Saturday 31 October 2020

कोरोना प्रबंधन में तो भेदभाव न करते

डॉ.संजीव मिश्र

कोरोना को देश में आए छह महीने से ज्यादा हो गए हैं। कोरोना जैसी बीमारियों को लेकर हम कितना तैयार हैं, यह तो कोरोना की दस्तक के साथ ही अंदाजा लग गया था किन्तु इन छह महीनों में हम इलाज तो दूर प्रबंधन के लिए एक समान प्रोटोकॉल तक नहीं बना पाए। कोरोना संक्रमित होने के बाद ही इस भेदभाव का असली पता चलता है।

देश भर में कोरोना एक महामारी के रूप में सामने आया है। कोरोना संक्रमण अपने आप में भयावह है ही, इससे निपटने का तरीका और भी भयावह है। दरअसल एक देश के रूप में हम कोरोना जैसी महामारी के लिए तैयार ही नहीं थे। कोरोना आने के बाद पता चला कि आजादी के बाद से अब तक देश को स्वास्थ्य सेवाओं के लिए मजबूती से तैयार ही नहीं किया गया। देश में तो कोरोना जैसी बीमारी से निपटने के लिए उपयुक्त अस्पताल ही नहीं हैं। डॉक्टर तो वैसे भी जरूरत से काफी कम हैं। अब जब कोरोना का संकट आ ही गया था तो हमें इससे सबक लेना चाहिए, किन्तु ऐसा नहीं हुआ। कोरोना के सबक से देश के स्वास्थ्य तंत्र की सेहत सुधारने की जरूरी पहल होनी चाहिए, ताकि हम कभी भी, किसी तरह की स्वास्थ्य संबंधी आपदा से निपटने के लिए तैयार हो सकें। इसके विपरीत कोरोना से बचाव के लिए पूरा फोकस दिखावटी ज्यादा ही लग रहा है। मरीज के कोरोना संक्रमित होते ही भेदभाव शुरू हो जाता है। कुछ प्राइवेट जांच वाले तो बस मरीज को अस्पताल भेजने का ठेका ही लिए रहते हैं, जिससे अस्पतालों के दिन बहुर सकें। वहीं सरकारी अस्पतालों में इतने बेड ही नहीं हैं कि सभी का इलाज हो सके।

दरअसल कोरोना की भारत में दस्तक तमाम चुनौतियों और सच्चाइयों के खुलासे की दस्तक भी है। भारत से पहले जब चीन में कोराना का हाहाकार मचा था, तो चीन ने एक सप्ताह में 12 हजार शैय्या का अस्पताल बनाने की चुनौती को स्वीकार किया और ऐसा कर दिखाया। ऐसे में भारत के सामने ऐसी ही चुनौती सामने थी। हमने जो भी काम किये वे अपर्याप्त साबित हुए। वैसे भी एक देश के रूप में भारत स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने के मामले में खासा फिसड्डी साबित हुआ है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हुए शोध में 195 देशों के बीच स्वास्थ्य देखभाल, गुणवत्ता व पहुंच के मामले में भारत 145वें स्थान पर है। हालात ये है कि इस मामले में हम अपने पड़ोसी देशों चीन, बांग्लादेश, भूटान व श्रीलंका आदि से भी पीछे हैं। आम आदमी तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाने में विफलता के साथ-साथ चिकित्सकों की उपलब्धता के मामले में भी भारत का हाल बेहाल है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के मुताबिक एक हजार आबादी पर औसतन एक चिकित्सक होना जरूरी है किन्तु भारत में ऐसा नहीं है। यहां पूरे देश का औसत लिया जाए तो 1,445 आबादी पर एक चिकित्सक ही उपलब्ध है। अलग-अलग राज्यों की बात करें तो हरियाणा जैसे राज्य की स्थिति बेहद खराब सामने आती है। हरियाणा में एक डॉक्टर पर 6,287 लोगों की जिम्मेदारी है। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश का हाल भी कुछ अच्छा नहीं है। यहां 3,692 आबादी के हिस्से एक डॉक्टर की उपलब्धता आती है। देश की राजधानी होने के बावजूद दिल्ली तक विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों पर खरी नहीं उतरती और यहां एक डॉक्टर के  सहारे 1,252 लोग हैं। मिजोरम व नागालैंड में तो 20 हजार से अधिक आबादी के हिस्से एक डॉक्टर की उपलब्धता है। ऐसे में यहां इलाज कितना दुष्कर होगा, यह स्वयं ही समझा जा सकता है।

कोरोना संकट के बाद हम सबके लिए न्यूनतम स्वास्थ्य प्रोटोकाल पर फोकस करना जरूरी हो जाता है। पूरे कोरोना काल में ऐसा न हो सका। जिस तरह बिहार में विधान सभा चुनाव अभियान के दौरान रैलियों में भीड़ उमड़ रही है , उससे कोरोना प्रोटोकॉल के प्रति हमारी व हमारे नेताओं की गंभीरता साफ समझ में आ रही है। कोरोना संक्रमण के बाद भी मरीजों के साथ समान व्यवहार न होना दुर्भाग्यपूर्ण है। कोरोना संक्रमण के बाद सामान्य स्थितियों में होम आइसोलेशन पर जोर दिया जा रहा है। आइसोलेशन में भी भेदभाव हो रहा है। इसमें मरीजों के आर्थिक व सामाजिक स्तर को देखकर होने वाला भेदभाव ही शामिल नहीं है, जिला व प्रदेश स्तर पर नियोजन में भी भेदभाव है। आप हरियाणा में हैं तो आइसोलेशन प्रोटोकॉल अलग है, उत्तर प्रदेश में अलग। उत्तर प्रदेश में भी कानपुर में हैं तो स्वास्थ्य विभाग के लोग आपको एक कमरे में कैद कर मेडिकल स्टोर का नाम बता देंगे, दवा लाने के लिए। सैनिटाइजेशन घर के भीतर करेंगे ही नहीं। इसके विपरीत नोएडा में कई बार आपको दवा भी देंगे और घर के भीतर हर तीसरे दिन सैनिटाइजेशन होगा।

ये स्थितियां बेहद खतरनाक हैं।  अब जबकि यह स्पष्ट हो चुका है कि सघन चिकित्सा कक्ष से लेकर एक साथ लाखों लोगों के उपचार तक के लिए हम पूरी तरह तैयार तक नहीं है, हमें कोरोना जैसी बीमारी के लिए समान प्रोटोकॉल तो बनाना ही पड़ेगा, ताकि मरीजों के बीच भेदभाव न हो। जिस तरह हमने पोलियो व स्मालपॉक्स (बड़ी माता) जैसी बीमारियों से संगठित रूप से मुकाबला किया, उसी तरह हमें कोरोना जैसी बीमारी से निपटना होगा। इसके लिए जनता, चिकित्सकों के साथ सरकारों को भी एक साथ गंभीरता दिखानी होगी। कोरोना हमें हमारी तैयारियों का आंकलन करने का अवसर भी दे रहा है, जिसके हिसाब से हमें आगे की कार्ययोजना बनानी होगी।

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