Monday 29 August 2016

रखियो रे शपथ की लाज

'मैं जहां भी प्रवेश करूंगा, सिर्फ बीमारों की मदद के लिए प्रवेश करूंगा। मैं
ऐसे किसी काम से खुद को दूर रखूंगा, जो गलत हो।'

ये दृढ़ पंक्तियां उस शपथ का हिस्सा हैं, जो डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी करके निकले
युवा अपने दीक्षांत समारोह में लेते हैं। इस शपथ में डॉक्टर बनने के बाद उनके
कर्तव्यों व दायित्वों का व्यापक संकल्प निहित होता है, किन्तु कुछ डॉक्टर तो
मानो सब कुछ भूल चुके हैं। सरकारी नौकरी मिल गयी है तो अब काहे का डर। वे गांव
जाएं न जाएं, सरकार तो केवल नोटिस देती रहेगी। इस समय भी जब पूरा प्रदेश
जानलेवा बुखार के ताप से झुलस रहा है, डॉक्टरों की मनमानी रुकने का नाम नहीं ले
रही। 
वे सरकारी डॉक्टर हैं तो नर्सिंग होम उनका इंतजार कर रहे हैं और नर्सिंग होम
वाले डॉक्टर हैं तो पैथोलॉजी का कमीशन प्रतीक्षा में है। कमीशन तो खैर
सर्वव्यापी ठहरा। जैसे पुलिस अपने थाना क्षेत्र के अपराध को बगल के थाने में
ढकेलने की कोशिश करती है, वैसे ही स्वास्थ्य केंद्रों व जिला अस्पतालों के
डॉक्टर थोड़ा भी गंभीर मरीज आते ही उसे मेडिकल कालेज ढकेलने की जुगत में लग
जाते हैं। जैसे पुलिस गंभीर वारदात छिपाने की कोशिश करती है, वैसे ही आजकल
डॉक्टर साहब बुखार की गंभीरता छिपाने में लगे हैं। एक डॉक्टर जब मरीज का डेंगू
बताकर इलाज कर रहे होते हैं, तो सरकारी अस्पताल पहुंच कर वह डेंगू सामान्य
बुखार में कैसे बदल जाता है। मेडिकल कालेज जिसे डेंगू बताता है, सीएमओ साहब उसे
खारिज कर देते हैं। पीएचसी, सीएचसी में डॉक्टरों की फौज तैनात है किन्तु नोएडा
के एक ही गांव में दो हफ्ते में दर्जन भर मौतें डॉक्टर साहब को पता नहीं चलतीं।
इसकी जिम्मेदारी जिन सीएमओ साहब पर है, वे तो और मौज में हैं। वे शासन तक सही
जानकारी भेजें न भेजें, इलाज करें या न करें, उन पर कार्रवाई नहीं हो सकती,
इसका भरोसा है उन्हें। कुछ डॉक्टरों के इस 'चरित्रÓ से सिर्फ पीडि़त ही नहीं,
वे डॉक्टर भी दुखी हैं जो मां-बाप के सपनों को पूरा करने के लिए डॉक्टर बने थे।
जनता भी निराश है।  हालांकि यह पब्लिक है... ये सब जानती है। अभी तो पब्लिक
दोहरा रही है दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां...
पक गयी हैं आदतें बातों से सर होंगी नहीं
कोई हंगामा करो ऐसे गुजर होगी नहीं।।

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