डॉ.संजीव मिश्र
इक्कीसवीं सदी के इक्कीसवें साल का 19वां दिन।
भारत से दस हजार किलोमीटर से भी ज्यादा दूर आस्ट्रेलिया में भारतीय तिरंगा तेजी से
लहरा रहा था। जी हां, 19 जनवरी 2021 को आस्ट्रेलिया के गाबा क्रिकेट स्टेडियम में
जब भारतीय क्रिकेट टीम ने आस्ट्रेलिया को हराया, तो पूरा भारत झूम उठा था।कोरोना
काल के दौर में भीषण तनाव झेल चुके देश में 2021 की शुरुआत के साथ ही आई इस खबर ने
उम्मीदों के नए आकाश का सृजन सा कर दिया था। ऐसी ही तमाम टिमटिमाती उम्मीदों के
साथ हम इस बार देश का 72वां गणतंत्र दिवस आया है। कोरोना के टीके की खोज हो या
सेंसेक्स की उछाल के साथ अर्थव्यवस्था में सुधार की उम्मीदें हों, यह गणतंत्र दिवस
अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला लग रहा है।
वर्ष 2021 की शुरुआत से ही भारत में संभावनाओं
के नए द्वार खुलने की उम्मीद जताई जा रही थी। दरअसल कोरोना के कारण पिछले वर्ष
पूरा देश ठहर सा गया था। गली-गली मौत की चीत्कार ने दहशत का वातावरण सृजित कर दिया
था। वर्ष 2020 खत्म होते-होते इसके दुष्परिणाम सामने आने लगे थे। बेहाल
अर्थव्यवस्था के साथ बेरोजगारी मुंह बाए खड़ी थी और समाधान की कोई तात्कालिक
उम्मीद भी नहीं दिख रही थी। ऐसे में इस वर्ष गणतंत्र दिवस को लेकर उत्साह भी हर
वर्ष जैसा तो नहीं ही था। इस बीच लगातार आई सकारात्मक खबरों ने वातावरण बदला है।
क्रिकेट की जीत तात्कालिक उत्साह वाली है और भारत जैसे देश के लिए तो उत्साह के
अतिरेक वाली है, जिससे लोग अधिकाधिक संख्या में सीधे जुड़ जाते हैं। इस जीत के बाद
तनाव की बेड़ियां टूट सी गयीं और चहुंओर उत्साह का वातावरण बना। इससे लोगों को
उम्मीद जगी कि सकारात्मक खबरों का दौर शुरू हो चुका है। पहला टेस्ट मैच बुरी तरह
हारने के बाद वापसी करने वाली भारतीय क्रिकेट टीम ने देश के मन में उम्मीद की किरण
जगाई है। हमें लगने लगा है कि एक अंधेरी रात के बाद की सुबह की शुरुआत हो चुकी है।
यह गणतंत्र दिवस महज इस जीत के बाद नहीं आया, तमाम उम्मीदों की रोशनी भी साथ लेकर
आया है।
महज क्रिकेट की जीत ही नहीं, यह गणतंत्र दिवस
हमारे लिए चिकित्सकीय आत्मनिर्भरता का संदेश लेकर भी आया है। जिस तरह से भारतीय
मेधा ने कोरोना की चुनौती को स्वीकार कर कोरोना से मुक्ति दिलाने वाली वैक्सीन के
निर्माण का पथ प्रशस्त किया है, वह भी उम्मीदों भरा है। भारत में कोरोना की दस्तक
के बाद जिस तरह से लगातार स्थितियां भयावह होती जा रही थीं, उससे पूरे देश में न
सिर्फ भय का वातावरण बन गया था, बल्कि भविष्य की संभावनाओं पर अनिश्चितता के बादल
छाए हुए थे। आसपास हो रही मौतों से परेशान घरों में कैद लोगों के लिए भारतीय
वैक्सीन वही उम्मीद की किरण बनकर आयी है, जिससे लोगों को इस गणतंत्र दिवस के साथ
नवसूर्योदय होता दिख रहा है। इसके साथ ही जिस तरह पूरी दुनिया इस वैक्सीन के लिए
भारत की ओर देख रही है, उससे भी भारतीय संभावनाओं को बल मिला है। वसुधैव कुटुंबकम्
की परिकल्पना वाले भारत में बनी वैक्सीन इस भाव को और पुष्ट करती दिख रही है। भारत
भी दुनिया के तमाम देशों को खुले मन से यह वैक्सीन उपलब्ध करा रहा है। साथ ही देश
के भीतर भी कोरोना की वैक्सीन का प्रयोग शुरू हो गया है। इससे कोरोना को लेकर डर
भी दूर हो रहा है।
भारतीय परिवेश में वर्ष 2020 की शुरुआत की बात
करें तो अर्थव्यवस्था चरमराती सी नजर आ रही थी। रोजगार के अवसर कम होने को लेकर
सवाल खड़े हो रहे थे। इसके बाद रही सही कसर कोरोना ने पूरी कर दी थी। लग रहा था कि
भारतीय अर्थव्यवस्था की कमर सी टूट चुकी है और इसे सुधरने में लंबा वक्त लगेगा।
जिस तरह कोरोना काल में कामकाज ठप हो जाने के कारण उत्पादन से लेकर विपणन तक की
यात्रा संकट में पड़ गयी थी, भारत की अर्थव्यवस्था पर जटिल सावल उठना अवश्यंभावी
था। ऐसे में इस वर्ष गणतंत्र दिवस से पहले शेयर बाजार में आई उछाल ने उम्मीदों के
नए दीपक रोशन किये हैं। जिस तरह घरेलू शेयर बाजार में उछाल के बाद मुंबई स्टॉक
एक्सचेंज का सूचकांक यानी सेंसेक्स 50 हजार के पार गया है, उससे वे लोग भी
प्रफुल्लित हैं, जिन्हें शेयर बाजार का गुणा-गणित तो दूर, सेंसेक्स का मतलब तक
नहीं मालूम है। यह खुशी उम्मीदों वाली है। उन्हें लगने लगा है कि जब सेंसेक्स उछल
कर 50 हजार तक पहुंच सकता है, तो देश की समूची अर्थव्यवस्था में सुधार आना भी
अवश्यंभावी है। ऐसी ही उम्मीदों के साथ आया गणतंत्र दिवस भारतीय गणतंत्र के मूल
भाव को और मजबूत करेगा। इस दौरान किसान आंदोलन से अरुणांचल में चीन के कब्जे जैसे
मसले देश के लिए चुनौती भी बने हुए हैं। इसके बावजूद लोगों को लगता है कि अंधकार
के बाद दिख रही प्रकाश की ये किरणें सभी समस्याओं का समाधान
करने में सफल होंगी।
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