Wednesday 27 May 2020

ज़कात व अमन की सौग़ात दे गया रमजान

ईद पर हामिद चिमटा न ला सका, ज़कात के संदेशे दे गया
डॉ. संजीव मिश्र
मुंशी प्रेमचंद की कहानी ईदगाह हर ईद पर याद आती है। हर ईद इस उम्मीद के साथ आती है कि कोई हामिद अपनी दादी के जलते हाथों की परवाह कर चिमटा लाएगा। इस बार ईद तो आई पर ईदगाहों पर मेले न लगे। कोरोना के चलते इस बार ईद की नमाज़ भी घर मैं अदा की गई। ऐसे में न ईदगाह पर मेला लगा न हामिद वहाँ जा सका। हाँ, इतना ज़रूर हुआ कि हामिद ने पूरे देश को मज़बूत संदेश दिया। हामिद जैसे तमाम बच्चों ने आस पड़ोस के भूखे लोगों को खाना खिलाया और उन बच्चों को ईदी दी, जिन्हें कोरोना संकट के कारण इस बार ईदी मिलने की उम्मीद न थी। यह ईद जकात का संदेश लिए आई थी। देश में एकजुटता का भाव लिए आई ईद पर आय का दसांश दान करने संबधी भारतीय मूल भाव भी था और जकात सहेजे इस्लामी परंपरा भी।
कोरोना संकट के कारण चल रहे लॉकडाउन ने ईद पर परम्परागत उत्सवधर्मिता को घरों तक सीमित कर दिया था। इसको लेकर तमाम चर्चाएँ भी हो रही थी। कुछ कट्टरपंथियों को पूरी उम्मीद थी कि ईद पर लोग सड़कों पर उतरेंगे और जगह जगह लॉकडाउन का उल्लंघन होगा। देश में कोरोना की शुरुआत के बाद तब्लीगी जमात के क्रियाकलापों ने इस डर को और बढ़ाया था।            
इस बार ईद पर जिस तरह से देश में सकारात्मक वातावरण का सृजन हुआ है, इससे देश की विभाजनकारी शक्तियों के मुँह पर भी तमाचा लगा है। जिस तरह से ईद के पहले माहौल बना कर इस दिन को चुनौती के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा था, देश के सद्भाव ने ऐसा माहौल बनाने वालों के मुँह पर तमाचा जड़ा है। पूरे देश से ईद पर दान की ख़बरें आ रही हैं। देश के सामने आ रहे आर्थिक संकट को देखते हुए इस समय अर्थव्यवस्था के साथ क़दमताल की ज़रूरत है और भारतीय दान परंपरा ही इस भाव को बचा सकती है। भारतीय परंपरा में अपनी आय का दसांश यानी दसवाँ हिस्सा दान करने की परंपरा है। इस्लाम इस मान्यता को ज़कात के रूप में अंगीकार करता है। इस बार ईद पर यह परम्परा और मज़बूती से प्रभावी रूप लेती दिखी। रमज़ान के दौरान मुस्लिम युवाओं ने रमज़ान और ईद पर पैसे बचाकर बेसहारा लोगों की मदद की मुहिम चलायी। लोगों ने दिखाया कि सोशल मीडिया का सदुपयोग भी किया जा सकता है। यही कारण है कि इस बार रमज़ान और ईद मुबारक के संदेशे दान का आह्वान भी कर रहे थे।
आय का एक हिस्सा दान करने की यह परंपरा कोरोना संकट के समय खुलकर देखने को मिल रही है। कोरोना के दौरान करुणा का भाव सहेज कर देश भर में लोग एक दूसरे की मदद को आगे आए हैं। इसमें बच्चों तक दान का संस्कार भी पहुँचा है। लखनऊ में जिस तरह बच्चों ने अपनी गुल्लकों को तोड़कर कोरोना पीड़ितों की मदद की पहल की है,  उससे स्पष्ट है कि अगली पीढ़ी जुड़ाव स्थापित कर रही है। कोरोना संकट के बीच रमज़ान के दौरान रोज़ा इफ़्तार की तमाम दावतें नहीं हुई और पूरे देश में मुस्लिम समाज ने इफ़्तार की दावतों पर खर्च होने वाला धन कोरोना पीड़ितों को दान करने की पहल की। लोगों ने बाक़ायदा अभियान चलाकर ईद पर नए कपड़े के स्थान पर मदद की गुहार तक की। जिस तरह लोगों ने पहले नवरात्र में घरों तक सीमित रहकर लॉकडाउन की शुचिता बनाए रखने में मदद की, उसी तरह रमज़ान के दौरान भी घरों के भीतर ही इबादत को स्वीकार किया गया। जिस तरह देशवासियों ने धार्मिक भावनाओं से ऊपर उठकर संकट से निपटने को तरजीह दी है, उसकी प्रशंसा की जानी चाहिए। कोरोना हमें बहुत कुछ सिखा भी रहा है और संकट का सामना करने के साथ उसमें अवसर ढूँढने की राह भी दिखा रहा है। भारत ही नहीं पूरी दुनिया इस समय दूसरे विश्व युद्ध के बाद के सबसे बड़े संकट से गुज़र रही है। भारत में जिस तरह यह परेशानी द्रुत गति से बढ़ रही है वह स्थिति चिन्ताजनक है।इसका असर रोज़ी रोज़गार से लेकर परिवार तक पड़ रहा है। ऐसे में ज़रूरी है कि हम सब मिलकर अपने आस पास भी पीड़ितों की पहचान करें और उन्हें हर संभव मदद पहुँचाएँ।                  

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