Thursday 10 November 2016

सरकारी दफ्तरों में चलता रहा नोट मैनेजमेंट

-कहीं अपनों को सूचना देने की खीज, तो कहीं पैसे जाने का दर्द
-आइएएस अफसरों को याद आया महाभ्रष्ट चुनने का अभियान
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : फलां अफसर के पास तो बड़े नोटों की कई गड्डियां होंगी, अब वह क्या करेंगे? अरे नहीं, उनसे ज्यादा गड्डियां तो अमुक अफसर के पास होंगी, जरा सोचो उनका क्या हाल होगा। सचिवालय के एक कमरे में बुधवार को दो वरिष्ठ आइएएस अफसरों का नाम लेकर यह चर्चा हो रही थी। बुधवार सुबह से सचिवालय ही नहीं, सभी सरकारी दफ्तरों में कमोवेश इसी तरह के नोट मैनेजमेंट पर फोकस रहा।
मंगलवार रात अचानक पांच सौ व एक हजार के नोटों का चलन बंद करने की घोषणा के बाद बुधवार सुबह सरकारी दफ्तर खुले तो चर्चाएं भी इसी फैसले पर सिमटी थीं। एक बार फिर आइएएस अफसरों को कुछ वर्ष पहले चला महाभ्रष्ट चुनने का अभियान याद आ गया। एक वरिष्ठ अफसर का कहना था कि उस समय कई ईमानदार अफसर भी महाभ्रष्ट चुनने की मुहिम का विरोध इसलिए नहीं कर रहे थे, क्योंकि इससे उन पर भ्रष्ट होने का ठप्पा लग सकता था। इसी तरह कई भ्रष्ट माने जाने वाले अफसर भी मुहिम के समर्थन में खड़े होकर स्वयं को ईमानदार साबित कर रहे थे। ठीक उसी तरह इस समय यदि कोई नोट बंद किये जाने का विरोध करे, तो उसे बेईमान मान लिया जाएगा। एक अफसर ने तो देश के दो बड़े उद्यमियों का नाम लेकर कहा, उन्हें सब कुछ पता होगा। उनके सहित सरकार के निकटस्थ लोग अपना पूरा नोट मैनेजमेंट कर चुके होंगे, तब जाकर पाबंदी लगी होगी। एक अफसर ने कहा, अपनों को बताने के बाद हमारे पास जो थोड़ा-बहुत है, उस पर नजर गड़ाई गयी है। मातहत कर्मचारी भी तरह-तरह की बातें कर रहे थे। एक कर्मचारी ने दूसरे के बॉस के  बारे में कहा, तुम्हारे साहब कैसे करेंगे नोट मैनेजमेंट, तो दूसरा बोला, अपने साहब की चिंता करो, जो पूरी पूरी गड्डियां मैनेज होती हैं।
जब बख्शीश से किया इन्कार
सचिवालय व एनेक्सी आदि में लिफ्ट से लेकर अफसरों के कमरों के बाहर तक बख्शीश का दौर चलता है। महंगाई के दौर में बख्शीश भी पांच सौ व हजार के नोट तक पहुंच चुकी थी, किंतु बुधवार को एक कर्मचारी ने पांच सौ का नोट लेने से यह कहकर इन्कार कर दिया कि साहब यह नोट तो चलेगा ही नहीं, हम इसका क्या करेंगे। कुछ कर्मचारियों ने काम के लिए जो एडवांस ले रखा था, उस धनराशि के प्रबंधन की चर्चाएं भी होती रहीं। 

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