Tuesday 5 March 2019

हर अभिनंदन कुछ कहता है...



डॉ.संजीव मिश्र

वो वैलेंटाइन डे की शाम थी, जब रक्त की लालिमा सूर्यास्त की लालिमा पर भारी पड़ गयी थी। पुलवामा में हुए हमले के बाद के 15 दिनों में गंगा से झेलम तक, पानी के साथ रक्त भी बहुत बह चुका है। 15 दिन बीतते-बीतते क्रंदन के साथ अभिनंदन के स्वर भी सामने आए हैं। अब जब अभिनंदन की बारी है, तो हमें बहुत कुछ सोचना होगा। आतंकियों का अभिनंदन करने वालों से लेकर शौर्य के प्रतिरूप बने विंग कमांडर अभिनंदन तक, हर अभिनंदन कुछ संदेश दे रहा है, हर अभिनंदन कुछ कह रहा है। अब वह समय आ गया है, जब हमें इस पर अभिनंदन के वंदन पर विचार करना होगा। तय करनी होगी अभिनंदन की दिशा, तभी सामने आएगी देश की सार्थक दशा।
पुलवामा में हमले के बाद भारत में देशभक्ति का जो ज्वार उठा, वह अवश्यंभावी था। वैलेंटाइन डे पर अपने प्रिय को देने के लिए खरीदे गए गुलाब देश पर शहीद हुए सीआरपीएफ जवानों की प्रार्थना सभाओं में उनके चित्रों पर अर्पित कर दिये गए। जो मोमबत्तियां प्रेयसी के साथ कैंडल लाइट डिनर के लिए संजोई गयी थीं, वे शहीदों की याद में जलाई गयीं। यह देश एकजुट होकर शहीदों के साथ खड़ा दिखा। देश शहीदों का अभिनंदन कर रहा था, वहीं कुछ स्वरों में शत्रु भाव का नाद भी था। देशभक्ति के आह्लाद में यह नाद अस्वीकार्य रहा, जिसका परिणाम मौन के संदेशों के रूप में भी सामने आया। यह हमारा दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि हम आजादी के सत्तर से अधिक वर्षों के बाद भी कई बार अपरिपक्व लोकतंत्र जैसे दिखाई देते हैं। आज भी चीन युद्ध के समय वामपंथियों की भूमिका सवालों के घेरे में रहने की चर्चाएं आम हैं, ऐसे में इस अघोषित युद्ध काल में भारतीय भावनाओं के विपरीत खड़े लोगों का अरिषोणित से अभिनंदन करने की बात गलत नहीं कही जा सकती।
भारतीय परंपराओं में सदैव ही विपरीत परिस्थितियों में भी ‘पहले देश’ का भाव ही रहा है। 1965 व 1971 के युद्ध काल में तत्कालीन विपक्ष सरकार के साथ कदम से कदम मिलाकर खड़ा था। जिस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को तत्कालीन सरकारें लगभग अश्पृश्य मानती थी, उस संगठन के स्वयंसेवक युद्ध काल में यातायात संभालने के लिए सड़क पर उतर आए थे। आज उसी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एक स्वयंसेवक देश का प्रधानमंत्री है और विपक्ष का नेतृत्व तत्कालीन सत्ताधारी कांग्रेस के हाथ में है, ऐसे में एक बार फिर सभी से ‘पहले देश’ के भाव की अपेक्षा थी, किन्तु यह पूरी तरह से नहीं हुआ। हमने टीवी चैनलों में दोनों ओर की सेनाओं को देश के भीतर युद्ध करते देखा है। किस तरह भारतीय वीरों के पराक्रम को अपने हिस्से में कर लेने की होड़ सी लगी थी, यह भी साफ दिखा है। उन वीरों का पराक्रम अभिनंदनीय है किन्तु उन लोगों का अभिनंदन कैसे किया जाए, जो सिर्फ चिल्लाकर अपने आपको सबसे बड़ा देशभक्त साबित करना चाहते थे। इक्कीसवीं सदी के भारत में इस शताब्दी में वयस्क हुए और पहली बार मतदान की ओर जा रहे युवाओं के उत्साह को अपनी ओर घसीट लेने की चाह लिए राजनीतिज्ञों और टीआरपी में उन्हें शामिल करने को आतुर टीवी चैनलों का वैशिष्ट्यबोध भी अभिनंदन योग्य है। सोशल मीडिया के इस युग में यह वैशिष्ट्य स्पष्ट सामने नजर आ रहा है।
भारतीय पराक्रम सिर चढ़ कर बोलता है, यह बात हमारे विंग कमांडर अभिनंदन ने एक बार फिर साबित कर दी है। जिस तरह उन्होंने हमारे पुराने मिग-21 से पाकिस्तान के आधुनिक एफ-16 विमान को उड़ाया और फिर पाकिस्तानी सेना की गिरफ्त में आने के बाद भी सैन्य धर्म का सम्यक निर्वहन किया, उससे हर भारतवासी का सिर गर्व से ऊंचा है। उस अभिनंदन का वीरोचित अभिनंदन भी हो रहा है। जिस तरह पहले युद्धबंदियों के साथ पाकिस्तान का व्यवहार रहा है, उन्हें स्मरण करें तो अभिनंदन की चिंता स्वाभाविक थी। ऐसे में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने शांति के संदेश के रूप में अभिनंदन को वापस भेजने की बात कही है, उनके उस भाव का अभिनंदन भी होना चाहिए, बशर्ते इमरान का यह भाव सैन्य दबावों से मुक्त होकर दोनों देशों के बीच सकारात्मक संबंधों की राह खोल सके। जिस तरह पाकिस्तानी संसद में इमरान ने भारतीय सबूतों की पावती दी है, उसी तरह वे अपने वादों पर अमल कर पाकिस्तान की धरती से भारत में आतंकवाद पर रोक लगा सकें, तो हर भारतवासी उनका भी अभिनंदन करेगा। मौजूदा स्थितियों में तो भारत की कूटनीतिक सफलता का अभिनंदन किया जाना चाहिए। जिस तरह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में आतंक के रहनुमाओं के खिलाफ प्रस्ताव आया है और फिर इस्लामिक सहयोग संगठन ने पाकिस्तान पर भारत को तरजीह दी है, वह भी भारतीय कूटनीति की अभिनंदनीय सफलता है। हर अभिनंदन कुछ कहते हुए आगे जा रहा है, हमारा वीर अभिनंदन भी तमाम संदेश देकर और कई सकारात्मक संदेश लेकर वापस लौटा है। देश तुम जैसे सैनिकों का ऋणी है अभिनंदन। तुम्हारा अभिनंदन... अभिनंदन... अभिनंदन...।

No comments:

Post a Comment