Sunday 2 January 2022

उम्मीदों और नयी जिम्मेदारियों वाला नया साल

डॉ.संजीव मिश्र

वर्ष 2021 बीत चुका है। वह वर्ष जिसने हममें से अधिकांश के आसपास तनाव, दुख व कष्ट का वातावरण सृजित कर दिया था। कोरोना से देश में हुई मौतें और कई बार इलाज भी न करा पाने का दर्द आज भी लोगों को पीड़ा की अनुभूति करा रहा है। ऐसे में वर्ष 2022 हर नए वर्ष की तरह उम्मीदों की पोटली लेकर तो आया है किन्तु नयी जिम्मेदारियों की चुनौती भी साथ लाया है।

वर्ष 2021 का स्वागत करते समय हम नवोन्मेष की उम्मीदों के साथ कोरोना रूपी अंतर्राष्ट्रीय तनाव से जूझ रहे थे। हम कोरोना टीकाकरण से तमाम उम्मीदें लगाए हुए थे। इसके बावजूद वर्ष 2021 तमाम कड़वी यादें देकर गया है। बीते दो वर्ष तमाम अनुभवों के बीच देश के रुकने, बच्चों के स्कूल छूटने और वर्क फ्रॉम होम जैसी यादें तो देकर गए ही हैं, साथ ही ऐसी चुनौतियां व समस्याओं की सौगात देकर गए हैं, जिनके समाधान हमें मिलकर खोजने होंगे। 2021 में भीषण कोरोना संकट के बीच दिल्ली का किसान आंदोलन भी नहीं भुलाया जा सकेगा। भीषण सर्दी में देश के किसान अपनी मांगों को लेकर दिल्ली सीमा पर डटे रहे और अंततः सरकारों को किसानों के सामने झुकना पड़ा। किसान आंदोलन तो रुक गया किन्तु खेती की चुनौतियां वर्ष 2022 के हिस्से में भी वैसी की वैसी हैं। देश की जिम्मेदारी है कि वे अन्नदाताओं को उनकी फसल का उपयुक्त मूल्य मुहैया कराएं, अन्यथा एक नए आंदोलन से बचा नहीं जा सकेगा।

दो साल से बस कुछ अधिक ही समय हुआ है, जब सर्वोच्च न्यायालय ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का पथ प्रशस्त करते हुए ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। तब लगा था कि देश में साम्प्रदायिक सद्भाव का पथ प्रशस्त होगा। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अयोध्या में श्रीराम मंदिर के निर्माण कार्य की शुरुआत करने के लिए वहां पहुंचे थे। हिन्दुओं व मुस्लिमों के बीच वर्षों पुराना विवाद सुलझ जाने से उनके बीच सद्भाव की राह खुलने की उम्मीदों के बीच मथुरा में श्रीकृष्ण जन्म भूमि को लेकर सवाल उठाए जाने लगे हैं। स्वयं उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य इस सिलसिले में बयान देकर मामला गर्मा चुके हैं। उधर काशी विश्वनाथ धाम के भव्य कारीडोर की शुरुआत कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्षों पुराने अयोध्या-मथुरा-काशी के भाजपाई संकल्प के एक हिस्से पर अमल का संदेश दिया है। 2022 में पांच राज्यों के चुनाव के बीच मथुरा का मुद्दा बार-बार सामने आने की पूरी उम्मीद है। यह वर्ष ऐसे तमाम मसलों से निपटने की जिम्मेदारियों वाला नव वर्ष भी है।

इन सबसे अलग देश के सामने 2022 के लिए सबसे बड़ी चुनौती कोरोना ही बना हुआ है। 2021 में कोरोना के पहले संस्करण के लिए टीका बाजार में आ भी नहीं पाया था कि कोरोना के दूसरे संस्करण ने दस्तक दे दी थी। उसके बाद जिस तेजी से भारत में लोगों ने कोरोना से जान गंवाई, उसे भूला नहीं जा सकता। हर घर के आसपास किसी न किसी की मृत्यु हुई। श्मशान घाट छोटे पड़ गए। शव नदियों में बहाए गए। हालात ये है कि मरीज और अस्पताल का अनुपात बिगड़ गया। तमाम मरीज तो अस्पताल व इलाज के अभाव में दम तोड़ गए। भारी संख्या में ऐसे मरीज भी थे, जो किसी तरह अस्पताल पहुंच भी गए तो ऑक्सीजन के संकट ने उनकी जान ले ली। यह आपदा इस कदर अप्रत्याशित थी कि सरकारी तैयारियां कम पड़ गयीं। इस संकट के बावजूद 2021 में हम कोरोना टीकाकरण में आत्मनिर्भर नजर आने लगे थे। देश में तेजी से टीकाकरण हुआ, जिससे लगा कि अब मौतों की संख्या में कमी आएगी। भारत भर में धीरे-धीरे स्थितियां सामान्य सी दिखने भी लगी थीं। स्कूल-कॉलेज से लेकर बाजार-दफ्तर तक खुल गए थे, तभी 2022 आते आते कोरोना का तीसरा संस्करण दस्तक दे चुका है। एक बार फिर देश में दहशत का मंजर है। इसके लिए बीमारी के साथ लापरवाही भी खासी जिम्मेदार है। लोग दो गज दूरी और मास्क है जरूरी जैसे स्लोगन भूल सा चुके हैं। बाजारों में भीड़ बेतहाशा हो रही है। यही नहीं राजनीतिक दल भी अपनी जिम्मेदारियों के प्रति सचेत नहीं हैं। पांच राज्यों के चुनाव इसी वर्ष होने के चलते राजनीतिक दलों की रैलियों में भारी भीड़ हो रही है और सत्ता को लक्ष्य माने जाने के कारण कोई राजनीतिक दल इनसे दूरी नहीं बना रहा। ऐसे में 2022 कोरोना के तीसरे संस्करण की भयावहता की चुनौती के साथ इससे निपटने की जिम्मेदारियों वाला नया साल भी है।

भारत में कोरोना ने सिर्फ मौतें ही नहीं दी हैं, बेरोजगारी, आर्थिक संकट के साथ सामाजिक व मानसिक विकारों में भी वृद्धि की है। विद्यार्थी महीनों अपने स्कूल-कालेज का मुंह नहीं देख पाए। ऑनलाइन पढ़ाई के नाम पर पढ़ाई-लिखाई की बातें तो खूब हुईं किन्तु वह पढ़ाई पूरी तरह प्रभावी साबित हुई हो, यह नहीं कहा जा सकता। जिस तरह कोरोना के तीव्र प्रवाह में नौकरियां बही हैं, पहले से ही सुस्त अर्थव्यवस्था में इस संकट ने और पलीता लगाया है। आर्थिक संकट और कोरोना की तीसरी लहर जैसी सौगातों के साथ 2022 में प्रवेश करते भारत की सबसे बड़ी चुनौती कोरोना संकट का समाधान है। कोरोना के पहले ही स्ट्रेन में हमने देख लिया था कि हम कोरोना जैसी बीमारी के लिए बिल्कुल तैयार नहीं हैं। कोरोना के कारण कोरोना से इतर बीमारियों का इलाज भी जिस तरह थम सा गया था, वह चिंता का विषय है। कोरोना के गंभीर मरीजों को सघन चिकित्सा उपलब्ध कराना दुष्कर हो रहा था और अस्पतालों में कोरोना के इलाज के चलते अन्य बीमारियों के मरीज लाइलाज रह जा रहे थे। इस कारण भी भारी संख्या में मौतें हुई और कई जगह तो इनका संज्ञान भी नहीं लिया गया। ऐसे में 2022 का स्वागत करते हुए हमें इन चुनौतियों से निपटने और तदनुरूप रणनीति बनाने की जरूरत है। जनता को भी इसके लिए तैयार रहना होगा। सिर्फ सरकार के भरोसे रहने से तो काम नहीं चलेगा। 

खास बात ये है कि वर्ष 2022 के स्वागत के लिए जगह-जगह जुटे लोगों की भीड़ देखें तो लगता है मानो किसी ने पिछले वर्षों से मचे घमासान से कोई सीख ही नहीं ली है। सड़क पर एक साथ दूरियां मिटाते लोगों की भीड़ दिख जाती है। उनमें भी अधिकांश मास्क नहीं लगाए होते हैं। ऐसे में 2022 के लिए बीमारी के साथ अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी व सामाजिक दायित्वों के प्रति उदासीनता जैसी चुनौतियां सामने हैं। हर किसी को बीते हुए समय से सीख लेकर आगे की जिम्मेदारियों के ईमानदार निर्वहन का संकल्प लेना होगा। ऐसे में गिरिधर कविराय की ये पंक्तियां हर मन पर छायी हैं,

बीती ताहि बिसारि देआगे की सुधि लेइ।

जो बनि आवै सहज मेंताही में चित देई।।

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