Saturday 3 September 2016

डॉक्टर को बेटी पैदा हुई तो पति ने मांगा तलाक


-ससुर ने किया अल्ट्रासाउंड, पति व सास ने कहा एबॉर्शन कराओ
-डॉक्टर सास-ससुर को मेडिकल काउंसिल ने किया निलंबित
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ: बेटी बचाने को लेकर चल रहे देशव्यापी अभियान के बीच एक डॉक्टर को बेटी पैदा हुई तो पति ने तलाक मांग लिया। यह स्थिति तब, जबकि उक्त डॉक्टर के सास-ससुर भी डॉक्टर हैं। पीडि़त डॉक्टर ने उत्तर प्रदेश मेडिकल काउंसिल में शिकायत की तो काउंसिल ने सास-ससुर को निलंबित कर दिया है।
राजधानी लखनऊ के इंदिरा नगर में रहने वाली डॉ.प्रकृति शुक्ला ने उत्तर प्रदेश मेडिकल काउंसिल में नौ जून 2016 को शिकायत कर न्याय की गुहार लगाई थी। एमबीबीएस के बाद एमडी (पैथोलॉजी) करने वाली डॉ.प्रकृति ने अपनी शिकायत और फिर काउंसिल की एथिकल कमेटी की 30 जून को हुई सुनवाई में बताया कि उनकी गर्भावस्था के दौरान 11 नवंबर 2015 को उन्हें तेज बुखार आया तो उन्होंने पति तुषार ओझा को इसकी जानकारी दी। पति उन्हें ससुर डॉ.एसवी ओझा के सुभाष मार्ग स्थित ओझा डायग्नोस्टिक सेंटर ले गए। डॉ.प्रकृति के अनुसार वे नहीं चाहती थीं कि उनके ससुर अल्ट्रासाउंड करें, इसके बावजूद डॉ.एसवी ओझा ने खुद अल्ट्रासाउंड किया। इसके बाद उन्हें सास डॉ.शालिनी चंद्रा के रकाबगंज स्थित अस्पताल में ले जाया गया। डॉ.प्रकृति का कहना है कि अल्ट्रासाउंड होने के बाद पूरे परिवार का व्यवहार बदल गया। पति व सास ने गर्भपात कराने को कहा किन्तु वह नहीं मानीं। इस पर अपने अजन्मे बच्चे को बचाने के लिए अलीगंज स्थित अपनी ससुराल से इंदिरा नगर स्थित अपने मायके चली गयीं। 28 मार्च को उन्होंने एक निजी नर्सिंग होम में बेटी को जन्म दिया। पूरा ओझा परिवार उनसे मिलने सिर्फ एक बार आया और बाद में एक बार ही पति उनके घर गए। बेटी के जन्म के एक माह के बाद पति ने तलाक का नोटिस जरूर भेज दिया।
डॉ.प्रकृति ने शिकायत की कि उनकी मर्जी के बिना अल्ट्रासाउंड, फिर गर्भ में बेटी होने की बात पता करना कानून का उल्लंघन है। काउंसिल के रजिस्ट्रार डॉ.राजेश जैन के मुताबिक सुनवाई के दौरान ससुर ने लिखित जवाब दिया, जिसमें अल्ट्रासाउंड करने की अनुमति देने वाले फॉर्म एफ पर डॉ.प्रकृति के हस्ताक्षर दिखाए गए हैं। काउंसिल ने हस्ताक्षर मिलाने के लिए हैंडराइटिंग एक्सपर्ट व फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट की सुविधाएं लीं, तो पता चला कि वे हस्ताक्षर डॉ.प्रकृति के थे ही नहीं। इसी तरह सास डॉ.शालिनी चंद्रा द्वारा प्रस्तुत इलाज के पर्चे भी फर्जी पाए गए। एथिकल कमेटी ने पाया कि डॉ.शालिनी चंद्रा ने एक ही मरीज को एक ही दिन में पांच से दस मिनट के बीच दो अलग-अलग दवाइयों के पर्चे दिये। यह पेशेगत कदाचार (प्रोफेशनल मिसकंडक्ट) की श्रेणी में आता है। इस मामले में शुक्रवार को हुई काउंसिल के शासी निकाय (गवर्निंग बॉडी) की बैठक में डॉ.एसवी ओझा व उनकी पत्नी डॉ.शालिनी चंद्रा को लिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम का दोषी पाया गया। डॉ.एसवी ओझा को एक साल और डॉ.शालिनी चंद्रा को छह माह के लिए निलंबित कर दिया गया है।
धोखाधड़ी का मुकदमा चलेगा
उत्तर प्रदेश मेडिकल काउंसिल ने अपने फैसले की प्रति लखनऊ के जिलाधिकारी, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक और मुख्य चिकित्सा अधिकारी को पत्र लिखकर डॉ.एसवी ओझा के खिलाफ धोखाखड़ी का मुकदमा कायम करने को कहा गया है। उन पर फर्जी कागजात बनाने और काउंसिल को भ्रमित करने के आरोप लगे हैं।

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