Monday 11 July 2016

छह जिलों में जन्मदर 4+, घटाना बड़ी चुनौती


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विश्व जनसंख्या दिवस कल
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- 'संयोग से नहीं, सहमति से बढ़ाएं परिवार' का दिया नारा
- 2020 तक ढाई करोड़ को परिवार कल्याण से जोडऩे का लक्ष्य
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : सोमवार को विश्व जनसंख्या दिवस है। प्रदेश की सकल जन्म दर तीन से अधिक होना राज्य स्तर पर तो चुनौती है ही, छह जिले ऐसे हैं, जिनमें जन्म दर चार से अधिक है। प्रदेश सरकार के सामने ये जिले सबसे बड़ी चुनौती बने हुए हैं। आबादी घटाने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 'जिम्मेदारी निभाओ, प्लान बनाओ' नारा दिया है तो राज्य में आबादी घटाने की चुनौतियों से निपटने के लिए 'संयोग से नहीं, सहमति से बढ़ाएं परिवार' का नारा दिया गया है।
उत्तर प्रदेश में परिवार नियोजन की तमाम कोशिशें सफल होने का नाम नहीं ले रही हैं। विश्व जनसंख्या दिवस पर एक बार फिर बड़े वादे किये जाएंगे, किन्तु अधिकारी परिवार कल्याण कार्यक्रमों से आम जनमानस के न जुड़ पाने की चुनौती से जूझ रहे हैं। इसीलिए अगले चार वर्ष की कार्ययोजना बनाई गयी है। इस समय प्रदेश के सवा करोड़ लोगों तक परिवार नियोजन से जुड़ी सेवाएं पहुंचाई जा रही हैं। 2020 तक यह संख्या बढ़ाकर ढाई करोड़ करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इस समय प्रदेश में संतानोत्पत्ति वाले 20 फीसद दंपती किसी भी गर्भ निरोधक साधन का प्रयोग नहीं करते हैं। 2020 तक इसे घटाकर 12.7 फीसद करने का लक्ष्य है, ताकि प्रदेश की जन्मदर 3.1 से घटाकर 2.1 पर पहुंचाई जा सके। इनमें भी छह जिले स्वास्थ्य विभाग के लिए चुनौती बने हैं। श्रावस्ती, गोंडा, लखीमपुर खीरी, सिद्धार्थ नगर, बलरामपुर व सीतापुर में जन्मदर चार से अधिक है। इसे आधी करने के लिए पंचायत स्तर तक जाकर गर्भ निरोधकों का इस्तेमाल बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है।
मृत्यु दर भी घटेगी
प्रदेश में मातृ मृत्यु दर 258 प्रति लाख प्रसव और शिशु मृत्यु दर 48 प्रति हजार है। छोटे और नियोजित परिवार को अपनाकर इसे भी घटाया जा सकेगा। आशा कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण में यह बात बताने पर भी जोर दिया जा रहा है। इसमें नसबंदी के प्रति प्रेरित करने के साथ परिवार नियोजन के आधुनिक साधनों का प्रयोग 37.6 फीसद से बढ़ाकर 61.3 फीसद करने पर जोर है।
150 अस्पतालों पर फोकस
स्वास्थ्य विभाग ने 150 अस्पताल चिन्हित किये हैं, जहां हर माह 200 से अधिक प्रसव होते हैं। प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) अरविंद कुमार ने बताया कि इन अस्पतालों में काउंसिलिंग से लेकर परिवार कल्याण से जुड़ी सभी सेवाओं की गुणवत्ता सुधारने पर जोर दिया जा रहा है। पूरा जोर इस बात पर है कि दूसरा बच्चा पेट में आने के साथ ही गर्भवती महिला को मानसिक रूप से प्रसव के बाद परिवार नियोजन के लिए तैयार किया जा सके।

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