Friday 13 May 2016

'नीट' से चुने जाएंगे सूबे के 6500 'डॉक्टर'


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-अलग स्टेट रैंक से भरा जाएगा सरकारी कालेजों का 85 फीसद कोटा
-सौ सीटों संग बांदा का कालेज बढ़ा, अगले साल नौ और की तैयारी
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : उत्तर प्रदेश के मेडिकल व डेंटल कालेजों में पढऩे वाले भविष्य के 6500 'डॉक्टर' नेशनल एलिजिबिलिटी कम इंटरेंस टेस्ट ('नीट') से चुने जाएंगे। इस वर्ष बांदा में एक नया मेडिकल कालेज शुरू हो जाने के साथ ही प्रदेश में सरकारी क्षेत्र में एमबीबीएस की 1860 सीटें हो जाएंगी।
प्राइवेट मेडिकल व डेंटल कालेजों की प्रवेश परीक्षा के बाद अब सरकारी कालेजों में प्रवेश के लिए होने वाले कंबाइंड प्री मेडिकल टेस्ट (सीपीएमटी) भी निरस्त होने के बाद प्रदेश में एमबीबीएस व बीडीएस की सभी सीटें सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार 'नीट' से भरी जाएंगी। इस समय निजी कालेजों में एमबीबीएस व बीडीएस की 4540 सीटें हैं। सरकारी क्षेत्र में बीडीएस की 100 सीटें हैं। प्रदेश में चल रहे 13 सरकारी चिकित्सा शिक्षा संस्थानों में एमबीबीएस की 1760 सीटें हैं। इस साल बांदा में नया मेडिकल कालेज शुरू होने जा रहा है। इसकी सौ सीटें मिलाकर एमबीबीएस की 1860 सीटें हो जाएंगी। ये सभी सीटें 'नीट' से भरी जाएंगी। इनमें 15 फीसद सीटें 'नीट' की आल इंडिया रैंकिंग से भरी जाएंगी, 85 फीसद सीटें 'नीट' की स्टेट रैंकिंग से भरी जाएंगी। उसके लिए अलग काउंसिलिंग भी संभावित है। शैक्षिक सत्र 2017-18 में चिकित्सा शिक्षा महकमा नौ और सरकारी मेडिकल कालेजों की तैयारी कर रहा है। इनमें बदायूं का निर्माण तेजी से चल रहा है, ग्र्रेटर नोएडा का आधारभूत ढांचा लगभग तैयार है और लोहिया संस्थान को बस कुछ मंजूरियों व एक भवन बनने का इंतजार है। फैजाबाद, बस्ती, शाहजहांपुर, फीरोजाबाद व बहराइच के जिला अस्पतालों से जोड़कर मेडिकल कालेजों को केंद्र सरकार की मंजूरी मिल चुकी है, वहीं बिजनौर के नजीबाबाद में मेडिकल कालेज की स्थापना प्रदेश सरकार के विकास एजेंडा का हिस्सा है।
एमसीआइ में करनी पड़ी मशक्कत
सरकारी मेडिकल कालेजों की मान्यता बचाए रखने के लिए चिकित्सा शिक्षा महकमे को भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआइ) में खासी मशक्कत करनी पड़ी है। चिकित्सा शिक्षा विभाग ने इस साल बांदा के साथ बदायूं के लिए भी आवेदन किया था, किन्तु कालेज का भवन तक न बने होने के कारण एमसीआइ ने खारिज कर दिया। अन्य कालेजों के लिए भी स्वयं प्रमुख सचिव डॉ.अनूप चंद्र पाण्डेय व महानिदेशक डॉ.वीएन त्रिपाठी को दिल्ली जाकर एमसीआइ में शपथ पत्र देना पड़ा, तब पाठ्यक्रमों को हरी झंडी मिली। इलाहाबाद व मेरठ की आपत्तियों के निस्तारण के लिए ये लोग शुक्रवार को फिर एमसीआइ की शरण में जा रहे हैं।
कहीं मरीज कम, कहीं डॉक्टर
एमसीआइ ने सरकारी मेडिकल कालेजों का आकलन किया तो कहीं मरीज कम मिले तो कहीं डॉक्टर। इन आपत्तियों के साथ सरकार को चेतावनी भी दी गयी और दोबारा स्थितियां सही होने पर ही अनुमति मिल सकी है। सीटी स्कैन मशीनें तो ज्यादातर जगह नहीं हैं। सभी जगह लगवाने का शपथ पत्र देना पड़ा है। इलाहाबाद में आठ प्रतिशत डॉक्टर कम मिले और ईपीबीएक्स मशीन तक नहीं थी। आगरा में दस फीसद शिक्षक कम थे तो उनके आवास तक नहीं थे। मेरठ में मरीजों के इलाज के लिए पर्याप्त बेड के साथ 14 फीसद जूनियर डॉक्टर कम थे। सहारनपुर में महज 58.5 फीसद बेड भरे थे, तो कन्नौज में क्षमता के विपरीत 60 फीसद मरीज ही भर्ती हो रहे थे। जालौन व आजमगढ़ में 15 फीसद शिक्षक कम मिले।

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