Wednesday 13 March 2019

नयी भाजपा का नया ‘डिफरेंस’



डॉ. संजीव मिश्र

भारतीय जनता पार्टी के किसी नेता से आप पार्टी को एक लाइन में समझाने के लिए कहें, तो जवाब मिलेगा, हम ‘पार्टी विद डिफरेंस’ हैं। सीधा मतलब है कि भाजपा अन्य राजनीतिक दलों की तरह न होकर कुछ अलग पार्टी है। समूचा भाजपा नेतृत्व भी इस समय इसी ‘डिफरेंस’ पर फोकस कर नए भारत के पूर्ण निर्माण के लिए 2019 के लोकसभा चुनाव में देश से दोबारा जनादेश मांग रहा है। इस बीच नयी भाजपा का नया ‘डिफरेंस’ भी खुलकर सामने आ रहा है। लोकसभा चुनाव के ठीक पहले जिस तरह एक बैठक में प्रदेश के कद्दावर मंत्री के सामने भाजपा के सांसद ने भाजपा के ही विधायक को जूतों से पीटा, वह नयी भाजपा के इस नये ‘डिफरेंस’ की बानगी भर है।
भारतीय जनता पार्टी स्थापना काल से ही स्वयं को सबसे अलग साबित करने का ध्येय वाक्य लेकर आगे बढ़ रही है। पिछले कुछ वर्षों से पार्टी में आंतरिक विभाजन की खबरें भी खुलकर सामने आती रही हैं। भाजपा के सांसद शत्रुघ्न सिन्हा से लेकर कई बड़े नेता पार्टी के भीतर इस विभाजन को लेकर आवाज भी उठाते रहे हैं। शत्रुघ्न सिन्हा तो कई बार खुल कर कह चुके हैं कि आडवाणी खेमे का होने के कारण उनके साथ पार्टी के भीतर भेदभाव हुआ है। अब शत्रुघ्न सिन्हा कितना सही कह रहे हैं, यह तो सिन्हा व भाजपा जाने, किन्तु उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर में जिस तरह सांसद-विधायक के बीच पहले जूते, फिर थप्पड़ चले, उससे पार्टी के ‘डिफरेंस’ का नया आयाम जरूर सामने आया है। जिस समय जूते चले, उस समय प्रदेश भाजपा के कद्दावर नेता व प्राविधिक शिक्षा मंत्री आशुतोष टंडन स्वर्णिम भविष्य की योजना के लिए बैठक कर रहे थे। ऐसे में भविष्य के नियोजन की बात तो नहीं हो सकी, वर्तमान जरूर कलुषित हो गया। पार्टी के सांसद शरद त्रिपाठी ने विधायक राकेश सिंह बघेल को जूतों से पीटा, तो बघेल ने त्रिपाठी पर थप्पड़ बरसाए। हालात ये हो गए कि टंडन को तत्काल इस घटनाक्रम से दूरी बनानी पड़ी। भाजपा इस घटनाक्रम के बाद कड़ी कार्रवाई की बात तो कर रही है, किन्तु इस कारण हुई थू-थू से कैसे निपटेगी, यह नहीं बता पा रही।
दरअसल यह लड़ाई शरद व राकेश के बीच की नहीं, पार्टी के भीतर दो गुटों के घमासान की है। शरद त्रिपाठी के पिता रमापति राम त्रिपाठी भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेता हैं और प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं। उधर राकेश को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का करीबी माना जाता है। राकेश संत कबीर नगर में योगी आदित्यनाथ की हिन्दू युवा वाहिनी के चेहरे रहे हैं। यही कारण है कि मार-पीट के बाद धरने पर बैठे राकेश ने मुख्यमंत्री से बात होने के बाद ही धरना खत्म किया। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले इस घमासान की जड़ में लोकसभा चुनाव की प्रत्याशिता भी है। शरद और राकेश, दोनों ही 2014 व 2017 में पहली बार सांसद व विधायक बने हैं। शरद इस बार दोबारा लोकसभा चुनाव मैदान में उतरना चाहते हैं, तो राकेश की सांसद बनने की महत्वाकांक्षा हिलोरें ले रही है। महत्वाकांक्षाओं का यह द्वंद्व जूतमपैजार के रूप में सामने आया है। इस घटना के बाद भाजपा सीधे तौर पर दो हिस्सों में बंटती नजर आ रही है। जिस तरह अगले ही दिन भाजपा के एक अन्य विधायक श्याम प्रकाश ने शरद को गुंडा व भाजपा के लिए कलंक करार देकर जेल भेजने की मांग खुलकर सोशल मीडिया में की है, उससे यह विभाजन और गहराता दिख रहा है।
ऐसी घटनाओं से उस वैचारिक अधिष्ठान को भी धक्का लगा है, जहां राजनीति साधन नहीं, साध्य के रूप में देखने की बात कही जाती है। भारतीय जनता पार्टी का अभ्युदय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की उस विचार प्रक्रिया का परिणाम है, जहां लोकेष्णा से दूर रहने को मूल मंत्र माना जाता है। सांसद-विधायक की यह लड़ाई उसी लोकेष्णा का चरम है, जहां पत्थर पर नाम न लिखने पर जूते चल जाते हैं। जिस तरह लोकसभा चुनाव से ठीक पहले देश का वातावरण राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत हो रहा है, उससे टिकट को लेकर भाजपा के भीतर की मारामारी और बढ़ने की उम्मीद भी जताई जा रही है। इन स्थितियों में भाजपा के सामने चुनाव तक जूते चलने से रोकने की चुनौती भी है, ताकि ‘डिफरेंस’ को कोई और स्वरूप न मिल जाए। फिलहाल ये नये भारत की नयी भाजपा का नया संकट है। यह ‘डिफरेंस’ अगर नहीं खत्म हुआ, तो पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओं और मतदाताओं पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

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