Monday 1 August 2016

मैं नीर भरी दुख की बदली...


अरे जल्दी चलो, बस छूट जाएगी। रुको... पानी की बोतल तो भर लूं। छोड़ो, पानी की टेंशन मत लो, अब रोडवेज बस में भी परिवहन नीर मिलने लगा है। घर से यात्रा के लिए निकलते समय यदि ऐसा कोई संवाद आपके साथ हुआ है तो आप फिर गलत साबित हो गए हैं। बड़ी उम्मीदों व घोषणाओं के साथ रोडवेज की बसों में शुरू हुआ परिवहन नीर एक साल भी न चल सका और बंद हो गया। यह सिर्फ परिवहन नीर के साथ ही हुआ हो, ऐसा नहीं है। हम तो हैं ही योजनाओं के शैशवकालीन मृत्यु के विशेषज्ञ। योजनाओं का क्या, हमारे यहां तो जन्म लेने वाले 1000 बच्चों से 35 जन्म लेने के एक माह के भीतर दुनिया छोड़ जाते हैं। यह आंकड़ा राष्ट्रीय आंकड़े से काफी अधिक है। देश भर में औसतन 1000 में 28 बच्चों की जन्म के एक माह के भीतर मौत होती है, हम सात ज्यादा बच्चों को दुनिया छोडऩे पर मजबूर कर देते हैं। पर आप चिंता नहीं करिये, जिस तरह परिवहन नीर के लिए सरकार ने खूब तैयारी की थी, बच्चों को बचाने की तैयारी भी कुछ कम नहीं है। अरे, अभी जुलाई में ही तो हमने पूरा पखवाड़ा मनाया है... मुख्यमंत्री जी ने खुद हरी झंडी भी दिखाई थी। जब हम बच्चों को बचाने में सीरियस नहीं हैं, तो योजनाओं की टेंशन क्यों लें। योजनाएं भी हम समय के साथ बनाते हैं। ऐसा नहीं कि सबके साथ यह होता हो। बीस साल पहले हमने न्यू कानपुर सिटी का सपना दिखाया था... नहीं पूरा किया और जब मूड हो गया तो ट्रांसगंगा बना दी। मेट्रो के डीपीआर बहुत बने, पर चाहा तो लखनऊ मेट्रो को सामने लाकर खड़ा कर दिया। कानपुर-लखनऊ हाईवे चलने लायक बनाने में भले ही बीस साल से संघर्षरत हों, किन्तु लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस-वे हम बनाकर दिखा देंगे। तो समझ में आया, हम जब चाहें, जिस योजना को चाहें... रोक सकते हैं। हम इतनी कमजोर योजना बनाएंगे, कि पैदा होते ही उसकी जान निकल जाए। केजीएमयू में हमने अलग ट्रांसप्लांट विभाग बना दिया... पैसे खर्च कर लिये... पर ट्रांसप्लांट नहीं शुरू किया। अच्छा, अगर हम यहीं ट्रांसप्लांट कर लेते तो साढ़े बाइस मिनट में हवाई अड्डे तक अंगदान के लिए अंग पहुंचाने का कीर्तिमान कैसे बनता। दरअसल हम काम न करके कीर्तिमान बनाना चाहते हैं। हम बिना तैयारी के घोषणा करते हैं। अब देखो न, मंत्री जी ने कहा सभी अस्पतालों में पार्किंग मुफ्त होगी, दो चिट्ठी भी लिखीं... पर पार्किंग मुफ्त हुई... नहीं न। ऐसा ही हमने परिवहन नीर के साथ किया था... बस अपनी चिंता की.. जो कंपनी आई, उसका इतिहास-भूगोल देखे बिना ठेका दे दिया... कुछ लोग खुश हो गए। अब वे लोग नहीं रहे तो नए लोगों को नई कंपनी खुश करेगी... और हां, उनकी खुशी में ही अपनी खुशी समझो तो खुश रहोगे... वरना प्यासे रहो। हम तो बस ऐसे ही हैं... और वर्षों से ऐसे ही हैं... कोई बात नहीं, दुखी मत हो, महादेवी वर्मा की लिखी ये दो पंक्तियां पढ़ो, अपनी सी लगेंगी...
सुख की सिहरन हो अंत खिली
मैं नीर भरी दुख की बदली

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