Thursday 3 November 2016

मान्यता पाकर भी मेडिकल व डेंटल कालेजों में सन्नाटा


-प्रदेश में एमबीबीएस व बीडीएस की 2553 सीटें खाली
-एक बार तिथि बढ़ाने के बाद भी नहीं मिले विद्यार्थी
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डॉ.संजीव, लखनऊ:
पिछले वर्ष तक मान्यता के अभाव में प्रदेश में एमबीबीएस व बीडीएस में प्रवेश का हजारों विद्यार्थियों का सपना टूटता था। इस वर्ष मान्यता पाकर भी मेडिकल व डेंटल कालेज विद्यार्थियों का सन्नाटा झेल रहे हैं। यहां एमबीबीएस व बीडीएस की 2553 सीटें खाली रह गयी हैं और सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक बार तिथि बढ़ाने के बाद भी उन्हें विद्यार्थी नहीं मिले हैं।
प्रदेश में 28 निजी मेडिकल कालेजों में 3900 एमबीबीएस व 23 डेंटल कालेजों में 2300 बीडीएस सीटों को इस वर्ष मान्यता मिली है। इनमें से तमाम मेडिकल कालेजों को तो ऐन मौके पर मान्यता मिली थी। मान्यता के बाद ये मेडिकल कालेज खासे प्रफुल्लित थे किन्तु काउंसिलिंग खत्म होने के बाद उनमें खासी निराशा व्याप्त है। दरअसल पिछले वर्ष तक निजी कालेज मनमाने ढंग से प्रवेश लेते थे। इस वर्ष राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंटरेंस टेस्ट (नीट) से ही प्रवेश की अनिवार्यता के बाद स्थितियां बदल गयीं। पहली काउंसिलिंग में तो ज्यादातर सीटें खाली थीं और सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रवेश के लिए निर्धारित अंतिम तिथि 30 सितंबर तक अधिकांश सीटें खाली रह जाने पर प्रदेश सरकार ने प्रवेश तिथि बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में गुहार की। सुप्रीम कोर्ट ने एक मौका देते हुए सात अक्टूबर तक प्रवेश की छूट दे दी, किन्तु इसके बाद भी एमबीबीएस की 1145 व बीडीएस की 1408 सीटें खाली रह गयी हैं। सुप्रीम कोर्ट में देश भर के कालेजों में खाली सीटें भरने के लिए याचिका दायर होने के बाद इन कालेजों को उम्मीद जगी थी किन्तु वहां से तिथि बढ़ाने की अनुमति न मिलने से ये निराश हैं। अब इन कालेजों में सन्नाटा रहना तय माना जा रहा है।
98 फीसद तक सीटें खाली
निजी मेडिकल कालेजों की हालत इस कदर खराब है कि फर्रूखाबाद के एक कालेज की 98 फीसद सीटें खाली रह गयी हैं। 28 मेडिकल कालेजों में से नौ कालेजों की ही सभी सीटें भर सकी हैं, वहीं नौ कालेजों की आधे से अधिक सीटें खाली हैं। सहारनपुर के एक कालेज की 82 फीसद और अमरोहा के कालेज की 76 फीसद सीटें खाली हैं।
सिर्फ एक डेंटल कालेज भरा
हालत ये है कि सिर्फ गाजियाबाद का एक कालेज ही पूरा भर सका है। मेरठ व गाजियाबाद के एक-एक कालेज में तो सिर्फ सात-सात विद्यार्थियों ने ही प्रवेश लिया और 93 फीसद सीटें खाली हैं। गाजियाबाद के एक अल्पसंख्यक कालेज में बीडीएस की 85 फीसद सीटें नहीं भर सकीं। कुल मिलाकर 23 में से 21 कालेजों की आधे से अधिक सीटें खाली हैं।
फीस बढ़वाकर फंस गए
निजी मेडिकल व डेंटल कालेज फीस बढ़वाकर फंस गए। प्रदेश सरकार ने पहले आधी सीटों के लिए 36 हजार रुपये और शेष आधी सीटों के लिए एमबीबीएस में औसतन साढ़े नौ लाख रुपये के आसपास शुल्क निर्धारित किया था। बाद में मेडिकल कालेज संचालकों ने सत्ता से मिलीभगत कर फीस साढ़े ग्यारह लाख रुपये वार्षिक करा ली। सामान्य स्थिति में निजी कालेज इससे अधिक फीस लेते थे, किन्तु इस बार नीट की अनिवार्यता, ऊपर से लिखा-पढ़ी में इतनी फीस, अधिकांश अभिभावक आगे ही नहीं आए और कालेज खाली रह गए।

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