर्ष अपना फिटनेस परीक्षण कराना जरूरी होता है। इसके लिए हर संभागीय परिवहन कार्यालय में एक आरआइ जिम्मेदार होता है। परिवहन विभाग के अनुसार इस समय नियमित फिटनेस कराने वाले लगभग सात लाख वाहन सड़कों पर हैं। फिटनेस जांचने का दावा भी किया जाता है किंतु असलियत उलट है।नियमानुसार गाड़ी की फिटनेस जांचते समय उसके शीशे, सीटें, टायर आदि के साथ लाइट, ब्रेक व स्टियरिंग की पड़ताल ठीक से होनी चाहिए। हर गाड़ी में पीछे लाल, आगे सफेद और दोनों साइड में पीला फ्लोरोसेंट टेप चिपकाना जरूरी है। देखा जाना चाहिए कि घिसे टायर आगे न लगे हों और स्टियरिंग से छेड़छाड़ न की गई हो। इस प्रक्रिया से एक गाड़ी की फिटनेस जांचने में 40 मिनट से एक घंटा लग सकता है। गाड़ी चलाकर, ब्रेक लगाकर, लाइट जलाकर देखना तो दूर, कई बार तो आरआइ गाड़ी के पास तक नहीं जाते।
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11 लाख अनफिट गाडिय़ां
परिवहन आयुक्त के. रविन्द्र नायक मानते हैं कि प्रदेश में 11 लाख अनफिट गाडिय़ां हैं। इन वाहनों ने वर्षों से टैक्स नहीं जमा किया है और फिटनेस के लिए भी नहीं आ रहीं। ऐसी गाडिय़ों के मालिक इन्हें ग्र्रामीण क्षेत्रों या अन्य जिलों में भेज देते हैं। विभाग के पास ऑनलाइन वेरीफाइंग सिस्टम न होने के कारण इन्हें पकडऩा संभव नहीं होता।
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मुस्तैद नहीं आरटीओ दफ्तर
फिटनेस मापने के लिए जिम्मेदार आरआइ तो गंभीर हैं ही नहीं, व्यवस्थाओं के मामले में भी संभागीय परिवहन दफ्तर भी मुस्तैद नहीं। दफ्तरों में गाड़ी चलाकर देखने की व्यवस्था तो है ही नहीं, फिटनेस जांचने के लिए सर्वाधिक जरूरी फिटनेस पिट्स तक नहीं हैं। फिटनेस पिट्स पर गाडिय़ां खड़ी करके उनके नीचे घुस कर फिटनेस जांची जाती है। इनके बिना जांच महज औपचारिकता है।
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दौड़ रहीं सैकड़ों खटारा बसें
परिवहन विभाग की मिलीभगत से फर्जी फिटनेस के आधार पर निजी खटारा बसें तो दौड़ ही रही हैं, रोडवेज की भी 500 खटारा सड़कों पर हैं। प्रदेश में रोडवेज बसों का काफिला नौ हजार का है। इनमें से 500 बसों की स्थिति बहुत खराब है। अनेक बसों में शीशे बंद नहीं होते और सीटें फटी हुई हैं। अधिकारियों ने माना कि कभी-कभी ऑब्जेक्शन लगाए जाते हैं लेकिन गाडिय़ां फिर भी फिटनेस पाकर चलती रहती हैं।

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