Monday 5 October 2015

फार्मासिस्टों का पूल बना दवा दुकानों में नौकरी


-नियमों की लाचारी-
-फर्जीवाड़े से हजारों दुकानें बंद होने की नौबत
-फार्मासिस्ट भी नौकरी के लिए कर रहे आंदोलन
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डॉ.संजीव, लखनऊ
फार्मासिस्ट संकट अब आमने-सामने की लड़ाई में बदल गया है। एक ओर दवा दुकानदार प्रदेश में पर्याप्त फार्मासिस्ट न होने की बात कहकर फार्मासिस्ट अनिवार्यता समाप्त करने की मांग कर रहे हैं, वहीं फार्मासिस्ट इस बात को गलत करार देते हुए नौकरी के लिए आंदोलन कर रहे हैं। जागरण द्वारा बीते दिनों समाचारीय अभियान नियमों की लाचारी में यह मुद्दा उठाए जाने के बाद औषधि प्रशासन विभाग फार्मासिस्टों का पूल बनाकर उन्हें दवा दुकानों में नौकरी दिलाने की तैयारी कर रहा है।
प्रदेश में इसी वर्ष जून में हर दवा दुकान का नवीनीकरण ऑनलाइन कराने का फैसला हुआ है। इससे फर्जीवाड़ा कर एक से अधिक दवा दुकानों में फार्मासिस्ट प्रमाणपत्र लगाने की बात जगजाहिर हो गयी है। माना जा रहा है कि इस समय प्रदेश में ऐसी एक लाख दवा की दुकानें अवैध ढंग से चल रही हैं। फार्मासिस्ट की मौजूदा उपलब्धता के आधार पर इंतजाम सुनिश्चित भी किये जाएं तो हजारों दुकानें तो तत्काल बंद होने की नौबत आ रही है। इस फर्जीवाड़े के खुलासे के बाद दवा दुकानदार परेशान हैं और वे फार्मासिस्टों की नियुक्ति की शर्त हटाने का दबाव शासन पर बना रहे हैं।
दवा दुकानदारों का कहना है कि न्यायमूर्ति केएल शर्मा आयोग की संस्तुतियों के अनुरूप उन्हें तीन माह का प्रशिक्षण देकर योग्य मान लिया जाना चाहिए, किन्तु फार्मासिस्ट इसका विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि प्रदेश में भारी संख्या में बेरोजगार फार्मासिस्ट हैं। उनकी नौकरी का संकट दूर किया जाना चाहिए। इसके लिए वे आंदोलित भी हैं। इस पर खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव हेमंत राव का कहना है कि फार्मासिस्ट बेरोजगार होने की बात कर रहे हैं और दवा दुकानदार फार्मासिस्ट न मिलने की दुहाई दे रहे हैं। ऐसे में फार्मासिस्टों का पूल बनाकर दवा दुकानदारों को उपलब्ध कराया जाएगा, इससे बेरोजगारी भी दूर होगी और फर्जीवाड़े के कारण दवा दुकानों के बंद होने के संकट का भी समाधान हो जाएगा।
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बिना फार्मासिस्ट दुकानें बंद होंगी
प्रमुख सचिव का कहना है कि ऑनलाइन नवीनीकरण प्रक्रिया में जो दुकानें फर्जी प्रमाणपत्र के आधार पर चलती पाई जाएंगी, उन्हें निलंबित कर दिया जाएगा। नियमानुसार हर दवा दुकान पर फार्मासिस्ट होना जरूरी है, इसलिए बिना फार्मासिस्ट के चलने वाली दुकानें बंद कराई जाएंगी। अभी ऑनलाइन नवीनीकरण प्रक्रिया शुरू हुए महज तीन माह हुए हैं, अगले कुछ महीनों में स्थिति और स्पष्ट हो जाएगी। व्यवस्था नियमों से चलती है और नियमानुसार ऑनलाइन नवीनीकरण के बाद गड़बड़ मिली कोई दुकान नहीं चल सकेगी।
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...तो झोलाछाप कहेंगे बनाओ डॉक्टर
दवा विक्रेताओं द्वारा खुद को योग्य मानकर छोटे से प्रशिक्षण के बाद फार्मासिस्ट बनाए जाने के प्रस्ताव का फार्मासिस्ट संगठन विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह पहल खतरनाक साबित हो सकती है। इस तरह तो झोलाछाप डॉक्टर जनता के बीच वर्षों से प्रैक्टिस करने का दावा कर खुद को डॉक्टर के रूप में मान्यता देने की बात कहने लगेंगे। यही नहीं, डॉक्टरों के यहां कुछ लोग वर्षों से कम्पाउंडर के रूप में काम कर दवा दे रहे हैं, वे भी कुछ प्रशिक्षण देकर फार्मासिस्ट या डॉक्टर बनने का दावा करने लगेंगे।
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अब पैकिंग में आती हैं सब दवाएं
दवा विक्रेताओं का तर्क है कि औषधि एवं सौन्दर्य प्रसाधन अधिनियम 1940 व नियमावली 1945 के अनुसार फार्मेसी चलाने वाले के लिए फार्मासिस्ट रखना अनिवार्य है। पहले डॉक्टर के नुस्खे पर फार्मासिस्ट विभिन्न दवाओं को अलग-अलग मात्रा में पीसकर व फिरक मिलाकर मरीज को खुराक देते थे। अब सभी दवाएं पैकिंग में आती हैं और ब्राण्डेड होती हैं। डॉक्टर के पर्चे पर लिखे टेबलेट, कैप्सूल, सिरप, मलहम या इंजेक्शन आदि कोई भी सामान्य अंग्र्रेजी का जानकार व्यक्ति भी दवा देने में सक्षम है। ऐसे में अब फार्मासिस्ट अनिवार्यता बेमतलब है।

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