Wednesday 24 August 2016

...तो यूपी में जन्म के बाद भी मारी जा रहीं बेटियां

----
-1000 जन्मी बच्चियों में से 55 की साल भीतर होती मौत
-कन्या शिशु मृत्यु दर में देश के शीर्ष राज्यों में शामिल प्रदेश
----
राज्य ब्यूरो, लखनऊ : उत्तर प्रदेश में बेटियों को सिर्फ गर्भावस्था में ही नहीं, जन्म लेने के बाद भी मारा जा रहा है। यहां जन्म लेने वाली 1000 बच्चियों में से 55 की साल भीतर मौत हो जाती है। इस मामले में प्रदेश देश के शीर्ष राज्यों में शामिल है।
विधान मंडल में मंगलवार को पेश भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट के मुताबिक कन्या शिशु मृत्यु दर के मामले में उत्तर प्रदेश पूरे देश का नेतृत्व कर रहे राज्यों में शामिल है। देश में औसतन 1000 कन्याओं के जन्म लेने पर साल भीतर 42 की मौत होती है, वहीं उत्तर प्रदेश में उनकी संख्या 53 है। उत्तर प्रदेश केवल मध्य प्रदेश (59), असम (57), उड़ीसा (54) से पीछे है। यह स्थिति तब है, जबकि जननी सुरक्षा योजना पांच साल में 2380.11 करोड़ रुपये आवंटित किये गए, जिसमें से 2196.56 करोड़ रुपये खर्च भी किये गए। वित्तीय वर्ष 2014-15 में 14 फीसद धनराशि का प्रयोग नहीं किया गया और आवंटित 513.03 करोड़ रुपये में से 71.31 करोड़ रुपये बच गए। संस्थागत प्रसव के लिए लक्ष्य मात्र 1.24 करोड़ था। यह पंजीकृत गर्भवती महिलाओं के सापेक्ष 46 प्रतिशत था। अपर्याप्त सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं, सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर पहुंच की कमी और प्राइवेट नर्सिंग होम व चिकित्सालय के व्यय को वहन न कर पाने के कारण गरीब व ग्र्रामीण घरेलू प्रसव पर निर्भर रहने को विवश थे। औसतन 42 फीसद प्रसव असुरक्षित स्थितियों में होने की बात सामने आयी। परिवार नियोजन कार्यक्रम के लिए जारी 380.57 करोड़ रुपये में से 49 फीसद धनराशि का तो प्रयोग ही नहीं किया गया। इसके पीछे पारदर्शी प्रणाली का अभाव मूल कारण माना गया है।
सीएमओ की लापरवाही
रिपोर्ट के मुताबिक संस्थागत प्रसव में वृद्धि के लिए सरकारी भवनों में संचालित होने वाले उपकेंद्रों में कम से कम 50 फीसद उपकेंद्रों को मान्यता प्रदान की जानी थी। लेखा परीक्षा में पाया गया कि मार्च 2015 तक राज्य में सरकारी भवनों में चलने वाले कुल 17,219 उपकेंद्रों के सापेक्ष मात्र 7,226 उपकेंद्रों (42 फीसद) को ही मान्यता दी गयी। जनपद में अधिक से अधिक उपकेंद्रों को मान्यता प्रदान करने की जिम्मेदारी मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) की थी। उनकी लापरवाही से पूरे कार्यक्रम के उद्देश्य की पूर्ति प्रभावित हुई। जांच के दौरान विभाग ने इस लापरवाही का कारण भी नहीं बताया।

No comments:

Post a Comment