Tuesday 20 October 2015

तीन सौ दवा उद्यमियों का पलायन, अब बनेगा फार्मा हब


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-15 साल में 750 से 450 रह गई दवा उत्पादक इकाइयां
-उत्पादन लागत 35 फीसद तक अधिक होने से बढ़ा संकट
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : उत्तर प्रदेश में बीते डेढ़ दशक में तीन सौ दवा उद्यमी पलायन कर गए हैं। इससे चिंतित प्रदेश सरकार ने राज्य में फार्मा हब बनाने का फैसला किया है।
देश के कुल 90 हजार करोड़ रुपये के दवा व्यापार में उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी 17 फीसद है। इसके विपरीत दवा निर्माण के मामले में यह बहुत कम है। हालात ये हैं कि प्रदेश से दवा विक्रेता लगातार पलायन कर रहे हैं। वर्ष 2000 में जहां उत्तर प्रदेश में 750 दवा उत्पादन इकाइयां थीं, जो अब घटकर 450 रह गई हैं। साथ ही नयी दवा उत्पादन इकाइयां भी स्थापित नहीं हो रही हैं। मुख्यमंत्री के समक्ष बीते दिनों यह मुद्दा उठने पर उन्होंने प्रदेश में दवा निर्माण उद्योग की संभावनाएं तलाशने के निर्देश अधिकारियों को दिए थे। उन्होंने एक फार्मा हब विकसित करने के साथ नयी फार्मा नीति बनाने व तदनुरूप प्रोत्साहन व सुविधा पैकेज तैयार करने को कहा था। इसका जिम्मा अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास विभाग के प्रमुख सचिव महेश कुमार गुप्ता को सौंपा गया। उन्होंने उद्योग बंधु, खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन तथा चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक में कहा कि राज्य सरकार फार्मा उद्योग के लिए विशेष प्रावधान पर विचार कर रही है। उद्योग बंधु की संयुक्त अधिशासी निदेशक कंचन वर्मा ने बताया कि इन प्रावधानों में उत्पादन प्रणाली, तकनीकी उन्नयन व परीक्षण प्रयोगशालाओं की स्थापना पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। औषधि प्रशासन विभाग के सहायक आयुक्त एके मल्होत्रा ने बताया कि प्रदेश में गाजियाबाद एवं गौतमबुद्ध नगर में सर्वाधिक दवा उत्पादन इकाइयों के साथ कुछ इकाइयां लखनऊ, कानपुर, वाराणसी, अलीगढ़ व गोरखपुर में भी हैं। बैठक में कहा गया कि उत्तराखंड बनने के बाद वहां मिली छूट के बाद स्थितियां बदलीं। वहां दवा निर्माण औसतन 35 फीसद महंगा होने के कारण लोग चले गए। इसके अलावा विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुरूप उच्च उत्पादन मानदंडों के पालन की शर्त लगा दी गई, जिसके तहत इकाई का उन्नयन जरूरी हो गया और बैंकों ने ऋण देने से इन्कार कर दिया। इस कारण भी कई इकाइयां बंद हो गईं। कई विभागों की मंजूरी की अनिवार्यता में होने वाले झंझट भी दवा उद्योग की बर्बादी का बड़ा कारण माने गए। इस पर तय हुआ कि नीति बनाते समय इन सभी बिंदुओं को ध्यान में रखा जाएगा।
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इसलिए यूपी छोड़ गए उद्यमी
-उत्तराखंड में टैक्स हॉलीडे, सस्ती बिजली व जमीन, उत्पाद शुल्क मुक्ति
-बिना तैयारी विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों पर निर्माण की अनिवार्यता
-उन्नयन में लाभ न बढऩे के कारण बैंकों का ऋण देने से साफ इन्कार
-नयी इकाई स्थापना के लिए प्रदूषण व उद्योग सहित 14 विभागों के चक्कर
-कच्चे माल की उपलब्धता का संकट, महाराष्ट्र में तुलनात्मक आसान

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