Wednesday 13 April 2016

कॉमन मेडिकल टेस्ट से बचेंगे पैसे, घटेंगे झंझट

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-रुकेगी निजी कॉलेजों की अराजकता
-एक दर्जन फॉर्म भरने से मिलेगी मुक्ति
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : कॉमन मेडिकल टेस्ट कराए जाने से चिकित्सा शिक्षा जगत में पारदर्शिता व शुचिता के पक्षधर उत्साहित हैं। उनका मानना है कि इससे निजी कॉलेजों की मनमानी और अराजकता तो रुकेगी ही, तमाम फॉर्म भरने के झंझट से मुक्ति पाकर विद्यार्थी तनावमुक्त होंगे, अभिभावकों के पैसे बचेंगे।
भारतीय चिकित्सा परिषद ने वर्ष 2009 से एक संयुक्त प्रवेश परीक्षा के माध्य से देश के सभी मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में प्रवेश के प्रयास शुरू किये थे। वर्ष 2013 में इस पर अमल का फैसला भी हो गया था किन्तु सर्वोच्च न्यायालय के एक आदेश से वह रुक गया था। अब सोमवार को सर्वोच्च न्यायालय ने अपना पुराना आदेश वापस ले लिया तो फिर से कॉमन मेडिकल टेस्ट की राह खुली है। अभी परीक्षा की तैयारी के समय छात्र-छात्राओं को भारी संख्या में फॉर्म भरने, उनके लिए शुल्क का ड्राफ्ट बनवाने या ऑनलाइन चालान जैसी तमाम दिक्कतों से जूझना पड़ता है। इसमें काफी समय बर्बाद होने के साथ औसतन दस से बारह हजार रुपये खर्च आता है। इस फैसले से यह बचेगा। देश भर में अलग-अलग राज्यों में निजी मेडिकल कॉलेजों के संगठन अलग-अलग प्रवेश परीक्षाएं कराते हैं। इनमें भी औपचारिकता होती है और भारी डोनेशन के साथ प्रवेश होते हैं। साझा परीक्षा से निजी कॉलेजों की यह अराजकता भी रुकेगी।
एक विद्यार्थी, दर्जन भर फॉर्म
मेडिकल प्रवेश की तैयारी करने वाला एक विद्यार्थी औसतन दर्जन भर फॉर्म भरता है। इनमें अपने प्रदेश की प्रवेश परीक्षा (जैसे उत्तर प्रदेश में यूपीसीपीएमटी) के अलावा एम्स, एएमयू, एएफएमसी, बीएचयू, जवाहरलाल इंस्टीट्यूट पुडुचेरी, सीएमसी वेल्लोर, महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट वर्धा, इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय दिल्ली के फॉर्म तो लगभग हर छात्र भरता है।
बचेगी दौड़भाग, न होगा टकराव
देश में एक मेडिकल प्रवेश परीक्षा की लंबे समय से पैरोकारी कर रहे धीरज शुक्ला का मानना है कि इस फैसले से परीक्षार्थियों की दौड़भाग बचेगी। वे तनावमुक्त तो होंगे ही, उनके पैसे भी बचेंगे। सबसे बड़ा आराम तो परीक्षा की तारीखों में टकराव से मुक्ति के रूप में सामने आएगा। अभी कई बार तो एक ही दिन दो प्रवेश परीक्षाएं पड़ जाती हैं, तो परीक्षार्थी उनमें से कोई एक परीक्षा छोडऩे पर विवश होता है। कई बार एक दिन परीक्षा बंगलुरू में होती है तो अगले दिन लखनऊ में। ऐसे में भी उनके सामने परीक्षा छोडऩे या बिना तैयारी परीक्षा देने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है।
बढ़ेगी प्रवेश में पारदर्शिता
चिकित्सा शिक्षा महकमा भी कॉमन मेडिकल टेस्ट ही चाहता है। चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक डॉ.वीएन त्रिपाठी ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय का फैसला स्वागत योग्य है। एक प्रवेश परीक्षा से मेडिकल व डेंटल कॉलेजों की प्रवेश प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ेगी। विद्यार्थियों को तो लाभ होगा ही, निजी मेडिकल व डेंटल कॉलेजों पर प्रशासनिक नियंत्रण भी और मजबूत होगा।

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