डॉ. संजीव
मिश्र
हिन्दू धर्म
खतरे में है?
देश में चल रहे तमाम झंझावातों के बीच में हिन्दू धर्म को लेकर
यह भय भी सार्वजनिक हो रहा है। हाल ही में तनिष्क के एक विज्ञापन को लेकर जिस तरह
हंगामा हुआ, उसके बाद तो साफ लग रहा है कि लोगों को हिन्दू धर्म के खतरे में होने
की चिंता देश की अर्थव्यवस्था, विकास और कोरोना जैसी बीमारियों से अधिक खाए जा रही
है। देश के एक वर्ग की इन चिंताओं के बीच यदि हम प्राचीन भारतीय विमर्श को आधार
मानें तो हिन्दू धर्म कभी इतना कमजोर नहीं हो सकता, जितना इस समय बताया जा रहा है।
अडानी-अंबानी
जैसे कई औद्योगिक समूहों के सतत विकास के इस दौर में भी देश के प्रति टाटा समूह के
औद्योगिक योगदान को नकारा नहीं जा सकता। टाटा समूह ने देश में ही नहीं दुनिया भर
में अपनी श्रेष्ठ औद्योगिक परंपराओं का पालन करते हुए मजबूत जगह बनाई है। उसी टाटा
समूह के एक प्रतिष्ठान तनिष्क के हाल ही में जारी एक विज्ञापन पर मचा हंगामा देश
के सहिष्णु व समभाव के मूल तत्व से मेल नहीं खाता। तनिष्क के एकत्वम् अभियान में
मुस्लिम घर में हिन्दू बहू को लेकर जिस तरह हंगामा मचा, उससे तो साफ लगता है मानो
लोग इसकी प्रतीक्षा ही कर रहे थे। हंगामा करने वालों के अपने तर्क हो सकते हैं और
बाजार को इस ओर ध्यान भी देना चाहिए, किन्तु ऐसे विज्ञापनों से हिन्दू धर्म खतरे
में आ जाए यह नहीं माना जा सकता। हंगामा करने वालों का कहना है कि सद्भाव स्थापना
के नाम पर बेटियां हिन्दू होती हैं और बेटे मुसलमान। वे चाहते हैं कि ऐसे विज्ञापन
भी बनें, जिसमें मुस्लिम लड़की के गाल पर हिन्दू लड़का रंग लगा रहा हो या हिन्दू
लड़के के घर पर दीवाली में रंगोली सजाए मुस्लिम लड़की लक्ष्मीपूजन करे। सद्भाव के
मूल में ऐसी अपेक्षाएं की जा सकती हैं किन्तु इसके विपरीत होने पर हिन्दू धर्म को
चुनौती मिलेगी, यह नहीं माना जा सकता। हिन्दू धर्म कभी इस तरह से कमजोर नहीं रहा
है। यह हिन्दू धर्म की सर्वस्वीकार्यता ही रही है कि तमाम आक्रमणों के बाद भी मूल
हिन्दुत्व का भाव कमजोर नहीं हुआ। लोग एक दूसरे के साथ कदम से कदम मिलाकर चलते रहे
और बड़ी संख्या में आज भी चल रहे हैं।
19वीं शताब्दी
में हिन्दुत्व के झंडाबरदारों की जब-जब बात होगी, तो स्वामी विवेकानंद का नाम जरूर
लिया जाएगा। जब स्वामी विवेकानंद का नाम हिन्दुत्व के साथ जोड़ा जाएगा, तो अमेरिका
के शिकागो में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में उनके भाषण को भी जरूर याद किया जाएगा।
11 सितंबर 1893 को शिकागो में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में हिन्दू धर्म का
प्रतिनिधित्व करते हुए स्वामी विवेकानंद ने कहा था, ‘मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूँ, जिसने दुनिया को
सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता
में ही विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में
स्वीकार करते हैं’। जिस समय स्वामी विवेकानंद अपने विश्व
प्रसिद्ध भाषण में हिन्दू धर्म को सहनशील और सार्वभौमिक स्वीकार्यता वाले धर्म के
रूप में परिभाषित कर रहे होंगे, उस समय उन्हें यह अंदाजा भी नहीं होगा सवा सौ साल
बाद उनके ही अपने देश भारत में महज एक विज्ञापन से हिन्दू धर्म खतरे में पड़
जाएगा। वे नहीं सोच पाए होंगे कि आज जिस सहनशीलता को वे हिन्दू धर्म की पहचान बता
रहे हैं, भविष्य में हिन्दू धर्म के सामने सहनशीलता ही सबसे बड़ी कसौटी और चुनौती
के रूप में सामने आएगी। आज तो स्वयं को स्वामी विवेकानंद का अनुयायी बताने वाले भी
हिन्दुत्व के मसले पर सहनशीलता का मापदंड नकारते नजर आ रहे हैं।
स्वामी
विवेकानंद ही नहीं, महात्मा गांधी ने भी हिन्दू धर्म को लेकर बहुत कुछ लिखा है।
गांधी वांग्मय में महात्मा गांधी को यह कहते हुए उद्धृत किया गया है कि सत्य की
अथक खोज का ही दूसरा नाम हिन्दू धर्म है। निश्चित रूप से हिन्दू धर्म ही सबसे अधिक
सहिष्णु धर्म है। यंग इंडिया के 20 अक्टूबर 1927 के अंक में प्रकाशित आलेख में भी
महात्मा गांधी ने लिखा, अध्ययन करने पर जिन धर्मों को मैं मानता हूं, उनमें मैंने
हिन्दू धर्म को सर्वाधिक सहिष्णु पाया है। इसमें सैद्धांतिक कट्टरता नहीं और ये
बात मुझे बहुत आकर्षित करती है। हिन्दू धर्म वर्जनशील नहीं है, इसलिए इसके अनुयायी
न केवल दूसरे धर्मों का आदर करते हैं, बल्कि वे सभी धर्मों की अच्छी बातों को पसंद
करते हैं। महात्मा गांधी के ये विचार भी तनिष्क जैसे विज्ञापनों से हिन्दू धर्म को
खतरा बताने वालों के साथ मेलमिलाप नहीं कर पा रहे हैं। खास बात ये है कि गांधी को
मानने का दावा करने वाले भी खुलकर इस सैद्धांतिक कट्टरता का विरोध नहीं कर पा रहे
हैं। वैसे महज एक विज्ञापन में हिन्दू लड़की के मुस्लिम बहू बन जाने से परेशान
लोगों में ज्यादातर उस राजनीतिक दल के समर्थक हैं, जिसके अधिकांश मुस्लिम चेहरों
की पत्नियां हिन्दू हैं। उऩके पास इस सवाल का जवाब नहीं होता है, कि जब एक
विज्ञापन में मुस्लिम घर की हिन्दू बहू उन्हें अंदर तक हिला डालती है तो वे उस
राजनीतिक दल का समर्थन कैसे करते हैं, जिसके अधिकांश मुस्लिम नेताओं ने हिन्दू
युवतियों से विवाह किया है। इस समय देश को आंतरिक सद्भाव की सर्वाधिक आवश्यकता है,
जिस पर सबको मिलकर काम करना होगा।
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